रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं,
यह तो बच्चों ने निश्चय किया है रूहानी बाप हम रूहानी बच्चों को पढ़ाते हैं।
जिसके लिए ही गायन है- आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल... मूल-वतन में अलग नहीं रहते हैं।
वहाँ तो सब इकट्ठे रहते हैं।
अलग रहते हैं तो जरूर आत्मायें वहाँ से बिछुड़ती हैं, आकरके अपना-अपना पार्ट बजाती हैं।
सतोप्रधान से उतरते-उतरते तमोप्रधान बनती हैं।
बुलाते हैं पतित-पावन आकर हमको पावन बनाओ।
बाप भी कहते हैं हम हर 5 हज़ार वर्ष के बाद आते हैं।
यह सृष्टि का चक्र ही 5 हज़ार वर्ष है।
आगे तुम यह नहीं जानते थे।
शिवबाबा समझाते हैं तो जरूर कोई तन द्वारा समझायेंगे।
ऊपर से कोई आवाज़ तो नहीं करते हैं।
शक्ति वा प्रेरणा आदि की कोई बात नहीं।
तुम आत्मा शरीर में आकर वार्तालाप करती हो।
वैसे बाप भी कहते हैं मैं भी शरीर द्वारा डायरेक्शन देता हूँ।
फिर उस पर जो जितना चलते हैं, अपना ही कल्याण करते हैं।
श्रीमत पर चलें वा न चलें, टीचर का सुनें वा न सुनें, अपने लिए ही कल्याण वा अकल्याण करते हैं।
नहीं पढ़ेंगे तो जरूर फेल होंगे।
यह भी समझाते रहते हैं शिवबाबा से सीखकर फिर औरों को सिखलाना है।
फादर शोज़ सन।
जिस्मानी फादर की बात नहीं।
यह है रूहानी बाप।
यह भी तुम समझते हो जितना हम श्रीमत पर चलेंगे उतना वर्सा पायेंगे।
पूरा चलने वाले ऊंच पद पायेंगे।
नहीं चलने वाले ऊंच पद नहीं पायेंगे।
बाप तो कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप कट जाएं।
रावण राज्य में तुम्हारे पर पाप तो बहुत चढ़े हुए हैं।
विकार में जाने से ही पाप आत्मा बनते हैं।
पुण्य आत्मा और पाप आत्मा जरूर होते हैं।
पुण्य आत्मा के आगे पाप आत्मायें जाकर माथा टेकती हैं।
मनुष्यों को यह पता नहीं है कि देवतायें जो पुण्य आत्मा हैं, वही फिर पुनर्जन्म में आते-आते पाप आत्मा बनते हैं।
वह तो समझते हैं यह सदैव पुण्य आत्मा हैं।
बाप समझाते हैं, पुनर्जन्म लेते-लेते सतोप्रधान से तमोप्रधान तक आते हैं।
जब बिल्कुल पाप आत्मा बन जाते हैं तो फिर बाप को बुलाते हैं।
जब पुण्य आत्मा हैं तो याद करने की दरकार नहीं रहती।
तो यह तुम बच्चों को समझाना है, सर्विस करनी है।
बाप तो नहीं जाकर सबको सुनायेंगे।
बच्चे सर्विस करने लायक हैं तो बच्चों को ही जाना चाहिए।
मनुष्य तो दिन-प्रतिदिन असुर बनते जाते हैं।
पहचान न होने कारण बकवास करने में भी देरी नहीं करते हैं।
मनुष्य कहते हैं गीता का भगवान कृष्ण है।
तुम समझाते हो वह तो देहधारी है, उनको देवता कहा जाता है।
कृष्ण को बाप नहीं कहेंगे।
यह तो सब फादर को याद करते हैं ना।
आत्माओं का फादर तो दूसरा कोई होता नहीं।
यह प्रजापिता ब्रह्मा भी कहते हैं-निराकार फादर को याद करना है।
यह कारपोरियल फादर हो जाता है।
