मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे यह तो समझते हैं इस पुरानी दुनिया में हम अभी थोड़े दिन के मुसाफिर हैं।
दुनिया के मनुष्य समझते हैं अजुन 40 हज़ार वर्ष यहाँ रहने का है।
तुम बच्चों को तो निश्चय है ना।
यह बातें भूलो नहीं।
यहाँ बैठे हो तो भी तुम बच्चों को अन्दर में गदगद होना चाहिए।
इन आंखों से जो कुछ देखते हो सब कुछ विनाश होने वाला है।
आत्मा तो अविनाशी है।
हम आत्मा ने 84 जन्म लिए हैं।
अभी बाबा आया है घर ले जाने के लिए।
पुरानी दुनिया जब पूरी होती है तब बाप आते हैं नई दुनिया बनाने।
नई सो पुरानी, पुरानी सो नई दुनिया कैसे होती है यह तुम्हारी बुद्धि में है।
हमने अनेकों बार चक्र लगाया है।
अभी चक्र पूरा होता है।
नई दुनिया में हम थोड़े ही देवतायें रहते हैं।
मनुष्य नहीं होंगे।
बाकी कर्मों पर सारा मदार है।
मनुष्य उल्टा कर्म करते हैं तो वह खाता जरूर है इसलिए बाप पूछते हैं कि इस जन्म में कोई ऐसे पाप तो नहीं किये हैं?
यह है पतित छी-छी रावण राज्य।
यह धुंधकारी दुनिया है।
अभी बाप तुम बच्चों को वर्सा दे रहे हैं।
अभी तुम भक्ति नहीं करते।
भक्ति के अन्धियारे में धक्के खाकर आये हो।
अभी बाप का हाथ मिला है।
बाप के सहारे बिगर तुम विषय वैतरणी नदी में गोते खाते थे।
आधाकल्प है ही भक्ति, ज्ञान मिलने से तुम सतयुगी नई दुनिया में चले जाते हो।
अभी तो यह है पुरूषोत्तम संगमयुग जबकि तुम पतित छी-छी से गुलगुल, कांटों से फूल बन रहे हो।
यह कौन बनाते हैं?
बेहद का बाप।
लौकिक बाप को बेहद का बाप नहीं कहेंगे।
तुम ब्रह्मा और विष्णु के भी आक्यूपेशन को जान गये हो।
तो तुम्हें कितना शुद्ध नशा रहना चाहिए।
मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन... यह सब संगम पर ही होता है।
बाप बैठ अभी तुम बच्चों को समझाते हैं पुरानी और नई दुनिया का यह संगमयुग है।
पुकारते भी हैं कि पतितों को पावन बनाने आओ।
बाप का भी इस संगम पर पार्ट चलता है।
क्रियेटर, डायरेक्टर है ना!
तो जरूर उनकी कोई एक्टिविटी होगी ना।
सब जानते हैं कि उनको आदमी नहीं कहा जाता, उनको तो अपना शरीर ही नहीं।
बाकी सबको मनुष्य वा देवता कहेंगे।
शिवबाबा को न देवता, न मनुष्य कहेंगे।
यह तो टैप्रेरी शरीर लोन में लिया हुआ है।
गर्भ से थोड़ेही पैदा हुए हैं।
बाप खुद कहते हैं-बच्चे, शरीर बिगर मैं राजयोग कैसे सिखलाऊंगा!
हमको मनुष्य लोग भल कह देते हैं कि ठिक्कर भित्तर में परमात्मा है परन्तु अभी तुम बच्चे समझते हो कि मैं कैसे आता हूँ।
अभी तुम राजयोग सीख रहे हो।
कोई मनुष्य तो सिखला न सके।
देवतायें तो राजयोग सीख न सकें।
यहाँ इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर राजयोग सीखकर देवता बनते हैं।
अभी तुम बच्चों को अथाह खुशी होनी चाहिए-हमने अभी 84 का चक्र पूरा किया है।
बाप कल्प-कल्प आते हैं, बाप खुद कहते हैं यह बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है।
श्रीकृष्ण तो सतयुग का प्रिन्स था वही फिर 84 का चक्र लगाते हैं।
शिवबाबा तो 84 के चक्र में नहीं आयेंगे।
श्रीकृष्ण की आत्मा ही सुन्दर से श्याम बनती है, यह बातें किसको पता नहीं हैं।
तुम्हारे में भी नम्बरवार ही जानते हैं।
माया बहुत कड़ी है।
किसको भी छोड़ती नहीं है।
बाप को सब मालूम पड़ता है।
माया ग्राह एकदम हप कर लेती है।
यह बाप अच्छी रीति जानते हैं।
ऐसे नहीं समझो बाप कोई अन्तर्यामी है।
नहीं, बाप सभी की एक्टिविटी को जानते हैं।
समाचार तो आते हैं ना।
माया एकदम कच्चा ही पेट में डाल देती है।
ऐसी बहुत बातें तुम बच्चों को मालूम नहीं पड़ती हैं।
बाप को तो सब मालूम पड़ता है।
मनुष्य फिर समझ लेते परमात्मा अन्तर्यामी है।
