23-10-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन
"मीठे बच्चे - तुम जितना-जितना बाप को प्यार से याद करेंगे
उतना आशीर्वाद मिलेगी, पाप कटते जायेंगे''
प्रश्नः-
बाप बच्चों को किस धर्म में टिकने की मत देते हैं?
उत्तर:-
बाबा कहते बच्चे - तुम अपने विचित्रता के धर्म में टिको, चित्र के धर्म में नहीं।
जैसे बाप विदेही, विचित्र है ऐसे बच्चे भी विचित्र हैं फिर यहाँ चित्र (शरीर) में आते हैं।
अभी बाप बच्चों को कहते हैं बच्चे विचित्र बनो, अपने स्वधर्म में टिको।
देह-अभिमान में नहीं आओ।
प्रश्नः-
भगवान भी ड्रामा अनुसार किस बात के लिए बंधायमान है?
उत्तर:-
ड्रामानुसार बच्चों को पतित से पावन बनाने के लिए भगवान भी बंधायमान है।
उनको आना ही है पुरुषोत्तम संगमयुग पर।
ओम् शान्ति।
बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं जब ओम् शान्ति कहा जाता है तो गोया अपनी आत्मा को स्वधर्म का परिचय दिया जाता है...
तो जरूर बाप भी ऑटोमेटिकली याद आता है क्योंकि याद तो हरेक मनुष्य भगवान को ही करते हैं।
सिर्फ भगवान का पूरा परिचय नहीं है।
भगवान अपना और आत्मा का परिचय देने ही आते हैं।
पतित-पावन कहा ही जाता है भगवान को।
पतित से पावन बनाने के लिए भगवान भी ड्रामा अनुसार बंधायमान हैं।
उनको भी आना है पुरूषोत्तम संगमयुग पर।
संगमयुग की समझानी भी देते हैं।
पुरानी दुनिया और नई दुनिया के बीच में ही बाप आते हैं।
पुरानी दुनिया को मृत्युलोक, नई दुनिया को अमर-लोक कहा जाता है...
यह भी तुम समझते हो, मृत्युलोक में आयु कम होती है।
अकाले मृत्यु होती रहती है। वह फिर है अमरलोक, जहाँ अकाले मृत्यु नहीं होती क्योंकि पवित्र हैं।
अपवित्रता से व्यभिचारी बनते हैं और आयु भी कम होती है।
बल भी कम हो जाता है।
सतयुग में पवित्र होने कारण अव्यभिचारी हैं। बल भी जास्ती रहता है।
बल बिगर राजाई कैसे प्राप्त की?
जरूर बाप से उन्होंने आशीर्वाद ली होगी।
बाप है सर्वशक्तिमान्।
आशीर्वाद कैसे ली होगी?
बाप कहते हैं मुझे याद करो...
तो जिन्होंने जास्ती याद किया होगा उन्होंने ही आशीर्वाद ली होगी।
आशीर्वाद कोई मांगने की चीज़ नहीं है।
यह तो मेहनत करने की चीज़ है।
जितना जास्ती याद करेंगे उतना जास्ती आशीर्वाद मिलेगी अर्थात् ऊंच पद मिलेगा।
याद ही नहीं करेंगे तो आर्शीवाद भी नहीं मिलेगी।
लौकिक बाप बच्चों को कभी यह नहीं कहते हैं कि मुझे याद करो।
वह छोटेपन से आपेही मम्मा-बाबा करते रहते हैं।
आरगन्स छोटे हैं, बड़े बच्चे कब ऐसे बाबा-बाबा, मम्मा-मम्मा नहीं कहेंगे।
उन्हों की बुद्धि में रहता है - यह हमारे माँ-बाप हैं, जिनसे यह वर्सा मिलना है।
कहने की वा याद करने की बात नहीं रहती है।
यहाँ तो बाप कहते हैं मुझे और वर्से को याद करो।
हद के सम्बन्ध को छोड़ अब बेहद के सम्बन्ध को याद करना है।
सब मनुष्य चाहते हैं हमारी गति हो...
गति कहा जाता है मुक्तिधाम को।
सद्गति कहा जाता है फिर से सुखधाम में आने को।
कोई भी पहले आयेगा तो जरूर सुख ही पायेगा।
बाप सुख के लिए ही आते हैं।
जरूर कोई बात डिफीकल्ट है इसलिए इनको ऊंच पढ़ाई कहा जाता है...
