January.2019
February.2019
March.2019
April.2019
May.2019
June.2019
July.2019
October.2019
November.2019
December.2019
Baba's Murlis - September, 2019
Sun
Mon
Tue
Wed
Thu
Fri
Sat
30

29-09-19 प्रात:मुरली मधुबन

अव्यक्त-बापदादा रिवाइज: 16-02-85

हर श्वांस में खुशी का साज बजना ही इस श्रेष्ठ जन्म की सौगात है

आज भोलेनाथ बाप भोले भण्डारी अपने अति स्नेही, सदा सहयोगी, सहजयोगी सर्व खजानों के मालिक बच्चों से मिलन मनाने आये हैं।

अब भी मालिक, भविष्य में भी मालिक।

अभी विश्व रचयिता के बालक सो मालिक हो, भविष्य में विश्व के मालिक हो।

बापदादा अपने ऐसे मालिक बच्चों को देख हर्षित होते हैं।

यह बालक सो मालिकपन का अलौकिक नशा, अलौकिक खुशी है।

ऐसे सदा खुशनसीब सदा सम्पन्न श्रेष्ठ आत्मायें हो ना।

आज सभी बच्चे बाप के अवतरण की जयन्ती मनाने के लिए उमंग उत्साह में हर्षित हो रहे हैं...

बापदादा कहते हैं बाप की जयन्ती सो बच्चों की भी जयन्ती है इसलिए यह वन्डरफुल जयन्ती है।

वैसे बाप और बच्चे की एक ही जयन्ती नहीं होती है।

होती है?

वही दिन बाप के जन्म का हो और बच्चे का भी हो, ऐसा कब सुना है?

यही अलौकिक जयन्ती है।

जिस घड़ी बाप ब्रह्मा बच्चे में अवतरित हुए उसी दिन उस घड़ी ब्रह्मा का भी साथ-साथ अलौकिक जन्म हुआ।

इकट्ठा जन्म हो गया ना।

और ब्रह्मा के साथ अनन्य ब्राह्मणों का भी हुआ इसलिए दिव्य जन्म की तिथि, वेला, रेखा ब्रह्मा की और शिवबाबा के अवतरण की एक ही होने कारण शिव बाप और ब्रह्मा बच्चा परम आत्मा और महान आत्मा होते हुए भी ब्रह्मा बाप समान बना।

समानता के कारण कम्बाइन्ड रूप बन गये।

बापदादा, बापदादा सदा इकट्ठे बोलते हो।

अलग नहीं।

ऐसे ही अनन्य ब्राह्मण बापदादा के साथ-साथ ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी के रूप में अवतरित हुए।

तो ब्रह्मा और कुमार कुमारी यह भी कम्बाइन्ड बाप और बच्चे की स्मृति का नाम है।

तो बापदादा बच्चों के ब्राह्मण जीवन की अवतरण जयन्ती मनाने आये हैं।

आप सभी भी अवतार हो ना! अवतार अर्थात् श्रेष्ठ स्मृति-"मैं दिव्य जीवन वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ...''

तो नया जन्म हुआ ना!

ऊंची स्मृति से इस साकार शरीर में अवतरित हो विश्व कल्याण के कार्य में निमित्त बने हो।

तो अवतार हुए ना।

जैसे बाप अवतरित हुए हैं वैसे आप सब अवतरित हुए हो विश्व परिवर्तन के लिए।

परिवर्तन होना ही अवतरित होना है।

तो यह अवतारों की सभा है।

बाप के साथ-साथ आप ब्राह्मण बच्चों का भी अलौकिक बर्थ डे है।

तो बच्चे बाप की जयन्ती मनायेंगे या बाप बच्चों की मनायेंगे।

या सभी मिल करके एक दो की मनायेंगे!

