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20-09-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

मीठे बच्चे - "तुम्हें यहाँ प्रवृत्ति मार्ग का लव मिलता है क्योंकि...

बाप दिल से कहते हैं - मेरे बच्चे, बाप से वर्सा मिलता है, यह लव देहधारी गुरू नहीं दे सकते''

प्रश्नः-

जिन बच्चों की बुद्धि में ज्ञान की धारणा है, शुरूड बुद्धि हैं - उनकी निशानी क्या होगी?

उत्तर:-

उन्हें दूसरों को सुनाने का शौक होगा।

उनकी बुद्धि मित्र-सम्बन्धियों आदि में भटकेगी नहीं।

शुरूड बुद्धि जो होते हैं, वह पढ़ाई में कभी उबासी आदि नहीं लेंगे।

स्कूल में कभी आंखें बन्द करके नहीं बैठेंगे।

जो बच्चे तवाई होकर बैठते, जिनकी बुद्धि इधर-उधर भटकती रहती, वह ज्ञान को समझते ही नहीं, उनके लिए बाप को याद करना बड़ा मुश्किल है।

ओम् शान्ति।

यह है बाप और बच्चों का मेला। गुरू और चेले अथवा शिष्यों का मेला नहीं है...

इन गुरू लोगों की दृष्टि रहती है कि यह हमारे शिष्य हैं अथवा फालोअर्स वा जिज्ञासू हैं।

हल्की दृष्टि हो गई ना।

वह उस दृष्टि से ही देखेंगे।

आत्मा को नहीं।

वह देखते हैं शरीरों को और वह चेले भी देह-अभिमानी होकर बैठते हैं।

उनको अपना गुरू समझते हैं, दृष्टि ही वह रहती है कि हमारा गुरू है।

गुरू के लिए रिगार्ड रखते हैं।

यहाँ तो बहुत फर्क है, यहाँ बाप ही बच्चों का रिगार्ड रखते हैं।

जानते हैं इन बच्चों को पढ़ाना है।

यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है।

बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी बच्चों को समझानी है।

उन गुरूओं की दिल में बच्चे का लॅव नहीं होगा।

बाप के पास तो बच्चों का बहुत लॅव रहता है और बच्चों का भी बाप पर लॅव रहता है।

तुम जानते हो बाबा तो हमको सृष्टि चक्र का ज्ञान सुनाते हैं।

वह क्या सिखाते हैं?

आधाकल्प शास्त्र आदि सुनाते, भक्ति के कर्मकाण्ड करते, गायंत्री, संध्या आदि सिखाते रहते हैं।

यह तो बाप आया हुआ है अपना परिचय दे रहे हैं। हम बाप को बिल्कुल नहीं जानते थे...

सर्वव्यापी ही कह देते थे।

कभी भी पूछो परमात्मा कहाँ है तो झट कहेंगे वह तो सर्वव्यापी है।

तुम्हारे पास मनुष्य जब आते हैं तो पूछते हैं यहाँ क्या सिखाया जाता है?

बोलो, हम राजयोग सिखाते हैं, जिससे तुम मनुष्य से देवता अर्थात् राजा बन सकते हो और कोई सतसंग ऐसा नहीं होगा जो कहे हम मनुष्य से देवता बनने की शिक्षा देते हैं।

देवतायें होते हैं सतयुग में।

कलियुग में हैं मनुष्य।

अब हम तुमको सारे सृष्टि चक्र का राज़ समझाते हैं, जिससे तुम चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे और फिर तुमको पावन बनने की बहुत अच्छी युक्ति बताते हैं।

ऐसी युक्ति कभी कोई समझा न सके।

यह है सहज राजयोग।

बाप है पतित-पावन।

वह सर्वशक्तिमान भी है तो उनको याद करने से ही पाप भस्म होंगे क्योंकि योग अग्नि है ना।

तो यहाँ नई बात सिखलाते हैं।

यह ज्ञान मार्ग है। ज्ञान सागर एक ही बाप होता है...

ज्ञान और भक्ति अलग-अलग है।

ज्ञान सिखाने लिए बाप को आना पड़ता है क्योंकि वही ज्ञान का सागर है।

वह खुद आकर अपना परिचय देते हैं कि मैं सबका बाप हूँ।

ब्रह्मा द्वारा सारी सृष्टि को पावन बनाता हूँ।

पावन दुनिया है सतयुग। पतित दुनिया है कलियुग...

तो सतयुग आदि, कलियुग अन्त का यह है संगमयुग।

इनको लीप युग कहा जाता है।

इसमें हम जम्प मारते हैं। कहाँ?

