"मीठे बच्चे - योगबल से बुरे संस्कारों को परिवर्तन कर स्वयं में अच्छे संस्कार डालो।
ज्ञान और पवित्रता के संस्कार अच्छे संस्कार हैं''
प्रश्नः-
तुम बच्चों का बर्थ राइट कौन-सा है? तुम्हें अभी कौन-सी फीलिंग आती है?
उत्तर:-
तुम्हारा बर्थ राइट है मुक्ति और जीवनमुक्ति।
तुम्हें अब फीलिंग आती है कि हमें बाप के साथ वापिस घर जाना है।
तुम जानते हो - बाप आये हैं भक्ति का फल मुक्ति और जीवन मुक्ति देने।
अभी सबको शान्तिधाम जाना है।
सबको अपने घर का दीदार करना है।
ओम् शान्ति।
मनुष्य बाप को सच्चा पातशाह भी कहते हैं। अंग्रेजी में पातशाह नहीं कहते, उसमें सिर्फ सच्चा फादर कहते हैं...
गॉड फादर इज ट्रूथ कहते हैं।
भारत में ही कहते हैं सच्चा पातशाह।
अब फर्क तो बहुत है, वह सिर्फ सच कहते हैं, सच सिखलाते हैं, सच्चा बनाते हैं।
यहाँ कहते हैं सच्चा पातशाह।
सच्चा भी बनाते हैं और सचखण्ड का बादशाह भी बनाते हैं।
यह तो बरोबर है - मुक्ति भी देते, जीवनमुक्ति भी देते हैं, जिसको भक्ति का फल कहते हैं।
लिब्रेशन(libration) और फ्रुसन(fruition)।
भक्ति का फल देते हैं और लिबरेट करते हैं।
बच्चे जानते हैं हमको दोनों देते हैं।
लिबरेट (liberate) तो सबको करते हैं, फल तुमको देते हैं।
लिब्रेशन और फ्रुसन - यह भी भाषा बनाई हुई है ना।
भाषायें तो बहुत हैं।
शिवबाबा के भी नाम बहुत रख देते हैं...
कोई को कहो उनका नाम शिवबाबा है तो कह देते हम तो उनको मालिक ही कहते हैं।
मालिक तो ठीक है परन्तु उसका भी नाम चाहिए ना।
नाम-रूप से न्यारी कोई चीज़ होती नहीं।
मालिक भी कोई चीज़ का बनता है ना।
नाम-रूप तो जरूर है।
अभी तुम बच्चे जानते हो - बाप बरोबर लिबरेट भी करते हैं फिर शान्तिधाम में सबको जरूर जाना है।
अपने घर का दीदार सबको करना है...
घर से आये हैं तो पहले उनका दीदार करेंगे, उसको कहते हैं गति-सद्गति।
अक्षर कहते हैं परन्तु अर्थरहित।
तुम बच्चों को तो फीलिंग रहती है, हम अपने घर भी जायेंगे और फल भी मिलेगा।
नम्बरवार तुमको मिलता है तो और धर्म वालों को भी फिर समय अनुसार मिलता है।
बाप ने समझाया था यह पर्चा है बहुत अच्छा - तुम स्वर्गवासी हो या नर्कवासी हो?
तुम बच्चे ही जानते हो यह मुक्ति जीवनमुक्ति दोनों गॉड फादरली बर्थ राइट हैं।
तुम लिख भी सकते हो।
बाप से तुम बच्चों को यह बर्थ राइट मिलता है।
बाप का बनने से दोनों चीज़ें प्राप्त होती हैं।
वह है रावण का बर्थ राइट, यह है परमपिता परमात्मा का बर्थ राइट।
यह है भगवान का बर्थ राइट, वह है शैतान का बर्थ राइट।
ऐसे लिखना चाहिए जो कुछ समझ सकें।
अब तुम बच्चों को हेविन स्थापन करना है।
कितना काम करना है!
अभी तो जैसे बेबीज़ हैं, जैसे मनुष्य कलियुग के लिए कहते हैं कि अभी बेबी (बच्चा) है।
बाप कहते हैं सतयुग की स्थापना में बेबी हैं।
अभी तुम बच्चों को वर्सा मिल रहा है।
रावण का कोई वर्सा नहीं कहेंगे। गॉड फादर से तो वर्सा मिलता है...
वह कोई फादर थोड़ेही है, उसको (रावण 5 विकारों को) तो शैतान कहा जाता है। शैतान का वर्सा क्या मिलता है? 5 विकार मिलते हैं, शो भी ऐसा करते हैं, तमोप्रधान बन जाते हैं।
अब दशहरा कितना मनाते हैं, सेरीमनी मनाते हैं...
