रूहानी बाप बैठ समझाते हैं जैसे आसमान में सितारे हैं वैसे तुम बच्चों के लिए भी गाया जाता है - यह धरती के सितारे हैं।
उनको भी नक्षत्र देवता कहा जाता है।
अभी वह कोई देवता तो हैं नहीं।
तो तुम उनसे महान बलवान हो क्योंकि तुम सितारे सारे विश्व को रोशन करते हो।
तुम ही देवता बनने वाले हो।
तुम्हारा ही उत्थान और पतन होता है।
वह तो करके माण्डवे के लिए रोशनी देते हैं, उनको कोई देवता नहीं कहेंगे।
तुम देवता बन रहे हो।
तुम सारे विश्व को रोशन करने वाले हो।
अभी सारे विश्व पर घोर अन्धियारा है।
पतित बन पड़े हैं।
अभी बाप तुम मीठे-मीठे बच्चों को देवता बनाने आते हैं।
मनुष्य लोग तो सबको देवता समझ लेते हैं।
सूर्य को भी देवता कह देते हैं।
कहाँ-कहाँ सूर्य का झण्डा भी लगाते हैं।
अपने को सूर्यवंशी भी कहलाते हैं।
वास्तव में तुम सूर्यवंशी हो ना।
तो बाप बैठ तुम बच्चों को समझाते हैं। भारत में ही घोर अन्धियारा हुआ है।
अब भारत में ही सोझरा चाहिए।
बाप तुम बच्चों को ज्ञान अंजन दे रहे हैं।
तुम अज्ञान नींद में सोये पड़े थे, बाप आकर फिर से जगाते हैं।
कहते हैं ड्रामा के प्लैन अनुसार कल्प-कल्प के पुरूषोत्तम संगमयुगे मैं फिर से आता हूँ।
यह पुरूषोत्तम संगमयुग कोई भी शास्त्र में है नहीं।
इस युग को अभी तुम बच्चे ही जानते हो, जबकि तुम सितारे फिर देवता बनते हो।
तुमको ही कहेंगे नक्षत्र देवताए नम:।
अभी तुम पुजारी से पूज्य बनते हो।
वहाँ तुम पूज्य बन जाते हो, यह भी समझने का है ना।
इसको रूहानी पढ़ाई कहा जाता है, इसमें कभी किसकी लड़ाई नहीं होती।
टीचर साधारण रीति पढ़ाते हैं और बच्चे भी साधारण रीति पढ़ते हैं।
इसमें कभी कोई लड़ाई की बात ही नहीं।
यह ऐसे थोड़ेही कहते हैं कि मैं भगवान हूँ।
तुम बच्चे भी जानते हो पढ़ाने वाला इनकारपोरियल शिवबाबा है।
उनको अपना शरीर नहीं है।
कहते हैं मैं इस रथ का लोन लेता हूँ।
भागीरथ भी क्यों कहते हैं? क्योंकि बहुत-बहुत भाग्यशाली रथ है।
यही फिर विश्व का मालिक बनते हैं तो भागीरथ ठहरा ना।
तो सबका अर्थ समझना चाहिए ना।
यह है सबसे बड़ी पढ़ाई।
दुनिया में तो झूठ ही झूठ है ना।
कहावत भी है ना - सच की नईया डोले......आजकल तो अनेक प्रकार के भगवान निकल पड़े हैं।
अपने को तो छोड़ो परन्तु ठिक्कर भित्तर को भी भगवान कह देते हैं।
भगवान को कितना भटका दिया है।
बाप बैठ समझाते हैं, जैसे लौकिक बाप भी बच्चों को समझाते हैं, परन्तु वह ऐसे नहीं होते जो बाप भी हो, टीचर भी हो और वही गुरू भी हो।
पहले बाप पास जन्म लेते हैं, फिर थोड़े बड़े हो तो टीचर चाहिए पढ़ाने के लिए।
फिर 60 वर्ष के बाद गुरू चाहिए।
यह तो एक ही बाप, टीचर, सतगुरू है।
कहते हैं मैं तुम आत्माओं का बाप हूँ।
पढ़ती भी आत्मा है।
आत्मा को आत्मा कहा जाता है।
बाकी शरीरों के अनेक नाम हैं।
ख्याल करो - यह है बेहद का नाटक।
बनी बनाई बन रही...... कोई नई बात नहीं।
यह अनादि बना बनाया ड्रामा है जो फिरता रहता है।
पार्टधारी आत्मायें हैं।
आत्मा कहाँ रहती है?
