बापदादा सभी बच्चों के मस्तक पर भाग्य की रेखायें देख रहे हैं।
हर एक बच्चे के मस्तक पर भाग्य की रेखायें लगी हुई है लेकिन किस-किस बच्चों की स्पष्ट रेखायें हैं और कोई-कोई बच्चों की स्पष्ट रेखायें नहीं है।
जब से भगवान बाप के बने, भगवान अर्थात् भाग्य विधाता।
भगवान अर्थात् दाता विधाता इसलिए बच्चे बनने से भाग्य का अधिकार अर्थात् वर्सा सभी बच्चों को अवश्य प्राप्त होता है, परन्तु उस मिले हए वर्से को जीवन में धारण करना, सेवा में लगाकर श्रेष्ठ बनाना, स्पष्ट बनाना इसमें नम्बरवार हैं क्योंकि यह भाग्य जितना स्वयं प्रति वा सेवा प्रति कार्य में लगाते हो उतना बढ़ता है अर्थात् रेखा स्पष्ट होती है।
बाप एक है और देता भी सभी को एक जैसा है।
बाप नम्बरवार भाग्य नहीं बांटता लेकिन भाग्य बनाने वाले अर्थात् भाग्यवान बनने वाले इतने बड़े भाग्य को प्राप्त करने में यथाशक्ति होने के कारण नम्बरवार हो जाते हैं इसलिए कोई की रेखा स्पष्ट है, कोई की स्पष्ट नहीं है।
स्पष्ट रेखा वाले बच्चे स्वयं भी हर कर्म में अपने को भाग्यवान अनुभव करते।
साथ-साथ उन्हों के चेहरे और चलन से भाग्य औरों को भी अनुभव होता है।
और भी ऐसे भाग्यवान बच्चों को देख सोचते और कहते कि यह आत्मायें बड़ी भाग्यवान हैं।
इनका भाग्य सदा श्रेष्ठ है।
अपने आप से पूछो हर कर्म में अपने को भगवान के बच्चे भाग्यवान अनुभव करते हो?
भाग्य आपका वर्सा है।
वर्सा कभी न प्राप्त हो, यह हो नहीं सकता।
भाग्य को वर्से के रूप में अनुभव करते हो?
वा मेहनत करनी पड़ती है?
वर्सा सहज प्राप्त होता है। मेहनत नहीं।
लौकिक में भी बाप के खजाने पर, वर्से पर बच्चे का स्वत: अधिकार होता है।
और नशा रहता है कि बाप का वर्सा मिला हुआ है।
ऐसे भाग्य का नशा है वा चढ़ता और उतरता रहता है?
अविनाशी वर्सा है तो कितना नशा होना चाहिए।
एक जन्म तो क्या अनेक जन्मों का भाग्य जन्मसिद्ध अधिकार है।
ऐसी फलक से वर्णन करते हो।
सदा भाग्य की झलक प्रत्यक्ष रूप में औरों को दिखाई दे।
फलक और झलक दोनों हैं?
मर्ज रूप में हैं वा इमर्ज रूप हैं?
भाग्यवान आत्माओं की निशानी - भाग्यवान आत्मा सदा चाहे गोदी में पलती, चाहे गलीचों पर चलती, झूलों में झूलती, मिट्टी में पांव नहीं रखती, कभी पांव मैले नहीं होते।
वो लोग गलीचों पर चलते और आप बुद्धि रूपी पांव से सदा फर्श के बजाए फरिश्तों की दुनिया में रहते।
इस पुरानी मिट्टी की दुनिया में बुद्धि रूपी पांव नहीं रखते अर्थात् बुद्धि मैली नहीं करते।
भाग्यवान मिट्टी के खिलौने से नहीं खेलते।
सदा रत्नों से खेलते हैं।
भाग्यवान सदा सम्पन्न रहते इसलिए इच्छा मात्रम् अविद्या, इसी स्थिति में रहते हैं।
भाग्यवान आत्मा सदा महादानी पुण्य आत्मा बन औरों का भी भाग्य बनाते रहते हैं।
भाग्यवान आत्मा सदा ताज, तख्त और तिलकधारी रहती है।
भाग्यवान आत्मा जितना ही भाग्य अधिकारी उतना ही त्यागधारी आत्मा होती है।
भाग्य की निशानी त्याग है।
त्याग भाग्य को स्पष्ट करता है।
भाग्यवान आत्मा, सदा भगवान समान निराकारी, निरंहकारी और निर्विकारी इन तीनों विशेषताओं से भरपूर होती है।
यह सब निशानियाँ अपने में अनुभव करते हो?
