गीत:- आखिर वह दिन आया आज..........
जब कोई गीत बजता है तो बच्चों को अपने अन्दर उसका अर्थ निकालना चाहिए।
सेकण्ड में निकल सकता है।
यह बेहद के ड्रामा की बहुत बड़ी घड़ी है ना।
भक्ति मार्ग में मनुष्य पुकारते भी हैं।
जैसे कोर्ट में केस होता है तो कहते हैं कब सुनवाई हो, कब बुलावा हो तो हमारा केस पूरा हो।
तो बच्चों का भी केस है, कौन-सा केस?
रावण ने तुमको बहुत दु:खी बनाया है।
तुम्हारा केस दाखिल होता है बड़े कोर्ट में।
मनुष्य पुकारते रहते हैं-बाबा आओ, आकरके हमको दु:खों से छुड़ाओ।
एक दिन सुनवाई तो जरूर होती है।
बाप सुनते भी हैं, ड्रामा अनुसार आते भी हैं बिल्कुल पूरे टाइम पर।
उसमें एक सेकण्ड का भी फ़र्क नहीं पड़ सकता है।
बेहद की घड़ी कितनी एक्यूरेट चलती है।
यहाँ तुम्हारे पास यह छोटी घड़ियाँ भी एक्यूरेट नहीं चलती हैं।
यज्ञ का हर कार्य एक्यूरेट होना चाहिए। घड़ी भी एक्यूरेट होनी चाहिए।
बाप तो बड़ा एक्यूरेट है।
सुनवाई बड़ी एक्यूरेट होती है।
कल्प-कल्प, कल्प के संगम पर एक्यूरेट टाइम पर आते हैं।
तो बच्चों की अब सुनवाई हुई, बाबा आया हुआ है।
अभी तुम सबको समझाते हो।
आगे तुम भी नहीं समझते थे कि दु:ख कौन देता है?
अभी बाप ने समझाया है रावण राज्य शुरू होता है द्वापर से।
तुम बच्चों को मालूम पड़ गया है-बाबा कल्प-कल्प संगमयुग पर आते हैं।
यह है बेहद की रात।
शिवबाबा बेहद की रात में आते हैं, कृष्ण की बात नहीं, जब घोर अन्धियारे में अज्ञान नींद में सोये रहते हैं तब ज्ञान सूर्य बाप आते हैं, बच्चों को दिन में ले जाने।
कहते हैं मुझे याद करो क्योंकि पतित से पावन बनना है।
बाप ही पतित-पावन है।
वह जब आये तब तो सुनवाई हो।
अब तुम्हारी सुनवाई हुई है।
बाप कहते हैं मैं आया हूँ पतितों को पावन बनाने।
पावन बनने का तुमको कितना सहज उपाय बताता हूँ।
आजकल देखो साइंस का कितना जोर है।
एटॉमिक बॉम्ब्स आदि का कितना जोर से आवाज़ होता है।
तुम बच्चे साइलेन्स के बल से इस साइंस पर जीत पाते हो।
साइलेन्स को योग भी कहा जाता है।
आत्मा बाप को याद करती है-बाबा आप आओ तो हम शान्तिधाम में जाकर निवास करें।
तो तुम बच्चे इस योगबल से, साइलेन्स के बल से साइंस पर जीत पाते हो।
शान्ति का बल प्राप्त करते हो।
साइंस से ही यह सारा विनाश होने का है।
साइलेन्स से तुम बच्चे विजय पाते हो।
बाहुबल वाले कभी भी विश्व पर जीत पा नहीं सकते।
यह प्वाइंट्स भी तुमको प्रदर्शनी में लिखनी चाहिए।
देहली में बहुत सर्विस हो सकती है क्योंकि देहली है सबका कैपीटल।
तुम्हारी भी देहली ही कैपीटल होगी।
देहली को ही परिस्तान कहा जाता है।
पाण्डवों के किले तो नहीं हैं।
किला तब बांधा जाता है जब दुश्मन चढ़ाई करते हैं।
तुमको तो किले आदि की दरकार रहती नहीं।
तुम जानते हो हम साइलेन्स के बल से अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं, उन्हों की है आर्टीफिशल साइलेन्स।
