ओम् शान्ति अक्सर करके क्यों कहा जाता है?
यह है परिचय देना-आत्मा का परिचय आत्मा ही देती है।
बातचीत आत्मा ही करती है शरीर द्वारा।
आत्मा बिगर तो शरीर कुछ कर नहीं सकता।
तो यह आत्मा अपना परिचय देती है।
हम आत्मा हैं परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं।
वह तो कह देते अहम् आत्मा सो परमात्मा।
तुम बच्चों को यह सब बातें समझाई जाती हैं।
बाप तो बच्चे-बच्चे ही कहेंगे ना।
रूहानी बाप कहते हैं-हे रूहानी बच्चों, इन आरगन्स द्वारा तुम समझते हो।
बाप समझाते हैं पहले-पहले है ज्ञान फिर है भक्ति।
ऐसे नहीं कि पहले भक्ति, पीछे ज्ञान है।
पहले है ज्ञान दिन, भक्ति है रात।
फिर पीछे दिन कब आये?
जब भक्ति का वैराग्य हो।
तुम्हारी बुद्धि में यह रहना चाहिए।
ज्ञान और विज्ञान है ना।
अभी तुम ज्ञान की पढ़ाई पढ़ रहे हो।
फिर सतयुग-त्रेता में तुमको ज्ञान की प्रालब्ध मिलती है।
ज्ञान बाबा अभी देते हैं जिसकी प्रालब्ध फिर सतयुग में होगी।
यह समझने की बातें हैं ना।
अभी बाप तुमको ज्ञान दे रहे हैं।
तुम जानते हो फिर हम ज्ञान से परे विज्ञान अपने घर शान्तिधाम में जायेंगे।
उसको न ज्ञान, न भक्ति कहेंगे।
उसको कहा जाता है विज्ञान।
ज्ञान से परे शान्तिधाम में चले जाते हैं।
यह सब ज्ञान बुद्धि में रखना है।
बाप ज्ञान देते हैं-कहाँ के लिए?
भविष्य नई दुनिया के लिए देते हैं।
नई दुनिया में जायेंगे तो पहले अपने घर जरूर जायेंगे।
मुक्तिधाम में जाना है।
जहाँ की आत्मायें रहवासी हैं वहाँ तो जरूर जायेंगे ना।
यह नई-नई बातें तुम ही सुनते हो और कोई समझ नहीं सकते।
तुम समझते हो हम आत्मायें स्प्रीचुअल फादर के स्प्रीचुअल बच्चे हैं।
रूहानी बच्चों को जरूर रूहानी बाप चाहिए।
रूहानी बाप और रूहानी बच्चे।
रूहानी बच्चों का एक ही रूहानी बाप है।
वह आकर नॉलेज देते हैं।
बाप कैसे आते हैं-वह भी समझाया है।
बाप कहते हैं मुझे भी प्रकृति धारण करनी पड़ती है।
अभी तुमको बाप से सुनना ही सुनना है।
सिवाए बाप के और कोई से सुनना नहीं है।
बच्चे सुनकर फिर और भाईयों को सुनाते हैं।
कुछ न कुछ सुनाते जरूर हैं।
अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो क्योंकि वही पतित-पावन है।
बुद्धि वहाँ चली जाती है।
बच्चों को समझाने से समझ जाते हैं क्योंकि पहले बेसमझ थे।
भक्ति मार्ग में बेसमझाई से रावण के चम्बे में आने से क्या करते हैं!
कैसे छी-छी बन जाते हैं!
शराब पीने से क्या बन जाते हैं?
शराब गन्दगी को और ही फैलाती है।
अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है कि बेहद के बाप से हमको वर्सा लेना है।
कल्प-कल्प लेते आये हैं इसलिए दैवीगुण भी जरूर धारण करने हैं।
कृष्ण के दैवीगुणों की कितनी महिमा है।
वैकुण्ठ का मालिक कितना मीठा है।
अभी कृष्ण की डिनायस्टी नहीं कहेंगे।
डिनायस्टी विष्णु अथवा लक्ष्मी-नारायण की कहेंगे।
अभी तुम बच्चों को मालूम है बाप ही सतयुगी राजाई की डिनायस्टी स्थापन करते हैं।
यह चित्र आदि भल न भी हो तो भी समझा सकते हैं।
मन्दिर तो बहुत बनते रहते हैं, जिनमें ज्ञान है वह औरों का भी कल्याण करने, आपसमान बनाने भागते रहेंगे।
अपने को देखना है हमने कितनों को ज्ञान सुनाया है!