भाग्यवान की लिस्ट में तो हो ही ना।
लेकिन यथाशक्ति हो वा सर्वशक्तिवान हो?
मास्टर तो हो ना?
बाप की महिमा में कभी यथा शक्तिवान वा नम्बरवार नहीं कहा जाता सदा सर्वशक्तिवान कहते हैं।
मास्टर सर्वशक्तिवान फिर यथाशक्ति क्यों?
सदा शक्तिवान। यथा शब्द को बदल सदा शक्तिवान बनो और बनाओ। समझा।
कौन से जोन आये हैं?
सभी वरदान भूमि में पहुँच वरदानों से झोली भर रहे हो ना।
वरदान भूमि के एक-एक चरित्र में, कर्म में विशेष वरदान भरे हुए हैं।
यज्ञ भूमि में आकर चाहे सब्जी काटते हो, अनाज साफ करते हो, इसमें भी यज्ञ सेवा का वरदान भरा हुआ है।
जैसे यात्रा पर जाते हैं, मन्दिर की सफाई करना भी एक बड़ा पुण्य समझते हैं।
इस महातीर्थ वा वरदान भूमि के हर कर्म में हर कदम में वरदान ही वरदान भरे हुए हैं।
कितनी झोली भरी है?
पूरी झोली भर करके जायेंगे या यथाशक्ति?
जो भी जहाँ से भी आये हो, मेला मनाने आये हो।
मधुबन में एक संकल्प भी वा एक सेकण्ड भी व्यर्थ न जाए।
समर्थ बनने का यह अभ्यास अपने स्थान पर भी सहयोग देगा।
पढ़ाई और परिवार - पढ़ाई का भी लाभ लेना और परिवार का भी अनुभव विशेष करना।
समझा!
बापदादा सभी जोन वालों को सदा वरदानी, महादानी बनने की मुबारक दे रहे हैं।
लोगों का उत्सव समाप्त हुआ लेकिन आपका उत्साह भरा उत्सव सदा है।
सदा बड़ा दिन है इसलिए हर दिन मुबारक ही मुबारक है।
महाराष्ट्र सदा महान बन महान बनाने के वरदानों से झोली भरने वाले हैं।
कर्नाटक वाले सदा अपने हर्षित मुख द्वारा स्वयं भी सदा हर्षित और दूसरों को भी सदा हर्षित बनाते, झोली भरते रहना।
यू.पी. वाले क्या करेंगे?
सदा शीतल नदियों के समान शीतलता का वरदान दे शीतला देवियाँ बन शीतल देवी बनाओ।
शीतलता से सदा सर्व के सभी प्रकार के दु:ख दूर करो।
ऐसे वरदानों से झोली भरो। अच्छा!
