"मीठे बच्चे - तुम्हें किसी भी पतित देहधारियों से प्यार नहीं रखना है क्योंकि तुम पावन दुनिया में जा रहे हो, एक बाप से प्यार करना है''
प्रश्नः-
तुम बच्चों को किस चीज़ से तंग नहीं होना है और क्यों?
उत्तर:-
तुम्हें अपने इस पुराने शरीर से ज़रा भी तंग नहीं होना है क्योंकि यह शरीर बहुत-बहुत वैल्युबुल है।
आत्मा इस शरीर में बैठ बाप को याद करके बहुत बड़ी लॉटरी ले रही है।
बाप की याद में रहेंगे तो खुशी की खुराक मिलती रहेगी।
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चे, अब दूरदेश के रहने वाले फिर दूर देश के पैसेन्जर्स हो...
हम आत्मायें हैं और अभी बहुत दूरदेश जाने का पुरूषार्थ कर रहे हैं।
यह सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो कि हम आत्मायें दूरदेश की रहने वाली हैं और दूरदेश में रहने वाले बाप को भी बुलाते हैं कि आकरके हमको भी वहाँ दूरदेश में ले जाओ।
अब दूरदेश का रहने वाला बाप तुम बच्चों को वहाँ ले जाते हैं।
तुम रूहानी पैसेन्जर्स हो क्योंकि इस शरीर के साथ हो ना।
रूह ही ट्रवेलिंग करेगी।
शरीर तो यहाँ ही छोड़ देगी।
बाकी रूह ही ट्रवेलिंग (यात्रा) करेगी।
रूह कहाँ जायेगी? अपने रूहानी दुनिया में।
यह है जिस्मानी दुनिया, वह है रूहानी दुनिया...
बच्चों को बाप ने समझाया है अब घर वापिस जाना है, जहाँ से पार्ट बजाने यहाँ आये हैं।
यह बहुत बड़ा माण्डवा अथवा स्टेज है।
स्टेज पर एक्ट करके पार्ट बजाकर फिर सबको वापिस जाना है।
नाटक जब पूरा होगा तब तो जायेंगे ना।
अभी तुम यहाँ बैठे हो, तुम्हारा बुद्धियोग घर और राजधानी में है।
यह तो पक्का-पक्का याद कर लो क्योंकि यह तो गायन है अन्त मति सो गति।
अभी यहाँ तुम पढ़ रहे हो, जानते हो भगवान् शिवबाबा हमको पढ़ाते हैं...
भगवान् तो सिवाए इस पुरूषोत्तम संगमयुग के कभी पढ़ायेंगे नहीं।
सारे 5 हजार वर्ष में निराकार भगवान बाप एक ही बार आकर पढ़ाते हैं।
यह तो तुमको पक्का निश्चय है।
पढ़ाई भी कितनी सहज है, अब घर जाना है।
उस घर से तो सारी दुनिया का प्यार है...
मुक्तिधाम में जाना तो सब चाहते हैं परन्तु...
उसका भी अर्थ नहीं समझते हैं।
मनुष्यों की बुद्धि इस समय कैसी है और तुम्हारी बुद्धि अभी कैसी बनी है, कितना फर्क है।
तुम्हारी है स्वच्छ बुद्धि, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार।
सारे विश्व के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज तुमको अच्छी तरह है।
तुम्हारे दिल में यह है कि हमको अब पुरूषार्थ कर नर से नारायण जरूर बनना है।
यहाँ से तो पहले अपने घर में जायेंगे ना...
तो खुशी से जाना है।
जैसे सतयुग में देवतायें खुशी से एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं,
वैसे इस पुराने शरीर को भी खुशी से छोड़ना है।
इनसे तंग नहीं होना है क्योंकि यह बहुत वैल्युबुल शरीर है।
इस शरीर द्वारा ही आत्मा को बाप से लॉटरी मिलती है।
हम जब तक पवित्र नहीं बने हैं तो घर जा नहीं सकेंगे।
बाप को याद करते रहेंगे तब ही उस योगबल से पापों का बोझा उतरेगा।
नहीं तो बहुत सजा खानी पड़ेगी।
पवित्र तो जरूर बनना है।
लौकिक सम्बन्ध में भी बच्चे कोई गंदा पतित काम करते हैं तो बाप गुस्से में आकर लाठी से भी मार देते हैं क्योंकि बेकायदे पतित बनते हैं।
किसके साथ भी बेकायदे प्यार रखते हैं तो भी माँ-बाप को अच्छा नहीं लगता है।
यह बेहद का बाप फिर कहते हैं तुम बच्चों को यहाँ तो रहना नहीं है...
