07-10-2019 प्रात:मुरलीबापदादा मधुबन
"मीठे बच्चे - सदा खुशी में रहो तो याद की यात्रा सहज हो जायेगी, याद से ही 21 जन्मों के लिए पुण्य आत्मा बनेंगे''
प्रश्नः-
तुम्हारे सबसे अच्छे सर्वेन्ट वा गुलाम कौन हैं?
उत्तर:-
नैचुरल कैलेमिटीज वा साइंस की इन्वेन्शन, जिससे सारे विश्व का किचड़ा साफ होता है।
यह तुम्हारे सबसे अच्छे सर्वेन्ट वा गुलाम हैं
जो सफाई में मददगार बनते हैं।
सारी प्रकृति तुम्हारे अधिकार में रहती है।
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चे क्या कर रहे हैं? युद्ध के मैदान में खड़े हैं...
खड़े तो नहीं, तुम तो बैठे हो ना।
तुम्हारी सेना कैसी अच्छी है।
इनको कहा जाता है रूहानी बाप की रूहानी सेना।
रूहानी बाप के साथ योग लगाकर रावण पर जीत पाने का कितना सहज पुरूषार्थ कराते हैं।
तुमको कहा जाता है गुप्त वारियर्स, गुप्त महावीर।
पांच विकारों पर तुम विजय पाते हो, उसमें भी पहले है देह-अभिमान।
बाप विश्व पर जीत पाने वा विश्व में शान्ति स्थापन करने के लिए कितनी सहज युक्ति बताते हैं।
तुम बच्चों बिगर और कोई नहीं जानते।
तुम विश्व में शान्ति का राज्य स्थापन कर रहे हो।
वहाँ अशान्ति, दु:ख, रोग का नाम-निशान नहीं होता।
यह पढ़ाई तुमको नई दुनिया का मालिक बनाती है...
बाप कहते हैं - मीठे-मीठे बच्चों, काम पर जीत पाने से तुम 21 जन्मों के लिए जगत जीत बनते हो।
यह तो बहुत सहज है।
तुम हो शिवबाबा की रूहानी सेना।
राम की बात नहीं, कृष्ण की भी बात नहीं है।
राम कहा जाता है परमपिता परमात्मा को...
बाकी वह जो राम की सेना आदि दिखाते हैं,
वह सब है रांग।
गाया भी जाता है ज्ञान सूर्य प्रगटा, अज्ञान अन्धेर विनाश...
कलियुग घोर अन्धियारा है।
कितना लड़ाई-झगड़ा मारामारी है।
सतयुग में यह होती नहीं।
तुम अपना राज्य देखो कैसे स्थापन करते हो...
कोई भी हाथ पांव इसमें नहीं चलाते हो, इसमें देह का भान तोड़ना है।
घर में रहते हो तो भी पहले यह याद करो - हम आत्मा हैं, देह नहीं।
तुम आत्मायें ही 84 जन्म भोगती हो।
अभी तुम्हारा यह अन्तिम जन्म है।
पुरानी दुनिया खत्म होनी है।
इसको कहा जाता है पुरूषोत्तम संगमयुग का लीप युग।
चोटी छोटी होती है ना।
ब्राह्मणों की चोटी मशहूर है।
बाप कितना सहज समझाते हैं।
तुम हर 5 हज़ार वर्ष के बाद आकर बाप से यह पढ़ते हो, राजाई प्राप्त करने के लिए।
एम ऑब्जेक्ट भी सामने है - शिवबाबा से हमको यह बनना है।
हाँ बच्चों, क्यों नहीं।
सिर्फ देह-अभिमान छोड़ अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो तो पाप कट जाएं।
तुम जानते हो इस जन्म में पावन बनने से हम 21 जन्म पुण्य आत्मा बनते हैं फिर उतराई शुरू होती है...
यह भी जानते हो हमारा ही 84 का चक्र है।
सारी दुनिया तो नहीं आयेगी। 84 के चक्र वाले और इस धर्म वाले ही आयेंगे।
सतयुग और त्रेता बाप ही स्थापन करते हैं।
जो अब कर रहे हैं फिर द्वापर-कलियुग रावण की स्थापना है।
रावण का चित्र भी है ना। ऊपर में गधे का शीश है...
