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10-09-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम जितना समय बाप की याद में रहेंगे

उतना समय कमाई ही कमाई है, याद से ही तुम बाप के समीप आते जायेंगे''

प्रश्नः-

जो बच्चे याद में नहीं रह सकते हैं, उन्हें किस बात में लज्जा आती है?

उत्तर:-

अपना चार्ट रखने में उन्हें लज्जा आती। समझते हैं सच लिखेंगे तो बाबा क्या कहेंगे। लेकिन बच्चों का कल्याण इसमें ही है कि सच्चा-सच्चा चार्ट लिखते रहें। चार्ट लिखने में बहुत फायदे हैं। बाबा कहते - बच्चे, इसमें लज्जा मत करो।

ओम् शान्ति।

रूहानी बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। अब तुम बच्चे 15 मिनट पहले आकर यहाँ बाप की याद में बैठते हो।

अब यहाँ और तो कोई काम है नहीं।

बाप की याद में ही आकर बैठते हो।

भक्ति मार्ग में तो बाप का परिचय है नहीं।

यहाँ बाप का परिचय मिला है और बाप कहते हैं मामेकम् याद करो।

मैं तो सब बच्चों का बाप हूँ।

बाप को याद करने से वर्सा तो ऑटोमेटिकली याद आना चाहिए।

छोटे बच्चे तो नहीं हो ना।

भल लिखते हैं हम 5 मास वा 2 मास के हैं परन्तु तुम्हारी कर्मेन्द्रियां तो बड़ी हैं।

तो रूहानी बाप समझाते हैं, यहाँ बाप और वर्से की याद में बैठना है।

जानते हो हम नर से नारायण बनने के पुरूषार्थ में तत्पर हैं वा स्वर्ग में जाने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हैं।

तो यह बच्चों को नोट करना चाहिए - हमने यहाँ बैठे-बैठे कितना समय याद किया?

लिखने से बाप समझ जायेंगे।

ऐसे नहीं कि बाप को मालूम पड़ता है - हर एक कितना समय याद में रहते हैं?

वह तो हर एक अपने चार्ट से समझ सकते हैं - बाप की याद थी या बुद्धि कहाँ और तरफ चली गई?

यह भी बुद्धि में है अभी बाबा आयेंगे तो यह भी याद ठहरी ना।

कितना समय याद किया, वह चार्ट में सच लिखेंगे।

झूठ लिखने से तो और ही सौगुणा पाप चढ़ेगा और ही नुकसान हो जायेगा इसलिए सच लिखना है - जितना याद करेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे।

और यह भी जानते हो हम नज़दीक आते जाते हैं।

आखरीन जब याद पूरी हो जायेगी तो हम फिर बाबा के पास चले जायेंगे।

फिर कोई तो झट नई दुनिया में आकर पार्ट बजायेंगे, कोई वहाँ ही बैठे रहेंगे।

वहाँ कोई संकल्प तो आयेगा नहीं।

वह है ही मुक्तिधाम, दु:ख-सुख से न्यारे।

सुखधाम में जाने के लिए अब तुम पुरूषार्थ करते हो।

जितना तुम याद करेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे।

याद का चार्ट रखने से ज्ञान की धारणा भी अच्छी होगी।

चार्ट रखने में तो फायदा ही है।

बाबा जानते हैं याद में न रहने कारण लिखने में लज्जा आती है।

बाबा क्या कहेंगे, मुरली में सुना देंगे। बाप कहते हैं इसमें लज्जा की क्या बात है।

दिल अन्दर हर एक समझ सकते हैं - हम याद करते हैं वा नहीं?

कल्याणकारी बाप तो समझाते हैं, नोट करेंगे तो कल्याण होगा।

जब तक बाबा आये, उतना समय जो बैठे उसमें याद का चार्ट कितना रहा?

फ़र्क देखना चाहिए।

प्यारी चीज़ को तो बहुत याद किया जाता है।

कुमार-कुमारी की सगाई होती है तो दिल में एक-दो की याद ठहर जाती है।

फिर शादी होने से पक्की हो जाती है।

बिगर देखे समझ जाते हैं - हमारी सगाई हुई है।

अभी तुम बच्चे जानते हो कि शिवबाबा हमारा बेहद का बाप है।

भल देखा नहीं है परन्तु बुद्धि से समझ सकते हो, वह बाप अगर नाम-रूप से न्यारा है तो फिर पूजा किसकी करते हो?

याद क्यों करते हो?

