15-12-19 प्रात:मुरली मधुबन
अव्यक्त-बापदादा रिवाइज: 21-03-85
"स्वदर्शन चक्र से विजय चक्र की प्राप्ति"
आज बापदादा रूहानी सेनापति के रूप में अपनी रूहानी सेना को देख रहे हैं।
इस रूहानी सेना में कौन से, कौन से महावीर हैं, कौन से शक्तिशाली शस्त्र धारण किये हुए हैं।
जैसे जिस्मानी शस्त्रधारी दिन प्रतिदिन अति सूक्ष्म और तीव्रगति के शक्ति सम्पन्न साधन बनाते जाते हैं, ऐसे रूहानी सेना अति सूक्ष्म शक्तिशाली शस्त्रधारी बनी है?
जैसे विनाशकारी आत्माओं ने एक स्थान पर बैठे हुए कितने माइल दूर विनाशकारी रेज़िज़ (किरणों) द्वारा विनाश कराने के लिए साधन बना लिए हैं।
वहाँ जाने की भी आवश्यकता नहीं।
दूर बैठे निशाना लगा सकते हैं।
ऐसे रूहानी सेना स्थापनाकारी सेना है।
वह विनाशकारी, आप स्थापनाकारी हो।
वह विनाश के प्लैन सोचते आप नई रचना के, विश्व परिवर्तन के प्लैन सोचते।
स्थापनाकारी सेना, ऐसे तीव्रगति के रूहानी साधन धारण कर लिए है?
एक स्थान पर बैठे जहाँ चाहो वहाँ रूहानी याद की रेज़िज़ (किरणों) द्वारा किसी भी आत्मा को टच कर सकते हो।
परिवर्तन शक्ति इतनी तीव्रगति की सेवा करने लिए तैयार है?
नॉलेज अर्थात् शक्ति सभी को प्राप्त हो रही है ना।
नॉलेज की शक्ति द्वारा ऐसे शक्तिशाली शस्त्रधारी बने हो?
महावीर बने हो वा वीर बने हो?
विजय का चक्र प्राप्त कर लिया है?
जिस्मानी सेना को अनेक प्रकार के चक्र इनाम में मिलते हैं।
आप सभी को सफलता का इनाम विजय चक्र मिला है?
विजय प्राप्त हुई पड़ी है!
ऐसे निश्चय बुद्धि महावीर आत्मायें विजय चक्र के अधिकारी हैं।
बापदादा देख रहे थे कि किसको विजय चक्र प्राप्त है!
स्वदर्शन चक्र से विजय चक्र प्राप्त करते हो।
तो सभी शस्त्रधारी बने हो ना!
इन रूहानी शस्त्रों का यादगार स्थूल रूप में आपके यादगार चित्रों में दिखाया है।
देवियों के चित्रों में शस्त्रधारी दिखाते हैं ना।
पाण्डवों को भी शस्त्रधारी दिखाते हैं ना।
यह रूहानी शस्त्र अर्थात् रूहानी शक्तियाँ स्थूल शस्त्र रूप में दिखा दी हैं।
वास्तव में सभी बच्चों को बापदादा द्वारा एक ही समय एक जैसी नॉलेज की शक्ति प्राप्त होती है।
अलग-अलग नॉलेज नहीं देते फिर भी नम्बरवार क्यों बनते हैं?
बापदादा ने कभी किसी को अलग पढ़ाया है क्या?
इकट्ठा ही पढ़ाई पढ़ाते हैं ना।
सभी को एक ही पढ़ाई पढ़ाते हैं ना, कि किसी ग्रुप को कोई पढ़ाई पढ़ाते, किसको कोई!
यहाँ 6 मास का गाडली स्टूडेन्ट हो या 50 वर्ष का हो, एक ही क्लास में बैठते हैं
। अलग-अलग बैठते हैं क्या?
बापदादा एक ही समय एक पढ़ाई और सभी को इकट्ठा ही पढ़ाता है।
अगर कोई पीछे भी आये हैं तो जो पहले पढ़ाई चल चुकी है वही पढ़ाई आप सब अभी भी पढ़ाते रहते हो।
जो रिवाइज कोर्स चल रहा है वही आप भी पढ़ रहे हो कि पुरानों का कोर्स अलग है, आपका अलग है?
एक ही कोर्स है ना।
40 वर्ष वालों के लिए अलग मुरली और 6 मास वालों के लिए अलग मुरली तो नहीं है ना।
एक ही मुरली है ना!
पढ़ाई एक, पढ़ाने वाला एक फिर नम्बरवार क्यों होते?
वा सभी नम्बरवन हैं?
नम्बर क्यों बनते?
