"मीठे बच्चे - बेहद की अपार खुशी का अनुभव करने के लिए हर पल बाबा के साथ रहो''
प्रश्नः-
बाप से किन बच्चों को बहुत-बहुत ताकत मिलती है?
उत्तर:-
जिन्हें निश्चय है कि हम बेहद विश्व का परिवर्तन करने वाले हैं, हमें बेहद विश्व का मालिक बनना है।
हमें पढ़ाने वाला स्वयं विश्व का मालिक बाप है।
ऐसे बच्चों को बहुत ताकत मिलती है।
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को वा आत्माओं को रूहानी बाप परमपिता परमात्मा बैठ पढ़ाते हैं और समझाते हैं...
क्योंकि बच्चे ही पावन बनकर स्वर्ग के मालिक बनने वाले हैं फिर से।
सारे विश्व का बाप तो एक ही है।
यह बच्चों को निश्चय होता है।
सारे विश्व का बाप, सभी आत्माओं का बाप तुम बच्चों को पढ़ा रहे हैं।
इतना दिमाग में बैठता है?
क्योंकि दिमाग है तमोप्रधान, लोहे का बर्तन, आइरन एजड। दिमाग आत्मा में होता है।
तो इतना दिमाग में बैठता है?
इतनी ताकत मिलती है समझने की कि बरोबर बेहद का बाप हमको पढ़ा रहे हैं, हम बेहद विश्व को पलटते हैं।
इस समय बेहद सृष्टि को दोज़क कहा जाता है...
यह जानते हो या समझते हो गरीब दोज़क में हैं बाकी सन्यासी, साहूकार, बड़े मर्तबे वाले बहिश्त में हैं?
बाप समझाते हैं इस समय जो भी मनुष्यमात्र हैं सब दोज़क में हैं।
यह सब समझने की बातें हैं कि आत्मा कितनी छोटी है।
इतनी छोटी आत्मा में सारी नॉलेज ठहरती नहीं है या भुला देते हो?
विश्व की सर्व आत्माओं का बाप तुम्हारे सम्मुख बैठ तुमको पढ़ा रहे हैं।
सारा दिन बुद्धि में यह याद रहता है कि बरोबर बाबा हमारे साथ यहाँ है?
कितना समय बैठता है?
घण्टा, आधा घण्टा या सारा दिन?
यह दिमाग में रखने की भी ताकत चाहिए।
ईश्वर परम-पिता परमात्मा तुमको पढ़ाते हैं।
बाहर में जब अपने घरों में रहते हो तो वहाँ साथ नहीं है।
यहाँ प्रैक्टिकल में तुम्हारे साथ है।
जैसे कोई का पति बाहर में, पत्नी यहाँ है तो ऐसे थोड़ेही कहेगी कि हमारे साथ है।
बेहद का बाप तो एक ही है...
बाप सबमें तो नहीं है ना।
बाप जरूर एक जगह बैठता होगा।
तो यह दिमाग में आता है कि बेहद का बाप हमको नई दुनिया का मालिक बनाने के लायक बना रहे हैं?
दिल में इतना अपने को लायक समझते हो कि हम सारे विश्व के मालिक बनने वाले हैं?
इसमें तो बहुत खुशी की बात है।
इससे जास्ती खुशी का खजाना तो कोई को मिलता नहीं।
अभी तुमको मालूम पड़ा है यह बनने वाले हैं।
यह देवतायें कहाँ के मालिक हैं, यह भी समझते हो।
भारत में ही देवताएं होकर गये हैं।
यह तो सारे विश्व का मालिक बनने वाले हैं।
इतना दिमाग में है?
वह चलन है?
वह बातचीत करने का ढंग है, वह दिमाग है?
कोई बात में झट गुस्सा कर दिया, किसको नुकसान पहुँचाया, किसकी ग्लानि कर दी, ऐसी चलन तो नहीं चलते?
सतयुग में यह कभी कोई की ग्लानि थोड़ेही करते हैं।
वहाँ ग्लानि के छी-छी ख्यालात वाले होंगे ही नहीं।
बाप तो बच्चों को कितना जोर से उठाते हैं।
तुम बाप को याद करो तो पाप कट जायेंगे।
तुम हाथ उठाते हो परन्तु तुम्हारी ऐसी चलन है?
बाप बैठ पढ़ाते हैं, यह दिमाग में जोर से बैठता है?
बाबा जानते हैं बहुतों का नशा सोडावाटर हो जाता है।
सबको इतनी खुशी का पारा नहीं चढ़ता है।
जब बुद्धि में बैठे तब नशा चढ़े।
विश्व का मालिक बनाने के लिए बाप ही पढ़ाते हैं।
यहाँ तो सब हैं पतित, रावण सम्प्रदाय।
कथा है ना - राम ने बन्दरों की सेना ली।
फिर यह-यह किया।
अभी तुम जानते हो बाबा रावण पर जीत पहनाकर लक्ष्मी-नारायण बनाते हैं...
