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20-10-19 प्रात:मुरली मधुबन

अव्यक्त-बापदादा रिवाइज: 24-02-85

संगमयुग - सर्व श्रेष्ठ प्राप्तियों का युग

आज बापदादा चारों ओर के प्राप्ति स्वरूप विशेष आत्माओं को देख रहे थे।

एक तरफ अनेक आत्मायें अल्पकाल के प्राप्ति वाली हैं जिसमें प्राप्ति के साथ-साथ अप्राप्ति भी है।

आज प्राप्ति है कल अप्राप्ति है।

तो एक तरफ अनेक प्राप्ति सो अप्राप्ति स्वरूप

दूसरे तरफ बहुत थोड़े सदाकाल की प्राप्ति स्वरूप विशेष आत्मायें।

दोनों के महान अन्तर को देख रहे थे।

बापदादा प्राप्ति स्वरूप बच्चों को देख हर्षित हो रहे थे।

प्राप्ति स्वरूप बच्चे कितने पदमापदम भाग्यवान हो।

इतनी प्राप्ति कर ली जो आप विशेष आत्माओं के हर कदम में पदम हैं।

लौकिक में प्राप्ति स्वरूप जीवन में विशेष चार बातों की प्राप्ति आवश्यक है।

(1) सुखमय सम्बन्ध।

(2) स्वभाव और संस्कार सदा शीतल और स्नेही हो।

(3) सच्ची कमाई की श्रेष्ठ सम्पति हो।

(4) श्रेष्ठ कर्म श्रेष्ठ सम्पर्क हो।

अगर यह चारों ही बातें प्राप्त हैं तो लौकिक जीवन में भी सफलता और खुशी है।

लेकिन लौकिक जीवन की प्राप्तियाँ अल्पकाल की प्राप्तियाँ हैं।

आज सुखमय सम्बन्ध है कल वही सम्बन्ध दु:खमय बन जाता है।

आज सफलता है कल नहीं है।

इसके अन्तर में आप प्राप्ति स्वरूप श्रेष्ठ आत्माओं को इस अलौकिक श्रेष्ठ जीवन में चारों ही बातें सदा प्राप्त हैं क्योंकि...

डायरेक्ट सुखदाता सर्व प्राप्तियों के दाता के साथ अविनाशी सम्बन्ध है।

जो अविनाशी सम्बन्ध कभी भी दु:ख वा धोखा देने वाला नहीं है।

विनाशी सम्बन्धों में वर्तमान समय दु:ख है वा धोखा है।

अविनाशी सम्बन्ध में सच्चा स्नेह है।

सुख है।

तो सदा स्नेह और सुख के सर्व सम्बन्ध बाप से प्राप्त हैं।

एक भी सम्बन्ध की कमी नहीं है।

जो सम्बन्ध चाहो उसी सम्बन्ध से प्राप्ति का अनुभव कर लो।

जिस आत्मा को जो सम्बन्ध प्यारा है उसी सम्बन्ध से भगवन प्रीत की रीति निभा रहे हैं।

भगवान को सर्व सम्बन्धी बना लिया।

ऐसा श्रेष्ठ सम्बन्ध सारे कल्प में प्राप्त नहीं हो सकता।

तो सम्बन्ध भी प्राप्त है।

साथ-साथ इस अलौकिक दिव्य जन्म में सदा श्रेष्ठ स्वभाव, ईश्वरीय संस्कार होने कारण स्वभाव संस्कार कभी दु:ख नहीं देते।

जो बापदादा के संस्कार वह बच्चों के संस्कार, जो बापदादा का स्वभाव वह बच्चों का स्वभाव।

स्व-भाव अर्थात् सदा हर एक के प्रति स्व अर्थात् आत्मा का भाव।

स्व श्रेष्ठ को भी कहा जाता है।

स्व का भाव वा श्रेष्ठ भाव यही स्वभाव हो।

सदा महादानी, रहम-दिल, विश्व कल्याणकारी यह बाप के संस्कार सो आपके संस्कार हों इसलिए स्वभाव और संस्कार सदा खुशी की प्राप्ति कराते हैं।

ऐसे ही सच्ची कमाई की सुखमय सम्पति है।

तो अविनाशी खजाने कितने मिले हैं?

