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24-11-19 प्रात:मुरली मधुबन

अव्यक्त-बापदादा रिवाइज: 12-03-85

"सत्यता की शक्ति"

आज सत बाप, सत शिक्षक, सतगुरू अपने सत्यता के शक्ति स्वरूप बच्चों को देख रहे हैं।

सत्य ज्ञान वा सत्यता की शक्ति कितनी महान है उसके अनुभवी आत्मायें हो।

सब दूरदेश वासी बच्चे भिन्न धर्म, भिन्न मान्यतायें, भिन्न रीति रसम में रहते हुए भी इस ईश्वरीय विश्व-विद्यालय की तरफ वा राजयोग की तरफ क्यों आकर्षित हुए?

सत्य बाप का सत्य परिचय मिला अर्थात् सत्य ज्ञान मिला, सच्चा परिवार मिला, सच्चा स्नेह मिला, सच्ची प्राप्ति का अनुभव हुआ।

तब सत्यता की शक्ति के पीछे आकर्षित हुए।

जीवन थी, प्राप्ति भी थी यथा शक्ति ज्ञान भी था लेकिन सत्य ज्ञान नहीं था इसलिए सत्यता की शक्ति ने सत्य बाप का बना लिया।

सत शब्द के दो अर्थ हैं - सत सत्यता भी है और सत अविनाशी भी है।

तो सत्यता की शक्ति अविनाशी भी है इसलिए अविनाशी प्राप्ति, अविनाशी सम्बन्ध, अविनाशी स्नेह, अविनाशी परिवार है।

यही परिवार 21 जन्म भिन्न-भिन्न नाम रूप से मिलते रहेंगे।

जानेंगे नहीं।

अभी जानते हो कि हम ही भिन्न सम्बन्ध से परिवार में आते रहेंगे।

इस अविनाशी प्राप्ति ने, पहचान ने दूर देश में होते हुए भी अपने सत्य परिवार, सत्य बाप, सत्य ज्ञान की तरफ खींच लिया।

जहाँ सत्यता भी हो और अविनाशी भी हो, यही परमात्म पहचान है।

तो जैसे आप सभी इसी विशेषता के आधार पर आकर्षित हुए, ऐसे ही सत्यता की शक्ति को, सत्य ज्ञान को विश्व में प्रत्यक्ष करना है।

50 वर्ष धरनी बनाई, स्नेह में लाया, सम्पर्क में लाया।

राजयोग की आकर्षण में लाया, शान्ति के अनुभव से आकर्षण में लाया।

अब बाकी क्या रहा?

जैसे परमात्मा एक है यह सभी भिन्न-भिन्न धर्म वालों की मान्यता है।

ऐसे यथार्थ सत्य ज्ञान एक ही बाप का है अथवा एक ही रास्ता है, यह आवाज जब तक बुलन्द नहीं होगा तब तक आत्माओं का अनेक तिनकों के सहारे तरफ भटकना बन्द नहीं होगा।

अभी यही समझते हैं कि यह भी एक रास्ता है।

अच्छा रास्ता है।

लेकिन आखिर भी एक बाप का एक ही परिचय, एक ही रास्ता है।

अनेकता की यह भ्रान्ति समाप्त होना ही विश्व शान्ति का आधार है।

यह सत्यता के परिचय की वा सत्य ज्ञान के शक्ति की लहर जब तक चारों ओर नहीं फैलेगी तब तक प्रत्यक्षता के झण्डे के नीचे सर्व आत्मायें सहारा नहीं ले सकतीं।

तो गोल्डन जुबली में जबकि बाप के घर में विशेष निमंत्रण देकर बुलाते हो, अपनी स्टेज है।

श्रेष्ठ वातावरण है, स्वच्छ बुद्धि का प्रभाव है।

स्नेह की धरनी है, पवित्र पालना है।

ऐसे वायुमण्डल के बीच अपने सत्य ज्ञान को प्रसिद्ध करना ही प्रत्यक्षता का आरम्भ होगा।

याद है जब प्रदर्शनियों द्वारा सेवा का विहंग मार्ग का आरम्भ हुआ तो क्या करते थे?

मुख्य ज्ञान के प्रश्नों का फार्म भराते थे ना।

परमात्मा सर्वव्यापी है वा नहीं है?

गीता का भगवान कौन है?

यह फार्म भराते थे ना।

ओपीनियन लिखाते थे।

पहेली पूछते थे।

तो पहले यह आरम्भ किया लेकिन चलते-चलते इन बातों को गुप्त रूप में देते हुए सम्पर्क स्नेह को आगे रखते हुए समीप लाया।

इस बारी जबकि इस धरनी पर आते हैं तो सत्य परिचय स्पष्ट परिचय दो।

यह भी अच्छा है, यह तो राज़ी करने की बात है।

लेकिन एक ही बाप का एक यथार्थ परिचय स्पष्ट बुद्धि में आ जाए, यह भी समय अब लाना है।

सिर्फ सीधा कहते रहते हो कि बाप यह ज्ञान दे रहा है, बाप आया है लेकिन वह मानकर जाते हैं कि यही परमात्म ज्ञान है?