बहुत खर्चा करते हैं।
विलायत से भी निमंत्रण दे बुलाते हैं।
सबसे नामीग्रामी दशहरा मनाते हैं मैसूर का।
पैसे वाले भी बहुत हैं।
रावण राज्य में पैसा मिलता है तो अक्ल ही चट हो जाता है।
बाप डिटेल में समझाते हैं।
इनका नाम ही है रावण राज्य।
उसको फिर कहा जाता है ईश्वरीय राज्य।
राम राज्य कहना भी रांग हो जाता है। गांधी जी राम राज्य चाहते थे...
मनुष्य समझते हैं गांधी जी भी अवतार थे।
उनको कितने पैसे देते थे।
उनको भारत का बापू जी कहते थे।
अब यह तो सारे विश्व का बापू है।
अभी तुम यहाँ बैठे हो, जानते हो कितनी जीव आत्मायें होंगी...
जीव (शरीर) तो विनाशी हैं, बाकी आत्मा है अविनाशी।
आत्मायें तो ढेर हैं। जैसे ऊपर में सितारे रहते हैं ना।
सितारे जास्ती हैं या आत्मायें जास्ती हैं?
क्योंकि तुम हो धरती के सितारे और वह आसमान के सितारे।
तुमको देवता कहा जाता है वह फिर उनको भी देवता कह देते हैं।
तुमको लकी सितारा कहा जाता है ना।
अच्छा, इस पर फिर आपस में डिसकस करना।
बाबा अभी इस बात को नहीं छेड़ते हैं।
यह तो समझाया है कि सभी आत्माओं का एक बाप है, इनकी बुद्धि में तो सब है, जो भी मनुष्य मात्र हैं, सबका वह बाप है...
यह तो सब जानते हैं कि सारी सृष्टि समुद्र पर खड़ी है।
यह भी कोई सबको नहीं मालूम है।
बाप ने समझाया था यह रावण राज्य सारे सृष्टि पर है।
ऐसे नहीं, रावण राज्य कोई सागर के पार है।
सागर तो आलराउन्ड है ही।
कहते हैं ना - नीचे बैल है, उसके सींगों पर सृष्टि खड़ी है।
फिर जब थक जाता है तो सींग बदली करता है।
अभी पुरानी दुनिया खलास हो नई दुनिया की स्थापना होती है।
शास्त्रों में तो अनेक प्रकार की बातें दंत कथाओं में लिख दी हैं।
यह तो बच्चे समझते हैं - यहाँ सब आत्मायें शरीर के साथ हैं, इनको कहते हैं जीव आत्मायें...
वह जो आत्माओं का घर है वहाँ तो शरीर नहीं है।
उनको कहा जाता है निराकारी।
जीव आकारी है इसलिए साकार कहा जाता है।
निराकार को शरीर नहीं होता है।
यह है साकारी सृष्टि।
वह है निराकारी आत्माओं की दुनिया।
इसको सृष्टि कहेंगे, उसको कहा जाता है इनकारपोरियल वर्ल्ड।
आत्मा जब शरीर में आती है तब यह चुरपुर चलती है।
नहीं तो शरीर कोई काम का नहीं रहता है।
तो उनको कहा ही जाता है निराकारी दुनिया।
जितनी भी आत्मायें हैं वह सब पिछाड़ी में आनी चाहिए इसलिए इसको पुरुषोत्तम संगमयुग कहा जाता है...
सब आत्मायें जब यहाँ आ जाती हैं तो वहाँ फिर एक भी नहीं रहती हैं।
वहाँ जब एकदम खाली हो जाता है तब फिर सब वापस जाते हैं।
तुम यह संस्कार ले जाते हो नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार।
कोई नॉलेज के संस्कार ले जाते हैं, कोई प्योरिटी के संस्कार ले जाते हैं।
आना तो फिर भी यहाँ ही है।
परन्तु पहले तो घर में जाना है।
वहाँ हैं अच्छे संस्कार।
यहाँ हैं बुरे संस्कार।
अच्छे संस्कार बदल कर बुरे संस्कार हो जाते हैं।
फिर बुरे संस्कार योगबल से अच्छे होते हैं।
अच्छे संस्कार वहाँ ले जायेंगे।
बाप में भी पढ़ाने के संस्कार हैं ना। जो आकर समझाते हैं...
रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं।
बीज की भी समझानी देते हैं, तो सारे झाड़ की भी समझानी देते हैं।
बीज की समझानी है ज्ञान और झाड़ की समझानी हो जाती है भक्ति।
भक्ति में बहुत डिटेल होती है ना।
बीज को याद करना तो सहज है।
वहाँ ही चले जाना है।
तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने में थोड़ा ही समय लगता है।
फिर सतोप्रधान से तमोप्रधान बनने में 5 हजार वर्ष लगते हैं एक्यूरेट।
यह चक्र बड़ा एक्यूरेट बना हुआ है जो रिपीट होता रहता है...
