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Baba's Murlis - December, 2019
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24-12-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम्हें अपने दीपक की सम्भाल स्वयं ही करनी है,

तूफानों से बचने के लिए ज्ञान-योग का घृत जरूर चाहिए''

प्रश्नः-

कौन-सा पुरुषार्थ गुप्त बाप से गुप्त वर्सा दिला देता है?

उत्तर:-

अन्तर्मुख अर्थात् चुप रहकर बाप को याद करो तो गुप्त वर्सा मिल जायेगा।

याद में रहते शरीर छूटे तो बहुत अच्छा, इसमें कोई तकलीफ नहीं।

याद के साथ-साथ ज्ञान-योग की सर्विस भी करनी है, अगर नहीं कर सकते तो कर्मणा सेवा करो।

बहुतों को सुख देंगे तो आशीर्वाद मिलेगी।

चलन और बोलचाल भी बहुत सात्विक चाहिए।

गीत:- निर्बल से लड़ाई बलवान की......

ओम् शान्ति।

बाबा ने समझा दिया है जब ऐसे गीत सुनते हो तो हर एक को अपने ऊपर ही विचार सागर मंथन करना होता है।

यह तो बच्चे जानते हैं-मनुष्य मरते हैं तो 12 रोज़ दीवा जगाते हैं।

तुम फिर मरने के लिए तैयारी कर रहे हो और अपनी ज्योत पुरुषार्थ कर आपेही जगा रहे हो।

पुरुषार्थ भी माला में आने वाले ही करते हैं।

प्रजा इस माला में नहीं आती।

पुरुषार्थ करना चाहिए हम विजय माला में पहले जायें।

कहाँ माया बिल्ली तूफान लगाकर विकर्म न बना दे जो दीवा बुझ जाए।

अब इसमें ज्ञान और योग दोनों बल चाहिए।

योग के साथ ज्ञान भी जरूरी है।

हर एक को अपने दीपक की सम्भाल करनी है।

अन्त तक पुरुषार्थ चलना ही है।

रेस चलती रहती है तो बहुत सम्भाल करनी है-कहाँ ज्योत कम न हो जाए, बुझ न जाए इसलिए योग और ज्ञान का घृत रोज़ डालना पड़ता है।

योगबल की ताकत नहीं है तो दौड़ नहीं सकते हैं।

पिछाड़ी में रह जाते हैं।

स्कूल में सब्जेक्ट होती हैं, देखते हैं - हम इस सब्जेक्ट में तीखे नहीं हैं तो हिसाब में जोर लगाते हैं।

यहाँ भी ऐसे हैं।

स्थूल सर्विस की सब्जेक्ट भी बहुत अच्छी है।

बहुतों की आशीर्वाद मिलती है।

कोई बच्चे ज्ञान की सर्विस करते हैं।

दिन-प्रतिदिन सर्विस की वृद्धि होती जायेगी।

एक धनी के 6-8 दुकान भी होते हैं।

सभी एक जैसे नहीं चलते।

कोई में कम ग्राहकी, कोई में जास्ती होती है।

तुम्हारा भी एक दिन वह समय आने वाला है जो रात को भी फुर्सत नहीं मिलेगी।

सबको पता चलेगा कि ज्ञान सागर बाबा आया हुआ है - अविनाशी ज्ञान रत्नों से झोली भरते हैं।