बाप कहते हैं मैं अन्तर्यामी नहीं हूँ।
हर एक की चलन से मालूम तो पड़ता है ना।
बहुत ही छी-छी चलन चलते हैं इसलिए बाप घड़ी-घड़ी बच्चों को खबरदार करते हैं।
माया से सम्भालना है।
फिर भल बाप समझाते हैं तो भी बुद्धि में नहीं बैठता, काम महाशत्रु है, मालूम भी न पड़े कि हम विकार में गये हैं, ऐसे भी होता है इसलिए बाप कहते हैं कुछ भी भूल आदि होती है तो साफ बता दो, छिपाओ मत।
नहीं तो सौगुणा पाप हो जायेगा।
वह अन्दर खाता रहेगा।
वृद्धि होती रहेगी।
एकदम गिर पड़ेंगे।
बच्चों को बाप के साथ बिल्कुल ही सच्चा रहना है।
नहीं तो बहुत-बहुत घाटा पड़ जायेगा।
यह तो रावण की दुनिया है।
रावण की दुनिया को हम याद क्यों करें।
हमें तो नई दुनिया में जाना है।
बाप नया मकान आदि बनाते हैं तो बच्चे समझते हैं हमारे लिए नया मकान बन रहा है।
खुशी रहती है। यह तो बेहद की बात है।
हमारे लिए नई दुनिया स्वर्ग बन रहा है।
अभी हम नई दुनिया में जाने वाले हैं फिर जितना बाप को याद करेंगे उतना गुल-गुल बनेंगे।
हम विकारों के वश हो कांटे बन पड़े हैं।
तुम बच्चे जानते हो-जो नहीं आते हैं वह तो माया के वश हो गये हैं।
बाप के पास हैं ही नहीं।
ट्रेटर बन गये हैं।
पुराने दुश्मन पास चले गये हैं।
ऐसे-ऐसे बहुतों को माया हप कर लेती है।
कितने खत्म हो जाते हैं।
बहुत अच्छे-अच्छे हैं जो कहकर जाते हैं हम ऐसे करेंगे, यह करेंगे।
हम तो यज्ञ के लिए प्राण भी देने के लिए तैयार हैं।
आज वह हैं नहीं।
तुम्हारी लड़ाई है ही माया के साथ।
दुनिया में यह कोई नहीं जानते कि माया से लड़ाई कैसे होती है।
शास्त्रों में फिर दिखाया है देवताओं और असुरों में लड़ाई हुई।
फिर कौरवों और पाण्डवों की लड़ाई हुई। कोई से पूछो यह दो बातें शास्त्रों में कैसी हैं?
देवतायें तो अहिंसक होते हैं।
वह होते ही हैं सतयुग में।
वह फिर क्या कलियुग में लड़ने आयेंगे।
कौरव और पाण्डव का भी अर्थ नहीं समझते।
शास्त्रों में जो लिखा है वही पढ़कर सुनाते रहते हैं।
बाबा की तो सारी गीता पढ़ी हुई है।
जब यह ज्ञान मिला तो विचार चला कि गीता में यह लड़ाई आदि की बातें क्या लिखी हैं?
कृष्ण तो गीता का भगवान नहीं है।
इनके अन्दर बाप बैठा था तो इन द्वारा उस गीता को भी छुड़वा दिया।
अभी बाप द्वारा कितना सोझरा मिला है।
आत्मा को ही सोझरा होता है तब बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो, बेहद के बाप को याद करो।
भक्ति में तुम याद करते थे, कहते थे आप आयेंगे तो बलिहार जायेंगे।
परन्तु वह कैसे आयेंगे, कैसे बलिहार जायेंगे, यह थोड़ेही समझते थे।
अभी तुम बच्चे समझते हो जैसे बाप है वैसे हम आत्मा भी हैं।
बाप का है अलौकिक जन्म, तुम बच्चों को कैसे अच्छी रीति पढ़ाते हैं।
तुम खुद कहते हो यह तो वही हमारा बाप है।
जो कल्प-कल्प हमारा बाप बनते हैं।
हम सभी बाबा-बाबा कहते हैं।
बाबा भी बच्चे-बच्चे कहते हैं, वही टीचर रूप में राजयोग सिखलाते हैं।
विश्व का तुमको मालिक बनाते हैं।
तो ऐसे बाप का बनकर फिर उसी टीचर से शिक्षा भी लेनी चाहिए।
सुन-सुन कर गद-गद होना चाहिए।
अगर छी-छी बनें तो वह खुशी आयेगी ही नहीं।
भल कितना माथा मारें, वह फिर हमारे जाति भाई नहीं।
यहाँ मनुष्यों के कितने सरनेम होते हैं।
वह सभी हैं हद की बातें।
तुम्हारा सरनेम देखो कितना बड़ा है।
बड़े ते बड़ा ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर ब्रह्मा।
उनको कोई जानता ही नहीं।
शिवबाबा को तो सर्वव्यापी कह दिया है।
ब्रह्मा का भी किसको पता नहीं है।
चित्र भी हैं - ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
फिर ब्रह्मा को सूक्ष्मवतन में ले गये हैं।
बायोग्राफी कुछ भी नहीं जानते।
सूक्ष्मवतन में फिर ब्रह्मा कहाँ से आया?
