Todays Hindi Murli Audio/MP3 & other languages ClickiIt
January.2020
February.2020
March.2020
April.2020
May.2020
June.2020
July.2020
Baba's Murlis - January, 2020
Sun
Mon
Tue
Wed
Thu
Fri
Sat
05 06 07 08 09 10
12 13 14 15 16 17 18
19 20 21 22 23 24 25
26 27 28 29 30 31  

18-01-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“मीठे बच्चे तुम्हारी चलन बहुत रॉयल होनी चाहिए,

तुम देवता बन रहे हो तो लक्ष्य और लक्षण, कथनी और करनी समान बनाओ''

गीत:- तुम्हें पाके हमने जहान पा लिया है...

ओम् शान्ति।

मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना।

अभी तो थोड़े बच्चे हैं फिर अनेकानेक बच्चे हो जायेंगे।

प्रजापिता ब्रह्मा को जानना तो सभी को है ना।

सभी धर्म वाले मानेंगे।

बाबा ने समझाया है वह लौकिक बाप भी हद के ब्रह्मा हैं।

उन्हों का सरनेम से सिजरा बनता है।

यह फिर है बेहद का।

नाम ही है प्रजापिता ब्रह्मा।

वह हद के ब्रह्मा प्रजा रचते हैं, लिमिटेड।

कोई दो चार रचेंगे, कोई नहीं भी रचते।

इनके लिए तो यह कह नहीं सकेंगे कि सन्तान नहीं हैं।

इनकी सन्तान तो सारी दुनिया है।

बेहद के बापदादा दोनों का मीठे-मीठे बच्चों में बहुत रूहानी लव है।

बच्चों को कितना लव से पढ़ाते हैं और क्या से क्या बनाते हैं!

तो बच्चों को कितना खुशी का पारा चढ़ा रहना चाहिए।

खुशी का पारा तब चढ़ेगा जब बाप को निरन्तर याद करते रहेंगे।

बाप कल्प-कल्प बहुत प्यार से बच्चों को पावन बनाने की सेवा करते हैं।

5 तत्वों सहित सबको पावन बनाते हैं।

कौड़ी से हीरे जैसा बनाते हैं।

कितनी बड़ी बेहद की सेवा है।

बाप बच्चों को बहुत प्यार से शिक्षा भी देते रहते हैं क्योंकि बच्चों को सुधारना बाप वा टीचर का ही काम है।

बाप की श्रीमत से ही तुम श्रेष्ठ बनते हो।

यह भी बच्चों को चार्ट में देखना चाहिए कि हम श्रीमत पर चलते हैं वा अपनी मनमत पर?

श्रीमत से ही तुम एक्यूरेट बनेंगे।

जितनी बाप से प्रीत बुद्धि होगी उतनी गुप्त खुशी से भरपूर रहेंगे।

अपनी दिल से पूछना है हमको इतनी कापारी खुशी है?

अव्यभिचारी याद है? कोई तमन्ना तो नहीं है?

एक बाप की याद है?

स्वदर्शन चक्र फिरता रहे तब प्राण तन से निकलें।

एक शिवबाबा दूसरा न कोई। यही अन्तिम मंत्र है।

बाप रूहानी बच्चों से पूछते हैं मीठे बच्चे, जब बापदादा को सामने देखते हो तो बुद्धि में आता है कि हमारा बाबा, बाप भी है, शिक्षक भी है, सतगुरू भी है।

बाप हमको इस पुरानी दुनिया से ले जाते हैं नई दुनिया में।

यह पुरानी दुनिया तो अब खलास हुई कि हुई।

यह तो अब कोई काम की नहीं है।

बाप कल्प-कल्प नई दुनिया बनाते हैं।

हम कल्प-कल्प नर से नारायण बनते हैं।

बच्चों को यह सिमरण कर कितना हुल्लास में रहना चाहिए।

बच्चे, टाइम बहुत थोड़ा है।

आज क्या है कल क्या होगा।

आज और कल का खेल है इसलिए बच्चों को ग़फलत नहीं करनी है।

तुम बच्चों की चलन बड़ी रॉयल होनी चाहिए।

अपने आपको देखना है देवताओं मिसल हमारी चलन है?

देवताई दिमाग रहता है?

जो लक्ष्य है वह बन भी रहे हैं या सिर्फ कथनी ही है?

