"मीठे बच्चे - बाप की याद के साथ-साथ ज्ञान धन से सम्पन्न बनो,
बुद्धि में सारा ज्ञान घूमता रहे तब अपार खुशी रहेगी,
सृष्टि चक्र के ज्ञान से तुम चक्रवर्ती राजा बनेंगे''
प्रश्नः-
किन बच्चों (मनुष्यों) की प्रीत बाप से नहीं हो सकती है?
उत्तर:-
जो रौरव नर्क में रहने वाले विकारों से प्रीत करते हैं,
ऐसे मनुष्यों की प्रीत बाप से नहीं हो सकती।
तुम बच्चों ने बाप को पहचाना है इसलिए तुम्हारी बाप से प्रीत है।
प्रश्नः-
किसे सतयुग में आने का हुक्म ही नहीं है?
उत्तर:-
बाप को भी सतयुग में आना नहीं है तो वहाँ काल भी नहीं आ सकता है।
जैसे रावण को सतयुग में आने का हुक्म नहीं,
ऐसे बाबा कहते बच्चे मुझे भी सतयुग में आने का हुक्म नहीं।
बाबा तो तुम्हें सुखधाम का लायक बनाकर घर चले जाते हैं,
उन्हें भी लिमिट मिली हुई है।
ओम् शान्ति।
याद की यात्रा...
रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं।
रूहानी बच्चे याद की यात्रा में बैठे हुए हो?
अन्दर में यह ज्ञान है ना कि हम आत्मायें याद की यात्रा पर हैं।
यात्रा अक्षर तो जरूर दिल में आना चाहिए।
जैसे वह यात्रा करते हैं हरिद्वार, अमरनाथ जाने की। यात्रा पूरी की फिर लौट आते हैं।
यहाँ फिर तुम बच्चों की बुद्धि में है कि हम जाते हैं शान्तिधाम।
बाप ने आकर हाथ पकड़ा है। हाथ पकड़कर पार ले जाना होता है ना।
कहते भी हैं हाथ पकड़ लो क्योंकि विषय सागर में पड़े हैं।
अब तुम शिवबाबा को याद करो और घर को याद करो।
अन्दर में यह आना चाहिए कि हम जा रहे हैं।
इसमें मुख से कुछ बोलना भी नहीं है।
अन्दर में सिर्फ याद रहे - बाबा आया हुआ है लेने लिए। याद की यात्रा पर जरूर रहना है।
इस याद की यात्रा से ही तुम्हारे पाप कटने हैं, तब ही फिर उस मंजिल पर पहुँचेंगे।
कितना क्लीयर बाप समझाते हैं।
जैसे छोटे बच्चों को पढ़ाया जाता है ना।
सदैव बुद्धि में हो कि हम बाबा को याद करते जा रहे हैं।
बाप का काम ही है पावन बनाकर पावन दुनिया में ले जाना।
बच्चों को ले जाते हैं। आत्मा को ही यात्रा करनी है।
हम आत्माओं को बाप को याद कर घर जाना है।
घर पहुँचेंगे फिर बाप का काम पूरा हुआ।
बाप आते ही हैं पतित से पावन बनाकर घर ले जाने।
पढ़ाई तो यहाँ ही पढ़ते हैं।
भल घूमो फिरो, कोई भी काम-काज करो, बुद्धि में यह याद रहे।
योग अक्षर में यात्रा सिद्ध नहीं होती है।
योग सन्यासियों का है।
वह तो सब है मनुष्यों की मत।
आधा-कल्प तुम मनुष्य मत पर चले हो।
आधाकल्प दैवी मत पर चले थे।
अभी तुमको मिलती है ईश्वरीय मत।
योग अक्षर नहीं कहो, याद की यात्रा कहो।
आत्मा को यह यात्रा करनी है।
वह होती है जिस्मानी यात्रा, शरीर के साथ जाते हैं।
इसमें तो शरीर का काम ही नहीं।
आत्मा जानती है, हम आत्माओं का वह स्वीट घर है।
बाप हमको शिक्षा दे रहे हैं जिससे हम पावन बनेंगे।
याद करते-करते तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है।
यह है यात्रा।
हम बाप की याद में बैठते हैं क्योंकि बाबा के पास ही घर जाना है।
बाप आते ही हैं पावन बनाने।
सो तो पावन दुनिया में जाना ही है।
बाप पावन बनाते हैं फिर नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार तुम पावन दुनिया में जायेंगे।
यह ज्ञान बुद्धि में रहना चाहिए।
हम याद की यात्रा पर हैं।
हमको इस मृत्युलोक में लौटकर नहीं आना है।
बाबा का काम है हमको घर तक पहुँचाना।
इस सृष्टि चक्र की नॉलेज से...
