रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं - रूह अब साकार में है और फिर प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान है क्योंकि एडाप्ट किये हुए हैं।
तुम्हारे लिए सब कहते हैं यह भाई-बहन बनाती हैं।
बच्चों को बाप ने समझाया है असुल में तुम आत्मायें भाई-भाई हो।
अब नई सृष्टि होती है तो पहले-पहले ब्राह्मण चोटी चाहिए।
तुम शूद्र थे, अभी ट्रांसफर हुए हो।
ब्राह्मण भी तो चाहिए जरूर।
प्रजापिता ब्रह्मा का नाम तो बाला है।
इस हिसाब से तुम समझते हो हम सब बच्चे - भाई बहिन ठहरे।
जो भी अपने को ब्रह्माकुमार-कुमारी कहलाते हैं वह जरूर भाई-बहन ठहरे।
सभी प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान हैं तो भाई-बहिन जरूर होना चाहिए।
यह समझाना है बेसमझों को।
बेसमझ भी हैं और फिर ब्लाइन्ड फेथ भी है।
जिनकी पूजा करते हैं, फेथ रखते हैं यह फलाना है, परन्तु उसे जानते कुछ भी नहीं।
लक्ष्मी-नारायण की पूजा करते हैं परन्तु वह कब आये, कैसे बनें, फिर कहाँ गये?
कोई भी नहीं जानते।
कोई भी मनुष्य नेहरू आदि को जानते हैं, तो उन्हों की हिस्ट्री-जॉग्राफी का भी सब पता है।
अगर बायोग्राफी को नहीं जानते तो वह क्या काम का।
पूजा करते हैं, परन्तु उनकी जीवन कहानी को नहीं जानते।
मनुष्यों की जीवन कहानी को तो जानते हैं परन्तु जो बड़े पास्ट हो गये हैं, उनकी एक की भी जीवन कहानी को नहीं जानते।
शिव के कितने ढेर पुजारी हैं।
पूजा करते हैं, फिर मुख से कह देते वह तो पत्थर-भित्तर में है, कण-कण में है।
क्या यह जीवन कहानी ठहरी?
यह तो अक्ल की बात नहीं हुई।
अपने को भी पतित कहते हैं।
पतित अक्षर कितना फिट है।
पतित माना विकारी।
तुम समझा सकते हो कि हम ब्रह्माकुमार-कुमारी क्यों कहलाते हैं?
क्योंकि ब्रह्मा की औलाद हैं और एडाप्टेड हैं।
हम कुख वंशावली नहीं, मुख वंशावली हैं।
ब्राह्मण-ब्राह्मणियां तो भाई-बहिन ठहरे ना।
तो उनकी आपस में क्रिमिनल आई हो न सके।
खराब ख्यालात मुख्य हैं ही काम के।
तुम कहते हो हम प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान भाई-बहिन बनते हैं।
तुम समझते हो हम सब हैं शिवबाबा की सन्तान भाई-भाई।
यह भी पक्का है।
दुनिया को कुछ भी पता नहीं है।
ऐसे ही सिर्फ कह देते हैं।
तुम समझा सकते हो सभी आत्माओं का बाप वह एक है।
उनको सब पुकारते हैं।
तुमने चित्र भी दिखाया है।
बड़े-बड़े धर्म वाले भी इस निराकार बाप को मानते हैं।
वह है निराकार आत्माओं का बाप और फिर साकार में सभी का बाप प्रजापिता ब्रह्मा है जिनसे फिर वृद्धि को पाते रहते हैं, झाड़ बढ़ता जाता है।
भिन्न-भिन्न धर्मों में आते जाते हैं।
आत्मा तो इस शरीर से न्यारी है।
शरीर को देखकर कहते हैं - यह अमेरिकन है, यह फलाना है।
आत्मा को तो नहीं कहते।
आत्मायें सब शान्तिधाम में रहती हैं।
वहाँ से आती हैं पार्ट बजाने।
तुम कोई भी धर्म वाले को सुनाओ, पुनर्जन्म तो सब लेते हैं और ऊपर से भी नई आत्मायें आती रहती हैं।
तो बाप समझाते हैं - तुम भी मनुष्य हो, मनुष्य को ही तो सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का मालूम होना चाहिए कि यह सृष्टि चक्र कैसे घूमता है, इनका रचयिता कौन है, कितना समय इनके फिरने में लगता है?