जितनी ऊंच पढ़ाई उतनी डिफीकल्ट भी होगी।
सभी तो पास कर न सकें।
बड़े ते बड़ा इम्तहान बहुत थोड़े स्टूडेन्ट पास करते हैं क्योंकि बड़ा इम्तहान पास होने से फिर सरकार को पघार (नौकरी) भी बहुत देना पड़े ना।
कई स्टूडेन्ट बड़ा इम्तहान पास करके भी ऐसे ही बैठे रहते हैं।
सरकार के पास इतना पैसा नहीं है जो बड़ा पघार दे।
यहाँ तो बाप कहते हैं जितना ऊंच पढ़ेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।
ऐसे भी नहीं सब कोई राजायें वा साहूकार बनेंगे।
सारा मदार पढ़ाई पर है।
भक्ति को पढ़ाई नहीं कहा जाता।
यह तो है रूहानी ज्ञान जो रूहानी बाप पढ़ाते हैं।
कितनी ऊंच पढ़ाई है।
बच्चों को डिफीकल्ट लगता है क्योंकि बाप को याद नहीं करते तो कैरेक्टर्स भी सुधरते नहीं हैं...
जो अच्छा याद करते हैं उनके कैरेक्टर्स भी अच्छे होते जाते हैं।
बहुत-बहुत मीठे सर्विसएबुल बनते जाते हैं।
कैरेक्टर्स अच्छे नहीं हैं तो कोई को पसन्द भी नहीं आते हैं।
जो नापास होते हैं तो जरूर कैरेक्टर्स में रोला है।
श्री लक्ष्मी-नारायण के कैरेक्टर्स बहुत अच्छे हैं।
राम को दो कला कम कहेंगे।
भारत रावण राज्य में झूठ खण्ड हो पड़ता है...
सचखण्ड में तो ज़रा भी झूठ हो न सके।
रावण राज्य में है झूठ ही झूठ।
झूठे मनुष्यों को दैवी गुणों वाला कह नहीं सकते।
यह बेहद की बात है।
अभी बाप कहते हैं ऐसी झूठी बातें किसी की न सुनो, न सुनाओ।
एक ईश्वर की मत को ही लीगल मत कहा जाता है...
मनुष्य मत को इलीगल मत कहा जाता।
लीगल मत से तुम ऊंच बनते हो।
परन्तु सब नहीं चल सकते हैं तो इलीगल बन पड़ते हैं।
कई बाप के साथ प्रतिज्ञा भी करते हैं - बाबा इतनी आयु हमने इलीगल काम किये हैं, अभी नहीं करेंगे।
सबसे इलीगल काम है विकार का भूत।
देह-अभिमान का भूत तो सबमें है ही...
मायावी पुरूष में देह-अभिमान ही होता है।
बाप तो है ही विदेही, विचित्र।
तो बच्चे भी विचित्र हैं।
यह समझ की बात है।
हम आत्मा विचित्र हैं फिर यहाँ चित्र (शरीर) में आते हैं।
अभी बाप फिर कहते हैं विचित्र बनो।
अपने स्वधर्म में टिको। चित्र के धर्म में नहीं टिको।
विचित्रता के धर्म में टिको।
देह-अभिमान में न आओ।
बाप कितना समझाते हैं - इसमें याद की बहुत जरूरत है...
बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो तो तुम सतोप्रधान, प्योर बनेंगे।
इमप्योरिटी में जाने से बहुत दण्ड मिल जाता है।
बाप का बनने के बाद अगर कोई भूल होती है तो फिर गायन है सतगुरू के निंदक ठौर न पायें।
अगर तुम मेरी मत पर चल पवित्र नहीं बनेंगे तो सौ गुणा दण्ड भोगना पड़ेगा।
विवेक चलाना है।
अगर हम याद नहीं कर सकते तो इतना ऊंच पद भी नहीं पा सकेंगे।
पुरूषार्थ के लिए टाइम भी देते हैं।
तुमको कहते हैं क्या सबूत है?
बोलो, जिस तन में आते हैं वह प्रजापिता ब्रह्मा तो मनुष्य है ना।
मनुष्य का नाम शरीर पर पड़ता है।
शिवबाबा तो न मनुष्य है, न देवता है।
उनको सुप्रीम आत्मा कहा जाता है।
वह तो पतित वा पावन नहीं होता, वह समझाते हैं मुझे याद करने से तुम्हारे पाप कट जायेंगे।
बाप ही बैठ समझाते हैं तुम सतोप्रधान थे, अभी तमोप्रधान बने हो...
फिर सतोप्रधान बनने के लिए मुझे याद करो।
इन देवताओं की क्वालिफिकेशन देखो कैसी है और उन्हों से रहम मांगने वालों को भी देखो वन्डर लगता है - हम क्या थे!
