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Baba's Murlis - January, 2020
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21-01-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम ज्ञान की बरसात कर हरियाली करने वाले हो,

तुम्हें धारणा करनी और करानी है''

प्रश्नः-

जो बादल बरसते नहीं हैं, उन्हें कौन-सा नाम देंगे?

उत्तर:-

वह हैं सुस्त बादल।

चुस्त वह जो बरसते हैं।

अगर धारणा हो तो बरसने के बिना रह नहीं सकते।

जो धारणा कर दूसरों को नहीं कराते उनका पेट पीठ से लग जाता है, वह गरीब हैं।

प्रजा में चले जाते हैं।

प्रश्नः-

याद की यात्रा में मुख्य मेहनत कौन-सी है?

उत्तर:-

अपने को आत्मा समझ बाप को बिन्दु रूप में याद करना,

बाप जो है जैसा है उसी स्वरूप से यथार्थ याद करना, इसमें ही मेहनत है।

गीत:- जो पिया के साथ है...

ओम् शान्ति।

जैसे सागर के ऊपर में बादल हैं तो बादलों का बाप हुआ सागर।

जो बादल सागर के साथ हैं उनके लिए ही बरसात है।

वह बादल भी पानी भरकर फिर बरसते हैं।

तुम भी सागर के पास आते हो भरने के लिए।

सागर के बच्चे बादल तो हो ही, जो मीठा पानी खींच लेते हो।

अब बादल भी अनेक प्रकार के होते हैं।

कोई खूब जोर से बरसते हैं, बाढ़ कर देते हैं, कोई कम बरसते हैं।

तुम्हारे में भी ऐसे नम्बरवार हैं जो खूब जोर से बरसते हैं, उनका नाम भी गाया जाता है।

जैसे वर्षा बहुत होती है तो मनुष्य खुश होते हैं।

यह भी ऐसे है।

जो अच्छा बरसते हैं, उनकी महिमा होती है, जो नहीं बरसते हैं उनकी दिल जैसे सुस्त हो जाती है, पेट भरेगा नहीं।

पूरी रीति धारणा न होने से पेट जाकर पीठ से लगता है।

फैमन होता है तो मनुष्यों का पेट पीठ से लग जाता है।

यहाँ भी धारणा कर और धारणा नहीं कराते हैं तो पेट जाकर पीठ से लगेगा।

खूब बरसने वाले जाकर राजा-रानी बनेंगे और वह गरीब।

गरीबों का पेट पीठ से रहता है।

तो बच्चों को धारणा बड़ी अच्छी करनी चाहिए।

इसमें भी आत्मा और परमात्मा का ज्ञान कितना सहज है।

तुम अब समझते हो हमारे में आत्मा और परमात्मा दोनों का ज्ञान नहीं था।

तो पेट पीठ से लग गया ना।

मुख्य है ही आत्मा और परमात्मा की बात।

मनुष्य आत्मा को ही नहीं जानते हैं तो परमात्मा को फिर कैसे जान सकेंगे।

कितने बड़े विद्वान, पण्डित आदि हैं, कोई भी आत्मा को नहीं जानते।

अब तुमको मालूम हुआ है कि आत्मा अविनाशी है, उसमें 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट नूंधा हुआ है, जो चलता रहता है।

आत्मा अविनाशी तो पार्ट भी अविनाशी है।

आत्मा कैसा आलराउन्ड पार्ट बजाती है-यह किसको पता नहीं है।

वह तो आत्मा सो परमात्मा कह देते हैं।

तुम बच्चों को आदि से लेकर अन्त तक पूरा ज्ञान है।

वह तो ड्रामा की आयु ही लाखों वर्ष कह देते।

अभी तुमको सारा ज्ञान मिला है।

तुम जानते हो इस बाप के रचे हुए ज्ञान यज्ञ में यह सारी दुनिया स्वाह: होनी है इसलिए बाप कहते हैं देह सहित जो कुछ भी है यह सब भूल जाओ, अपने को आत्मा समझो।