यह तुम ही जानते हो, देवतायें तो नहीं जानते हैं।
मनुष्य ही जानकर फिर देवता बनते हैं।
मनुष्य को देवता बनाने वाला है बाप।
बाप अपना और रचना का भी परिचय देते हैं।
तुम जानते हो हम बीजरूप बाप के बीजरूप बच्चे हैं।
जैसे बाप इस उल्टे वृक्ष को जानते हैं, वैसे हम भी जान गये हैं।
मनुष्य, मनुष्य को कभी यह समझा न सके।
परन्तु तुमको बाप ने समझाया है।
जब तक तुम ब्रह्मा के बच्चे नहीं बने हो तब तक यहाँ आ नहीं सकते।
जब तक पूरा कोर्स लेकर समझते नहीं हैं तब तक तुम ब्राह्मणों की सभा में बैठा कैसे सकते।
इसको इन्द्र सभा भी कहते हैं।
इन्द्र कोई वह पानी की बरसात नहीं बरसाते हैं।
'इन्द्र सभा' कहा जाता है।
परियां भी तुमको बनना है।
अनेक प्रकार की परियां गाई हुई हैं।
कोई बच्चे अच्छे शोभावान होते हैं तो कहते हैं ना यह तो जैसे परी है।
पाउडर आदि लगाकर सुन्दर बन जाते हैं।
सतयुग में तुम बनते हो परियां, परीजादे।
अभी तुम ज्ञान सागर में ज्ञान स्नान करने से परियां (देवी-देवता) बन जाते हो।
तुम जानते हो हम क्या से क्या बन रहे हैं।
जो सदा प्योर बाप है, सदा खूबसूरत है, वह मुसाफिर तुमको ऐसा बनाने के लिए सांवरे तन में प्रवेश करते हैं।
अब गोरा कौन बनावे?
बाबा को बनाना पड़े ना।
सृष्टि का चक्र तो फिरना है।
अब तुमको गोरा बनना है।
पढ़ाने वाला ज्ञान सागर एक ही बाप है।
ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर है।
उस बाप की जो महिमा गाई जाती है, वह लौकिक बाप की थोड़ेही हो सकती है।
बेहद के बाप की ही महिमा है।
उनको ही सब पुकारते हैं कि हमको ऐसी महिमा वाला आकर बनाओ।
अभी तुम बन रहे हो ना, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार।
पढ़ाई में सब एकरस नहीं होते हैं।
रात-दिन का फर्क रहता है ना।
तुम्हारे पास भी बहुत आयेंगे।
ब्राह्मण जरूर बनना है।
फिर कोई अच्छी रीति पढ़ते हैं, कोई कम।
जो पढ़ाई में सबसे अच्छा होगा तो दूसरों को भी पढ़ा सकेंगे।
तुम समझ सकते हो, इतने कॉलेज निकलते रहते हैं।
बाबा भी कहते हैं कॉलेज ऐसा बनाओ जो कोई भी समझ सके कि इस कॉलेज में रचता और रचना के आदि, मध्य, अन्त का नॉलेज मिलता है।
बाप भारत में ही आते हैं तो भारत में ही कॉलेज खुलते रहते हैं।
आगे चल विदेश में भी खुलते जायेंगे।
बहुत कॉलेज, युनिवर्सिटीज़ चाहिए ना।
जहाँ बहुत आकर पढ़ेंगे फिर जब पढ़ाई पूरी होगी तो देवी-देवता धर्म में सब ट्रांसफर हो जायेंगे अर्थात् मनुष्य से देवता बन जायेंगे।
तुम मनुष्य से देवता बनते हो ना।
गायन भी है - मनुष्य से देवता किये......।
यहाँ यह है मनुष्यों की दुनिया, वह है देवताओं की दुनिया।
देवताओं और मनुष्यों में रात-दिन का फर्क है!
