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17-09-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

"मीठे बच्चे - जैसे तुम्हें निश्चय है कि ईश्वर सर्वव्यापी नहीं,

वह हमारा बाप है,

ऐसे दूसरों को समझाकर निश्चय कराओ फिर उनसे ओपीनियन लो''

प्रश्नः-

बाप अपने बच्चों से कौन सी बात पूछते हैं, जो दूसरा कोई नहीं पूछ सकता है?

उत्तर:-

बाबा जब बच्चों से मिलते हैं तो पूछते हैं - बच्चे, पहले तुम कब मिले हो?

जो बच्चे समझे हुए हैं वह झट कहते हैं - हाँ बाबा, हम 5 हज़ार वर्ष पहले आपसे मिले थे।

जो नहीं समझते हैं, वह मूँझ जाते हैं।

ऐसा प्रश्न पूछने का अक्ल दूसरे किसी को आयेगा भी नहीं।

बाप ही तुम्हें सारे कल्प का राज़ समझाते हैं।

ओम् शान्ति।

रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बेहद का बाप समझाते हैं - यहाँ तुम बाप के सामने बैठे हो।

घर से निकलते ही इस विचार से हो कि हम जाते हैं शिवबाबा के पास, जो ब्रह्मा के रथ में आकर हमको स्वर्ग का वर्सा दे रहे हैं।

हम स्वर्ग में थे फिर 84 का चक्र लगाकर अभी नर्क में आकर पड़े हैं।

और कोई भी सतसंग में किसकी बुद्धि में यह बातें नहीं होंगी।

तुम जानते हो हम शिवबाबा के पास जाते हैं जो इस रथ में आकर पढ़ाते भी हैं।

वो हम आत्माओं को साथ ले जाने आये हैं।

बेहद के बाप से जरूर बेहद का वर्सा मिलना है।

यह तो बाप ने समझाया है कि मैं सर्वव्यापी नहीं हूँ।

सर्वव्यापक तो 5 विकार हैं।

तुम्हारे में भी 5 विकार हैं इसलिए तुम महान दु:खी हुए हो।

अब ईश्वर सर्वव्यापी नहीं है, यह ओपीनियन जरूर लिखवाना है।

तुम बच्चों को तो पक्का निश्चय है कि ईश्वर बाप सर्वव्यापी नहीं है।

बाप सुप्रीम बाप है, सुप्रीम टीचर, गुरू भी है।

बेहद का सद्गति दाता है।

वही शान्ति देने वाला है।

और कोई जगह ऐसे ख्याल कोई नहीं करता है कि क्या मिलना है।

सिर्फ कनरस - रामायण, गीता आदि जाकर सुनते हैं।

बुद्धि में अर्थ कुछ नहीं।

आगे हम परमात्मा सर्वव्यापी कहते थे।

अब बाप समझाते हैं यह तो झूठ है।

बड़ी ग्लानि की बात है।

तो यह ओपीनियन भी बहुत जरूरी है।

आजकल जिनसे तुम ओपनिंग आदि कराते हो, वह लिखते हैं ब्रह्माकुमारियां अच्छा काम करती हैं।

बहुत अच्छी समझानी देती हैं।

ईश्वर को प्राप्त करने का रास्ता बताती हैं, इससे लोगों के दिल पर सिर्फ अच्छा असर पड़ता है।

बाकी यह ओपीनियन कोई भी नहीं लिखकर देते कि दुनिया भर में जो मनुष्य कहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है, यह बड़ी भूल है। ईश्वर तो बाप, टीचर, गुरू है।

एक तो मुख्य बात है यह, दूसरा फिर ओपीनियन चाहिए कि इस समझानी से हम समझते हैं गीता का भगवान कृष्ण नहीं है।

भगवान कोई मनुष्य या देवता को नहीं कहा जाता है।

भगवान एक है, वह बाप है।

उस बाप से ही शान्ति और सुख का वर्सा मिलता है।

ऐसी-ऐसी ओपीनियन लेना है।

अभी जो तुम ओपीनियन लेते हो वह कोई काम की नहीं लिखते हैं।

हाँ, इतना लिखते हैं कि यहाँ शिक्षा बहुत अच्छी देते हैं।

बाकी मुख्य बात जिसमें ही तुम्हारी विजय होनी है, वह लिखाओ कि यह ब्रह्माकुमारियां सत्य कहती हैं कि ईश्वर सर्वव्यापी नहीं है।

