“संगमयुग उत्सव का युग है, ब्राह्मण जीवन उत्साह की जीवन है''
ईश्वरीय जीवन सदा उमंग उत्साह वाली जीवन...
आज होलीएस्ट, हाइएस्ट बाप अपने होली और हैपी हंसों से होली मनाने आये हैं।
त्रिमूर्ति बाप तीन प्रकार की होली का दिव्य राज़ सुनाने आये हैं।
वैसे संमगयुग होली युग है।
संमगयुग उत्सव का युग है।
आप श्रेष्ठ आत्माओं का हर दिन, हर समय उत्साह भरा उत्सव है।
अज्ञानी आत्मायें स्वयं को उत्साह में लाने के लिए उत्सव मनाते हैं।
लेकिन आप श्रेष्ठ आत्माओं के लिए यह ब्राह्मण जीवन उत्साह की जीवन है।
उमंग, खुशी से भरी हुई जीवन है इसलिए संगमयुग ही उत्सव का युग है।
ईश्वरीय जीवन सदा उमंग उत्साह वाली जीवन है।
सदा ही खुशियों में नाचते,
ज्ञान का शक्तिशाली अमृत पीते,
सुख के गीत गाते,
दिल के स्नेह के गीत गाते,
अपनी श्रेष्ठ जीवन बिता रहे हैं।
अज्ञानी आत्मायें एक दिन मनाती, अल्पकाल के उत्साह में आती फिर वैसे की वैसी हो जाती।
आप उत्सव मनाते हुए होली बन जाते हो और दूसरों को भी होली बनाते हो।
वह सिर्फ मनाते हैं, आप मनाते बन जाते हो।
लोग तीन प्रकार की होली मनाते हैं-
एक जलाने की होली।
दूसरी रंग लगाने की होली।
तीसरी मंगल मिलन मनाने की होली।
यह तीनों होली हैं रूहानी रहस्य से।
लेकिन वह स्थूल रूप में मनाते रहते हैं।
इस संगमयुग पर आप महान आत्मायें जब बाप की बनती हो अर्थात् होली बनती हो तो पहले क्या करती हो?
पहले सब पुराने स्वभाव संस्कार योग अग्नि से भस्म करते हो अर्थात् जलाते हो।
उसके बाद ही याद द्वारा बाप के संग का रंग लगता है।
आप भी पहले जलाने वाली होली मनाते हो फिर प्रभू संग के रंग में रंग जाते हो
अर्थात् बाप समान बन जाते हो।
बाप ज्ञान सागर तो बच्चे भी संग के रंग में ज्ञान स्वरूप बन जाते हैं...
जो बाप के गुण वह आपके गुण हो जाते,
जो बाप की शक्तियाँ वह आपका खजाना बन जाती।
आपकी प्रापर्टी हो जाती।
तो संग का रंग ऐसा अविनाशी लग जाता जो जन्म-जन्मान्तर के लिय यह रंग अविनाशी बन जाता है।
और जब संग का रंग लग जाता,
यह रूहानी रंग की होली मना लेते तो आत्मा और परमात्मा का, बाप और बच्चों का श्रेष्ठ मिलन का मेला सदा ही होता रहता।
अज्ञानी आत्माओं ने आपके इस रूहानी होली को यादगार के रूप में मनाना शुरू किया है।
आपकी प्रैक्टिकल उत्साह भरी जीवन का भिन्न-भिन्न रूप में यादगार मनाकर अल्पकाल के लिए खुश हो जाते।
हर कदम में, आपके श्रेष्ठ जीवन में जो विशेषतायें प्राप्त हुई उनको याद कर थोड़े समय के लिए वह भी मौज मनाते रहते हैं।
यह यादगार देख वा सुन हर्षित होते हो ना कि हमारी विशेषताओं का यादगार है!
आपने माया को जलाया और वह होलिका बनाके जला देते हैं।
इतनी रमणीक कहानियाँ बनाई हैं जो सुनकर आपको हंसी आयेगी कि हमारी बात को कैसे बना दिया है!
