26-01-20 प्रात:मुरली मधुबन
अव्यक्त-बापदादा रिवाइज: 13-11-85
"संकल्प, संस्कार, सम्बन्ध बोल और कर्म में नवीनता लाओ"
आज नई दुनिया के नई रचना के रचयिता बाप अपने नई दुनिया के अधिकारी बच्चों को अर्थात् नई रचना को देख रहे हैं।
नई रचना सदा ही प्यारी लगती है।
दुनिया के हिसाब से पुराने युग में नया वर्ष मनाते हैं।
लेकिन आप नई रचना के नये युग की, नई जीवन की अनुभूति कर रहे हो।
सब नया हो गया।
पुराना समाप्त हो नया जन्म नई जीवन प्रारम्भ हो गई।
जन्म नया हुआ तो जन्म से जीवन स्वत: ही बदलती है।
जीवन बदलना अर्थात् संकल्प, संस्कार, सम्बन्ध सब बदल गया अर्थात् नया हो गया।
धर्म नया, कर्म नया।
वह सिर्फ वर्ष नया कहते हैं।
लेकिन आप सबके लिए सब नया हो गया।
आज के दिन अमृतवेले से नये वर्ष की मुबारक तो दी लेकिन सिर्फ मुख से मुबारक दी वा मन से?
नवीनता का संकल्प लिया?
इन विशेष तीन बातों की नवीनता का संकल्प किया?
संकल्प, संस्कार और सम्बन्ध। संस्कार और संकल्प नया अर्थात् श्रेष्ठ बन गया।
नया जन्म, नई जीवन होते हुए भी अब तक पुराने जन्म वा जीवन के संकल्प, संस्कार वा सम्बन्ध रह तो नहीं गये हैं?
अगर इन तीनों बातों में से कोई भी बात में अंश मात्र पुरानापन रहा हुआ है तो यह अंश नई जीवन का नये युग का, नये सम्बन्ध का, नये संस्कार का सुख वा सर्व प्राप्ति से वंचित कर देगा।
कई बच्चे ऐसे बापदादा के आगे अपने मन की बातें रुह-रुहान में कहते रहते हैं।
बाहर से नहीं कहते।
बाहर से तो कोई भी पूछता है - कैसे हो?
तो सब यही कहते हैं कि बहुत अच्छा क्योंकि जानते हैं बाहर-यामी आत्मायें अन्दर को क्या जानें।
लेकिन बाप से रुह-रुहान में छिपा नहीं सकते।
अपने मन की बातों में यह जरूर कहते ब्राह्मण तो बन गये, शूद्र पन से किनारा कर लिया लेकिन जो ब्राह्मण जीवन की महानता, विशेषता - सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों का वा अतीन्द्रिय सुख का, फरिश्तेपन के डबल लाइट जीवन का, ऐसा विशेष अनुभव जितना होना चाहिए उतना नहीं होता।
जो वर्णन इस श्रेष्ठ युग के श्रेष्ठ जीवन का है, ऐसा अनुभव, ऐसी स्थिति बहुत थोड़ा समय होती।
इसका कारण क्या?
जब ब्राह्मण बने तो ब्राह्मण जीवन के अधिकार का अनुभव नहीं होता, क्यों?
है राजा का बच्चा लेकिन संस्कार भिखारीपन के हो तो उनको क्या कहेंगे?
राजकुमार कहेंगे?
यहाँ भी नया जन्म, नई ब्राह्मण जीवन और फिर भी पुराने संकल्प वा संस्कार इमर्ज हों वा कर्म में हों तो क्या उसे ब्रह्माकुमार कहेंगे
? वा आधा शूद्र कुमार और आधा ब्रह्माकुमार। ड्रामा में एक खेल दिखाते हो ना आधा सफेद आधा काला।
संगमयुग इसको तो नहीं समझा है।
संगमयुग अर्थात् नया युग।
नया युग तो सब नया।
बापदादा आज सबकी आवाज सुन रहे थे - नये वर्ष की मुबारक हो।
कार्डस भी भेजते पत्र भी लिखते लेकिन कहना और करना दोनों एक हैं?
