आज चारों ओर के राज्य अधिकारी बच्चों की राज्य दरबार देख रहे हैं...
चारों ओर सिकीलधे, स्नेही बेहद के सेवाधारी अनन्य बच्चे हैं।
ऐसे बच्चे अभी भी स्वराज्य अधिकारी राज्य दरबार में उपस्थित हैं।
बापदादा ऐसे योग्य बच्चों को, सदा के योगी बच्चों को अति निर्माण, ऊंच स्वमान ऐसे बच्चों को देख हर्षित होते हैं।
स्वराज्य दरबार सारे कल्प में अलौकिक, सर्व दरबार से न्यारी और अति प्यारी है।
हर एक स्वराज्य अधिकारी विश्व के राज्य के फाउण्डेशन नये विश्व के निर्माता हैं।
हर एक स्वराज्य अधिकारी चमकते हुए दिव्य तिलकधारी सर्व विशेषताओं के चमकते हुए अमूल्य मणियों से सजे हुए ताजधारी हैं।
सर्व दिव्य गुणों की माला धारण किये हुए सम्पूर्ण पवित्रता की लाइट का ताज धारण किया हुआ, श्रेष्ठ स्थिति के स्व सिंहासन पर उपस्थित हैं।
ऐसे सजे सजाये हुए राज्य अधिकारी दरबार में उपस्थित हैं।
ऐसी राज्य दरबार बापदादा के सामने उपस्थित है।
हर एक स्वराज्य अधिकारी के आगे कितने दास दासियाँ हैं?
प्रकृति जीत और विकारों जीत। विकार भी 5 हैं, प्रकृति के तत्व भी 5 हैं।
तो प्रकृति ही दासी बन गई है ना।
दुश्मन सेवाधारी बन गये हैं।
ऐसे रूहानी फखुर में रहने वाले विकारों को भी परिवर्तित कर काम विकार को शुभ कामना, श्रेष्ठ कामना के स्वरूप में बदल सेवा में लगाने वाले, ऐसे दुश्मन को सेवाधारी बनाने वाले, प्रकृति के किसी भी तत्व की तरफ वशीभूत नहीं होते हैं।
लेकिन हर तत्व को तमोगुणी रूप से सतोप्रधान स्वरूप बना लेते हैं।
कलियुग में यह तत्व धोखा और दु:ख देते हैं।
संगमयुग में परिवर्तन होते हैं।
रूप बदलते हैं।
सतयुग में यह 5 तत्व देवताओं के सुख के साधन बन जाते हैं।
यह सूर्य आपका भोजन तैयार करेगा तो भण्डारी बन जायेगा ना।
यह वायु आपका नैचुरल पंखा बन जायेगी।
आपके मनोरंजन का साधन बन जायेगी।
वायु लगेगी वृक्ष हिलेंगे और वह टाल टालियाँ ऐसे झूलेंगी, जो उन्हों के हिलने से भिन्न-भिन्न साज़ स्वत: ही बजते रहेंगे।
तो मनोरंजन का साधन बन गया ना।
यह आकाश आप सबके लिए राज्य पथ बन जायेगा।
विमान कहाँ चलायेंगे?
यह आकाश ही आपका पथ बन जायेगा।
इतना बड़ा हाईवे और कहाँ पर है? विदेश में है?
कितने भी माइल बनावें लेकिन आकाश के पथ से तो छोटे ही हैं ना।
इतना बड़ा रास्ता कोई है? अमेरिका में है?
और बिना एक्सीडेंट के रास्ता होगा।
चाहे 8 वर्ष का बच्चा भी चलावे तो भी गिरेंगे नहीं। तो समझा!
यह जल इत्र-फुलेल का कार्य करेगा।
जैसे जड़ी-बूटियों के कारण गंगा जल अभी भी और जल से पवित्र है।
ऐसे खुशबूदार जड़ी-बूटियाँ होने के कारण जल में नैचुरल खुशबू होगी।
जैसे यहाँ दूध शक्ति देता है ऐसे वहाँ का जल ही शक्तिशाली होगा, स्वच्छ होगा इसलिए कहते हैं दूध की नदियाँ बहती हैं।
सब अभी से खुश हो गये हैं ना!