यह तो भक्त लोग सिर्फ यादगार मनाते रहते और आप सम्मुख बाप के साथ मनाते हो।

ऐसा श्रेष्ठ भाग्य, कल्प-कल्प के भाग्य की लकीर अविनाशी खिंच गई।

सदा यह समृति में रहे कि हमारा भगवान के साथ भाग्य है।

डायरेक्ट भाग्य विधाता के साथ भाग्य प्राप्त करने का पार्ट है।

ऐसे डबल हीरो, हीरो पार्टधारी भी हो और हीरे तुल्य जीवन वाले भी हो।

तो डबल हीरो हो गये ना।

सारे विश्व की नज़र आप हीरो पार्टधारी आत्माओं की तरफ है। आप भाग्यवान आत्माओं की आज अन्तिम जन्म में भी वा कल्प के अन्तिम काल में भी कितनी याद, यादगार के रूप में बनी हुई है...

बाप के वा ब्राह्मणों के बोल यादगार रूप में शास्त्र बन गये हैं जो अभी भी दो वचन सुनने के लिए प्यासे रहते हैं।

दो वचन सुनने से शान्ति का, सुख का अनुभव करने लगते हैं।

आप भाग्यवान आत्माओं के श्रेष्ठ कर्म चरित्र के रूप में अब तक भी गाये जा रहे हैं।

आप भाग्यवान आत्माओं की श्रेष्ठ भावना, श्रेष्ठ कामना के श्रेष्ठ संकल्प दुआ के रूप में गाये जा रहे हैं।

किसी भी देवता के आगे दुआ मांगने जाते हैं।

आप भाग्यवान आत्माओं की श्रेष्ठ स्मृति-सिमरण के रूप में अब भी यादगार चल रहा है।

सिमरण की कितनी महिमा करते हैं।

चाहे नाम सिमरण करते, चाहे माला के रूप में सिमरण करते।

यह स्मृति का यादगार सिमरण रूप में चल रहा है।

तो ऐसे भाग्यवान कैसे बने! क्योंकि भाग्य विधाता के साथ भाग्यवान बने हो।

तो समझते हो कितना भाग्यवान दिव्य जन्म है? ऐसे दिव्य जन्म की, बापदादा भगवान, भाग्यवान बच्चों को बधाई दे रहे हैं...

सदा बधाईयाँ ही बधाईयाँ हैं।

यह सिर्फ एक दिन की बधाई नहीं।

यह भाग्यवान जन्म हर सेकेण्ड, हर समय बधाईयों से भरपूर है।

अपने इस श्रेष्ठ जन्म को जानते हो ना?

हर श्वाँस में खुशी का साज बज रहा है।

श्वाँस नहीं चलता लेकिन खुशी का साज़ चल रहा है।

साज़ सुनने में आता है ना!

नैचुरल साज़ कितना श्रेष्ठ है!

इस दिव्य जन्म का यह खुशी का साज़ अर्थात् श्वाँस दिव्य जन्म की श्रेष्ठ सौगात है।

ब्राह्मण जन्म होते ही यह खुशी का साज़ गिफ्ट में मिला है ना।

साज़ में भी अंगुलियाँ नीचे ऊपर करते हो ना।

तो श्वाँस भी नीचे ऊपर चलता है।

तो श्वाँस चलना अर्थात् साज़ चलना।

श्वाँस बन्द नहीं हो सकता।

तो साज़ भी बन्द नहीं हो सकता।

सभी का खुशी का साज़ ठीक चल रहा है ना! डबल विदेशी क्या समझते हैं?

भोले भण्डारी से सभी खजाने ले अपना भण्डारा भरपूर कर लिया है ना, जो इक्कीस जन्म भण्डारे भरपूर रहेंगे।

भरने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।

आराम से प्रालब्ध प्राप्त होगी।

अभी का पुरूषार्थ इक्कीस जन्म की प्रालब्ध।

इक्कीस जन्म सदा सम्पन्न स्वरूप में होंगे।

तो पुरूषार्थ क्या किया?

मेहनत लगती है?

पुरूषार्थ अर्थात् सिर्फ अपने को इस रथ में विराजमान पुरूष अर्थात् आत्मा समझो।

इसको कहते हैं पुरुषार्थ।

यह पुरुषार्थ किया ना।

इस पुरुषार्थ के फलस्वरूप इक्कीस जन्म सदा खुश और मौज में रहेंगे।

अब भी संगमयुग मौजों का युग है। मूँझने का नहीं, मौजों का युग है...