बाप को और शान्तिधाम, स्वीट होम को याद करो।

यह तो है ही दु:खधाम।

तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार समझा सकते हैं।

अभी तुम ज्ञान से तो भरपूर हो।

बाकी सारी मेहनत है याद में।

जन्म-जन्मान्तर का देह-अभिमान मिटाकर देही-अभिमानी बनें, इसमें बड़ी मेहनत है।

कहना तो बड़ा सहज है परन्तु अपने को आत्मा समझें और बाप को भी बिन्दु रूप में याद करें, इसमें मेहनत है।

बाप कहते हैं मैं जो हूँ, जैसा हूँ, ऐसा कोई मुश्किल याद कर सकते हैं।

जैसे बाप वैसे बच्चे होते हैं ना।

अपने को जाना तो बाप को भी जान जायेंगे।

तुम जानते हो पढ़ाने वाला तो एक ही बाप है, पढ़ने वाले बहुत हैं।

बाप राजधानी कैसे स्थापन करते हैं, वह तुम बच्चे ही जानते हो।

बाकी यह शास्त्र आदि सब हैं भक्ति मार्ग की सामग्री।

समझाने के लिए हमको कहना पड़ता है।

बाकी इसमें घृणा की कोई बात नहीं है।

शास्त्रों में भी ब्रह्मा का दिन और रात कहते हैं परन्तु समझते नहीं।

रात और दिन आधा-आधा होता है।

सीढ़ी पर कितना सहज समझाया जाता है।

मनुष्य समझते हैं कि भगवान तो बड़ा समर्थ है वह जो चाहे सो कर सकते हैं।

लेकिन बाबा कहते मैं भी ड्रामा के बंधन में बांधा हुआ हूँ।

भारत पर तो कितनी आफतें आती रहती हैं फिर मैं घड़ी-घड़ी आता हूँ क्या?

मेरे पार्ट की लिमिट है।

जब पूरा दु:ख होता जाता है तब मैं अपने समय पर आता हूँ।

एक सेकण्ड का भी फ़र्क नहीं पड़ता है।

ड्रामा में हर एक का एक्यूरेट पार्ट नूँधा हुआ है।

यह है हाइएस्ट बाप की रीइनकारनेशन।

फिर नम्बरवार सब आते हैं, कम ताकत वाले।

तुम बच्चों को अभी बाप से नॉलेज मिली है जो तुम विश्व के मालिक बनते हो।

तुम्हारे में फुल फोर्स की ताकत आती है।

पुरूषार्थ कर तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बनते हो।

औरों का तो पार्ट ही नहीं है।

मुख्य है ड्रामा, जिसकी नॉलेज तुमको अभी मिलती है।

बाकी तो सब हैं मटेरियल क्योंकि वह सब इन आखों से देखा जाता है।

वन्डर ऑफ दी वर्ल्ड तो बाबा है, जो फिर रचते भी स्वर्ग हैं, जिसको हेविन, पैराडाइज कहते हैं।

उनकी कितनी महिमा है, बाप और बाप के रचना की बड़ी महिमा है।

ऊंच ते ऊंच है भगवान।

ऊंच ते ऊंच स्वर्ग की स्थापना बाप कैसे करते हैं, यह कोई भी कुछ भी नहीं जानते हैं।

तुम मीठे-मीठे बच्चे भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जानते हो और उस अनुसार ही पद पाते हो, जिसने पुरूषार्थ किया वह ड्रामा अनुसार ही करते हैं।

पुरूषार्थ बिगर तो कुछ मिल न सके।

कर्म बिगर एक सेकण्ड भी रह नहीं सकते।

वह हठयोगी प्राणायाम चढ़ा लेते हैं, जैसे जड़ बन जाते हैं, अन्दर पड़े रहते हैं, ऊपर मिट्टी जम जाती है, मिट्टी के ऊपर पानी पड़ने से घास जम जाती है।

परन्तु इससे कुछ फायदा नहीं।

कितना दिन ऐसे बैठे रहेंगे?