समझाया तो बहुत जाता है, कई पूरा न समझकर उल्टा रास्ता ले जंगल में जाकर पड़ते हैं।
बाप तो रास्ता बताते हैं स्वर्ग में जाने का।
फिर भी जंगल तरफ चले जाते हैं।
बाप समझाते हैं तुमको जंगल तरफ ले जाने वाला है-रावण।
तुम माया से हार खाते हो।
रास्ता भूल जाते हो तो फिर उस जंगल के कांटे बन जाते हो।
वह फिर स्वर्ग में देरी से आयेंगे।
यहाँ तुम आये ही हो स्वर्ग में जाने का पुरूषार्थ करने।
त्रेता को भी स्वर्ग नहीं कहेंगे।
25 परसेन्ट कम हुआ ना।
वह फेल गिना जाता है।
तुम यहाँ आये ही हो पुरानी दुनिया छोड़ नई दुनिया में जाने।
त्रेता को नई दुनिया नहीं कहेंगे।
नापास वहाँ चले जाते हैं क्योंकि रास्ता ठीक पकड़ते नहीं।
नीचे-ऊपर होते रहते हैं।
तुम महसूस करते हो जो याद होनी चाहिए वह नहीं रहती।
स्वर्गवासी जो बनते हैं उनको कहेंगे अच्छे पास।
त्रेता वाले नापास गिने जाते हैं।
तुम नर्कवासी से स्वर्गवासी बनते हो।
नहीं तो फिर नापास कहा जाता है।
उस पढ़ाई में तो फिर दुबारा पढ़ते हैं।
इसमें दूसरा वर्ष पढ़ने की तो बात नहीं।
जन्म-जन्मान्तर, कल्प-कल्पान्तर वही इम्तहान पास करते हैं जो कल्प पहले किया है।
इस ड्रामा के राज़ को अच्छी रीति समझना चाहिए।
कई समझते हैं हम चल नहीं सकते हैं।
बुढ़ा है तो उनको हाथ से पकड़कर चलाओ तो चलेंगे, नहीं तो गिर पड़ेंगे।
परन्तु तकदीर में नहीं है तो कितना भी जोर देते फूल बनाने का, परन्तु बनते नहीं।
अक भी फूल होता है। यह कांटे तो चुभते हैं।
बाप कितना समझाते हैं।
कल तुम जिस शिव की पूजा करते थे वह आज तुमको पढ़ा रहे हैं।
हर बात में पुरूषार्थ के लिए ही जोर दिया जाता है।
देखा जाता है-माया अच्छे-अच्छे फूलों को नीचे गिरा देती है।
हड़गुड़ तोड़ देती है, जिसको फिर ट्रेटर कहा जाता है।
जो एक राजधानी छोड़ दूसरे में चला जाता है उनको ट्रेटर कहा जाता है।
बाप भी कहते हैं मेरे बनकर फिर माया का बन जाते हैं तो उनको भी ट्रेटर कहा जाता है।
उनकी चलन ही ऐसी हो जाती है।
अब बाप माया से छुड़ाने आये हैं।
बच्चे कहते हैं-माया बड़ी दुश्तर है, अपनी तरफ बहुत खींच लेती है।
माया जैसे चुम्बक है।
इस समय चुम्बक का रूप धरती है।
कितनी खूबसूरती दुनिया में बढ़ गई है।
आगे यह बाइसकोप आदि थोड़ेही थे।
यह सब 100 वर्ष में निकले हैं।
बाबा तो अनुभवी है ना।
तो बच्चों को इस ड्रामा के गुहय राज़ को अच्छी रीति समझना चाहिए, हरेक बात एक्यूरेट नूँधी हुई है।
सौ वर्ष में यह जैसे बहिश्त बन गया है, आपोजीशन के लिए।
तो समझा जाता है-अब स्वर्ग और ही जल्दी होना है।
साइंस भी बहुत काम में आती है।
यह तो बहुत सुख देने वाली भी है ना।
वह सुख स्थाई हो जाए उसके लिए इस पुरानी दुनिया का विनाश भी होना है।
सतयुग के सुख हैं ही भारत के भाग्य में।