मुबारक तो दी, बहुत अच्छा किया।
बापदादा भी मुबारक देते हैं।
बापदादा भी कहते सबके मुख के बोल में अविनाशी भव का वरदान।
आप लोग कहते हो ना मुख में गुलाब, बापदादा कहते मुख के बोल में अविनाशी वरदान हो।
आज से सिर्फ एक शब्द याद रखना - “नया''।
जो भी संकल्प करो, बोल बोलो, कर्म करो यही चेक करो याद रखो कि नया है?
यही पोतामेल चौपड़ा, रजिस्टर आज से शुरू करो।
दीपमाला में चौपड़े पर क्या करते हैं?
स्वास्तिका निकालते हैं ना। गणेश।
और चारों ही युग में बिन्दी जरूर लगाते हैं।
क्यों लगाते हैं? किसी भी कार्य को प्रारम्भ करते समय स्वास्तिका वा गणेश नम: जरूर कहते हैं।
यह किसकी यादगार है?
स्वास्तिका को भी गणेश क्यों कहते?
स्वास्तिका स्वस्थिति में स्थित होने का और पूरी रचना की नॉलेज का सूचक है।
गणेश अर्थात् नॉलेजफुल।
स्वास्तिका के एक चित्र में पूरी नॉलेज समाई हुई है।
नॉलेजफुल की स्मृति का यादगार गणेश वा स्वास्तिका दिखाते हैं।
इसका अर्थ क्या हुआ?
कोई भी कार्य की सफलता का आधार है - नॉलेजफुल अर्थात् समझदार, ज्ञान स्वरूप बनना।
ज्ञान स्वरूप समझदार बन गये तो हर कर्म श्रेष्ठ और सफल होगा ना।
वो तो सिर्फ कागज़ पर यादगार की निशानी लगा देते हैं लेकिन आप ब्राह्मण आत्मायें स्वयं नॉलेजफुल बन हर संकल्प करेंगी तो संकल्प और सफलता दोनों साथ-साथ अनुभव करेंगे।
तो आज से यह दृढ़ संकल्प के रंग द्वारा अपने जीवन के चौपड़े पर हर संकल्प संस्कार नया ही होना है।
होगा, यह भी नहीं।
होना ही है।
स्वस्थिति में स्थित हो यह श्रीगणेश अर्थात् आरम्भ करो।
स्वयं श्रीगणेश बन करके आरम्भ करो।
ऐसे नहीं सोचो यह तो होता ही रहता है।
संकल्प बहुत बार करते, लेकिन संकल्प दृढ़ हो।
जैसे फाउन्डेशन में पक्का सीमेन्ट आदि डालकर मजबूत किया जाता है ना!
अगर रेत का फाउण्डेशन बना दें तो कितना समय चलेगा?
तो जिस समय संकल्प करते हो उस समय कहते, करके देखेंगे, जितना हो सकेगा करेंगे। दूसरे भी तो ऐसे ही करते हैं।
यह रेत मिला देते हो, इसीलिए फाउन्डेशन पक्का नहीं होता।
दूसरों को देखना सहज लगता है।
अपने को देखने में मेहनत लगती है
। अगर दूसरों को देखने चाहते हो, आदत से मजबूर हो तो ब्रह्मा बाप को देखो।
वह भी तो दूसरा हुआ ना, इसलिए बापदादा ने दीपावली का पोतामेल देखा।
पोतामेल में विशेष कारण, ब्राह्मण बनते भी ब्राह्मण जीवन की अनुभूति न होना।
जितना होना चाहिए उतना नहीं होता।
इसका विशेष कारण है - परदृष्टि, परचिंतन, परपंच में जाना।
परिस्थितियों के वर्णन और मनन में ज्यादा रहते हैं, इसलिए स्वदर्शन चक्रधारी बनो।
स्व से पर खत्म हो जायेगा।
जैसे आज नये वर्ष की सबने मिलकर मुबारक दी, ऐसे हर दिन नया दिन, नई जीवन, नया संकल्प, नये संस्कार, स्वत: ही अनुभव करेंगे।
और मन से हर घड़ी बाप के प्रति, ब्राह्मण परिवार के प्रति बधाई के शुभ उमंग स्वत: ही उत्पन्न होते रहेंगे।
सबकी दृष्टि में मुबारक, बधाई, ग्रीटिंग्स की लहर होगी।
तो ऐसे आज के मुबारक शब्द को अविनाशी बनाओ। समझा।
लोग पोतामेल रखते हैं।
बाप ने पोतामेल देखा।
बापदादा को बच्चों पर रहम आता है कि सारा मिलते भी अधूरा क्यों लेते?
