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13-10-19 प्रात:मुरली अव्यक्त-बापदादा रिवाइज: 21-02-85 मधुबन

शीतलता की शक्ति

आज ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा अपने लकी और लवली सितारों को देख रहे हैं।

यह रूहानी तारामण्डल सारे कल्प में कोई देख नहीं सकता।

आप रूहानी सितारे और ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा इस अति न्यारे और प्यारे तारामंडल को देखते हो।

इस रूहानी तारामण्डल को साइंस की शक्ति नहीं देख सकती।

साइलेन्स की शक्ति वाले इस तारामण्डल को देख सकते, जान सकते हैं।

तो आज तारामण्डल का सैर करते भिन्न-भिन्न सितारों को देख बापदादा हर्षित हो रहे हैं...

कैसे हर एक - सितारा ज्ञान सूर्य द्वारा सत्यता की लाइट माइट ले बाप समान सत्यता की शक्ति सम्पन्न सत्य स्वरूप बने हैं।

और ज्ञान चन्द्रमा द्वारा शीतलता की शक्ति धारण कर चन्द्रमा समान शीतल स्वरूप बने हैं।

यह दोनों शक्तियाँ सत्यता और शीतलता सदा सहज सफलता को प्राप्त कराती हैं।

क तरफ सत्यता की शक्ति का ऊंचा नशा दूसरे तरफ जितना ऊंचा नशा उतना ही शीतलता के आधार से कैसे भी उल्टे नशे वा क्रोधित आत्मा को भी शीतल बनाने वाले।

कैसा भी अहंकार के नशे में मैं, मैं करने वाला हो लेकिन शीतलता की शक्ति से मैं, मैं के बजाए बाबा-बाबा कहने लग पड़े।

सत्यता को भी शीतलता की शक्ति से सिद्ध करने से सिद्धि प्राप्त होती है।

नहीं तो सिवाए शीतलता की शक्ति के सत्यता को सिद्ध करने के लक्ष्य से करते सिद्ध हैं लेकिन अज्ञानी सिद्ध को जिद्द समझ लेते हैं इसलिए सत्यता और शीतलता दोनों शक्तियाँ समान और साथ चाहिए क्योंकि आज के विश्व का हर एक मानव किसी न किसी अग्नि में जल रहा है।

ऐसी अग्नि में जलती हुई आत्मा को पहले शीतलता की शक्ति से अग्नि को शीतल करो तब शीतलता के आधार से सत्यता को जान सकेंगे।

शीतलता की शक्ति अर्थात् आत्मिक स्नेह की शक्ति।

चन्द्रमा माँ स्नेह की शीतलता से कैसे भी बिगड़े हुए बच्चे को बदल लेती है।

तो स्नेह अर्थात् शीतलता की शक्ति किसी भी अग्नि में जली हुई आत्मा को शीतल बनाए सत्यता को धारण कराने के योग्य बना देती है।

पहले चन्द्रमा की शीतलता से योग्य बनते फिर ज्ञान सूर्य के सत्यता की शक्ति से योगी बन जाते!

तो ज्ञान चन्द्रमा के शीतलता की शक्ति बाप के आगे जाने के योग्य बना देती है।

योग्य नहीं तो योगी भी नहीं बन सकते हैं।

तो सत्यता जानने के पहले शीतल हो।

सत्यता को धारण करने की शक्ति चाहिए।

तो शीतलता की शक्ति वाली आत्मा स्वयं भी संकल्पों की गति में, बोल में, सम्पर्क में हर परिस्थिति में शीतल होगी।

संकल्प की स्पीड फास्ट होने के कारण वेस्ट भी बहुत होता और कन्ट्रोल करने में भी समय जाता है।

जब चाहें तब कन्ट्रोल करें वा परिवर्तन करें इसमें समय और शक्ति ज्यादा लगानी पड़ती।

यथार्थ गति से चलने वाले अर्थात् शीतलता की शक्ति स्वरूप रहने वाले व्यर्थ से बच जाते हैं।

एक्सीडेंट से बच जाते।

यह क्यों, क्या, ऐसा नहीं वैसा इस व्यर्थ फास्ट गति से छूट जाते हैं।

जैसे वृक्ष की छाया किसी भी राही को आराम देने वाली है, सहयोगी है।

ऐसे शीतलता की शक्ति वाला अन्य आत्माओं को भी अपने शीतलता की छाया से सदा सहयोग का आराम देता है।