कर्म तो जरूर करना ही है।

कर्म सन्यासी कोई बन न सके।

हाँ, सिर्फ खाना आदि नहीं बनाते हैं इसलिए उनको कर्म-सन्यासी कह देते हैं।

यह भी उन्हों का ड्रामा में पार्ट है।

यह निवृत्ति मार्ग वाले भी नहीं होते तो भारत की क्या हालत हो जाती?

भारत नम्बरवन प्योर था।

बाप पहले-पहले प्योरिटी स्थापन करते हैं, जो फिर आधाकल्प चलती है।

बरोबर सतयुग में एक धर्म, एक राज्य था।

फिर डीटी राज्य अब फिर से स्थापन हो रहा है।

ऐसे अच्छे-अच्छे स्लोगन बनाकर मनुष्यों को सुजाग करना चाहिए।

फिर से डीटी राज्य-भाग्य आकर लो।

अभी तुम कितना अच्छी रीति समझते हो।

कृष्ण को श्याम-सुन्दर क्यों कहते हैं-यह भी अभी तुम जानते हो।

आजकल तो बहुत ही ऐसे-ऐसे नाम रख देते हैं।

कृष्ण से कॉम्पीटीशन करते हैं।

तुम बच्चे जानते हो पतित राजायें कैसे पावन राजाओं के आगे जाकर माथा टेकते हैं परन्तु जानते थोड़ेही हैं।

तुम बच्चे जानते हो जो पूज्य थे वही फिर पुजारी बन जाते हैं।

अभी तुम्हारी बुद्धि में सारा चक्र है।

यह भी याद रहे तो अवस्था बड़ी अच्छी रहे।

परन्तु माया सिमरण करने नहीं देती है, भुला देती है।

सदैव हर्षितमुख अवस्था रहे तो तुमको देवता कहा जाए।

लक्ष्मी-नारायण का चित्र देख कितना खुश होते हैं।

राधे-कृष्ण अथवा राम आदि को देख इतना खुश नहीं होते क्योंकि श्रीकृष्ण के लिए शास्त्रों में हंगामें की बातें लिख दी हैं।

यह बाबा बनता भी श्री नारायण है ना।

बाबा तो इन लक्ष्मी-नारायण के चित्र को देख खुश होते हैं।

बच्चों को भी ऐसे समझना चाहिए, बाकी कितना समय इस पुराने शरीर में होंगे फिर जाकर प्रिन्स बनेंगे। यह एम ऑबजेक्ट है ना।

यह भी सिर्फ तुम जानते हो।

खुशी में कितना गद्गद् होना चाहिए।

जितना पढ़ेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे, पढ़ेंगे नहीं तो क्या पद मिलेगा?

कहाँ विश्व के महाराजा-महारानी, कहाँ साहूकार, प्रजा में नौकर-चाकर। सब्जेक्ट तो एक ही है।

सिर्फ मन्मनाभव, मध्याजी भव, अल्फ और बे, याद और ज्ञान।

इनको कितनी खुशी हुई-अल्फ को अल्लाह मिला, बाकी सब दे दिया।

कितनी बड़ी लॉटरी मिल गई।

बाकी क्या चाहिए!

तो क्यों न बच्चों के अन्दर में खुशी रहनी चाहिए इसलिए बाबा कहते हैं ऐसा ट्रांसलाइट का चित्र सबके लिए बनवायें जो बच्चे देखकर खुश होते रहें।

शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा हमको यह वर्सा दे रहे हैं।

मनुष्य तो कुछ नहीं जानते हैं।

बिल्कुल ही तुच्छ बुद्धि हैं।

अभी तुम तुच्छ बुद्धि से स्वच्छ बुद्धि बन रहे हो।

सब कुछ जान गये हो, और कुछ पढ़ने की दरकार नहीं।

इस पढ़ाई से तुमको विश्व की बादशाही मिलती है, इसलिए बाप को नॉलेजफुल कहते हैं।

मनुष्य फिर समझते हैं हर एक की दिल को जानते हैं, परन्तु बाप तो नॉलेज देते हैं।

टीचर समझ सकते हैं फलाना पढ़ते हैं, बाकी सारा दिन यह थोड़ेही बैठ देखेंगे कि इनकी बुद्धि में क्या चलता है।