अभी तुमको जाना है नई दुनिया में।
वहाँ विकारी पतित कोई होता नहीं।
एक ही पतित-पावन बाप आकर ऐसा पावन तुमको बनाते हैं।
बाप खुद कहते हैं हमारा जन्म दिव्य और अलौकिक है, और कोई भी आत्मा मेरे समान शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती।
भल धर्म स्थापक जो आते हैं उनकी आत्मा भी प्रवेश करती है परन्तु वह बात ही अलग है।
हम तो आते ही हैं सबको वापिस ले जाने के लिए।
वह तो ऊपर से उतरते हैं नीचे अपना पार्ट बजाने।
हम तो सबको ले जाते हैं फिर बतलाते हैं कि तुम कैसे पहले-पहले नई दुनिया में उतरेंगे।
उस नई दुनिया सतयुग में बगुला कोई भी होता नहीं...
बाप तो आते ही हैं बगुलों के बीच।
फिर तुमको हंस बनाते हैं।
तुम अब हंस बने हो, मोती ही चुगते हो।
सतयुग में तुमको यह रत्न नहीं मिलेंगे।
यहाँ तुम यह ज्ञान रत्न चुग कर हंस बनते हो।
बगुले से तुम हंस कैसे बनते हो, यह बाप बैठ समझाते हैं।
अभी तुमको हंस बनाते हैं।
देवताओं को हंस, असुरों को बगुला कहेंगे।
अभी तुम किचड़ा छुड़ाए मोती चुगाते हो।
तुमको ही पद्मापद्म भाग्यशाली कहते हैं।
तुम्हारे पैर में छापा लगता है पद्मों का।
शिवबाबा को तो पांव हैं नहीं जो पद्म हो सकें।
वह तो तुमको पद्मापद्म भाग्यशाली बनाते हैं।
बाप कहते हैं मैं तुमको विश्व का मालिक बनाने आया हूँ...
यह सब बातें अच्छी रीति समझने की हैं।
मनुष्य यह तो समझते हैं ना स्वर्ग था।
परन्तु कब था फिर कैसे होगा, वह पता नहीं है।
तुम बच्चे अभी रोशनी में आये हो।
वह सब हैं अन्धियारे में।
यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक कब कैसे बनें, यह पता ही नहीं है।
5 हज़ार वर्ष की बात है। बाप बैठकर समझाते हैं जैसे तुम आते हो पार्ट बजाने, वैसे मैं भी आता हूँ...
तुम निमंत्रण देकर बुलाते हो - हे बाबा, हम पतितों को आकर पावन बनाओ।
और किसको भी ऐसे कभी नहीं कहेंगे, अपने धर्म स्थापक को भी ऐसे नहीं कहेंगे कि आकर सबको पावन बनाओ।
क्राइस्ट अथवा बुद्ध को थोड़ेही पतित-पावन कहेंगे।
गुरू वह जो सद्गति करे।
वह तो आते हैं, उनके पिछाड़ी सबको नीचे उतरना है।
यहाँ से वापिस जाने का रास्ता बतलाने वाला, सर्व का सद्गति करने वाला अकाल मूर्त एक ही बाप है।
वास्तव में सतगुरू अक्षर ही राइट है।
तुम सबसे राइट अक्षर फिर भी सिक्ख लोग बोलते है।
बड़ी-बड़ी आवाज़ से कहते हैं - सतगुरू अकाल।
बड़ी ज़ोर से धुन लगाते हैं, सतगुरू अकाल मूर्त कहते हैं।
मूर्त ही नहीं हो तो वह फिर सतगुरू कैसे बनेंगे, सद्गति कैसे देंगे?
वह सतगुरू स्वयं ही आकर अपना परिचय देते हैं - मैं तुम्हारे मिसल जन्म नहीं लेता हूँ।
और तो सब शरीरधारी बैठ सुनाते हैं।
तुमको अशरीरी रूहानी बाप बैठ समझाते हैं।
रात-दिन का फ़र्क है।
इस समय मनुष्य जो कुछ करते हैं वह रांग ही करते हैं क्योंकि रावण की मत पर हैं ना...