फिर बहुत बच्चे आयेंगे।

बात मत पूछो।

एक-दो को सुनाते हैं ना।

यहाँ यह वस्तु बहुत अच्छी सस्ती मिलती है।

तुम बच्चे भी जानते हो यह राजयोग की शिक्षा बहुत सहज है।

सबको इस ज्ञान रत्नों का मालूम पड़ जायेगा तो आते रहेंगे।

तुम यह ज्ञान और योग की सर्विस करते हो।

जो यह ज्ञान योग की सर्विस नहीं कर सकते तो फिर कर्मणा सर्विस की भी मार्क्स हैं।

सभी की आशीर्वाद मिलेंगी।

एक-दो को सुख देना होता है।

यह तो बहुत-बहुत सस्ती खान है।

यह अविनाशी हीरे-जवाहरों की खान है।

8 रत्नों की माला बनाते हैं ना।

पूजते भी हैं परन्तु किसको पता नहीं है, यह माला किसकी बनी हुई है।

तुम बच्चे जानते हो कैसे हम ही पूज्य सो पुजारी बनते हैं।

यह बड़ी वन्डरफुल नॉलेज है जो दुनिया में कोई नहीं जानते।

अभी तुम लक्की स्टार्स बच्चों को ही निश्चय है कि हम स्वर्ग के मालिक थे, अभी नर्क के मालिक बन पड़े हैं, स्वर्ग के मालिक होंगे तो पुनर्जन्म भी वहाँ ही लेंगे।

अभी फिर हम स्वर्ग के मालिक बन रहे हैं।

तुम ब्राह्मणों को ही इस संगमयुग का पता है।

दूसरी ओर सारी दुनिया है कलियुग में। युग तो अलग-अलग हैं ना।

सतयुग में होंगे तो पुनर्जन्म सतयुग में लेंगे।

अभी तुम संगमयुग पर हो।

तुम्हारे से कोई शरीर छोड़ेंगे तो संस्कारों अनुसार फिर यहाँ ही आकर जन्म लेंगे।

तुम ब्राह्मण हो संगमयुग के।

वह शूद्र हैं कलियुग के।

यह नॉलेज भी तुमको इस संगम पर मिलती है।

तुम बी.के. ज्ञान गंगायें प्रैक्टिकल में अब संगमयुग पर हो।

अभी तुमको रेस करनी है।

दुकान सम्भालनी है।

ज्ञान-योग की धारणा नहीं होगी तो दुकान सम्भाल नहीं सकेंगे।

सर्विस का उजूरा तो बाबा देने वाला है।

यज्ञ रचा जाता है तो किस्म-किस्म के ब्राह्मण लोग आ जाते हैं।

फिर किसको दक्षिणा जास्ती, किसको कम मिलती है।

अब यह परमपिता परमात्मा ने रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा है।

हम हैं ब्राह्मण।

हमारा धन्धा ही है मनुष्य को देवता बनाना।

ऐसा यज्ञ और कोई होता नहीं, जो कोई कहे कि हम इस यज्ञ से मनुष्य से देवता बन रहे हैं।

अब इसको रूद्र ज्ञान यज्ञ अथवा पाठशाला भी कहा जाता है।

ज्ञान और योग से हर एक बच्चा देवी-देवता पद पा सकता है।

बाबा राय भी देते हैं तुम परमधाम से बाबा के साथ आये हो।

तुम कहेंगे हम परमधाम निवासी हैं।

इस समय बाबा की मत से हम स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं।

जो स्थापना करेंगे वही जरूर मालिक बनेंगे।

तुम जानते हो इस दुनिया में हम मोस्ट लकीएस्ट, ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा और ज्ञान सितारे हैं।

बनाने वाला है ज्ञान सागर।

वह सूर्य, चांद, सितारे तो स्थूल में हैं ना।

उनके साथ हमारी भेंट हैं।

तो हम भी फिर ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा, ज्ञान सितारे होंगे।

हमको ऐसा बनाने वाला है ज्ञान का सागर।

नाम तो पड़ेगा ना।

ज्ञान सूर्य अथवा ज्ञान सागर के हम बच्चे हैं।

वह तो यहाँ के रहवासी नहीं हैं।

बाबा कहते हैं मैं आता हूँ तुमको आपसमान बनाता हूँ।

ज्ञान सूर्य, ज्ञान सितारे तुमको यहाँ बनना है।

तुम जानते हो बरोबर हम भविष्य में फिर यहाँ ही स्वर्ग के मालिक बनेंगे।

सारा मदार पुरुषार्थ पर है।

हम माया पर जीत पाने के वारियर्स हैं।

वो लोग फिर मन को वश करने के लिए कितने हठ आदि करते हैं।

तुम तो हठयोग आदि कर न सको।

बाबा कहते हैं तुमको कोई तकलीफ आदि नहीं करनी है, सिर्फ कहता हूँ तुमको मेरे पास आना है इसलिए मुझे याद करो।