बाबा रास्ता बता देते हैं अभी तुम तो मृत्युलोक में हो फिर अमर-लोक नई दुनिया में होंगे।
बाप लायक बनाकर ही छोड़ते हैं।
सुखधाम में बाप नहीं ले जायेंगे।
इनकी लिमिट हो जाती है घर तक पहुँचाना।
यह सारा ज्ञान बुद्धि में रहना चाहिए।
सिर्फ बाप को याद नहीं करना चाहिए, साथ में ज्ञान भी चाहिए।
ज्ञान से तुम धन कमाते हो ना।
इस सृष्टि चक्र की नॉलेज से तुम चक्रवर्ती राजा बनते हो।
बुद्धि में यह ज्ञान है, इसमें चक्र लगाया है।
फिर हम घर जायेंगे फिर नयेसिर चक्र शुरू होगा।
यह सारा ज्ञान बुद्धि में रहे तब खुशी का पारा चढ़े।
बाप को भी याद करना है, शान्तिधाम, सुखधाम को भी याद करना है।
84 का चक्र अगर याद नहीं करेंगे तो चक्रवर्ती राजा कैसे बनेंगे।
सिर्फ एक को याद करना तो सन्यासियों का काम है क्योंकि वह इनको जानते नहीं हैं।
ब्रह्म को ही याद करते हैं।
बाप तो अच्छी रीति बच्चों को समझाते हैं।
याद करते-करते ही तुम्हारे पाप कट जाने हैं।
पहले तो घर जाना है, यह है रूहानी यात्रा।
गायन भी है चारों तरफ लगाये फेरे फिर भी हरदम दूर रहे अर्थात् बाप से दूर रहे।
जिस बाप से बेहद का वर्सा मिलना है उनको तो जानते ही नहीं।
कितने चक्र लगाये हैं।
हर वर्ष भी कई यात्रा करते हैं।
पैसे बहुत होते हैं तो यात्रा का शौक रहता है।
यह तो तुम्हारी है रूहानी यात्रा।
काल को हुक्म ही नहीं है नई दुनिया में आने का...
तुम्हारे लिए नई दुनिया बन जायेगी फिर तो नई दुनिया में ही आने वाले हो,
जिसको अमरलोक कहा जाता है।
वहाँ काल होता नहीं जो किसको ले जाये।
काल को हुक्म ही नहीं है नई दुनिया में आने का।
रावण की तो यह पुरानी दुनिया है ना।
तुम बुलाते भी यहाँ हो।
मुझे भी नई दुनिया में आने का हुक्म नहीं...
बाप कहते हैं मैं पुरानी दुनिया में पुराने शरीर में आता हूँ।
मुझे भी नई दुनिया में आने का हुक्म नहीं।
मैं तो पतितों को ही पावन बनाने आता हूँ।
तुम पावन बन फिर औरों को भी पावन बनाते हो।
सन्यासी तो भाग जाते हैं।
एकदम गुम हो जाते हैं।
पता ही नहीं पड़ता है, कहाँ चला गया क्योंकि वह ड्रेस ही बदल लेते हैं।
जैसे एक्टर्स रूप बदलते हैं।
कभी मेल से फीमेल बन जाते हैं, कभी फीमेल से मेल बन जाते हैं।
यह भी रूप बदलते हैं।
सतयुग में थोड़ेही ऐसी बातें होंगी।
बाप कहते हैं हम आते हैं नई दुनिया बनाने।
आधाकल्प तुम बच्चे राज्य करते हो फिर ड्रामा प्लैन अनुसार द्वापर शुरू होता है,
जगन्नाथ का मन्दिर...
देवतायें वाम मार्ग में चले जाते हैं, उन्हों के बहुत गन्दे चित्र भी जगन्नाथपुरी में हैं।
जगन्नाथ का मन्दिर है।
यूँ तो उनकी राजधानी थी जो खुद विश्व के मालिक थे।
वह फिर मन्दिर में जाकर बन्द हुआ, उनको काला दिखाते हैं।
इस जगत नाथ के मन्दिर पर तुम बहुत समझा सकते हो।
और कोई इनका अर्थ समझा नहीं सकते।
आपेही पूज्य, आपेही पुजारी...
देवता ही पूज्य से पुजारी बनते हैं।
वह लोग तो हर बात में भगवान के लिए कह देते आपेही पूज्य, आपेही पुजारी।
आप ही सुख देते हो, आप ही दु:ख देते हो।
बाप कहते हैं मैं तो किसको दु:ख देता ही नहीं हूँ।
यह तो समझ की बात है।
बच्चा जन्मा तो खुशी होगी, बच्चा मरा तो रोने लग पड़ेंगे।
कहेंगे भगवान ने दु:ख दिया।
अरे, यह अल्पकाल का सुख-दु:ख तुमको रावण राज्य में ही मिलता है।
मेरे राज्य में दु:ख की बात नहीं होती।
सतयुग ...अमरलोक...
