यह तो जानते हैं, कोई राजा-रानी बनते हैं, कोई क्या बनते हैं, कोई क्या बनते हैं।
प्रजा भी तो बहुत बनती है।
सारा एक्टिविटी से मालूम पड़ता है।
यह देह-अभिमान में कितना रहते हैं, इनका कितना लव है बाप से।
बाप के साथ ही लव चाहिए ना, भाई-भाई का नहीं।
भाइयों के लव से कुछ मिलता नहीं है।
वर्सा सबको एक बाप से मिलना है।
बाप कहते हैं - बच्चे, अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप कट जाएं...
मूल बात ही यह है।
याद से ताकत आयेगी।
दिन-प्रतिदिन बैटरी भरती जायेगी क्योंकि ज्ञान की धारणा होती जाती है ना।
तीर लगता जाता है।
दिन-प्रतिदिन तुम्हारी उन्नति नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार होती रहती है।
यह एक ही बाप-टीचर-सतगुरू है जो देही-अभिमानी बनने की शिक्षा देते हैं, और कोई दे न सके और तो सब हैं देह-अभिमानी, आत्म-अभिमानी की नॉलेज कोई को मिलती ही नहीं।
कोई मनुष्य बाप, टीचर, गुरू हो न सके।
हर एक अपना-अपना पार्ट बजा रहे हैं...
तुम साक्षी हो देखते हो।
सारा नाटक तुमको साक्षी हो देखना है।
एक्ट भी करना है।
बाप क्रियेटर, डायरेक्टर, एक्टर हैं।
शिवबाबा आकर एक्ट करते हैं।
सबका बाप है ना।
बच्चे अथवा बच्चियाँ सबको आकर वर्सा देते हैं।
एक बाप है, बाकी सब हैं आत्मायें भाई-भाई।
वर्सा एक बाप से ही मिलता है।
इस दुनिया की तो कोई चीज़ बुद्धि में याद नहीं आती है।
बाप कहते हैं जो कुछ देखते हो यह सब विनाशी हैं।
अभी तो तुमको घर जाना है।
वो लोग ब्रह्म को याद करते हैं गोया घर को याद करते हैं...
समझते हैं ब्रह्म में लीन हो जायेंगे।
इसको कहा जाता है अज्ञान।
मनुष्य मुक्ति-जीवनमुक्ति के लिए जो कुछ कहते हैं वह रांग, जो कुछ युक्ति रचते हैं, सब है रांग।
राइट रास्ता तो एक ही बाप बतलाते हैं।
बाप कहते हैं हम तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ ड्रामा प्लैन अनुसार।
कई कहते हैं हमारी बुद्धि में नहीं बैठता, बाबा हमारा मुख खोलो, कृपा करो...
बाप कहते हैं इसमें बाबा को तो कुछ करने की बात ही नहीं है।
मुख्य बात है तुमको डायरेक्शन पर चलना है।
बाप का ही राइट डायरेक्शन मिलता है, बाकी सब मनुष्यों के हैं रांग डायरेक्शन क्योंकि सबमें 5 विकार हैं ना।
नीचे ही उतरते-उतरते रांग बनते जाते हैं।
क्या-क्या रिद्धि-सिद्धि आदि करते रहते हैं।
उनमें सुख नहीं है।
तुम जानते हो यह सब अल्पकाल के सुख हैं।
उनको कहा जाता है काग विष्टा समान सुख।
सीढ़ी के चित्र पर बहुत अच्छी रीति समझाना है और झाड़ पर भी समझाना है...
कोई भी धर्म वाले को तुम दिखा सकते हो, तुम्हारा धर्म स्थापन करने वाला फलाने-फलाने समय पर आता है, क्राइस्ट फलाने टाइम आयेगा।
जो और-और धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं उन्हों को यह धर्म ही अच्छा लगेगा, फट निकल आयेंगे।
बाकी कोई को अच्छा नहीं लगेगा तो वह पुरूषार्थ ही कैसे करेंगे।
मनुष्य, मनुष्य को फांसी पर चढ़ाते हैं...
