मीठे-मीठे रूहानी बच्चे समझते हैं बेहद के बाप पास बैठे हैं। यह भी जानते हैं बेहद का बाप इस रथ पर ही आते हैं।
जब बापदादा कहते हैं, यह तो जानते हैं कि शिवबाबा है और वह इस रथ पर बैठा है।
अपना परिचय दे रहे हैं।
बच्चे जानते हैं वह बाबा है, बाबा मत देते हैं कि रूहानी बाप को याद करो तो पाप भस्म हो जाएं, जिसको योग अग्नि कहते हैं।
अभी तुम बाप को तो पहचानते हो।
तो ऐसे कभी थोड़ेही कहेंगे कि बाप का परिचय दूसरे को कैसे दूँ।
तुमको भी बेहद के बाप का परिचय है तो जरूर दे भी सकते हो।
परिचय कैसे दें, यह तो प्रश्न ही नहीं उठ सकता है।
जैसे तुमने बाप को जाना है, वैसे तुम कह सकते हो कि हम आत्माओं का बाप तो एक ही है, इसमें मूँझने की दरकार ही नहीं रहती।
कोई-कोई कहते हैं बाबा आपका परिचय देना बड़ा मुश्किल होता है।
अरे, बाप का परिचय देना - इसमें तो मुश्किलात की कोई बात ही नहीं।
जानवर भी इशारे से समझ जाते हैं कि मैं फलाने का बच्चा हूँ।
तुम भी जानते हो कि हम आत्माओं का वह बाप है।
हम आत्मा अभी इस शरीर में प्रवेश हैं।
जैसे बाबा ने समझाया है कि आत्मा अकालमूर्त्त है।
ऐसे नहीं उसका कोई रूप नहीं है।
बच्चों ने पहचाना है - बिल्कुल सिम्पुल बात है।
आत्माओं का एक ही निराकार बाप है।
हम सब आत्मायें भाई-भाई हैं। बाप की सन्तान हैं।
बाप से हमको वर्सा मिलता है।
यह भी जानते हैं ऐसा कोई बच्चा इस दुनिया में नहीं होगा जो बाप को और उनकी रचना को न जानता हो।
बाप के पास क्या प्रापर्टी है, वह सब जानते हैं।
यह है ही आत्माओं और परमात्मा का मेला।
यह कल्याणकारी मेला है।
बाप है ही कल्याणकारी।
बहुत कल्याण करते हैं।
बाप को पहचानने से समझते हो - बेहद के बाप से हमको बेहद का वर्सा मिलता है।
वह जो सन्यासी गुरू होते हैं, उनके शिष्यों को गुरू के वर्से का मालूम नहीं रहता है।
गुरू के पास क्या मिलकियत है, यह कोई शिष्य मुश्किल जानते होंगे।
तुम्हारी बुद्धि में तो है - वह शिवबाबा है, मिलकियत भी बाबा के पास होती है।
बच्चे जानते हैं बेहद के बाप के पास मिलकियत है - विश्व की बादशाही स्वर्ग।
यह बातें सिवाए तुम बच्चों के और कोई की बुद्धि में नहीं हैं।
लौकिक बाप के पास क्या मिलकियत है, वह उनके बच्चे ही जानते हैं।
अभी तुम कहेंगे हम जीते जी पारलौकिक बाप के बने हैं।
उनसे क्या मिलता है, वह भी जानते हैं।
हम पहले शूद्र कुल में थे, अभी ब्राह्मण कुल में आ गये हैं।
यह नॉलेज है कि बाबा इस ब्रह्मा तन में आते हैं, इनको प्रजापिता ब्रह्मा कहा जाता है।
वह (शिव) तो है सब आत्माओं का फादर।
इनको (प्रजापिता ब्रह्मा को) ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर कहते हैं।
अब हम इनके बच्चे बने हैं।