वहाँ कैसे एडाप्ट करेंगे। बाप ने समझाया है यह हमारा रथ है।
बहुत जन्मों के अन्त में मैंने इसमें प्रवेश किया है।
यह पुरूषोत्तम संगमयुग गीता का एपीसोड है, जिसमें पवित्रता मुख्य है।
पतित से पावन कैसे बनना है, यह किसको भी पता नहीं है।
साधू-सन्त आदि कभी भी ऐसे नहीं कहेंगे कि देह सहित देह के सभी सम्बन्धों को भूल एक मुझ बाप को याद करो तो माया के पाप कर्म भस्म हो जायेंगे।
वह तो बाप को ही नहीं जानते हैं।
गीता में बाप ने कहा है इन साधुओं आदि का भी मैं आकर उद्धार करता हूँ।
बाप समझाते हैं शुरू से लेकर अब तक जो भी आत्मायें पार्ट बजा रही हैं-सभी का यह अन्तिम जन्म है।
इसका भी यह अन्तिम जन्म है।
यही फिर ब्रह्मा बना है।
छोटेपन में गाँवड़े का छोरा था।
84 जन्म इसने पूरे किये, फर्स्ट से लास्ट तक।
अभी तुम बच्चों की बुद्धि का ताला खुला हुआ है।
अभी तुम बुद्धिवान बनते हो।
आगे बुद्धिहीन थे। यह लक्ष्मी-नारायण हैं बुद्धिवान।
बुद्धिहीन पतित को कहा जाता है।
मुख्य है पवित्रता।
लिखते भी हैं माया ने हमें गिरा दिया।
आंखें क्रिमिनल बन गई।
बाप तो घड़ी-घड़ी सावधान करते रहते हैं-बच्चे, कभी माया से हार नहीं खाना।
अभी घर जाना है।
अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो।
यह पुरानी दुनिया खत्म हुई कि हुई।
हम पावन बनते हैं तो हमें पावन दुनिया भी तो चाहिए ना!
तुम बच्चों को ही पतित से पावन बनना है।
बाप तो योग नहीं लगायेंगे।
बाबा पतित थोड़ेही बनता है जो योग लगावे।
बाबा तो कहते हैं मैं तुम्हारी सेवा में उपस्थित होता हूँ।
तुमने ही मांगनी की है कि आकर हम पतितों को पावन बनाओ।
तुम्हारे ही कहने से मैं आया हूँ।
तुम्हें बहुत सहज रास्ता बताता हूँ सिर्फ मनमनाभव।
भगवानुवाच है ना।
सिर्फ कृष्ण का नाम देने से बाप को सब भूल गये हैं।
बाप है फर्स्ट, कृष्ण है सेकेण्ड।
वह परमधाम का मालिक, वह है वैकुण्ठ का मालिक।
सूक्ष्मवतन में तो कुछ होता ही नहीं।
सभी में नम्बरवन है कृष्ण, जिसको सब प्यार करते हैं।
बाकी तो सब पीछे-पीछे आते हैं।
स्वर्ग में तो सब जा भी न सकें।
तो तुम मीठे-मीठे बच्चों को हड्डी (ज़िगरी) खुशी होनी चाहिए।
कई बच्चे बाबा के पास आते हैं जो कभी पवित्र नहीं रहते हैं।
बाबा समझाते हैं विकार में जाते हो फिर बाबा के पास क्यों आते हो?
कहते क्या करूँ, रह नहीं सकता हूँ।
परन्तु यहाँ आता हूँ शायद कभी तीर लग जाए।
आप बिगर हमारी सद्गति कौन करेगा इसलिए आकर बैठ जाता हूँ।
माया कितनी प्रबल है।
निश्चय भी होता है-बाबा हमको पतित से पावन गुल-गुल बनाते हैं।
परन्तु क्या करें फिर भी सच बोलने से कभी सुधर जाऊंगा।
हमको यह निश्चय है कि आपसे ही हमें सुधरना है।
बाबा को ऐसे बच्चों पर तरस पड़ता है फिर भी ऐसे होगा।
नथिंगन्यु।
बाबा तो रोज़-रोज़ श्रीमत देते हैं।
कोई अमल में लाते भी हैं, इसमें बाबा क्या कर सकता है।
बाबा कहे शायद इनका पार्ट ही ऐसा है।
सब तो राजे-रानियाँ नहीं बनते हैं।
राजधानी स्थापन हो रही है।
राजधानी में सब चाहिए।
फिर भी बाबा कहते हैं बच्चे हिम्मत नहीं छोड़ो।
आगे जा सकते हो।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।