इनका ही नाम शिव चला आया है।
शिव भगवानुवाच, कोई भी देहधारी को भगवान नहीं कहा जाता।
बाप बिगर और कोई बाप का परिचय दे न सके क्योंकि वह तो बाप को जानते ही नहीं।
यहाँ भी बहुत हैं जिनकी बुद्धि में नहीं आता है - बाप को कैसे याद करें।
मूँझते हैं।
इतनी छोटी बिन्दी उनको कैसे याद करें।
शरीर तो बड़ा है, उनको ही याद करते रहते हैं।
यह भी गायन है भ्रकुटी के बीच चमकता है सितारा अर्थात् आत्मा सितारे मिसल है।
आत्मा को सालिग्राम कहा जाता है।
शिवलिंग की भी बड़े रूप में पूजा होती है।
जैसे आत्मा को देख नहीं सकते, शिवबाबा भी किसको देखने में तो आ न सके।
भक्ति मार्ग में बिन्दी की पूजा कैसे करें क्योंकि पहले-पहले शिवबाबा की अव्यभिचारी पूजा शुरू होती है ना।
तो पूजा के लिए जरूर बड़ी चीज़ चाहिए।
सालिग्राम भी बड़े अण्डे मिसल बनाते हैं।
एक तरफ अंगुष्ठे मिसल भी कहते और फिर सितारा भी कहते हैं।
अभी तुमको तो एक बात पर ठहरना है।
आधाकल्प बड़ी चीज की पूजा की है।
अब फिर बिन्दी समझना इसमें मेहनत भी है, देख नहीं सकते।
यह बुद्धि से जाना जाता है।
शरीर में आत्मा प्रवेश करती है जो फिर निकलती है, कोई देख तो नहीं सकता।
बड़ी चीज हो तो देखने में भी आये।
बाप भी ऐसे बिन्दी है परन्तु वह ज्ञान का सागर है, और कोई को ज्ञान का सागर नहीं कहेंगे।