वह तो आते ही बाद में हैं, जब भक्तिमार्ग शुरू होता है, जब भारतवासी गिरते हैं तब दूसरे धर्म वाले नम्बरवार आते हैं।
भारत गिरते-गिरते एकदम पट पर आ जाता है।
फिर चढ़ना है।
यहाँ भी चढ़ते हैं फिर गिरते हैं।
कितना गिरते हैं, बात मत पूछो।
कोई तो मानते ही नहीं कि बाबा हमको पढ़ाते हैं।
अच्छे-अच्छे सर्विसएबुल जिनकी बाप महिमा करते हैं वह भी माया के चम्बे में आ जाते हैं।
कुश्ती होती है ना।
माया भी ऐसे लड़ती है।
एकदम पूरा गिरा देती है।
आगे चल तुम बच्चों को मालूम पड़ता जायेगा।
माया एकदम पूरा सुला देती है।
फिर भी बाप कहते हैं एक बार ज्ञान सुना है तो स्वर्ग में जरूर आयेंगे।
बाकी पद तो नहीं पा सकेंगे ना।
कल्प पहले जिसने जो पुरूषार्थ किया है वा पुरूषार्थ करते-करते गिरे हैं, ऐसे ही अब भी गिरते और चढ़ते हैं।
हार और जीत होती है ना।
सारा मदार बच्चों का याद पर है।
बच्चों को यह अखुट खजाना मिलता है।
वह तो कितना लाखों का देवाला मारते हैं।
कोई लाखों का धनवान बनते हैं, सो भी एक जन्म में।
दूसरे जन्म में थोड़ेही इतना धन रहेगा।
कर्मभोग भी बहुत है।
वहाँ स्वर्ग में तो कर्मभोग की बात होती नहीं।
इस समय तुम 21 जन्मों के लिए कितना जमा करते हो।
जो पूरा पुरूषार्थ करते हैं, पूरा स्वर्ग का वर्सा पाते हैं।
बुद्धि में रहना चाहिए हम बरोबर स्वर्ग का वर्सा पाते हैं।
यह ख्याल नहीं करना है कि फिर नीचे गिरेंगे।
यह सबसे जास्ती गिरे अब फिर चढ़ना ही है।
ऑटोमेटिकली पुरूषार्थ भी होता रहता है।
बाप समझाते हैं-देखो, माया कितनी प्रबल है।
मनुष्यों में कितना अज्ञान भर गया है, अज्ञान के कारण बाप को भी सर्वव्यापी कह देते हैं।
भारत कितना फर्स्टक्लास था।
तुम समझते हो हम ऐसे थे, अब फिर बन रहे हैं।
इन देवताओं की कितनी महिमा है, परन्तु कोई जानते नहीं हैं, तुम बच्चों के सिवाए।
तुम ही जानते हो बेहद का बाप ज्ञान सागर आकर हमको पढ़ाते हैं फिर भी माया बहुतों को संशय में ला देती है।
झूठ कपट छोड़ते नहीं।
तब बाप कहते हैं-सच्चा-सच्चा अपना चार्ट लिखो।
परन्तु देह-अभिमान के कारण सच नहीं बताते हैं।
तो वह भी विकर्म बन जाता है, सच बताना चाहिए ना।
नहीं तो बहुत सजा खानी पड़ती है।
गर्भ जेल में भी बहुत सजा मिलती है। कहते हैं तोबां-तोबां.. हम फिर ऐसा काम नहीं करेंगे।
जैसे किसको मार मिलती है तो भी ऐसे माफी माँगते हैं।
सज़ा मिलने पर भी ऐसे करते हैं।
अभी तुम बच्चे समझते हो माया का राज्य कब से शुरू हुआ है।
पाप करते रहते हैं।
बाप देखते हैं-यह इतना मीठे-मीठे मुलायम नहीं बनते हैं।
बाप कितना मुलायम बच्चे मिसल हो चलते हैं, क्योंकि ड्रामा पर चलते रहते हैं।
कहेंगे जो हुआ ड्रामा की भावी।
समझाते भी हैं कि आगे फिर ऐसा न हो।
यह बापदादा दोनों इकट्ठे हैं ना।
दादा की मत अपनी, ईश्वर की मत अपनी है।
समझना चाहिए कि यह मत कौन देता है?