फिर 84 जन्मों में कितना गिरकर एकदम चट हो पड़े हैं।
बाप कहते हैं - मीठे-मीठे बच्चे, तुम दैवी घराने के थे।
अभी अपनी चाल को देखो यह (देवी-देवता) बन सकते हो?
ऐसे नहीं, सब लक्ष्मी-नारायण बनेंगे।
फिर तो सारा फूलों का बगीचा हो जाए।
शिवबाबा को सिर्फ गुलाब के फूल ही चढ़ायें, परन्तु नहीं, अक के फूल भी चढ़ाते हैं।
बाप के बच्चे कोई फूल भी बनते हैं, कोई अक भी बनते हैं।
पास नापास तो होते ही हैं।
खुद भी समझते हैं कि हम राजा तो बन नहीं सकेंगे।
आप समान ही नहीं बनाते हैं, साहूकार कैसे, कौन बनेंगे वह तो बाप जाने।
आगे चल तुम बच्चे भी समझ जायेंगे कि यह फलाना बाप का कैसा मददगार है...
कल्प-कल्प जिन्होंने जो कुछ किया है वही करेंगे।
इसमें फ़र्क नहीं पड़ सकता।
बाप प्वाइंट्स तो देते रहते हैं।
ऐसे-ऐसे बाप को याद करना है और ट्रांसफर भी करना है।
भक्ति मार्ग में तुम ईश्वर अर्थ करते हो...
परन्तु ईश्वर को जानते नहीं हो।
इतना समझते हो ऊंच ते ऊंच भगवान है।
ऐसे नहीं कि ऊंच ते ऊंच नाम रूप वाला है।
वह है ही निराकार।
फिर ऊंच ते ऊंच साकार यहाँ होते हैं।
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को देवता कहा जाता है।
ब्रह्मा देवताए नम:, विष्णु देवताए नम: फिर कहते हैं शिव परमात्माए नम:।
तो परमात्मा बड़ा ठहरा ना।
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को परमात्मा नहीं कहेंगे।
मुख से कहते भी हैं शिव परमात्माए नम: तो जरूर परमात्मा एक हुआ ना।
देवताओं को नमन करते हैं।
मनुष्य लोक में मनुष्य को मनुष्य कहेंगे।
उनको फिर परमात्माए नम: कहना - यह तो पूरा अज्ञान है।
सबकी बुद्धि में यह है कि ईश्वर सर्वव्यापी है...
अभी तुम बच्चे समझते हो भगवान तो एक है, उनको ही पतित-पावन कहा जाता है।
सबको पावन बनाना यह भगवान का ही काम है।
जगत का गुरू कोई मनुष्य हो न सके।
गुरू पावन होते हैं ना।
यहाँ तो सब हैं विकार से पैदा होने वाले।
ज्ञान को अमृत कहा जाता है।
भक्ति को अमृत नहीं कहा जाता...
भक्ति मार्ग में भक्ति ही चलती है।
सब मनुष्य भक्ति में हैं।
ज्ञान सागर, जगत का गुरू एक को कहा जाता है।
अभी तुम जानते हो बाप क्या आकर करते हैं...
तत्वों को भी पवित्र बनाते हैं।
ड्रामा में उनका पार्ट है।
बाप निमित्त बनते हैं सर्व का सद्गति दाता है।
अब यह समझावें कैसे।
आते तो बहुत हैं।
उद्घाटन करने आते हैं तो तार दी जाती है कि होवनहार विनाश के पहले बेहद के बाप को जानकर उनसे ही वर्सा लो।
यह है रूहानी बाप।
जो भी मनुष्य मात्र हैं सब फादर कहते हैं।
क्रियेटर है तो जरूर क्रियेशन को वर्सा मिलेगा।
बेहद के बाप को कोई भी जानते नहीं।
बाप को भूलना - यह भी ड्रामा में नूँध है।
बेहद का बाप ऊंच ते ऊंच है, वह कोई हद का वर्सा तो नहीं देगा ना।
लौकिक बाप होते भी बेहद के बाप को सब याद करते हैं।
सतयुग में उनको कोई याद नहीं करते क्योंकि बेहद सुख का वर्सा मिला हुआ है।
अभी तुम बाप को याद करते हो।
आत्मा ही याद करती है फिर आत्मायें अपने को और अपने बाप को, ड्रामा को भूल जाती हैं।
माया का परछाया पड़ जाता है।
सतोप्रधान बुद्धि को फिर तमोप्रधान जरूर होना है।
स्मृति में आता है, नई दुनिया में देवी-देवतायें सतोप्रधान थे, यह कोई भी नहीं जानते हैं।
दुनिया ही सतोप्रधान गोल्डन एजड बनती है।
उसको कहा जाता है न्यू वर्ल्ड।
यह है आइरन एजड वर्ल्ड।
यह सब बातें बाप ही आकर बच्चों को समझाते हैं।
कल्प-कल्प जो वर्सा तुम लेते हो, पुरूषार्थ अनुसार वही मिलने का है।
तुमको भी अभी मालूम पड़ा है हम यह थे फिर ऐसे नीचे आ गये हैं।
बाप ही बताते हैं कि ऐसे-ऐसे होगा।
कोई कहते हैं कोशिश बहुत करते हैं परन्तु याद ठहरती नहीं है...