पुरानी दुनिया से नई दुनिया में जम्प मारते हैं।

वह तो सीढ़ी से आहिस्ते-आहिस्ते नीचे उतरते आये।

यहाँ तो हम छी-छी दुनिया से नई दुनिया में एकदम जम्प मारते हैं।

सीधा चले जाते हैं ऊपर।

पुरानी दुनिया को छोड़ हम नई दुनिया में जाते हैं...

यह है बेहद की बात।

बेहद की पुरानी दुनिया में ढेर मनुष्य हैं।

नई दुनिया में तो बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं जिसको स्वर्ग कहा जाता है।

वहाँ सब पवित्र रहते हैं।

कलियुग में हैं सब अपवित्र।

अपवित्र रावण बनाते हैं।

यह तो सबको समझाते हैं कि तुम अब रावण राज्य अथवा पुरानी दुनिया में हो।

असल में रामराज्य में थे जिसको स्वर्ग कहा जाता था।

फिर कैसे 84 का चक्र लगाकर नीचे गिरे हो, सो तो हम बता सकते हैं।

जो अच्छे समझदार होंगे वह झट समझेंगे, जिसको बुद्धि में नहीं आयेगा वह तो तवाई के मिसल इधर-उधर देखते रहेंगे।

अटेन्शन से सुनेंगे नहीं।

कहते हैं ना तुम तो जैसे तवाई हो।

सन्यासी लोग भी जब कथा बैठ सुनाते हैं तो कोई झुटका खाते हैं या अटेन्शन और तरफ रहता है तो अचानक उनसे पूछते हैं क्या सुनाया?

बाप भी सबको देखते रहते हैं।

कोई तवाई तो नहीं बैठे हैं।

अच्छे शुरूड बच्चे जो होते हैं वह पढ़ाई में कभी उबासी आदि नही लेंगे...

स्कूल में कभी कोई आंखे बन्द करके बैठें यह तो कायदा नहीं।

कुछ भी ज्ञान को समझते नहीं।

बाप को याद करना, उन्हों के लिए बड़ा मुश्किल है, फिर पाप कैसे कटें।

शुरूड बुद्धि तो अच्छी रीति से धारण कर औरों को सुनाने का शौक रखते हैं।

ज्ञान नहीं है तो बुद्धि मित्र-सम्बन्धियों के तरफ भटकती रहती है।

यहाँ तो बाप कहते हैं और सब कुछ भूल जाना है।

पिछाड़ी में कुछ भी याद न आये। बाबा ने सन्यासियों आदि को देखा हुआ है जो पक्के ब्रह्म ज्ञानी होते हैं, सवेरे ऐसे बैठे-बैठे ब्रह्म महतत्व को याद करते-करते शरीर छोड़ देते हैं।

उनके शान्ति का प्रवाह बहुत होता है।

अब वह ब्रह्म में लीन तो हो न सकें।

फिर भी माता के गर्भ से जन्म लेना पड़ता है।

बाप ने समझाया है वास्तव में महात्मा तो कृष्ण को कहा जाता है।

मनुष्य तो बिगर अर्थ समझे ऐसे ही कह देते हैं।

बाप समझाते हैं श्रीकृष्ण है सम्पूर्ण निर्विकारी, परन्तु उनको सन्यासी नहीं, देवता कहा जाता है।

सन्यासी कहना वा देवता कहना उनका भी अर्थ है।

यह देवता कैसे बना?

सन्यासी से देवता बना।

बेहद का सन्यास किया फिर चले गये नई दुनिया में।

वह तो हद का सन्यास करते हैं।

बेहद में जा न सकें।

हद में ही पुनर्जन्म लेना पड़े, विकार से।

बेहद का मालिक बन न सकें।

राजा-रानी कभी बन न सकें क्योंकि उन्हों का धर्म ही अलग है।

सन्यास धर्म देवी-देवता धर्म नहीं है।

बाप कहते हैं मैं अधर्म विनाश कर देवी-देवता धर्म की स्थापना करता हूँ।

विकार भी अधर्म है ना, इसलिए बाप कहते हैं इन सबका विनाश और एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करने मुझे आना पड़ता है।

भारत में जब सतयुग था तो एक ही धर्म था, वही धर्म फिर अधर्म बनता है।

अब तुम फिर से आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन कर रहे हो।

जो जितना पुरूषार्थ करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।

अपने को आत्मा निश्चय करना है।

भल गृहस्थ व्यवहार में रहो।

उसमें भी जितना हो सके उठते-बैठते यह पक्का करो, जैसे भक्त लोग सवेरे उठकर एकान्त में बैठ माला जपते हैं, तुम तो सारे दिन का हिसाब निकालते हो।

फलाने समय इतनी याद रही, सारे दिन में इतना समय याद रही, टोटल निकालते हो।

वह तो सवेरे उठकर माला फेरते हैं, भल कोई सच्चे भक्त नही होते हैं।

कईयों की बुद्धि तो बाहर कहाँ-कहाँ भटकती रहती है।

अभी तुम समझते हो भक्ति से फायदा कुछ भी नहीं मिलना है।

यह तो है ज्ञान, जिससे बहुत फायदा होता है।

अभी तुम्हारी है चढ़ती कला।

बाप घड़ी-घड़ी कहते मनमनाभव...