यहाँ तुम बच्चों से कोई पूछते हैं, तुम फट से कहेंगे हमको भगवान पढ़ाते हैं।
भगवानुवाच, जैसे टीचर कहेंगे हम तुमको बैरिस्टर अथवा फलाना बनाते हैं।
निश्चय से पढ़ाते हैं और वह बन जाते हैं।
पढ़ने वाले भी नम्बरवार होते हैं ना।
फिर पद भी नम्बरवार पाते हैं, यह भी पढ़ाई है।
बाबा एम आब्जेक्ट सामने दिखा रहे हैं।
तुम समझते हो इस पढ़ाई से हम यह बनेंगे।
खुशी की बात है ना।
आई.सी.एस. पढ़ने वाले भी समझेंगे - हम यह पढ़कर फिर यह करेंगे, घर बनायेंगे, ऐसा करेंगे।
बुद्धि में चलता है।
यहाँ फिर तुम बच्चों को बाप बैठ पढ़ाते हैं।
सबको पढ़ना है, पवित्र बनना है।
बाप से प्रतिज्ञा करनी है कि हम कोई भी अपवित्र कर्म नहीं करेंगे...
बाप कहते हैं अगर कोई उल्टा काम कर लिया तो की कमाई चट हो जायेगी।
यह मृत्युलोक पुरानी दुनिया है।
हम पढ़ते हैं नई दुनिया के लिए।
यह पुरानी दुनिया तो खत्म हो जानी है।
सरकमस्टांश भी ऐसे हैं।
बाप हमको पढ़ाते ही हैं अमरलोक के लिए।
सारी दुनिया का चक्र बाप समझाते हैं।
हाथ में कोई भी पुस्तक नहीं है, ओरली ही बाप समझाते हैं।
पहली-पहली बात बाप समझाते हैं - अपने को आत्मा निश्चय करो...
आत्मा भगवान बाप का बच्चा है।
परम-पिता परमात्मा परमधाम में रहते हैं।
हम आत्मायें भी वहाँ रहती हैं।
फिर वहाँ से नम्बरवार यहाँ आते जाते हैं पार्ट बजाने के लिए।
यह बड़ी बेहद की स्टेज है।
इस स्टेज पर पहले एक्टर्स पार्ट बजाने भारत में, नई दुनिया में आते हैं।
यह उन्हों की एक्टिविटी है।
तुम उनकी महिमा भी गाते हो।
क्या उन्हों को मल्टी-मिल्युनर कहेंगे?
उन लोगों के पास तो अनगिनत अथाह धन रहता है।
बाप तो ऐसे कहेंगे ना - यह लोग, क्योंकि बाप तो बेहद का है।
यह भी ड्रामा बना हुआ है...
तो जैसे शिवबाबा ने इन्हों को ऐसा साहूकार बनाया तो भक्तिमार्ग में फिर उनका (शिव का) मन्दिर बनाते हैं पूजा के लिए।
पहले-पहले उनकी पूजा करते हैं जिसने पूज्य बनाया।
बाप रोज़-रोज़ समझाते तो बहुत हैं, नशा चढ़ाने के लिए।
परन्तु नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जो समझते हैं, वह सर्विस में लगे रहते हैं तो ताजे रहते हैं।
नहीं तो बांसी हो जाते हैं।
बच्चे जानते हैं बरोबर यह भारत में राज्य करते थे तो और कोई धर्म नहीं था।
डीटीज्म ही थी।
फिर बाद में और-और धर्म आये हैं।
अभी तुम समझते हो यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है।
स्कूल में एम ऑब्जेक्ट तो चाहिए ना।
सतयुग आदि में यह राज्य करते थे फिर 84 के चक्र में आये हैं।
बच्चे जानते हैं यह है बेहद की पढ़ाई...
जन्म-जन्मान्तर तो हद की पढ़ाई पढ़ते आये हो, इसमें बड़ा पक्का निश्चय चाहिए।
सारे सृष्टि को पलटाने वाला, रिज्युवनेट करने वाला अर्थात् नर्क को स्वर्ग बनाने वाला बाप हमको पढ़ा रहे हैं।
इतना जरूर है मुक्तिधाम तो सब जा सकते हैं।
स्वर्ग में तो सभी नहीं आयेंगे।
यह अब तुम जानते हो हमको बाप इस विषय सागर वेश्यालय से निकालते हैं।
अभी बरोबर वेश्यालय है...
कब से शुरू होता है, यह भी तुम जान चुके हो।
2500 वर्ष हुआ जब यह रावण राज्य शुरू हुआ है।
भक्ति शुरू हुई है।
उस समय देवी-देवता धर्म वाले ही हैं, वह वाम मार्ग में आ गये।
भक्ति के लिए ही मन्दिर बनाते हैं...