कहेंगे हम अपने घर परमधाम में रहने वाले हैं फिर हम यहाँ आते हैं बेहद का पार्ट बजाने।
बाप तो सदैव वहाँ ही रहते हैं।
वह पुनर्जन्म में नहीं आते हैं।
अभी तुमको रचता बाप, अपना और रचना का सार सुनाते हैं।
तुमको कहते हैं स्वदर्शन चक्रधारी बच्चे।
इसका अर्थ भी कोई और समझ न सके क्योंकि वह तो समझते हैं स्वदर्शन चक्रधारी विष्णु हैं, यह फिर मनुष्यों को क्यों कहते।
यह तुम जानते हो।
शूद्र थे तो भी मनुष्य ही थे, अभी ब्राह्मण बने हैं तो भी मनुष्य ही हैं फिर देवता बनेंगे तो भी मनुष्य ही रहेंगे, परन्तु कैरेक्टर बदलते हैं।
रावण आता है तो तुम्हारे कैरेक्टर कितने बिगड़ जाते हैं।
सतयुग में यह विकार होते ही नहीं।
अभी बाप तुम बच्चों को अमरकथा सुना रहे हैं।
भक्ति मार्ग में तुमने कितनी कथायें सुनी होंगी।
कहते हैं अमरनाथ ने पार्वती को कथा सुनाई।
अब उनको तो शंकर सुनायेंगे ना।
शिव कैसे सुनायेंगे।
कितने ढेर मनुष्य जाते हैं सुनने के लिए।
यह भक्ति मार्ग की बातें बाप बैठ समझाते हैं।
बाप ऐसे नहीं कहते - भक्ति कोई खराब है।
नहीं, यह तो ड्रामा जो अनादि है, वह समझाया जाता है।
अब बाप कहते हैं एक तो अपने को आत्मा समझो।
मूल बात ही यह है।
भगवानुवाच - मनमनाभव।
इसका अर्थ क्या है?
यह बाप बैठ मुख से सुनाते हैं तो यह गऊमुख है।
यह भी समझाया है त्वमेव माताश्च पिता...... उनको ही कहते हैं।
तो इस माता द्वारा तुम सबको एडाप्ट किया है।
शिवबाबा कहते हैं इस मुख द्वारा तुम बच्चों को ज्ञान दूध पिलाता हूँ तो तुम्हारे जो पाप हैं वह सब भस्म होकर तुम्हारी आत्मा कंचन बनती है।
तो काया भी कंचन मिलती है।
आत्मायें बिल्कुल प्योर कंचन बन जाती हैं फिर आहिस्ते-आहिस्ते सीढ़ी उतरते हैं।
अभी तुम समझ गये हो हम आत्मायें भी कंचन थी, शरीर भी कंचन था फिर ड्रामा अनुसार हम 84 के चक्र में आये हैं।
अभी कंचन नहीं है।
अभी तो 9 कैरेट कहेंगे, बाकी थोड़ा परसेन्ट जाकर रहे हैं।
एकदम प्राय:लोप नहीं कहेंगे।
कुछ न कुछ शान्ति रहती है।
बाप ने यह निशानी भी बताई है।
लक्ष्मी-नारायण का चित्र है नम्बरवन।
अभी तुम्हारी बुद्धि में सारा चक्र आ गया है।
बाप का परिचय भी आ गया है। भल अब तुम्हारी आत्मा पूरी कंचन नहीं बनी है परन्तु बाप का परिचय तो बुद्धि में है ना।
कंचन होने की युक्ति बताते हैं।
आत्मा में जो खाद पड़ी है वह निकले कैसे?
उसके लिए याद की यात्रा है।
इसको कहा जाता है युद्ध का मैदान।
तुम हरेक इन्डिपेन्डेन्ट युद्ध के मैदान में सिपाही हो।
अब हरेक जितना चाहे उतना पुरूषार्थ करे।
पुरूषार्थ करना तो स्टूडेन्ट का काम है।
कहाँ भी जाओ, एक-दो को सावधान करते रहो - मनमनाभव।
शिवबाबा याद है?
