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20-12-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम्हें सर्व खजानों से मालामाल बनाने,

तुम सिर्फ ईश्वरीय मत पर चलो,

अच्छी रीति पुरूषार्थ कर वर्सा लो,

माया से हार नहीं खाओ''

प्रश्नः-

ईश्वरीय मत, दैवी मत और मनुष्य मत में कौन-सा मुख्य अन्तर है?

उत्तर:-

ईश्वरीय मत से तुम बच्चे वापिस अपने घर जाते हो फिर नई दुनिया में ऊंच पद पाते हो।

दैवी मत से तुम सदा सुखी रहते हो क्योंकि वह भी बाप द्वारा इस समय की मिली हुई मत है।

लेकिन फिर भी उतरते तो नीचे ही हो।

मनुष्य मत दु:खी बनाती है।

ईश्वरीय मत पर चलने के लिए पहले-पहले पढ़ाने वाले बाप पर पूरा निश्चय चाहिए।

ओम् शान्ति।

बाप ने अर्थ तो समझाया है, मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ।

जब ओम् शान्ति कहा जाता है तो आत्मा को अपना घर याद आता है।

मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ।

फिर जब आरगन्स मिलते हैं तब टॉकी बनती है।

पहले छोटे आरगन्स होते हैं फिर बड़े होते हैं।

अब परमपिता परमात्मा तो है निराकार।

उनको भी रथ चाहिए टॉकी बनने के लिए।

जैसे तुम आत्मायें परमधाम की रहने वाली हो, यहाँ आकर टॉकी बनती हो।

बाप भी कहते हैं मैं तुमको नॉलेज देने के लिए टॉकी बना हूँ। बाप अपना और रचना के आदि, मध्य, अन्त का परिचय देते हैं।

यह है रूहानी पढ़ाई, वह होती है जिस्मानी पढ़ाई।

वह अपने को शरीर समझते हैं।

ऐसे कोई नहीं कहेंगे कि हम आत्मा इन कानों द्वारा सुनती हैं।

अभी तुम बच्चे समझते हो बाप है पतित-पावन, वही आकर समझाते हैं-मैं कैसे आता हूँ।

तुम्हारे मिसल मैं गर्भ में नहीं आता हूँ।

मैं इनमें प्रवेश करता हूँ।

फिर कोई प्रश्न ही नहीं उठता।

यह रथ है।

इनको माता भी कहा जाता है।

सबसे बड़ी नदी ब्रह्म पुत्रा है।

तो यह है सबसे बड़ी नदी।

पानी की तो बात नहीं।

यह है महानदी अर्थात् सबसे बड़ी ज्ञान नदी है।

तो बाप आत्माओं को समझाते हैं मैं तुम्हारा बाप हूँ।

जैसे तुम बात करते हो, मैं भी बात करता हूँ।

मेरा पार्ट तो सबसे पिछाड़ी का है।

जब तुम बिल्कुल पतित बन जाते हो तब तुमको पावन बनाने के लिए आना होता है।

इन लक्ष्मी-नारायण को ऐसा बनाने वाला कौन?

सिवाए ईश्वर के और कोई के लिए कह नहीं सकेंगे।

बेहद का बाप ही स्वर्ग का मालिक बनाते होंगे ना।

बाप ही ज्ञान का सागर है।

वही कहते हैं मैं इस मनुष्य सृष्टि का चैतन्य बीज हूँ।

मैं आदि, मध्य, अन्त को जानता हूँ।

मैं सत हूँ, मैं चैतन्य बीजरूप हूँ, इस सृष्टि रूपी झाड़ की मेरे में नॉलेज है।

इसको सृष्टि चक्र अथवा ड्रामा कहा जाता है।

यह फिरता ही रहता है।

वह हद का ड्रामा दो घण्टे चलता है।

इसकी रील 5 हजार वर्ष की है।

जो-जो टाइम पास होता जाता है, 5 हजार वर्ष से कम होता जाता है।

तुम जानते हो पहले हम देवी-देवता थे फिर आहिस्ते-आहिस्ते हम क्षत्रिय कुल में आ गये।

