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03-09-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन


"मीठे बच्चे - यह राज़ सभी को सुनाओ कि आबू सबसे बड़ा तीर्थ है, स्वयं भगवान ने यहाँ से सबकी सद्गति की है''
प्रश्नः-

कौन-सी एक बात मनुष्य अगर समझ जाएं तो यहाँ भीड़ लग जायेगी?


उत्तर:-

मुख्य बात समझ लें कि बाप ने जो राजयोग सिखाया था, वह अभी फिर से सिखा रहे हैं, वह सर्वव्यापी नहीं है।

बाप इस समय आबू में आकर विश्व में शान्ति स्थापन कर रहे हैं, उसका जड़ यादगार देलवाड़ा मन्दिर भी है।

आदि देव यहाँ चैतन्य में बैठे हैं, यह चैतन्य देलवाड़ा मन्दिर है, यह बात समझ लें तो आबू की महिमा हो जाए और यहाँ भीड़ लग जाए।

आबू का नाम बाला हो गया तो यहाँ बहुत आयेंगे।


ओम् शान्ति।

बच्चों को योग सिखाया।

और सब जगह सब आपेही सीखते हैं,

सिखलाने वाला बाप नहीं होता।

एक-दो को आपेही सिखलाते हैं।

यहाँ तो बाप बैठ सिखलाते हैं बच्चों को।

रात-दिन का फर्क है।

वहाँ तो बहुत मित्र-सम्बन्धी आदि याद आते रहते हैं,

इतना याद नहीं कर सकते हैं इसलिए देही-अभिमानी बहुत मुश्किल बनते हैं।

यहाँ तो देही-अभिमानी तुमको बहुत जल्दी बनना चाहिए, परन्तु बहुत हैं जिनको कुछ भी पता नहीं है।

शिवबाबा हमारी सर्विस कर रहे हैं, हमको कहते हैं अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो।

जो बाप इसमें विराजमान हैं, यहाँ विराजमान हैं, उनको याद करना पड़ता है।

बहुत बच्चे हैं जिनको यह निश्चय ही नहीं है कि शिवबाबा ब्रह्मा तन द्वारा हमको सिखला रहे हैं,

जैसे और लोग कहते हैं, हम कैसे निश्चय करें, ऐसे यहाँ भी हैं।

अगर पूरा निश्चय होता तो बहुत प्यार से बाप को याद करते-करते अपने में बल भरते, बहुत सर्विस करते क्योंकि सारे विश्व को पावन बनाना है ना।

योग में भी कमी है तो ज्ञान में भी कमी है।

सुनते तो हैं परन्तु धारणा नहीं होती है।

धारणा अगर हो तो फिर औरों को भी धारणा करावें।

बाबा ने समझाया था वे लोग कान्फ्रेन्स आदि करते रहते हैं, विश्व में शान्ति चाहते हैं परन्तु विश्व में शान्ति कब थी, किस प्रकार हुई थी, वह कुछ भी नहीं जानते।

किस प्रकार की शान्ति थी, वही चाहिए ना।

यह तो तुम बच्चे ही जानते हो विश्व में सुख-शान्ति की स्थापना अब हो रही है।

बाप आया हुआ है।

कैसे यह देलवाड़ा मन्दिर है, आदि देव भी है और ऊपर में विश्व में शान्ति का नज़ारा भी है।

कहाँ भी कान्फ्रेन्स आदि में तुमको बुलाते हैं तो तुम पूछो - विश्व में शान्ति किस प्रकार की चाहिए?

