"मीठे बच्चे - उठते-बैठते बुद्धि में ज्ञान उछलता रहे तो अपार खुशी में रहेंगे''
प्रश्नः-
तुम बच्चों को किसके संग से बहुत-बहुत सम्भाल करनी है?
उत्तर:-
जिनकी बुद्धि में बाप की याद नहीं ठहरती,
बुद्धि इधर-उधर भटकती रहती है,
उनके संग से तुम्हें सम्भाल करनी है।
उनके अंग से अंग भी नहीं लगना चाहिए क्योंकि...
याद में न रहने वाले वायुमण्डल को खराब करते हैं।
प्रश्नः-
मनुष्यों को पश्चाताप् कब होगा?
उत्तर:-
जब उन्हें पता पड़ेगा कि इन्हें पढ़ाने वाला स्वयं भगवान है तो...
उनका मुँह फीका पड़ जायेगा और पश्चाताप् करेंगे कि हमने ग़फलत की, पढ़ाई नहीं पढ़ी।
ओम् शान्ति।
रूहानी यात्रा
...हठयोग...
अब रूहानी यात्रा को तो बच्चे अच्छी तरह से समझते हैं।
कोई भी हठयोग की यात्रा होती नहीं।
यह है याद।
याद के लिए कोई भी तकलीफ की बात नहीं है।
बाप को याद करना - इसमें कोई तकल़ीफ नहीं है।
यह क्लास है इसलिए सिर्फ कायदेसिर बैठना होता है।
तुम बाप के बच्चे बने हो, बच्चों की पालना हो रही है।
कौन-सी पालना?
अविनाशी ज्ञान रत्नों का खजाना मिल रहा है।
बाप को याद करने में कोई तकल़ीफ नहीं है।
सिर्फ माया बुद्धि का योग तोड़ देती है।
बाकी बैठो भल कैसे भी, उनसे कोई याद का तैलुक नहीं।
बहुत बच्चे हठयोग से 3-4 घण्टे बैठते हैं।
सारी रात भी बैठ जाते हैं।
आगे तुम्हारी तो थी भट्ठी, वह बात और थी, वहाँ तुमको धन्धाधोरी तो था नहीं इसलिए यह सिखाया जाता था।
अब बाप कहते हैं तुम गृहस्थ व्यवहार में रहो।
धन्धाधोरी भी भल करो।
कुछ भी काम काज करते बाप को याद करना है।
ऐसे भी नहीं कि अभी निरन्तर तुम याद कर सकते हो। नहीं।
इस अवस्था में टाइम लगता है।
अभी निरन्तर याद ठहर जाए फिर तो कर्मातीत अवस्था हो जाए।
बाप समझाते हैं - बच्चे, ड्रामा के प्लैन अनुसार अब बाकी थोड़ा समय है।
सारा हिसाब भी बुद्धि में रहता है।
5000 वर्ष का हिसाब...
कहते हैं क्राइस्ट से 3 हज़ार वर्ष पहले भारत ही था।
उनको स्वर्ग कहा जाता था।
अभी उन्हों के 2 हज़ार वर्ष पूरे होते हैं, 5000 वर्ष का हिसाब हो जाता है।
देखा जाता है तुम्हारा नाम सारा विलायत से ही निकलेगा क्योंकि उन्हों की बुद्धि फिर भी भारतवासियों से तीखी है।
भारत से पीस भी वह मांगते हैं।
भारतवासियों ने ही लाखों वर्ष कहकर और सर्वव्यापी का ज्ञान देकर बुद्धि बिगाड़ दी है।
तमोप्रधान बन गये हैं।
वह इतने तमोप्रधान नहीं बने हैं, उन्हों की बुद्धि तो बड़ी तीखी है।
उन्हों का जब आवाज़ निकलेगा तब भारतवासी जागेंगे क्योंकि भारतवासी एकदम घोर नींद में सोये हुए हैं।
वह थोड़े सोये हुए हैं। उन्हों से आवाज़ अच्छा निकलेगा, विलायत से आये भी थे कि हमको कोई बतावे - पीस कैसे हो सकती है?