होली का उत्सव आपके भिन्न-भिन्न प्राप्ति के याद रूप में मनाते हैं...
अभी आप सदा खुश रहते हो।
खुशी की प्राप्ति का यादगार बहुत खुश होकर होली मनाते हैं।
उस समय सब दुख भूल जाते हैं।
और आप सदा के लिए दुख भूल गये हो।
आपकी खुशी की प्राप्ति का यादगार मनाते हैं।
और बात मनाने के समय छोटे बड़े बहुत ही हल्के बन, हल्के रूप में मनाते हैं।
उस दिन के लिए सभी का मूड भी हल्का रहता है।
तो यह आपके डबल लाइट बनने का यादगार है।
जब प्रभू-संग के रंग में रंग जाते हो तो डबल लाइट बन जाते हो ना।
तो इस विशेषता का यादगार है।
और बात-इस दिन छोटे बड़े किसी भी सम्बन्ध वाले समान स्वभाव में रहते हैं।
चाहे छोटा-सा पोत्रा भी हो वह भी दादा को रंग लेगा।
सभी सम्बन्ध का, आयु का भान भूल जाते हैं...
समान भाव में आ जाते हैं।
यह भी आपके विशेष समान भाव अर्थात् भाई-भाई की स्थिति और कोई भी देह के सम्बन्ध की दृष्टि नहीं,
यह भाई-भाई की समान स्थिति का यादगार है।
और बात-इस दिन भिन्न-भिन्न रंगों से खूब पिचकारियाँ भर एक दो को रंगते हैं।
यह भी इस समय की आपकी सेवा का यादगार है।
कोई भी आत्मा को आप दृष्टि की पिचकारी द्वारा प्रेम स्वरूप बनाने का रंग, आनन्द स्वरूप बनाने का रंग, सुख का, शान्ति का, शक्तियों का कितने रंग लगाते हो?
ऐसा रंग लगाते हो जो सदा लगा रहे।
मिटाना नहीं पड़ता।
मेहनत नहीं करनी पड़ती।
और ही हर आत्मा यही चाहती कि सदा इन रंगों में रंगी रहूँ।
तो सभी के पास रूहानी रंगों की रूहानी दृष्टि की पिचकारी है ना!
होली खेलते हो ना!
यह रूहानी होली आप सबके जीवन का यादगार है।
ऐसा बापदादा से मंगल मिलन मनाया है, जो मिलन मनाते बाप समान बन गये।
ऐसा मंगल मिलन मनाया है जो कम्बाइन्ड बन गये हो।
कोई अलग कर नहीं सकता।
और बात-यह दिन सभी बीती हुई बातों को भुलाने का दिन है...
63 जन्म की बीती को भुला देते हो ना।
बीती को बिन्दी लगा देते हो इसलिए होली को बीती सो बीती का अर्थ भी कहते हैं।
कैसी भी कड़ी दुश्मनी को भूल मिलन मनाने का दिन माना जाता है।
आपने भी आत्मा के दुश्मन आसुरी संस्कार, आसुरी स्वभाव भूल कर प्रभू मिलन मनाया ना!
संकल्प मात्र भी पुराना संस्कार स्मृति में न आये।
यह भी आपके इस भूलने की विशेषता का यादगार मना रहे हैं।
तो सुना आपकी विशेषतायें कितनी हैं?
आपके हर गुण का, हर विशेषता का, कर्म का अलग-अलग यादगार बना दिया है।
जिसके हर कर्म का यादगार बन जाए, जो याद कर खुशी में आ जाएं वह स्वयं कितने महान हैं?
समझा-अपने आपको कि आप कौन हो?
होली तो हो लेकिन कितने विशेष हो!
डबल विदेशी भल यह अपनी श्रेष्ठता का यादगार न भी जानते हो लेकिन आपके याद का महत्व दुनिया वाले याद कर यादगार मना रहे हैं...
समझा होली क्या होती है?
आप सब तो रंग में रंगे हुए हो।
ऐसे प्रेम के रंग में रंग गये हो जो सिवाए बाप के और कुछ दिखाई नहीं देता।
स्नेह में ही खाते-पीते, चलते, गाते, नाचते रहते हो।
पक्का रंग लग गया है ना कि कच्चा है?