ऐसे ही यह पृथ्वी ऐसे श्रेष्ठ फल देगी जो जिस भी भिन्न-भिन्न टेस्ट के चाहते हैं उस टेस्ट का फल आपके आगे हाजिर होगा।
यह नमक नहीं होगा, चीनी भी नहीं होगी।
जैसे अभी खटाई के लिए टमाटर है, तो बना बनाया है ना।
खटाई आ जाती है ना।
ऐसे जो आपको टेस्ट चाहिए उसके फल होंगे।
रस डालो और वह टेस्ट हो जायेगी।
तो यह पृथ्वी एक तो श्रेष्ठ फल श्रेष्ठ अन्न देने की सेवा करेगी।
दूसरा नैचुरल सीन सीनरियाँ जिसको कुदरत कहते हैं तो नैचुरल नजारे, पहाड़ भी होंगे।
ऐसे सीधे पहाड़ नहीं होंगे।
नैचुरल बियुटी भिन्न-भिन्न रूप के पहाड़ होंगे।
कोई पंछी के रूप में कोई पुष्पों के रूप में।
ऐसे नैचुरल बनावट होगी।
सिर्फ निमित्त मात्र थोड़ा-सा हाथ लगाना पड़ेगा।
ऐसे यह 5 तत्व सेवाधारी बन जायेंगे।
लेकिन किसके बनेंगे?
स्वराज्य अधिकारी आत्माओं के सेवाधारी बनेंगे।
तो अभी अपने को देखो 5 ही विकार दुश्मन से बदल सेवाधारी बने हैं?
तब ही स्वराज्य अधिकारी कहलायेंगे।
क्रोध अग्नि योग अग्नि में बदल जाए।
ऐसे लोभ विकार, लोभ अर्थात् चाहना।
हद की चाहना बदल शुभ चाहना हो जाए कि मैं सदा हर संकल्प से, बोल से, कर्म से निरस्वार्थ बेहद सेवाधारी बन जाऊं।
मैं बाप समान बन जाऊं-ऐसे शुभ चाहना अर्थात् लोभ का परिवर्तन स्वरूप।
दुश्मन के बजाए सेवा के कार्य में लगाओ।
मोह तो सभी को बहुत है ना।
बापदादा में तो मोह है ना।
एक सेकेण्ड भी दूर न हो- यह मोह हुआ ना!
लेकिन यह मोह सेवा कराता है।
जो भी आपके नयनों में देखे तो नयनों में समाये हुए बाप को देखे।
जो भी बोलेंगे मुख द्वारा बाप के अमूल्य बोल सुनायेंगे।
तो मोह विकार भी सेवा में लग गया ना।
बदल गया ना।
ऐसे ही अहंकार।
देह-अभिमान से देही-अभिमानी बन जाते।
शुभ अहंकार अर्थात् मैं आत्मा विशेष आत्मा बन गई।
पदमा पदम भाग्यशाली बन गई।
बेफिकर बादशाह बन गई।
यह शुभ अहंकार अर्थात् ईश्वरीय नशा सेवा के निमित्त बन जाता है।
तो ऐसे पाँचों ही विकार बदल सेवा का साधन बन जाऍ तो दुश्मन से सेवाधारी हो गये ना!
तो ऐसे चेक करो मायाजीत प्रकृति जीत कहाँ तक बने हैं?
राजा तब बनेंगे जब पहले दास-दासियाँ तैयार हों...
जो स्वयं दास के अधीन होगा वह राज्य अधिकारी कैसे बनेगा!
आज भारत के बच्चों के मेले का प्रोग्राम प्रमाण लास्ट दिन है।
तो मेले की अन्तिम टुब्बी है।
इसका महत्व होता है।
इस महत्व के दिन जैसे उस मेले में जाते हैं तो समझते हैं-जो भी पाप हैं वह भस्म करके खत्म करके जाते हैं।
तो सबको 5 विकारों को सदा के लिए समाप्त करने का संकल्प करना, यही अन्तिम टुब्बी का महत्व है।
तो सभी ने परिवर्तन करने का दृढ़ संकल्प किया?
छोड़ना नहीं है लेकिन बदलना है...
अगर दुश्मन आपका सेवाधारी बन जाए तो दुश्मन पसन्द है या सेवाधारी पसन्द है?
तो आज के दिन चेक करो और चेन्ज करो तब है मिलन मेले का महत्व।
समझा क्या करना है?
ऐसे नहीं सोचना चार तो ठीक हैं बाकी एक चल जायेगा।
लेकिन एक चार को भी वापस ले आयेगा।
इन्हों का भी आपस में साथ है इसलिए रावण के शीश साथ-साथ दिखाते हैं...