एक-दो को यही इशारा देना है।
बाप की पढ़ाई इशारा है तब तो बाप कहते हैं एक सेकण्ड में काया कंचन हो जाती है।
विश्व का मालिक बना देता हूँ।
बाप के बच्चे बने तो विश्व के मालिक बन गये।
फिर विश्व में है बादशाही।
उनमें ऊंच पद पाना - यह है पुरूषार्थ करना।
बाकी सेकण्ड में जीवनमुक्ति।
राइट तो है ना।
पुरूषार्थ करना हरेक के ऊपर है।
तुम बाप को याद करते रहो तो आत्मा एकदम पवित्र हो जायेगी।
सतोप्रधान बन सतोप्रधान दुनिया के मालिक बन जायेंगे।
कितना बार तुम तमोप्रधान से फिर सतोप्रधान बने हो!
यह चक्र फिरता रहता है।
इसका कब अन्त नहीं आता।
बाप कितना अच्छी रीति बैठ समझाते हैं।
कहते हैं मैं कल्प-कल्प आता हूँ।
तुम बच्चे मुझे छी-छी दुनिया में निमंत्रण देते हो।
क्या निमंत्रण देते हो?
कहते हो हम जो पतित बन गये हैं, आप आकर पावन बनाओ।
वाह तुम्हारा निमंत्रण!
कहते हो हमको शान्तिधाम-सुखधाम में ले चलो तो तुम्हारा ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट हूँ।
यह भी ड्रामा का खेल है।
तुम समझते हो - हम कल्प-कल्प वही पढ़ते हैं, पार्ट बजाते हैं।
आत्मा ही पार्ट बजाती है।
यहाँ बैठे भी बाप आत्माओं को देखते हैं।
सितारों को देखते हैं।
कितनी छोटी आत्मा है।
जैसे सितारों की झिलमिल रहती है।
कोई सितारा बहुत तीखा होता है, कोई हल्का।
कोई चन्द्रमा के नज़दीक होते हैं।
तुम भी योगबल से अच्छी रीति पवित्र बनते हो तो चमकते हो।
बाबा भी कहते हैं बच्चों में जो बहुत अच्छा नक्षत्र है, उनको फूल दो।
बच्चे भी एक-दो को जानते तो हैं ना।
बरोबर कोई बहुत तीखे होते हैं, कोई बहुत ढीले होते हैं।
उन सितारों को देवता नहीं कह सकते।
तुम भी हो मनुष्य परन्तु तुम्हारी आत्मा को बाप पवित्र बनाए विश्व का मालिक बनाते हैं।
कितनी ताकत बाप वर्से में देते हैं।
ऑलमाइटी बाप है ना।
बाप कहते हैं मैं तुम बच्चों को इतनी माइट देता हूँ।
गाते भी हैं ना - शिवबाबा आप तो हमको बैठकर पढ़ाई से मनुष्य से देवता बनाते हो।
वाह! ऐसा तो कोई नहीं बनाते।
पढ़ाई सोर्स ऑफ इनकम है ना।
सारा आसमान, धरती आदि सब हमारे हो जाते हैं।
कोई छीन न सके।
उसको कहा जाता है अडोल राज्य।
कोई भी खण्डन कर न सके।
कोई जला न सके।
तो ऐसे बाप की श्रीमत पर चलना चाहिए ना।
हरेक को अपना पुरूषार्थ करना है।
बच्चे म्युज़ियम आदि बनाते हैं - इन चित्रों आदि द्वारा हमजिन्स को समझावें।
बाप डायरेक्शन देते रहते हैं - जो चित्र चाहिए भल बनाओ।
बुद्धि तो सबकी काम करती है।
मनुष्यों के कल्याण लिए ही यह बनाये जाते हैं।
तुम जानते हो सेन्टर में कभी कोई आते हैं, अब ऐसी क्या युक्ति रचें जो आपेही लोग आयें मिठाई लेने।
किसकी अच्छी मिठाई होती है तो एडवरटाइज़ हो जाती है।
सब एक-दो को कहेंगे फलानी दुकान पर जाओ।
यह तो बड़ी अच्छे ते अच्छी नम्बरवन मिठाई है।
ऐसी मिठाई कोई दे न सके।
एक देखकर जाते हैं तो दूसरों को भी सुनाते हैं।
ख्याल तो चलता है सारा भारत कैसे गोल्डन एज में आ जाये, उसके लिए कितना समझाते हैं परन्तु पत्थरबुद्धि हैं, मेहनत तो लगेगी ना।
शिकार करना भी सीखना पड़ता है ना।
पहले-पहले छोटा शिकार सीखा जाता है।
बड़े शिकार के लिए तो ताकत चाहिए ना।