सोमनाथ का मन्दिर कितना बड़ा बनाया हुआ है।
हिस्ट्री तो सुनी है। मन्दिर में क्या था!
तो उस समय कितने धनवान होंगे!
सिर्फ एक मन्दिर तो नहीं होगा ना।
हिस्ट्री में करके एक का नाम डाला है।
मन्दिर तो बहुत से राजायें बनाते हैं।
एक-दो को देख पूजा तो सब करेंगे ना।
ढेर मन्दिर होंगे।
सिर्फ एक को तो नहीं लूटा होगा।
दूसरे भी मन्दिर आसपास होंगे।
वहाँ गांव कोई दूर-दूर नहीं होते हैं।
एक-दो के नजदीक ही होते हैं क्योंकि वहाँ ट्रेन आदि तो नहीं होगी ना।
बहुत नजदीक एक-दो के रहते होंगे फिर आहिस्ते-आहिस्ते सृष्टि फैलती जाती है।
अभी तुम बच्चे पढ़ रहे हो...
बड़े ते बड़ा बाप तुमको पढ़ाते हैं।
यह तो नशा होना चाहिए ना।
घर में कभी रोना पीटना नहीं है।
यहाँ तुमको दैवी गुण धारण करने हैं।
इस पुरूषोत्तम संगमयुग में तुम बच्चों को पढ़ाया जाता है।
यह है बीच का समय जबकि तुम चेन्ज होते हो।
पुरानी दुनिया से नई दुनिया में जाना है।
अभी तुम पुरूषोत्तम संगमयुग पर पढ़ रहे हो।
भगवान तुमको पढ़ाते हैं।
सारी दुनिया को पलटाते हैं...
पुरानी दुनिया को नया बना देते हैं, जिस नई दुनिया का फिर तुमको मालिक बनना है।
बाप बांधा हुआ है तुमको युक्ति बताने के लिए।
तो फिर तुम बच्चों को भी उस पर अमल करना है।
यह तो समझते हो हम यहाँ के रहने वाले नहीं हैं।
तुम यह थोड़ेही जानते थे कि हमारी राजधानी थी।
अभी बाप ने समझाया है - रावण के राज्य में तुम बहुत दु:खी हो।
इसको कहा ही जाता है विकारी दुनिया।
यह देवतायें हैं सम्पूर्ण निर्विकारी।
अपने को विकारी कहते हैं।
अब यह रावण राज्य कब से शुरू हुआ, क्या हुआ ज़रा भी किसको पता नहीं है।
बुद्धि बिल्कुल तमोप्रधान है।
पारसबुद्धि सतयुग में थे, तो विश्व के मालिक थे, अथाह सुखी थे।
उसका नाम ही है सुखधाम।
यहाँ तो अथाह दु:ख हैं।
सुख की दुनिया और दु:ख की दुनिया कैसे है - यह भी बाप समझाते हैं।
सुख कितना समय, दु:ख कितना समय चलता है, मनुष्य तो कुछ नहीं जानते।
तुम्हारे में भी नम्बरवार समझते रहते हैं।
समझाने वाला तो है बेहद का बाप।
कृष्ण को बेहद का बाप थोड़ेही कहेंगे...
दिल से लगता ही नहीं।
परन्तु किसको बाप कहें - कुछ भी समझते नहीं।
भगवान समझाते हैं मेरी ग्लानि करते हैं, मैं तुमको देवता बनाता हूँ, मेरी कितनी ग्लानि की है फिर देवताओं की भी ग्लानि कर दी है, इतने मूढ़मती मनुष्य बन पड़े हैं।
कहते हैं भज गोविन्द......।
बाप कहते हैं - हे मूढ़मती, गोविन्द-गोविन्द, राम-राम कहते बुद्धि में कुछ आता नहीं कि किसको भजते हैं।
पत्थरबुद्धि को मूढ़मती ही कहेंगे।
बाप कहते हैं अब मैं तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ।
बाप सर्व का सद्गति दाता है।
बाप समझाते हैं तुम अपने परिवार आदि में कितने फँसे हुए हो!
भगवान जो कहते हैं वह तो बुद्धि में लाना चाहिए परन्तु आसुरी मत पर हिरे हुए हैं तो ईश्वरीय मत पर चलें कैसे!
गोविन्द कौन है, क्या चीज है, वह भी जानते नहीं।
बाप समझाते हैं तुम कहेंगे बाबा आपने अनेक बार हमें समझाया है।
यह भी ड्रामा में नूँध है, बाबा हम फिर से आपसे यह वर्सा ले रहे हैं।
हम नर से नारायण जरूर बनेंगे।
स्टूडेन्ट को पढ़ाई का नशा जरूर रहता है, हम यह बनेंगे।
निश्चय रहता है।
अब बाप कहते हैं तुमको सर्वगुण सम्पन्न बनना है।
कोई से क्रोध आदि नहीं करना है।
देवताओं में 5 विकार होते नहीं।
श्रीमत पर चलना चाहिए।
श्रीमत पहले-पहले कहती है अपने को आत्मा समझो...