सदा श्रेष्ठ भाग्य के स्पष्ट रेखाधारी, सदा बाप समान सर्व शक्तियाँ सम्पन्न, सम्पूर्ण स्थिति में स्थित रहने वाले, सदा ईश्वरीय झलक और भाग्य की फलक में रहने वाले, हर कर्म द्वारा भाग्यवान बन भाग्य का वर्सा दिलाने वाले ऐसे मास्टर भगवान श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
बड़ी दादियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
आदि से अब तक जो हर कार्य में साथ चलते आ रहे हैं, उन्हों की यह विशेषता है - जैसे ब्रह्मा बाप हर कदम में अनुभवी बन अनुभव की अथॉरिटी से विश्व के राज्य की अथॉरिटी लेते हैं ऐसे ही आप सभी की बहुतकाल से हर प्रकार के अनुभव की अथॉरिटी के कारण बहुतकाल के राज्य की अथार्टी में भी साथी बनने वाले हो।
जिन्होंने आदि से संकल्प किया - जहाँ बिठायेंगे, जैसे चलायेंगे वैसे चलते हुए साथ चलेंगे।
तो साथ चलने का पहला वायदा बापदादा को निभाना ही पड़ेगा।
ब्रह्मा बाप के भी साथ रहने वाले हो।
राज्य में भी साथ रहेंगे, भक्ति में भी साथ रहेंगे।
जितना अभी बुद्धि से सदा का साथ रहता है उसी हिसाब से राज्य में भी सदा साथ हैं।
अगर अभी थोड़ा-सा दूर तो कोई जन्म में दूर के हो जायेंगे, कोई जन्म में नजदीक के।
लेकिन जो सदा ही बुद्धि से साथ में रहते हैं वह वहाँ भी साथ रहेंगे।
साकार में तो आप सब 14 वर्ष साथ रहे, संगमयुग के 14 वर्ष कितने वर्षों के समान हो गये।
संगमयुग का इतना समय साकार रूप में साथ रहे हो, यह भी बहुत बड़ा भाग्य है।
फिर बुद्धि से भी साथ हो, घर में भी साथ होंगे, राज्य में भी साथ होंगे।
भले तख्त पर थोड़े बैठते हैं लेकिन रॉयल फैमिली के नजदीक सम्बन्ध में, सारे दिन की दिनचर्या में साथ रहने में पार्ट जरूर बजाते हैं।
तो यह आदि से साथ रहने का वायदा सारा कल्प ही चलता रहेगा।
भक्ति में भी काफी समय साथ रहेंगे। यह पीछे के जन्म में थोड़ा-सा कोई दूर, कोई नजदीक लेकिन फिर भी साथ सारा कल्प किसी न किसी रूप से रहते हैं।
ऐसा वायदा है ना!
इसलिए आप लोगों को सभी किस नज़र से देखते हैं!
बाप के रूप हो।
इसको ही भक्ति में उन्होंने कहा है - यह सब भगवान के रूप हैं!
क्योंकि बाप समान बनते हो ना!
आपके रूप से बाप दिखाई देता है इसलिए बाप के रूप कह देते हैं।
जो बाप के साथ रहने वाले हैं उनकी यही विशेषता होगी, उनको देखकर बाप याद आयेगा, उनको नहीं याद करेंगे लेकिन बाप को याद करेंगे।
उन्हों से बाप के चरित्र, बाप की दृष्टि, बाप के कर्म, सब अनुभव होंगे।
वह स्वयं नहीं दिखाई देंगे।
लेकिन उन द्वारा बाप के कर्म वा दृष्टि अनुभव होगी।
यही विशेषता है अनन्य, समान बच्चे की।
सभी ऐसे हो ना!
आप में तो नहीं फंसते हैं ना!
यह तो नहीं कहते फलानी बहुत अच्छी है, नहीं बाप ने इन्हें अच्छा बनाया है।
बाप की दृष्टि, बाप की पालना इन्हों से मिलती है।
बाप के महावाक्य इन्हों से सुनते हैं।
यह विशेषता है।
इसको कहा जाता है - प्यारा भी लेकिन न्यारा भी।
प्यारा भले सबका हो लेकिन फंसाने वाला नहीं हो।
बाप के बदले आपको याद न करें।
बाप की शक्ति लेने के लिए बाप के महावाक्य सुनने के लिए आपको याद करें।
इसको कहते हैं - ‘प्यारा भी और न्यारा भी'।
ऐसा ग्रुप है ना!
कोई तो विशेषता होगी ना जो साकार की पालना ली है - विशेषता तो होगी ना।
आप लोगों के पास आयेंगे तो क्या पूछेंगे - बाप क्या करता था, कैसे चलता था... यही याद आयेगा ना!
ऐसी विशेष आत्मायें हो।
इसको कहते हैं - डिवाइन युनिटी।
डिवाइन की स्मृति दिलाय डिवाइन बनाते, इसलिए डिवाइन युनिटी।
50 वर्ष अविनाशी रहे हो तो अविनाशी भव की मुबारक हो।
कई आये कई चक्र लगाने गये।
आप लोग तो अनादि अविनाशी हो गये।
अनादि में भी साथ, आदि में भी साथ।
वतन में साथ रहेंगे तो सेवा कैसे करेंगे!