इन लक्ष्मी-नारायण के राज्य में विश्व में शान्ति थी।

वह तो देलवाड़ा मन्दिर में पूरा यादगार है।

विश्व में शान्ति का सैम्पुल तो चाहिए ना।

लक्ष्मी-नारायण के चित्र से भी समझते नहीं हैं।

पत्थरबुद्धि हैं ना।

तो उन्हों को बताना चाहिए कि हम बता सकते हैं विश्व में शान्ति का सैम्पुल एक तो यह लक्ष्मी-नारायण हैं और फिर इन्हों की राजधानी भी देखना चाहते हो तो वह भी देलवाड़ा मन्दिर में चलकर देखो।

मॉडल ही दिखाया जायेगा ना, वह चलकर आबू में देखो।

मन्दिर बनाने वाले खुद नहीं जानते हैं, जिन्होंने ही बैठ यह यादगार बनाया है, जिसका देलवाड़ा मन्दिर नाम रख दिया है। आदि देव को भी बिठाया है, ऊपर में स्वर्ग भी दिखाया है।

जैसे वह जड़ है वैसे तुम हो चैतन्य।

इनको चैतन्य देलवाड़ा नाम रख सकते हैं। परन्तु पता नहीं कितनी भीड़ हो जाए।

मनुष्य ही मूँझ जाएं यह फिर क्या है।

समझाने में बड़ी मेहनत लगती है।

बहुत बच्चे भी नहीं समझते हैं।

भल दर पर, पास में बैठे हैं - समझते कुछ भी नहीं।

प्रदर्शनी में अनेक प्रकार के मनुष्य जाते हैं, ढेर मठ-पंथ हैं, वैष्णव धर्म वाले भी हैं।

वैष्णव धर्म का अर्थ ही नहीं समझते हैं।

कृष्ण की बादशाही कहाँ है, जानते ही नहीं।

कृष्ण की राजाई को भी स्वर्ग, बैकुण्ठ कहा जाता है।

बाबा ने कहा था जहाँ बुलावा हो, वहाँ जाकर तुम समझाओ - विश्व में शान्ति कब थी?

यह आबू सबसे ऊंच ते ऊंच तीर्थ है क्योंकि यहाँ बाप विश्व की सद्गति कर रहे हैं, आबू पहाड़ी पर उनका सैम्पुल देखना हो तो चलकर देलवाड़ा मन्दिर देखो।

विश्व में शान्ति कैसे स्थापन की थी - उनका सैम्पुल है।

सुनकर बहुत खुश होंगे।

जैनी लोग भी खुश होंगे।

तुम कहेंगे यह प्रजापिता ब्रह्मा हमारा बाप है आदि देव।

तुम समझाते हो फिर भी समझते नहीं हैं।

कहते हैं ब्रह्माकुमारियां पता नहीं क्या कहती हैं।

तो अब तुम बच्चों को आबू की बहुत ऊंची महिमा करके समझाना चाहिए।

आबू है बड़े ते बड़ा तीर्थ।

बाम्बे में भी समझा सकते हो - आबू पहाड़ बड़े ते बड़ा तीर्थ है क्योंकि परमपिता परमात्मा ने आबू में आकर स्वर्ग की स्थापना की है।

कैसे स्वर्ग की रचना रची है - वह स्वर्ग का और आदि देव का मॉडल सब आबू में है, जिसको कोई भी मनुष्य समझते नहीं।

हम अब जानते हैं, तुम नहीं जानते हो इसलिए हम तुमको समझाते हैं।

पहले तो तुम पूछो कि विश्व में शान्ति किस प्रकार चाहते हो, कभी देखा है?

विश्व में शान्ति तो इनके (लक्ष्मी-नारायण के) राज्य में थी।

एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, इनकी डिनायस्टी का राज्य था।

चलो तो इन्हों की राजधानी का मॉडल आबू में तुमको दिखायें।

यह तो है ही पुरानी पतित दुनिया।

नई दुनिया तो नहीं कहेंगे ना।

नई दुनिया का मॉडल तो यहाँ है, नई दुनिया अब स्थापन हो रही है।

तुम जानते हो तब बतलाते हो।

सभी नहीं जानते हैं, न बतलाते हैं, न समझ में ही आता है।

बात है बहुत सहज।

ऊपर में स्वर्ग की राजधानी खड़ी है, नीचे आदि देव बैठा है जिसको एडम भी कहते हैं।

वह है ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर।

ऐसी तुम महिमा सुनायेंगे तो सुनकर खुश होंगे।

है भी बरोबर एक्यूरेट, कहो तुम कृष्ण की महिमा करते हो परन्तु तुम जानते तो कुछ नहीं हो।