दिन में हैं देवतायें, रात में हैं मनुष्य।
सब भक्त ही भक्त हैं, पुजारी हैं। अभी तुम पुजारी से पूज्य बनते हो।
सतयुग में शास्त्र, भक्ति आदि का नाम नहीं होता है। वहाँ हैं सब देवता।
मनुष्य होते हैं भक्त।
मनुष्य ही फिर देवता बनते हैं।
वह है दैवी दुनिया, इसको कहा जाता है आसुरी दुनिया।
राम राज्य और रावण राज्य।
आगे तुम्हारी बुद्धि में यह थोड़ेही था कि रावण राज्य किसको कहा जाता है?
रावण कब आया?
कुछ भी पता नहीं था।
कहते हैं लंका समुद्र में डूब गई।
ऐसे ही फिर द्वारिका के लिए भी कहते हैं।
अभी तुम जानते हो यह सारी लंका डूबने की है, सारी दुनिया भी बेहद की लंका है।
यह सब डूब जायेगी, पानी आ जायेगा।
बाकी स्वर्ग कोई डूबता थोड़ेही है।
कितना अथाह धन था।
बाप ने समझाया है एक ही सोमनाथ मन्दिर को मुसलमानों ने कितना लूटा।
अभी देखो कुछ नहीं रहा है।
भारत में कितना अथाह धन था।
भारत को ही स्वर्ग कहा जाता है।
अभी स्वर्ग कहेंगे?
अभी तो नर्क है, फिर स्वर्ग बनेगा।
स्वर्ग कौन, नर्क कौन बनाते हैं?
यह अभी तुम जान गये हो।
रावण राज्य कितना समय चलता है, वह भी बताया है।
रावण राज्य में कितने अथाह धर्म हो जाते हैं।
रामराज्य में तो सिर्फ सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी रहते हैं।
अभी तुम पढ़ रहे हो।
यह पढ़ाई और कोई की बुद्धि में नहीं है।
वह तो है ही रावण राज्य में।
रामराज्य होता है सतयुग में।
बाप कहते हैं हम तुमको लायक बनाते हैं।
फिर तुम न लायक बन जाते हो।
न लायक क्यों कहते हैं?
क्योंकि पतित बन जाते हो।
देवताओं के लायकी की महिमा और अपनी न लायकी की महिमा गाते हैं।
बाप समझाते हैं - तुम जब पूज्य थे तो नई दुनिया थी।
बहुत थोड़े मनुष्य थे।
सारे विश्व के तुम ही मालिक थे।
अभी तुमको खुशी बहुत होनी चाहिए।
भाई-बहिन तो बनते हो ना।
वह कहते यह घर फिटाते हैं।
वही फिर आकर जब शिक्षा लेते हैं तो यहाँ आने से समझते हैं कि नॉलेज तो बहुत अच्छी है।
अर्थ समझते हैं ना।
भाई-बहिन बिगर पवित्रता कहाँ से आये।
सारा मदार पवित्रता पर ही है।
बाप आते भी हैं मगध देश में, जो कि बहुत गिरा हुआ देश है, बहुत पतित है, खान-पान भी गन्दा है।
बाप कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त वाले शरीर में ही प्रवेश करता हूँ।
यही 84 जन्म लेते हैं।
लास्ट सो फिर फर्स्ट, फर्स्ट सो लास्ट।
मिसाल तो एक का बतायेंगे ना।
तुम्हारी डिनायस्टी बनने वाली है।
जितना अच्छी रीति समझते जायेंगे, फिर तो तुम्हारे पास बहुत आयेंगे।
अभी यह बहुत छोटा झाड़ है।
तूफान भी बहुत लगते हैं।
सतयुग में तूफानों की बात ही नहीं।
ऊपर से नई-नई आत्मायें आती रहती हैं।
यहाँ तूफान लगते ही गिर पड़ते हैं।
वहाँ तो माया का तूफान होता ही नहीं।
यहाँ तो बैठे-बैठे मर जाते हैं और फिर तुम्हारी माया के साथ युद्ध है, तो वह भी हैरान करती है।
सतयुग में यह नहीं होगा।
दूसरे कोई धर्म में ऐसी बात होती नहीं।