हर एक खजाने की खानियों के मालिक हो।

सिर्फ खजाना नहीं, अखुट अनगिनत खजाने मिले हैं।

जो खर्चो खाओ और बढ़ाते रहो।

जितना खर्च करो उतना बढ़ता है।

अनुभवी हो ना।

स्थूल सम्पति किस-लिए कमाते हैं?

दाल रोटी सुख से खावें।

परिवार सुखी हो।

दुनिया में नाम अच्छा हो!

आप अपने को देखो कितने सुख और खुशी की दाल रोटी मिल रही है।

जो गायन भी है दाल रोटी खाओ भगवान के गीत गाओ।

ऐसे गायन की हुई दाल रोटी खा रहे हो।

और ब्राह्मण बच्चों को बापदादा की गैरन्टी है-ब्राह्मण बच्चा दाल रोटी से वंचित हो नहीं सकता।

आसक्ति वाला खाना नहीं मिलेगा लेकिन दाल रोटी जरूर मिलेगी।

दाल रोटी भी है, परिवार भी ठीक है और नाम कितना बाला है।

इतना आपका नाम बाला है जो आज लास्ट जन्म तक आप पहुँच गये हो, लेकिन आपके जड़ चित्रों के नाम से अनेक आत्मायें अपना काम सिद्ध कर रही हैं।

नाम आप देवी देवताओं का लेते हैं।

काम अपना सिद्ध करते हैं।

इतना नाम बाला है।

एक जन्म नाम बाला नहीं होता सारा कल्प आपका नाम बाला है।

तो सुखमय, सच्चे सम्पतिवान हो।

बाप के सम्पर्क में आने से आपका भी श्रेष्ठ सम्पर्क बन गया है।

आपका ऐसा श्रेष्ठ सम्पर्क है जो आपके जड़ चित्रों के सेकण्ड के सम्पर्क की भी प्यासी हैं।

सिर्फ दर्शन के सम्पर्क के भी कितने प्यासे हैं!

सारी-सारी रातें जागरण करते रहते हैं।

सिर्फ सेकण्ड के दर्शन के सम्पर्क के लिए पुकारते रहते हैं।

चिल्लाते रहते वा सिर्फ सामने जावें उसके लिए कितना सहन करते हैं!

हैं चित्र और ऐसे चित्र घर में भी होते हैं फिर भी एक सेकण्ड के सम्मुख सम्पर्क के लिए कितने प्यासे हैं।

एक बेहद के बाप के बनने के कारण सारे विश्व की आत्माओं से सम्पर्क हो गया।

बेहद के परिवार के हो गये।

विश्व की सर्व आत्माओं से सम्पर्क बन गया।

तो चारों ही बातें अविनाशी प्राप्त हैं इसलिए सदा सुखी जीवन है...

प्राप्ति स्वरूप जीवन है।

अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ब्राह्मणों के जीवन में।

यही आपके गीत हैं।

ऐसे प्राप्ति स्वरूप हो ना वा बनना है?

तो सुनाया ना आज प्राप्ति स्वरूप बच्चों को देख रहे थे।

जिस श्रेष्ठ जीवन के लिए दुनिया वाले कितनी मेहनत करते हैं।

और आपने क्या किया?

मेहनत की वा मुहब्बत की?

प्यार-प्यार में ही बाप को अपना बना लिया।

तो दुनिया वाले मेहनत करते हैं और आपने मुहब्बत से पा लिया।

बाबा कहा और खजानों की चाबी मिली।

दुनिया वालों से पूछो तो क्या कहेंगे?

कमाना बड़ा मुश्किल है।

इस दुनिया में चलना बड़ा मुश्किल है और आप क्या कहते हो?

कदम में पदम कमाना है।

और चलना कितना सहज है!

उड़ती कला है तो चलने से भी बच गये।

आप कहेंगे चलना क्या उड़ना है।

कितना अन्तर हो गया!