हर एक को आकर्षण होगा कि इस आत्मा के पास जाए दो घड़ी में भी शीतलता की छाया में शीतलता का सुख, आनन्द लेवें।

जैसे चारों ओर बहुत तेज धूप हो तो छाया का स्थान ढूंढेंगे ना।

ऐसे आत्माओं की नजर वा आकर्षण ऐसी आत्माओं तरफ जाती है।

अभी विश्व में और भी विकारों की आग तेज होनी है-जैसे आग लगने पर मनुष्य चिल्लाता है ना।

शीतलता का सहारा ढूंढता है।

ऐसे यह मनुष्य आत्मायें आप शीतल आत्माओं के पास तड़पती हुई आयेंगी।

ज़रा-सा शीतलता के छींटे भी लगाओ। ऐसे चिल्लायेंगी।

एक तरफ विनाश की आग, दूसरे तरफ विकारों की आग; तीसरे तरफ देह और देह के संबंध, पदार्थ के लगाव की आग; चौथे तरफ पश्चाताप की आग।

चारों ओर आग ही आग दिखाई देगी।

तो ऐसे समय पर आप शीतलता की शक्ति वाली शीतलाओं के पास भागते हुए आयेंगे।

सेकण्ड के लिए भी शीतल करो।

ऐसे समय पर इतनी शीतलता की शक्ति स्वयं में जमा हो जो चारों ओर की आग का स्वयं में सेक न लग जाए।

चारों तरफ की आग मिटाने वाले शीतलता का वरदान देने वाले शीतला बन जाओ।

अगर जरा भी चारों प्रकार की आग में से किसी का भी अंश मात्र रहा हुआ होगा तो चारों ओर की आग अंश मात्र रही हुई आग को पकड़ लेगी।

जैसे आग आग को पकड़ लेती है ना।

तो यह चेक करो।

विनाश ज्वाला की आग्नि से बचने का साधन-निर्भयता की शक्ति है।

निर्भयता विनाश ज्वाला के प्रभाव से डगमग नहीं करेगी।

हलचल में नहीं लाएगी।

निर्भयता के आधार से विनाश ज्वाला में भयभीत आत्माओं को शीतलता की शक्ति देंगे।

आत्मा भय की अग्नि से बच शीतलता के कारण खुशी में नाचेगी।

विनाश देखते भी स्थापना के नजारे देखेंगे।

उनके नयनों में एक ऑख में मुक्ति-स्वीट होम दूसरी ऑख में जीवन मुक्ति अर्थात् स्वर्ग समाया हुआ होगा।

उसको अपना घर अपना राज्य ही दिखाई देगा।

लोग चिल्लायेंगे हाय गया, हाय मरा और आप कहेंगे अपने मीठे घर में, अपने मीठे राज्य में गया

नथिंग न्यू।

यह घुंघरूँ पहनेंगे।

हमारा घर, हमारा राज्य-इस खुशी में नाचते गाते साथ चलेंगे।

वह चिल्लायेंगे और आप साथ चलेंगे।

सुनने में ही सबको खुशी हो रही है तो उस समय कितनी खुशी में होंगे!

तो चारों ही आग से शीतल हो गये हो ना?

सुनाया ना-विनाश ज्वाला से बचने का साधन है निर्भयता...

ऐसे ही विकारों की आग के अंश मात्र से बचने का साधन है-अपने आदि अनादि वंश को याद करो।

अनादि बाप के वंश सम्पूर्ण सतोप्रधान आत्मा हूँ।

आदि वंश-देव आत्मा हूँ। देव आत्मा 16 कला सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी है।