कोई-कोई को झट ज्ञान का तीर लग जाता है।
भीष्म-पितामह आदि ने भी कहा है ना-हमको कुमारियों ने ज्ञान बाण मारा।
यह सब पवित्र कुमार-कुमारियाँ हैं अर्थात् बच्चे हैं।
तुम सब बच्चे हो इसलिए कहते हो हम ब्रह्मा के बच्चे कुमार-कुमारियाँ भाई-बहन हैं।
यह पवित्र नाता होता है।
सो भी एडाप्टेड चिल्ड्रेन हैं।
बाप ने एडाप्ट किया है।
शिवबाबा ने एडाप्ट किया है प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा।
वास्तव में एडाप्ट अक्षर भी नहीं कहेंगे।
शिवबाबा के बच्चे तो हैं ही।
सब मुझे बुलाते हैं शिवबाबा, शिवबाबा आओ।
परन्तु समझ कुछ नहीं है।
सब आत्मायें शरीर धारण कर पार्ट बजाती हैं।
तो शिवबाबा भी जरूर शरीर द्वारा पार्ट बजायेंगे ना।
शिवबाबा पार्ट न बजावे फिर तो कोई काम का न रहा।
वैल्यु ही नहीं होती।
उनकी वैल्यु ही तब होती है जबकि सारी दुनिया को सद्गति में पहुँचाते हैं तब उनकी महिमा भक्तिमार्ग में गाते हैं।
सद्गति हो जाती है फिर पीछे तो बाप को याद करने की दरकार ही नहीं रहती।
वह सिर्फ गॉड फादर कहते हैं तो फिर टीचर गुम हो जाता।
कहने मात्र रह जाता कि परमपिता परमात्मा पावन बनाने वाला है।
वह सद्गति करने वाला भी नहीं कहते।
भल गायन में आता है - सर्व का सद्गति दाता एक है।
परन्तु बिगर अर्थ कह देते हैं।
अभी तुम जो कुछ कहते हो सो अर्थ सहित।
समझते हो भक्ति की रात अलग है, ज्ञान दिन अलग है।
दिन का भी टाइम होता है।
भक्ति का भी टाइम होता है।
यह बेहद की बात है।
तुम बच्चों को नॉलेज मिली है बेहद की।
आधाकल्प है दिन, आधाकल्प है रात।
बाप कहते हैं मैं भी आता हूँ रात को दिन बनाने।
तुम जानते हो आधाकल्प है रावण का राज्य, उसमें अनेक प्रकार के दु:ख हैं फिर बाप नई दुनिया स्थापन करते हैं तो उसमें सुख ही सुख मिलता है।
कहा भी जाता है यह सुख और दु:ख का खेल है।
सुख माना राम, दु:ख माना रावण।
रावण पर जीत पाते हो तो फिर रामराज्य आता है, फिर आधाकल्प बाद रावण, रामराज्य पर जीत पहन राज्य करते हैं।
तुम अभी माया पर जीत पाते हो।
अक्षर बाई अक्षर तुम अर्थ सहित कहते हो।
यह तुम्हारी है ईश्वरीय भाषा।
यह कोई समझेगा थोड़ेही।
ईश्वर कैसे बात करते हैं।
तुम जानते हो यह गॉड फादर की भाषा है क्योंकि गॉड फादर नॉलेजफुल है।
गाया भी जाता है वह ज्ञान का सागर नॉलेजफुल है तो जरूर किसको तो नॉलेज देंगे ना।
अभी तुम समझते हो कैसे बाबा नॉलेज देते हैं।
अपनी भी पहचान देते हैं और सृष्टि चक्र का भी नॉलेज देते हैं।
जो नॉलेज लेने से हम चक्रवर्ती राजा बनते हैं।
स्वदर्शन चक्र है ना।
याद करने से हमारे पाप कटते जाते हैं।
यह है तुम्हारा अहिंसक चक्र याद का।
वह चक्र है हिंसक, सिर काटने का। वह अज्ञानी मनुष्य एक-दो का सिर काटते रहते हैं।
तुम इस स्वदर्शन चक्र को जानने से बादशाही पाते हो।