अगर किसी भी बात में मूँझते हैं तो संगमयुग से पांव थोड़ा कलियुग तरफ ले जाते, इसलिए मूँझते हैं।

संकल्प अथवा बुद्धि रूपी पांव संमगयुग पर है तो सदा मौजों में हैं।

संगमयुग अर्थात् दो का मिलन मनाने का युग है।

तो बाप और बच्चे का मिलन मनाने का संगमयुग है।

जहाँ मिलन है वहाँ मौज है।

तो मौज मनाने का जन्म है ना।

मूँझने का नाम निशान नहीं।

मौजों के समय पर खूब रूहानी मौज मनाओ।

डबल विदेशी तो डबल मौज में रहने वाले हैं ना।

ऐसे मौजों के जन्म की मुबारक हो।

मूँझने के लिए विश्व में अनेक आत्मायें हैं, आप नहीं हो।

वह पहले ही बहुत हैं।

और मौज मनाने वाले आप थोड़े से हो।

समझा-अपनी इस श्रेष्ठ जयन्ती को!

वैसे भी आजकल ज्योतिष विद्या वाले दिन, तिथि और वेला के आधार पर भाग्य बताते हैं...

आप सबकी वेला कौन-सी है!

तिथि कौन-सी है?

बाप के साथ-साथ ब्राह्मणों का भी जन्म है ना।

तो भगवान की जो तिथि वह आपकी।

भगवान के अवतरण अर्थात् दिव्य जन्म की जो वेला वह आपकी वेला हो गई।

कितनी ऊंची वेला है।

कितनी ऊंची रेखा है, जिसको दशा कहते हैं।

तो दिल में सदा यह उमंग उत्साह रहे कि बाप के साथ-साथ हमारा जन्म है।

ब्रह्मा ब्राह्मणों के बिना कुछ कर नहीं सकते।

शिव बाप ब्रह्मा के बिना कुछ कर नहीं सकते।

तो साथ-साथ हुआ ना।

तो जन्म तिथि, जन्म वेला का महत्व सदा याद रखो।

जिस तिथि पर भगवान उतरे उस तिथि पर हम आत्मा अवतरित हुई।

नाम राशि भी देखो-ब्रह्मा-ब्राह्मण। ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी।

नाम राशि भी वही श्रेष्ठ है, ऐसे श्रेष्ठ जन्म वा जीवन वाले बच्चों को देख बाप सदा हर्षित होते हैं।

बच्चे कहते वाह! बाबा वाह! और बाप कहते वाह बच्चे!

ऐसे बच्चे भी किसको नहीं मिलेंगे।

आज के इस दिव्य दिवस की विशेष सौगात बापदादा सभी स्नेही बच्चों को दो गोल्डन बोल दे रहे हैं।

एक सदा अपने को समझो-"मैं बाप का नूरे रत्न हूँ।''

नूरे रत्न अर्थात् सदा नयनों में समाया हुआ।

नयनों में समाने का स्वरूप बिन्दी होता है।

नयनों में बिन्दी की कमाल है।

तो नूरे रत्न अर्थात् बिन्दु बाप में समाया हुआ हूँ।

स्नेह में समाया हुआ हूँ।

तो एक यह गोल्डन बोल याद रखना कि नूरे रत्न हूँ।

दूसरा-"सदा बाप का साथ और हाथ मेरे ऊपर है।''

साथ भी है और हाथ भी है।

सदा आशीर्वाद का हाथ है और सदा सह-योग का साथ है।

तो सदा बाप का साथ और हाथ है ही है।

साथ देना हाथ रखना नहीं है, लेकिन है ही।

यह दूसरा गोल्डन बोल सदा साथ और सदा हाथ।

यह आज के इस दिव्य जन्म की सौगात है।

अच्छा- ऐसे चारों ओर के सदा श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों को,