कृष्ण तो बैकुण्ठ का महाराजा, विश्व का मालिक था।

उसका तुम मॉडल देखना चाहते हो तो चलो आबू में, तुमको बैकुण्ठ का मॉडल दिखलायेंगे।

कैसे पुरूषोत्तम संगमयुग पर राजयोग सीखते हैं, जिससे फिर विश्व के मालिक बने हैं, वह भी मॉडल दिखावें।

संगमयुग की तपस्या भी दिखायें।

प्रैक्टिकल जो हुआ था उनका यादगार दिखायें।

शिवबाबा जिसने लक्ष्मी-नारायण का राज्य स्थापन किया, उनका भी चित्र है, अम्बा का भी मन्दिर है।

अम्बा को कोई 10-20 भुजायें नहीं हैं।

भुजायें तो दो ही होती हैं।

तुम आओ तो तुमको दिखायें।

बैकुण्ठ भी आबू में दिखायें।

आबू में ही बाप ने आकर सारे विश्व को हेविन बनाया है। सद्गति दी है।

आबू सबसे बड़ा तीर्थ है, सब धर्म वालों की सद्गति करने वाला एक ही बाप है, उनका यादगार चलो तो आपको आबू में दिखायें।

आबू की तो तुम बहुत महिमा कर सकते हो।

तुमको सब यादगार दिखायें।

क्रिश्चियन लोग भी जानना चाहते हैं - प्राचीन भारत का राजयोग किसने सिखाया, क्या चीज़ थी?

बोलो, चलो आबू में दिखायें।

बैकुण्ठ भी पूरा एक्यूरेट बनाया है ऊपर छत में।

तुम ऐसा नहीं बना सकते हो।

तो यह अच्छी रीति बताना है।

टूरिस्ट धक्का खाते हैं, वह भी आकर समझें।

तुम्हारा आबू का नाम बाला हो गया तो बहुत आयेंगे।

आबू बहुत मशहूर हो जायेगा।

जब कोई पूछते हैं कि विश्व में शान्ति कैसे हो?

सम्मेलन आदि में निमंत्रण देते हैं तो पूछना चाहिए - विश्व में शान्ति कब थी, वह जानते हो?

विश्व में शान्ति कैसे थी - चलो हम समझायें, मॉडल्स आदि सब दिखायें।

ऐसा मॉडल और कहाँ भी नहीं है।

आबू ही सबसे बड़ा ऊंच ते ऊंच तीर्थ है, जिसमें बाप ने आकरके विश्व में शान्ति, सर्व की सद्गति की है।

यह बातें और कोई नहीं जानते। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं, भल बड़े महारथी, म्युज़ियम आदि सम्भालने वाले हैं, परन्तु ठीक रीति किसको समझाते हैं वा नहीं, बाबा रीड तो करते हैं ना।

बाबा सब कुछ समझते हैं, जो भी जहाँ भी हैं, उनको समझते हैं।

कौन-कौन पुरूषार्थ करते हैं, क्या पद पायेंगे?