नाम नया ब्रह्माकुमार वा कुमारी और काम मिक्स क्यों?
दाता के बच्चे हो, विधाता के बच्चे हो, वरदाता के बच्चे हो।
तो नये वर्ष में क्या याद रखेंगे?
सब नया करना है अर्थात् ब्राह्मण जीवन की मर्यादा का सब नया।
नया का अर्थ कोई मिक्सचर नहीं करना।
चतुर भी बहुत बन गये हैं ना।
बाप को भी पढ़ाते हैं।
कई बच्चे कहते हैं ना - बाबा ने कहा था ना नया करना है, तो यह नया हम कर रहे हैं।
लेकिन ब्राह्मण जीवन की मर्यादा प्रमाण नया हो।
मर्यादा की लकीर तो ब्राह्मण जीवन, ब्राह्मण जन्म से बापदादा ने दे दी है।
समझा नया वर्ष कैसे मनाना है।
सुनाया ना - 18 अध्याय शुरू हो रहा है।
गोल्डन जुबली के पहले विश्वविद्यालय की गोल्डन जुबली है।
ऐसे नहीं समझना कि सिर्फ 50 वर्ष वालों की गोल्डन जुबली है।
लेकिन यह ईश्वरीय कार्य की गोल्डन जुबली है।
स्थापना के कार्य में जो भी सहयोगी हो चाहे दो वर्ष के हों, चाहे 50 वर्ष के हों लेकिन दो वर्ष वाले भी अपने को ब्रह्माकुमार कहते हैं ना या और कोई नाम कहते।
तो यह ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मणों के रचना की गोल्डन जुबली है, इसमें सब ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं।
गोल्डन जुबली तक अपने में गोल्डन एजड अर्थात् सतोप्रधान संकल्प संस्कार इमर्ज करने हैं।
ऐसी गोल्डन जुबली मनानी है।
यह तो निमित्त मात्र रसम रिवाज की रीति से मनाते हो लेकिन वास्तविक गोल्डन जुबली गोल्डन एजड बनने की जुबली है।
कार्य सफल हुआ अर्थात् कार्य अर्थ निमित्त आत्मायें सफलता स्वरूप बनें।
अभी भी समय पड़ा है।
इन 3 मास के अन्दर दुनिया की स्टेज के आगे निराली गोल्डन जुबली मनाके दिखाओ।
दुनिया वाले सम्मान देते हैं और यहाँ समान की स्टेज की प्रत्यक्षता करनी है।
सम्मान देने के लिए कुछ भी करते हो यह तो निमित्त मात्र है।
वास्तविकता दुनिया के आगे दिखानी है।
हम सब एक हैं, एक के हैं, एकरस स्थिति वाले हैं।
एक की लगन में मगन रह एक का नाम प्रत्यक्ष करने वाले हैं, यह न्यारा और प्यारा गोल्डन स्थति का झण्डा लहराओ।
गोल्डन दुनिया के नजारे आपके नयनों द्वारा बोल और कर्म द्वारा स्पष्ट दिखाई दे।
ऐसी गोल्डन जुबली मनाना।
अच्छा-
ऐसे सदा अविनाशी मुबारक के पात्र श्रेष्ठ बच्चों को, अपने हर संकल्प और कर्म द्वारा नये संसार का साक्षात्कार कराने वाले बच्चों को, अपनी गोल्डन एजड स्थिति द्वारा गोल्डन दुनिया आई कि आई ऐसा शुभ आशा का दीपक विश्व की आत्माओं के अन्दर जगाने वाले, सदा जगमगाते सितारों को, सफलता के दीपकों को दृढ़ संकल्प द्वारा नये जीवन का दर्शन कराने वाले, दर्शनीय मूर्त बच्चों को बापदादा का यादप्यार, अविनाशी बधाई, अविनाशी वरदान के साथ नमस्ते।
यात्रा द्वारा सेवा तो सभी ने की।
जो भी सेवा की उस सेवा का प्रत्यक्ष फल भी अनुभव किया।
सेवा की विशेष खुशी अनुभव की है ना।
पदयात्रा तो की, सभी ने आपको पदयात्री के रूप में देखा।
अभी रूहानी यात्री के रूप में देखें।
सेवा के रूप में तो देखा लेकिन अभी इतनी न्यारी यात्रा कराने वाले अलौकिक यात्री हैं, यह अनुभव हो।
जैसे इस सेवा में लगन से सफलता को पाया ना।
ऐसे अभी रूहानी यात्रा में सफल होना है।
मेहनत करते हैं, बहुत अच्छी सेवा करते हैं, सुनाते बहुत अच्छा हैं इन्हों की जीवन बहुत अच्छी है, यह तो हुआ।
लेकिन अभी जीवन बनाने लग जाएं, ऐसा अनुभव करें कि इसी जीवन के बिना और कोई जीवन ही नहीं है।
तो रूहानी यात्रा का लक्ष्य रख रूहानी यात्रा का अनुभव कराओ।
समझा क्या करना है।
चलते-फिरते ऐसे ही देखें कि यह साधारण नहीं है।
यह रूहानी यात्री हैं तो क्या करना है!