हर एक में 5 विकार हैं।
अभी रावण राज्य है, यह बातें डिटेल में बाप बैठ समझाते हैं।
नहीं तो सारी दुनिया के चक्र का मालूम कैसे पड़े।
यह चक्र कैसे फिरता है, मालूम पड़ना चाहिए ना।
यह भी तुम नहीं कहते हो कि बाबा समझाओ।
आपेही बाप समझाते रहते हैं।
तुमको एक भी प्रश्न पूछने का नहीं रहता।
भगवान् तो बाप है।
बाप का काम है, सब कुछ आपेही सुनाना, आपेही सब कुछ करना।
बच्चों को स्कूल में बाप आपेही बिठाते हैं।
नौकरी पर लगाते हैं फिर उनको कहते हैं 60 वर्ष बाद यह सब छोड़ भगवान् का भजन करना।
वेद-शास्त्र आदि पढ़ना, पूजा करना।
तुम आधाकल्प पुजारी बने फिर आधाकल्प के लिए पूज्य बनते हो।
पवित्र कैसे बनो, उसके लिए कितना सहज समझाया जाता है।
फिर भक्ति बिल्कुल छूट जाती है।
वह सब भक्ति कर रहे हैं, तुम ज्ञान ले रहे हो।
वह रात में हैं, तुम दिन में जाते हो अर्थात् स्वर्ग में।
गीता में लिखा हुआ है मनमनाभव, यह अक्षर तो मशहूर है...
गीता पढ़ने वाले समझ सकते हैं, बहुत सहज लिखा हुआ है।
सारी आयु गीता पढ़ते आये हैं, कुछ भी नहीं समझते।
अब वही गीता का भगवान् बैठ सिखलाते हैं तो पतित से पावन बन जाते हैं।
अभी हम भगवान से गीता सुनते हैं फिर औरों को सुनाते हैं, पावन बनते हैं।
बाप के महावाक्य हैं ना - यह है वही सहज राजयोग।
मनुष्य कितने अन्धश्रद्धा में डूबे हुए हैं, तुम्हारी तो बात ही नहीं सुनते हैं।
ड्रामा अनुसार उन्हों की भी जब तकदीर खुले तब ही आ सकें, तुम्हारे पास।
तुम्हारे जैसी तकदीर और कोई धर्म वालों की नहीं होती।
बाप ने समझाया है यह तुम्हारा देवी-देवता धर्म बहुत सुख देने वाला है।
तुम भी समझते हो - बाप ठीक कहते हैं। शास्त्रों में तो वहाँ भी कंस-रावण आदि बैठ दिखाये हैं।
वहाँ के सुख का तो कोई को पता ही नहीं है।
भल देवताओं को पूजते हैं परन्तु बुद्धि में कुछ नहीं बैठता।
अब बाप कहते हैं - बच्चे, मुझे याद करते हो?
ऐसे कभी सुना कि बाप बच्चे को कहे कि तुम मुझे याद करो।
लौकिक बाप कभी ऐसे याद कराने का पुरूषार्थ कराते हैं क्या?
यह बेहद का बाप बैठ समझाते हैं।
तुम सारे विश्व के आदि-मध्य-अन्त को जानकर चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे।
पहले तुम जायेंगे घर।
फिर आना है पार्टधारी बनकर।
अभी किसको भी पता नहीं पड़ेगा कि यह नई आत्मा है या पुरानी आत्मा है।
नई आत्मा का नामाचार जरूर होता है।
अभी भी देखो कोई-कोई का कितना नामाचार होता है।
मनुष्य ढेर आ जाते हैं।
बैठे-बैठे अनायास ही आ जाते हैं।
तो वह प्रभाव पड़ता है।
बाबा भी इसमें अनायास ही आते हैं तो वह प्रभाव पड़ता है।
वह भी नई आत्मा आती है तो पुरानों पर प्रभाव होता है।
टाल-टालियां निकलती जाती हैं तो उनकी महिमा होती है।
किसको पता नहीं रहता है कि इनका नामाचार क्यों है?
नई आत्मा होने से उनमें कशिश होती है।
अभी तो देखो कितने ढेर झूठे भगवान बन गये हैं, इसलिए गायन है सच की बेड़ी हिलती-डुलती है लेकिन डूबती नहीं है...
तूफान बहुत आते हैं क्योंकि भगवान खिवैया है ना।
बच्चे भी हिलते हैं, नांव को तूफान बहुत लगते हैं।
और सतसंगों में तो ढेर जाते हैं परन्तु वहाँ कभी तूफान आदि की बात नहीं आती।
यहाँ अबलाओं पर कितने अत्याचार होते हैं परन्तु फिर भी स्थापना तो होनी है।
बाप बैठ समझाते हैं - हे आत्मायें, तुम कितना जंगली कांटे बन पड़े हो, दूसरों को कांटा लगाते हो तो तुमको भी कांटा लगता है।
रेसपॉन्ड तो हर बात का मिलता है।
वहाँ दु:ख की छी-छी बातें कोई होती नहीं इसलिए उनको कहा ही जाता है स्वर्ग।
मनुष्य स्वर्ग और नर्क कहते हैं परन्तु समझते नहीं हैं।
कहते हैं - फलाना स्वर्ग गया, यह कहना भी वास्तव में रांग है।
निराकारी दुनिया को कोई हेविन नहीं कहा जाता है।
वह है मुक्तिधाम।
यह फिर कहते हैं स्वर्ग में गया।
अभी तुम जानते हो - यह मुक्तिधाम आत्माओं का घर है।
जैसे यहाँ घर होते हैं।
भक्ति मार्ग में जो बहुत धनवान होते हैं, तो कितने ऊंचे मन्दिर बनाते हैं...
