मीठे-मीठे तुम बच्चे हो लकी सितारे।
तुम जानते हो हम शान्तिधाम को भी याद करते हैं, बाप को भी याद करते हैं।
बाप को याद करने से हम पवित्र बन करके घर जायेंगे।
यहाँ बैठे यह ख्याल करते हो ना।
बाप और कोई तकलीफ नहीं देते हैं।
जीवनमुक्ति को तो कोई जानते ही नहीं।
वे सब पुरूषार्थ करते हैं मुक्ति के लिए, परन्तु मुक्ति का अर्थ नहीं समझते।
कोई कहते हैं हम ब्रह्म में लीन हो जाएं फिर आयें ही नहीं।
उनको यह पता ही नहीं है कि हमको इस चक्र में जरूर आना ही है।
अब तुम बच्चे इन बातों को समझते हो।
तुम बच्चों को मालूम है हम स्वदर्शन चक्रधारी लकी सितारे हैं।
लकी कहा जाता है तकदीरवान को।
अब तुम बच्चों को तकदीरवान बाप ही बनाते हैं।
जैसा बाप वैसे बच्चे होते हैं।
कोई बाप साहूकार होते, कोई बाप गरीब भी होते हैं।
तुम बच्चे जानते हो हमको तो बेहद का बाप मिला है, जो जितना लकी बनने चाहे वह बन सकते हैं, जितना साहूकार जो बनना चाहे बन सकते हैं।
बाप कहते हैं जो चाहे सो पुरूषार्थ से लो।
सारा मदार पुरूषार्थ पर है।
पुरूषार्थ कर जितना ऊंच पद लेना हो ले सकते हो।
ऊंच ते ऊंच पद है यह लक्ष्मी-नारायण।
याद का चार्ट भी जरूर रखना है क्योंकि तमोप्रधान से सतोप्रधान जरूर बनना ही है।
बुद्धू बनकर ऐसे ही नहीं बैठना है।
बाप ने समझाया है पुरानी दुनिया अब नई होनी है।
बाप आते ही हैं नई सतोप्रधान दुनिया में ले जाने।
वह है बेहद का बाप, बेहद सुख देने वाला। समझाते हैं सतोप्रधान बनने से ही तुम बेहद का सुख पा सकेंगे।
सतो बनेंगे तो कम सुख।
रजो बनेंगे तो उससे कम सुख।
हिसाब सारा बाप बतला देते हैं।
अथाह धन तुमको मिलता है, अथाह सुख मिलते हैं।
बेहद के बाप से वर्सा पाने का और कोई उपाय नहीं, सिवाए याद के।
जितना बाप को याद करेंगे, याद से ऑटोमेटिकली दैवीगुण भी आयेंगे।
सतोप्रधान बनना है तो दैवीगुण भी जरूर चाहिए।
अपनी जांच आपेही करनी है।
जितना ऊंच मर्तबा लेना चाहो ले सकते हो, अपने पुरूषार्थ से।
पढ़ाने वाला टीचर तो बैठा हुआ है।
बाप कहते हैं कल्प-कल्प तुमको ऐसे ही समझाता हूँ।
अक्षर ही दो हैं मनमनाभव, मध्याजी भव। बेहद बाप को पहचान जाते हो।
वह बेहद का बाप ही बेहद की नॉलेज देने वाला है।
पतित से पावन बनने का रास्ता भी वह बेहद का बाप ही समझाते हैं।
तो बाप जो समझाते हैं वह कोई नई बात नहीं।
गीता में भी लिखा हुआ है आटे में नमक मिसल है।
अपने को आत्मा समझो।
देह के सब धर्म भूल जाओ।
तुम शुरू में अशरीरी थे, अभी अनेक मित्र-सम्बन्धियों के बन्धन में आये हो।
सब हैं तमोप्रधान अब फिर सतोप्रधान बनना है।