यह सारा राज़ बुद्धि में है ना।

तो यह सिमरण करते रहना चाहिए।

हम शुरू-शुरू में पार्ट बजाने आये तो हम सो देवी-देवता थे।

1250 वर्ष राज्य किया।

टाइम तो गुजरता जाता है ना।

लाखों वर्ष की तो बात ही नहीं।

लाखों वर्ष का तो कोई चिन्तन कर भी न सके।

तुम बच्चे समझते हो हम यह देवी-देवता थे फिर पार्ट बजाते, वर्ष पिछाड़ी वर्ष पास करते-करते अभी कितने वर्ष पास कर चुके हैं।

धीरे-धीरे सुख कम होता जाता है।

हर एक चीज़ सतोप्रधान, सतो रजो, तमो होती है।

पुरानी जरूर होती है।

यह फिर है बेहद की बात।

यह सब बातें अच्छी रीति बुद्धि में धारण कर फिर औरों को समझाना है।

सब तो एक जैसे नहीं होते।

जरूर भिन्न-भिन्न रीति समझाते होंगे।

चक्र समझाना सबसे सहज है।

ड्रामा और झाड़ दोनों मुख्य चित्र हैं।

कल्प वृक्ष नाम है ना।

कल्प की आयु कितने वर्ष की है।

यह कोई भी नहीं जानते।

मनुष्यों की अनेक मत हैं।

कोई क्या कहेंगे, कोई क्या कहेंगे।

अभी तुमने अनेक मनुष्य मत को भी समझा है और एक ईश्वरीय मत को भी समझा है।

कितना फर्क है।

ईश्वरीय मत से तुमको फिर से नई दुनिया में जाना पड़े और कोई की भी मत से, दैवी मत वा मनुष्य मत से वापिस नहीं जा सकते।

दैवी मत से तुम उतरते ही हो क्योंकि कला कम होती जाती है।

आसुरी मत से भी उतरते हो।

परन्तु दैवी मत में सुख है, आसुरी मत में दु:ख है।

दैवी मत भी इस समय बाप की दी हुई है इसलिए तुम सुखी रहते हो।

बेहद का बाप कितना दूर-दूर से आते हैं।

मनुष्य कमाने के लिए बाहर जाते हैं।

जब बहुत धन इकट्ठा होता है तो फिर आते हैं।

बाप भी कहते हैं मैं तुम बच्चों के लिए बहुत खजाना ले आता हूँ क्योंकि जानता हूँ तुमको बहुत माल दिये थे।

वह सब तुमने गँवा दिया है।

तुमसे ही बात करता हूँ, जिन्होंने प्रैक्टिकल में गँवाया है।

5 हज़ार वर्ष की बात तुमको याद है ना।

कहते हैं हाँ बाबा, 5 हज़ार वर्ष पहले आपसे मिले थे, आपने वर्सा दिया था।

अब तुमको स्मृति आई है बरोबर बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लिया था।

बाबा, आपसे नई दुनिया की राजाई का वर्सा लिया था।

अच्छा, फिर पुरूषार्थ करो।

ऐसे नहीं कहो बाबा माया के भूत ने हमको हरा दिया।

देह-अभिमान के बाद ही तुम माया से हारते हो।

लोभ किया, रिश्वत खाई।

लाचारी की बात और है।

बाबा जानते हैं लोभ के सिवाए पेट पूजा नहीं होगी, हर्जा नहीं।

भल खाओ परन्तु कहाँ फँस नहीं मरना, फिर तुमको ही दु:ख होगा।

पैसा मिलेगा खुश हो खायेंगे, कहाँ पुलिस ने पकड़ लिया तो जेल में जाना पड़ेगा।

ऐसा काम नहीं करो, उसका फिर रेसपॉन्सिबुल मैं नहीं हूँ।

पाप करते हैं तो जेल में जाते हैं।

वहाँ तो जेल आदि होता नहीं।

तो ड्रामा के प्लैन अनुसार जो कल्प पहले तुमको वर्सा मिला है, 21 जन्म लिए वैसे ही फिर लेंगे। सारी राजधानी बनती है।