आत्मा ही परमात्मा है वा सर्वव्यापी परमात्मा है इस भ्रान्ति के कारण प्राप्ति से वंचित हैं...

बापदादा आज विश्व के सभी बच्चों को देख रहे थे।

सभी अपनी-अपनी प्राप्ति की लगन में लगे हुए हैं लेकिन रिजल्ट क्या है!

सब खोज करने में लगे हुए हैं।

साइन्स वाले देखो अपनी खोज में इतने व्यस्त हैं जो और कुछ नहीं सूझता।

महान आत्मायें देखो प्रभू को पाने की खोज में लगी हुई हैं।

वा छोटी सी भ्रान्ति के कारण प्राप्ति से वंचित हैं।

आत्मा ही परमात्मा है वा सर्वव्यापी परमात्मा है इस भ्रान्ति के कारण खोज में ही रह गये।

प्राप्ति से वंचित रह गये हैं।

साइन्स वाले भी अभी और आगे है और आगे है, ऐसा करते-करते चन्द्रमा में, सितारों में दुनिया बनायेंगे, खोजते-खोजते खो गये हैं।

शास्त्रवादी देखो शास्त्रार्थ के चक्कर में विस्तार में खो गये हैं।

शास्त्रार्थ का लक्ष्य रख अर्थ से वंचित हो गये हैं।

राजनेतायें देखो कुर्सी की भाग दौड़ में खोये हुए हैं।

और दुनिया के अन्जान आत्मायें देखो विनाशी प्राप्ति के तिनके के सहारे को असली सहारा समझ बैठ गई हैं।

और आपने क्या किया?

वह खोये हुए हैं और आपने पा लिया।

भ्रान्ति को मिटा लिया।

तो प्राप्ति स्वरूप हो गये इसलिए सदा प्राप्ति स्वरूप श्रेष्ठ आत्मायें हो।

बापदादा विशेष डबल विदेशी बच्चों को मुबारक देते हैं...

बापदादा विशेष डबल विदेशी बच्चों को मुबारक देते हैं कि विश्व में अनेक आत्माओं के बीच आप श्रेष्ठ आत्माओं की पहचान का नेत्र शक्तिशाली रहा।

जो पहचाना और पाया।

तो बापदादा डबल विदेशी बच्चों की पहचान के नेत्र को देख बच्चों के गुण गा रहे हैं कि वाह बच्चे वाह।

जो दूरदेशी होते, भिन्न धर्म के होते, भिन्न रीति रसम के होते अपने असली बाप को दूर होते भी समीप से पहचान लिया।

समीप के सम्बन्ध में आ गये।

ब्राह्मण जीवन की रीति रसम को अपनी आदि रीति रसम समझ सहज अपने जीवन में अपना लिया है।

इसको कहा जाता है विशेष लवली और लकी बच्चे।

जैसे बच्चों को विशेष खुशी है बापदादा को भी विशेष खुशी है।

ब्राह्मण परिवार की आत्मायें विश्व के कोने-कोने में पहुँच गई थी लेकिन कोने-कोने से बिछुड़ी हुई श्रेष्ठ आत्मायें फिर से अपने परिवार में पहुँच गई हैं।

बाप ने ढूँढा आपने पहचाना इसलिए प्राप्ति के अधिकारी बन गये।

अच्छा- ऐसे अविनाशी प्राप्ति स्वरूप बच्चों को, सदा सर्व सम्बन्धों के अनु-भव करने वाले बच्चों को, सदा अविनाशी सम्पतिवान बच्चों को, सदा बाप समान श्रेष्ठ संस्कार और सदा स्व के भाव में रहने वाले सर्व प्राप्तियों के भण्डार सर्व प्राप्तियों के महान दानी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

युगलों के साथ -

अव्यक्त बापदादा की मुलाकात प्रवृत्ति में रहते सर्व बन्धनों से न्यारे और बाप के प्यारे हो ना?

फंसे हुए तो नहीं हो?

पिंजड़े के पंछी तो नहीं, उड़ते पंछी हो ना!