आप तो थोड़ा-सा आराम भी करते हो, बाप को आराम की भी आवश्यकता नहीं।
बापदादा इससे भी छूट गये।
अव्यक्त को आराम की आवश्यकता नहीं।
व्यक्त को आवश्यकता है।
इसमें आप समान बनायें तो काम खत्म हो जाए।
फिर भी देखो जब कोई सेवा का चांस बनता है तो बाप समान अथक बन जाते हो।
फिर थकते नहीं हो। अच्छा!
दादी जी से:-
बचपन से बाप ने ताजधारी बनाया है।
आते ही सेवा की जिम्मेवारी का ताज पहनाया और समय प्रति समय जो भी पार्ट चला - चाहे बेगरी पार्ट चला, चाहे मौजों का पार्ट चला, सभी पार्ट में जिम्मेवारी का ताज ड्रामा अनुसार धारण करती आई हो इसलिए अव्यक्त पार्ट में भी ताजधारी निमित्त बन गई।
तो यह विशेष आदि से पार्ट है।
सदा जिम्मेवारी निभाने वाली।
जैसे बाप जिम्मेवार है तो जिम्मेवारी के ताजधारी बनने का विशेष पार्ट है इसलिए अन्त में भी दृष्टि द्वारा ताज, तिलक सब देकर गये इसलिए आपका जो यादगार है ना उसमें ताज जरूर होगा।
जैसे कृष्ण को बचपन से ताज दिखाते हैं तो यादगार में भी बचपन से ताजधारी रूप से पूजते हैं।
और सब साथी हैं लेकिन आप ताजधारी हो।
साथ तो सभी निभाते लेकिन समान रूप में साथ निभाना इसमें अन्तर है।
पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
कुमारों से:-
कुमार अर्थात निर्बन्धन।
सबसे बड़ा बन्धन मन के व्यर्थ संकल्पों का है।
इसमें भी निर्बन्धन। कभी-कभी यह बन्धन बांध तो नहीं लेता है?
क्योंकि संकल्प शक्ति हर कदम में कमाई का आधार है।
याद की यात्रा किस आधार से करते हो?
संकल्प शक्ति के आधार से बाबा के पास पहुँचते हो ना!
अशरीरी बन जाते हो।
तो मन की शक्ति विशेष है।
व्यर्थ संकल्प मन की शक्ति को कमजोर कर देते हैं इसलिए इस बन्धन से मुक्त।
कुमार अर्थात् सदा तीव्र पुरूषार्थी क्योंकि जो निर्बन्धन होगा उसकी गति स्वत: तीव्र होगी।
बोझ वाला धीमी गति से चलेगा।
हल्का सदा तीव्रगति से चलेगा।
अभी समय के प्रमाण पुरुषार्थ का समय गया।
अब तीव्र पुरुषार्थी बन मंजिल पर पहुँ-चना है।
2. कुमारों ने पुराने व्यर्थ के खाते को समाप्त कर लिया है?
नया खाता समर्थ खाता है। पुराना खाता व्यर्थ है।
तो पुराना खाता खत्म हुआ।
वैसे भी देखो व्यवहार में कभी पुराना खाता रखा नहीं जाता है।
पुराने को समाप्त कर आगे खाते को बढ़ाते रहते हैं।
तो यहाँ भी पुराने खाते को समाप्त कर सदा नये ते नया हर कदम में समर्थ हो।
हर संकल्प समर्थ हो।
जैसा बाप वैसे बच्चे।
बाप समर्थ है तो बच्चे भी फालो फादर कर समर्थ बन जाते हैं।
माताओं से:-
मातायें किस एक गुण में विशेष अनुभवी हैं?
वह विशेष गुण कौन-सा? (त्याग है, सहनशीलता है) और भी कोई गुण है?
माताओं का स्वरूप विशेष रहमदिल का होता है।
मातायें रहमदिल होती हैं।
आप बेहद की माताओं को बेहद की आत्माओं के प्रति रहम आता है?