मैं तुम बच्चों को लेने आया हूँ।

ऐसे और कोई मनुष्य कह न सके।

भल अपने को ईश्वर कहे परन्तु अपने को गाइड कह न सके।

बाबा कहते हैं मैं मुख्य पण्डा कालों का काल हूँ।

एक सत्यवान सावित्री की कहानी है ना!

उनका जिस्मानी लव होने के कारण दु:खी होती थी।

तुम तो खुश होते हो।

मैं तुम्हारी आत्मा को ले जाऊंगा, तुम कभी दु:खी नहीं होंगे।

जानते हो हमारा बाबा आया है स्वीट होम में ले जाने लिए।

जिसको मुक्तिधाम, निर्वाणधाम कहा जाता है।

कहते हैं मैं सभी कालों का काल हूँ।

वह तो एक आत्मा को ले जाते हैं, मैं तो कितना बड़ा काल हूँ।

5 हजार वर्ष पहले भी मैं गाइड बन सभी को ले गया था।

साजन सजनियों को वापिस ले जाते हैं तो उनको याद करना पड़े।

तुम जानते हो अभी हम पढ़ रहे हैं फिर यहाँ आयेंगे।

पहले स्वीट होम जायेंगे फिर नीचे आयेंगे।

तुम बच्चे स्वर्ग के सितारे ठहरे।

आगे नर्क के थे।

सितारे बच्चों को कहा जाता है।

लक्की सितारे नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार हैं।

तुमको दादे की मिलकियत मिलती है।

खान बड़ी जबरदस्त है और यह खान एक ही बार निकलती है।

वह खानियां तो बहुत हैं ना।

निकलती रहती हैं।

कोई बैठ ढूँढे तो बहुत हैं।

यह तो एक ही बार एक ही खान मिलती है-अविनाशी ज्ञान रत्नों की।

वह किताब तो बहुत हैं।

परन्तु उनको रत्न नहीं कहेंगे।

बाबा को ज्ञान सागर कहा जाता है।

अविनाशी ज्ञान रत्नों की निराकारी खान है।

इन रत्नों से हम झोलियाँ भरते रहते हैं।

तुम बच्चों को खुशी होनी चाहिए।

हर एक को फ़खुर भी होता है।

दुकान पर धन्धा जास्ती होता है तो नामाचार भी होता है।

यहाँ प्रजा भी बना रहे हैं तो वारिस भी बना रहे हैं।

यहाँ से रत्नों की झोली भरकर फिर जाए दान देना है।

परमपिता परमात्मा ही ज्ञान सागर है जो ज्ञान रत्नों से झोली भरते हैं।

बाकी वह समुद्र नहीं जो दिखाते हैं रत्नों की थाली भरकर देवताओं को देते हैं।

उस सागर से रत्न नहीं मिलते।

यह ज्ञान रत्नों की बात है।

ड्रामा अनुसार फिर तुमको रत्नों की खानियाँ भी मिलती हैं।

वहाँ ढेर हीरे-जवाहर होंगे, जिससे फिर भक्ति मार्ग में मन्दिर आदि बनायेंगे।

अर्थक्वेक आदि होने से सब अन्दर चले जाते हैं।

वहाँ महल आदि तो बहुत बनते हैं, एक नहीं।

यहाँ भी राजाओं की कॉम्पीटीशन होती है बहुत।

तुम बच्चे जानते हो - हूबहू कल्प पहले जैसा मकान बनाया था वैसा फिर बनायेंगे।

वहाँ तो बहुत सहज मकान आदि बनते होंगे।

साइंस बहुत काम देती है।

परन्तु वहाँ साइंस अक्षर नहीं होगा।

साइंस को हिन्दी में विज्ञान कहते हैं।

आजकल तो विज्ञान भवन भी नाम रख दिया है।

विज्ञान अक्षर ज्ञान के साथ भी लगता है।

ज्ञान और योग को विज्ञान कहेंगे।

ज्ञान से रत्न मिलते हैं, योग से हम एवरहेल्दी बनते हैं।

यह ज्ञान और योग की नॉलेज हैं जिससे फिर वैकुण्ठ के बड़े-बड़े भवन बनेंगे।

हम अभी इस सारी नॉलेज को जानते हैं।

तुम जानते हो हम भारत को स्वर्ग बना रहे हैं।

तुम्हारा इस देह से कोई ममत्व नहीं है।

हम आत्मा इस शरीर को छोड़ स्वर्ग में जाकर नया शरीर लेंगे।

वहाँ भी समझते हैं एक पुराना शरीर छोड़ जाए नया लेंगे।

वहाँ कोई दु:ख वा शोक नहीं होता।

नया शरीर लें तो अच्छा ही है।

हमको बाबा ऐसा बना रहे हैं, जैसे कल्प पहले भी बने थे।

हम मनुष्य से देवता बन रहे हैं।

बरोबर कल्प पहले भी अनेक धर्म थे।

गीता में कोई यह नहीं है।

गाया जाता है आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना ब्रह्मा द्वारा।

अनेक धर्मों का विनाश कैसे होता है, सो तुम समझा सकते हो।

अब स्थापना हो रही है।

बाबा आये ही तब थे जब देवी-देवता धर्म लोप हो गया था।

फिर परम्परा कैसे चला होगा।

यह बहुत सहज बातें हैं।

विनाश किसका हुआ?