तुम जानते हो तमोप्रधान से फिर हम सतोप्रधान बनते हैं फिर मित्र-सम्बन्धी आदि सब पवित्र बनेंगे।
जितना जो कल्प पहले सतोप्रधान बना है, उतना ही फिर बनेंगे।
उनका पुरूषार्थ ही ऐसा होगा।
अब फालो किसको करना चाहिए।
गायन है फालो फादर।
जैसे यह बाप को याद करते हैं, पुरूषार्थ करते हैं, इनको फालो करो।
पुरूषार्थ कराने वाला तो बाप है।
वह तो पुरूषार्थ करते नहीं, वह पुरूषार्थ कराते हैं।
फिर कहते हैं मीठे-मीठे बच्चों फालो फादर।
गुप्त मदर फादर है ना।
मदर गुप्त है, फादर तो देखने में आते हैं।
यह अच्छी रीति समझने का है।
ऐसा ऊंच पद पाना है तो बाप को अच्छी रीति याद करो, जैसे यह फादर याद करते हैं।
यह फादर ही सबसे ऊंच पद पाते हैं।
यह बहुत ऊंच था फिर इनके ही बहुत जन्मों के अन्त के भी अन्त में मैंने प्रवेश किया है।
यह अच्छी रीति याद करो, भूलो नहीं।
माया भुलाती बहुतों को है।
तुम कहते हो हम नर से नारायण बनते हैं, वह भी बाप युक्ति बताते हैं।
कैसे तुम बन सकते हो।
यह भी जानते हो सब तो एक्यूरेट फालो नहीं करेंगे।
एम-ऑबजेक्ट बाप बतलाते हैं-फालो फादर।
अभी का ही गायन है।
बाप भी अभी तुम बच्चों को ज्ञान देते हैं।
सन्यासियों के फालोअर्स कहलाते हैं परन्तु वह तो रांग है ना, फालो करते ही नहीं।
वह सब हैं ब्रह्म ज्ञानी, तत्व ज्ञानी।
उनको ईश्वर ज्ञान नहीं देते।
तत्व अथवा ब्रह्म ज्ञानी कहलाते हैं।
परन्तु तत्व अथवा ब्रह्म उन्हों को ज्ञान नहीं देते, वह सब है शास्त्रों का ज्ञान।
यहाँ तुमको बाप ज्ञान देते हैं, जिसको ज्ञान का सागर कहा जाता है।
यह अच्छी रीति नोट करो।
तुम भूल जाते हो यह दिल अन्दर अच्छी रीति धारण करने की बात है।
बाप रोज़-रोज़ कहते हैं-मीठे-मीठे बच्चे, अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो, अभी वापस जाना है।
पतित तो जा नहीं सकेंगे।
पवित्र या तो योगबल से होना है या फिर सजायें खाकर जायेंगे।
सबका हिसाब-किताब चुक्तू जरूर होना है।
बाप ने समझाया है तुम आत्मायें असुल परमधाम में रहने वाली हो फिर यहाँ सुख और दु:ख का पार्ट बजाया है।
सुख का पार्ट है राम राज्य और दु:ख का पार्ट है रावण राज्य में।
राम राज्य स्वर्ग को कहा जाता है, वहाँ कम्पलीट सुख है।
गाते भी हैं स्वर्गवासी और नर्कवासी।
तो यह अच्छी रीति धारण करना है।
जितना-जितना तमोप्रधान से सतोप्रधान बनते जायेंगे, उतना अन्दर में तुमको खुशी भी होगी।
जब रजो में द्वापर में थे तो भी तुमको खुशी थी।
तुम इतना दु:खी विकारी नहीं थे।
यहाँ तो अभी कितने विकारी दु:खी हैं।
तुम अपने बड़ों को देखो, कितने विकारी शराबी हैं।
