बाबा ऐसे भी नहीं कहते यहाँ बैठकर बाप को याद करो।
नहीं, चलते, फिरते, घूमते शिवबाबा को याद करना है।
नौकरी आदि भी करनी है।
बाप की याद बुद्धि में रहनी चाहिए।
लौकिक बाप के बच्चे नौकरी आदि करते हैं तो याद रहता ही है ना।
कोई भी पूछेगा तो झट बतायेंगे हम किसके बच्चे हैं।
बुद्धि में बाप की प्रापर्टी भी याद रहती है।
तुम भी बाप के बच्चे बने हो तो प्रापर्टी भी याद है।
बाप को भी याद करना है और कोई से सम्बन्ध नहीं।
आत्मा में ही सारा पार्ट नूँधा हुआ है जो इमर्ज होता है।
इस ब्राह्मण कुल में तुम्हारा जो कल्प-कल्प पार्ट चला है वही इमर्ज होता रहता है।
बाप समझाते हैं खाना बनाओ, मिठाई बनाओ, शिवबाबा को याद करते रहो।
शिवबाबा को याद कर बनायेंगे तो मिठाई खाने वाले का भी कल्याण होगा।
कहाँ साक्षात्कार भी हो सकता है।
ब्रह्मा का भी साक्षात्कार हो सकता है।
शुद्ध अन्न पड़ता है तो ब्रह्मा का, कृष्ण का, शिव का साक्षात्कार कर सकते हैं।
ब्रह्मा है यहाँ।
ब्रह्माकुमार-कुमारियों का नाम तो होता है ना।
बहुतों को साक्षात्कार होते रहेंगे क्योंकि बाप को याद करते हो ना।
बाप युक्तियां तो बहुत ही बताते हैं।
वह मुख से राम-राम बोलते हैं, तुमको मुख से कुछ बोलना नहीं है।
जैसे वह लोग समझते हैं गुरूनानक को भोग लगा रहे हैं, तुम भी समझते हो हम शिवबाबा को भोग लगाने के लिए बनाते हैं।
शिवबाबा को याद करते बनायेंगे तो बहुतों का कल्याण हो सकता है।
उस भोजन में ताकत हो जाती है, इसलिए बाबा भोजन बनाने वालों को भी कहते हैं शिवबाबा को याद कर बनाते हो?
लिखा हुआ भी है शिवबाबा याद है?
याद में रहकर बनायेंगे तो खाने वालों को भी ताकत मिलेगी, हृदय शुद्ध होगा।
ब्रह्मा भोजन का गायन भी है ना।
ब्राह्मणों का बनाया हुआ भोजन देवतायें भी पसन्द करते हैं।
यह भी शास्त्रों में है।
ब्राह्मणों का भोजन बनाया हुआ खाने से बुद्धि शुद्ध हो जाती है, ताकत रहती है।
ब्रह्मा भोजन की बहुत महिमा है।
ब्रह्मा भोजन का जिनको कदर रहता है, थाली धोकर भी पी लेते हैं।
बहुत ऊंच समझते हैं। भोजन बिगर तो रह न सके।
फैमन में भोजन बिगर मर जाते हैं।
आत्मा ही भोजन खाती है, इन आरगन्स द्वारा स्वाद वह लेती है, अच्छा-बुरा आत्मा ने कहा ना।
यह बहुत स्वादिष्ट है, ताकत वाला है।
आगे चल जैसे तुम उन्नति को पाते रहेंगे वैसे भोजन भी तुमको ऐसा मिलता रहेगा, इसलिए बच्चों को कहते हैं शिवबाबा को याद कर भोजन बनाओ।
बाप जो समझाते हैं उसको अमल में लाना चाहिए ना।
तुम हो पियरघर वाले, जाते हो ससुरघर।
सूक्ष्मवतन में भी आपस में मिलते हैं।
भोग ले जाते हैं। देवताओं को भोग लगाते हैं ना।
देवतायें आते हैं तुम ब्राह्मण वहाँ जाते हो। वहाँ महफिल लगती है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।