क्योंकि पढ़ाई भले सब पढ़ते हैं लेकिन पढ़ाई की अर्थात् ज्ञान की एक-एक बात को शस्त्र वा शक्ति के रूप में धारण करना, और ज्ञान की बात को प्वाइंट के रूप में धारण करना - इसमें अन्तर हो जाता है।
कोई सुनकर सिर्फ प्वाइंट्स के रूप में बुद्धि में धारण करते हैं।
और उन धारण की हुई प्वाइंट्स का वर्णन भी बहुत अच्छा करते हैं।
भाषण करने में कोर्स देने में मैजारटी होशियार हैं।
बापदादा भी बच्चों के भाषण वा कोर्स कराना देख खुश होते हैं।
कई बच्चे तो बापदादा से भी अच्छा भाषण करते हैं।
प्वाइंट्स भी बहुत अच्छी वर्णन करते हैं लेकिन अन्तर यह है-ज्ञान को प्वाइंट्स के रूप में धारण करना और ज्ञान की एक-एक बात को शक्ति के रूप में धारण करना-इसमें अन्तर पड़ जाता है।
जैसे ड्रामा की प्वाइंट्स उठाओ।
यह बहुत बड़ा विजय प्राप्त करने का शक्तिशाली शस्त्र है।
जिसको ड्रामा के ज्ञान की शक्ति प्रैक्टिकल जीवन में धारण है वह कभी भी हलचल में नहीं आ सकता।
सदा एकरस अचल अडोल बनने और बनाने की विशेष शक्ति यह ड्रामा की प्वाइंट है।
शक्ति के रूप में धारण करने वाला कभी हार नहीं खा सकता।
लेकिन जो सिर्फ प्वाइंट के रूप में धारण करते हैं वह क्या करते हैं?
ड्रामा की प्वाइंट वर्णन भी करेंगे।
हलचल में भी आ रहे हैं और ड्रामा की प्वाइंट भी बोल रहे हैं।
कभी-कभी ऑखों से ऑसू भी बहाते जाते हैं!
पता नहीं क्या हो गया, पता नहीं क्या है।
और ड्रामा की प्वाइंट भी बोलते जाते हैं।
हाँ विजयी तो बनना ही है।
हूँ तो विजयी रत्न।
ड्रामा याद है लेकिन पता नहीं क्या हो गया।
तो इसको क्या कहेंगे?
शक्ति के रूप से, शस्त्र के रूप से धारण किया वा सिर्फ प्वाइंट के रीति से धारण किया?
ऐसे ही आत्मा के प्रति भी कहेंगे हूँ तो शक्तिशाली आत्मा, सर्व शक्तिवान की बच्ची हूँ लेकिन यह बात बहुत बड़ी है।
ऐसी बात कब हमने सोची नहीं थी।
कहाँ मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा और कहाँ यह बोल?
अच्छे लगते हैं?
तो इसको क्या कहेंगे?
तो एक आत्मा का पाठ, परम आत्मा का पाठ, ड्रामा का पाठ, 84 जन्मों का पाठ, कितने पाठ हैं?
सभी को शक्ति अर्थात् शस्त्र के रूप में धारण करना अर्थात् विजयी बनना है।
सिर्फ प्वाइंट की रीति से धारण करना तो कभी प्वाइंट काम करती भी है कभी नहीं करती।
फिर भी प्वाइंट के रूप में भी धारण करने वाले सेवा में बिजी होने कारण और प्वाइंट्स का बार-बार वर्णन करने के कारण माया से सेफ रहते हैं।
लेकिन जब कोई परिस्थिति वा माया का रॉयल रूप सामने आता है तो सदा विजयी नहीं बन सकते हैं।
वही प्वाइंट्स वर्णन करते रहेंगे लेकिन शक्ति न होने कारण सदा मायाजीत नहीं बन सकते हैं।
तो समझा नम्बरवार क्यों बनते हैं?
अब यह चेक करो कि हर ज्ञान की प्वाइंट शक्ति के रूप से, शस्त्र के रूप से धारण की?
सिर्फ ज्ञानवान बने हो वा शक्तिशाली भी बने हो?
नॉलेजफुल के साथ पावरफुल भी बने हो वा सिर्फ नॉलेजफुल बने हो!
यथार्थ नॉलेज लाइट और माइट का स्वरूप है।
उसी रूप से धारण किया है?
अगर समय पर नॉलेज विजयी नहीं बनाती है तो नॉलेज को शक्ति रूप से धारण नहीं किया है।
अगर कोई योद्धा समय पर शस्त्र कार्य में नहीं ला सके तो उसको क्या कहेंगे?
महावीर कहेंगे?
यह नॉलेज की शक्ति किसलिए मिली है?
मायाजीत बनने के लिए मिली है ना!
कि समय बीत जाने के बाद प्वाइंट याद करेंगे, करना तो यह था, सोचा तो यह था।
तो यह चेक करो।
अभी फोर्स का कोर्स कहाँ तक किया है!
