अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
प्रवृत्ति में रहते सर्व बन्धनों से न्यारे और बाप के प्यारे हो ना?
फंसे हुए तो नहीं हो?
पिंजड़े के पंछी तो नहीं, उड़ते पंछी हो ना!
जरा भी बंधन फंसा लेता है।
बंधनमुक्त हैं तो सदा उड़ते रहेंगे।
तो किसी भी प्रकार का बंधन नहीं।
ना देह का, ना सम्बन्ध का, ना प्रवृत्ति का, ना पदार्थ का।
कोई भी बन्धन ना हो इसको कहा जाता है 'न्यारा और प्यारा'।
स्वतंत्र सदा उड़ती कला में होंगे और परतंत्र थोड़ा उड़ेंगे भी फिर बन्धन उसको खींच कर नीचे ले आयेगा।
तो कभी नीचे, कभी ऊपर, टाइम चला जायेगा।
सदा एकरस उड़ती कला की अवस्था और कभी नीचे, कभी ऊपर यह अवस्था, दोनों में रात-दिन का अन्तर है।
आप कौन-सी अवस्था वाले हो?
सदा निर्बन्धन, सदा स्वतंत्र पंछी?
सदा बाप के साथ रहने वाले?
किसी भी आकर्षण में आकर्षित होने वाले नहीं।
वही जीवन प्यारी है।
जो बाप के प्यारे बनते उनकी जीवन सदा प्यारी बनती।
खिट-खिट वाली जीवन नहीं।
आज यह हुआ, कल यह हुआ, नहीं।
लेकिन सदा बाप के साथ रहने वाले, एकरस स्थिति में रहने वाले। वह है मौज की जीवन।
मौज में नहीं होंगे तो मूंझेंगे जरूर।
आज यह प्राब्लम आ गई, कल दूसरी आ गई, यह दु:खधाम की बातें दु:खधाम में तो आयेंगी ही लेकिन संगमयुगी ब्राह्मण हैं तो दु:ख नीचे रह जायेगा।
दु:खधाम से किनारा कर लिया तो दु:ख दिखाई देते भी आपको स्पर्श नहीं करेगा।
कलियुग को छोड़ दिया, किनारा छोड़ चुके, अब संगमयुग पर पहुंचे तो संगम सदा ऊंचा दिखाते हैं।
संगमयुगी आत्मायें सदा ऊंची, नीचे वाली नहीं।
जब बाप उड़ाने के लिए आये हैं तो उड़ती कला से नीचे आयें ही क्यों!
नीचे आना माना फंसना।
अब पंख मिले हैं तो उड़ते रहो, नीचे आओ ही नहीं। अच्छा?