परमात्मा का कर्तव्य चल रहा है?

ज्ञान की नवीनता है यह अनुभव करते हैं?

ऐसी वर्कशाप कभी रखी है?

जिसमें परमात्मा सर्वव्यापी है या नहीं है, एक ही समय आता है या बार-बार आता है?

ऐसे स्पष्ट परिचय उन्हें मिल जाए जो समझें कि दुनिया में जो नहीं सुना वह यहाँ सुना।

ऐसे जो विशेष स्पीकर बन करके आते, उन्हों से यह ज्ञान के राज़ों की रूह-रूहान करने से उन्हों की बुद्धि में आयेगा।

साथ-साथ जो भाषण भी करते हो उसमें भी अपने परिवर्तन के अनुभव सुनाते हुए एक-एक स्पीकर, एक-एक नये ज्ञान की बात को स्पष्ट कर सकते हो।

ऐसे सीधा टापिक नहीं रखें कि परमात्मा सर्वव्यापी नहीं है,

लेकिन एक बाप को एक रूप से जानने से क्या-क्या विशेष प्राप्तियाँ हुई,

उन प्राप्तियों को सुनाते हुए सर्वव्यापी की बातों को स्पष्ट कर सकते हो।

एक परमधाम निवासी समझ याद करने से बुद्धि कैसे एकाग्र हो जाती है वा बाप के सम्बन्ध से क्या प्राप्तियों की अनुभूति होती है।

इस ढंग से सत्यता और निर्माणता दोनों रूप से सिद्ध कर सकते हो।

जिससे अभिमान भी न लगे कि यह लोग अपनी महिमा करते हैं।

नम्रता और रहम की भावना अभिमान की महसूसता नहीं कराती।

जैसे मुरलियों को सुनते हुए कोई भी अभिमान नहीं कहेगा।

अथॉरिटी से बोलते हैं, यह कहेंगे।

भल शब्द कितने ही सख्त हों लेकिन अभिमान नहीं कहेंगे!

अथॉरिटी की अनुभूति करते हैं।

ऐसे क्यों होता है?

जितनी ही अथॉरिटी है उतना ही नम्रता और रहम भाव है।

ऐसे बाप तो बच्चों के आगे बोलते हैं लेकिन आप सभी इस विशेषता से स्टेज पर इस विधि से स्पष्ट कर सकते हो।

जैसे सुनाया ना, ऐसे ही एक सर्वव्यापी की बात रखें, दूसरा नाम रूप से न्यारे की रखें, तीसरा ड्रामा की प्वाइंट बुद्धि में रखें।

आत्मा की नई विशेषताओं को बुद्धि में रखें।

जो भी विशेष टापिक्स हैं, उसको लक्ष्य में रख अनुभव और प्राप्ति के आधार से स्पष्ट करते जावें जिससे समझें कि इस सत्य ज्ञान से ही सतयुग की स्थापना हो रही है।

भगवानुवाच क्या विशेष है जो सिवाए भगवान के कोई सुना नहीं सकते।

विशेष स्लोगन्स जिसको आप लोग सीधे शब्द कहते हो - जैसे मनुष्य, मनुष्य का कभी सतगुरू, सत बाप नहीं बन सकता।

मनुष्य परमात्मा हो नहीं सकता।

ऐसी विशेष प्वाइंट तो समय प्रति समय सुनते आये हो, उसकी रूप रेखा बनाओ।

जिससे सत्य ज्ञान की स्पष्टता हो।

नई दुनिया के लिए यह नया ज्ञान है।

नवीनता और सत्यता दोनों अनुभव हो।

जैसे कानफ्रेन्स करते हो, सेवा बहुत अच्छी चलती है।

कानफ्रेन्स के पीछे जो भी कुछ साधन बनाते हो, कभी चार्टर, कभी क्या बनाते हो।

उससे भी साधन अपनाते हो, सम्पर्क को आगे बढ़ाने का।

यह भी साधन अच्छा है क्योंकि चांस मिलता है पीछे भी मिलते रहने का।

लेकिन जैसे अभी जो भी आते हैं, कहते हैं हाँ यह बहुत अच्छी बात है।

प्लैन अच्छा है, चार्टर अच्छा है, सेवा का साधन भी अच्छा है।

ऐसे यह कह के जाएं कि नया ज्ञान आज स्पष्ट हुआ।

ऐसे विशेष 5-6 भी तैयार किये तो... क्योंकि सभी के बीच तो यह रूह-रूहान चल नहीं सकती।