रावण राज्य और राम राज्य को और कोई समझते ही नहीं हैं।
भल सतसंग में जाते हैं, वहाँ मरने-जीने की बात नहीं होती।
यहाँ तो बच्चे एडाप्ट होते हैं।
कहते हैं हम शिवबाबा के बच्चे हैं, उनसे वर्सा लेते हैं।
लेते-लेते फिर गिर पड़ते हैं तो वर्सा भी खलास।
हंस से बदलकर बगुला बन जाते हैं।
फिर भी बाप रहमदिल है तो समझाते रहते हैं।
कोई फिर से चढ़ जाते हैं।
जो थमे (स्थिर) रहते हैं, उनको कहेंगे महावीर, हनूमान।
तुम हो महावीर-महावीरनी।
नम्बरवार तो हैं ही।
सबसे पहलवान को महावीर कहा जाता है।
आदि देव को भी महावीर कहते हैं, जिससे ही यह महावीर पैदा होते हैं जो विश्व पर राज्य करते हैं।
नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार रावण पर विजय पाने के लिए पुरूषार्थ करते रहते हैं।
रावण हैं 5 विकार।
यह तो समझ की बात है।
अभी तुम्हारी बुद्धि का ताला बाप खोलते हैं।
फिर ताला एकदम बन्द हो जाता है।
यहाँ भी ऐसे हैं जिनका ताला खुलता है तो वह जाकर सर्विस करते हैं।
बाप कहते हैं जाकर सर्विस करो, गटर में जो पड़े हैं उनको निकालो।
ऐसे नहीं कि तुम भी गटर में गिरो।
तुम बाहर निकल औरों को भी निकालो।
विषय वैतरणी नदी में अपरम्पार दु:ख हैं।
अभी अपरम्पार सुखों में चलना है।
जो अपरम्पार सुख देते हैं, उनकी महिमा गाई जाती है।
रावण जो दु:ख देते हैं, उनकी महिमा होगी क्या?
रावण को कहा जाता है असुर।
बाप कहते हैं तुम रावण राज्य में थे, अभी अपार सुख पाने के लिए तुम यहाँ आये हो।
तुमको कितने अपार सुख मिलते हैं।
खुशी कितनी रहनी चाहिए और खबरदार भी रहना चाहिए।
पोजीशन तो नम्बरवार होती हैं।
हर एक एक्टर का पोजीशन अलग है।
सबमें तो ईश्वर हो न सके।
बाप हर बात बैठ समझाते हैं।
तुम बाप को और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जान जाते हो
नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार।
नम्बरवार पढ़ाई पर ही मार्क्स होती हैं।
यह है बेहद की पढ़ाई, इसमें बच्चों का बहुत अटेन्शन होना चाहिए।
पढ़ाई एक रोज़ भी मिस न हो।
हम हैं स्टूडेन्ट, गॉड फादर पढ़ाते हैं - वह नशा बच्चों को चढ़ा रहना चाहिए।
भगवानुवाच, सिर्फ उन्हों ने नाम बदलकर कृष्ण का नाम डाल दिया है।
भूल से कृष्ण भगवानुवाच समझ लिया है क्योंकि कृष्ण हुआ नेक्स्ट टू गॉड।
स्वर्ग जो बाप स्थापन करते हैं उनमें नम्बरवन यह है ना।
यह ज्ञान अभी तुमको मिला है।
नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार अपना भी कल्याण करते हैं और दूसरों का भी कल्याण करते रहते हैं, उनको सर्विस बिगर कभी सुख नहीं आयेगा।
तुम बच्चे योग और ज्ञान में मजबूत हो जायेंगे तो काम ऐसे करेंगे जैसे जिन्न।
मनुष्य को देवता बनाने की हॉबी (आदत) लग जायेगी।
मौत के पहले ही पास होना है।
सर्विस बहुत करनी है।
पीछे तो लड़ाई लगेगी।
नेचुरल कैलेमिटीज भी आयेंगी।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।