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29-11-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम यह राजयोग की पढ़ाई पढ़ते हो राजाई के लिए,

यह है तुम्हारी नई पढ़ाई''

प्रश्नः-

इस पढ़ाई में कई बच्चे चलते-चलते फेल क्यों हो जाते हैं?

उत्तर:-

क्योंकि इस पढ़ाई में माया के साथ बॉक्सिंग है।

माया की बॉक्सिंग में बुद्धि को बहुत कड़ी चोट लग जाती है।

चोट लगने का कारण बाप से सच्चे नहीं हैं।

सच्चे बच्चे सदा सेफ रहते हैं।

ओम् शान्ति।

यह तो सब बच्चों को निश्चय होगा कि हम आत्माओं को परमात्मा बाप पढ़ाते हैं।

5 हजार वर्ष बाद एक ही बार बेहद का बाप आकर बेहद के बच्चों को पढ़ाते हैं।

कोई नया आदमी यह बातें सुनें तो समझ न सके।

रूहानी बाप, रूहानी बच्चे क्या होते हैं, यह भी समझ नहीं सकेंगे।

तुम बच्चे जानते हो हम सभी ब्रदर्स हैं।

वह हमारा बाप भी है, टीचर भी है, सुप्रीम गुरू भी है।

तुम बच्चों को यह जरूर ऑटोमेटिकली याद रहेगा, यहाँ बैठे समझते होंगे-सभी आत्माओं का एक ही रूहानी बाप है।

सभी आत्मायें उसको ही याद करती हैं।

कोई भी धर्म का हो।

सभी मनुष्य मात्र याद जरूर करते हैं।

बाप ने समझाया है आत्मा तो सबमें है ना।

अब बाप कहते हैं - देह के सब धर्म छोड़ अपने को आत्मा समझो।

अभी तुम आत्मा यहाँ पार्ट बजा रही हो।

कैसा पार्ट बजाती हो, वह भी समझाया गया है।

बच्चे भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार ही समझते हैं।

तुम राजयोगी हो ना।

पढ़ने वाले सब योगी ही होते हैं।

पढ़ाने वाले टीचर के साथ योग जरूर रखना पड़ता है।

एम आब्जेक्ट का भी मालूम रहता है-इस पढ़ाई से हम फलाना बनेंगे।

यह पढ़ाई तो एक ही है, इनको कहा जाता है राजाओं का राजा बनने की पढ़ाई।

राजयोग है ना।

राजाई प्राप्त करने के लिए बाप से योग।

और कोई मनुष्य यह राजयोग कभी सिखला न सके।

तुमको कोई मनुष्य नहीं सिखलाते हैं।

परमात्मा तुम आत्माओं को सिखलाते हैं।

तुम फिर औरों को सिखलाते हो।

तुम भी अपने को आत्मा समझो।

हम आत्माओं को बाप सिखलाते हैं।

यह याद न रहने से जौहर नहीं भरता है, इसलिए बहुतों की बुद्धि में नहीं बैठता है।

तो बाप हमेशा कहते हैं, योगयुक्त हो, याद की यात्रा में रहकर समझाओ।

हम भाई-भाई को सिखलाते हैं।

तुम भी आत्मा हो, वह सबका बाप, टीचर, गुरू है।

आत्मा को देखना है।

भल गायन है सेकण्ड में जीवनमुक्ति परन्तु इसमें मेहनत बहुत है।

आत्म-अभिमानी न बनने से तुम्हारे वचनों में ताकत नहीं रहती है क्योंकि जिस प्रकार बाप समझाते हैं उस रीति कोई समझाते नहीं हैं।

कोई-कोई तो बहुत अच्छा समझाते हैं।

कौन कांटा है और कौन फूल है-मालूम तो सब पड़ता है,

स्कूल में बच्चे 5-6 दर्जा पढ़कर फिर ट्रान्सफर होते हैं।

अच्छे-अच्छे बच्चे जब ट्रान्सफर होते हैं तो दूसरे क्लास के टीचर को भी झट मालूम पड़ता है।

यह बच्चे तीखे पुरुषार्थी हैं, इन्होंने अच्छा पढ़ा हुआ है तब ऊंच नम्बर में आये हैं।

टीचर तो जरूर समझते होंगे ना।

वह है लौकिक पढ़ाई, यहाँ तो वह बात नहीं।

यह है पारलौकिक पढ़ाई।

यहाँ तो ऐसे नहीं कहेंगे।

यह पहले बहुत अच्छा पढ़कर आये हैं तब अच्छा पढ़ते हैं। नहीं।

उस इम्तहान में तो ट्रान्सफर होते हैं तो टीचर समझेंगे इसने पढ़ाई में मेहनत की है, तब आगे नम्बर लिया है।