क्योंकि बाप भी भारत में ही आते हैं।
यह बात तो तुम बच्चे ही बता सकते हो - दुनिया में फिर से वह पीस कब और कैसे होगी?
तुम बच्चे तो जानते हो बरोबर पैराडाइज़ अथवा हेविन था।
नई दुनिया में भारत पैराडाइज़ था।
यह और कोई भी नहीं जानते हैं।
ईश्वर सर्वव्यापी है कह....भारत-वासी ही सबसे जास्ती पत्थरबुद्धि बने हैं...
मनुष्यों की बुद्धि में यह बात ही बैठ गई है कि ईश्वर सर्वव्यापी है और कल्प की आयु लाखों वर्ष कह दी है।
सबसे जास्ती पत्थरबुद्धि यह भारत-वासी ही बने हैं।
यह गीता शास्त्र आदि सब हैं भक्ति मार्ग के।
फिर भी यह सब ऐसे ही बनेंगे।
भल ड्रामा को जानते हैं फिर भी बाप तो पुरूषार्थ कराते हैं।
तुम बच्चे जानते हो विनाश तो जरूर होगा।
बाबा 21 जन्मों के लिए इतना खजाना दे देते हैं...
बाप आये ही हैं नई दुनिया की स्थापना करने।
यह तो खुशी की बात है ना।
जब कोई बड़ा इम्तहान पास करते हैं तो अन्दर में खुशी होती है ना।
हम यह सब पास कर यह (देवता) जाकर बनेंगे।
सारा पढ़ाई पर मदार है।
तुम बच्चे जानते हो बरोबर बाप हमको पढ़ाकर यह बनाते हैं।
बरोबर पैराडाइज़ हेविन था।
मनुष्य तो बिचारे बिल्कुल ही मूँझे हुए हैं।
बेहद के बाप पास जो ज्ञान है वह तुम बच्चों को दे रहे हैं।
बाप की तुम महिमा करते हो - बाबा नॉलेजफुल है फिर ब्लिसफुल भी है, खजाना भी उनके पास फुल है।
तुमको इतना साहूकार कौन बनाता है?
यहाँ तुम क्यों आये हो? वर्सा पाने।
अगर कोई की तन्दुरूस्ती अच्छी है परन्तु धन नहीं है तो धन बिगर क्या होगा!
वैकुण्ठ में तो तुम्हारे पास धन रहता है।
यहाँ जो-जो साहूकार हैं, उनको नशा रहता है हमारे पास इतना धन है, यह-यह कारखाने आदि हैं। शरीर छोड़ा खलास।
तुम तो जानते हो हमको बाबा 21 जन्मों के लिए इतना खजाना दे देते हैं।
बाप खुद तो खजाने का मालिक नहीं बनते हैं।
तुम बच्चों को मालिक बनाते हैं।
यह भी तुम जानते हो विश्व में शान्ति तो सिवाए गॉड फादर के कोई स्थापन कर न सके।
यह त्रिमूर्ति गोले का चित्र है...
सबसे फर्स्टक्लास चित्र है - यह त्रिमूर्ति गोले का।
इस चक्र में ही सारा ज्ञान भरा हुआ है।
तुम्हारी ऐसी कोई वन्डरफुल चीज़ होगी तब वह समझेंगे इसमें जरूर कोई ऐसा राज़ है।
बच्चे कोई-कोई छोटे-छोटे खिलौने बनाते हैं, वह बाबा को पसन्द नहीं आते।
बाबा तो कहते बड़े चित्र लगाओ जो दूर से कोई पढ़कर समझ सके।
मनुष्य अटेन्शन बड़ी चीज़ पर देंगे।
इसमें क्लीयर दिखाया हुआ है, उस तरफ है कलियुग, इस तरफ है सतयुग
। बड़े-बड़े चित्र होंगे तो मनुष्यों का अटेन्शन खीचेगा।
टूरिस्ट भी देखेंगे, समझेंगे भी वह अच्छी तरह से।
यह भी जानते हैं क्राइस्ट से 3 हज़ार वर्ष पहले स्वर्ग था।
बाहर तो ऐसे नहीं जानते।
5 हज़ार वर्ष का हिसाब तुम क्लीयर समझाते हो तो यह इतना बड़ा बनाना चाहिए जो दूर से देख सकें और अक्षर भी पढ़ें, जिससे समझें कि दुनिया की अन्त तो बरोबर है।
बॉम्ब्स तो तैयार होते रहते हैं।
नैचुरल कैलेमिटीज भी होगी।
तुम विनाश का नाम सुनते हो तो अन्दर में खुशी बहुत होनी चाहिए।
परन्तु ज्ञान ही नहीं होगा तो खुश भी हो न सके।
मुझे याद करो और बिल्कुल खुशी में रहो...