वह तो बाप है, वही गीता का भगवान है।

बाप आकर भक्ति मार्ग से छुड़ाए ज्ञान देते हैं।

यह भी ओपीनियन जरूरी है कि पतित-पावनी पानी की गंगा नहीं, परन्तु एक बाप है।

ऐसी-ऐसी ओपीनियन जब लिखें तब ही तुम्हारी विजय हो।

अभी टाइम पड़ा है।

अभी तुम्हारी जो सर्विस चलती है, इतना खर्चा होता है, यह तो तुम बच्चे ही एक-दो को मदद करते हो।

बाहर वालों को तो कुछ पता ही नहीं।

तुम ही अपने तन-मन-धन से खर्चा कर अपने लिए राजधानी स्थापन करते हो।

जो करेगा वह पायेगा।

जो नहीं करते वह पायेंगे भी नहीं।

कल्प-कल्प तुम ही करते हो। तुम ही निश्चय बुद्धि होते हो।

तुम समझते हो कि बाप, बाप भी है, टीचर भी है, गीता का ज्ञान भी यथार्थ रीति सुनाते हैं।

भक्ति मार्ग में भल गीता सुनते आये परन्तु राज्य थोड़ेही प्राप्त किया है।

ईश्वरीय मत से बदलकर आसुरी मत हो गई।

कैरेक्टर बिगड़ते पतित बन पड़े।

कुम्भ के मेले पर कितने मनुष्य करोड़ों की अन्दाज में जाते हैं।

जहाँ-जहाँ पानी देखते, वहाँ जाते हैं।

समझते हैं पानी से ही पावन होंगे।

अब पानी तो जहाँ तहाँ नदियों से आता रहता है।

इनसे कोई पावन बन सकता है क्या!

क्या पानी में स्नान करने से हम पतित से पावन बन देवता बन जायेंगे।

अभी तुम समझते हो कोई भी पावन बन न सके।

यह है भूल।

तो इन 3 बातों पर ओपीनियन लेना चाहिए।

अभी सिर्फ कहते हैं संस्था अच्छी है, तो बहुतों के अन्दर जो भ्रान्तियां भरी हुई हैं कि ब्रह्माकुमारियों में जादू है, भगाती हैं - वह ख्यालात दूर हो जाते हैं क्योंकि आवाज़ तो बहुत फैला हुआ है ना।

विलायत तक यह आवाज़ गया था कि इनको 16108 रानियां चाहिए, उनसे 400 मिल गई हैं क्योंकि उस समय सतसंग में 400 आते थे।

बहुतों ने विरोध किया, पिकेटिंग आदि भी करते थे, परन्तु बाप के आगे तो कोई की चल न सके।

सब कहते थे यह जादूगर फिर कहाँ से आया।

फिर वन्डर देखो, बाबा तो कराची में था।

आपेही सारा झुण्ड आपस में मिलकर भाग आया।

कोई को पता नहीं पड़ा कि हमारे घर से कैसे भागे।

यह भी ख्याल नहीं किया इतने सब कहाँ जाकर रहेंगे।

फिर फट से बंगला ले लिया।

तो जादू की बात हो गई ना।

अभी भी कहते रहते हैं यह जादूगरनी हैं।

ब्रह्माकुमारियों के पास जायेंगे तो फिर लौटेंगे नहीं।

यह स्त्री-पुरूष को भाई-बहिन बनाती हैं फिर कितने तो आते ही नहीं हैं।

अभी तुम्हारी प्रदर्शनी आदि देखकर वह जो बातें बुद्धि में बैठी हुई हैं, वह दूर होती हैं।

बाकी बाबा जो ओपीनियन चाहते हैं, वह कोई नहीं लिखते।

बाबा को वह ओपीनियन चाहिए।

यह लिखें कि गीता का भगवान कृष्ण नहीं है।

सारी दुनिया समझती है कृष्ण भगवानुवाच।

परन्तु कृष्ण तो पूरे 84 जन्म लेते हैं।

शिवबाबा है पुनर्जन्म रहित।

तो इसमें बहुतों की ओपीनियन चाहिए।

गीता सुनने वाले तो ढेर के ढेर हैं फिर देखेंगे यह तो अखबार में भी निकल पड़ा है गीता का भगवान परमपिता परमात्मा शिव है।

वही बाप, टीचर, सर्व का सद्गति दाता है।

शान्ति और सुख का वर्सा सिर्फ उनसे मिलता है।

बाकी अभी तुम मेहनत करते हो, उद्घाटन कराते हो, सिर्फ मनुष्यों की भ्रान्तियां दूर होती हैं, समझानी अच्छी मिलती है।