तुम आत्मा परमधाम से यहाँ आई हो पार्ट बजाने, यह तुम्हारा शरीर विनाशी है।
आत्मा तो अविनाशी है।
तो तुम अपने को आत्मा समझो - मैं आत्मा परमधाम से यहाँ आई हूँ पार्ट बजाने।
अभी यहाँ दु:खी होते हो तब कहते हो मुक्तिधाम में जावें।
परन्तु तुमको पावन कौन बनाये?
बुलाते भी एक को ही हैं, तो वह बाप आकर कहते हैं - मेरे मीठे-मीठे बच्चों अपने को आत्मा समझो, देह नहीं समझो।
मैं आत्माओं को बैठ समझाता हूँ।
आत्मायें ही बुलाती हैं - हे पतित-पावन आकर पावन बनाओ।
भारत में ही पावन थे।
अब फिर बुलाते हैं - पतित से पावन बनाकर सुखधाम में ले चलो।
कृष्ण के साथ तुम्हारी प्रीत तो है...
कृष्ण के लिए सबसे जास्ती व्रत नेम आदि कुमारियाँ, मातायें रखती हैं।
निर्जल रहती हैं।
कृष्णपुरी अर्थात् सतयुग में जायें।
परन्तु ज्ञान नहीं है इसलिए बड़ा हठ आदि करते हैं।
तुम भी इतना करते हो, कोई को सुनाने के लिए नहीं, खुद कृष्णपुरी में जाने के लिए।
तुमको कोई रोकता नहीं है।
वो लोग गवर्मेन्ट के आगे फास्ट आदि रखते हैं, हठ करते हैं - तंग करने के लिए।
तुमको कोई के पास धरना मारकर नहीं बैठना है।
न कोई ने तुमको सिखाया है।
श्रीकृष्ण तो है सतयुग का फर्स्ट प्रिन्स।
परन्तु यह कोई को भी पता नहीं पड़ता।
कृष्ण को वह द्वापर में ले गये हैं।
बाप समझाते हैं - मीठे-मीठे बच्चों, भक्ति और ज्ञान दो चीज़ें अलग हैं...
ज्ञान है दिन, भक्ति है रात। किसकी? ब्रह्मा की रात और दिन।
परन्तु इनका अर्थ न समझते हैं गुरू, न उनके चेले।
ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का राज़ बाप ने तुम बच्चों को समझाया है।
ज्ञान दिन, भक्ति रात और उसके बाद है वैराग्य।
वह जानते नहीं।
ज्ञान, भक्ति, वैराग्य अक्षर एक्यूरेट है, परन्तु अर्थ नहीं जानते।
अभी तुम बच्चे समझ गये हो, ज्ञान बाप देते हैं तो उससे दिन हो जाता है।
भक्ति शुरू होती तो रात कहा जाता है क्योंकि धक्का खाना पड़ता है।
ब्रह्मा की रात सो ब्राह्मणों की रात, फिर होता है दिन।
ज्ञान से दिन, भक्ति से रात।
रात में तुम बन-वास में बैठे हो फिर दिन में तुम कितना धनवान बन जाते हो।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
अपने दिल से पूछना है:-
1) बाप से इतना जो खुशी का खजाना मिलता है वह दिमाग में बैठता है?
2) बाबा हमें विश्व का मालिक बनाने आये हैं तो ऐसी चलन है? बातचीत करने का ढंग ऐसा है? कभी किसी की ग्लानि तो नहीं करते?
3- बाप से प्रतिज्ञा करने के बाद कोई अपवित्र कर्म तो नहीं होता है?
वरदान:-
बीती को श्रेष्ठ विधि से
बीती कर यादगार स्वरूप बनाने वाले
पास विद आनर भव
"पास्ट इज़ पास्ट'' तो होना ही है।
समय और दृश्य सब पास हो जायेंगे लेकिन पास विद आनर बनकर हर संकल्प वा समय को पास करो अर्थात्
बीती को ऐसी श्रेष्ठ विधि से बीती करो,
जो बीती को स्मृति में लाते ही वाह, वाह के बोल दिल से निकलें।
अन्य आत्मायें आपकी बीती हुई स्टोरी से पाठ पढ़ें।
आपकी बीती, यादगार-स्वरूप बन जाए तो कीर्तन अर्थात् कीर्ति गाते रहेंगे।
स्लोगन:-
स्व कल्याण का श्रेष्ठ प्लैन बनाओ तब विश्व सेवा में सकाश मिलेगी।