और कोई यह बातें बता न सके।
तुम बता सकते हो।
आधा-आधा किया जाता है।
आधा स्वर्ग, आधा नर्क फिर उनका डिटेल भी बताते हैं।
स्वर्ग में जन्म कम, आयु बड़ी होती है।
नर्क में जन्म जास्ती, आयु छोटी होती है।
वहाँ हैं योगी, यहाँ हैं भोगी इसलिए यहाँ बहुत जन्म होते हैं।
इन बातों को दूसरा कोई नहीं जानता।
मनुष्यों को कुछ भी मालूम नहीं है।
कब देवतायें थे, वह कैसे बनें, कितने समझदार बने हैं - यह भी तुम जानते हो।
बाप इस समय बच्चों को पढ़ाकर 21 जन्मों के लिए वर्सा देते हैं...
फिर यह तुम्हारे संस्कार रहते नहीं।
फिर हो जाते हैं दु:ख के संस्कार।
जैसे राजाई के संस्कार होते हैं तो ज्ञान की पढ़ाई के संस्कार पूरे हो जाते हैं।
यह संस्कार पूरे हुए तो नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार रूद्र माला में पिरो जायेंगे फिर नम्बरवार आयेंगे पार्ट बजाने।
जिसने पूरे 84 जन्म लिये हैं, वह पहले आते हैं।
उनका नाम भी बतलाते हैं।
कृष्ण तो है फर्स्ट प्रिन्स ऑफ हेविन।
तुम जानते हो सिर्फ एक थोड़ेही होगा, सारी राजधानी होगी ना।
राजा के साथ तो फिर प्रजा भी चाहिए।
हो सकता है - एक से दूसरे पैदा होते जायें।
अगर कहें 8 इकट्ठे आते हैं, परन्तु श्रीकृष्ण तो नम्बरवन में आयेगा ना।
8 इकट्ठे आते हैं तो फिर कृष्ण का इतना गायन क्यों?
यह सब बातें आगे चलकर समझायेंगे।
कहते हैं ना आज तुमको बहुत गुह्य ते गुह्य बातें सुनाता हूँ।
कुछ तो रहा हुआ है ना।
यह युक्ति अच्छी है - जिस बात में देखो नहीं समझते हैं तो बोलो हमारी बड़ी बहन उत्तर दे सकती है या तो कहना चाहिए अभी बाप ने बताया नहीं है...
दिन-प्रतिदिन गुह्य ते गुह्य सुनाते हैं।
इस कहने में लज्जा की बात नहीं।
गुह्य ते गुह्य प्वाइंट्स जब सुनाते हैं तो तुमको सुनकर बहुत खुशी होती है।
पिछाड़ी में फिर कह देते हैं मनमनाभव, मध्याजीभव।
अक्षर भी शास्त्र बनाने वालों ने लिखा है।
मूँझने की तो जरूरत नहीं है।
बच्चा बाप का बना और बेहद का सुख मिला...
इसमें मन्सा, वाचा, कर्मणा पवित्रता की जरूरत है।
लक्ष्मी-नारायण को बाप का वर्सा मिला है ना।
यह पहले नम्बर में हैं, जिनकी ही पूजा होती है।
अपने को भी देखो - हमारे में ऐसे गुण हैं।
अभी तो बेगुण हैं ना।
अपने अवगुणों का भी किसको पता नहीं है।
अभी तुम बाप के बने हो तो जरूर चेन्ज होना पड़े।
बाप ने बुद्धि का ताला खोला है।
ब्रह्मा और विष्णु का भी राज़ समझाया है।
यह है पतित, वह है पावन।
एडाप्शन इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर ही होती है।
प्रजापिता ब्रह्मा जब है तब ही एडाप्शन होती है।
सतयुग में तो होती नहीं।
यहाँ भी किसको बच्चा नहीं होता है तो फिर एडाप्ट करते हैं।
प्रजापिता को भी जरूर ब्राह्मण बच्चे चाहिए।
यह है मुख वंशावली। वह होते हैं कुख वंशावली।
ब्रह्मा तो नामीग्रामी है। इनका सरनेम ही बेहद का है...