काम महाशत्रु है, जिससे आदि, मध्य, अन्त दु:ख मिलता है।
वह है दु:ख का चक्र।
तुमको बाप यह चक्र का नॉलेज समझाते हैं।
स्वदर्शन चक्रधारी बना देते हैं।
शास्त्रों में तो कितनी कथायें बना दी हैं।
तुमको अभी वह सब भूलना पड़ता है।
सिर्फ एक बाप को याद करना है क्योंकि बाप से ही स्वर्ग का वर्सा लेंगे।
बाप को याद करना है और वर्सा लेना है।
कितना सहज है।
बेहद का बाप नई दुनिया स्थापन करते हैं तो वर्सा लेने के लिए ही याद करते हो।
यह है मनमनाभव, मध्याजी भव।
बाप और वर्से को याद करते, बच्चों को खुशी का पारा चढ़ा रहना चाहिए।
हम बेहद के बाप के बच्चे हैं।
बाप स्वर्ग की स्थापना करते हैं, हम मालिक थे फिर जरूर होंगे।
फिर तुम ही नर्कवासी हुए हो।
सतोप्रधान थे, अब तमोप्रधान बने हो।
भक्ति मार्ग में भी हम ही आये हैं।
आलराउण्ड चक्र लगाया है।
हम ही भारतवासी सूर्यवंशी थे फिर चन्द्रवंशी, वैश्य वंशी...... बन नीचे गिरे हैं।
हम भारतवासी देवी-देवता थे फिर हम ही गिरे हैं।
तुमको अभी सारा मालूम पड़ता है।
वाम मार्ग में जाते तो कितना छी-छी बन जाते हो।
मन्दिर में भी ऐसे छी-छी चित्र बनाये हुए हैं।
आगे घड़ियाँ भी ऐसे चित्रों वाली बनाते थे।
अब तुम समझते हो हम कितने गुल-गुल थे फिर हम ही पुनर्जन्म लेते-लेते कितने छी-छी बनते हैं।
यह सतयुग के मालिक थे तो दैवी गुणों वाले मनुष्य थे।
अभी आसुरी गुणों वाले बने हैं और कोई फ़र्क नहीं है।
पूँछ वाले वा सूँढ वाले मनुष्य होते नहीं हैं।
देवताओं की सिर्फ यह निशानियाँ हैं।
बाकी तो स्वर्ग प्राय: लोप हो गया है सिर्फ यह चित्र निशानी हैं।
चन्द्रवंशियों की भी निशानी है।
अभी तुम माया पर जीत पाने के लिए युद्ध करते हो।
युद्ध करते-करते फेल हो जाते हैं तो उनकी निशानी तीर कमान है।
भारतवासी वास्तव में हैं ही देवी-देवता घराने के।
नहीं तो किस घराने के गिने जाएं।
परन्तु भारतवासियों को अपने घराने का मालूम न होने कारण हिन्दू कह देते हैं।
नहीं तो वास्तव में तुम्हारा है ही एक घराना।
भारत में हैं सब देवता घराने के, जो बेहद का बाप स्थापन करते हैं।
शास्त्र भी भारत का एक ही है।
डीटी डिनायस्टी की स्थापना होती है, फिर उनमें भिन्न-भिन्न ब्रैन्चेज हो जाती हैं।
बाप स्थापन करते हैं देवी-देवता धर्म। मुख्य हैं 4 धर्म।
फाउन्डेशन देवी-देवता धर्म का ही है।
रहने वाले सब मुक्तिधाम के हैं।
फिर तुम अपने देवताओं की ब्रैन्चेज में चले जायेंगे।
भारत की बाउन्ड्री एक ही है और कोई धर्म की नहीं है।
यह हैं असुल देवता धर्म के।
फिर उनसे और धर्म निकले हैं ड्रामा के प्लैन अनुसार।
भारत का असुल धर्म है ही डीटी, जो स्थापन करने वाला भी है बाप।
फिर नये-नये पत्ते निकलते हैं।
यह सारा ईश्वरीय झाड़ है।
बाप कहते हैं मैं इस झाड़ का बीजरूप हूँ।