बाकी बाबा जैसे कहते हैं वह ओपीनियन लिखें।

मुख्य ओपीनियन है यह।

बाकी सिर्फ राय देते हैं - यह संस्था बहुत अच्छी है।

इससे क्या होगा।

हाँ, आगे चल जब विनाश और स्थापना नजदीक होगी तो तुमको यह ओपीनियन भी मिलेंगे।

समझकर लिखेंगे। अभी तुम्हारे पास आने तो लगे हैं ना।

अभी तुमको ज्ञान मिला है - एक बाप के बच्चे हम सब भाई-भाई हैं।

यह किसी को भी समझाना तो बहुत सहज है।

सब आत्माओं का बाप एक सुप्रीम बाबा है।

उनसे जरूर सुप्रीम बेहद का पद भी मिलना चाहिए।

सो 5 हज़ार वर्ष पहले तुमको मिला था।

वो लोग कलियुग की आयु लाखों वर्ष कह देते हैं।

तुम 5 हज़ार वर्ष कहते हो, कितना फर्क है।

बाप समझाते हैं 5 हज़ार वर्ष पहले विश्व में शान्ति थी।

यह एम ऑब्जेक्ट सामने खड़ी है।

इनके राज्य में विश्व में शान्ति थी।

यह राजधानी हम फिर स्थापन कर रहे हैं।

सारे विश्व में सुख-शान्ति थी। कोई दु:ख का नाम नहीं था।

अभी तो अपार दु:ख हैं।

हम यह सुख-शान्ति का राज्य स्थापन कर रहे हैं, अपने ही तन-मन-धन से गुप्त रीति।

बाप भी गुप्त है, नॉलेज भी गुप्त है, तुम्हारा पुरूषार्थ भी गुप्त है, इसलिए बाबा गीत-कविताएं आदि भी पसन्द नहीं करते हैं।

वह है भक्ति मार्ग। यहाँ तो चुप रहना है, शान्ति से चलते-फिरते बाप को याद करना है और सृष्टि चक्र बुद्धि में फिराना है।

अभी हमारा यह अन्तिम जन्म है, पुरानी दुनिया में।

फिर हम नई दुनिया में पहला जन्म लेंगे।

आत्मा पवित्र जरूर चाहिए।

अभी तो सब आत्मायें पतित हैं।

तुम आत्मा को पवित्र बनाने के लिए बाप से योग लगाते हो।

बाप खुद कहते हैं - बच्चे, देह सहित देह के सब सम्बन्ध छोड़ो।

बाप नई दुनिया तैयार कर रहे हैं, उनको याद करो तो तुम्हारे पाप कट जाएं।

अरे, बाप जो तुमको विश्व की बादशाही देते हैं, ऐसे बाप को तुम भूल कैसे जाते हो!

वह कहते हैं - बच्चे, यह अन्तिम जन्म सिर्फ पवित्र बनो।

अब इस मृत्युलोक का विनाश सामने खड़ा है।

यह विनाश भी हूबहू 5 हज़ार वर्ष पहले ऐसे ही हुआ था।

यह तो स्मृति में आता है ना।

अपना राज्य था तो दूसरा कोई धर्म नहीं था।

बाबा के पास कोई भी आता है तो उससे पूछता हूँ - आगे कब मिले हो?

कोई तो जो समझे हुए हैं वह झट कह देते हैं 5 हज़ार वर्ष पहले।

कोई नये आते हैं तो मूँझ पड़ते हैं।

बाबा समझ जाते हैं कि ब्राह्मणी ने समझाया नहीं है।

फिर कहता हूँ सोचो, तो स्मृति आती है।

यह बात और तो कोई भी पूछ न सके।

पूछने का अक्ल आयेगा ही नहीं। वह क्या जानें इन बातों से।

आगे चलकर तुम्हारे पास बहुत आकर सुनेंगे, जो इस कुल के होंगे।

दुनिया बदलनी तो जरूर है।

चक्र का राज़ तो समझा दिया है।

अब नई दुनिया में जाना है।

इस पुरानी दुनिया को भूल जाओ।

बाप नया मकान बनाते हैं तो बुद्धि उसमें चली जाती है।

पुराने मकान में फिर ममत्व नहीं रहता है।

यह फिर है बेहद की बात।

बाप नई दुनिया स्वर्ग स्थापन कर रहे हैं इसलिए अब इस पुरानी दुनिया को देखते हुए भी नहीं देखो।

ममत्व नई दुनिया में रहे।

इस पुरानी दुनिया से वैराग्य।

वह तो हठयोग से हद का सन्यास कर जंगल में जाकर बैठते हैं।

तुम्हारा तो है सारी पुरानी दुनिया से वैराग्य, इसमें तो अथाह दु:ख हैं।

नई सतयुगी दुनिया में अपार सुख हैं तो जरूर उनको याद करेंगे।

यहाँ सब दु:ख देने वाले हैं।

माँ-बाप आदि सब विकारों में फँसा देंगे।

बाप कहते हैं काम महाशत्रु है, उनको जीतने से ही तुम जगतजीत बनेंगे।

यह राजयोग बाप सिखलाते हैं, जिससे हम यह पद पाते हैं...