गरीब प्रजा, साहूकार प्रजा।

परन्तु वहाँ दु:ख होता नहीं।

यह बाप गैरन्टी करते हैं।

सब एक समान तो बन न सकें।

सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राजाई में सब चाहिए ना।

बच्चे जानते हैं कैसे बाप हमको विश्व की बादशाही देते हैं।

फिर हम उतरते हैं। स्मृति में आया ना।

स्कूल में पढ़ाई स्मृति में रहती है ना।

यहाँ भी बाप स्मृति दिलाते हैं।

यह रूहानी पढ़ाई दुनिया भर में और कोई पढ़ा न सके।

गीता में भी लिखा हुआ है मन्मनाभव।

इसको महामंत्र वशीकरण मंत्र कहते हैं अर्थात् माया पर जीत पाने का मंत्र।

माया जीते जगतजीत।

माया 5 विकार को कहा जाता है।

रावण का चित्र बिल्कुल क्लीयर है-5 विकार स्त्री में, 5 विकार पुरूष में।

इनसे गधा अर्थात् टट्टू बन जाते हैं इसलिए ऊपर में गधे का शीश देते हैं।

अभी तुम समझते हो ज्ञान बिगर हम भी ऐसे थे। बाप कितना रमणीक रीति बैठ पढ़ाते हैं।

वह है सुप्रीम टीचर। उनसे जो हम पढ़ते हैं वह फिर औरों को सुनाते हैं।

पहले तो पढ़ाने वाले में निश्चय कराना चाहिए।

बोलो, बाप ने हमको यह समझाया है, अब मानो न मानो।

यह बेहद का बाप तो है ना।

श्रीमत ही श्रेष्ठ बनाती है।

तो श्रेष्ठ नई दुनिया भी जरूर चाहिए ना।

अभी तुम समझते हो हम किचड़े की दुनिया में बैठे हैं।

दूसरा कोई समझ न सके।

वहाँ हम बहिश्त स्वर्ग में सदा सुखी रहते हैं।

यहाँ नर्क में कितने दु:खी हैं।

इसको नर्क कहो वा विषय वैतरणी नदी कहो, पुरानी दुनिया छी-छी है।

अभी तुम फील करते हो-कहाँ सतयुग स्वर्ग, कहाँ कलियुग नर्क!

स्वर्ग को कहा जाता है वन्डर ऑफ वर्ल्ड।

त्रेता को भी नहीं कहेंगे।

यहाँ इस गन्दी दुनिया में रहने में मनुष्यों को कितनी खुशी होती है।

विष्टा के कीड़े को भ्रमरी भूँ-भूँ कर आपसमान बनाती है।

तुम भी किचड़े में पड़े हुए थे।

मैंने आकर भूँ-भूँ कर तुमको कीड़े से अर्थात् शूद्र से ब्राह्मण बनाया है।

अभी तुम डबल सिरताज बनते हो तो कितनी खुशी रहनी चाहिए

पुरूषार्थ भी पूरा करना चाहिए।

बेहद का बाप समझानी तो बहुत सहज देते हैं।

दिल से लगता भी है बाबा सच-सच कहते हैं।

इस समय सभी माया की दुबन में फंसे हुए हैं।

बाहर का शो कितना है?

