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Baba's Murlis - December, 2019
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26-12-2019 प्रातःमुरली बापदादा मधुबन

“मीठे बच्चे-बाप का मददगार बन इस आइरन एजड पहाड़ को गोल्डन एजड बनाना है,

पुरूषार्थ कर नई दुनिया के लिए फर्स्टक्लास सीट रिजर्व करानी है‘‘

प्रश्नः-

बाप की फर्ज-अदाई क्या है? कौन-सा फर्ज पूरा करने के लिए संगम पर बाप को आना पड़ता है?

उत्तरः-

बीमार और दुःखी बच्चों को सुखी बनाना,

माया के फँदे से निकाल घनेरे सुख देना-यह बाप की फर्ज-अदाई है,

जो संगम पर ही बाप पूरी करते हैं।

बाबा कहते-मैं आया हूँ तुम सबका मर्ज मिटाने,

सब पर कृपा करने।

अब पुरूषार्थ कर 21 जन्मों के लिए अपनी ऊंची तकदीर बना लो।

गीतः- भोलेनाथ से निराला.....

ओम् शान्ति।

कल्प वृक्ष ... मनुष्य सृष्टि झाड़ ...

भोलानाथ शिव भगवानुवाच-ब्रह्मा मुख कमल से बाप कहते हैं-यह वैराइटी भिन्न-भिन्न धर्मों का मनुष्य सृष्टि झाड़ है ना।

इस कल्प वृक्ष अथवा सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज बच्चों को समझा रहा हूँ।

गीत में भी इनकी महिमा है।

शिवबाबा का जन्म यहाँ है,

बाप कहते हैं मैं आया हूँ भारत में।

मनुष्य यह नहीं जानते कि शिवबाबा कब पधारे थे?

क्योंकि गीता में कृष्ण का नाम डाल दिया है।

द्वापर की तो बात ही नहीं।

बाप समझाते हैं-बच्चे, 5 हजार वर्ष पहले भी मैने आकर के यह ज्ञान दिया था।

इस झाड़ से सभी को मालूम पड़ जाता है।

झाड़ को अच्छी रीति देखो।

सतयुग में बरोबर देवी-देवताओं का राज्य था, त्रेता में राम-सीता का है।

बाबा आदि-मध्य-अन्त का राज बतलाते हैं।

बच्चे पूछते हैं-बाबा, हम माया के फँदे में कब फँसे?

बाबा कहते हैं द्वापर से।

नम्बरवार फिर दूसरे धर्म आते हैं।

तो हिसाब लगाने से समझ सकते हैं कि इस दुनिया में हम फिर से कब आयेंगे?

शिवबाबा कहते हैं मैं 5 हजार वर्ष बाद आया हूँ, संगम पर अपना फर्ज निभाने।

सभी जो भी मनुष्य मात्र हैं, सभी दुःखी हैं, उनमें भी खास भारतवासी।

ड्रामा अनुसार भारत को ही मैं सुखी बनाता हूँ।

बाप का फर्ज होता है बच्चे बीमार पड़ें तो उनकी दवा दर्मल करना।

यह है बहुत बड़ी बीमारी।

सभी बीमारियों का मूल ये 5 विकार हैं।

बच्चे पूछते हैं यह कब से शुरू हुए? द्वापर से।

रावण की बात समझानी है।

रावण को कोई देखा नहीं जाता।

बुद्धि से समझा जाता है।

बाप को भी बुद्धि से जाना जाता है।

आत्मा मन-बुद्धि सहित है।

आत्मा जानती है कि हमारा बाप परमात्मा है।

दुःख-सुख, लेप-छेप में आत्मा आती है।

जब शरीर है तो आत्मा को दुःख होता है।

ऐसे नहीं कहते कि मुझ परमात्मा को दुःखी मत करो।

बाप भी समझाते हैं कि मेरा भी पार्ट है, कल्प-कल्प संगम पर आकर मैं पार्ट बजाता हूँ।

जिन बच्चों को मैंने सुख में भेजा था, वह दुःखी बन पड़े हैं इसलिए फिर ड्रामा अनुसार मुझे आना पड़ता है।