कितने बड़े-बड़े विद्वान-पण्डित हैं।
वेद-शास्त्र आदि पढ़े हुए हैं।
अपने को कितनी बड़ी अथॉरिटी समझते हैं।
बनारस में कितने उन्हों को बड़े-बड़े टाइटिल मिलते हैं।
तब बाबा ने समझाया था पहले-पहले तो बनारस में सेवा का घेराव डालो।
बड़ों का आवाज़ निकले तब कोई सुने।
छोटे की बात तो कोई सुनते नहीं।
शेरों को समझाना है जो अपने को शास्त्रों की अथॉरिटी समझते हैं।
कितने बड़े-बड़े टाइटिल देते हैं।
शिवबाबा के भी इतने टाइटिल नहीं हैं।
भक्ति मार्ग का राज्य है ना फिर होता है ज्ञान मार्ग का राज्य।
ज्ञान मार्ग में भक्ति होती नहीं।
भक्ति में फिर ज्ञान बिल्कुल होता नहीं।
तो यह बाप समझाते हैं, बाप देखते भी ऐसे हैं, समझते हैं यह सितारे बैठे हैं।
देह का भान छोड़ देना है।
जैसे ऊपर में सितारों की झिलमिल लगी हुई है वैसे यहाँ भी झिलमिल लगी हुई है।
कोई-कोई बहुत तीखी रोशनी वाले बन गये हैं।
यह हैं धरती के सितारे जिसको ही देवता कहा जाता है।
यह कितना बड़ा बेहद का माण्डवा है।
बाप समझाते हैं वह है हद की रात और दिन।
यह है फिर आधाकल्प की रात, आधा-कल्प का दिन, बेहद का।
दिन में सुख ही सुख है। कहाँ भी धक्के खाने की दरकार नहीं।
ज्ञान में है सुख, भक्ति में है दु:ख। सतयुग में दु:ख का नाम नहीं।
वहाँ काल होता नहीं।
तुम काल पर जीत पाते हो।
मृत्यु का नाम नहीं होता।
वह है अमरलोक।
तुम जानते हो बाप हमको अमरकथा सुना रहे हैं अमरलोक के लिए।
अब तुम मीठे-मीठे बच्चों को ऊपर से लेकर सारा चक्र बुद्धि में है।
जानते हो हम आत्माओं का घर है ब्रह्म लोक।
वहाँ से यहाँ आते हैं नम्बरवार पार्ट बजाने।
ढेर आत्मायें हैं, एक-एक का थोड़ेही बैठ बतायेंगे।
नटशेल में बताते हैं। कितनी टाल-टालियां हैं।
निकलते-निकलते झाड़ वृद्धि को पा लेता है।
बहुत हैं जिनको अपने धर्म का भी पता नहीं है।
बाप आकर समझाते हैं तुम असल देवी-देवता धर्म के हो परन्तु अब धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बन गये हो।
अब तुम बच्चों की बुद्धि में है कि हम असल शान्तिधाम के रहने वाले हैं फिर आते हैं पार्ट बजाने।
इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, इनकी डिनायस्टी थी।
फिर अभी संगमयुग पर खड़े हैं।
बाप ने बताया है तुम सूर्यवंशी थे फिर चन्द्रवंशी बने।
बाकी बीच में तो हैं बाइप्लाट्स। यह खेल है बेहद का।
यह कितना छोटा झाड़ है। ब्राह्मणों का कुल है।
फिर कितना बड़ा हो जायेगा, सबको देख मिल भी नहीं सकेंगे।
जहाँ-तहाँ घेराव डालते जाते हैं।
बाप कहते हैं देहली को, बनारस को घेराव डालो।
फिर कहते हैं सारी दुनिया को तुम घेराव डालने वाले हो।
तुम योगबल से सारी दुनिया पर एक राज्य की स्थापना करते हो, कितनी खुशी होती है।
कोई कहाँ, कोई कहाँ जाते रहते हैं।
अभी तुम्हारी कोई बात नहीं सुनते।
जब बड़े-बड़े आयेंगे, अखबारों में पड़ेगा तब समझेंगे।
अभी छोटा-छोटा शिकार होता है।
बड़े-बड़े साहूकार लोग तो समझते हैं स्वर्ग हमारे लिए यहाँ ही है।
गरीब ही आकर वर्सा लेते हैं।
कहते हैं - बाबा मेरे तो आप दूसरा न कोई परन्तु जब मोह ममत्व सारी दुनिया से भी टूटे ना।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।