कोर्स कराने के लिए सब तैयार हो ना!
ऐसा कोई है जो कोर्स नहीं करा सकता!
सभी करा सकते हैं और बहुत प्यार से अच्छे रूप से कोर्स कराते हो।
बापदादा देखते हैं कि बहुत प्यार से, अथक बन करके, लगन से करते और कराते हो।
बहुत अच्छे प्रोग्राम्स करते हो।
तन-मन-धन लगाते हो।
तब तो इतनी वृद्धि हुई है।
यह तो बहुत अच्छा करते हो।
लेकिन अभी समय प्रमाण यह तो पास कर लिया।
बचपन पूरा हुआ ना, अब युवा अवस्था में हो वा वानप्रस्थ में हो।
कहाँ तक पहुँचे हो?
इस ग्रुप में मैजारटी नये-नये हैं।
लेकिन विदेश सेवा के इतने वर्ष पूरे हुए तो अभी बचपन नहीं, अभी युवा तक पहुँच गये हो।
अब फोर्स का कोर्स करो और कराओ।
ऐसे भी यूथ में शक्ति बहुत होती है।
यूथ आयु बहुत शक्तिशाली होती है।
जो चाहे वह कर सकते हैं इसलिए देखो आजकल की गवर्मेन्ट भी यूथ से घबराती है क्योंकि यूथ ग्रुप में लौकिक रूप से बुद्धि की भी शक्ति है तो शरीर की भी शक्ति है।
और यहाँ तोड़-फोड़ करने वाले नहीं हैं।
बनाने वाले हैं।
वह जोश वाले हैं और यहाँ शान्त स्वरूप आत्मायें हैं।
बिगड़ी को बनाने वाली हैं।
सबके दु:ख दूर करने वाले हैं।
वह दु:ख देने वाले हैं और आप दु:ख दूर करने वाले हो।
दु:ख हर्ता सुख कर्ता।
जैसे बाप वैसे बच्चे।
सदा हर संकल्प, हर आत्मा के प्रति वा स्व के प्रति सुख-दाई संकल्प है क्योंकि दु:ख की दुनिया से निकल गये।
अभी दु:ख की दुनिया में नहीं हो।
दु:खधाम से संगमयुग में पहुँच गये हो।
पुरुषोत्तम युग में बैठे हो।
वह कलियुगी यूथ हैं।
आप संगमयुगी यूथ हो इसलिए अभी यह सदा अपने में नॉलेज को शक्ति के रूप में धारण करो भी और कराओ भी।
जितना स्वयं फोर्स का कोर्स किया हुआ होगा उतना दूसरे को भी करायेंगे।
नहीं तो सिर्फ प्वाइंट का कोर्स कराते हैं।
अब कोर्स को फिर से रिवाइज करना, एक-एक प्वाइंट में क्या-क्या शक्ति है, कितनी शक्ति है, किस समय कौन-सी शक्ति को किस रूप से यूज कर सकते हैं, यह ट्रेनिंग स्वयं को स्वयं भी दे सकते हो।
तो यह चेक करो-आत्मा के प्वाइंट रूपी शक्तिशाली शस्त्र सारे दिन में प्रैक्टिकल कार्य में लाया?
अपनी ट्रेनिंग आपे ही कर सकते हो क्योंकि नॉलेजफुल तो हैं ही।
आत्मा के प्रति प्वाइंट्स निकालने के लिए कहें तो कितनी प्वाइंट्स निकालेंगे!
बहुत हैं ना!
भाषण करने में तो होशियार हो।
लेकिन एक-एक प्वाइंट को देखो परिस्थिति के समय कहाँ तक कार्य में लाते हैं।
यह नहीं सोचो वैसे तो ठीक रहते, लेकिन ऐसी बात हो गई, परिस्थिति आई तब ऐसे हुआ।
शस्त्र किसलिए होता है?
जब दुश्मन आता है उसके लिए होता है या दुश्मन आ गया इसलिए मैं हार गया!
माया आ गई इसलिए डगमग हो गये!
लेकिन माया (दुश्मन) के लिए ही तो शस्त्र हैं ना!
शक्तियाँ किसलिए धारण की हैं?
समय पर विजय पाने के लिए शक्तिशाली बने हो ना!
तो समझा क्या करना है?
आपस में अच्छी रूह-रूहाण करते रहते हैं।
बापदादा को सब समाचार मिलता है।
बाप-दादा तो बच्चों का यह उमंग देख खुश होते हैं, पढ़ाई से प्यार है।
बाप से प्यार है।
सेवा से प्यार है लेकिन कभी-कभी जो नाजुक बन जाते हैं, शस्त्र छूट जाते हैं, उस समय इन्हों की फिल्म निकाल फिर इन्हों को ही दिखानी चाहिए।
होता थोड़े टाइम के लिए ही है, ज्यादा नहीं होता लेकिन फिर भी लगातार अर्थात् सदा निर्विघ्न रहना और विघ्न निर्विघ्न चलता रहे, फर्क तो है ना!