यहाँ तो है ही नई पढ़ाई, जो पहले से कोई पढ़े हुए नहीं हैं।

नई पढ़ाई है, नया पढ़ाने वाला है।

सब नये हैं।

नयों को पढ़ाते हैं।

उनमें जो अच्छी रीति पढ़ते हैं तो कहेंगे यह अच्छे पुरूषार्थी हैं।

यह है नई दुनिया के लिए नई नॉलेज और कोई पढ़ाने वाला तो है नहीं।

जितना-जितना जो अटेन्शन देते हैं उतना ऊंच नम्बर में जाते हैं।

कोई तो बहुत मीठे आज्ञाकारी होते हैं। देखने से ही पता पड़ता है, यह पढ़ाने वाला बहुत अच्छा है, इनमें कोई अवगुण नहीं है।

चलन से, बात करने से मालूम पड़ जाता है।

बाबा पूछते भी सबसे हैं-यह कैसा पढ़ाते हैं, इनमें कोई खामी तो नहीं है।

ऐसे बहुत कहते हैं कि हमारे पूछे बिगर समाचार कभी नहीं देना।

कोई अच्छा पढ़ाते हैं, कोई शुरूड़ बुद्धि नहीं होते हैं।

माया का वार बहुत होता है।

यह बाप जानते हैं, माया इन्हों को धोखा बहुत देती है।

भल 10 वर्ष भी पढ़ाया है परन्तु माया ऐसी जबरदस्त है-देह-अहंकार आया और यह फँसा।

बाप समझाते हैं जो भी पहलवान हैं, उन पर माया की चोट लगती है।

माया भी बलवान से बलवान होकर लड़ती है।

तुम समझते होंगे बाबा ने जिसमें प्रवेश किया है यह नम्बरवन है।

फिर नम्बरवार तो बहुत हैं ना।

बाबा मिसाल करके एक-दो का देते हैं।

होते तो नम्बरवार बहुत हैं।

जैसे देहली में गीता बच्ची बहुत होशियार है।

है बच्ची बड़ी मीठी।

बाबा हमेशा कहते हैं गीता तो सच्ची गीता है।

मनुष्य वह गीता पढ़ते हैं परन्तु यह नहीं समझते हैं कि भगवान ने कैसे राजयोग सिखाकर राजाओं का राजा बनाया था।

बरोबर सतयुग था तो एक ही धर्म था, कल की बात है।

बाप कहते हैं कल तुमको इतना साहूकार बनाकर गया।

तुम पदमापदम भाग्यशाली थे, अब तुम क्या बन गये हो।

तुम फील करते हो ना।

उन गीता सुनाने वालों से कोई को फीलिंग आती है क्या, ज़रा भी नहीं समझते।

ऊंच ते ऊंच श्रीमत भगवत गीता ही गाई जाती है।

वह तो गीता किताब बैठ पढ़ते वा सुनाते हैं।

बाप तो किताब नहीं पढ़ते।

फ़र्क तो है ना।

उनकी याद की यात्रा तो है ही नहीं।

वह तो नीचे गिरते ही रहते हैं।

सर्वव्यापी के ज्ञान से सब देखो कैसे बन गये हैं।

तुम जानते हो कल्प-कल्प ऐसे ही होगा।

बाप कहते हैं तुमको सिखलाकर विषय सागर से पार कर देते हैं।

कितना फ़र्क है।

शास्त्र पढ़ना तो भक्ति मार्ग हुआ ना।

बाप कहते हैं यह पढ़ने से मेरे से कोई नहीं मिलते।

वह समझते हैं कोई भी तरफ जाओ पहुँचना तो सबको एक ही जगह है।

कभी कहते हैं भगवान किस न किस रूप में आकर पढ़ायेंगे।

जब बाप को आकर पढ़ाना है तो फिर तुम क्या पढ़ाते हो?