जो नॉलेज मिली है उसमें मस्त रहना चाहिए।

जितना अन्तर्मुख हो इन बातों पर विचार करते रहेंगे तो बहुत खुशी रहेगी।

यह भी तुम बच्चे जानते हो कि इस दुनिया से उस दुनिया में जाने का बाकी थोड़ा समय है।

जब उस दुनिया को छोड़ दिया फिर पिछाड़ी में क्यों देखें!

बुद्धियोग उस तरफ क्यों जाता?

यह भी बुद्धि से काम लेना है।

जब पार निकल गये फिर बुद्धि क्यों जाती?

बीती हुई बातों का चिन्तन मत करो।

इस पुरानी दुनिया की कोई भी आश न रहे।

अब तो एक ही श्रेष्ठ आश रखनी है - हम तो चले सुखधाम।

कहाँ भी ठहरना नहीं है।

देखना नहीं है।

आगे बढ़ते जाना है।

एक तरफ ही देखते रहो तब ही अचल-अडोल स्थिर अवस्था रहेगी।

समय बहुत नाज़ुक होता जाता है, इस पुरानी दुनिया की हालतें बिगड़ती ही जाती हैं।

तुम्हारा इससे कोई कनेक्शन नहीं।

तुम्हारा कनेक्शन है नई दुनिया से, जो अब स्थापन हो रही है।

बाप ने समझाया है, अभी 84 का चक्र पूरा हुआ।

अब यह दुनिया खत्म होनी ही है, इसकी बहुत सीरियस हालत है।

इस समय सबसे अधिक गुस्सा प्रकृति को आता है इसलिए सब खलास कर देती है।

अभी तुम जानते हो यह प्रकृति अपना गुस्सा जोर से दिखायेगी - सारी पुरानी दुनिया को डुबो देगी।

फ्लड्स होंगे।

आग लगेगी।

मनुष्य भूखों मरेंगे।

अर्थक्वेक में मकान आदि सब गिर पड़ेंगे।

यह सब हालतें सारी दुनिया के लिए आनी हैं।

अनेक प्रकार से मौत होगी।

गैस के ऐसे-ऐसे बाम्ब्स छोड़ेंगे - जिसकी बाँस (बदबू) से ही मनुष्य मर जाएं।

यह सब ड्रामा प्लैन बना हुआ है।

इसमें दोष किसी का भी नहीं है।

विनाश तो होने का ही है इसलिए तुम्हें इस पुरानी दुनिया से बुद्धि का योग हटा देना है।

अब तुम कहेंगे वाह सतगुरू... जिसने हमको यह रास्ता बताया है।

हमारा सच्चा-सच्चा गुरू बाबा एक ही है।

जिसका नाम भक्ति में भी चला आता है।

जिसकी ही वाह-वाह गाई जाती है।

तुम बच्चे कहेंगे - वाह सतगुरू वाह! वाह तकदीर वाह! वाह ड्रामा वाह!

बाप के ज्ञान से हमको सद्गति मिल रही है।

तुम बच्चे निमित्त बने हो विश्व में शान्ति स्थापन करने के।

तो सबको यह खुशखबरी सुनाओ कि अब नया भारत, नई दुनिया जिसमें लक्ष्मी-नारायण का राज्य था वह फिर से स्थापन हो रहा है।

यह दु:खधाम बदल सुखधाम बनना है।

अन्दर में खुशी रहनी चाहिए कि हम सुखधाम के मालिक बन रहे हैं

। वहाँ ऐसे कोई नहीं पूछेगा कि तुम राज़ी-खुशी हो?

तबियत ठीक है?

यह इस दुनिया में पूछा जाता है क्योंकि यह है ही दु:ख की दुनिया।

तुम बच्चों से भी यह कोई पूछ नहीं सकता।

तुम कहेंगे हम ईश्वर के बच्चे, तुम हमसे क्या खुश खैराफत पूछते हो!

हम तो सदैव राज़ी खुशी हैं।

स्वर्ग से भी यहाँ जास्ती खुशी है क्योंकि स्वर्ग स्थापन करने वाला बाप मिला तो सब कुछ मिला।

परवाह थी पार ब्रह्म में रहने वाले बाप की वह मिल गया, बाकी किसकी परवाह!

