गीत:- ओम् नमो शिवाए...
आज गुरूवार है।
तुम बच्चे कहेंगे सतगुरुवार, क्योंकि सतयुग की स्थापना करने वाला भी है, सत्य नारायण की कथा भी सुनाते हैं प्रैक्टिकल में।
नर से नारायण बनाते हैं।
गाया भी जाता है सर्व का सद्गति-दाता, फिर वृक्षपति भी है।
यह मनुष्य सृष्टि का झाड़ है, जिसको कल्प वृक्ष कहते हैं।
कल्प-कल्प अर्थात् 5 हज़ार वर्ष बाद फिर से हूबहू रिपीट होता है।
झाड़ भी रिपीट होता है ना।
फूल 6 मास निकलते हैं, फिर माली लोग जड़ निकाल रख देते हैं फिर लगाते हैं तो फूल निकल पड़ते हैं।
अब यह तो बच्चे जानते हैं - बाप की जयन्ती भी आधाकल्प मनाते हैं, आधाकल्प भूल जाते हैं।
भक्ति मार्ग में आधाकल्प याद करते हैं।
बाबा कब आकरके गॉर्डन ऑफ फ्लावर्स स्थापन करेंगे?
दशायें तो बहुत होती हैं ना।
बृहस्पति की दशा भी है, उतरती कला की भी दशायें होती हैं।
इस समय भारत पर राहू का ग्रहण बैठा हुआ है।
चन्द्रमा को भी जब ग्रहण लगता है तो पुकारते हैं-दे दान तो छूटे ग्रहण।
अब बाप भी कहते हैं-यह 5 विकारों का दान दे दो तो छूटे ग्रहण।
अभी सारी सृष्टि पर ग्रहण लगा हुआ है, 5 तत्वों पर भी ग्रहण लगा हुआ है क्योंकि तमोप्रधान हैं।
हर चीज नई फिर पुरानी जरूर होती है।
नई को सतोप्रधान, पुरानी को तमोप्रधान कहते हैं।
छोटे बच्चे को भी सतोप्रधान महात्मा से भी ऊंच गिना जाता है, क्योंकि उनमें 5 विकार नहीं रहते।
भक्ति तो सन्यासी भी छोटेपन में करते हैं।
जैसे रामतीर्थ कृष्ण का पुजारी था फिर जब सन्यास लिया तो पूजा खलास।
सृष्टि पर पवित्रता भी चाहिए ना।
भारत पहले सबसे पवित्र था फिर जब देवतायें वाम मार्ग में जाते हैं तो फिर अर्थक्वेक आदि में सब स्वर्ग की सामग्री, सोने के महल आदि खलास हो जाते हैं फिर नये-सिर बनने शुरू होते हैं।
डिस्ट्रक्शन जरूर होता है।
उपद्रव होते हैं जब रावणराज्य शुरू होता है, इस समय सब पतित हैं।
सतयुग में देवतायें राज्य करते हैं।
असुरों और देवताओं की युद्ध दिखाई है, परन्तु देवतायें तो होते ही हैं सतयुग में।
वहाँ लड़ाई हो कैसे सकती।
संगम पर तो देवतायें होते नहीं।
तुम्हारा नाम ही है पाण्डव।
पाण्डवों कौरवों की भी लड़ाई होती नहीं।
यह सब हैं गपोड़े।
कितना बड़ा झाड़ है।
कितने अथाह पत्ते हैं, उनका हिसाब थोड़ेही कोई निकाल सकते।
संगम पर तो देवतायें होते नहीं।
बाप बैठ आत्माओं को समझाते हैं, आत्मा ही सुनकर कांध हिलाती है।
हम आत्मा हैं, बाबा हमको पढ़ाते हैं, यह पक्का करना है।
बाप हमें पतित से पावन बनाते हैं।
आत्मा में ही अच्छे वा बुरे संस्कार होते हैं ना।
आत्मा आरगन्स द्वारा कहती है हमको बाबा पढ़ाते हैं।
बाप कहते हैं हमको भी आरगन्स चाहिए, जिससे समझाऊं।
आत्मा को खुशी होती है।
बाबा हर 5 हज़ार वर्ष बाद आते हैं हमको सुनाने।
तुम तो सामने बैठे हो ना।
मधुबन की ही महिमा है।
आत्माओं का बाप तो वह है ना, सब उनको बुलाते हैं।
तुमको यहाँ सम्मुख बैठने में मज़ा आता है।
परन्तु यहाँ सब तो रह नहीं सकते।
अपनी कारोबार सर्विस आदि को भी देखना है।
आत्मायें सागर के पास आती हैं, धारण कर फिर जाए औरों को सुनाना है।
नहीं तो औरों का कल्याण कैसे करेंगे?