कौन सा रंग लगा है कच्चा वा पक्का?
बीती सो बीती कर ली?
गलती से भी पुरानी बात याद न आवे...
कहते हो ना क्या करें आ गई।
यह गलती से आ जाती है।
नया जन्म, नई बातें, नये संस्कार, नई दुनिया, यह ब्राह्मणों का संसार भी नया संसार है।
ब्राह्मणों की भाषा भी नई है!
आत्मा की भाषा नई है ना!
वह क्या कहते और आप क्या कहते!
परमात्मा के प्रति भी नई बातें हैं।
तो भाषा भी नई, रीति रसम भी नई, सम्बन्ध-सम्पर्क भी नया, सब नया हो गया।
पुराना समाप्त हुआ।
नया शरू हुआ, नये गीत गाते हो।
पुराने नहीं।
क्या, क्यों के हैं पुराने गीत।
अहा, वाह, ओहो! यह हैं नये गीत।
तो कौन से गीत गाते हो?
हाय हाय के गीत तो नहीं गाते हो ना!
हाय हाय करने वाले दुनिया में बहुत हैं आप नहीं हो।
तो अविनाशी होली मना ली अर्थात् बीती सो बीती कर सम्पूर्ण पवित्र बन गये।
बाप के संग के रंग में रंग गये हो।
तो होली मना ली ना!
सदा बाप और मैं, साथ-साथ हैं...
और संगम-युग सदा साथ रहेंगे।
अलग हो ही नहीं सकते।
ऐसा उमंग उत्साह दिल में है ना कि मैं और मेरा बाबा!
कि पर्दे के पीछे तीसरा भी कोई है?
कभी चूहा कभी बिल्ली निकल आती, ऐसे तो नहीं!
सब समाप्त हो गये ना!
जब बाप मिला तो सब कुछ मिला।
और कुछ रहता नहीं।
न सम्बन्धी रह जाता, न खजाना रह जाता, न शक्ति, न गुण रह जाता, न ज्ञान रह जाता, न कोई प्राप्ति रह जाती।
तो बाकी और क्या चाहिए, इसको कहा जाता है होली मनाना।
समझा!
आप लोग कितना मौज में रहते हो।
बेफिकर बादशाह, बिन कौड़ी बादशाह, बेगमपुर के बादशाह।
ऐसी मौज में कोई रह न सके।
दुनिया के साहूकार से साहूकार हो वा दुनिया में नामीग्रामी कोई व्यक्ति हो,
बहुत ही शास्त्रवादी हो,
वेदों के पाठ पढ़ने वाले हो,
नौंधा भक्त हो,
नम्बरवन साइन्सदान हो,
कोई भी आक्यूपेशन वाले हो
लेकिन ऐसी मौज की जीवन नहीं हो सकती,
जिसमें मेहनत नहीं, मुहब्बत ही मुहब्बत है।
चिंता नहीं लेकिन शुभचिन्तक हैं, शुभचिन्तन है...
ऐसी मौज की जीवन सारे विश्व में चक्कर लगाओ, अगर कोई मिले तो ले आओ।
इसलिए गीत गाते हो ना - मधुबन में, बाप के संसार में मौजें ही मौजें हैं।
खाओ तो भी मौज, सोओ तो भी मौज।
गोली लेकर सोने की जरूरत नहीं।
बाप के साथ सो जाओ तो गोली नहीं लेनी पड़ेगी।
अकेले सोते हो तो कहते हाई ब्लडप्रेशर है, दर्द है, तब गोली लेनी पड़ती।
बाप साथ हो, बस बाबा आपके साथ सो रहे हैं, यह है गोली।
ऐसा भी फिर समय आयेगा जैसे आदि में दवाईयाँ नहीं चलती थी।
याद है ना।
शुरू में कितना समय दवाईयाँ नहीं थी।
हाँ, थोड़ा मलाई मक्खन खा लिया।
दवाई नहीं खाते थे।
तो जैसे आदि में प्रैक्टिस कराई है ना।
थे तो पुराने शरीर।
अन्त में फिर वह आदि वाले दिन रिपीट होंगे...