तुम्हारी है रीयल साइलेन्स।
ज्ञान का बल, शान्ति का बल कहा जाता है।
नॉलेज है पढ़ाई।
पढ़ाई से ही बल मिलता है।
पुलिस सुपरिन्टेन्डेंट बनते हैं, कितना बल रहता है।
वह सब हैं जिस्मानी बातें दु:ख देने वाली।
तुम्हारी हर बात रूहानी है।
तुम्हारे मुख से जो भी बोल निकलते हैं वह एक-एक बोल ऐसे फर्स्टक्लास मीठे हों जो सुनने वाला खुश हो जाए।
जैसे बाप दु:ख हर्ता सुख कर्ता है, ऐसे तुम बच्चों को भी सबको सुख देना है।
कुटुम्ब परिवार को भी दु:ख आदि न हो।
कायदे अनुसार सबसे चलना है।
बड़ों के साथ प्यार से चलना है।
मुख से अक्षर ऐसे मीठे फर्स्ट क्लास निकलें जो सब खुश हो जाएं।
बोलो, शिवबाबा कहते हैं मन्मनाभव।
ऊंच ते ऊंच मैं हूँ।
मुझे याद करने से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे।
बहुत प्यार से बात करनी चाहिए।
समझो कोई बड़ा भाई हो बोलो दादा जी शिवबाबा कहते हैं - मुझे याद करो।
शिवबाबा जिसको रूद्र भी कहते हैं, वही ज्ञान यज्ञ रचते हैं। कृष्ण ज्ञान यज्ञ अक्षर नहीं सुनेंगे। रूद्र ज्ञान यज्ञ कहते हैं तो रूद्र शिवबाबा ने यह यज्ञ रचा है।
राजाई प्राप्त करने के लिए ज्ञान और योग सिखला रहे हैं।
बाप कहते हैं भगवानुवाच मामेकम् याद करो क्योंकि अभी सबकी अन्त घड़ी है, वानप्रस्थ अवस्था है।
सबको वापिस जाना है।
मरने समय मनुष्य को कहते हैं ना ईश्वर को याद करो।
यहाँ ईश्वर स्वयं कहते हैं मौत सामने खड़ा है, इनसे कोई बच नहीं सकते।
अन्त में ही बाप आकर के कहते हैं कि बच्चे मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप भस्म हो जाएं, इनको याद की अग्नि कहा जाता है।
बाप गैरन्टी करते हैं कि इससे तुम्हारे पाप दग्ध होंगे।
विकर्म विनाश होने का, पावन बनने का और कोई उपाय नहीं है।
पापों का बोझा सिर पर चढ़ते-चढ़ते, खाद पड़ते-पड़ते सोना 9 कैरेट का हो गया है।
9 कैरेट के बाद मुलम्मा कहा जाता है।
अभी फिर 24 कैरेट कैसे बनें, आत्मा प्योर कैसे बनें?
प्योर आत्मा को जेवर भी प्योर मिलेगा।
कोई मित्र-सम्बन्धी आदि हैं तो उनसे बहुत नम्रता से, प्रेम भाव से मुस्कराते हुए बात करनी चाहिए।
समझाना चाहिए यह तो वही महाभारत लड़ाई है।
यह रूद्र ज्ञान यज्ञ भी है।
बाप द्वारा हमको सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज मिल रही है।
और कहाँ भी यह नॉलेज मिल न सके।
मैं आपको सत्य कहता हूँ यह भक्ति आदि तो जन्म-जन्मान्तर की है, अब ज्ञान शुरू होता है।
भक्ति है रात, ज्ञान है दिन।
सतयुग में भक्ति होती नहीं।
ऐसे-ऐसे युक्ति से बात करनी चाहिए।
जब कोई मौका मिले, जब तीर मारना होता है तो समय और मौका देखा जाता है।
ज्ञान देने की भी बड़ी युक्ति चाहिए।
बाप युक्तियाँ तो सबके लिए बताते रहते हैं।
पवित्रता तो बड़ी अच्छी है, यह लक्ष्मी-नारायण हमारे बड़े पूज्य हैं ना।
पूज्य पावन फिर पुजारी पतित बनें।