तो दशहरा मना के जाना है।
5 प्रकृति के तत्व जीत और 5 विकार जीत, 10 हो गये ना।
तो विजय दशमी मनाके जाना।
खत्म कर जलाकर राख साथ नहीं ले जाना।
राख भी ले जायेंगे तो फिर से आ जायेंगे।
भूत बनकर आ जायेंगे इसलिए वह भी ज्ञान सागर में समाप्त करके जाना।
अच्छा-
ऐसे सदा स्वराज्य अधिकारी,
अलौकिक तिलकधारी,
ताजधारी प्रकृति को दासी बनाने वाले,
5 दुश्मनों को सेवाधारी बनाने वाले,
सदा बेफिकर बादशाह रूहानी फखुर में रहने वाले बादशाह ऐसे बाप समान सदा के विजयी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
कुमारियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
1)
सभी अपने को श्रेष्ठ कुमारियाँ अनुभव करती हो?
साधारण कुमारियाँ या तो नौकरी की टोकरी उठाती या तो दासी बन जाती हैं।
लेकिन श्रेष्ठ कुमारियाँ विश्व कल्याणकारी बन जाती हैं।
ऐसी श्रेष्ठ कुमारियाँ हो ना।
जीवन का श्रेष्ठ लक्ष्य क्या है?
संगदोष या संबंध के बंधन से मुक्त होना यही लक्ष्य है ना।
बन्धन में बंधने वाली नहीं।
क्या करें बंधन है, क्या करें नौकरी करनी है इसको कहा जाता है बंधन वाली।
तो न संबंध का बंधन, न नौकरी टोकरी का बंधन।
दोनों बंधन से न्यारे वही बाप के प्यारे बनते हैं।
ऐसी निर्बन्धन हो?
दोनों ही जीवन सामने हैं।
साधारण कुमारियों का भविष्य और विशेष कुमारियों का भविष्य दोनों सामने हैं।
तो दोनों को देख स्वयं ही जज कर सकती हो।
जैसे कहेंगे वैसे करेंगे यह नहीं।
अपना फैंसला स्वयं जज होकर करो।
श्रीमत तो है विश्व कल्याणकारी बनो।
वह तो ठीक लेकिन श्रीमत के साथ-साथ अपने मन के उमंग से जो आगे बढ़ते हैं वह सदा सहज आगे बढ़ते हैं।
अगर कोई के कहने से या थोड़ा-सा शर्म के कारण दूसरे क्या कहेंगे, नहीं बनूँगी तो सब मुझे ऐसे देखेंगे कि यह कमजोर है।
ऐसे अगर कोई के फोर्स से बनते भी हैं तो परीक्षाओं को पास करने में मेहनत लगती है।
और स्व के उमंग वालों को कितनी भी बड़ी परिस्थिति हो वह सहज अनुभव होती है क्योंकि मन का उमंग है ना।
अपना उमंग-उत्साह पंख बन जाते हैं।
कितना भी पहाड़ हो लेकिन उड़ने वाला पंछी सहज पार कर लेगा और चलने वाला या चढ़ने वाला कितनी मुश्किल से कितने समय में पार करेंगे।
तो यह मन का उमंग पंख हैं, इन पंखों से उड़ने वाले को सदा सहज होता है। समझा।
तो श्रेष्ठ मत है विश्व कल्याणकारी बनो लेकिन फिर भी स्वयं अपना जज बनकर अपनी जीवन का फैंसला करो।
बाप ने तो फैंसला दे ही दिया है, वह नई बात नहीं हैं।
अभी अपना फैंसला करो तो सदा सफल रहेंगी।
समझदार वह जो सोच-समझकर हर कदम उठाये।
सोचते ही न रहें लेकिन सोचा-समझा और किया, इसको कहते हैं समझदार।
संगमयुग पर कुमारी बनना यह पहला भाग्य है।
यह भाग्य तो ड्रामा अनुसार मिला हुआ है।
अभी भाग्य में भाग्य बनाते जाओ।
इसी भाग्य को कार्य में लगाया तो भाग्य बढ़ता जायेगा।
और इसी पहले भाग्य को गंवाया तो सदा के सर्व भाग्य को गंवाया इसलिए भाग्यवान हो।
भाग्यवान बन अभी और सेवाधारी का भाग्य बनाओ। समझा!