बाप कहते हैं देह सहित सब कुछ छोड़ अपने को आत्मा समझो, अपनी आत्मा का योग मुझ बाप के साथ लगाओ।
यह है मेहनत की बात।
पावन बनकर ही पावन दुनिया में आना है।
तुम समझते हो हम ही बादशाही लेते हैं, फिर गॅवाते हैं।
यह तो बहुत सहज है।
उठते, बैठते, चलते अन्दर में टपकना चाहिए, जैसे बाबा के पास ज्ञान है ना।
बाप आये ही हैं पढ़ाकर देवता बनाने।
तो इतनी अथाह खुशी बच्चों को रहनी चाहिए ना।
अपने से पूछो इतनी अथाह खुशी है?
बाप को इतना याद करते हैं?
चक्र की भी सारी नॉलेज बुद्धि में है, तो इतनी खुशी रहनी चाहिए।
बाप कहते हैं मुझे याद करो और बिल्कुल खुशी में रहो।
तुमको पढ़ाने वाला देखो कौन है!
जब सबको मालूम पड़ेगा तो सबका मुँह ही फीका हो जायेगा।
परन्तु अभी उन्हों के समझने में थोड़ी देरी है।
अभी देवता धर्म के इतने मेम्बर्स तो बने नहीं हैं।
सारी राजाई स्थापन हुई नहीं है।
कितने ढेर मनुष्यों को बाप का पैगाम देना है!
बेहद का बाप फिर से हमको स्वर्ग की बादशाही दे रहे हैं।
तुम भी उस बाप को याद करो।
बेहद का बाप तो जरूर बेहद का सुख देंगे ना।
बच्चों के अन्दर में तो अथाह ज्ञान की खुशी होनी चाहिए और जितना बाप को याद करते रहेंगे तो आत्मा पवित्र बनती जायेगी।
पुरूषार्थ में थकना नहीं है...
ड्रामा के प्लैन अनुसार तुम बच्चे जितना सर्विस कर प्रजा बनाते हो तो जिनका कल्याण होता है उन्हों की फिर आशीर्वाद भी मिल जाती है।
गरीबों की सर्विस करते हो।
निमंत्रण देते रहो।
ट्रेन में भी तुम बहुत सर्विस कर सकते हो।
इतने छोटे बैज में ही कितनी नॉलेज भरी हुई है।
सारी पढ़ाई का तन्त इसमें है।
बैजेस तो बहुत अच्छे-अच्छे ढेर बनाने चाहिए जो किसको सौगात भी दे सकें।
कोई को भी समझाना तो बहुत सहज है।
सिर्फ शिवबाबा को याद करो।
शिवबाबा से ही वर्सा मिलता है तो बाप और बाप का वर्सा स्वर्ग की बादशाही, कृष्णपुरी को याद करो।
मनुष्यों की मत तो कितनी मूँझी हुई है।
कुछ भी समझते नहीं हैं।
विकार के लिए कितना तंग करते हैं।
काम के पिछाड़ी कितना मरते हैं।
कोई बात ही समझते नहीं।
सबकी बुद्धि बिल्कुल चट हो गई है, बाप को जानते ही नहीं।
यह भी ड्रामा में नूँध है।
सबकी मेंटल खलास हो गई है (मानसिक शक्ति खत्म हो गई है)।
बाप कहते हैं - बच्चों, तुम पवित्र बनो तो ऐसे स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे, परन्तु समझते ही नहीं।
आत्मा की ताकत सारी निकल गई है।
कितना समझाते हैं फिर भी पुरूषार्थ करना और कराना है।
पुरूषार्थ में थकना नहीं है।
हार्टफेल भी नहीं होना है।
इतनी मेहनत की, भाषण से एक भी नहीं निकला।
लेकिन तुमने जो सुनाया, उसे जिसने भी सुना उस पर छाप तो लग गयी।
पिछाड़ी में सब जानेंगे जरूर।
तुम बी.के. की अथाह महिमा निकलने वाली है।
परन्तु एक्टिविटी देखते हैं तो जैसे एकदम बेसमझी की।
कोई रिगार्ड ही नहीं, पूरी पहचान नहीं।
बुद्धि बाहर भटकती रहती है।
पवित्रता का सारा मदार याद पर है...