बाकी कच्छ-मच्छ अवतार यह बातें हैं नहीं।

कहते हैं परशुराम ने कुल्हाड़ा ले क्षत्रियों को मारा।

यह सब हैं दन्त कथायें।

तो अब बाप समझाते हैं मुझे याद करो।

यह है जगत अम्बा और जगत पिता।

मदर और फादर कन्ट्री कहते हैं ना।

भारतवासी याद भी करते हैं-तुम मात-पिता..... तुम्हारी कृपा से सुख घनेरे

तो बरोबर मिल रहे हैं।

फिर जो जितना पुरूषार्थ करेंगे।

जैसे बाइसकोप में जाते हैं, फर्स्टक्लास का रिजर्वेशन कराते हैं ना।

बाप भी कहते हैं चाहे सूर्यवंशी, चाहे चन्द्रवंशी में सीट रिजर्व कराओ, जितना जो पुरूषार्थ करे उतना पद पा सकते हैं।

तो सब मर्ज मिटाने बाप आये हैं।

रावण ने सबको बहुत दुःख दिया है।

कोई भी मनुष्य, मनुष्य की गति-सद्गति कर न सके।

यह है ही कलियुग का अन्त।

गुरू लोग शरीर छोड़ते हैं फिर यहाँ ही पुनर्जन्म लेते हैं।

तो फिर वह औरों की क्या सद्गति करेंगे!

क्या इतने सभी अनेक गुरू मिलकर पतित सृष्टि को पावन बनायेंगे?

गोवर्धन पर्वत कहते हैं ना।

यह मातायें इस आइरन एजड पहाड़ को गोल्डन एजड बनाती हैं।

गोवर्धन की फिर पूजा भी करते हैं, वह है तत्व पूजा।

सन्यासी भी ब्रह्म अथवा तत्व को याद करते हैं।

समझते हैं वही परमात्मा है, ब्रह्म भगवान है।

बाप कहते हैं यह तो भ्रम है।

ब्रह्माण्ड में तो आत्मायें अण्डे मिसल रहती हैं, निराकारी झाड़ भी दिखाया गया है।

हर एक का अपना-अपना सेक्सन है।

इस झाड़ का फाउन्डेशन है-भारत का सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी घराना।

फिर वृद्धि होती है।

मुख्य हैं 4 धर्म।

तो हिसाब करना चाहिए-कौन-कौन से धर्म कब आते हैं?

जैसे गुरूनानक 500 वर्ष पहले आये।

ऐसे तो नहीं सिक्ख लोग कोई 84 जन्म का पार्ट बजाते हैं।

बाप कहते हैं 84 जन्म सिर्फ तुम आलराउन्डर ब्राह्मणों के हैं।

बाबा ने समझाया है कि तुम्हारा ही आलराउन्ड पार्ट है।

ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र तुम बनते हो।

जो पहले देवी-देवता बनते हैं वही सारा चक्र लगाते हैं।

बाप कहते हैं तुमने वेद-शास्त्र तो बहुत सुने।

अभी यह सुनो और जज करो कि शास्त्र राइट हैं या गुरू लोग राइट हैं या जो बाप सुनाते हैं वह राइट है?

बाप को कहते ही हैं ट्रूथ।

मैं सच बतलाता हूँ जिससे सतयुग बन जाता है और द्वापर से लेकर तुम झूठ सुनते आये हो तो उससे नर्क बन पड़ा है।

बाप कहते हैं-मैं तुम्हारा गुलाम हूँ, भक्ति मार्ग में तुम गाते आये हो-मैं गुलाम, मैं गुलाम तेरा..... अभी मैं तुम बच्चों की सेवा में आया हूँ।

बाप को निराकारी, निरहंकारी गाया जाता है।

तो बाप कहते हैं मेरा फर्ज है तुम बच्चों को सदा सुखी बनाना।

गीत में भी है अगम-निगम का भेद खोले..... बाकी डमरू आदि बजाने की कोई बात नहीं है।

यह तो आदि-मध्य-अन्त का सारा समाचार सुनाते हैं।

बाबा कहते हैं तुम सभी बच्चे एक्टर्स हो, मैं इस समय करनकरावनहार हूँ।

मैं इनसे (ब्रह्मा से) स्थापना करवाता हूँ।

बाकी गीता में जो कुछ लिखा हुआ है, वह तो है नहीं।

अभी तो प्रैक्टिकल बात है ना।

बच्चों को यह सहज ज्ञान और सहज योग सिखलाता हूँ, योग लगवाता हूँ।

कहा है ना योग लगवाने वाले, झोली भरने वाले, मर्ज मिटाने वाले.....।

गीता का भी पूरा अर्थ समझाते हैं।

योग सिखलाता हूँ और सिखलवाता भी हूँ।

बच्चे योग सीखकर फिर औरों को सिखलाते हैं ना।

कहते हैं योग से हमारी ज्योत जगाने वाले..... ऐसे गीत भी कोई घर में बैठकर सुने तो सारा ही ज्ञान बुद्धि में चक्र लगायेगा।