पावन की पतित बैठ पूजा करें-यह तो शोभता नहीं है।
कई तो पतित से दूर भागते हैं।
वल्लभाचारी कभी पाँव को छूने नहीं देते।
समझते हैं यह छी-छी मनुष्य हैं।
मन्दिरों में भी हमेशा ब्राह्मण को ही मूर्ति छूने का एलाउ रहता है।
शूद्र मनुष्य अन्दर जाकर छू न सकें।
वहाँ ब्राह्मण लोग ही उनको स्नान आदि कराते हैं, और कोई को जाने नहीं देते।
फर्क तो है ना।
अब वे तो हैं कुख वंशावली ब्राह्मण, तुम हो मुख वंशावली सच्चे ब्राह्मण।
तुम उन ब्राह्मणों को अच्छा समझा सकते हो कि ब्राह्मण दो प्रकार के होते हैं-एक तो हैं प्रजापिता ब्रह्मा के मुख वंशावली, दूसरे हैं कुख वंशावली।
ब्रह्मा के मुख वंशावली ब्राह्मण हैं ऊंच ते ऊंच चोटी।
यज्ञ रचते हैं तो भी ब्राह्मणों को मुकरर किया जाता है।
यह फिर है ज्ञान यज्ञ।
ब्राह्मणों को ज्ञान मिलता है जो फिर देवता बनते हैं।
वर्ण भी समझाये गये हैं।
जो सर्विसएबुल बच्चे होंगे उन्हें सर्विस का सदैव शौक रहेगा।
कहाँ प्रदर्शनी होगी तो झट सर्विस पर भागेंगे-हम जाकर ऐसी-ऐसी प्वाइंट्स समझायें।
प्रदर्शनी में तो प्रजा बनने का विहंग मार्ग है, आपेही ढेर के ढेर आ जाते हैं।
तो समझाने वाले भी अच्छे होने चाहिए।
अगर कोई ने पूरा नहीं समझाया तो कहेंगे बी.के. के पास यही ज्ञान है!
डिस-सर्विस हो जाती है।
प्रदर्शनी में एक ऐसा चुस्त हो जो समझाने वाले गाइड्स को देखता रहे।
कोई बड़ा आदमी है तो उनको समझाने वाला भी ऐसा अच्छा देना चाहिए।
कम समझाने वालों को हटा देना चाहिए।
सुपरवाइज़ करने पर एक अच्छा होना चाहिए।
तुमको तो महात्माओं को भी बुलाना है।
तुम सिर्फ बतलाते हो कि बाबा ऐसे कहते हैं, वह ऊंच ते ऊंच भगवान है, वही रचयिता बाप है।
बाकी सब हैं उनकी रचना।
वर्सा बाप से मिलेगा, भाई, भाई को वर्सा क्या देगा!
कोई भी सुखधाम का वर्सा दे न सके।
वर्सा देते ही हैं बाप।
सर्व का सद्गति करने वाला एक ही बाप है, उनको याद करना है।
बाप खुद आकर गोल्डन एज़ बनाते हैं।
ब्रह्मा तन से स्वर्ग स्थापन करते हैं।
शिव जयन्ती मनाते भी हैं, परन्तु वह क्या करते हैं, यह सब मनुष्य भूल गये हैं।
शिवबाबा ही आकर राजयोग सिखलाए वर्सा देते हैं।
5000 वर्ष पहले भारत स्वर्ग था, लाखों वर्ष की तो बात ही नहीं है।
तिथि-तारीख सब है, इनको कोई खण्डन कर न सके।
नई दुनिया और पुरानी दुनिया आधा-आधा चाहिए।
वह सतयुग की आयु लाखों वर्ष कह देते तो कोई हिसाब हो नहीं सकता।
स्वास्तिका में भी पूरे 4 भाग हैं।
1250 वर्ष हर युग में बांटे हुए हैं।
हिसाब किया जाता है ना।
वो लोग हिसाब तो कुछ भी जानते नहीं इसलिए कौड़ी तुल्य कहा जाता है।
अब बाप हीरे तुल्य बनाते हैं।
सब पतित हैं, भगवान को याद करते हैं।
उन्हों को भगवान आकर ज्ञान से गुल-गुल बनाते हैं।
तुम बच्चों को ज्ञान रत्नों से सजाते रहते हैं।
फिर देखो तुम क्या बनते हो, तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट क्या है?