यह भी बाप तो है ना।
बाप की तो माननी चाहिए।
बाबा तो बड़ा बाबा है ना, इसलिए बाबा कहते हैं ऐसे ही समझो शिवबाबा समझाते हैं।
नहीं समझेंगे तो पद भी नहीं पायेंगे।
ड्रामा के प्लेन अनुसार बाप भी है, दादा भी है।
बाप की श्रीमत मिलती है।
माया ऐसी है जो महावीर, पहलवानों से भी कोई न कोई उल्टा काम करा देती है।
समझा जाता है यह बाप की मत पर नहीं हैं।
खुद भी फील करते हैं, मैं अपनी आसुरी मत पर हूँ।
श्रीमत देने वाला आकर उपस्थित हुआ है।
उनकी है ईश्वरीय मत।
बाप खुद कहते हैं इनकी अगर कोई ऐसी मत मिल भी गई तो भी उनको मैं ठीक करने वाला बैठा हूँ।
फिर भी हमने रथ लिया है ना।
हमने रथ लिया तब ही इसने गाली खाई है।
नहीं तो कभी गाली नहीं खाई।
मेरे कारण कितनी गाली खाते हैं।
तो इनकी भी सम्भाल करनी पड़े।
बाप रक्षा जरूर करते हैं।
जैसे बच्चों की रक्षा बाप करते हैं ना।
जितना सच्चाई पर चलते हैं उतनी रक्षा होती है।
झूठे की रक्षा नहीं होती।
उनकी तो फिर सज़ा कायम हो जाती है।
इसलिए बाप समझाते हैं - माया तो एकदम नाक से पकड़कर खत्म कर देती है।
बच्चे खुद फील करते हैं माया खा लेती है तो फिर पढ़ाई छोड़ देते हैं।
बाप कहते हैं पढ़ाई जरूर पढ़ो।
अच्छा, कहाँ किसका दोष है।
इसमें जैसा जो करेगा, सो भविष्य में पायेगा क्योंकि अभी दुनिया बदल रही है।
माया ऐसे अंगुरी मार देती है जो वह खुशी नहीं रहती है।
फिर चिल्लाते हैं-बाबा, पता नहीं क्या होता है।
युद्ध के मैदान में बहुत खबरदार रहते हैं कि कहाँ कोई अंगूरी न मार दे।
फिर भी जास्ती ताकत वाले होते हैं तो दूसरे को गिरा देते हैं।
फिर दूसरे दिन पर रखते हैं।
यह माया की लड़ाई तो अन्त तक चलती रहती है।
नीचे-ऊपर होते रहते हैं।
कई बच्चे सच नहीं बताते हैं।
इज्ज़त का बहुत डर है-पता नहीं बाबा क्या कहेंगे।
जब तक सच बताया नहीं है तब तक आगे चल न सकें।
अन्दर में खटकता रहता है, फिर वृद्धि हो जाती है।
आपेही सच कभी नहीं बतायेंगे।
कहाँ दो हैं तो समझते हैं यह बाबा को सुनायेंगे तो हम भी सुना दें।
माया बड़ी दुश्तर है।
समझा जाता है उनकी तकदीर में इतना ऊंच पद नहीं है तो सर्जन से छिपाते हैं।
छिपाने से बीमारी छूटेगी नहीं।
जितना छिपायेंगे उतना गिरते ही रहेंगे।
भूत तो सबमें हैं ना।
जब तक कर्मातीत अवस्था नहीं बनी, तब तक क्रिमिनल आई भी छोड़ती नहीं है।
सबसे बड़ा दुश्मन है काम।
कई गिर पड़ते हैं।
बाबा तो बार-बार समझाते हैं शिवबाबा के सिवाए कोई देहधारी को याद नहीं करना है।
कई तो ऐसे पक्के हैं, जो कभी किसकी याद भी नहीं आयेगी।
पतिव्रता स्त्री होती है ना, उनकी कुबुद्धि नहीं होती है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।