यह फाउन्डेशन है फिर उनसे ट्यूब्स निकलती हैं।
मुख्य बात है ही हम सब आत्मायें भाई-भाई हैं।
सब आत्माओं का बाप एक ही है, सभी उनको याद करते हैं।
अब बाप कहते हैं इन आंखों से तुम जो कुछ देखते हो उनको भूल जाना है।
यह है बेहद का वैराग्य, उनका है हद का।
सिर्फ घरबार से वैराग्य आ जाता है।
तुमको तो इस सारी पुरानी दुनिया से वैराग्य है।
भक्ति के बाद है वैराग्य पुरानी दुनिया का।
फिर हम नई दुनिया में जायेंगे वाया शान्तिधाम।
बाप भी कहते हैं यह पुरानी दुनिया भस्म होनी है।
इस पुरानी दुनिया से अब दिल नहीं लगानी है।
रहना तो यहाँ ही है, जब तक लायक बन जायें।
हिसाब-किताब सब चुक्तू करना है।
तुम आधाकल्प के लिए सुख जमा करते हो।
उनका नाम ही है शान्तिधाम, सुखधाम।
पहले सुख होता है, पीछे दु:ख।
बाप ने समझाया है, जो भी नई-नई आत्मायें ऊपर से आती हैं, जैसे क्राइस्ट की आत्मा आई, उनको पहले दु:ख नहीं होता है।
खेल है ही पहले सुख, पीछे दु:ख।
नये-नये जो आते हैं वह हैं सतोप्रधान।
जैसे तुम्हारा सुख का अन्दाज जास्ती है, वैसे सबका दु:ख का अन्दाज जास्ती है।
यह सब बुद्धि से काम लिया जाता है।
बाप आत्माओं को बैठ समझा रहे हैं।
वह फिर और आत्माओं को समझाते हैं।
बाप कहते हैं मैंने यह शरीर धारण किया है।
बहुत जन्मों के अन्त में अर्थात् तमोप्रधान शरीर में मैं प्रवेश करता हूँ।
फिर उनको ही फर्स्ट नम्बर में जाना है।
फर्स्ट सो लास्ट, लास्ट सो फर्स्ट।
यह भी समझाना पड़ता है।
फर्स्ट के पीछे फिर कौन? मम्मा।
उनका पार्ट होना चाहिए।
उसने बहुतों को शिक्षा दी है।
फिर तुम बच्चों में नम्बरवार हैं जो बहुतों को शिक्षा देते, पढ़ाते हैं।
फिर वह पढ़ने वाले भी ऐसी कोशिश करते हैं जो तुमसे भी ऊंच चले जाते हैं।
बहुत सेन्टर्स पर ऐसे हैं जो पढ़ाने वाली टीचर से ऊंच चले जाते हैं।
एक-एक को देखा जाता है।
सबकी चलन से मालूम तो पड़ता है ना।
कोई-कोई को तो माया ऐसा नाक से पकड़ लेती है जो एकदम खलास कर देती है।
विकार में गिर पड़ते हैं।
आगे चलकर तुम बहुतों का सुनते रहेंगे।
वन्डर खायेंगे, यह तो हमको ज्ञान देती थी, फिर यह कैसे चली गई।
हमको कहती थी पवित्र बनो और खुद फिर छी-छी बन गई।
समझेंगे तो जरूर ना।
बहुत छी-छी बन जाते हैं।
बाबा ने कहा है बड़े-बड़े अच्छे महारथियों को भी माया जोर से फथकायेगी।
जैसे तुम माया को फथकाकर जीत पहनते हो, माया भी ऐसे करेगी।
बाप ने कितने अच्छे-अच्छे फर्स्टक्लास, रमणीक नाम भी रखे।
परन्तु अहो माया, आश्चर्यवत् सुनन्ती, कथन्ती, फिर भागन्ती..... गिरन्ती हो गये।
माया कितनी जबरदस्त है इसलिए बच्चों को बहुत खबरदार रहना है।
युद्ध का मैदान है ना।
माया के साथ तुम्हारी कितनी बड़ी युद्ध है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।