यह सदैव नशा रहना चाहिए।

बहुत रॉयल, मीठा बनना है।

अपनी तकदीर को ऊंच बनाने का अभी ही समय है।

पदमापदमपति बनने का मुख्य साधन है - कदम-कदम पर खबरदारी से चलना।

अन्तर्मुखी बनना।

यह सदैव ध्यान रहे - “जैसा कर्म हम करेंगे हमको देख और करेंगे।''

देह अहंकार आदि विकारों का बीज तो आधाकल्प से बोया हुआ है।

सारे दुनिया में यह बीज है।

अब उसको मर्ज करना है।

देह-अभिमान का बीज नहीं बोना है।

अभी देही-अभिमानी का बीज बोना है।

तुम्हारी अब है वानप्रस्थ अवस्था।

मोस्ट बिलवेड बाप मिला है उनको ही याद करना है।

बाप के बदले देह को वा देहधारियों को याद करना - यह भी भूल है।

तुम्हें आत्म-अभिमानी बनने की, शीतल बनने की बहुत मेहनत करनी है।

मीठे बच्चे, इस अपनी लाइफ से तुम्हें कभी भी तंग नहीं होना चाहिए।

यह जीवन अमूल्य गाई हुई है, इनकी सम्भाल भी करनी है।

साथ-साथ कमाई भी करनी है।

यहाँ जितने दिन रहेंगे, बाप को याद कर अथाह कमाई जमा करते रहेंगे।

हिसाब-किताब चुक्तू होता रहेगा इसलिए कभी भी तंग नहीं होना है।

बच्चे कहते हैं बाबा।

सतयुग कब आयेगा?

बाबा कहते बच्चे पहले तुम कर्मातीत अवस्था तो बनाओ।

जितना समय मिले पुरुषार्थ करो कर्मातीत बनने का।

बच्चों में नष्टोमोहा बनने की भी बड़ी हिम्मत चाहिए।

बेहद के बाप से पूरा वर्सा लेना है तो नष्टोमोहा बनना पड़े।

अपनी अवस्था को बहुत ऊंच बनाना है।

बाप के बने हो तो बाप की ही अलौकिक सेवा में लग जाना है।

स्वभाव बहुत मीठा चाहिए।

मनुष्य को स्वभाव ही बहुत तंग करता है।

ज्ञान का जो तीसरा नेत्र मिला है, उससे अपनी जांच करते रहो।

जो भी डिफेक्ट हो उनको निकाल प्युअर डाइमन्ड बनना है।

थोड़ा भी डिफेक्ट होगा तो वैल्यु कम हो जायेगी इसलिए मेहनत कर अपने को वैल्युबुल हीरा बनाना है।

तुम बच्चों से बाप अब नई दुनिया के सम्बन्ध का पुरुषार्थ कराते हैं।

मीठे बच्चे, अब बेहद के बाप और बेहद सुख के वर्से से सम्बन्ध रखो।

एक ही बेहद का बाप है जो बन्धन से छुड़ाकर तुम्हें अलौकिक सम्बन्ध में ले जाते हैं।

सदैव यह स्मृति रहे कि हम ईश्वरीय सम्बन्ध के हैं।

यह ईश्वरीय सम्बन्ध ही सदा सुखदाई है।

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे, अति स्नेही बच्चों को मात-पिता बापदादा का दिल व जान, सिक व प्रेम से यादप्यार और गुडमार्निंग।रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य (रिवाइज)

सफलता-मूर्त बनने के लिये मुख्य दो ही विशेषतायें चाहिये - एक प्योरिटी, दूसरी यूनिटी।

अगर प्योरिटी की कमी है तो यूनिटी में भी कमी है।

प्योरिटी सिर्फ ब्रह्मचर्य व्रत को नहीं कहा जाता, संकल्प, स्वभाव, संस्कार में भी प्योरिटी।

मानों एक-दूसरे के प्रति ईर्ष्या या घृणा का संकल्प है तो प्योरिटी नहीं, इमप्योरिटी कहेंगे।

प्योरिटी की परिभाषा में सर्व विकारों का अंश-मात्र तक न होना है।

संकल्प में भी किसी प्रकार की इमप्योरिटी न हो।

आप बच्चे निमित्त बने हुए हो - बहुत ऊंचे कार्य को सम्पन्न करने के लिये।

निमित्त तो महारथी रूप से बने हुए हो ना?

अगर लिस्ट निकालते हैं तो लिस्ट में भी तो सर्विसएबुल तथा सर्विस के निमित्त बनें ब्रह्मा वत्स ही महारथी की लिस्ट में गिने जाते हैं।

महारथी की विशेषता कहाँ तक आयी है?