योगी और ज्ञानी तू आत्मा को शौक रहता है हम जाकर औरों को भी समझायें।
अब शिव जयन्ती मनाई जाती है ना।
भगवानुवाच है। भगवानुवाच कृष्ण के लिए नहीं कह सकते, वह तो है दैवीगुणों वाला मनुष्य।
डिटीज्म कहा जाता है।
अब बच्चे यह तो समझ गये हैं कि अभी देवी-देवता धर्म नहीं है, स्थापना हो रही है।
तुम ऐसे नहीं कहेंगे कि हम अभी देवी-देवता धर्म के हैं।
नहीं, अभी तुम ब्राह्मण धर्म के हो, देवी-देवता धर्म के बन रहे हो।
देवताओं का परछाया इस पतित सृष्टि पर नहीं पड़ सकता है, इसमें देवतायें आ न सकें।
तुम्हारे लिए नई दुनिया चाहिए।
लक्ष्मी की भी पूजा करते हैं तो घर की कितनी सफाई कर देते हैं।
अब इस सृष्टि की भी कितनी सफाई होनी है।
सारी पुरानी दुनिया ही खत्म हो जानी है।
लक्ष्मी से मनुष्य धन ही माँगते हैं।
लक्ष्मी बड़ी या जगत अम्बा बड़ी? (अम्बा)
अम्बा के मन्दिर भी बहुत हैं।
मनुष्यों को कुछ भी पता नहीं है।
तुम समझते हो लक्ष्मी तो स्वर्ग की मालिक और जगत अम्बा जिसको सरस्वती भी कहते हैं, वही जगत अम्बा फिर यह लक्ष्मी बनती है।
तुम्हारा पद ऊंच है, देवताओं का पद कम है।
ऊंच ते ऊंच तो ब्राह्मण चोटी हैं ना।
तुम हो सबसे ऊंच।
तुम्हारी महिमा है - सरस्वती, जगत अम्बा, उनसे क्या मिलता है?
सृष्टि की बादशाही।
वहाँ तुम धनवान बनते हो, विश्व का राज्य मिलता है।
फिर गरीब बनते हो, भक्ति मार्ग शुरू होता है।
फिर लक्ष्मी को याद करते हैं।
हर वर्ष लक्ष्मी की पूजा भी होती है।
लक्ष्मी को हर वर्ष बुलाते हैं, जगत अम्बा को कोई हर वर्ष नहीं बुलाते हैं।
जगदम्बा की तो सदैव पूजा होती ही है, जब चाहें तब अम्बा के मन्दिर में जायें।
यहाँ भी जब चाहो, जगत अम्बा से मिल सकते हो।
तुम भी जगत अम्बा हो ना।
सबको विश्व का मालिक बनने का रास्ता बताने वाले हो।
जगत अम्बा के पास सब कुछ जाकर माँगते हैं।
लक्ष्मी से सिर्फ धन माँगते हैं।
उनके आगे तो सब कामनायें रखेंगे, तो सबसे ऊंच मर्तबा तुम्हारा अभी है, जबकि बाप के आकर बच्चे बने हो।
बाप वर्सा देते हैं।
अभी तुम हो ईश्वरीय सम्प्रदाय, फिर होंगे दैवी सम्प्रदाय।
इस समय सब मनोकामनायें भविष्य के लिए पूरी होती हैं।
कामना तो मनुष्य को रहती है ना।
तुम्हारी सब कामनायें पूरी होती हैं।
यह तो है आसुरी दुनिया।
बच्चे देखो कितने पैदा करते हैं।
तुम बच्चों को तो साक्षात्कार कराया जाता है, सतयुग में कैसे कृष्ण का जन्म होता है?