बाप समझाते हैं गीता में आटे में नमक मिसल कोई राइट अक्षर हैं,

जिसमें तुम पकड़ सकते हो।

सतयुग में तो कोई भी शास्त्र आदि होते ही नहीं।

यह है ही भक्ति मार्ग के शास्त्र।

ऐसे नहीं कहेंगे कि यह अनादि हैं।

शुरू से चले आते हैं। नहीं।

अनादि का अर्थ नहीं समझते।

बाप समझाते हैं यह तो ड्रामा अनादि बरोबर है।

तुमको बाप राजयोग सिखलाते हैं।

बाप कहते हैं अभी तुमको सिखलाता हूँ फिर गुम हो जाता हूँ।

तुम कहेंगे हमारा राज्य अनादि था।

राज्य वही है सिर्फ पावन से बदल पतित होने से नाम बदल जाता है।

देवता के बदले हिन्दू कहलाते हैं।

है तो आदि सनातन देवी-देवता धर्म के ना।

जैसे दूसरे सतोप्रधान से सतो, रजो, तमो में आते हैं, तुम भी ऐसे उतरते हो।

रजो में आते हो तो अपवित्रता के कारण देवता के बदले हिन्दू कहलाते हो।

नहीं तो हिन्दू हिन्दुस्तान का नाम है।

तुम असुल में तो देवी-देवता थे ना।

देवतायें सदैव पावन होते हैं।

अभी तो मनुष्य पतित बन गये हैं।

तो नाम भी हिन्दू रख दिया है।

पूछो हिन्दू धर्म कब, किसने रचा?

तो बता नहीं सकेंगे।

आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, जिसको पैराडाइज आदि बहुत अच्छे-अच्छे नाम देते हैं।

जो पास्ट हुआ है वह फिर रिपीट होना है।

इस समय तुम शुरू से लेकर अन्त तक सब जानते हो।

जानते जायेंगे तो जीते रहेंगे।

कई तो मर भी जाते हैं।

बाप का बनते हैं तो माया की युद्ध चलती है।

युद्ध होने से ट्रेटर बन पड़ते हैं।

रावण के थे, राम के बने।

फिर रावण, राम के बच्चों पर जीत पहन अपनी तरफ ले जाता है।

कोई बीमार हो पड़ते हैं।

फिर न वहाँ के रहते, न यहाँ के रहते। न खुशी है, न रंज।

बीच में पड़े रहते हैं।

तुम्हारे पास भी बहुत हैं जो बीच में हैं।

बाप का भी पूरा नहीं बनते हैं, रावण का भी पूरा नहीं बनते।

अभी तुम हो पुरूषोत्तम संगमयुग पर।

उत्तम पुरूष बनने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हो।

यह बड़ी समझने की बाते हैं।

बाबा पूछते हैं हाथ तो बहुत बच्चे उठाते हैं।

परन्तु समझा जाता है-बुद्धि नहीं है।

भल बाबा कहते हैं शुभ बोलो।

कहते तो सब हैं-हम नर से नारायण बनेंगे।

कथा ही नर से नारायण बनने की है।

अज्ञान काल में भी सत्य नारायण की कथा सुनते हैं ना।

वहाँ तो कोई पूछ नहीं सकते।

यह तो बाप ही पूछते हैं।

तुम क्या समझते हो-इतनी हिम्मत है?

तुम्हें पावन भी जरूर बनना है।

कोई आते हैं तो पूछा जाता है इस जन्म में कोई पाप कर्म तो नहीं किये हैं?

जन्म-जन्मान्तर के पापी तो हो ही।

इस जन्म के पाप बता दो तो हल्के हो जायेंगे।

नहीं तो दिल अन्दर खाता रहेगा।

सच बतलाने से हल्के होंगे।

कई बच्चे सच नहीं बताते हैं तो माया एकदम जोर से घूँसा लगा देती है।

तुम्हारी बड़ी कड़ी बॉक्सिंग हैं।

उस बॉक्सिंग में तो शरीर को चोट लगती है, इसमें बुद्धि को बहुत चोट लगती है।

यह बाबा भी जानते हैं।

यह ब्रह्मा कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त का हूँ।

सबसे पावन था, अभी सबसे पतित हूँ।

फिर पावन बनता हूँ।

ऐसे तो नहीं कहता हूँ कि मैं महात्मा हूँ।

बाप भी खातिरी देते हैं, यह सबसे जास्ती पतित है।

बाप कहते हैं मैं पराये देश, पराये शरीर में आता हूँ।

इनके बहुत जन्मों के अन्त में मैं इनमें प्रवेश करता हूँ, जिसने पूरे 84 जन्म लिये हैं।