सो तो हर-एक स्वयं जाने।

महारथी जो लिस्ट में गिना जाता है वो आगे चलकर महारथी होगा अथवा वर्तमान की लिस्ट में महारथी है।

तो इन दोनों बातों के ऊपर अटेन्शन चाहिए।

यूनिटी अर्थात् संस्कार-स्वभाव के मिलन की यूनिटी।

कोई का संस्कार और स्वभाव न भी मिले तो भी कोशिश करके मिलाओ, यह है यूनिटी।

सिर्फ संगठन को यूनिटी नहीं कहेंगे।

सर्विसएबुल निमित्त बनी आत्मायें इन दो बातों के सिवाय बेहद की सर्विस के निमित्त नहीं बन सकती हैं।

हद के हो सकते हैं, बेहद की सर्विस के लिये ये दोनों बातें चाहियें।

सुनाया था ना - रास में ताल मिलाने पर ही वाह-वाह होती है।

तो यहाँ भी ताल मिलाना अर्थात् रास मिलाना है।

इतनी आत्मायें जो नॉलेज वर्णन करती हैं तो सबके मुख से यह निकलता है कि ये एक ही बात कहते हैं, इन सबका एक ही टॉपिक है, एक ही शब्द है, यह सब कहते है ना?

इसी प्रकार सबके स्वभाव और संस्कार एक-दो में मिलें तब कहेंगे रास मिलाना।

इसका भी प्लैन बनाओ।

कोई भी कमज़ोरी को मिटाने के लिये विशेष महाकाली स्वरूप शक्तियों का संगठन चाहिये जो अपने योग-अग्नि के प्रभाव से कमजोर वातावरण को परिवर्तन करें।

अभी तो ड्रामा अनुसार हर-एक चलन रूपी दर्पण में अन्तिम रिजल्ट स्पष्ट होने वाली है।

आगे चल कर महारथी बच्चे अपने नॉलेज की शक्ति द्वारा हर-एक के चेहरे से उन्हों की कर्म-कहानी को स्पष्ट देख सकेंगे।

जैसे मलेच्छ भोजन की बदबू समझ में आ जाती है, वैसे मलेच्छ संकल्प रूपी आहार स्वीकार करने वाली आत्माओं के वायब्रेशन से बुद्धि में स्पष्ट टचिंग होगी, इसका यंत्र है बुद्धि की लाइन क्लियर।

जिसका यह यंत्र पॉवरफुल होगा वह सहज जान सकेंगे।

शक्तियों व देवताओं के जड़ चित्रों में भी यह विशेषता है, जो कोई भी पाप-आत्मा अपना पाप उन्हों के आगे जाकर छिपा नहीं सकती।

आप ही यह वर्णन करते रहते हैं कि हम ऐसे हैं।

तो जड़ यादगार में भी अब अन्तकाल तक यह विशेषता दिखाई देती है।

चैतन्य रूप में शक्तियों की यह विशेषता प्रसिद्ध हुई है तब तो यादगार में भी है।

यह है मास्टर जानी जाननहार की स्टेज अर्थात् नॉलेजफुल की स्टेज।

यह स्टेज भी प्रैक्टिकल में अनुभव होगी, होती जा रही है और होगी भी।

ऐसा संगठन बनाया है?

बनना तो है ही।

ऐसे शमा-स्वरूप संगठन चाहिए, जिन्हों के हर कदम से बाप की प्रत्यक्षता हो।

अच्छा।

वरदान:-

सेवा करते हुए

याद के अनुभवों की रेस करने वाले

सदा लवलीन आत्मा भव

याद में रहते हो लेकिन याद द्वारा जो प्राप्तियां होती हैं, उस प्राप्ति की अनुभूति को आगे बढ़ाते जाओ, इसके लिए अभी विशेष समय और अटेन्शन दो जिससे मालूम पड़े कि यह अनुभवों के सागर में खोई हुई लवलीन आत्मा है।

जैसे पवित्रता, शान्ति के वातावरण की भासना आती है वैसे श्रेष्ठ योगी, लगन में मगन रहने वाले हैं - यह अनुभव हो।

नॉलेज का प्रभाव है लेकिन योग के सिद्धि स्वरूप का प्रभाव हो।

सेवा करते हुए याद के अनुभवों में डूबे हुए रहो, याद की यात्रा के अनुभवों की रेस करो।

स्लोगन:-

सिद्धि को स्वीकार कर लेना अर्थात् भविष्य प्रालब्ध को यहाँ ही समाप्त कर देना।

अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क

जैसे ब्रह्मा बाप ने निश्चय के आधार पर, रुहानी नशे के आधार पर, निश्चित भावी के ज्ञाता बन सेकेण्ड में सब सफल कर दिया। अपने लिए कुछ नहीं रखा। तो स्नेह की निशानी है सब कुछ सफल करो। सफल करने का अर्थ है श्रेष्ठ तरफ लगाना।