जरा भी बंधन फंसा लेता है।

बंधनमुक्त हैं तो सदा उड़ते रहेंगे।

तो किसी भी प्रकार का बंधन नहीं।

ना देह का, ना सम्बन्ध का, ना प्रवृत्ति का, ना पदार्थ का।

कोई भी बन्धन ना हो इसको कहा जाता है 'न्यारा और प्यारा'।

स्वतंत्र सदा उड़ती कला में होंगे और परतंत्र थोड़ा उड़ेंगे भी फिर बन्धन उसको खींच कर नीचे ले आयेगा।

तो कभी नीचे, कभी ऊपर, टाइम चला जायेगा।

सदा एकरस उड़ती कला की अवस्था और कभी नीचे, कभी ऊपर यह अवस्था, दोनों में रात-दिन का अन्तर है।

आप कौन-सी अवस्था वाले हो?

सदा निर्बन्धन, सदा स्वतंत्र पंछी?

सदा बाप के साथ रहने वाले?

किसी भी आकर्षण में आकर्षित होने वाले नहीं।

वही जीवन प्यारी है।

जो बाप के प्यारे बनते उनकी जीवन सदा प्यारी बनती।

खिट-खिट वाली जीवन नहीं।

आज यह हुआ, कल यह हुआ, नहीं।

लेकिन सदा बाप के साथ रहने वाले, एकरस स्थिति में रहने वाले। वह है मौज की जीवन।

मौज में नहीं होंगे तो मूंझेंगे जरूर।

आज यह प्राब्लम आ गई, कल दूसरी आ गई, यह दु:खधाम की बातें दु:खधाम में तो आयेंगी ही लेकिन संगमयुगी ब्राह्मण हैं तो दु:ख नीचे रह जायेगा।

दु:खधाम से किनारा कर लिया तो दु:ख दिखाई देते भी आपको स्पर्श नहीं करेगा।

कलियुग को छोड़ दिया, किनारा छोड़ चुके, अब संगमयुग पर पहुंचे तो संगम सदा ऊंचा दिखाते हैं।

संगमयुगी आत्मायें सदा ऊंची, नीचे वाली नहीं।

जब बाप उड़ाने के लिए आये हैं तो उड़ती कला से नीचे आयें ही क्यों!

नीचे आना माना फंसना।

अब पंख मिले हैं तो उड़ते रहो, नीचे आओ ही नहीं। अच्छा?

अधरकुमारों से:-

सभी एक की लगन में मगन रहने वाले हो ना?

एक बाप दूसरे हम, तीसरा न कोई।

इसको कहा जाता है लगन में मगन रहने वाले।

मैं और मेरा बाबा।

इसके सिवाए और कोई मेरा है?

मेरा बच्चा, मेरा पोत्रा... ऐसे तो नहीं।

'मेरे' में ममता रहती है।

मेरा-पन समाप्त होना अर्थात ममता समाप्त होना।

तो सारी ममता यानी मोह बाप में हो गया।

तो बदल गया, शुद्ध मोह हो गया।

बाप सदा शुद्ध है तो मोह बदलकर प्यार हो गया।

एक मेरा बाबा, इस एक मेरे से सब समाप्त हो जाता और एक की याद सहज हो जाती इसलिए सदा सहजयोगी।

मैं श्रेष्ठ आत्मा और मेरा बाबा बस!

श्रेष्ठ आत्मा समझने से श्रेष्ठ कर्म स्वत: होंगे, श्रेष्ठ आत्मा के आगे माया आ नहीं सकती।

माताओं से:-

मातायें सदा बाप के साथ खुशी के झूले में झूलने वाली हैं ना!

गोप गोपियां सदा खुशी में नाचते या झूले में झूलते।

तो सदा बाप के साथ रहने वाले खुशी में नाचते हैं।

बाप साथ है तो सर्व-शक्तियाँ भी साथ हैं।

बाप का साथ शक्तिशाली बना देता।

बाप के साथ वाले सदा निर्मोही होते, उन्हें किसी का मोह सतायेगा नहीं।

तो नष्टोमोहा हो?