इस समय अगर मर पड़े तो कुछ भी पद पा नहीं सकेंगे।

याद के यात्रा की मेहनत वह समझ नहीं सकते।

बाप रोज़-रोज़ नई बातें समझाते हैं, ऐसे-ऐसे समझाकर ले आओ।

यहाँ तो यादगार कायम है।

बाप कहते हैं मैं भी यहाँ हूँ, आदि देव भी यहाँ है, बैकुण्ठ भी यहाँ है।

आबू की बहुत भारी महिमा हो जायेगी।

आबू पता नहीं क्या हो जायेगा।

जैसे देखो कुरूक्षेत्र को अच्छा बनाने के लिए करोड़ों रूपया उड़ाते रहते हैं।

कितने ढेर मनुष्य जाकर वहाँ इक्ट्ठे होते हैं, इतनी बदबू गन्दगी होती है, बात मत पूछो।

कितनी भीड़ होती है।

समाचार आया था कि भजन मण्डली की एक बस नदी में डूब गई। यह सब दु:ख है ना।

अकाले मृत्यु होती रहती है।

वहाँ तो ऐसे कुछ होता ही नहीं, यह सब बातें तुम समझा सकते हो।

बातचीत करने वाला बड़ा सेन्सीबुल चाहिए।

बाप ज्ञान का पम्प कर रहे हैं, बुद्धि में बिठा रहे हैं।

दुनिया थोड़ेही इन बातों को समझती है।

वह समझते हैं नई दुनिया का सैर करने जाते हैं।

बाप कहते हैं यह दुनिया अब पुरानी गई कि गई।

वह तो कहते हैं 40 हज़ार वर्ष पड़े हैं।

तुम तो बतलाते हो कि सारा कल्प ही 5 हज़ार वर्ष का है।

पुरानी दुनिया का तो मौत सामने खड़ा है।

इसको कहा जाता है घोर अन्धियारा।

कुम्भकरण की नींद में सोये पड़े हैं।

कुम्भकरण आधाकल्प सोता था, आधाकल्प जागता था।

तुम कुम्भकरण थे।

यह खेल बड़ा वन्डरफुल है।

इन बातों को सब थोड़ेही समझ सकते हैं।

कई तो ऐसे ही भावना में आ जाते हैं।

सुनते हैं यह सब जा रहे हैं तो चल पड़ते हैं।

उनको बताते हैं हम शिवबाबा पास जाते हैं, शिवबाबा स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं।

उस बेहद के बाप को याद करने से बेहद का वर्सा मिलता है, बस।

तो वह भी कह देते शिवबाबा हम आपके बच्चे हैं, आप से वर्सा जरूर लेंगे। बस, बेड़ा पार है।

भावना का भाड़ा देखो कितना मिलता है।

भक्ति मार्ग में तो है अल्पकाल का सुख।

यहाँ तुम बच्चे जानते हो बेहद के बाप से बेहद का वर्सा मिलता है।

वह तो है भावना का, अल्पकाल के सुख का भाड़ा।

यहाँ तुमको मिला है 21 जन्मों के लिए भावना का भाड़ा।

बाकी साक्षात्कार आदि में कुछ है नहीं।

कोई कहते हैं साक्षात्कार हो, तब बाबा समझ जाते हैं कुछ भी समझा नहीं है।

साक्षात्कार करना है तो जाकर नौधा भक्ति करो।

उससे कुछ मिलता नहीं है।

करके दूसरे जन्म में कुछ अच्छा बन पड़ेंगे।

अच्छा भक्त होगा तो अच्छा जन्म मिलेगा।

यह तो बात ही न्यारी है। यह पुरानी दुनिया बदल रही है।

बाप है ही दुनिया बदलने वाला।

यादगार खड़ा है ना।

बहुत पुराना मन्दिर है।

कुछ टूटता करता है तो फिर मरम्मत कराते रहते हैं।

परन्तु वह शोभा तो कम हो ही जाती है।

यह तो सब विनाशी चीज़ें हैं।

तो बाप समझाते हैं - बच्चे, एक तो अपने कल्याण के लिए अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हों।