लेकिन विशेष जो आते हैं। टिकट देकर ले आते हो।

विशेष पालना भी मिलती है।

उन्हों में से जो नामी-ग्रामी हैं उन्हों के साथ यह रूहरिहान कर स्पष्ट उन्हों की बुद्धि में डालना जरूर चाहिए।

ऐसा कोई प्लैन बनाओ जिससे उन्हों को यह नहीं लगे कि बहुत अपना नशा है,

लेकिन सत्यता लगे।

इसको कहा जाता है तीर भी लगे लेकिन दर्द नहीं हो।

चिल्लावे नहीं।

लेकिन खुशी में नाचे।

भाषणों की रूपरेखा भी नई करो।

विश्व शान्ति के भाषण तो बहुत कर लिए।

आध्यात्मिकता की आवश्यकता है, आध्यात्मिक शक्ति के सिवाए कुछ हो नहीं सकता।

यह तो अखबार में आता है लेकिन आध्यात्मिक शक्ति क्या है!

आध्यात्मिक ज्ञान क्या है!

इसका सोर्स कौन है!

अभी वहाँ तक नहीं पहुँचे हैं!

समझें कि भगवान का कार्य चल रहा है।

अभी कहते हैं मातायें बहुत अच्छा कार्य कर रही हैं।

समय प्रमाण यह भी धरनी बनानी पड़ती है।

जैसे सन शोज़ फादर है वैसे फादर शोज़ सन है।

अभी फादर शोज़ सन हो रहा है।

तो यह बुलन्द आवाज प्रत्यक्षता का झण्डा लहरायेगा। समझा!

गोल्डन जुबली में क्या करना है, यह समझा ना!

दूसरे स्थानों पर फिर भी वातावरण को देखना पड़ता है लेकिन बाप के घर में, अपना घर अपनी स्टेज है तो ऐसे स्थान पर यह प्रत्यक्षता का आवाज बुलन्द कर सकते हो।

ऐसे थोड़े भी इस बात में निश्चयबुद्धि हो जाएं- तो वही आवाज बुलन्द करेंगे।

अभी रिजल्ट क्या है!

सम्पर्क और स्नेह में स्वयं आये, वही सेवा कर रहे हैं।

औरों को भी स्नेह और सम्पर्क में ला रहे हैं।

जितने स्वयं बने उतनी सेवा कर रहे हैं।

यह भी सफलता ही कहेंगे ना।

लेकिन अभी और आगे बढ़ें।

नाम बदनाम से बुलन्द हुआ।

पहले डरते थे, अभी आना चाहते हैं।

यह तो फर्क हुआ ना।

पहले नाम सुनने नहीं चाहते थे, अभी नाम लेने की इच्छा रखते हैं।

यह भी 50 वर्ष में सफलता को प्राप्त किया।

धरनी बनाने में ही समय लगता है।

ऐसे नहीं समझो 50 वर्ष इसमें लग गये तो फिर और क्या होगा!

पहले धरनी को हल चलाने योग्य बनाने में टाइम लगता है।

बीज डालने में टाइम नहीं लगता।

शक्तिशाली बीज का फल शक्तिशाली निकलता है।

अभी तक जो हुआ यही होना था, वही यथार्थ हुआ। समझा!

(विदेशी बच्चों को देख) यह चात्रक अच्छे हैं।

ब्रह्मा बाप ने बहुत समय के आह्वान के बाद आपको जन्म दिया है।

विशेष आह्वान से पैदा हुए हो।

देरी जरूर लगाई लेकिन तन्दरूस्त और अच्छे पैदा हुए हो।

बाप का आवाज पहुँच रहा था लेकिन समय आने पर समीप पहुँच गये।

विशेष ब्रह्मा बाप खुश होते हैं।

बाप खुश होंगे तो बच्चे भी खुश होंगे ही लेकिन विशेष ब्रह्मा बाप का स्नेह है इसलिए मैजारिटी ब्रह्मा बाप को न देखते हुए भी ऐसे ही अनुभव करते हो जैसे देखा ही है।

चित्र में भी चैतन्यता का अनुभव करते हो।

यह विशेषता है।

ब्रह्मा बाप के स्नेह का विशेष सहयोग आप आत्माओं को है।

भारत वाले क्वेश्चन करेंगे ब्रह्मा क्यों, यही क्यों?....लेकिन विदेशी बच्चे आते ही ब्रह्मा बाप के आकर्षण से स्नेह में बंध जाते हैं।

तो यह विशेष सहयोग का वरदान है इसलिए न देखते हुए भी पालना ज्यादा अनुभव करते रहते हो।

जिगर से कहते हो ब्रह्मा बाबा।

तो यह विशेष सूक्ष्म स्नेह का कनेक्शन है।

ऐसे नहीं कि बाप सोचते हैं यह हमारे पीछे कैसे आये!