शिवबाबा के लिए तो कहते हैं वह हाज़िराहजूर है।
जानी-जाननहार है।
यह भी अब तुम समझते हो कि वह कैसे रचना के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज देते हैं।
वह सब आत्माओं का बाप है, उनको नाम-रूप से न्यारा कहना तो झूठ है।
उनका नाम-रूप भी याद है।
रात्रि भी मनाते हैं, जयन्ती तो मनुष्यों की होती है।
शिवबाबा की रात्रि कहेंगे।
बच्चे समझते हैं रात्रि किसको कहा जाता है।
रात में घोर अन्धियारा हो जाता है।
अज्ञान अन्धियारा है ना।
ज्ञान सूर्य प्रगटा अज्ञान अन्धेर विनाश - अभी भी गाते हैं परन्तु अर्थ कुछ नहीं समझते।
सूर्य कौन है, कब प्रगटा, कुछ नहीं समझते।
बाप समझाते हैं ज्ञान सूर्य को ज्ञान सागर भी कहा जाता है।
बेहद का बाप ज्ञान का सागर है।
सन्यासी, गुरू, गोसाई आदि अपने को शास्त्रों की अथॉरिटी समझते हैं, वह सब है भक्ति।
बहुत वेद-शास्त्र पढ़कर विद्वान होते हैं।
तो बाप रूहानी बच्चों को बैठ समझाते हैं, इनको कहा जाता है आत्मा और परमात्मा का मेला।
तुम समझते हो बाप इस रथ में आये हुए हैं।
इस मिलन को ही मेला कहते हैं।
जब हम घर जाते हैं तो वह भी मेला है।
यहाँ बाप खुद बैठ पढ़ाते हैं।
वह फादर भी है, टीचर भी है।
यह एक ही प्वाइंट अच्छी रीति धारण करो, भूलो मत।
अब बाप तो है निराकार, उनको अपना शरीर नहीं है तो जरूर लेना पड़े।
तो खुद कहते हैं मैं प्रकृति का आधार लेता हूँ।
नहीं तो बोलूँ कैसे?
शरीर बिगर तो बोलना होता नहीं।
तो बाप इस तन में आते हैं, इनका नाम रखा है ब्रह्मा।
हम भी शूद्र से ब्राह्मण बनें तो नाम बदलना ही चाहिए।
नाम तो तुम्हारे रखे थे।
परन्तु उसमें भी अभी देखो तो कई हैं ही नहीं इसलिए ब्राह्मणों की माला नहीं होती।
भक्त माला और रूद्र माला गाई हुई है।
ब्राह्मणों की माला नहीं होती।
विष्णु की माला तो चली आई है।
पहले नम्बर में माला का दाना कौन है?
कहेंगे युगल इसलिए सूक्ष्मवतन में भी युगल दिखाया है।
विष्णु भी 4 भुजा वाला दिखाया है।
दो भुजा लक्ष्मी की, दो भुजा नारायण की।
बाप समझाते हैं मैं धोबी हूँ।
मैं योगबल से तुम आत्माओं को शुद्ध बनाता हूँ फिर भी तुम विकार में जाकर अपना श्रृंगार ही गँवा देते हो।
बाप आते हैं सबको शुद्ध बनाने।
आत्माओं को आकर सिखलाते हैं तो सिखलाने वाला जरूर यहाँ चाहिए ना।
पुकारते भी हैं आकर पावन बनाओ।
कपड़ा भी मैला होता है तो उनको धोकर शुद्ध बनाया जाता है।
तुम भी पुकारते हो - हे पतित पावन बाबा, आकर पावन बनाओ।
आत्मा पावन बनें तो शरीर भी पावन मिले।
तो पहली-पहली मूल बात होती है बाप का परिचय देना।
बाप का परिचय कैसे दें, यह तो प्रश्न ही नहीं पूछ सकते।
तुमको भी बाप ने परिचय दिया है तब तो तुम आये हो ना।
बाप पास आते हो, बाप कहाँ है?