बाप को याद करें तो मदद भी मिले।
बाप को याद करते नहीं तो गोया वह पतित हैं।
तुम बनते हो पावन।
जो बाप को याद नहीं करते हैं तो उन्हों की बुद्धि जरूर कहाँ न कहाँ भटकती रहती है।
तो उनके साथ अंग-अंग से नहीं मिलना चाहिए क्योंकि याद में न रहने के कारण वह वायुमण्डल को खराब कर देते हैं।
पवित्र और अपवित्र इकट्ठे हो न सके इसलिए बाप पुरानी सृष्टि को खलास कर देते हैं।
दिन-प्रतिदिन कायदे भी सख्त निकलते जायेंगे।
बाप को याद नहीं करते हैं तो फायदे के बदले और ही नुकसान करते हैं।
पवित्रता का सारा मदार याद पर है।
एक जगह बैठने की बात नहीं है।
यहाँ इकट्ठा बैठने से तो अलग-अलग पहाड़ी पर जाकर बैठें वह अच्छा है।
जो याद नहीं करते हैं वह हैं पतित।
उनका तो संग भी नहीं करना चाहिए।
चलन से भी मालूम पड़ता है।
याद बिगर पावन तो बन न सकें।
हर एक के ऊपर पापों का बोझा बहुत है - जन्म-जन्मान्तर का।
वह बिगर याद की यात्रा निकले कैसे।
वह गोया पतित ही हैं।
बाप कहते हैं मैं तुम बच्चों के लिए सारी पतित दुनिया को खलास कर देता हूँ।
उनका संग भी न हो।
परन्तु इतनी भी बुद्धि नहीं कि किसके साथ संग करना चाहिए।
तुम्हारा प्यार पावन का पावन के साथ होना चाहिए।
यह भी बुद्धि चाहिए ना।
स्वीट बाप और स्वीट राजधानी के सिवाए और कोई याद न आये।
इतना सब त्याग करना कोई मासी का घर नहीं है।
बाप को तो बच्चों पर अथाह प्यार है।
बच्चे पावन बन जाओ तो तुम पावन दुनिया के मालिक बन जायेंगे।
हम तुम्हारे लिए पावन दुनिया की स्थापना कर रहे हैं।
इस पतित दुनिया को बिल्कुल खलास करा देते हैं।
यहाँ इस पतित दुनिया में हर चीज़ तुमको दु:ख देती है।
आयु भी कमती होती जाती है, इनको कहा जाता है वर्थ नाट ए पेनी।
कौड़ी और हीरे में फर्क तो होता है ना।
तो तुम बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए।
गाया भी जाता है सच तो बिठो नच।
वह हिम्मत, वह अवस्था चाहिए...