न आप सोचते न ब्रह्मा सोचते।

सामने ही हैं।

आकार रूप भी साकार समान ही पालना दे रहे हैं।

ऐसे अनुभव करते हो ना!

थोड़े समय में कितने अच्छे टीचर्स तैयार हो गये हैं!

विदेश की सेवा में कितना समय हुआ?

कितने टीचर्स तैयार हुए हैं?

अच्छा है, बापदादा बच्चों के सेवा की लगन देखते रहते हैं क्योंकि विशेष सूक्ष्म पालना मिलती है ना।

जैसे ब्रह्मा बाप के विशेष संस्कार क्या देखे!

सेवा के सिवाए रह सकते थे?

तो विदेश में दूर रहने वालों को यह विशेष पालना का सहयोग होने कारण सेवा का उमंग ज्यादा रहता है।

गोल्डन जुबली में और क्या किया है?

खुद भी गोल्डन और जुबली भी गोल्डन।

अच्छा है, बैलेन्स का अटेन्शन जरूर रखना।

स्वयं और सेवा।

स्व उन्नति और सेवा की उन्नति।

बैलेन्स रखने से अनेक आत्माओं को स्व सहित ब्लैसिंग दिलाने के निमित्त बन जायेंगे। समझा!

सेवा का प्लैन बनाते हुए पहले स्व स्थिति का अटेन्शन, तब प्लैन में पावर भरेगी।

प्लैन है बीज।

तो बीज में अगर शक्ति नहीं होगी, शक्तिशाली बीज नहीं तो कितनी भी मेहनत करो श्रेष्ठ फल नहीं देगा इसलिए प्लैन के साथ स्व स्थिति की पावर जरूर भरते रहना। समझा! अच्छा!

ऐसे सत्यता को प्रत्यक्ष करने वाले, सदा सत्यता और निर्माणता का बैलेन्स रखने वाले, हर बोल द्वारा एक बाप के एक परिचय को सिद्ध करने वाले, सदा स्व उन्नति द्वारा सफलता को पाने वाले, सेवा में बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने वाले, ऐसे सतगुरू के, सत बाप के सत बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

विदाई के समय दादी जी भोपाल जाने की छुट्टी ले रही है

जाने में भी सेवा है, रहने में भी सेवा है।

सेवा के निमित्त बने हुए बच्चों के हर संकल्प में, हर सेकण्ड में सेवा है।

आपको देखकर जितना उमंग-उत्साह बढ़ेगा उतना ही बाप को याद करेंगे।

सेवा में आगे बढ़ेंगे इसलिए सफलता सदा साथ है ही है।

बाप को भी साथ ले जा रही हो, सफलता को भी साथ ले जा रही हो।

जिस स्थान पर जायेंगी वहाँ सफलता होगी। (मोहिनी बहन से) चक्कर लगाने जा रही हो।

चक्कर लगाना माना अनेक आत्माओं को स्व-उन्नति का सहयोग देना।

साथ-साथ जब स्टेज का चांस मिलता है तो ऐसा नया भाषण करके आना।

पहले आप शुरू कर देना तो नम्बरवन हो जायेंगी।

जहाँ भी जायेंगी तो सब क्या कहेंगे?

बापदादा की यादप्यार लाई हो?

तो जैसे बापदादा स्नेह की, सहयोग की शक्ति देते हैं, वैसे आप भी बाप से ली हुई स्नेह, सहयोग की शक्ति देते जाना।

सभी को उमंग-उत्साह में उड़ाने के लिए कोई न कोई ऐसे टोटके बोलती रहना।

सब खुशी में नाचते रहेंगे।

रूहानियत की खुशी में सबको नचाना और रमणीकता से सभी को खुशी-खुशी से पुरुषार्थ में आगे बढ़ना सिखाना। अच्छा!

वरदान:-

स्व के चक्र को जान

ज्ञानी तू आत्मा बनने वाले

प्रभू प्रिय भव

आत्मा का इस सृष्टि चक्र में क्या-क्या पार्ट है,

उसको जानना अर्थात् स्वदर्शन चक्रधारी बनना।

पूरे चक्र के ज्ञान को बुद्धि में यथार्थ रीति धारण करना ही स्वदर्शन चक्र चलाना है,

स्व के चक्र को जानना अर्थात् ज्ञानी तू आत्मा बनना।

ऐसे ज्ञानी तू आत्मा ही प्रभू प्रिय हैं, उनके आगे माया ठहर नहीं सकती।

यह स्वदर्शन चक्र ही भविष्य में चक्रवर्ती राजा बना देता है।

स्लोगन:-

हर एक बच्चा बाप समान प्रत्यक्ष प्रमाण बनें तो प्रजा जल्दी तैयार हो जायेगी।