इसमें बाप अथवा टीचर क्या करे, कोई पढ़ेंगे नहीं तो टीचर क्या करे।
टीचर आशीर्वाद करे फिर सब पास हो जाएं।
पढ़ाई का फर्क तो बहुत रहता है...
यह है बिल्कुल नई पढ़ाई।
यहाँ तुम्हारे पास अक्सर करके गरीब दु:खी ही आयेंगे, साहूकार नहीं आयेंगे।
दु:खी हैं तब आते हैं।
साहूकार समझते हैं हम तो स्वर्ग में बैठे हैं।
तकदीर में नहीं है, जिनकी तकदीर में है, उनको झट निश्चय बैठ जाता है।
निश्चय और संशय में देरी नहीं लगती है...
माया झट भुला देती है।
टाइम तो लगता है ना।
इसमें मूँझने की दरकार नहीं है।
अपने ऊपर रहम करना है।
श्रीमत तो मिलती रहती है।
कितना सहज बाप कहते हैं सिर्फ अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो।
तुम जानते हो यह है ही मृत्युलोक।
वह है अमरलोक।
वहाँ अकाले मृत्यु नहीं होता।
क्लास में स्टूडेन्ट नम्बरवार बैठते हैं ना...
यह भी स्कूल है ना।
ब्राह्मणी से पूछा जाता है तुम्हारे पास नम्बरवार होशियार बच्चे कौन से हैं?
जो अच्छा पढ़ते हैं, वे राइट साइड में होने चाहिए।
राइट हैण्ड का महत्व होता है ना।
पूजा आदि भी राइट हैण्ड से की जाती है।
बच्चे ख्याल करते रहें - सतयुग में क्या होगा।
सतयुग याद पड़ेगा तो सत बाबा भी याद पड़ेगा।
बाबा हमको सतयुग का मालिक बनाते हैं...
वहाँ यह पता नहीं है कि हमको यह बादशाही कैसे मिली है।
इसलिए बाबा कहते हैं इन लक्ष्मी-नारायण में भी यह ज्ञान नहीं है।
बाप हरेक बात अच्छी रीति समझाते रहते हैं जो कल्प पहले वाले समझे हैं वही जरूर समझेंगे।
फिर भी पुरूषार्थ करना पड़ता है ना।
बाप आते ही हैं पढ़ाने।
यह पढ़ाई है, इसमें बड़ी समझ चाहिए।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) यह रूहानी पढ़ाई बहुत ऊंची और डिफीकल्ट है, इसमें पास होने के लिए बाप की याद से आशीर्वाद लेनी है। अपने कैरेक्टर्स सुधारने हैं।
2) अभी कोई भी इलीगल काम नहीं करना है। विचित्र बन अपने स्वधर्म में टिकना है और विचित्र बाप की लीगल मत पर चलना है।
वरदान:-
परमात्म लव में लीन होने वा मिलन में मग्न होने वाले
सच्चे स्नेही भव
स्नेह की निशानी गाई जाती है - कि दो होते भी दो न रहें लेकिन मिलकर एक हो जाएं, इसको ही समा जाना कहते हैं।
भक्तों ने इसी स्नेह की स्थिति को समा जाना वा लीन होना कह दिया है।
लव में लीन होना - यह स्थिति है लेकिन स्थिति के बदले उन्होंने आत्मा के अस्तित्व को सदा के लिए समाप्त होना समझ लिया है।
आप बच्चे जब बाप के वा रूहानी माशूक के मिलन में मग्न हो जाते हो तो समान बन जाते हो।
स्लोगन:-
अन्तर्मुखी वह है जो व्यर्थ संकल्पों से मन का मौन रखता है।
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