सेवाधारी (टीचर्स) बहिनों से:-
सेवाधारी अर्थात् सदा सेवा की मौज में रहने वाले।
सदा स्वयं को मौजों की जीवन में अनुभव करने वाले।
सेवाधारी जीवन माना मौजों की जीवन।
तो ऐसे सदा याद और सेवा की मौज में रहने वाले हो ना!
याद की भी मौज है और सेवा की भी मौज है।
जीवन भी मौज की और युग भी मौजों का।
जो सदा मौज में रहने वाले हैं उसको देख और भी अपने जीवन में मौज का अनुभव करते हैं।
कितने भी कोई मूँझे हुए आवें लेकिन जो स्वयं मौज में रहते वह दूसरों को भी मूंझ से छुड़ाए मौज में ले आयेंगे।
ऐसे सेवाधारी जो मौज में रहते वह सदा तन-मन से तन्दरूस्त रहते हैं।
मौज में रहने वाले सदा उड़ते रहते क्योंकि खुशी रहती है।
वैसे भी कहा जाता यह तो खुशी में नाचता रहता है।
चल रहा है, नहीं। नाच रहा है।
नाचना माना ऊंचा उठना।
ऊंचे पाँव होंगे तब नाचेंगे ना!
तो मौजों में रहने वाले अर्थात् खुशी में रहने वाले।
सेवाधारी बनना अर्थात् वरदाता से विशेष वरदान लेना।
सेवाधारी को विशेष वरदान है, एक अपना अटेन्शन दूसरा वरदान, डबल लिफ्ट है।
सेवाधारी बनना अर्थात् सदा मुक्त आत्मा बनना, जीवनमुक्त अनुभव करना।
2.
सदा सेवाधारी सफलता स्वरूप हो?
सफलता जन्म सिद्ध अधिकार है।
अधिकार सदा सहज मिलता है।
मेहनत नहीं लगती।
तो अधिकार के रूप में सफलता अनुभव करने वाले हो।
सफलता हुई पड़ी है यह निश्चय और नशा रहे।
सफलता होगी या नहीं ऐसा संकल्प तो नहीं चलता है?
जब अधिकार है तो अधिकारी को अधिकार न मिले यह हो नहीं सकता।
निश्चय है तो विजय हुई पड़ी है।
सेवाधारी की यही परिभाषा है।
जो परिभाषा है वही प्रैक्टिकल है।
सेवाधारी अर्थात् सहज सफलता का अनुभव करने वाले।
विदाई के समय:- (सभी ने गीत गाया - अभी न जाओ छोड़ के...)
बापदादा जितना प्यार का सागर है, उतना न्यारा भी है। स्नेह के बोल बोले, यह तो संगमयुग की मौजें हैं।
मौज तो भले मनाओ, खाओ, पियो, नाचो लेकिन निरन्तर।
जैसे अभी स्नेह में समाये हुए हो ऐसे समाये रहो।
बापदादा हर बच्चे के दिल के गीत तो सुनते ही रहते हैं।
आज मुख के गीत सुन लिए।
बापदादा शब्द नहीं देखते, ट्यून नहीं देखते, दिल की आवाज सुनते हैं।
अभी तो सदा साथ हो चाहे साकार में चाहे अव्यक्त रूप में, सदा साथ हो।
अभी वियोग के दिन समाप्त हो गये।
अभी संगमयुग पूरा ही मिलन मेला है।
सिर्फ मेले में भिन्न-भिन्न नज़ारे बदलते हैं।
कभी व्यक्त, कभी अव्यक्त। अच्छा - गुडमॉर्निंग।
वरदान:-
आत्मिक शक्ति के आधार पर
तन की शक्ति का अनुभव करने वाले
सदा स्वस्थ भव
इस अलौकिक जीवन में आत्मा और प्रकृति दोनों की तन्दरूस्ती आवश्यक है।
जब आत्मा स्वस्थ है तो तन का हिसाब-किताब वा तन का रोग सूली से कांटा बनने के कारण, स्व-स्थिति के कारण स्वस्थ अनुभव करते हैं।
उनके मुख पर चेहरे पर बीमारी के कष्ट के चिन्ह नहीं रहते।
कर्मभोग के वर्णन के बदले कर्मयोग की स्थिति का वर्णन करते हैं।
वे परिवर्तन की शक्ति से कष्ट को सन्तुष्टता में परिवर्तन कर सन्तुष्ट रहते और सन्तुष्टता की लहर फैलाते हैं।
स्लोगन:-
दिल से, तन से, आपसी प्यार से सेवा करो तो सफलता निश्चित मिलेगी।