धागे में जितना गाँठ पड़ती है उतना धागा कमजोर होता है।
जुड़ तो जाता है लेकिन जुड़ी हुई चीज और साबुत चीज़ में फर्क तो होता है ना।
जोड़ वाली चीज़ अच्छी लगेगी?
तो यह विघ्न आया फिर निर्विघ्न बने फिर विघ्न आवे, टूटा जोड़ा तो जोड़ तो हुआ ना इसलिए भी इसका प्रभाव अवस्था पर पड़ता है।
कोई बहुत अच्छे तीव्र पुरूषार्थी भी हैं।
नॉलेजफुल, सर्विसएबुल भी हैं।
बापदादा, परिवार की नज़रों में भी हैं लेकिन जोड़ तोड़ होने वाली आत्मा सदा शक्तिशाली नहीं रहेगी।
छोटी-छोटी बात पर उसको मेहनत करनी पड़ेगी।
कभी सदा हल्के, हर्षित खुशी में नाचने वाले होंगे।
लेकिन ऐसे सदा नज़र नहीं आयेंगे।
होंगे महारथी की लिस्ट में लेकिन ऐसे संस्कार वाले कमजोर जरूर रहते हैं।
इसका कारण क्या होता है?
यह तोड़ने जोड़ने के संस्कार उनको अन्दर से कमजोर कर देते हैं।
बाहर से कोई बात नहीं होगी।
बहुत अच्छे दिखाई देंगे इसलिए यह संस्कार कभी नहीं बनाना।
यह नहीं सोचना माया आ गई।
चल तो रहे हैं।
लेकिन ऐसे चलना, कभी तोड़ना कभी जुड़ना यह क्या हुआ?
सदा जुटा रहे, सदा निर्विघ्न रहे, सदा हर्षित, सदा छत्रछाया में रहे वह और यह जीवन में अन्तर है ना इसलिए बापदादा कहते हैं कोई-कोई की जन्म-पत्री का कागज़ बिल्कुल ही साफ है।
कोई-कोई का बीच-बीच में दाग है।
भले दाग मिटाते हैं लेकिन वह भी दिखाई तो देते हैं ना।
दाग हो ही नहीं।
साफ कागज और दाग मिटाया हुआ कागज...अच्छा क्या लगेगा?
साफ कागज़ रखने का आधार बहुत सहज है।
घबरा नहीं जाना कि यह तो बड़ा मुश्किल है।
नहीं।
बहुत सहज है क्योंकि समय समीप आ रहा है।
समय को भी विशेष वरदान मिले हुए हैं।
जितना जो पीछे आता है उसको समय प्रमाण एकस्ट्रा लिफ्ट की गिफ्ट भी मिलती है।
और अब तो अव्यक्त रूप का पार्ट है ही वरदानी पार्ट।
तो समय की भी आपको मदद है।
अव्यक्ति पार्ट की, अव्यक्त सहयोग की भी मदद है।
फास्ट गति का समय है, इसकी भी मदद है।
पहले इन्वेन्शन निकलने में समय लगा।
अभी बना बनाया है।
आप बने बनाये पर पहुँचे हो।
यह भी वरदान कम नहीं है।
जो पहले आये उन्हों ने माखन निकाला, आप लोग माखन खाने पर पहुँच गये।
तो वरदानी हो ना!
सिर्फ थोड़ा-सा अटेन्शन रखो।
बाकी कोई बड़ी बात नहीं है।
सभी प्रकार की मदद आपके साथ है।
अभी आप लोगों को महारथी निमित्त आत्माओं की जितनी पालना मिलती है उतनी पहले वालों को नहीं मिली।
एक-एक से कितनी मेहनत करते टाइम देते हैं।
पहले जनरल पालना मिली।
लेकिन आप तो सिकीलधे बन पल रहे हो।
पालना का रिटर्न भी देने वाले हो ना
। मुश्किल नहीं है।
सिर्फ एक-एक बात को शक्ति के रूप से यूज़ करने का अटेन्शन रखो।
समझा!
अच्छा!
सदा महावीर बन विजय छत्रधारी आत्मायें, सदा ज्ञान की शक्ति को समय प्रमाण कार्य में लाने वाली, सदा अटल, अचल अखण्ड स्थिति धारण करने वाली, सदा स्वयं को मास्टर सर्वशक्तिवान अनुभव करने वाली, ऐसी श्रेष्ठ सदा मायाजीत विजयी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।