बाप की याद से वर्से का भी नशा चढ़ेगा।

सिर्फ परमात्मा वा भगवान कहने से मुख मीठा नहीं होता।

बाबा माना ही वर्सा।

अब तुम बच्चे बाबा से आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुनकर फिर औरों को सुनाते हो, इसे ही शंखध्वनि कहा जाता है।

तुमको कोई पुस्तक आदि हाथ में नहीं है।

बच्चों को सिर्फ धारणा करनी होती है।

तुम हो सच्चे रूहानी ब्राह्मण, रूहानी बाप के बच्चे।

सच्ची गीता से भारत स्वर्ग बनता है।

वह तो सिर्फ कथायें बैठ बनाई हैं।

तुम सब पार्वतियाँ हो, तुमको यह अमरकथा सुना रहा हूँ।

तुम सब द्रोपदियाँ हो।

वहाँ कोई नंगन होते नहीं।

कहते हैं तब बच्चे कैसे पैदा होंगे?

अरे, हैं ही निर्विकारी तो विकार की बात कैसे हो सकती।

तुम समझ नहीं सकेंगे कि योगबल से बच्चे कैसे पैदा होंगे!

तुम आरग्यु करेंगे।

परन्तु यह तो शास्त्रों की बातें हैं ना।

वह है ही सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया।

यह है विकारी दुनिया।

मैं जानता हूँ ड्रामा अनुसार माया फिर तुमको दुःखी करेगी।

मैं कल्प-कल्प अपना फर्ज पालन करने आता हूँ।

जानते हैं कल्प पहले वाले सिकीलधे ही आकर अपना वर्सा लेंगे।

आसार भी दिखाते हैं।

यह वही महाभारत लड़ाई है।

तुम्हें फिर से देवी-देवता अथवा स्वर्ग का मालिक बनने का पुरूषार्थ करना है।

इसमें स्थूल लड़ाई की कोई बात नहीं है।

न असुरों व देवताओं की लड़ाई ही हुई है।

वहाँ तो माया ही नहीं जो लड़ाये।

आधाकल्प न कोई लड़ाई, न कोई भी बीमारी, न दुःख-अशान्ति।

अरे, वहाँ तो सदैव सुख, बहार ही बहार रहती है।

हॉस्पिटल होती नहीं, बाकी स्कूल में पढ़ना तो होता ही है।

अब तुम हर एक यहाँ से वर्सा ले जाते हो।

मनुष्य पढ़ाई से अपने पैर पर खड़े हो जाते हैं।

इस पर कहानी भी है-कोई ने पूछा तुम किसका खाती हो?

तो कहा हम अपनी तकदीर का खाती हैं।

वह होती है हद की तकदीर।

अभी तुम अपनी बेहद की तकदीर बनाते हो।

तुम ऐसी तकदीर बनाते हो जो 21 जन्म फिर अपना ही राज्य भाग्य भोगते हो।

यह है बेहद के सुख का वर्सा, अब तुम बच्चे कान्ट्रास्ट को अच्छी रीति जानते हो, भारत कितना सुखी था।

अब क्या हाल है!

जिन्होंने कल्प पहले राज्य-भाग्य लिया होगा वही अब लेंगे।

ऐसे भी नहीं कि जो ड्रामा में होगा वो मिलेगा, फिर तो भूख मर जायेंगे।

यह ड्रामा का राज पूरा समझना है।

शास्त्रों में कोई ने कितनी आयु, कोई ने कितनी लिख दी है।

अनेकानेक मत-मतान्तर हैं।

कोई फिर कहते हैं हम तो सदा सुखी हैं ही।

अरे, तुम कभी बीमार नहीं होते हो?