सदा हर श्वाँस को खुशी का साज़ अनुभव करने वाले बच्चों को,

डबल हीरो बच्चों को,

सदा भगवान और भाग्य ऐसे स्मृति स्वरूप बच्चों को,

सदा सर्व खजानों से भरपूर भण्डार वाले बच्चों को भोलेनाथ,

अमरनाथ वरदाता बाप का बहुत-बहुत दिव्य जन्म की बधाइयों के साथ-साथ यादप्यार और नमस्ते।

दादियों से -

बेहद बाप की स्नेह की बाहें बहुत बड़ी हैं, उसी स्नेह की बाहों में वा भाकी में सभी समाये हुए हैं।

सदा ही सभी बच्चे बाप की भुजाओं के अन्दर भुजाओं की माला के अन्दर हो तभी मायाजीत हो।

ब्रह्मा के साथ-साथ जन्म लेने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो ना।

तिथि में जरा भी अन्तर नहीं है इसीलिए ब्रह्मा के बहुत मुख दिखाये हैं।

ब्रह्मा को ही पाँच मुखी वा तीन मुखी दिखाते हैं क्योंकि ब्रह्मा के साथ-साथ ब्राह्मण हैं।

तो तीन मुख वाले में आप हो या पाँच मुख वाले में हो।

मुख भी सहयोगी होता है ना।

बाप को भी नशा है-कौन-सा?

सारे विश्व में कोई भी बाप ऐसे बच्चे ढूँढकर लाये तो मिलेंगे! (नहीं)

बाप कहेंगे ऐसे बच्चे नहीं मिलेंगे, बच्चे कहते ऐसा बाप नहीं मिलेगा।

अच्छा है-बच्चे ही घर की रौनक होते हैं।

अकेले बाप से घर की रौनक नहीं होती इसलिए बच्चे इस विश्व रूपी घर की रौनक हैं।

इतने सारे ब्राह्मणों की रौनक लगाने के निमित्त कौन बने?

बच्चे बने ना!

बाप भी बच्चों की रौनक देख खुश होते हैं।

बाप को आप लोगों से भी ज्यादा मालायें सिमरण करनी पड़ती हैं।

आपको तो एक ही बाप को याद करना पड़ता और बाप को कितनी मालायें सिमरण करनी पड़ती।

जितनी भक्तिमार्ग में मालायें डाली हैं उतनी बाप को अभी सिमरण करनी पड़ती।

एक बच्चे की भी माला बाप एक दिन भी सिमरण न करे यह हो नहीं सकता।

तो बाप भी नौधा भक्त हो गया ना।

एक-एक बच्चे के विशेषताओं की, गुणों की माला बाप सिमरण करते और जितने बार सिमरण करते उतने वह गुण विशेषतायें और फ्रेश होती जाती।

माला बाप सिमरण करते लेकिन माला का फल बच्चों को देता, खुद नहीं लेता।

अच्छा-बापदादा तो सदा बच्चों के साथ ही रहते हैं।

एक पल भी बच्चों से अलग नहीं रह सकते हैं।

रहने चाहें तो भी नहीं रह सकते। क्यों?

जितना बच्चे याद करते उसका रिसपान्ड तो देंगे ना!

याद करने का रिटर्न तो देना पड़ेगा ना।

तो सेकेण्ड भी बच्चों के सिवाय रह नहीं सकते।

ऐसा भी कभी वन्डर नहीं देखा होगा जो साथ ही रहें।

बाप बच्चों से अलग ही न हों।

ऐसा बाप बेटे की जोड़ी कभी नहीं देखी होगी।

बहुत अच्छा बगीचा तैयार हुआ है।

आप सबको भी बगीचा अच्छा लगता है ना।

एक-एक की खुशबू न्यारी और प्यारी है इसलिए अल्लाह का बगीचा गाया हुआ है।

सभी आदि रत्न हो, एक-एक रत्न की कितनी वैल्यु है और हरेक रत्न की हर समय हर कार्य में आवश्यकता है।

तो सभी श्रेष्ठ रत्न हो।

जिन्हों की अभी भी रत्नों के रूप में पूजा होती है।

अभी अनेक आत्माओं के विघ्न विनाशक बनने की सेवा करते हो तब यादगार रूप में एक-एक रत्न की वैल्यु होती है।

एक-एक रत्न की विशेषता होती है।

कोई विघ्न को नाश करने वाला रत्न होता, कोई कौन-सा!