सतयुग को कहा जाता है अमरलोक।
इनका नाम ही है मृत्युलोक।
अकाले मर पड़ते हैं।
वहाँ तो बहुत खुशियाँ मनाते हैं, आयु भी बड़ी रहती है।
बड़ी में बड़ी आयु 150 वर्ष की होती है।
यहाँ भी कभी-कभी ऐसे कोई की होती है परन्तु यहाँ तो स्वर्ग नहीं है ना।
झाड़ से टाल-टालियां...
कोई शरीर को बहुत सम्भाल से रखते हैं तो आयु बड़ी भी हो जाती है फिर बच्चे भी कितने हो जाते हैं।
परिवार बढ़ता जाता है, वृद्धि जल्दी होती है।
जैसे झाड़ से टाल-टालियां निकलती हैं - 50 टालियां और उनसे और 50 निकलेंगी, कितना वृद्धि को पाते हैं।
यहाँ भी ऐसे है इसलिए इनका मिसाल बड़ के झाड़ से देते हैं।
सारा झाड़ खड़ा है, फाउण्डेशन है नहीं।
यहाँ भी आदि सनातन देवी-देवता धर्म का फाउन्डेशन है नहीं।
दुनिया पुरानी से नई कैसे बनती...
कोई को पता ही नहीं देवतायें कब थे, वह तो लाखों वर्ष कह देते हैं। आगे तुम कभी ख्याल भी नहीं करते थे। बाप ही आकर यह सब बातें समझाते हैं। तुम अभी बाप को भी जान गये हो और सारे ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त, ड्युरेशन आदि सबको जान गये हो। नई दुनिया से पुरानी, पुरानी से नई कैसे बनती है, यह कोई नहीं जानते।
याद की यात्रा...
अभी तुम बच्चे याद की यात्रा में बैठते हो।
यह यात्रा तो तुम्हारी नित्य चलनी है।
घूमो फिरो परन्तु इस याद की यात्रा में रहो।
यह है रूहानी यात्रा।
तुम जानते हो भक्ति मार्ग में हम भी उन यात्राओं पर जाते थे।
बहुत बार यात्रा की होगी जो पक्के भक्त होंगे।
एक शिव की भक्ति...
बाबा ने समझाया है एक शिव की भक्ति करना, वह है अव्यभिचारी भक्ति।
फिर देवताओं की होती है, फिर 5 तत्वों की भक्ति करते हैं।
देवताओं की भक्ति फिर भी अच्छी है क्योंकि उन्हों का शरीर फिर भी सतोप्रधान है, मनुष्यों का शरीर तो पतित है ना।
वह तो पावन हैं फिर द्वापर से लेकर सब पतित बन पड़े हैं।
नीचे गिरते आते हैं।
सीढ़ी का चित्र तुम्हारे लिए बहुत अच्छा है समझाने का।
जिन्न की भी कहानी बताते हैं ना।
यह सब दृष्टान्त आदि इस समय के ही हैं।
सब तुम्हारे ऊपर ही बने हुए हैं।
भ्रमरी का मिसाल भी तुम्हारा है जो कीड़ों को आपसमान ब्राह्मण बनाते हो।
यहाँ के ही सब दृष्टान्त हैं।
तुम बच्चे पहले जिस्मानी यात्रा करते थे।
अभी फिर बाप द्वारा रूहानी यात्रा सीखते हो।
यह तो पढ़ाई है ना।
भक्ति में...
भक्ति में देखो क्या-क्या करते हैं।
सबके आगे माथा टेकते रहते हैं, एक के भी आक्यूपेशन को नही जानते।
हिसाब किया जाता है ना।
सबसे जास्ती जन्म कौन लेते हैं फिर कम होते जाते हैं।
यह ज्ञान भी अभी तुमको मिलता है।
तुम समझते हो बरोबर स्वर्ग था।
भारतवासी तो इतने पत्थर बुद्धि बने हैं, उनसे पूछो स्वर्ग कब था तो लाखों वर्ष कह देंगे।
बच्चे मेहनत करो...
अभी तुम बच्चे जानते हो हम विश्व के मालिक थे, कितने सुखी थे अब फिर हमको बेगर टू प्रिन्स बनना है।
दुनिया नई से पुरानी होती है ना।
तो बाप कहते हैं - मेहनत करो।
यह भी जानते हैं माया घड़ी-घड़ी भुला देती है।
बाप समझाते हैं बुद्धि में सदैव यह याद रखो हम जा रहे हैं, हमारा इस पुरानी दुनिया से लंगर उठा हुआ है।
नईया उस पार जानी है।
गाते हैं ना नईया हमारी पार ले जाओ।
स्वर्ग की स्थापना...