तुम सतयुग में खुशी में डांस करते हो।
यहाँ की कोई भी वस्तु से दिल नहीं लगानी है।
इनको तो देखते हुए देखना नहीं है, आंखें खुली होते हुए भी जैसे कि नींद हो, परन्तु वह हिम्मत, वह अवस्था चाहिए।
यह तो निश्चय है कि यह पुरानी दुनिया होगी ही नहीं।
इतना खुशी का पारा चढ़ा रहना चाहिए।
चुटकी काटनी चाहिए - अरे, हम शिवबाबा को याद करेंगे तो विश्व की बादशाही मिलेगी।
बाप इतना गुल-गुल बनाते हैं ...ऐसे बाप को याद जरूर करना हैं...
हठयोग से भी बैठना नहीं है।
खाते-पीते, काम करते बाप को याद करो।
यह भी जानते हो राजधानी स्थापन हो रही है।
बाप थोड़ेही कहेंगे दासी बनें।
बाप तो कहेंगे पुरूषार्थ करो पावन बनने का।
बाप पावन बनाने का पुरूषार्थ कराते हैं तुम फिर पतित बनते हो, कितने झूठ पाप करते हो।
हमेशा शिवबाबा को याद करो तो पाप सब स्वाहा हो जाएं।
यह बाबा का यज्ञ है ना।
बड़ा भारी यज्ञ है। वह लोग यज्ञ रचते हैं - लाखों रूपया खर्च करते हैं।
यहाँ तो तुम जानते हो सारी दुनिया इसमें स्वाहा हो जानी है।
बाहर से आवाज़ होगा, भारत में भी फैलेगा।
एक तो बाप के साथ बुद्धि का योग हो तो पाप कटें और फिर ऊंच पद भी मिले।
बाप का तो फर्ज है बच्चों को पुरूषार्थ कराना।
लौकिक बाप तो बच्चों की सेवा करते हैं, सेवा लेते भी हैं।
यह बाप तो कहते हैं मैं तुम बच्चों को 21 जन्मों का वर्सा देता हूँ, तो ऐसे बाप को याद जरूर करना है, जिससे पाप कट जाएं।
बाकी पानी से थोड़ेही पाप कटते हैं।
पानी तो जहाँ-तहाँ है।
विलायत में भी नदियाँ हैं तो क्या यहाँ की नदियाँ पावन बनाने वाली, विलायत की नदियाँ पतित बनाने वाली हैं क्या?
कुछ भी मनुष्यों में समझ नहीं है।
बाप को तो तरस पड़ता है ना।
बाप समझाते हैं - बच्चे, ग़फलत मत करो।
बाप इतना गुल-गुल बनाते हैं तो मेहनत करनी चाहिए ना।
अपने पर रहम करना है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) यहाँ की कोई भी वस्तु में दिल नहीं लगानी है।
देखते हुए भी नहीं देखना है।
आंखें खुली होते भी जैसे नींद का नशा रहता, ऐसे खुशी का नशा चढ़ा हुआ हो।
2) सारा मदार पवित्रता पर है, इसलिए सम्भाल करनी है कि पतित के अंग से अंग न लगे।
स्वीट बाप और स्वीट राजधानी के सिवाए और कोई याद न आये।
वरदान:-
सेवा द्वारा मेवा प्राप्त करने वाले
सर्व हद की चाहना से परे
सदा सम्पन्न और समान भव
सेवा का अर्थ है मेवा देने वाली।
अगर कोई सेवा असन्तुष्ट बनाये तो वो सेवा, सेवा नहीं है।
ऐसी सेवा भल छोड़ दो लेकिन सन्तुष्टता नहीं छोड़ो।
जैसे शरीर की तृप्ति वाले सदा सन्तुष्ट रहते हैं वैसे मन की तृप्ति वाले भी सन्तुष्ट होंगे।
सन्तुष्टता तृप्ति की निशानी है।
तृप्त आत्मा में कोई भी हद की इच्छा, मान, शान, सैलवेशन, साधन की भूख नहीं होगी।
वे हद की सर्व चाहना से परे सदा सम्पन्न और समान होंगे।
स्लोगन:-
सच्ची दिल से नि:स्वार्थ सेवा में आगे बढ़ना अर्थात् पुण्य का खाता जमा होना।