तुमको तो एक बाप की ही याद में रहना है, यह बड़ी मीठी फांसी है।
आत्मा की बुद्धि का योग है बाप की तरफ।
आत्मा को कहा जाता है बाप को याद करो।
यह याद की फाँसी है।
फादर तो ऊपर रहते हैं ना।
तुम जानते हो हम आत्मा हैं, हमको बाप को ही याद करना है।
यह शरीर तो यहाँ ही छोड़ देना है।
तुमको यह सारा ज्ञान है।
तुम यहाँ बैठ क्या करते हो?
वाणी से परे जाने के लिए पुरूषार्थ करते हो।
बाप कहते हैं सबको मेरे पास आना है।
तो कालों का काल हो गया ना।
वह काल तो एक को ले जाते हैं, वह भी काल कोई है नहीं जो ले जाता।
यह तो ड्रामा में सब नूँध है।
आत्मा आपेही समय पर चली जाती है।
यह बाप तो सब आत्माओं को ले जाते हैं।
तो अब तुम सबका बुद्धियोग है अपने घर जाने के लिए।
शरीर छोड़ने को मरना कहा जाता है।
शरीर खत्म हो गया, आत्मा चली गई।
बाप को बुलाते भी इसलिए हैं कि बाबा आकर हमको इस सृष्टि से ले जाओ।
यहाँ हमको रहना नहीं है।
ड्रामा के प्लैन अनुसार अब वापिस जाना है।
कहते हैं बाबा यहाँ अपार दुख हैं।
अब यहाँ रहना नहीं है।
यह बहुत छी-छी दुनिया है।
मरना भी जरूर है।
सबकी वान-प्रस्थ अवस्था है।
अभी वाणी से परे जाना है।
तुमको कोई काल नहीं खायेगा।
तुम खुशी से जाते हो।
शास्त्र आदि जो भी हैं वह सब भक्ति मार्ग के हैं, यह फिर भी होंगे...
ड्रामा की यह बड़ी वन्डरफुल बात है।
यह टेप, यह घड़ी जो कुछ इस समय देखते हो वह सब फिर होगा।
इसमें मूँझने की कोई बात ही नहीं है।
वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट का अर्थ ही है हूबहू रिपीट।
अभी तुम जानते हो हम फिर से सो देवी-देवता बन रहे हैं, वही फिर बनेंगे।
इसमें ज़रा भी फर्क नहीं पड़ सकता है।
यह सब समझने की बातें हैं।
तुम जानते हो वह बेहद का बाप भी है, टीचर-सतगुरू भी है।
ऐसा कोई मनुष्य हो न सके।
इनको तुम बाबा कहते हो...
प्रजापिता ब्रह्मा कहते हो।
यह भी कहते हैं मेरे से तुमको वर्सा नहीं मिलेगा।
बापू गांधी जी भी प्रजा-पिता नहीं था ना।
बाप कहते हैं इन बातों में तुम मूँझो मत।
बोलो हम ब्रह्मा को भगवान वा देवता आदि कहते ही नहीं हैं।
बाप ने बताया है बहुत जन्मों के अन्त में, वानप्रस्थ अवस्था में मैं इनमें प्रवेश करता हूँ सारे विश्व को पावन बनाने के लिए।
झाड़ में भी दिखाओ, देखो एकदम पिछाड़ी में खड़ा है।
अब तो सब तमोप्रधान जड़जड़ीभूत अवस्था में हैं ना।
यह भी तमोप्रधान में खड़े हैं, वही फीचर्स हैं।
इसमें बाप प्रवेश कर इनका नाम ब्रह्मा रखते हैं।
नहीं तो तुम बताओ ब्रह्मा नाम कहाँ से आया?