भारत कितना सिरताज था, सब भूल गये हैं।
मुसलमानों आदि ने भी कितना सोमनाथ मन्दिर से लूटकर मस्जिदों आदि में हीरे आदि जाकर लगाये हैं।
अभी उनकी तो कोई वैल्यू भी कर नहीं सकते।
इतनी बड़ी-बड़ी मणियाँ राजाओं के ताज में रहती थी।
कोई तो करोड़ की, कोई 5 करोड़ की।
आजकल तो सब इमीटेशन निकल पड़ी है।
इस दुनिया में सब है आर्टीफिशल पाई का सुख।
बाकी है दु:ख इसलिए सन्यासी भी कहते हैं काग विष्टा समान सुख है इसलिए वह घरबार छोड़ते हैं परन्तु अब तो वह भी तमोप्रधान हो पड़े हैं।
शहर में अन्दर घुस पड़े हैं।
परन्तु अब किसको सुनायें, राजा-रानी तो हैं नहीं।
कोई भी मानेगा नहीं।
कहेंगे सबकी अपनी-अपनी मत है, जो चाहे सो करे।
संकल्प की सृष्टि है।
अब तुम बच्चों को बाप गुप्त रीति पुरूषार्थ कराते रहते हैं।
तुम कितना सुख भोगते हो।
दूसरे धर्म भी पिछाड़ी में जब वृद्धि को पाते हैं तब लड़ाइयाँ आदि खिटपिट होती है।
पौना समय तो सुख में रहते हो इसलिए बाप कहते हैं तुम्हारा देवी-देवता धर्म बहुत सुख देने वाला है।
हम तुमको विश्व का मालिक बनाते हैं।
और धर्म स्थापक कोई राजाई नहीं स्थापन करते हैं।
वह सद्गति नहीं करते।
आते हैं सिर्फ अपना धर्म स्थापन करने।
वह भी जब अन्त में तमोप्रधान बन जाते हैं तो फिर बाप को आना पड़ता है सतोप्रधान बनाने।
तुम्हारे पास सैकड़ों मनुष्य आते हैं परन्तु कुछ भी समझते नहीं।
बाबा को लिखते हैं फलाना बहुत अच्छा समझ रहा है, बहुत अच्छा है।
बाबा कहते हैं कुछ भी समझा नहीं है।
अगर समझ जाए बाबा आया हुआ है, विश्व का मालिक बना रहे हैं, बस उसी समय मस्ती चढ़ जाए। फौरन टिकेट लेकर यह भागे।
परन्तु ब्राह्मणी की चिट्ठी तो जरूर लानी पड़े-बाप से मिलने लिए।
बाप को पहचान जाएं तो मिलने बिगर रह न सके, एकदम नशा चढ़ जाए।
जिन्हें नशा चढ़ा हुआ होगा उन्हें अन्दर में बहुत खुशी रहेगी।
उनकी बुद्धि मित्र-सम्बन्धियों में भटकेगी नहीं। परन्तु बहुतों की भटकती रहती है।
गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र बनना है और बाप की याद में रहना है।
है बहुत सहज।
जितना हो सके बाप को याद करते रहो।
जैसे ऑफिस से छुटटी लेते हैं, वैसे धन्धे से छुटटी पाकर एक-दो दिन याद की यात्रा में बैठ जाओ।
घड़ी-घड़ी याद में बैठने के लिए अच्छा सारा दिन व्रत रख लेता हूँ-बाप को याद करने का।
कितना जमा हो जायेगा।
विकर्म भी विनाश होंगे।
बाप की याद से ही सतोप्रधान बनना है।
सारा दिन पूरा योग तो किसका लग भी न सके।
माया विघ्न जरूर डालती है फिर भी पुरूषार्थ करते-करते विजय पा लेंगे।
बस, आज का सारा दिन बगीचे में बैठ बाप को याद करता हूँ।
खाने पर भी बस याद में बैठ जाता हूँ।
यह है मेहनत।
हमको पावन जरूर बनना है।
मेहनत करनी है, औरों को भी रास्ता बताना है।
बैज तो बहुत अच्छी चीज़ है।
रास्ते में आपस में भी बात करते रहेंगे तो बहुत आकर सुनेंगे।
बाप कहते हैं मुझे याद करो, बस मैसेज मिल गया तो हम रेसपॉन्सिबिलिटी से छूट गये।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।