वहाँ तो सब कायदेसिर होता है, दु:ख का नाम नहीं रहता।
उनको कहा ही जाता है सुखधाम।
तुमने अनेक बार सुख में पास किया है, अनेक बार हार खाई है और जीत भी पाई है।
अभी स्मृति आई है कि हमको बाबा पढ़ाते हैं।
स्कूल में नॉलेज पढ़ते हैं।
साथ-साथ मैनर्स भी सीखते हैं ना।
वहाँ कोई इन लक्ष्मी-नारायण जैसे मैनर्स नहीं सीखते हैं।
अभी तुम दैवी गुण धारण करते हो।
महिमा भी उनकी ही गाते हैं-सर्वगुण सम्पन्न....... तो अभी तुमको ऐसा बनना है।
तुम बच्चों को अपनी इस लाइफ से कभी तंग नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह हीरे जैसा जन्म गाया हुआ है।
इनकी सम्भाल भी करनी होती है।
तन्दुरूस्त होंगे तो नॉलेज सुनते रहेंगे।
बीमारी में भी सुन सकते हैं।
बाप को याद कर सकते हैं।
यहाँ जितना दिन जियेंगे सुखी रहेंगे।
कमाई होती रहेगी, हिसाब-किताब चुक्तू होता रहेगा।
बच्चे कहते हैं-बाबा सतयुग कब आयेगा?
यह बहुत गन्दी दुनिया है।
बाप कहते हैं-अरे, पहले कर्मातीत अवस्था तो बनाओ।
जितना हो सके पुरूषार्थ करते रहो।
बच्चों को सिखलाना चाहिए कि शिवबाबा को याद करो, यह है अव्यभिचारी याद।
एक शिव की भक्ति करना, वह है अव्यभिचारी भक्ति, सतोप्रधान भक्ति।
फिर देवी-देवताओं को याद करना, वह है सतो भक्ति।
बाप कहते हैं उठते-बैठते मुझ बाप को याद करो।
बच्चे ही बुलाते हैं-हे पतित-पावन, हे लिबरेटर, हे गाइड....... यह आत्मा ने कहा ना।
बच्चे याद करते हैं, बाप अभी स्मृति दिलाते हैं, तुम याद करते आये हो-हे दु:ख हर्ता सुख कर्ता आओ, आकर दु:ख से छुड़ाओ, लिबरेट करो, शान्तिधाम में ले जाओ।
बाप कहते हैं तुमको शान्तिधाम में ले जाऊंगा, फिर सुखधाम में तुमको साथ नहीं देता हूँ।
साथ अभी ही देता हूँ। सभी आत्माओं को घर ले जाता हूँ।
मेरा अभी पढ़ाने का साथ है और फिर वापिस घर ले जाने का साथ है।
बस, मैं अपना परिचय तुम बच्चों को अच्छी रीति बैठ सुनाता हूँ।
जैसे-जैसे जो पुरूषार्थ करेंगे उस अनुसार फिर वहाँ प्रालब्ध पायेंगे।
समझ तो बाप बहुत देते हैं।
जितना हो सके मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और उड़ने के पंख मिल जायेंगे।
आत्मा को कोई ऐसे पंख नहीं हैं।
आत्मा तो एक छोटी बिन्दी है।
किसको यह पता नहीं है कि आत्मा में कैसे 84 जन्मों का पार्ट नूँधा हुआ है।
न आत्मा का किसको परिचय है, न परमात्मा का परिचय है।
तब बाप कहते हैं-मैं जो हूँ, जैसा हूँ, मुझे कोई भी जान नहीं सकता है।
मेरे द्वारा ही मुझे और मेरी रचना को जान सकते हैं।
मैं ही आकर तुम बच्चों को अपना परिचय देता हूँ।
आत्मा क्या है, वह भी समझाता हूँ।
इनको सोल रियलाइज़ेशन कहा जाता है।
आत्मा भृकुटी के बीच में रहती है।
कहते भी हैं भृकुटी के बीच चमकता है अजब सितारा....... परन्तु आत्मा क्या चीज़ है, यह बिल्कुल कोई नहीं जानते हैं।
जब कोई कहते हैं कि आत्मा का साक्षात्कार हो तो उन्हें समझाओ कि तुम तो कहते हो भृकुटी के बीच स्टार है, स्टार को क्या देखेंगे?