जब रहम आता है तो क्या करती हैं?
जो रहमदिल होते हैं वह सेवा के सिवाए रह नहीं सकते हैं।
जब रहमदिल बनते हो तो अनेक आत्माओं का कल्याण हो ही जाता है इसलिए माताओं को कल्याणी भी कहते हैं।
कल्याणी अर्थात् कल्याण करने वाली।
जैसे बाप को विश्व कल्याणकारी कहते हैं वैसे माताओं को विशेष बाप समान कल्याणी का टाइटिल मिला हुआ है।
ऐसे उमंग आता है!
क्या से क्या बन गये!
स्व के परिवर्तन से औरों के लिए भी उमंग-उत्साह आता है।
हद की और बेहद की सेवा का बैलेन्स है?
उस सेवा से तो हिसाब चुक्तू होता है, वह हद की सेवा है।
आप तो बेहद की सेवाधारी हो।
जितना सेवा का उमंग उत्साह स्वयं में होगा उतना सफलता होगी।
2.
मातायें अपने त्याग और तपस्या द्वारा विश्व का कल्याण करने के निमित्त बनी हुई हैं।
माताओं में त्याग और तपस्या की विशेषता है।
इन दो विशेषताओं से सेवा के निमित्त बन औरों को भी बाप का बनाना, इसी में बिजी रहती हो?
संगमयुगी ब्राह्मणों का काम ही है सेवा करना।
ब्राह्मण सेवा के बिना रह नहीं सकते।
जैसे नामधारी ब्राह्मण कथा जरूर करेंगे।
तो यहाँ भी कथा करना अर्थात् सेवा करना।
तो जगतमाता बन जगत के लिए सोचो।
बेहद के बच्चों के लिए सोचो।
सिर्फ घर में नहीं बैठ जाओ, बेहद के सेवाधारी बन सदा आगे बढ़ते चलो।
हद में 63 जन्म हो गये, अभी बेहद सेवा में आगे बढ़ो।
विदाई के समय
सभी बच्चों को यादप्यार
सभी तरफ के स्नही सहयोगी बच्चों को बापदादा का विशेष स्नेह सम्पन्न यादप्यार स्वीकार हो।
आज बापदादा सभी बच्चों को सदा निर्विघ्न बन, विघ्न विनाशक बन विश्व को निर्विघ्न बनाने के कार्य की बधाई दे रहे हैं।
हर बच्चा यही श्रेष्ठ संकल्प करता है कि सेवा में सदा आगे बढ़ें, यह श्रेष्ठ संकल्प सेवा में सदा आगे बढ़ा रहा है और बढ़ाता रहेगा।
सेवा के साथ-साथ स्वउन्नति और सेवा की उन्नति का बैलेन्स रख आगे बढ़ते चलो तो बापदादा और सर्व आत्माओं द्वारा जिन्होंके निमित्त बनते हो, उन्हों के दिल की दुआयें प्राप्त होती रहेंगी।
तो सदा बैलेन्स द्वारा ब्लैसिंग लेते हुए आगे बढ़ते चलो।
स्वउन्नति और सेवा की उन्नति दोनों साथ-साथ रहने से सदा और सहज सफलता स्वरूप बन जायेंगे।
सभी अपने-अपने नाम से विशेष यादप्यार स्वीकार करना।
अच्छा! ओम शान्ति।
वरदान:-
सबको खुशखबरी सुनाने वाले
खुशी के खजाने से भरपूर भण्डार भव
सदा अपने इस स्वरूप को सामने रखो कि हम खुशी के खजाने से भरपूर भण्डार हैं।
जो भी अनगिनत और अविनाशी खजाने मिले हैं उन खजानों को स्मृति में लाओ।
खजानों को स्मृति में लाने से खुशी होगी और जहाँ खुशी है वहाँ सदाकाल के लिए दु:ख दूर हो जाते हैं।
खजानों की स्मृति से आत्मा समर्थ बन जाती है, व्यर्थ समाप्त हो जाता है।
भरपूर आत्मा कभी हलचल में नहीं आती, वह स्वयं भी खुश रहती और दूसरों को भी खुशखबरी सुनाती है।