बोलो, हमको स्वप्न में भगवान कहते हैं पावन बनो तो स्वर्ग की राजाई मिलेगी।

तो अब मैं एक जन्म अपवित्र बन अपनी राजाई गँवाऊंगी थोड़ेही।

इस पवित्रता की बात पर ही झगड़ा चलता है।

द्रोपदी ने भी पुकारा है यह दुशासन हमको नंगन करते हैं।

यह भी खेल दिखाते हैं कि द्रोपदी को कृष्ण 21 साड़ियां देते हैं।

अब बाप बैठ समझाते हैं कितनी दुर्गति हो गई है...

अपार दु:ख हैं ना।

सतयुग में अपार सुख था।

अब मैं आया हूँ - अनेक अधर्म का विनाश और एक सत धर्म की स्थापना करने।

तुमको राज्य-भाग्य देकर वानप्रस्थ में चले जायेंगे।

आधाकल्प फिर मेरी दरकार ही नहीं पड़ेगी।

तुम कभी याद भी नहीं करेंगे।

तो बाबा समझाते हैं - तुम्हारे लिए जो सबके मन में उल्टा वायब्रेशन है वह निकलकर ठीक हो रहा है।

बाकी मुख्य बात है ओपीनियन लिखा लो ईश्वर सर्वव्यापी नहीं है।

उसने तो आकर राजयोग सिखाया है।

पतित-पावन भी बाप है।

पानी की नदियां थोड़ेही पावन बना सकेंगी।

पानी तो सब जगह होता है।

अब बेहद का बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो।

देह सहित देह के सब सम्बन्ध छोड़ो।

आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है।

वह फिर कह देते आत्मा निर्लेप है।

आत्मा सो परमात्मा यह है भक्ति मार्ग की बातें।

बच्चे कहते हैं - बाबा, याद कैसे करें?

अरे, अपने को आत्मा तो समझते हो ना।

आत्मा कितनी छोटी बिन्दी है तो उनका बाप भी इतना छोटा होगा...

वह पुनर्जन्म में नहीं आता है।

यह बुद्धि में ज्ञान है।

बाप याद क्यों नहीं आयेगा।

चलते-फिरते बाप को याद करो।

अच्छा, बड़ा रूप ही समझो बाप का।

परन्तु याद तो एक को करो ना, तो तुम्हारे पाप कट जाएं।

और तो कोई उपाय है नहीं।

जो समझते हैं वह कहते हैं बाबा आपकी याद से हम पावन बन पावन दुनिया, विश्व के मालिक बनते हैं तो हम क्यों नहीं याद करेंगे।

एक-दो को भी याद दिलाना है तो पाप कट जाएं।

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) जैसे बाप और नॉलेज गुप्त है, ऐसे पुरूषार्थ भी गुप्त करना है। गीत-कविताओं आदि के बजाए चुप रहना अच्छा है। शान्ति में चलते-फिरते बाप को याद करना है।

2) पुरानी दुनिया बदल रही है इसलिए इससे ममत्व निकाल देना है, इसे देखते हुए भी नहीं देखना है। बुद्धि नई दुनिया में लगानी है।

वरदान:-

सर्व पदार्थो की आसक्तियों से न्यारे

अनासक्त, प्रकृतिजीत भव

अगर कोई भी पदार्थ कर्मेन्द्रियों को विचलित करता है अर्थात् आसक्ति का भाव उत्पन्न होता है तो भी न्यारे नहीं बन सकेंगे।

इच्छायें ही आसक्तियों का रूप हैं।

कई कहते हैं इच्छा नहीं है लेकिन अच्छा लगता है।

तो यह भी सूक्ष्म आसक्ति है - इसकी महीन रूप से चेकिंग करो कि यह पदार्थ अर्थात् अल्पकाल सुख के साधन आकर्षित तो नहीं करते हैं?

यह पदार्थ प्रकृति के साधन हैं, जब इनसे अनासक्त अर्थात् न्यारे बनेंगे तब प्रकृतिजीत बनेंगे।

स्लोगन:-

मेरे-मेरे के झमेलों को छोड़ बेहद में रहो

तब कहेंगे विश्व कल्याणकारी।