टीका भी स्टार का ही देते हैं।
चन्द्रमा में भी स्टार दिखाते हैं।
वास्तव में आत्मा है स्टार।
अभी बाप ने समझाया है तुम ज्ञान स्टार्स हो, बाकी वह सूर्य, चांद, सितारे तो माण्डवे को रोशनी देने वाले हैं।
वह कोई देवतायें नहीं हैं।
भक्ति मार्ग में सूर्य को भी पानी देते हैं।
भक्ति मार्ग में यह बाबा भी सब करते थे।
सूर्य देवताए नम:, चन्द्रमा देवताए नम: कहकर पानी देते थे।
यह सब है भक्ति मार्ग।
इसने तो बहुत भक्ति की हुई है।
नम्बरवन पूज्य तो फिर नम्बरवन पुजारी बने हैं।
नम्बर तो गिनेंगे ना।
रूद्र माला के भी नम्बर तो हैं ना।
भक्ति भी सबसे जास्ती इसने की है।
अब बाप कहते हैं छोटे-बड़े सबकी वानप्रस्थ अवस्था है।
अभी मैं सबको ले जाऊंगा फिर यहाँ आयेंगे ही नहीं।
बाकी शास्त्रों में जो दिखाते हैं-प्रलय हुई, जलमई हो गई फिर पीपल के पत्ते पर कृष्ण आया....... बाप समझाते हैं सागर की कोई बात नहीं।
वहाँ तो गर्भ महल है, जहाँ बच्चे बहुत सुख में रहते हैं।
यहाँ गर्भ-जेल कहा जाता है।
पापों की भोगना गर्भ में मिलती है।
फिर भी बाप कहते हैं मन्मनाभव, मुझे याद करो।
प्रदर्शनी में कोई पूछते हैं सीढ़ी में और कोई धर्म क्यों नहीं दिखाये हैं?
बोलो, औरों के 84 जन्म तो हैं नहीं।
सब धर्म झाड़ में दिखायें हैं, उससे तुम अपना हिसाब निकालो कि कितने जन्म लिए होंगे।
हमको तो सीढ़ी 84 जन्मों की दिखानी है।
बाकी सब चक्र में और झाड़ में दिखाये हैं।
इनमें सब बातें समझाई हैं।
नक्शा देखने से बुद्धि में आ जाता है ना-लण्डन कहाँ है, फलाना शहर कहाँ है।
बाप कितना सहज कर समझाते हैं।
सभी को यही बताओ कि 84 का चक्र ऐसे फिरता है।
अभी तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है तो बेहद के बाप को याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे और फिर पावन बन पावन दुनिया में चले जायेंगे।
कोई तकलीफ की बात नहीं है।
जितना समय मिले बाप को याद करो तो पक्की टेव पड़ जायेगी।
बाप की याद में तुम देहली तक पैदल जाओ तो भी थकावट नहीं होगी।
सच्ची याद होगी तो देह का भान टूट जायेगा, फिर थकावट हो नहीं सकती।
पिछाड़ी में आने वाले और ही याद में तीखे जायेंगे।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।