यह तो वन्डरफुल नॉलेज है।

बाप को ज्ञान का सागर, सुख-शान्ति का सागर कहा जाता है।

तुम भी अभी मास्टर ज्ञान सागर बनते हो।

फिर यह टाइटिल उड़ जायेगा।

फिर सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण बनेंगे।

यह है मनुष्य का ऊंच मर्तबा।

इस समय यह है ईश्वरीय मर्तबा।

कितनी समझने और समझाने की बातें हैं।

लक्ष्मी-नारायण का चित्र देख बड़ी खुशी होनी चाहिए।

हम अभी विश्व के मालिक बनेंगे।

नॉलेज से ही सब गुण आते हैं।

अपना एम ऑब्जेक्ट देखने से ही रिफ्रेशमेंट आ जाती है, इसलिए बाबा कहते हैं यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र तो हरेक के पास होना चाहिए।

यह चित्र दिल में प्यार बढ़ाता है।

दिल में आता है-बस, यह मृत्युलोक में लास्ट जन्म है।

फिर हम अमरलोक में यह जाकर बनूँगा, ततत्वम्।

ऐसे नहीं कि आत्मा सो परमात्मा।

नहीं, यह ज्ञान सारा बुद्धि में बैठा हुआ हो।

जब भी किसको समझाते हो, बोलो हम कभी भी कोई से भीख नहीं मांगते।

प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे तो बहुत हैं।

हम अपने ही तन-मन-धन से सेवा करते हैं।

ब्राह्मण अपनी कमाई से ही यज्ञ को चला रहे हैं।

शूद्रों के पैसे नहीं लगा सकते।

ढेर बच्चे हैं वह जानते हैं जितना हम तन-मन-धन से सर्विस करेंगे, सेरन्डर होंगे उतना पद पायेंगे।

जानते हैं बाबा ने बीज बोया है तो यह लक्ष्मी-नारायण बनते हैं।

पैसे यहाँ काम में तो आने नहीं हैं, क्यों न इस कार्य में लगा दें।

फिर क्या सरेन्डर होने वाले भूख मरते हैं क्या?

बहुत सम्भाल होती रहती है।

बाबा की कितनी सम्भाल होती रहती है।

यह तो शिवबाबा का रथ है ना।

सारे वर्ल्ड को हेविन बनाने वाला है।

यह हसीन मुसाफिर है।

परमपिता परमात्मा तो आकर सबको हसीन बनाते हैं, तुम सांवरे से गोरा हसीन बनते हो ना।

कितना सलोना साजन है, आकर सबको गोरा बना देते हैं। उन पर तो कुर्बान जाना चाहिए। याद करते रहना चाहिए।

जैसे आत्मा को देख नहीं सकते, जान सकते हैं, वैसे परमात्मा को भी जान सकते हैं।

देखने में तो आत्मा-परमात्मा दोनों एक जैसे बिन्दु हैं।

बाकी तो सारी नॉलेज है।

यह बड़ी समझ की बातें हैं।

बच्चों की बुद्धि में यह नोट रहनी चाहिए।

बुद्धि में नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार धारणा होती है।

डॉक्टर लोगों को भी दवाइयाँ याद रहती हैं ना।

ऐसे नहीं कि उस समय बैठ किताब देखेंगे।

डॉक्टरी की भी प्वाइंट्स होती हैं, बैरिस्टरी की भी प्वाइंट्स होती हैं।

तुम्हारे पास भी प्वाइंट्स हैं, टॉपिक्स हैं, जिस पर समझाते हैं।

कोई प्वाइंट किसको फायदा कर लेती है, कोई को किस प्वाइंट से तीर लग जाता है।

प्वाइंट तो बहुत ढेर की ढेर हैं।

जो अच्छी रीति धारण करेंगे वह अच्छी रीति सर्विस कर सकेंगे।

आधा-कल्प से महारोगी पेशेन्ट हैं।

आत्मा पतित बनी है, उनके लिए एक अविनाशी सर्जन दवाई देते हैं।

वह सदैव सर्जन ही रहते हैं, कभी बीमार होते नहीं।

और तो सब बीमार पड़ जाते हैं।

अविनाशी सर्जन एक ही बार आकर मन्मनाभव का इन्जेक्शन लगाते हैं।

कितना सहज है, चित्र को पॉकेट में रख दो सदैव।

बाबा नारायण का पुजारी था तो लक्ष्मी का चित्र निकाल अकेला नारायण का चित्र रख दिया।