तो अभी लास्ट तक भी स्थूल यादगार रूप सेवा कर रहा है।

ऐसे सेवाधारी बने हो। समझा।

सम्मेलन में आये हुए विदेशी प्रतिनिधियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

सभी कहाँ पहुंचे हो?

बाप के घर में आये हैं, ऐसा अनुभव करते हो?

तो बाप के घर में मेहमान आते हैं या बच्चे आते हैं?

बच्चे हो, अधिकारी हो या मेहमान हो?

बाप के घर में आये हो, बाप के घर में सदा अधिकारी बच्चे आते हैं।

अभी से अपने को मेहमान नहीं लेकिन बाप के बच्चे महान आत्मायें समझते हुए आगे बढ़ना।

भाग्यवान थे जब इस स्थान पर पहुंचे हो।

अभी क्या करना है?

यहाँ पहुंचना यह भाग्य तो हुआ लेकिन आगे क्या करना है।

अभी सदा साथ रहना, याद में रहना ही साथ है।

अकेले नहीं जाना।

कम्बाइण्ड होकर जहाँ भी जायेंगे, जो भी कर्म करेंगे वह कम्बाइण्ड रूप से करने से सदा सहज और सफल अनुभव करेंगे।

सदा साथ रहेंगे यह संकल्प जरूर करके जाना।

पुरुषार्थ करेंगे, देखेंगे, यह नहीं, करना ही है क्योंकि दृढ़ता सफलता की चाबी है।

तो यह चाबी सदा अपने साथ रखना।

यह ऐसी चाबी है जो खजाना चाहिए वह संकल्प किया और खजाना मिला।

यह चाबी सदा साथ रखना अर्थात् सदा सफलता पाना।

अभी मेहमान नहीं अधिकारी आत्मा।

बापदादा भी ऐसे अधिकारी बच्चों को देख हर्षित होते हैं।

जो अनुभव किया वह अनुभव का खजाना सदा बांटते रहना, जितना बांटेंगे उतना बढ़ता रहेगा।

तो महादानी बनना सिर्फ अपने पास नहीं रखना। अच्छा!

विदाई के समय 3-30 बजे -

सभी बच्चों को मुबारक के साथ-साथ गुडमार्निंग।

जैसे आज की रात शुभ मिलन की मौज में बिताया वैसे सदा दिन रात बाप के मिलन मौज में मनाते रहना।

पूरा ही संगमयुग सदा बाप से बधाईयाँ लेते हुए वृद्धि को पाते हुए, आगे बढ़ते हुए सभी को आगे बढ़ाते रहना।

सदा महादानी वरदानी बनकर अनेक आत्माओं को दान भी देना, वरदान भी देना।

अच्छा-ऐसे सदा विश्व कल्याणकारी, सदा रहमदिल सदा सर्व के प्रति शुभ भावना रखने वाले बच्चों को यादप्यार और गुडमार्निंग।

वरदान:-

महसूसता की शक्ति द्वारा

स्व परिवर्तन करने वाले

तीव्र पुरुषार्थी भव

कोई भी परिवर्तन का सहज आधार महसूसता की शक्ति है।

जब तक महसूसता की शक्ति नहीं आती तब तक अनुभूति नहीं होती और जब तक अनुभूति नहीं तब तक ब्राह्मण जीवन की विशेषता का फाउण्डेशन मजबूत नहीं।

उमंग-उत्साह की चाल नहीं।

जब महसूसता की शक्ति हर बात का अनुभवी बनाती है तब तीव्र पुरुषार्थी बन जाते हो।

महसूसता की शक्ति सदाकाल के लिए सहज परिवर्तन करा देती है।

स्लोगन:-

स्नेह के स्वरूप को साकार में इमर्ज कर ब्रह्मा बाप समान बनो।