शराब बहुत खराब चीज़ है।
सतयुग में तो हैं ही शुद्ध आत्मायें फिर नीचे उतरते-उतरते बिल्कुल छी-छी हो जाते हैं इसलिए इनको रौरव नर्क कहा जाता है।
शराब ऐसी चीज़ है जो झगड़ा, मारामारी, नुकसान करने देरी नहीं करते।
इस समय मनुष्य की बुद्धि जैसे भ्रष्ट हो गई है।
माया बड़ी दुश्तर है।
बाप सर्वशक्तिमान है, सुख देने वाला।
वैसे फिर माया बहुत दु:ख देने वाली है।
कलियुग में मनुष्य की हालत क्या हो जाती है, एकदम जड़जड़ीभूत।
कुछ भी समझते नहीं हैं, जैसे पत्थरबुद्धि।
यह भी ड्रामा है ना।
किसकी तकदीर में नहीं है तो फिर ऐसी बुद्धि बन जाती है।
बाप ज्ञान तो बड़ा सहज देते हैं।
बच्चे-बच्चे कह समझाते रहते हैं।
मातायें भी कहती हैं हमको 5 लौकिक बच्चे हैं और एक है पारलौकिक बच्चा।
जो हमको सुखधाम में ले जाने आये हैं।
बाप भी समझते हैं तो बच्चा भी समझते हैं।
जादूगर ठहरे ना।
बाप जादूगर तो बच्चे भी जादूगर बन जाते हैं।
कहते हैं बाबा हमारा बच्चा भी है।
तो बाप को फालो कर ऐसा बनना चाहिए।
स्वर्ग में इनका राज्य था ना।
शास्त्रों में यह बातें हैं नहीं।
यह भक्ति मार्ग के शास्त्रों की भी ड्रामा में नूँध है।
फिर भी होंगे।
यह भी बाप समझाते हैं पढ़ाने वाला टीचर तो चाहिए ना।
किताब थोड़ेही टीचर बन सकती।
तो फिर टीचर की दरकार न रहे।
यह किताब आदि सतयुग में होती नहीं।
बाप समझाते हैं तुम आत्मा को तो समझते हो ना।
आत्माओं का बाप भी जरूर है।
जब कोई आते हैं तो सब कहते हैं हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई, अर्थ कुछ नहीं समझते।
भाई-भाई का अर्थ समझना चाहिए ना।
जरूर उनका बाप भी होगा।
इतनी पाई-पैसे की समझ भी नहीं रही है।
भगवानुवाच यह बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है।
अर्थ कितना साफ है।
कोई ग्लानि नहीं करते।
बाप तो रास्ता बताते हैं।
नम्बरवन सो लास्ट।
गोरा सो सांवरा बनते हैं।
तुम भी समझते हो-हम गोरे थे फिर ऐसे बनेंगे।
बाप को याद करने से ही यह बनेंगे।
यह है रावण राज्य।
राम राज्य को कहा जाता है शिवालय।
सीता का राम, उसने तो त्रेता में राज्य किया है, इसमें भी समझ की बात है।
दो कला कम कही जाती है।
सतयुग है ऊंच, उनको याद करते हैं त्रेता और द्वापर को इतना याद नहीं करते हैं।
सतयुग है नई दुनिया और कलियुग है पुरानी दुनिया।
100 परसेन्ट सुख और 100 परसेन्ट दु:ख।
वह त्रेता और द्वापर है सेमी इसलिए मुख्य सतयुग और कलियुग गाया जाता है।
बाप सतयुग स्थापन कर रहे हैं।
अब तुम्हारा काम है पुरूषार्थ करना।
सतयुग निवासी बनेंगे या त्रेता निवासी बनेंगे?