अनेक धर्मों का।

तो अभी अनेक धर्म हैं ना।

इस समय अन्त है, सारा ज्ञान बुद्धि में रहना चाहिए।

ऐसे तो नहीं, शिवबाबा ही समझाते हैं।

क्या यह बाबा कुछ नहीं बतलाते।

इनका भी पार्ट है, श्रीमत ब्रह्मा की भी गाई हुई है।

कृष्ण के लिए तो श्रीमत कहते नहीं।

वहाँ तो सब श्री हैं, उन्हों को मत की दरकार ही नहीं।

यहाँ ब्रह्मा की भी मत मिलती है।

वहाँ तो यथा राजा-रानी तथा प्रजा-सभी की श्रेष्ठ मत है।

जरूर किसने दी होगी। देवतायें हैं श्रीमत वाले।

श्रीमत से ही स्वर्ग बनता है, आसुरी मत से नर्क बना है।

श्रीमत है शिव की।

यह सब बातें सहज समझने की हैं।

शिवबाबा की यह सब दुकान हैं।

हम बच्चे चलाने वाले हैं।

जो अच्छा दुकान चलाते हैं, उनका नाम होता है।

हूबहू जैसे दुकानदारी में होता है।

परन्तु यह व्यापार कोई विरला करे।

व्यापार तो सभी को करना है।

छोटे बच्चे भी ज्ञान और योग का व्यापार कर सकते हैं।

शान्तिधाम और सुखधाम-बस, बुद्धि में उनको याद करना है।

वो लोग राम-राम कहते हैं।

यहाँ चुप होकर याद करना है, बोलना कुछ नहीं है।

शिवपुरी, विष्णुपुरी बहुत सहज बात है।

स्वीट होम, स्वीट राजधानी याद है।

वह देते हैं स्थूल मंत्र, यह है सूक्ष्म मंत्र।

अति सूक्ष्म याद है।

सिर्फ इस याद करने से हम स्वर्ग के मालिक बन जाते हैं।

जपना कुछ भी नहीं है सिर्फ याद करना है।

आवाज़ कुछ नहीं करना पड़ता।

गुप्त बाबा से गुप्त वर्सा चुप रहने से, अन्तर्मुख होने से हम पाते हैं।

इसी ही याद में रहते शरीर छूट जाए तो बहुत अच्छा है।

कोई तकल़ीफ नहीं, जिनको याद नहीं ठहरती वह अपना अभ्यास करें।

सभी को कहो बाबा ने कहा है मुझे याद करो तो अन्त मती सो गति।

याद से विकर्म विनाश होंगे और मैं स्वर्ग में भेज दूँगा।

बुद्धियोग शिवबाबा से लगाना बहुत सहज है।

परहेज भी सारी यहाँ ही करनी है।

सतोप्रधान बनते हैं तो सभी सात्विक होने चाहिए-चलन सात्विक, बोलना सात्विक।

यह है अपने साथ बातें करना।

साथी से प्यार से बोलना है।

गीत में भी है ना-पियु-पियु बोल सदा अनमोल...।

तुम हो रूप-बसन्त।

आत्मा रूप बनती है।

ज्ञान का सागर बाप है तो जरूर आकर ज्ञान ही सुनायेंगे।