तो अनादि आदि वंश को याद करो तो विकारों का अंश भी समाप्त हो जायेगा।

ऐसे ही तीसरी देह, देह के सम्बन्ध और पदार्थ के ममता की आग।

इस अग्नि से बचने का साधन है बाप को संसार बनाओ।

बाप ही संसार है तो बाकी सब असार हो जायेगा।

लेकिन करते क्या हैं वह फिर दूसरे दिन सुनायेंगे।

बाप ही संसार है यह याद है तो न देह, न सम्बन्ध, न पदार्थ रहेगा।

सब समाप्त।

चौथी बात-पश्चाताप की आग-इसका सहज साधन है सर्व प्राप्ति स्वरूप बनना।

अप्राप्ति पश्चाताप कराती है।

प्राप्ति पश्चाताप को मिटाती है। अब हर प्राप्ति को सामने रख चेक करो।

किसी भी प्राप्ति का अनुभव करने में रह तो नहीं गये हैं।

प्राप्तियों की लिस्ट तो है ना।

अप्राप्ति समाप्त अर्थात् पश्चाताप समाप्त।

अब इन चारों बातों को चेक करो तब ही शीतलता स्वरूप बन जायेंगे।

औरों की तपत को बुझाने वाले शीतल योगी व शीतला देवी बन जायेंगे।

तो समझा शीतलता की शक्ति क्या है। सत्यता की शक्ति का सुनाया भी है।

आगे भी सुनायेंगे। तो सुना तारामण्डल में क्या देखा। विस्तार फिर सुनायेंगे।

अच्छा- ऐसे सदा चन्द्रमा समान शीतलता के शक्ति स्वरूप बच्चों को, सत्यता की शक्ति से सतयुग लाने वाले बच्चों को, सदा शीतलता की छाया से सर्व को दिल का आराम देने वाले बच्चों को, सदा चारों ओर की अग्नि से सेफ रहने वाले शीतल योगी शीतला देवी बच्चों को ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा का यादप्यार और नमस्ते।

विदेशी टीचर्स भाई बहिनों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात:-

यह कौन-सा ग्रुप है? (राइटहैण्ड सेवाधारियों का) आज बापदादा अपने फ्रैन्ड्स से मिलने आये हैं। फ्रैन्डस का नाता रमणीक है।

जैसे बाप सदा बच्चों के स्नेह में समाये हुए हैं वैसे बच्चे भी बाप के स्नेह में समाये हुए हैं।

तो यह लवलीन ग्रुप है...

खाते-पीते, चलते कहाँ लीन रहते हो?

लव में ही रहते हो ना!

यह लवलीन रहने की स्थिति सदा हर बात में सहज ही बाप समान बना देती है क्योंकि बाप के लव में लीन हैं तो संग का रंग लगेगा ना।

मेहनत वा मुश्किल से छूटने का सहज साधन है लवलीन रहना।

यह लवलीन अवस्था लकी है, इसके अन्दर माया नहीं आ सकती है।

तो बापदादा के अति स्नेही, समीप, समान ग्रुप है।

आपके संकल्प और बाप के संकल्प में अन्तर नहीं है।

ऐसे समीप हो ना?

तब तो बाप समान विश्व कल्याणकारी बन सकते हो।

जो बाप का संकल्प वह बच्चों का। जो बाप के बोल वह बच्चों के।

तो हर कर्म आपके क्या बन जाऍ? (आइना) तो हर कर्म ऐसा आइना हो जिसमें बाप दिखाई दे।

ऐसा ग्रुप है ना।

जैसे कई आइने होते हैं, दुनिया में भी ऐसे आइने बनाते हैं जिसमें बड़े से छोटा, छोटा से बड़ा दिखाई पड़ता है।

तो आपका हर कर्म रूपी दर्पण क्या दिखायेगा?

डबल दिखाई दे-आप और बाप।

आपमें बाप दिखाई दे।

आप बाप के साथ दिखाई दो।

जैसे ब्रह्मा बाप में सदा डबल दिखाई देता था ना।

ऐसे आप हरेक में सदा बाप दिखाई दे तो डबल दिखाई दिया ना।

ऐसे आइने हो?

सेवाधारी विशेष किस सेवा के निमित हो!

बाप को प्रत्यक्ष करने की ही विशेष सेवा है।

तो अपने हर कर्म, बोल, संकल्प द्वारा बाप को दिखाना।

इसी कार्य में सदा रहते हो ना!

कभी भी कोई आत्मा अगर आत्मा को देखती है कि यह बहुत अच्छा बोलती, यह बहुत अच्छी सेवा करती, यह बहुत अच्छी दृष्टि देती।

तो यह भी बाप को नहीं देखा आत्मा को देखा।

यह भी रांग हो जाता है।

आपको देखकर मुख से यह निकले 'बाबा'!