वह तो कहते हैं रोग आदि तो शरीर को होता है, आत्मा निर्लेप है।

अरे, चोट आदि लगती है तो दुःख आत्मा को होता है ना-यह बड़ी समझने की बातें हैं।

यह स्कूल है, एक ही टीचर पढ़ाते हैं।

नॉलेज एक ही है।

एम ऑबजेक्ट एक ही है, नर से नारायण बनने की।

जो नापास होंगे वह चन्द्रवंशी में चले जायेंगे।

जब देवतायें थे तो क्षत्रिय नहीं, जब क्षत्रिय थे तो वैश्य नहीं, जब वैश्य थे तो शूद्र नहीं।

यह सब समझने की बातें हैं।

माताओं के लिए भी अति सहज है।

एक ही इम्तहान है।

ऐसे भी मत समझो कि देरी से आने वाले कैसे पढ़ेंगे।

लेकिन अभी तो नये तीखे जा रहे हैं।

प्रैक्टिकल में है।

बाकी माया रावण का कोई रूप नहीं, कहेंगे इनमें काम का भूत है, बाकी रावण का कोई बुत वा शरीर तो है नहीं।

अच्छा, सभी बातों का सैक्रीन है मन्मनाभव।

कहते हैं मुझे याद करो तो इस योग अग्नि से विकर्म विनाश होंगे।

बाप गाइड बनकर आते हैं।

बाबा कहते-बच्चे, मैं तो सम्मुख तुम बच्चों को पढ़ा रहा हूँ।

कल्प-कल्प अपनी फर्ज-अदाई पालन करता हूँ।

पारलौकिक बाप कहते हैं मैं अपना फर्ज बजाने आया हूँ-तुम बच्चों की मदद से।

मदद देंगे तब तो तुम भी पद पायेंगे।

मैं कितना बड़ा बाप हूँ।

कितना बड़ा यज्ञ रचा है।

ब्रह्मा की मुख वंशावली तुम सभी ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ भाई-बहन हो।

जब भाई-बहिन बनें तो स्त्री-पुरूष की दृष्टि बदल जाए।

बाप कहते हैं इस ब्राह्मण कुल को कलंकित नहीं करना, पवित्र रहने की युक्तियाँ हैं।

मनुष्य कहते हैं यह कैसे होगा?

ऐसे हो नहीं सकता, इकट्ठे रहें और आग न लगे!

बाबा कहते हैं बीच में ज्ञान तलवार होने से कभी आग नहीं लग सकती, परन्तु जबकि दोनों मन्मनाभव रहें, शिवबाबा को याद करते रहें, अपने को ब्राह्मण समझें।

मनुष्य तो इन बातों को नहीं समझने कारण हंगामा मचाते हैं, यह गालियाँ भी खानी पड़ती हैं।

कृष्ण को थोड़ेही कोई गाली दे सकते।

कृष्ण ऐसे आ जाए तो विलायत आदि से एकदम एरोप्लेन में भाग आयें, भीड़ मच जाए।

भारत में पता नहीं क्या हो जाए।

अच्छा, आज भोग है - यह है पियरघर और वह है ससुरघर।

संगम पर मुलाकात होती है।

कोई-कोई इनको जादू समझते हैं।

बाबा ने समझाया है कि यह साक्षात्कार क्या है?

भक्ति मार्ग में कैसे साक्षात्कार होते हैं, इनमें संशयबुद्धि नहीं होना है।

यह रस्म-रिवाज है।

शिवबाबा का भण्डारा है तो उनको याद कर भोग लगाना चाहिए।

योग में रहना तो अच्छा ही है।

बाबा की याद रहेगी। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सारः-

1) स्वयं को ब्रह्मा मुख वंशावली समझकर पक्का पवित्र ब्राह्मण बनना है।

कभी अपने इस ब्राह्मण कुल को कलंकित नहीं करना है।

2) बाप समान निराकारी, निरहंकारी बन अपनी फर्ज-अदाई पूरी करनी है।

रूहानी सेवा पर तत्पर रहना है।

वरदानः-

सेवाओं की प्रवृत्ति में रहते

बीच-बीच में एकान्तवासी बनने वाले

अन्तर्मुखी भव

साइलेन्स की शक्ति का प्रयोग करने के लिए अन्तर्मुखी और एकान्तवासी बनने की आवश्यकता है।

कई बच्चे कहते हैं अन्तर्मुखी स्थिति का अनुभव करने वा एकान्तवासी बनने के लिए समय ही नहीं मिलता क्योंकि

सेवा की प्रवृत्ति,

वाणी के शक्ति की प्रवृत्ति

बहुत बढ़ गई है लेकिन

इसके लिए इक्ट्ठा आधा घण्टा वा एक घण्टा निकालने के बजाए

बीच-बीच में थोड़ा समय भी निकालो तो शक्तिशाली स्थिति बन जायेगी।

स्लोगनः-

ब्राह्मण जीवन में युद्ध करने के बजाए मौज मनाओ तो मुश्किल भी सहज हो जायेगा।