साक्षात्कार भी सब बहुत विचित्र करते रहेंगे।
बहुतों की इच्छा है ना-एक बार साक्षात्कार हो जाए।
लास्ट तक जो पक्के होंगे उन्हों को साक्षात्कार होंगे फिर वही संगठन की भट्ठी होगी।
सेवा पूरी हो जायेगी।
अभी सेवा के कारण जहाँ तहाँ बिखर गये हो!
फिर नदियाँ सब सागर में समा जायेंगी।
लेकिन समय नाजुक होगा।
साधन होते हुए भी काम नहीं करेंगे इसलिए बुद्धि की लाइन बहुत क्लीयर चाहिए।
जो टच हो जाए कि अभी क्या करना है।
एक सेकण्ड भी देरी की तो गये।
जैसे वह भी अगर बटन दबाने में एक सेकण्ड भी देरी की तो क्या रिजल्ट होगी?
यह भी अगर एक सेकण्ड टचिंग होने में देरी हुई तो फिर पहुँचना मुश्किल होगा।
वह लोग भी कितना अटेन्शन से बैठे रहते हैं।
तो यह बुद्धि की टचिंग।
जैसे शुरू में घर बैठे आवाज आया, बुलावा हुआ कि आओ, पहुँचो, अभी निकलो।
और फौरन निकल पड़े।
ऐसे ही अन्त में भी बाप का आवाज पहुँचेगा।
जैसे साकार में सभी बच्चों को बुलाया।
ऐसे आकार रूप में सभी बच्चों को आओ आओ का आह्वान करेंगे।
बस आना और साथ जाना।
ऐसे सदा अपनी बुद्धि क्लीयर हो और कहाँ अटेन्शन गया तो बाप का आवाज, बाप का आह्वान मिस हो जायेगा।
यह सब होना ही है।
टीचर्स सोच रहीं हैं हम तो पहुँच जायेंगे...
यह भी हो सकता है कि आपको वहाँ ही बाप डायरेक्शन दें।
वहाँ कोई विशेष कार्य हो।
वहाँ कोई औरों को शक्ति देनी हो।
साथ ले जाना हो।
यह भी होगा लेकिन बाप के डायरेक्शन प्रमाण रहे।
मनमत से नहीं।
लगाव से नहीं।
हाय मेरा सेन्टर; यह याद न आये।
फलाना जिज्ञासू भी साथ ले जाऊं, यह अनन्य है, मददगार है।
ऐसा भी नहीं।
किसी के लिए भी अगर रूके तो रह जायेंगे।
ऐसे तैयार हो ना।
इसको कहते हैं एवररेडी।
सदा ही सब कुछ समेटा हुआ हो...
उस समय समेटने का संकल्प नहीं आवे।
यह कर लूँ, यह कर लूँ।
साकार में याद है ना जो सर्विसएबुल बच्चे थे उन्हों की स्थूल बैग बैगेज सदा तैयार होती थी।
ट्रेन पहुँचने में 5 मिनट हैं और डायरेक्शन मिलता था कि जाओ।
तो बैग बैगेज तैयार रहते थे।
एक स्टेशन पहले ट्रेन पहुँच गई है-और वह जा रहे हैं।
ऐसे भी अनुभव किया ना।
यह भी मन की स्थिति में बैग बैगेज तैयार हो।
बाप ने बुलाया और बच्चे जी हाजिर हो जाएं।
इसको कहते हैं एवररेडी।
अच्छा।
ऐसे सदा संग के रंग में रंगे हुए, सदा बीती सो बीती कर वर्तमान और भविष्य श्रेष्ठ बनाने वाले, सदा परमात्म मिलन मनाने वाले, सदा हर कर्म याद में रह करने वाले अर्थात् हर कर्म का यादगार बनाने वाले, सदा खुशी में नाचते गाते संगमयुग की मौज मनाने वाले, ऐसे बाप समान बाप के हर संकल्प को कैच करने वाले, सदा बुद्धि श्रेष्ठ और स्पष्ट रखने वाले, ऐसे होली हैपी हंसों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते!