तभी कहेंगे पावरफुल दर्पण हो।

अकेली आत्मा नहीं दिखाई दे, बाप दिखाई दे।

इसी को कहा जाता है यथार्थ सेवाधारी। समझा!

जितना आपके हर संकल्प में, बोल में बाबा बाबा होगा उतना औरों को आप से बाबा दिखाई देगा।

जैसे आजकल के साइंस के साधनों से आगे जो पहली चीज दिखाते वह गुम हो जाती और दूसरी दिखाई देती।

ऐसे आपके साइलेन्स की शक्ति आपको देखते हुए आपको गुम कर दे।

बाप को प्रत्यक्ष कर दे।

ऐसी शक्तिशाली सेवा हो।

बाप से संबंध जोड़ने से आत्मायें सदा शक्तिशाली बन जाती हैं।

अगर आत्मा से संबंध जुट जाता तो सदा के लिए शक्तिशाली नहीं बन सकते।

समझा।

सेवाधारियों की विशेष सेवा क्या है?

अपने द्वारा बाप को दिखाना।

आपको देखें और बाबा बाबा के गीत गाने शुरू कर दें।

ऐसी सेवा करते हो ना!

अच्छा- सभी अमृतवेले दिल खुश मिठाई खाते हो?

सेवाधारी आत्मायें रोज दिल-खुश मिठाई खायेंगे तो दूसरों को भी खिलायेंगी।

फिर आपके पास दिलशिकस्त की बातें नहीं आयेंगी जिज्ञासु यह बातें नहीं लेकर आयेंगे।

नहीं तो इसमें भी समय देना पड़ता है ना।

फिर यह टाइम बच जायेगा।

और इसी टाइम में अनेक औरों को दिलखुश मिठाई खिलाते रहेंगे।

अच्छा- आप सभी सदा दिलखुश रहते हो?

कभी कोई सेवाधारी रोते तो नहीं।

मन में भी रोना होता है सिर्फ ऑखों का नहीं।

तो रोने वाले तो नहीं हो ना!

अच्छा शिकायत करने वाले हो?

बाप के आगे शिकायत करते हो?

ऐसा मेरे से क्यों होता!

मेरा ही ऐसा पार्ट क्यों है!

मेरे ही संस्कार ऐसे क्यों हैं!

मेरे को ही ऐसे जिज्ञासु क्यों मिले हैं या मेरे को ही ऐसा देश क्यों मिला है!

ऐसी शिकायत करने वाले तो नहीं?

शिकायत माना भक्ति का अंश।

कैसा भी हो लेकिन परिवर्तन करना यह सेवा-धारियों का विशेष कर्तव्य है।

चाहे देश है, चाहे जिज्ञासु हैं, चाहे अपने संस्कार हैं, चाहे साथी हैं, शिकायत के बजाए परिवर्तन करने को कार्य में लगाओ।

सेवाधारी कभी भी दूसरों की कमजोरी को नहीं देखो।

अगर दूसरे की कमजोरी को देखा तो स्वयं भी कमजोर हो जायेंगे इसलिए सदा हर एक की विशेषता को देखो

विशेषता को धारण करो

विशेषता का ही वर्णन करो।

यही सेवाधारी के विशेष उड़ती कला का साधन है।

समझा! और क्या करते हैं सेवाधारी?

प्लैन बहुत अच्छे-अच्छे बनाते हैं।

उमंग-उत्साह भी अच्छा है।

बाप और सेवा से स्नेह भी अच्छा है।

अभी आगे क्या करना है?

अभी विश्व में विशेष दो सत्तायें हैं (1) राज्य सत्ता (2) धर्म सत्ता।

धर्म नेतायें और राज्य नेतायें।

और आक्यूपेशन वाले भी अलग-अलग हैं लेकिन सत्ता इन दो के साथ में है।

तो अभी इन दोनों सत्ताओं को ऐसा स्पष्ट अनुभव हो कि धर्म सत्ता भी अभी सत्ताहीन हो गई है और राज्य सत्ता वाले भी अनुभव करें कि हमारे में नाम राज्य सत्ता है लेकिन सत्ता नहीं है।

कैसे अनुभव कराओ - उसका साधन क्या है?