नाम-रूप से न्यारी बेअन्त तो कोई चीज़ होती नहीं।

जरूर चीज़ को देखा जाता है तब वर्णन होता है।

आकाश को भी देखते हैं ना।

बेअन्त कह नहीं सकते।

भक्ति मार्ग में भगवान को याद करते है - 'हे भगवान' तो बेअन्त थोड़ेही कहेंगे।

'हे भगवान' कहने से तो झट उनकी याद आती है तो जरूर कोई चीज़ है।

आत्मा को भी जाना जाता है, देखा नहीं जाता।

सब आत्माओं का एक ही बाप होता है, उनको भी जाना जाता है। तुम बच्चे जानते हो - बाप आकर पढ़ाते भी हैं। आगे यह मालूम नहीं था कि पढ़ाते भी हैं। कृष्ण का नाम डाल दिया है।

कृष्ण तो इन आंखों से देखने में आता है।

उनके लिए तो बेअन्त, नाम-रूप से न्यारा कह न सकें।

कृष्ण तो कभी कहेंगे नहीं - मामेकम् याद करो।

वह तो सम्मुख है।

उनको बाबा भी नहीं कहेंगे।

मातायें तो कृष्ण को बच्चा समझ गोद में बिठाती हैं।

जन्माष्टमी पर छोटे कृष्ण को झुलायेंगे।

क्या सदैव छोटा ही है!

फिर रास विलास भी करते हैं।

तो जरूर थोड़ा बड़ा हुआ फिर उनसे बड़ा हुआ वा क्या हुआ, कहाँ गया, किसको भी पता नहीं।

सदैव छोटा शरीर तो नहीं होगा ना।

कुछ भी ख्याल नहीं करते हैं।

यह पूजा आदि की रस्म चली आती है।

ज्ञान तो कोई में है नहीं।

दिखाते हैं कृष्ण ने कंसपुरी में जन्म लिया।

अब कंसपुरी की तो बात ही नहीं।

कोई का भी विचार नहीं चलता।

भक्त लोग तो कहेंगे कृष्ण हाज़िराहज़ूर है फिर उनको स्नान भी कराते हैं, खिलाते भी हैं।

अब वह खाता तो नहीं।

रखते हैं मूर्ति के सामने और खुद खा लेते हैं।

यह भी भक्ति मार्ग हुआ ना।

श्रीनाथ जी पर इतना भोग लगाते हैं, वह तो खाता नहीं, खुद खा जाते हैं।

देवियों की पूजा में भी ऐसे करते हैं।

खुद ही देवियाँ बनाते हैं, उनकी पूजा आदि कर फिर डुबो देते हैं।

जेवरात आदि उतारकर ड़ुबोते हैं फिर वहाँ तो बहुत रहते हैं, जिसको जो हाथ में आया वह उठा लेते हैं।

देवियों की ही जास्ती पूजा होती है।

लक्ष्मी और दुर्गा दोनों की मूर्तियाँ बनाते हैं।

बड़ी मम्मा भी यहाँ बैठी है ना, जिसको ब्रह्मपुत्रा भी कहते हैं।

समझेंगे ना कि इस जन्म और भविष्य के रूप की पूजा कर रहे हैं।

कितना वन्डरफुल ड्रामा है।

ऐसी-ऐसी बातें शास्त्रों में आ न सकें।

यह है प्रैक्टिकल एक्टिविटी।

तुम बच्चों को अब ज्ञान है। समझते हो सबसे जास्ती चित्र बनाये हैं आत्माओं के।

जब रूद्र यज्ञ रचते हैं तो लाखों सालिग्राम बनाते हैं।

देवियों के कब लाखों चित्र नहीं बनायेंगे।

वह तो जितने पुजारी होंगे उतनी देवियाँ बनाते होंगे।

वह तो एक ही टाइम पर लाख सालिग्राम बनाते हैं।

उनका कोई फिक्स दिन नहीं होता है।

कोई मुहूर्त्त आदि नहीं होता है।

जैसे देवियों की पूजा फिक्स टाइम पर होती है।

सेठ लोगों को तो जब ख्याल में आयेगा कि रूद्र या सालिग्राम रचें तो ब्राह्मण बुलायेंगे।

रूद्र कहा जाता है एक बाप को फिर उनके साथ ढेर सालिग्राम बनाते हैं।

वो सेठ लोग कहते हैं इतने सालिग्राम बनाओ।

उनकी तिथि-तारीख कोई मुकरर नहीं होती।

ऐसे भी नहीं कि शिव जयन्ती पर ही रूद्र पूजा करते हैं।

नहीं, अक्सर करके शुभ दिन बृहस्पति को ही रखते हैं।

दीपमाला पर लक्ष्मी का चित्र थाली में रखकर उनकी पूजा करते हैं।

फिर रख देते हैं।

वह है महालक्ष्मी, युगल हैं ना।

मनुष्य इन बातों को जानते नहीं।

लक्ष्मी को पैसे कहाँ से मिलेंगे?