कब पार जानी है, वह जानते नहीं हैं।
तो मुख्य है याद की यात्रा।
बाप के साथ वर्सा भी याद आना चाहिए।
बच्चे बालिग होते हैं तो बाप का वर्सा ही बुद्धि में रहता है।
तुम तो बड़े हो ही।
आत्मा झट जान लेती है, यह बात तो बरोबर है।
बेहद के बाप का वर्सा है ही स्वर्ग।
बाबा स्वर्ग की स्थापना करते हैं तो बाप की श्रीमत पर चलना पड़े।
बाप आते ही हैं प्रीत बुद्धि बनाने...
बाप कहते हैं पवित्र जरूर बनना है।
पवित्रता के कारण ही झगड़े होते हैं।
वह तो बिल्कुल ही जैसे रौरव नर्क में पड़े हैं।
और ही जास्ती विकारों में गिरने लग पड़ते हैं इसलिए बाप से प्रीत रख नहीं सकते हैं।
विनाश काले विपरीत बुद्धि हैं ना।
बाप आते ही हैं प्रीत बुद्धि बनाने।
बहुत हैं जिनकी रिंचक भी प्रीत बुद्धि नहीं है।
कभी बाप को याद भी नहीं करते हैं।
शिवबाबा को जानते ही नहीं हैं, मानते ही नहीं हैं।
माया का पूरा ग्रहण...
माया का पूरा ग्रहण लगा हुआ है।
याद की यात्रा बिल्कुल ही नहीं।
बाप मेहनत तो कराते हैं, यह भी जानते हो सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी राजधानी यहाँ स्थापन हो रही है।
सतयुग-त्रेता में कोई भी धर्म स्थापन होते नहीं।
राम कोई धर्म स्थापन नहीं करते।
यह तो स्थापना करने वाले बाप द्वारा यह बनते हैं।
और धर्म स्थापक और बाप के धर्म स्थापना में रात-दिन का फर्क है।
बाप आते ही हैं संगम पर जबकि दुनिया को बदलना है।
बाप कहते हैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे आता हूँ, उन्होंने फिर युगे-युगे अक्षर रांग लिख दिया है।
आधाकल्प भक्तिमार्ग भी चलना ही है।
तो बाप कहते हैं बच्चे इन बातों को भूलो मत।
यह कहते हैं बाबा हम आपको भूल जाते हैं।
अरे, बाप को तो जानवर भी नहीं भूलते हैं।
तुम क्यों भूलते हो?
अपने को आत्मा नहीं समझते हो!
देह-अभिमानी बनने से ही तुम बाप को भूलते हो।
अब जैसे बाप समझाते हैं, वैसे तुम बच्चों को भी टेव (आदत) रखनी चाहिए।
भभके से बात करनी चाहिए।
ऐसे नहीं, बड़े आदमी के आगे तुम फंक हो जाओ।
तुम कुमारियाँ ही बड़े-बड़े विद्वान, पण्डितों के आगे जाती हो तो तुम्हें निडर हो समझाना है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बुद्धि में सदैव याद रहे कि हम जा रहे हैं,
हमारी नईया का लंगर इस पुरानी दुनिया से उठ चुका है।
हम हैं रूहानी यात्रा पर।
यही यात्रा करनी और करानी है।
2) किसी भी बड़े आदमी के सामने निर्भयता (भभके) से बात करनी है,
फंक नहीं होना है।
देही-अभिमानी बनकर समझाने की आदत डालनी है।
वरदान:-
सदा हल्के बन बाप के नयनों में समाने वाले
सहजयोगी भव
संगमयुग पर जो खुशियों की खान मिलती है वह और किसी युग में नहीं मिल सकती।
इस समय बाप और बच्चों का मिलन है, वर्सा है, वरदान है।
वर्सा अथवा वरदान दोनों में मेहनत नहीं होती इसलिए आपका टाइटल ही है सहजयोगी।
बापदादा बच्चों की मेहनत देख नहीं सकते, कहते हैं बच्चे अपने सब बोझ बाप को देकर खुद हल्के हो जाओ।
इतने हल्के बनो जो बाप अपने नयनों पर बिठाकर साथ ले जाये।
बाप से स्नेह की निशानी है - सदा हल्के बन बाप की नजरों में समा जाना।
स्लोगन:-
निगेटिव सोचने का रास्ता बंद कर दो तो सफलता स्वरूप बन जायेंगे।