बाबा समझाते हैं हम तुमको दुबन से आकर बचाते हैं, स्वर्ग में ले जाते हैं।

स्वर्ग का नाम सुना हुआ है।

अभी स्वर्ग तो है नहीं।

सिर्फ यह चित्र है।

यह स्वर्ग के मालिक कितने धनवान थे।

भक्ति मार्ग में भल रोज़ मन्दिरों मे जाते थे, परन्तु यह ज्ञान कुछ नहीं था।

अभी तुम समझते हो भारत में यह आदि सनातन देवी-देवता धर्म था।

इन्हों का राज्य कब था, यह किसको पता नहीं है।

देवी-देवता धर्म के बदले अब फिर हिन्दू-हिन्दू कहते रहते हैं।

शुरू में हिन्दू महासभा का प्रेजीडेंट आया था।

बोला, हम विकारी असुर हैं अपने को देवता कैसे कहलायें?

हमने कहा अच्छा आओ तो तुमको समझायें देवी-देवता धर्म की स्थापना फिर से हो रही है।

हम तुमको स्वर्ग का मालिक बना देंगे।

बैठकर सीखो।

बोला, दादा जी फुर्सत कहाँ?

फुर्सत नहीं तो फिर देवता कैसे बनेंगे!

यह पढ़ाई है ना।

बिचारे की तकदीर में नहीं था।

मर गया।

ऐसे भी नहीं कहेंगे कि वह कोई प्रजा में आयेगा।

नहीं, ऐसे ही चला आया था, सुना था यहाँ पवित्रता का ज्ञान मिलता है।

परन्तु सतयुग में तो आ न सके।

फिर भी हिन्दू धर्म में ही आयेंगे।

तुम बच्चे समझते हो माया बड़ी प्रबल है।

कोई न कोई भूल कराती रहती है।

कभी कोई उल्टा-सुल्टा पाप हो तो बाप को सच्ची दिल से सुनाना है।

रावण की दुनिया में पाप तो होते ही रहते हैं।

कहते हैं हम जन्म-जन्मान्तर के पापी हैं।

यह किसने कहा?

आत्मा कहती है-बाप के आगे या देवताओं के आगे।

अभी तो तुम फील करते हो बरोबर हम जन्म-जन्मान्तर के पापी थे।

रावण राज्य में पाप जरूर किये हैं।

अनेक जन्मों के पाप तो वर्णन नहीं कर सकते हो।

इस जन्म का वर्णन कर सकते हैं।

वह सुनाने से भी हल्का हो जायेगा।

सर्जन के आगे बीमारी सुनानी है-फलाने को मारा, चोरी की...., इस सुनाने में लज्जा नहीं आती है, विकार की बात सुनाने में लज्जा आती है।

सर्जन से लज्जा करेंगे तो बीमारी छूटेगी कैसे?

फिर अन्दर दिल को खाती रहेगी, बाप को याद कर नहीं सकेंगे।

सच सुनायेंगे तो याद कर सकेंगे।

बाप कहते हैं मैं सर्जन तुम्हारी कितनी दवाई करता हूँ।

तुम्हारी काया सदैव कंचन रहेगी।

सर्जन को बताने से हल्का हो जाता है।

कोई-कोई आपेही लिख देते हैं-बाबा हमने जन्म-जन्मान्तर पाप किये हैं।

पाप आत्माओं की दुनिया में पापात्मा ही बने हैं।

अब बाप कहते हैं बच्चे, तुम्हें पाप आत्माओं से लेन-देन नहीं करनी है।

सच्चा सतगुरू, अकालमूर्त है बाप, वह कभी पुनर्जन्म में नहीं आते हैं।

उन्होंने अकाल तख्त नाम रखा है परन्तु अर्थ नहीं समझते हैं।

बाप ने समझाया है आत्मा का यह तख्त है।

शोभता भी यहाँ है, तिलक भी यहाँ (भ्रकुटी में) देते हैं ना।

असुल में तिलक एकदम बिन्दी मिसल देते थे।

अभी तुमको अपने को आपेही तिलक देना है।

बाप को याद करते रहो।

जो बहुत सर्विस करेंगे तो बड़ा महाराजा बनेंगे।

नई दुनिया में, पुरानी दुनिया की पढ़ाई थोड़ेही पढ़ना है।

तो इतनी ऊंच पढ़ाई पर फिर अटेन्शन देना चाहिए।

यहाँ बैठते हैं तो भी कोई का बुद्धियोग अच्छा रहता है, कोई का कहाँ-कहाँ चला जाता है।