युगल तो चाहिए ना।

तो यह (लक्ष्मी-नारायण) युगल हैं।

नाम फिर महालक्ष्मी रख देते हैं।

देवियाँ कब हुई, महालक्ष्मी कब होकर गई?

यह सब बातें मनुष्य नहीं जानते हैं।

तुमको अब बाप बैठ समझाते हैं।

तुम्हारे में भी सबको एकरस धारणा नहीं होती है।

बाबा इतना सब समझाकर फिर भी कहते शिवबाबा याद है?

वर्सा याद है?

मूल बात है यह।

भक्ति मार्ग में कितना पैसा वेस्ट करते हैं।

यहाँ तुम्हारी पाई भी वेस्ट नहीं होती है।

तुम सर्विस करते हो सालवेन्ट बनने के लिए।

भक्ति मार्ग में तो बहुत पैसे खर्च करते हैं, इनसालवेन्ट बन पड़ते हैं।

सब मिट्टी में मिल जाता है।

कितना फर्क है!

इस समय जो कुछ करते हैं वह ईश्वरीय सर्विस में शिवबाबा को देते हैं।

शिवबाबा तो खाते नहीं हैं, खाते तुम हो।

तुम ब्राह्मण बीच में ट्रस्टी हो।

ब्रह्मा को नहीं देते हो।

तुम शिवबाबा को देते हो।

कहते हैं - बाबा, आपके लिए धोती-कमीज़ लाई है

। बाबा कहते हैं - इनको देने से तुम्हारा कुछ भी जमा नहीं होगा।

जमा वह होता है जो तुम शिवबाबा को याद कर इनको देते हो।

फिर यह तो समझते हो ब्राह्मण शिवबाबा के खजाने से ही पलते हैं।

बाबा से पूछने की दरकार नहीं है कि क्या भेजूँ?

यह तो लेंगे नहीं।

तुम्हारा जमा ही नहीं होगा, अगर ब्रह्मा को याद किया तो।

ब्रह्मा को तो लेना है शिवबाबा के खजाने से।

तो शिवबाबा ही याद पड़ेगा।

तुम्हारी चीज़ क्यों लेवें।

बी.के. को देना भी रांग है।

बाबा ने समझाया है तुम कोई से भी चीज़ लेकर पहनेंगे तो उनकी याद आती रहेगी।

कोई हल्की चीज़ है तो उनकी बात नहीं।

अच्छी चीज़ तो और ही याद दिलायेगी - फलाने ने यह दिया है।

उनका कुछ जमा तो होता नहीं।

तो घाटा पड़ा ना।

शिवबाबा कहते हैं मामेकम् याद करो।

मुझे कपड़े आदि की दरकार नहीं।

कपड़े आदि बच्चों को चाहिए।

वह शिवबाबा के खजाने से पहनेंगे।

मुझे तो अपना शरीर है नहीं।

यह तो शिवबाबा के खजाने से लेने के हकदार हैं।

राजाई के भी हकदार हैं।

बाप के घर में ही बच्चे खाते पीते हैं ना।

तुम भी सर्विस करते, कमाई करते रहते हो।

जितनी सर्विस बहुत, उतनी बहुत कमाई होगी।

खायेंगे, पियेंगे शिवबाबा के भण्डारे से।

उनको नहीं देंगे तो जमा ही नहीं होगा।

शिवबाबा को ही देना होता है।

बाबा, आपसे भविष्य 21 जन्मों के लिए पद्मापद्मपति बनेंगे।

पैसे तो खत्म हो जायेंगे इसलिए समर्थ को हम दे देते हैं।

बाप समर्थ हैं ना। 21 जन्मों के लिए वह देते हैं।

इनडायरेक्ट भी ईश्वर अर्थ देते हैं ना।

इनडायरेक्ट में इतना समर्थ नहीं है।

अभी तो बहुत समर्थ है क्योंकि सम्मुख है।

वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी इस समय के लिए है।

ईश्वर अर्थ कुछ दान-पुण्य करते हैं तो अल्पकाल के लिए कुछ मिल जाता है।

यहाँ तो बाप तुमको समझाते हैं - मैं सम्मुख हूँ।

मैं ही देने वाला हूँ।

इसने भी शिवबाबा को सब कुछ देकर सारे विश्व की बादशाही ले ली ना।

यह भी जानते हो - इस व्यक्त का ही अव्यक्त रूप में साक्षात्कार होता है।

इनमें शिवबाबा आकर बच्चों से बात करते हैं।

कभी भी यह ख्याल नहीं करना चाहिए - हम मनुष्य से लेवें।

बोलो, शिवबाबा के भण्डारे में भेज दो, इनको देने से तो कुछ नहीं मिलेगा, और ही घाटा पड़ जायेगा।