विकारी टट्टू बन जाते हैं।
तुम समझते भी हो - हम क्या थे!
यह है ही पाप आत्माओं की दुनिया।
पाप आत्माओं की दुनिया में करोड़ों आदमी हैं।
पुण्य आत्माओं की दुनिया में होते हैं 9 लाख शुरू में...
तुम अभी सारे विश्व के मालिक बनते हो।
यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थे ना।
स्वर्ग की बादशाही तो जरूर बाप ही देंगे।
बाप कहते हैं मैं तुमको विश्व की बादशाही देने आया हूँ।
अब पावन जरूर बनना पड़े।
सो भी यह अन्तिम जन्म मृत्युलोक का पवित्र बनो।
इस पुरानी दुनिया का विनाश सामने तैयार है...
बॉम्ब्स आदि सब ऐसे तैयार कर रहे हैं जो वहाँ घर बैठे खलास कर देंगे।
कहते भी हैं घर बैठे पुरानी दुनिया का विनाश कर देंगे।
यह बॉम्ब्स आदि घर बैठे ऐसे छोड़ेंगे जो सारी दुनिया को खत्म करेंगे।
तुम बच्चे घर बैठे योगबल से विश्व के मालिक बन जाते हो...
तुम शान्ति स्थापन कर रहे हो योगबल से।
वह साइंस बल से सारी दुनिया खलास कर देंगे।
वह तुम्हारे सर्वेन्ट हैं।
तुम्हारी सर्विस कर रहे हैं।
पुरानी दुनिया खत्म कर देते हैं।
नैचुरल कैलेमिटीज आदि यह सब तुम्हारे गुलाम बनते हैं।
सारी प्रकृति तुम्हारी गुलाम बन जाती है।
सिर्फ तुम बाप से योग लगाते हो।
तो तुम बच्चों के अन्दर में बड़ी खुशी होनी चाहिए।
ऐसे बिलवेड बाप को कितना याद करना चाहिए।
यही भारत पूरा शिवालय था...
सतयुग में सम्पूर्ण निर्विकारी, यहाँ हैं विकारी।
अभी तुमको स्मृति आई है - बरोबर बाप ने हमें कहा है हियर नो ईविल....... गन्दी बातें मत सुनो।
मुख से बोलो भी नहीं।
बाप समझाते हैं तुम कितने डर्टी बन गये हो।
तुम्हारे पास तो अथाह धन था।
तुम स्वर्ग के मालिक थे।
अभी तुम स्वर्ग के बदले नर्क के मालिक बन पड़े हो।
यह भी ड्रामा बना हुआ है।
हर 5 हज़ार वर्ष बाद तुम बच्चों को हम रौरव नर्क से निकाल स्वर्ग में ले जाता हूँ।
रूहानी बच्चे क्या तुम मेरी बात नहीं मानेंगे?
परमात्मा कहते हैं तुम पवित्र दुनिया का मालिक बनो तो क्या नहीं बनेंगे?
विनाश तो जरूर होगा...
इस योगबल से ही तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप कटेंगे।
बाकी जन्म-जन्मान्तर के पाप कटने में टाइम लगता है।
बच्चे शुरू से आये हुए हैं, 10 परसेन्ट भी योग नहीं लगता है इसलिए पाप कटते नहीं हैं।
नये-नये बच्चे झट योगी बन जाते हैं तो पाप कट जाते हैं और सर्विस करने लग पड़ते हैं।
तुम बच्चे समझते हो अब हमको वापिस जाना है...
बाप आया हुआ है ले जाने।
पाप-आत्मायें तो शान्तिधाम-सुख-धाम में जा न सकें।
वह तो रहती हैं दु:खधाम में, इसलिए अब बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप भस्म हो जाएं।
अरे बच्चे गुल-गुल (फूल) बन जाओ।
दैवी कुल को कलंक नहीं लगाओ।
तुम विकारी बनने के कारण कितने दु:खी हो गये हो।
यह भी ड्रामा का खेल बना हुआ है।
पवित्र नहीं बनेंगे तो पवित्र दुनिया स्वर्ग में नहीं आयेंगे।
भारत स्वर्ग था, कृष्णपुरी में था, अभी नर्कवासी है...