अब यह भी पावन बनने का पुरूषार्थ करते हैं, खबरदार भी बहुत रहना होता है।

बाप तो जानते हैं ना।

यह बाबा का बच्चा बहुत नजदीक है।

यह तो बाप से जुदा कभी हो नहीं सकता।

ख्याल भी नहीं आ सकता कि छोड़कर जाऊं।

एकदम हमारे बाजू में बैठा है।

मेरा तो बाबा है ना।

मेरे घर में बैठा है।

बाबा जानते हैं हँसीकुड़ी भी करते हैं।

बाबा आज हमको स्नान तो कराओ, भोजन तो खिलाओ।

मैं छोटा बच्चा हूँ, बहुत प्रकार से बाबा को याद करता हूँ।

तुम बच्चों को समझाता हूँ- ऐसे-ऐसे याद करो।

बाबा आप तो बहुत मीठे हो।

एकदम हमको विश्व का मालिक बना देते हो।

यह बात और किसकी बुद्धि में हो न सके।

बाप सबको रिफ्रेश करते रहते हैं।

सब पुरूषार्थ तो करते हैं, परन्तु चलन भी ऐसी हो ना।

भूल हो जाए तो झट लिखना चाहिए -बाबा, हमसे यह भूल हो जाती है।

कोई-कोई लिखते भी हैं-बाबा हमसे यह भूल हुई माफ करना।

हमारा बच्चा बनकर फिर भूल करने से सौ गुना वृद्धि हो जाती है।

माया से हारते हैं तो फिर वही के वही बन जाते हैं।

बहुत हारते हैं।

यह बड़ी बॉक्सिंग है।

राम और रावण की लड़ाई है।

दिखाते भी हैं बन्दर सेना ली।

यह सब बच्चों का खेल बना हुआ है।

जैसे छोटे बच्चे बेसमझ होते हैं ना।

बाप भी कहते हैं यह तो इन्हों की पाई-पैसे की बुद्धि है।

कहते हैं हर एक ईश्वर का रूप है।

तो हर एक ईश्वर बन क्रियेट भी करते हैं, पालना करते हैं फिर विनाश भी कर देते।

अब ईश्वर कोई का विनाश थोड़ेही करते हैं।

यह तो कितनी अज्ञानता है इसलिए कहा जाता है गुड़ियों की पूजा करते रहते हैं।

वन्डर है।

मनुष्यों की बुद्धि क्या हो जाती है।

कितना खर्चा करते हैं। बाप उल्हना देते हैं - हम तुमको इतना बड़ा बनाकर गया, तुमने क्या किया!

तुम भी जानते हो हम सो देवता थे फिर चक्र लगाते हैं, अभी हम ब्राह्मण बने हैं।

फिर हम सो देवता..... बनेंगे।

यह तो बुद्धि में बैठा हुआ है ना।

यहाँ बैठते हो तो बुद्धि में यह नॉलेज रहनी चाहिए।

बाप भी नॉलेजफुल है ना।

रहते भल शान्तिधाम में हैं फिर भी उनको नॉलेजफुल कहा जाता है।

तुम्हारी भी आत्मा में सारी नॉलेज रहती है ना।

कहते हैं इस ज्ञान से तो हमारी आंख खुल गई है।

बाप तुमको ज्ञान के चक्षु देते हैं।

आत्मा को सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त का पता पड़ गया है।

चक्र फिरता रहता है।

ब्राह्मणों को ही स्वदर्शन चक्र मिलता है।

देवताओं को पढ़ाने वाला कोई होता नहीं।

उनको शिक्षा की दरकार नहीं।

पढ़ना तो तुमको है जो फिर तुम देवता बनते हो।

अब बाप बैठ यह नई-नई बातें समझाते हैं।

यह नई पढ़ाई पढ़कर तुम ऊंच बनते हो।

फर्स्ट सो लास्ट।

लास्ट सो फर्स्ट।

यह पढ़ाई है ना।

अभी तुम समझते हो बाबा हर कल्प आकर पतित से पावन बनाते हैं, फिर यह नॉलेज खलास हो जायेगी।

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) बहुत-बहुत आज्ञाकारी, मीठा होकर चलना है।

देह-अहंकार में नहीं आना है।

बाप का बच्चा बनकर फिर कोई भी भूल नहीं करनी है।

माया की बॉक्सिंग में बहुत-बहुत खबरदार रहना है।

2) अपने वचनों (वाक्यों) में ताकत भरने के लिए

आत्म-अभिमानी रहने का अभ्यास करना है।

स्मृति रहे-बाप का सिखलाया हुआ हम सुना रहे हैं तो उसमें जौहर भरेगा।

वरदान:-

अपवित्रता का अंश -

आलस्य और अलबेलेपन का त्याग करने वाले

सम्पूर्ण निर्विकारी भव

दिनचर्या के कोई भी कर्म में नीचे ऊपर होना, आलस्य में आना या अलबेला होना - यह विकार का अंश है, जिसका प्रभाव पूज्यनीय बनने पर पड़ता है।

यदि आप अमृतवेले स्वयं को जागृत स्थिति में अनुभव नहीं करते, मजबूरी से वा सुस्ती से बैठते हो तो पुजारी भी मजबूरी वा सुस्ती से पूजा करेंगे।

तो आलस्य वा अलबेलेपन का भी त्याग कर दो तब सम्पूर्ण निर्विकारी बन सकेंगे।

स्लोगन:-

सेवा भले करो लेकिन व्यर्थ खर्च नहीं करो।