अभी पता पड़ता है जिसकी हम पूजा करते थे, वह अब बन रहे हैं।

लक्ष्मी को विदाई दे दी तो यह पक्का है, हम लक्ष्मी नहीं बनूँगा।

लक्ष्मी बैठ पैर दबाये, यह अच्छा नहीं लगता था।

उनको देखकर पुरूष लोग स्त्री से पैर दबवाते हैं।

वहाँ थोड़ेही लक्ष्मी ऐसे पैर दबायेगी।

यह रस्म-रिवाज वहाँ होती नहीं।

यह रसम रावण राज्य की है।

इस चित्र में सारी नॉलेज है।

ऊपर में त्रिमूर्ति भी है, इस नॉलेज को सारा दिन सिमरण कर बड़ा वन्डर लगता है।

भारत अब स्वर्ग बन रहा है।

कितनी अच्छी समझानी है, पता नहीं, मनुष्यों की बुद्धि में क्यों नहीं बैठता है?

आग बड़े जोर से लगेगी, भंभोर को आग लगनी है।

रावण राज्य तो जरूर खलास होना चहिए।

यज्ञ में भी पवित्र ब्राह्मण चाहिए।

यह बड़ा भारी यज्ञ है - सारे विश्व में प्योरिटी लाने का।

वो ब्राह्मण भी भल ब्रह्मा की औलाद कहलाते हैं, परन्तु वह तो कुख वंशावली हैं।

ब्रह्मा की सन्तान तो पवित्र मुख वंशावली थे ना।

तो उन्हों को यह समझाना चाहिए।

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) स्वच्छ बुद्धि बन वन्डरफुल ज्ञान को धारण कर बाप समान मास्टर ज्ञान सागर बनना है।

नॉलेज से सर्व गुण स्वयं में धारण करने हैं।

2) जैसे बाबा ने तन-मन-धन सर्विस में लगाया, सरेन्डर हुए ऐसे बाप समान अपना सब कुछ ईश्वरीय सेवा में सफल करना है।

सदा रिफ्रेश रहने के लिए एम ऑब्जेक्ट का चित्र साथ में रखना है।

वरदान:-

पास विद आनर बनने के लिए

पुरूषार्थ की गति तीव्र और ब्रेक पावरफुल रखने वाले

यथार्थ योगी भव

वर्तमान समय के प्रमाण पुरूषार्थ की गति तीव्र और ब्रेक पावरफुल चाहिए तब अन्त में पास विद आनर बन सकेंगे क्योंकि उस समय की परिस्थितियां बुद्धि में अनेक संकल्प लाने वाली होंगी, उस समय सब संकल्पों से परे एक संकल्प में स्थित होने का अभ्यास चाहिए।

जिस समय विस्तार में बिखरी हुई बुद्धि हो उस समय स्टॉप करने की प्रैक्टिस चाहिए।

स्टॉप करना और होना।

जितना समय चाहें उतना समय बुद्धि को एक संकल्प में स्थित कर लें-यही है यथार्थ योग।

स्लोगन:-

आप ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट हो इसलिए अलमस्त नहीं हो सकते।

सर्वेन्ट माना सदा सेवा पर उपस्थित।

अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क

अव्यक्त स्थिति में रहने के लिए बाप की श्रीमत है बच्चे, “सोचो कम, कर्तव्य अधिक करो।'' सर्व उलझनों को समाप्त कर उज्जवल बनो। पुरानी बातों अथवा पुराने संस्कारों रूपी अस्थियों को सम्पूर्ण स्थिति के सागर में समा दो। पुरानी बातें ऐसे भूल जाएं जैसे पुराने जन्म की बातें भूल जाती हैं।