जो भी राज नेतायें वा धर्म नेतायें हैं उन्हों को "पवित्रता और एकता'' इसका अनुभव कराओ।

इसी की कमी के कारण दोनों सत्तायें कमजोर हैं।

तो प्युरिटी क्या है, युनिटी क्या है इसी पर उन्हों को स्पष्ट समझानी मिलने से वह स्वयं ही समझेंगे हम कमजोर हैं और यह शक्तिशाली हैं।

इसी के लिए विशेष मनन करो।

धर्मसत्ता को धर्मसत्ता हीन बनाने का विशेष तरीका है-पवित्रता को सिद्ध करना।

और राज्य सत्ता वालों के आगे एकता को सिद्ध करना।

इस टापिक पर मनन करो।

प्लैन बनाओ और उन्हों तक पहुँचाओ।

इन दोनों ही शक्तियों को सिद्ध किया तो ईश्वरीय सत्ता का झण्डा बहुत सहज लहरायेगा।

अभी इन दोनों की तरफ विशेष अटेन्शन चाहिए।

अन्दर तो समझते हैं लेकिन अभी बाहर का अभिमान है।

जैसे-जैसे प्युरिटी और युनिटी की शक्ति से इन्हों के समीप सम्पर्क में आते रहेंगे वैसे-वैसे वह स्वयं ही अपना वर्णन करने लगेंगे।

समझा!

जब दोनों ही सत्ताओं को कमजोर सिद्ध करो तब प्रत्यक्षता हो।

अच्छा! बाकी तो सेवाधारी ग्रुप है ही सदा सन्तुष्ट...

अपने से, साथियों से, सेवा से सर्व प्रकार से सन्तुष्ट योगी।

यह सन्तुष्टता का सर्टीफिकेट लिया है ना।

बापदादा, निमित दादी दीदियाँ सब आपको सर्टीफिकेट दें कि हाँ यह सन्तुष्ट योगी हैं।

चलते फिरते भी सर्टीफिकेट मिलता है।

अच्छा, कभी मूड आफ तो नहीं करते?

कभी सेवा से थक कर मूड आफ तो नहीं होती है?

क्या करना है, इतना क्या पड़ी है? ऐसे तो नहीं!

तो अभी यह सब बातें अपने में चेक करना।

अगर कोई हो तो चेन्ज कर लेना क्योंकि सेवाधारी अर्थात् स्टेज पर हर कर्म करने वाले।

स्टेज पर सदा श्रेष्ठ और युक्तियुक्त हर कदम उठाना होता है।

ऐसे कभी भी नहीं समझना कि मैं फलाने देश में सेन्टर पर बैठी हूँ।

लेकिन विश्व की स्टेज पर बैठी हो।

इस स्मृति में रहने से हर कर्म स्वत: ही श्रेष्ठ होगा।

आपको फालो करने वाले भी बहुत हैं, इसलिए सदा आप बाप को फालो करेंगे तो आपको फालो करने वाले भी बाप को फालो करेंगे।

तो इनडायरेक्ट फालोफादर हो जायेगा क्योंकि आपका हर कर्म फालो फादर है इसलिए यह स्मृति सदा रखना।

अच्छा- मुहब्बत के कारण मेहनत से परे हो।

वरदान:-

एक बाप को कम्पैनियन बनाने वा उसी कम्पन्नी में रहने वाले

सम्पूर्ण पवित्र आत्मा भव

सम्पूर्ण पवित्र आत्मा वह है जिसके संकल्प और स्वप्न में भी ब्रह्मचर्य की धारणा हो, जो हर कदम में ब्रह्मा बाप के आचरण पर चलने वाला हो।

पवित्रता का अर्थ है - सदा बाप को कम्पै-नियन बनाना और बाप की कम्पन्नी में ही रहना।

संगठन की कम्पन्नी, परिवार के स्नेह की मर्यादा अलग चीज है, लेकिन बाप के कारण ही यह संगठन के स्नेह की कम्पन्नी है, बाप नहीं होता तो परिवार कहाँ से आता।

बाप बीज है, बीज को कभी नहीं भूलना।

स्लोगन:-

किसी के प्रभाव में प्रभावित होने वाले नहीं, ज्ञान का प्रभाव डालने वाले बनो।