कोई 10 मिनट लिखते हैं, कोई 15 मिनट लिखते हैं।

जिसका चार्ट अच्छा होगा उनको नशा चढ़ेगा-बाबा इतना समय हम आपकी याद में रहे।

15 मिनट से जास्ती तो कोई लिख नहीं सकते।

बुद्धि इधर-उधर भागती है।

अगर सब एकरस हो जाएं तो फिर कर्मातीत अवस्था हो जाए।

बाप कितनी मीठी-मीठी लवली बातें सुनाते हैं।

ऐसे तो कोई गुरू ने नहीं सिखाया।

गुरू से सिर्फ एक थोड़ेही सीखेगा।

गुरू से तो हज़ारों सीखें ना।

सतगुरू से तुम कितने सीखते हो।

यह है माया को वश करने का मंत्र।

माया 5 विकारों को कहा जाता है।

धन को सम्पत्ति कहा जाता है।

लक्ष्मी-नारायण के लिए कहेंगे इन्हों के पास बहुत सम्पत्ति है।

लक्ष्मी-नारायण को कभी मात-पिता नहीं कहेंगे।

आदि देव, आदि देवी को जगत पिता, जगत अम्बा कहते हैं, इनको नहीं।

यह स्वर्ग के मालिक हैं।

अविनाशी ज्ञान धन लेकर हम इतने धनवान बने हैं।

अम्बा के पास अनेक आशायें लेकर जाते हैं।

लक्ष्मी के पास सिर्फ धन के लिए जाते हैं और कुछ नहीं।

तो बड़ी कौन हुई?

यह किसको पता नहीं, अम्बा से क्या मिलता है?

लक्ष्मी से क्या मिलता है?

लक्ष्मी से सिर्फ धन मांगते हैं।

अम्बा से तुमको सब कुछ मिलता है।

अम्बा का नाम जास्ती है क्योंकि माताओं को दु:ख भी बहुत सहन करना पड़ा है।

तो माताओं का नाम जास्ती होता है।

अच्छा, फिर भी बाप कहते हैं बाप को याद करो तो पावन बन जायेंगे।

चक्र को याद करो, दैवीगुण धारण करो।

बहुतों को आप समान बनाओ।

गॉड फादर के तुम स्टूडेन्ट हो।

कल्प पहले भी बने थे फिर अब भी वही एम आब्जेक्ट है।

यह है सत्य नर से नारायण बनने की कथा।

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) अपनी बीमारी सर्जन से कभी भी छिपानी नहीं है।

माया के भूतों से स्वयं को बचाना है।

अपने को राजतिलक देने के लिए सर्विस जरूर करनी है।

2) स्वयं को अविनाशी ज्ञान धन से धनवान बनाना है।

अब पाप आत्माओं से लेन-देन नहीं करनी है।

पढ़ाई पर पूरा-पूरा अटेन्शन देना है।

वरदान:-

गीता का पाठ

पढ़ने और पढ़ाने वाले

नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप भव

गीता ज्ञान का पहला पाठ है - अशरीरी आत्मा बनो और अन्तिम पाठ है नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनो।

पहला पाठ है विधि और अन्तिम पाठ है विधि से सिद्धि।

तो हर समय पहले स्वयं यह पाठ पढ़ो फिर औरों को पढ़ाओ।

ऐसा श्रेष्ठ कर्म करके दिखाओ जो आपके श्रेष्ठ कर्मो को देख अनेक आत्मायें श्रेष्ठ कर्म करके अपने भाग्य की रेखा श्रेष्ठ बना सकें।

स्लोगन:-

परमात्म स्नेह में समाये रहो तो मेहनत से मुक्त हो जायेंगे।