स्वयं भी यात्रा में रहो और दूसरों को भी यात्रा का अनुभव कराओ।
पद-यात्रा का अनुभव कराया, अभी फरिश्ते पन का अनुभव कराओ।
अनुभव करें कि यह इस धरनी के रहने वाले नहीं हैं।
यह फरिश्ते हैं।
इन्हों के पांव इस धरती पर नहीं रहते।
दिन प्रतिदिन उड़ती कला द्वारा औरों को उड़ाना।
अभी उड़ाने का समय है।
चलाने का समय नहीं है।
चलने में समय लगता और उड़ने में समय नहीं लगता।
अपनी उड़ती कला द्वारा औरों को भी उड़ाओ। समझा।
ऐसे दृष्टि से स्मृति से सभी को सम्पन्न बनाते जाओ।
वह समझें कि हमको कुछ मिला है।
भरपूर हुए हैं। खाली थे लेकिन भरपूर हो गये।
जहाँ प्राप्ति होती है वहाँ सेकण्ड में न्योछावर होते हैं।
आप लोगों को प्राप्ति हुई तब तो छोड़ा ना।
अच्छा लगा अनुभव किया तब छोड़ा ना।
ऐसे तो नहीं छोड़ा।
ऐसे औरों को प्राप्ति का अनुभव कराओ।
समझा! बाकी अच्छा है! जो भी सेवा में दिन बिताये, वह अपने लिए भी औरों के लिए भी श्रेष्ठ बनायें।
उमंग-उत्साह अच्छा रहा! रिजल्ट ठीक रही ना।
रूहानी यात्रा सदा रहेगी तो सफलता भी सदा रहेगी।
ऐसे नहीं पदयात्रा पूरी की तो सेवा पूरी हुई।
फिर जैसे थे वैसे। नहीं।
सदा सेवा के क्षेत्र में सेवा के बिना ब्राह्मण नहीं रह सकते।
सिर्फ सेवा का पार्ट चेन्ज हुआ।
सेवा तो अन्त तक करनी है।
ऐसे सेवाधारी हो ना या तीन मास दो मास के सेवाधारी हो!
सदा के सेवाधारी सदा ही उमंग-उत्साह रहे। अच्छा।
ड्रामा में जो भी सेवा का पार्ट मिलता है उसमें विशेषता भरी हुई है।
हिम्मत से मदद का अनुभव किया। अच्छा।
स्वयं द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करने का श्रेष्ठ संकल्प रहा क्योंकि जब बाप को प्रत्यक्ष करेंगे तब इस पुरानी दुनिया की समाप्ति होगी, अपना राज्य आयेगा।
बाप को प्रत्यक्ष करना अर्थात् अपना राज्य लाना।
अपना राज्य लाना है यह उमंग-उत्साह सदा रहता है ना!
जैसे विशेष प्रोग्राम में उमंग-उत्साह रहा, ऐसे सदा इस संकल्प का उमंग-उत्साह रहे। समझा।