द्वापर में फिर नीचे उतरते हो।
फिर भी हो तो देवी-देवता धर्म के।
परन्तु पतित होने कारण अपने को देवी-देवता कहला नहीं सकते।
तो बाप मीठे-मीठे बच्चों को रोज़-रोज़ समझाते हैं।
मुख्य बात है ही मनमनाभव की।
तुम ही नम्बरवन बनते हो।
84 का चक्र लगाकर लास्ट में आते हो फिर नम्बरवन में जाते हो तो अब बेहद के बाप को याद करना है।
वह है बेहद का बाप।
पुरूषोत्तम संगमयुग पर ही बेहद का बाप आकर 21 पीढ़ी स्वर्ग का सुख तुमको देते हैं।
पीढ़ी जब पूरी होती है तब तुम आपेही शरीर छोड़ते हो।
योगबल है ना।
कायदा ही ऐसा रचा हुआ है, इसको कहा जाता है योगबल।
वहाँ ज्ञान की बात नहीं रहती।
ऑटोमेटिकली तुम बूढ़े होते हो।
वहाँ कोई बीमारी आदि होती नहीं।
लंगड़े वा टेढ़े बांके नहीं होते।
एवरहेल्दी रहते हैं।
वहाँ दु:ख का नाम-निशान नहीं रहता।
फिर थोड़ी-थोड़ी कला कम होती है।
अब बच्चों को पुरूषार्थ करना है, बेहद के बाप से ऊंच वर्सा पाने का।
पास विद् ऑनर होना चाहिए ना।
सब तो ऊंच पद नहीं पा सकते हैं।
जो सर्विस ही नहीं करते वह क्या पद पायेंगे।
म्युज़ियम में बच्चे कितनी सर्विस करते हैं, बिगर बुलाये लोग आ जाते हैं।
इसको विहंग मार्ग की सर्विस कहा जाता है।
पता नहीं, इससे भी और कोई विहंग मार्ग की सर्विस निकले।
दो-चार मुख्य चित्र जरूर साथ में हो।
बड़े-बड़े त्रिमूर्ति, झाड़, गोला, सीढ़ी-यह तो हर जगह बहुत बड़े-बड़े हों।
जब बच्चे होशियार होंगे तब तो सर्विस होगी ना।
सर्विस तो होनी ही है।
गांव में भी सर्विस करनी है।
मातायें भल पढ़ी-लिखी नहीं हैं परन्तु बाप का परिचय देना तो बहुत सहज है।
आगे फीमेल पढ़ती नहीं थी।
मुसलमानों के राज्य में एक आंख खोलकर बाहर निकलती थी।
यह बाबा बहुत अनुभवी है।
बाप कहते हैं मैं यह सब नहीं जानता।
मैं तो ऊपर में रहता हूँ।
यह सब बातें यह ब्रह्मा तुमको सुनाते हैं।
यह अनुभवी है, मैं तो मन-मनाभव की बातें ही सुनाता हूँ और सृष्टि चक्र का राज़ समझाता हूँ, जो यह नहीं जानते।
यह अपना अनुभव अलग समझाते हैं, मैं इन बातों में नहीं जाता।
मेरा पार्ट है सिर्फ तुमको रास्ता बताना।
मैं बाप, टीचर, गुरू हूँ।
टीचर बन तुमको पढ़ाता हूँ, बाकी इसमें कृपा आदि की कोई बात नहीं।
पढ़ाता हूँ फिर साथ में ले जाने वाला हूँ।
इस पढ़ाई से ही सद्गति होती है।
मैं आया ही हूँ तुमको ले जाने।
शिव की बरात गाई हुई है।
शंकर की बरात नहीं होती।
शिव की बरात है, सब आत्मायें दुल्हा के पिछाड़ी जाती हैं ना।
यह सब हैं भक्तियां, मैं हूँ भगवान।
तुमने हमको बुलाया ही है पावन बनाकर साथ ले जाने।
तो हम तुम बच्चों को साथ ले ही जाऊंगा।
हिसाब-किताब चुक्तू कराकर ले ही जाना है।
बाप घड़ी-घड़ी कहते हैं मनमनाभव।
बाप को याद करो तो वर्सा भी जरूर याद पड़ेगा।
विश्व की बादशाही मिलती है ना।
उसके लिए पुरूषार्थ भी ऐसा करना है।
तुम बच्चों को कोई तकलीफ नहीं देता हूँ।
जानता हूँ तुमने बहुत दु:ख देखे हैं।
अब तुमको कोई तकलीफ नहीं देता हूँ।
भक्ति मार्ग में आयु भी छोटी होती है।
अकाले मृत्यु हो जाती है, कितना याहुसैन मचाते हैं।
कितना दु:ख उठाते हैं।
दिमाग ही खराब हो जाता है।
अब बाप कहते हैं सिर्फ मुझे याद करते रहो।
स्वर्ग का मालिक बनना है तो दैवीगुण भी धारण करने हैं।
पुरूषार्थ हमेशा ऊंच बनने का किया जाता है-हम लक्ष्मी-नारायण बनें।
बाप कहते हैं मैं सूर्य-वंशी-चन्द्रवंशी, दोनों धर्म स्थापन करता हूँ।
वह नापास होते हैं इसलिए क्षत्रिय कहा जाता है।
युद्ध का मैदान है ना।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।