तो तुम बच्चों को तो खुशी से विकारों को छोड़ना चाहिए।
विष पीना फट से छोड़ना है।
विष पीते-पीते तुम वैकुण्ठ में थोड़ेही जा सकेंगे।
अभी यह बनने के लिए तुमको पवित्र बनना है।
तुम समझा सकते हो - इन्होंने यह राजाई कैसे प्राप्त की है?
राजयोग से।
यह पढ़ाई है ना।
जैसे बैरिस्टरी योग, सर्जन योग होता है।
सर्जन से योग तो सर्जन बनेंगे।
यह फिर है भगवानुवाच।
रथ में कैसे प्रवेश करते हैं?
कहते हैं बहुत जन्मों के अन्त में मैं इनमें बैठ तुम बच्चों को नॉलेज देता हूँ।
जानता हूँ यह विश्व के मालिक पवित्र थे।
अब पतित कंगाल बने हैं फिर पहले नम्बर में यह जायेंगे।
इसमें ही प्रवेश कर तुम बच्चों को नॉलेज देते हैं।
बेहद का बाप कहते हैं - बच्चे, पवित्र बनो तो तुम सदा सुखी बनेंगे...
सतयुग है अमरलोक, द्वापर कलियुग है मृत्युलोक।
कितना अच्छी रीति बच्चों को समझाते हैं।
यहाँ देही-अभिमानी बनते हैं फिर देह-अभिमान में आकर माया से हार खा लेते हैं।
माया की एक ही तोप ऐसी लगती है जो एकदम गटर में गिर पड़ते हैं।
बाप कहते हैं यह गटर है।
यह कोई सुख थोड़ेही है।
स्वर्ग तो फिर क्या!
इन देवताओं की रहनी-करनी देखो कैसी है।
नाम ही है स्वर्ग।
तुमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं फिर भी कहते हैं हम विष जरूर पियेंगे!
तो स्वर्ग में आ नहीं सकेंगे।
सज़ा भी बहुत खायेंगे।
तुम बच्चों की माया से युद्ध है।
देह-अभिमान में आकर बहुत छी-छी काम करते हैं।
समझते हैं हमको कोई देखता थोड़ेही है।
क्रोध-लोभ तो प्राइवेट नहीं होता।
काम में प्राइवेसी चलती है।
काला मुँह करते हैं।
काला मुँह करते-करते तुम गोरे से सांवरे बन गये तो सारी दुनिया तुम्हारे पिछाड़ी आ गई।
ऐसी पतित दुनिया को बदलना जरूर है।
बाप कहते हैं - तुमको शर्म नहीं आती है, एक जन्म के लिए पवित्र नहीं बनते हो।
भगवानुवाच - काम महाशत्रु है।
वास्तव में तुम स्वर्गवासी थे तो बड़े धनवान थे।
बात मत पूछो।
बच्चे कहते हैं बाबा हमारे शहर में चलो...
क्या कांटों के जंगल में बन्दरों को देखने चलूँ!
तुम बच्चों को ड्रामा अनुसार सर्विस करनी ही है...
गाया जाता है फादर शोज़ सन।
बच्चों को ही जाकर सबका कल्याण करना है।
बाप बच्चों को समझाते हैं - यह भूलो मत - हम युद्ध के मैदान में हैं।
तुम्हारी युद्ध है 5 विकारों से।
यह ज्ञान मार्ग बिल्कुल अलग है।
बाप कहते हैं मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ 21 जन्मों के लिए, फिर तुमको नर्कवासी कौन बनाते हैं? रावण...
फर्क तो देखते हो ना।
जन्म-जन्मान्तर तुमने भक्ति मार्ग में गुरू किये, मिला कुछ भी नहीं।
इनको कहा जाता है सतगुरू।
सिक्ख लोग कहते हैं ना - सतगुरू अकाल मूर्त।
उनको कभी कोई काल खाता नहीं।
वह सतगुरू तो कालों का काल है।
बाप कहते हैं मैं तुम सब बच्चों को काल के पंजे से छुड़ाने आया हूँ।
सतयुग में फिर काल आता ही नहीं है, उनको अमरलोक कहा जाता है।
अभी तुम श्रीमत पर अमरलोक सतयुग के मालिक बन रहे हो।
तुम्हारी लड़ाई देखो कैसी है।
सारी दुनिया एक-दो में लड़ती-झगड़ती रहती है।
तुम्हारी फिर है रावण 5 विकारों के साथ युद्ध।
उन पर जीत पाते हो।
यह है अन्तिम जन्म।
बाप कहते हैं मैं गरीब निवाज़ हूँ...