पढ़ाई की बात है।

बाकी यह जो मथुरा में मधुबन, कुन्ज गली आदि बैठ बनाया है, वह कुछ भी है नहीं।

न कोई गोप-गोपियों का खेल है।

यह समझाने में बड़ी मेहनत करनी पड़ती है।

एक-एक प्वाइंट अच्छी रीति बैठ समझाओ।

कॉन्फ्रेन्स आदि में भी चाहिए योग वाला।

तलवार में जौहर नहीं होगा, किसको तीर लगेगा नहीं।

तब बाप भी कहते हैं अभी देरी है।

अभी मान लें कि परमात्मा सर्वव्यापी नहीं है तो भीड़ लग जाए।

परन्तु अभी टाइम नहीं है।

एक बात मुख्य समझ जाएं कि राजयोग बाप ने सिखाया था, जो इस समय सिखला रहे हैं।

इसके बदले नाम उसका डाल दिया है जो कि अभी सांवरा है।

कितनी बड़ी भूल है।

इससे ही तुम्हारा बेड़ा डूब गया है।

अब बाप समझाते हैं - यह पढ़ाई सोर्स ऑफ इनकम है, स्वयं बाप मनुष्य को देवता बनाने के लिए पढ़ाने आते हैं, इसमें पवित्र भी जरूर बनना है, दैवीगुण भी धारण करने हैं।

नम्बरवार तो होते ही हैं।

जो भी सेन्टर्स हैं सब नम्बरवार हैं।

यह सारी राजधानी स्थापन हो रही है।

मासी का घर थोड़ेही है।

बोलो, स्वर्ग कहा जाता है सतयुग को।

परन्तु वहाँ का राज्य कैसे चलता है, देवताओं का झुण्ड देखना हो तो चलो आबू।

और कोई ऐसी जगह है नहीं जहाँ ऐसे छत में राजाई दिखाई हो।

भल अजमेर में स्वर्ग का मॉडल है परन्तु वह और बात है।

यहाँ तो आदि देव भी है ना।

सतयुग किसने और कैसे स्थापन किया, यह तो एक्यूरेट यादगार है।

अभी हम चैतन्य देलवाड़ा नाम लिख नहीं सकते हैं।

जब मनुष्य खुद समझ जायेंगे तो आपेही कहेंगे कि तुम लिखो।

अभी नहीं।

अभी तो देखो थोड़ी बात में ही क्या कर देते हैं। क्रोधी बहुत होते हैं, देह-अभिमान है ना।

देही-अभिमानी तो कोई हो न सके सिवाए तुम बच्चों के।

पुरूषार्थ करना है।

ऐसे नहीं कि जो नसीब में होगा।

पुरूषार्थी ऐसे नहीं कहेंगे।

वह तो पुरूषार्थ करते रहेंगे फिर जब फेल होते हैं तब कहते हैं तकदीर में जो था। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) देही-अभिमानी बनने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करना है।

ऐसे कभी नहीं सोचना है कि जो नसीब में होगा। सेन्सीबुल बनना है।

2) ज्ञान सुनकर उसे स्वरूप में लाना है, याद का जौहर धारण कर फिर सेवा करनी है।

सबको आबू महान् तीर्थ की महिमा सुनानी है।

वरदान:-

बाप के साथ रहते-रहते

उनके समान बनने वाले

सर्व आकर्षणों के प्रभाव से मुक्त भव


जहाँ बाप की याद है अर्थात् बाप का साथ है वहाँ बॉडी-कॉनसेस की उत्पत्ति हो नहीं सकती।

बाप के साथ वा पास रहने वाले दुनिया के विकारी वायब्रेशन अथवा आकर्षण के प्रभाव से दूर हो जाते हैं।

ऐसे साथ रहने वाले साथ रहते-रहते बाप समान बन जाते हैं।

जैसे बाप ऊंचे ते ऊंचा है ऐसे बच्चों की स्थिति भी ऊंची बन जाती है।

नीचे की कोई भी बातें उन पर अपना प्रभाव डाल नहीं सकती।


स्लोगन:-

मन और बुद्धि कन्ट्रोल में हो तो

अशरीरी बनना सहज हो जायेगा।