गीता में भी अक्षर हैं परन्तु उसका अर्थ कोई भी सुना नहीं सकेंगे।

जवाब देने आयेगा नहीं।

वास्तव में उसका अर्थ लिखा हुआ भी है अपने को आत्मा समझ, देह के सब धर्म छोड़ मामेकम् याद करो।

भगवानुवाच है ना। परन्तु उनकी बुद्धि में है कृष्ण भगवान।

वह तो देहधारी पुनर्जन्म में आने वाला है ना।

उनको भगवान कैसे कह सकते हैं।

तो सन्यासी आदि किसी की भी दृष्टि बाप और बच्चों की नहीं हो सकती है।

भल गांधी जी को बापू जी कहते थे परन्तु बाप-बच्चे का सम्बन्ध नहीं कहेंगे।

वह तो फिर भी साकार हो गया ना।

तुमको तो समझाया है अपने को आत्मा समझो। इसमें जो बाप बैठा है वह है बेहद का बापू जी...

लौकिक और पारलौकिक दोनों बाप से वर्सा मिलता है।

बापू जी से तो कुछ भी नहीं मिला।

अच्छा, भारत की राजधानी वापस मिली परन्तु यह वर्सा तो नहीं कहेंगे।

सुख मिलना चाहिए ना।

वर्से होते ही हैं दो - एक हद के बाप का, दूसरा बेहद के बाप का...

ब्रह्मा से भी कोई वर्सा नहीं मिलता है।

भल सारी प्रजा का वह पिता है, उनको कहते हैं ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर।

वह खुद कहते हैं मेरे से तुमको कुछ भी वर्सा नहीं मिलता, जबकि यह खुद कहते हैं मेरे से वर्सा नहीं मिल सकता, तो उस बापू जी से फिर क्या वर्सा मिल सकेगा।

कुछ भी नहीं।

अंग्रेज तो चले गये। अभी क्या है? भूख हड़ताल, पिकेटिंग, स्ट्राइक आदि होती रहती, कितनी मारामारी होती रहती है...

कोई का डर नहीं है।

बड़े-बड़े आफीसर्स को भी मार देते हैं।

सुख के बजाए और दु:ख है।

तो बेहद की बात यहाँ ही है।

बाप कहते हैं पहले-पहले तो यह पक्का निश्चय करो कि हम आत्मा हैं, शरीर नहीं

बाप ने हमको एडाप्ट किया है, हम एडाप्टेड बच्चे हैं।

तुमको समझाया जाता है बाप ज्ञान का सागर आया है और सृष्टि चक्र का राज़ समझाते हैं।

दूसरा कोई समझा न सके।

बाप कहते हैं देह सहित देह के सब धर्मो को भूल, मामेकम् याद करो।

सतोप्रधान जरूर बनना पड़ेगा।

यह भी जानते हो पुरानी दुनिया का विनाश तो होना ही है।

नई दुनिया में बहुत थोड़े होते हैं।

कहाँ इतनी करोड़ों आत्मायें और कहाँ 9 लाख।

इतने सब कहाँ जायेंगे?

अब तुम्हारी बुद्धि में है कि हम सब आत्मायें ऊपर में थी...

फिर यहाँ आई है पार्ट बजाने।

आत्मा को ही एक्टर कहेंगे।

आत्मा एक्ट करती है इस शरीर के साथ।

आत्मा को आरगन्स तो चाहिए ना।

आत्मा कितनी छोटी है।

84 लाख जन्म हैं नहीं।

हर एक अगर 84 लाख जन्म ले फिर पार्ट रिपीट कैसे करेंगे।

याद नहीं रह सकता।

स्मृति से बाहर चला जाए।

84 जन्म भी तुमको याद नहीं रहते, भूल जाते हो।

अब तुम बच्चों को बाप को याद कर पवित्र जरूर बनना है...

इस योग अग्नि से विकर्म विनाश होंगे।

यह भी निश्चय है - बेहद के बाप से बेहद का वर्सा हम कल्प-कल्प लेते हैं।

अब फिर स्वर्गवासी बनने के लिए बाप ने कहा है कि मामेकम् याद करो क्योंकि मैं ही पतित-पावन हूँ।

तुमने बाप को पुकारा है ना, तो अब बाप आये हैं पावन बनाने।

पावन होते हैं देवता, पतित होते हैं मनुष्य।

पावन बनकर फिर शान्तिधाम में जाना है।

तुम शान्तिधाम जाना चाहते हो या सुखधाम आना चाहते हो?