यह है पतित, वह है पावन।
वह पावन देवता ही फिर 84 जन्म ले पतित मनुष्य बनते हैं।
यह मनुष्य से देवता बनने वाला है।
मनुष्य को देवता बनाना - यह बाप का ही काम है।
यह सब बड़ी वन्डरफुल समझने की बातें हैं।
यह, वह बनते हैं सेकेण्ड में, फिर वह 84 जन्म ले यह बनते हैं।
इनमें बाप प्रवेश कर बैठ पढ़ाते हैं, तुम भी पढ़ते हो।
इनका भी घराना है ना।
लक्ष्मी-नारायण, राधे-कृष्ण के मन्दिर भी हैं...
परन्तु यह किसको भी पता नहीं है, राधे-कृष्ण पहले प्रिन्स-प्रिन्सेज हैं जो फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं।
यह बेगर टू प्रिन्स बनेंगे।
प्रिन्स सो बेगर बनते हैं।
कितनी सहज बात है।
84 जन्मों की कहानी इन दोनों चित्रों में है।
यह वह बनते हैं।
युगल है इसलिए 4 भुजा देते हैं।
प्रवृत्ति मार्ग है ना।
एक सतगुरू ही तुम्हें पार ले जाते हैं
बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं फिर दैवीगुण भी चाहिए...
स्त्री के लिए पति से पूछो वा स्त्री से पति के लिए पूछो तो झट बतायेगी इनमें यह खामियां हैं।
इस बात में यह तंग करते हैं या तो कहेंगे हम दोनों ठीक चलते हैं।
कोई किसको तंग नहीं करते हैं, दोनों एक-दो के मददगार साथी होकर चलते हैं।
कोई एक-दो को गिराने की कोशिश करते हैं।
बाप कहते हैं इसमें स्वभाव को अच्छी रीति बदलना पड़ता है।
वह सब है आसुरी स्वभाव।
देवताओं का होता ही है दैवी स्वभाव।
यह सब तुम जानते हो, असुरों और देवताओं की युद्ध लगी नहीं है...
पुरानी दुनिया और नई दुनिया के आपस में मिल कैसे सकते हैं।
बाप कहते हैं पास्ट बातें जो होकर गई हैं उनको बैठ लिखा है,
उनको कहानियाँ कहेंगे।
त्योहार आदि सब यहाँ के हैं...
द्वापर से लेकर मनाते हैं।
सतयुग में नहीं मनाये जाते।
यह सब बुद्धि से समझने की बातें हैं।
देह-अभिमान के कारण बच्चे बहुत प्वाइंट्स भूल जाते हैं।
नॉलेज तो सहज है।
7 रोज़ में सारी नॉलेज धारण हो सकती है।
पहले अटेन्शन चाहिए याद की यात्रा पर।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस बेहद नाटक में एक्ट करते हुए सारे नाटक को साक्षी होकर देखना है।
इसमें मूँझना नहीं है।
इस दुनिया की कोई भी चीज़ देखते हुए बुद्धि में याद न आये।
2) अपने आसुरी स्वभाव को बदल दैवी स्वभाव धारण करना है।
एक-दो का मददगार होकर चलना है, किसी को तंग नहीं करना है।
वरदान:-
दिल में एक दिलाराम को समाकर
एक से सर्व संबंधों की अनुभूति करने वाले
सन्तुष्ट आत्मा भव
नॉलेज को समाने का स्थान दिमाग है लेकिन माशूक को समाने का स्थान दिल है।
कोई-कोई आशिक दिमाग ज्यादा चलाते हैं लेकिन बापदादा सच्ची दिल वालों पर राज़ी है इसलिए दिल का अनुभव दिल जाने, दिलाराम जाने।
जो दिल से सेवा करते वा याद करते हैं उन्हें मेहनत कम और सन्तुष्टता ज्यादा मिलती है।
दिल वाले सदा सन्तुष्टता के गीत गाते हैं।
उन्हें समय प्रमाण एक से सर्व संबंधों की अनुभूति होती है।
स्लोगन:-
अमृतवेले प्लेन बुद्धि होकर बैठो तो सेवा की नई विधियां टच होंगी।