सब समझते हैं प्रजापिता ब्रह्मा आदि देव है,
उसको अंग्रेजी में कहेंगे ग्रेट ग्रेट ग्रैन्ड फादर।
यह है बेहद का सरनेम।
वह सब होते हैं हद के सरनेम
इसलिए बाप समझाते हैं - यह जरूर सबको मालूम होना चाहिए कि भारत बड़े ते बड़ा तीर्थ है, जहाँ बेहद का बाप आते हैं...
ऐसे नहीं, सारे भारत में विराजमान हुआ।
शास्त्रों में मगध देश लिखा है, परन्तु नॉलेज कहाँ सिखाई?
आबू में कैसे आये?
देलवाड़ा मन्दिर भी यहाँ पूरा यादगार है।
जिन्होंने भी बनाया, उन्हों की बुद्धि में आया और बैठकर बनवाया।
एक्यूरेट मॉडल तो बना न सकें।
बाप यहाँ ही आकर सर्व की सद्गति करते हैं, मगध देश में नहीं।
वह तो पाकिस्तान हो गया।
यह है पाक स्थान।
वास्तव में पाक स्थान तो स्वर्ग को कहा जाता है।
पाक और नापाक का ये सारा ड्रामा बना हुआ है।
तो मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे - तुम यह समझते हो आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल.... कितने काल के बाद मिले हैं?
फिर कब मिलेंगे?
सुन्दर मेला कर दिया जब सतगुरू मिला दलाल के रूप में।
गुरू तो बहुत हैं ना इसलिए सतगुरू कहा जाता है।
स्त्री को जब हथियाला बांधते हैं तो भी कहते हैं यह पति तुम्हारा गुरू ईश्वर है।
पति तो पहले-पहले नापाक बनाते हैं।
आजकल तो दुनिया में बहुत गन्द लगा पड़ा है।
अब तुम बच्चों को तो गुल-गुल बनना है।
तुम बच्चों को पक्का-पक्का हथियाला बाप बांधते हैं।
यूँ तो शिव जयन्ती के साथ ही रक्षाबंधन हो जाता है...
गीता जयन्ती भी हो जानी चाहिए।
कृष्ण की जयन्ती थोड़ा देरी से नई दुनिया में हुई है।
बाकी त्योहार सब इस समय के हैं।
राम नवमी कब हुई - यह भी कोई को पता है क्या?
तुम कहेंगे नई दुनिया में 1250 वर्ष के बाद में राम नवमी होती है।
शिव जयन्ती, कृष्ण जयन्ती, राम जयन्ती कब हुई.......?
यह कोई भी बता नहीं सकते।
तुम बच्चे भी अभी बाप द्वारा जान गये हो।
एक्यूरेट बता सकते हो।
गोया सारे दुनिया की जीवन कहानी तुम बता सकते हो।
लाखों वर्ष की बात थोड़ेही बता सकते। बाप कितनी अच्छी बेहद की पढ़ाई पढ़ाते हैं...
एक ही बार तुम 21 जन्मों के लिए नंगन होने से बचते हो।
अभी तुम 5 विकारों रूपी रावण के पराये राज्य में हो।
अभी सारे 84 का चक्र तुम्हारी स्मृति में आया है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बेहद सुख का वर्सा प्राप्त करने के लिए मन्सा-वाचा-कर्मणा पवित्र जरूर बनना है।
अच्छे संस्कार योगबल से धारण करने हैं।
अपने को गुणवान बनाना है।
2) सदा खुशी में रहने के लिए बाप जो रोज़ गुह्य-गुह्य बातें सुनाते हैं, उन्हें सुनना और दूसरों को सुनाना है।
किसी भी बात में मूँझना नहीं है।
युक्ति से उत्तर देना है।
लज्जा नहीं करनी है।
वरदान:-
स्वमान की सीट पर स्थित हो
शक्तियों को आर्डर प्रमाण चलाने वाले
विशाल बुद्धि भव
अपनी विशाल बुद्धि द्वारा सर्व शक्तियों रूपी सेवाधारियों को समय पर कार्य में लगाओ।
जो भी टाइटल डायरेक्ट परमात्मा द्वारा मिले हुए हैं, उसके नशे में रहो।
स्वमान की स्थिति रूपी सीट पर सेट रहो तो सर्व शक्तियां सेवा के लिए सदा हाज़िर अनुभव होंगी।
आपके आर्डर के इन्तजार में होगी।
तो वरदान और वर्से को कार्य में लगाओ।
मालिक बन, योगयुक्त बन युक्तियुक्त सेवा सेवाधारियों से लो तो सदा राज़ी रहेंगे।
बार-बार अर्जी नहीं डालेंगे।
स्लोगन:-
कोई भी कार्य शुरू करने के पहले
विशेष यह स्मृति इमर्ज करो कि...
सफलता मुझ श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा का जन्म सिद्ध अधिकार है।