कैसी भी परिस्थिति आवे लेकिन हर परिस्थिति में 'नष्टोमोहा'।

जितना नष्टोमोहा होंगी उतना याद और सेवा में आगे बढ़ती रहेंगी।

मधुबन में आये हुए सेवाधारियों से:-

सेवा का खाता जमा हो गया ना।

अभी भी मधुबन के वातावरण में शक्तिशाली स्थिति बनाने का चांस मिला और आगे के लिए भी जमा किया।

तो डबल प्राप्ति हो गई। यज्ञ सेवा अर्थात श्रेष्ठ सेवा श्रेष्ठ स्थिति में रहकर करने से पदमगुणा फल बन जाता है।

कोई भी सेवा करो, पहले यह देखो कि शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो सेवाधारी बन सेवा कर रहे हैं?

साधारण सेवाधारी नहीं, रूहानी सेवाधारी।

रूहानी सेवाधारी की रूहानी झलक, रूहानी फलक सदा इमर्ज रूप में होनी चाहिए।

रोटी बेलते भी 'स्वदर्शन चक्र' चलता रहे।

लौकिक निमित्त स्थूल कार्य लेकिन स्थूल सूक्ष्म दोनों साथ-साथ, हाथ से स्थूल काम करो और बुद्धि से मंसा सेवा करो तो डबल हो जायेगा।

हाथ द्वारा कर्म करते हुए भी याद की शक्ति से एक स्थान पर रहते भी, बहुत सेवा कर सकते हो।

मधुबन तो वैसे भी लाइट हाउस है, लाइट हाउस एक स्थान पर स्थित हो, चारों ओर सेवा करता है।

ऐसे सेवाधारी अपनी और दूसरों की बहुत श्रेष्ठ प्रालब्ध बना सकते हैं।

अच्छा! ओम शान्ति।

आज बापदादा ने पूरी रात सभी बच्चों से मिलन मनाया और सुबह 7 बजे यादप्यार दे विदाई ली, सुबह का क्लास बापदादा ने ही कराया

रोज़ बापदादा द्वारा महावाक्य सुनते-सुनते महान आत्मायें बन गयी।

तो आज के दिन का यही सार सारा दिन मन के साज़ के साथ सुनना कि महावाक्य सुनने से महान बने हैं।

महान ते महान कर्तव्य करने के लिए सदा निमित हैं।

हर आत्मा के प्रति मन्सा से, वाचा से, सम्पर्क से महादानी आत्मा हैं और सदा महान युग के आह्वान करने वाले अधिकारी आत्मा हैं।

यही याद रखना।

सदा ऐसे महान स्मृति में रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सिकीलधे बच्चों को बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। होवनहार और वर्तमान बादशाहों को बाप की नमस्ते। अच्छा।

वरदान:-

शुद्ध और समर्थ संकल्पों की शक्ति से

व्यर्थ वायब्रेशन को समाप्त करने वाले

सच्चे सेवाधारी भव

कहा जाता है संकल्प भी सृष्टि बना देता है।

जब कमजोर और व्यर्थ संकल्प करते हो तो व्यर्थ वायुमण्डल की सृष्टि बन जाती है।

सच्चे सेवाधारी वह हैं जो अपने शुद्ध शक्तिशाली संकल्पों से पुराने वायब्रेशन को भी समाप्त कर दें।

जैसे साइंस वाले शस्त्र से शस्त्र को खत्म कर देते हैं,

एक विमान से दूसरे विमान को गिरा देते हैं, ऐसे आपके शुद्ध, समर्थ संकल्प का वायब्रेशन, व्यर्थ वायब्रेशन को समाप्त कर दे,

अब ऐसी सेवा करो।

स्लोगन:-

विघ्न रूपी सोने के महीन धागों से मुक्त बनो, मुक्ति वर्ष मनाओ।

 

सूचनाः-

आज मास का तीसरा रविवार है, सभी संगठित रूप में सायं 6.30 से 7.30 बजे तक अन्तर्राष्ट्रीय योग में सम्मिलित हो, कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति में रह अपनी सूक्ष्म वृत्ति द्वारा शक्तिशाली वायुमण्डल बनाने की सेवा करें।