शिव का मन्दिर देखो कैसे बनाया हुआ है।
लक्ष्मी-नारायण का भी मन्दिर बनाते हैं तो सच्चे जेवर आदि कितने होते हैं।
बहुत धन रहता है।
अभी तो झूठ हो गया है।
तुम भी आगे कितने सच्चे जेवर पहनते थे।
अभी तो गवर्मेन्ट के डर से सच्चा छिपाए झूठ पहनते रहते हैं।
वहाँ तो है सच ही सच। झूठा कुछ भी होता नहीं...
यहाँ सच्चा होते भी छिपाकर रख देते हैं।
दिन-प्रतिदिन सोना महंगा होता रहता है।
वहाँ तो है ही स्वर्ग।
तुमको सब कुछ नया मिलेगा।
नई दुनिया में सब कुछ नया, अकीचार (अथाह) धन था।
अभी तो देखो हर एक चीज़ कितनी मंहगी हो गई है।
अभी तुम बच्चों को मूलवतन से लेकर सब राज़ समझाया है...
मूलवतन का राज़ बाप बिगर कौन समझायेंगे।
तुमको भी फिर टीचर बनना है।
गृहस्थ व्यवहार में भी भल रहो।
कमल फूल समान पवित्र रहो।
औरों को भी आप समान बनायेंगे तो बहुत ऊंच पद पा सकते हैं।
यहाँ रहने वालों से भी वह ऊंच पद पा सकते हैं।
नम्बरवार तो हैं ही, बाहर में रहते हुए भी विजय माला में पिरो सकते हैं।
हफ्ते का कोर्स ले फिर भल विलायत में जायें वा कहाँ भी जायें।
सारी दुनिया को भी मैसेज मिलना है।
बाप आये हैं, सिर्फ कहते हैं मामेकम् याद करो।
वह बाप ही लिबरेटर है, गाइड है।
वहाँ तुम जायेंगे तो अखबार में भी बहुत नाम हो जायेगा।
दूसरों को भी यह बहुत सहज बात लगेगी - आत्मा और शरीर दो चीज़ हैं।
आत्मा में ही मन-बुद्धि है, शरीर तो जड़ है।
पार्टधारी आत्मा बनती है।
खूबी वाली चीज़ आत्मा है तो अब बाप को याद करना है।
यहाँ रहने वाले इतना याद नहीं करते हैं, जितना बाहर वाले करते हैं।
जो बहुत याद करते हैं और आप समान बनाते रहते हैं, कांटों को फूल बनाते रहते हैं, वह ऊंच पद पाते हैं।
तुम समझते हो पहले हम भी कांटे थे।
अब बाप ने आर्डीनेन्स निकाला है - काम महाशत्रु है, इन पर जीत पाने से तुम जगतजीत बन जायेंगे।
परन्तु लिखत से कोई समझते थोड़ेही हैं।
अभी बाप ने समझाया है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों का नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सदा ज्ञान रत्न चुगने वाला हंस बनना है, मोती ही चुगने हैं।
किचड़ा छोड़ देना है।
हर कदम में पद्मों की कमाई जमा कर पद्मापद्म भाग्यशाली बनना है।
2) ऊंच पद पाने के लिए टीचर बनकर बहुतों की सेवा करनी है।
कमल फूल समान पवित्र रह आपसमान बनाना है।
कांटों को फूल बनाना है।
वरदान:-
सहज योग की साधना द्वारा
साधनों पर विजय प्राप्त करने वाले
प्रयोगी आत्मा भव
साधनों के होते, साधनों को प्रयोग में लाते योग की स्थिति डगमग न हो।
योगी बन प्रयोग करना इसको कहते हैं न्यारा।
होते हुए निमित्त मात्र, अनासक्त रूप से प्रयोग करो।
अगर इच्छा होगी तो वह इच्छा अच्छा बनने नहीं देगी।
मेहनत करने में ही समय बीत जायेगा।
उस समय आप साधना में रहने का प्रयत्न करेंगे और साधन अपनी तरफ आकर्षित करेंगे इसलिए प्रयोगी आत्मा बन सहजयोग की साधना द्वारा साधनों के ऊपर अर्थात् प्रकृति पर विजयी बनो।
स्लोगन:-
मेरे पन के अनेक रिश्तों को समाप्त करना ही फरिश्ता बनना है।