यहाँ आते ही गरीब हैं।
साहूकारों की तो तकदीर में ही नहीं है।
धन के नशे में ही मगरूर रहते हैं।
यह सब खत्म हो जाने वाला है। बाकी थोड़ा समय है...
ड्रामा का प्लैन है ना।
यह इतने बाम्बस आदि बनाये हैं, वह काम में जरूर लाने हैं।
पहले तो लड़ाई बाणों से, तलवारों से, बन्दूकों आदि से चलती थी।
अभी तो बॉम्ब्स ऐसी चीज़ निकली है जो घर बैठे ही खलास कर देंगे।
यह चीजें कोई रखने के लिए थोड़ेही बनाई हैं।
कहाँ तक रखेंगे।
बाप आये हैं तो विनाश भी जरूर होना है।
ड्रामा का चक्र फिरता रहता है, तुम्हारी राजाई जरूर स्थापन होनी है...
यह लक्ष्मी-नारायण कभी लड़ाई नहीं करते हैं।
भल शास्त्रों में दिखाया है - असुरों और देवताओं की लड़ाई हुई परन्तु वह सतयुग के, वह असुर कलियुग के।
दोनों मिलेंगे कैसे जो लड़ाई होगी।
अभी तुम समझते हो हम 5 विकारों से युद्ध कर रहे हैं।
इन पर जीत पाकर सम्पूर्ण निर्विकारी बन निर्विकारी दुनिया के मालिक बन जायेंगे।
उठते-बैठते बाप को याद करना है...
दैवीगुण धारण करने हैं।
यह बना-बनाया ड्रामा है।
कोई-कोई के नसीब में ही नहीं है।
योगबल हो तब ही विकर्म विनाश हों।
सम्पूर्ण बनें तब तो सम्पूर्ण दुनिया में आ सकें।
बाप भी शंख ध्वनि करते रहते हैं।
उन्होंने फिर भक्ति मार्ग में शंख व तुतारी आदि बैठ बनाई है।
बाप तो इस मुख द्वारा समझाते हैं।
यह पढ़ाई है राजयोग की।
बहुत सहज पढ़ाई है।
बाप को याद करो और राजाई को याद करो।
बेहद के बाप को पहचानो और राजाई लो।
इस दुनिया को भूल जाओ।
तुम बेहद के सन्यासी हो।
जानते हो पुरानी दुनिया सारी खत्म होनी है।
इन लक्ष्मी-नारायण के राज्य में सिर्फ भारत ही था।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपने दैवी कुल को कलंक नहीं लगाना है।
गुल-गुल बनना है।
अनेक आत्माओं के कल्याण की सर्विस कर बाप का शो करना है।
2) सम्पूर्ण निर्विकारी बनने के लिए गंदी बातें न तो सुननी है, न मुख से बोलनी है।
हियर नो ईविल, टॉक नो ईविल...... देह-अभिमान के वश हो कोई छी-छी काम नहीं करने हैं।
वरदान:-
वैराग्य वृत्ति द्वारा
इस असार संसार से लगाव मुक्त रहने वाले
सच्चे राजऋषि भव
राजऋषि अर्थात् राज्य होते हुए भी बेहद के वैरागी,
देह और देह की पुरानी दुनिया में जरा भी लगाव नहीं
क्योंकि जानते हैं यह पुरानी दुनिया है ही असार संसार, इसमें कोई सार नहीं है।
असार संसार में ब्राह्मणों का श्रेष्ठ संसार मिल गया
इसलिए उस संसार से बेहद का वैराग्य अर्थात् कोई भी लगाव नहीं।
जब किसी में भी लगाव वा झुकाव न हो तब कहेंगे राजऋषि वा तपस्वी।
स्लोगन:-
युक्तियुक्त बोल वह हैं जो मधुर और शुभ भावना सम्पन्न हो।
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