गरीब होंगे, करके 3-4 रूपये की कोई चीज़ तुमको देंगे।

इनसे तो शिवबाबा के भण्डारे में डालने से पद्म हो जायेगा।

अपने को घाटा थोड़ेही डालना है।

पूजा अक्सर देवियों की ही होती है क्योंकि तुम देवियां ही खास निमित्त बनती हो ज्ञान देने के।

भल गोप भी समझाते हैं परन्तु अक्सर करके तो मातायें ही ब्राह्मणी बन रास्ता बताती हैं इसलिए देवियों का नाम जास्ती है।

देवियों की बहुत पूजा होती है।

यह भी तुम बच्चे समझते हो आधाकल्प हम पूज्य थे।

पहले हैं फुल पूज्य, फिर सेमी पूज्य क्योंकि दो कला कम हो जाती है।

राम की डिनायस्टी कहेंगे त्रेता में।

वह तो लाखों वर्ष की बात कह देते हैं, तो उनका कोई हिसाब ही नहीं हो सकता।

भक्ति मार्ग वालों की बुद्धि में और तुम्हारी बुद्धि में कितना रात-दिन का फ़र्क है!

तुम हो ईश्वरीय बुद्धि, वह हैं रावण की बुद्धि।

तुम्हारी बुद्धि में है कि यह सारा चक्र ही 5 हज़ार वर्ष का है, जो फिरता रहता है।

जो रात में हैं वह कहते हैं लाखों वर्ष, जो दिन में हैं वह कहते 5 हज़ार वर्ष।

आधाकल्प भक्ति मार्ग में तुमने असत्य बातें सुनी हैं।

सतयुग में ऐसी बातें होती ही नहीं।

वहाँ तो वर्सा मिलता है।

अब तुमको डायरेक्ट मत मिलती है।

श्रीमद् भगवत गीता है ना।

और कोई शास्त्र पर श्रीमद् नाम है नहीं।

हर 5हज़ार वर्ष बाद यह पुरूषोत्तम संगमयुग, गीता का युग आता है।

लाखों वर्ष की तो बात हो नहीं सकती है।

कभी भी कोई आये तो ले जाओ संगम पर।

बेहद के बाप ने रचयिता अर्थात् अपना और रचना का सारा परिचय दिया है।

फिर भी कहते हैं - अच्छा, बाप को याद करो, और कुछ धारणा नहीं कर सकते हो तो अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो।

पवित्र तो बनना ही है।

बाप से वर्सा लेते हो तो दैवीगुण भी धारण करने हैं।

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) 21 जन्मों के लिए पद्मों की कमाई जमा करने के लिए डायरेक्ट ईश्वरीय सेवा में सब कुछ सफल करना है।

ट्रस्टी बन शिवबाबा के नाम पर सेवा करनी है।

2) याद में जितना समय बैठते, उतना समय बुद्धि कहाँ-कहाँ गई - यह चेक करना है।

अपना सच्चा-सच्चा पोतामेल रखना है।

नर से नारायण बनने के लिए बाप और वर्से की याद में रहना है।

वरदान:-

अविनाशी प्राप्तियों की स्मृति से

अपने श्रेष्ठ भाग्य की खुशी में रहने वाले

इच्छा मात्रम् अविद्या भव

जिसका बाप ही भाग्य विधाता हो उसका भाग्य क्या होगा!

सदा यही खुशी रहे कि भाग्य तो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।

"वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य और भाग्य विधाता बाप'' यही गीत गाते खुशी में उड़ते रहो।

ऐसा अविनाशी खजाना मिला है जो अनेक जन्म साथ रहेगा, कोई छीन नहीं सकता, लूट नहीं सकता।

कितना बड़ा भाग्य है जिसमें कोई इच्छा नहीं, मन की खुशी मिल गई तो सर्व प्राप्तियां हो गई।

कोई अप्राप्त वस्तु है ही नहीं इसलिए इच्छा मात्रम् अविद्या बन गये।

स्लोगन:-

विकर्म करने का टाइम बीत गया,

अभी व्यर्थ संकल्प, बोल भी बहुत धोखा देते हैं।