बापदादा ने सभी बच्चों के पत्रों का उत्तर देते हुए होली की मुबारक दी...
चारों ओर के देश विदेश के सभी बच्चों के स्नेह भरे, उमंग-उत्साह भरे और कहाँ-कहाँ अपने पुरुषार्थ के प्रतिज्ञा भरे सभी के पत्र और सन्देश बापदादा को प्राप्त हुए।
बापदादा सभी होली हंसों को सदा “जैसा बाप वैसे मैं'' यह स्मृति का विशेष स्लोगन वरदान के रूप में याद दिला रहे हैं।
कोई भी कर्म करते संकल्प करते पहले चेक करो जो बाप का संकल्प वह यह संकल्प है।
जो बाप का कर्म वही मेरा कर्म है।
सेकण्ड में चेक करो और फिर साकार में लाओ।
तो सदा ही बाप समान शक्तिशाली आत्मा बन सफलता का अनुभव करेंगे।
सफलता जन्म-सिद्ध अधिकार है, ऐसा सहज प्राप्ति का अनुभव करेंगे।
सफलता का सितारा मैं स्वयं हूँ तो सफलता मेरे से अलग हो नहीं सकती।
सफलता की माला सदा गले में पिरोई हुई है अर्थात् हर कर्म में अनुभव करते रहेंगे।
बापदादा आज के इस होली के संगठन में आप सभी होली हंसों को सम्मुख देख रहे हैं, मना रहे हैं।
स्नेह से सभी को देख रहे हैं - सभी के विशेषता की वैराइटी खुशबू ले रहे हैं।
कितनी मीठी खुशबू है हरेक के विशेषता की।
बाप हर विशेष आत्मा को विशेषताओं से देखते हुए यही गीत गाते वाह मेरा सहज योगी बच्चा!
वाह मेरा पदमापदम भाग्यशाली बच्चा!
तो सभी अपनी-अपनी विशेषता और नाम सहित सम्मुख अपने को अनुभव करते हुए यादप्यार स्वीकार करना और सदा बाप की छत्रछाया में रह माया से घबराना नहीं।
छोटी बात है, बड़ी बात नहीं है।
छोटी को बड़ा नहीं करना।
बड़ी को छोटा करना।
ऊंचे रहेंगे तो बड़ा छोटा हो जायेगा।
नीचे रहेंगे तो छोटा भी बड़ा हो जायेगा इसलिए बापदादा का साथ है, हाथ है तो घबराओ नहीं खूब उड़ो, उड़ती कला से सेकण्ड में सबको पार करो।
बाप का साथ सदा ही सेफ रखता है।
और रखेगा।
अच्छा - सभी को सिकीलधा, लाडला कह बापदादा होली की मुबारक दे रहे हैं।
(फिर तो बापदादा से सभी बच्चों ने होली मनाई तथा पिकनिक की)
वरदान:-
ऊंचा बाप, ऊंचे हम और ऊंचा कार्य
इस स्मृति से शक्तिशाली बनने वाले
बाप समान भव
जैसे आजकल की दुनिया में कोई वी.आई.पी. का बच्चा होगा तो वह अपने को भी वी.आई.पी. समझेगा।
लेकिन बाप से ऊंचा तो कोई नहीं है।
हम ऐसे ऊंचे से ऊंचे बाप की सन्तान ऊंची आत्मायें हैं - यह स्मृति शक्तिशाली बनाती है।
ऊंचा बाप, ऊंचे हम और ऊंचा कार्य - ऐसी स्मृति में रहने वाले सदा बाप समान बन जाते हैं।
सारे विश्व के आगे श्रेष्ठ और ऊंची आत्मायें आपके सिवाए कोई नहीं हैं इसलिए आपका ही गायन और पूजन होता है।
स्लोगन:-
सम्पूर्णता के दर्पण में सूक्ष्म लगावों को चेक करो और मुक्त बनो।