कहते हैं मैं एक ही बार आकर शरीर धारण करता हूँ।

यह कम जादूगरी नहीं है! बाबा भी रूप-बसन्त है।

परन्तु निराकार तो बोल नहीं सकता इसलिए शरीर लिया है।

परन्तु वह पुनर्जन्म में नहीं आता है।

आत्मायें तो पुनर्जन्म में आती हैं।

तुम बच्चे बाबा के ऊपर बलिहार जाते हो तो बाबा कहते हैं फिर ममत्व नहीं रखना।

अपना कुछ नहीं समझना।

ममत्व मिटाने के लिए ही बाबा युक्ति रचते हैं।

कदम-कदम पर बाप से पूछना पड़ता है।

माया ऐसी है जो चमाट मारती है।

पूरी बॉक्सिंग है, बहुत तो चोट खाकर फिर खड़े हो जाते हैं।

लिखते भी हैं-बाबा, माया ने थप्पड़ लगा दिया, काला मुँह कर दिया।

जैसे कि 4 मंज़िल से गिरा।

क्रोध किया तो थर्ड फ्लोर से गिरा।

यह बहुत समझने की बातें हैं।

अब देखो, बच्चे टेप के लिए भी मांग करते रहते हैं।

बाबा टेप भेज दो।

हम एक्यूरेट मुरली सुनें।

यह भी प्रबन्ध हो रहा है।

बहुत सुनेंगे तो बहुतों के कपाट खुलेंगे।

बहुतों का कल्याण होगा।

मनुष्य कॉलेज खोलते हैं तो उनको दूसरे जन्म में विद्या जास्ती मिलती है।

बाबा भी कहते हैं-टेप मशीन खरीद करो तो बहुतों का कल्याण हो जायेगा।

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) सतोप्रधान बनने के लिए बहुत-बहुत परहेज से चलना है।

अपना खान-पान, बोल-चाल सब सात्विक रखना है।

बाप समान रूप-बसन्त बनना है।

2) अविनाशी ज्ञान रत्नों की निराकारी खान से अपनी झोली भरकर अपार खुशी में रहना है

और दूसरों को भी इन रत्नों का दान देना है।

वरदान:-

मन-बुद्धि को आर्डर प्रमाण

विधिपूर्वक कार्य में लगाने वाले

निरन्तर योगी भव

निरन्तर योगी अर्थात् स्वराज्य अधिकारी बनने का विशेष साधन मन और बुद्धि है।

मंत्र ही मन्मनाभव का है।

योग को बुद्धियोग कहते हैं।

तो अगर यह विशेष आधार स्तम्भ अपने अधिकार में हैं अर्थात् आर्डर प्रमाण विधि-पूर्वक कार्य करते हैं।

जो संकल्प जब करना चाहो वैसा संकल्प कर सको, जहाँ बुद्धि को लगाना चाहो वहाँ लगा सको, बुद्धि आप राजा को भटकाये नहीं।

विधिपूर्वक कार्य करे तब कहेंगे निरन्तर योगी।

स्लोगन:-

मास्टर विश्व शिक्षक बनो, समय को शिक्षक नहीं बनाओ।