सन्यासी तो कहते हैं सुख काग विष्टा के समान है, हमको शान्ति चाहिए...

तो वह सतयुग में कभी आ नहीं सकेंगे।

सतयुग में था प्रवृत्ति मार्ग का धर्म।

देवतायें निर्विकारी थे वही पुनर्जन्म लेते-लेते पतित बनते हैं।

अब बाप कहते हैं निर्विकारी बनना है।

स्वर्ग में चलना है तो मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप कट जायें, पुण्य आत्मा बन जायेंगे फिर शान्तिधाम-सुखधाम में जायेंगे...

वहाँ शान्ति भी थी, सुख भी था।

अभी है दु:खधाम।

फिर बाप आकर सुखधाम की स्थापना करते हैं, दु:खधाम का विनाश।

चित्र भी सामने हैं।

बोलो, अभी तुम कहाँ खड़े हो?

अभी है कलियुग का अन्त, विनाश सामने खड़ा है।

बाकी जाकर थोड़ा टुकड़ा रहेगा।

इतने खण्ड तो वहाँ होते नहीं।

यह सब वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी बाप ही बैठ समझाते हैं...

यह पाठशाला है।

भगवानुवाच, पहले-पहले बाप का परिचय देना पड़ता है।

अभी कलियुग है फिर सतयुग में जाना है।

वहाँ तो सुख ही सुख होता है।

एक को याद करना - वह है अव्यभिचारी याद...

शरीर को भी भूल जाना है।

शान्तिधाम से आये हैं फिर शान्तिधाम में जाना है।

वहाँ पतित कोई जा न सके।

बाप को याद करते-करते पावन बन तुम मुक्तिधाम में चले जायेंगे।

यह अच्छी रीति बैठ समझाना पड़ता है।

आगे इतने सब चित्र थोड़ेही थे...

बिगर चित्र भी नटशेल में समझाया जाता था।

इस पाठशाला में मनुष्य से देवता बन जाना है।

यह है नई दुनिया के लिए नॉलेज।

वह बाप ही देंगे ना।

तो बाप की दृष्टि रहती है बच्चों पर।

हम आत्माओं को पढ़ाते हैं।

तुम भी समझाते हो बेहद का बाप हमको समझाते हैं, उनका नाम है शिवबाबा...

सिर्फ बेहद का बाबा कहने से भी मूँझ जायेंगे क्योंकि बाबायें भी बहुत हो गये हैं।

म्युनिसपाल्टी के मेयर को भी कहते हैं बाबा।

बाप कहते हैं मैं इसमें आता हूँ तो भी मेरा नाम शिव ही है।

मैं इस रथ द्वारा तुमको नॉलेज देता हूँ, इनको एडाप्ट किया है।

इनका नाम रखा है प्रजापिता ब्रह्मा।

इनको भी मेरे से वर्सा मिलता है।

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) अभी पुरानी दुनिया से नई दुनिया में जम्प देने का समय है इसलिए इस पुरानी दुनिया से बेहद का सन्यास करना है।

इसे बुद्धि से भूल जाना है।

2) पढ़ाई पर पूरा अटेन्शन देना है।

स्कूल में आंखे बन्द करके बैठना - यह कायदा नहीं है।

ध्यान रहे - पढ़ाई के समय बुद्धि, इधर-उधर न भटके, उबासी न आये।

जो सुनते जाएं वह धारण होता जाए।

वरदान:-

समय प्रमाण

स्वयं को चेक कर चेन्ज करने वाले

सदा विजयी श्रेष्ठ आत्मा भव

जो सच्चे राजयोगी हैं वह कभी किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं हो सकते।

तो अपने को समय प्रमाण इसी रीति से चेक करो और चेक करने के बाद चेंज कर लो।

सिर्फ चेक करेंगे तो दिलशिकस्त हो जायेंगे।

सोचेंगे कि हमारे में यह भी कमी है, पता नहीं ठीक होगा या नहीं इसलिए चेक करो और चेंज करो क्योंकि समय प्रमाण कर्तव्य करने वालों की सदा विजय होती है इसलिए सदा विजयी श्रेष्ठ आत्मा बन तीव्र पुरुषार्थ द्वारा नम्बरवन में आ जाओ।

स्लोगन:-

मन-बुद्धि को कन्ट्रोल करने का अभ्यास हो

तब सेकण्ड में विदेही बन सकेंगे।