इस रथ में।
यह है अकाल तख्त।
तुम आत्मा भी अकाल मूर्त्त हो।
यह सब तुम्हारे तख्त हैं, जिस पर तुम आत्मायें विराजमान हो।
वह तो अकाल तख्त जड़ हो गया ना।
तुम जानते हो मैं अकाल मूर्त्त अर्थात् निराकार, जिसका साकार रूप नहीं है।
मैं आत्मा अविनाशी हूँ, कब विनाश हो न सके।
एक शरीर छोड़ दूसरा लेता हूँ।
मुझ आत्मा का पार्ट अविनाशी नूँधा हुआ है।
आज से 5 हज़ार वर्ष पहले भी हमारा ऐसे ही पार्ट शुरू हुआ था।
वन-वन संवत से हम यहाँ पार्ट बजाने घर से आते हैं।
यह है ही 5 हज़ार वर्ष का चक्र।
वह तो लाखों वर्ष कह देते हैं इसलिए थोड़े वर्षों का विचार में नहीं आता।
तो बच्चे ऐसा कभी कह नहीं सकते कि हम बाप का परिचय किसको कैसे दें।
ऐसे-ऐसे प्रश्न पूछते हैं तो वन्डर लगता है।
अरे, तुम बाप के बने हो, फिर बाप का परिचय क्यों नहीं दे सकते हो!
हम सब आत्मायें हैं, वह हमारा बाबा है।
सर्व की सद्गति करते हैं।
सद्गति कब करेंगे यह भी तुमको अभी पता पड़ा है।
कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुग पर आकर सर्व की सद्गति करेंगे।
वह तो समझते हैं - अभी 40 हज़ार वर्ष पड़े हैं और पहले से ही कह देते नाम-रूप से न्यारा है।
अब नाम-रूप से न्यारी कोई चीज़ थोड़ेही होती है।
पत्थर भित्तर का भी नाम है ना।
तो बाप कहते हैं - मीठे-मीठे बच्चों, तुम आये हो बेहद के बाप के पास। बाप भी जानते हैं, कितने ढेर बच्चे हैं।
बच्चों को अभी हद और बेहद से भी पार जाना है।
सब बच्चों को देखते हैं, जानते हैं इन सबको मैं लेने लिए आया हूँ।
सतयुग में तो बहुत थोड़े होंगे।
कितना क्लीयर है इसलिए चित्रों पर समझाया जाता है।
नॉलेज तो बिल्कुल इज़ी है।
बाकी याद की यात्रा में टाइम लगता है।
ऐसे बाप को तो कभी भूलना नहीं चाहिए।
बाप कहते हैं मामेकम् याद करो तो पावन बन जायेंगे।
मैं आता ही हूँ पतित से पावन बनाने।
तुम अकालमूर्त्त आत्मायें सब अपने-अपने तख्त पर विराजमान हो।
बाबा ने भी इस तख्त का लोन लिया है।
इस भाग्यशाली रथ में बाप प्रवेश होते हैं।
कोई कहते हैं परमात्मा का नाम-रूप नहीं है।
यह तो हो ही नहीं सकता।
उनको पुकारते हैं, महिमा गाते हैं, तो ज़रूर कोई चीज़ है ना।
तमोप्रधान होने कारण कुछ भी समझते नहीं।
बाप समझाते हैं - मीठे-मीठे बच्चों, इतनी 84 लाख योनियां तो कोई होती नहीं।
हैं ही 84 जन्म। पुनर्जन्म भी सबका होगा।
ऐसे थोड़ेही ब्रह्म में जाकर लीन होंगे वा मोक्ष को पायेंगे।
यह तो बना-बनाया ड्रामा है।
एक भी कम-जास्ती नहीं हो सकता।
इस अनादि अविनाशी ड्रामा से ही फिर छोटे-छोटे ड्रामा वा नाटक बनाते हैं।
वह हैं विनाशी।
अभी तुम बच्चे बेहद में खड़े हो।
तुम बच्चों को यह नॉलेज मिली हुई है - हमने कैसे 84 जन्म लिए हैं।
अभी बाप ने बताया है, आगे किसको पता नहीं था।
ऋषि-मुनि भी कहते थे - हम नहीं जानते हैं।
बाप आते ही हैं संगमयुग पर, इस पुरानी दुनिया को चेंज करने।
ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया की स्थापना फिर से करते हैं।
वह तो लाखों वर्ष कह देते हैं।
कोई बात याद भी न आ सके। महाप्रलय भी कोई होती नहीं।
बाप राजयोग सिखलाते हैं फिर राजाई तुम पाते हो।
इसमें तो संशय की कोई बात ही नहीं।
तुम बच्चे जानते हो पहले नम्बर में सबसे प्यारा है बाप फिर नेक्स्ट प्यारा है श्रीकृष्ण।
तुम जानते हो श्रीकृष्ण है स्वर्ग का पहला प्रिन्स, नम्बरवन।
वही फिर 84 जन्म लेते हैं।
उसके ही अन्तिम जन्म में मैं प्रवेश करता हूँ।
अब तुमको पतित से पावन बनना है।
पतित-पावन बाप ही है, पानी की नदियां थोड़ेही पावन कर सकती हैं।
यह नदियां तो सतयुग में भी होती हैं।
वहाँ तो पानी बहुत शुद्ध रहता है।
किचड़ा आदि कुछ नहीं रहता।
यहाँ तो कितना किचड़ा पड़ता रहता है।
बाबा का देखा हुआ है, उस समय तो ज्ञान नहीं था।
अभी वन्डर लगता है पानी कैसे पावन बना सकता है।
तो बाप समझाते हैं - मीठे बच्चे, कभी भी मूँझो नहीं कि बाप को याद कैसे करें।
अरे, तुम बाप को याद नहीं कर सकते हो!
वह हैं कुख की सन्तान, तुम हो एडाप्टेड बच्चे।
एडाप्टेड बच्चों को जिस बाप से मिलकियत मिलती है, उनको भूल सकते हैं क्या?
बेहद के बाप से बेहद की मिलकियत मिलती है तो उनको भूलना थोड़ेही चाहिए।
लौकिक बच्चे बाप को भूलते हैं क्या।
परन्तु यहाँ माया का आपोजीशन होता है।
माया की युद्ध चलती है, सारी दुनिया कर्मक्षेत्र है।
आत्मा इस शरीर में प्रवेशकर यहाँ कर्म करती है।
बाप कर्म-अकर्म-विकर्म का राज़ समझाते हैं।
यहाँ रावण राज्य में कर्म विकर्म बन जाते हैं।
वहाँ रावण राज्य ही नहीं तो कर्म अकर्म हो जाते हैं, विकर्म कोई होता ही नहीं।
यह तो बहुत सहज बात है।
यहाँ रावण राज्य में कर्म विकर्म होते हैं इसलिए विकर्मो का दण्ड भोगना पड़ता है।
ऐसे थोड़ेही कहेंगे रावण अनादि है।
नहीं, आधाकल्प है रावण राज्य, आधाकल्प है राम राज्य।
तुम जब देवता थे तो तुम्हारे कर्म अकर्म होते थे।
अब यह है नॉलेज।
बच्चे बने हो तो फिर पढ़ाई भी पढ़नी है।
बस, फिर और कोई धन्धे आदि का ख्याल भी नहीं आना चाहिए।
परन्तु गृहस्थ व्यवहार में रहते धन्धा आदि भी करने वाले हैं तो बाप कहते हैं कमल फूल समान रहो।
ऐसे देवता तुम बनने वाले हो।
वह निशानी विष्णु को दे दी है क्योंकि तुमको शोभेगा नहीं।
उनको शोभता है।
वही विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण बनने वाले हैं।
वह है ही अहिंसा परमो देवी-देवता धर्म।
न कोई विकार की काम कटारी होती, न कोई लड़ाई-झगड़ा आदि होता है।
तुम डबल अहिंसक बनते हो।
सतयुग के मालिक थे। नाम ही है गोल्डन एज।
कंचन दुनिया। आत्मा और काया दोनों कंचन बन जाती हैं।
कंचन काया कौन बनाते हैं? बाप।
अभी तो आइरन एज है ना।
अब तुम कहते हो सतयुग पास हो गया है।
कल सतयुग था ना।
तुम राज्य करते थे।
तुम नॉलेजफुल बनते जाते हो। सब तो एक जैसे नहीं बनेंगे।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।