बाप समझाते हैं और बच्चे जानते हैं कि भारत खास और दुनिया आम को यह सन्देश पहुँचाना है।
तुम सब सन्देशी हो, बहुत खुशी का सन्देश सबको देना है कि भारत अब फिर से स्वर्ग बन रहा है अथवा स्वर्ग की स्थापना हो रही है।
भारत में बाप जिनको हेविनली गॉड फादर कहते हैं, वही स्थापना करने आये हैं।
तुम बच्चों को डायरेक्शन है कि यह खुशखबरी सबको अच्छी रीति सुनाओ।
हरेक को अपने धर्म की तात रहती है।
तुमको भी तात है, तुम खुशखबरी सुनाते हो, भारत के सूर्यवंशी देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है अर्थात् भारत फिर से स्वर्ग बन रहा है।
यह खुशी अन्दर में रहनी चाहिए-हम अभी स्वर्ग के मालिक बन रहे हैं।
जिनको यह खुशी अन्दर में है उनको दु:ख तो कोई भी किस्म का हो नहीं सकता।
यह तो बच्चे जानते हैं नई दुनिया स्थापन होने में तकलीफ भी होती है।
अबलाओं पर कितने अत्याचार होते हैं।
बच्चों को यह सदैव स्मृति में रहना चाहिए-हम भारत को बेहद की खुशखबरी सुनाते हैं।
जैसे बाबा ने पर्चे छपवाये हैं-बहनों-भाइयों आकर यह खुशखबरी सुनो।
सारा दिन ख्यालात चलते हैं कैसे सबको यह सन्देश सुनायें।
बेहद का बाप बेहद का वर्सा देने आये हैं।
इन लक्ष्मी-नारायण के चित्र को देखकर तो सारा दिन हर्षित रहना चाहिए।
तुम तो बहुत बड़े आदमी हो इसलिए तुम्हारी कोई भी जंगली चलन नहीं होनी चाहिए।
तुम जानते हो हम बन्दर से भी बदतर थे।
अभी बाबा हमको ऐसा (देवी-देवता) बनाते हैं।
तो कितनी खुशी होनी चाहिए।
परन्तु वन्डर है बच्चों को वह खुशी रहती नहीं है।
न उस उमंग से सबको खुशखबरी सुनाते हैं।
बाप ने तुमको मैसेन्जर बनाया है।
सबके कान पर यह मैसेज देते रहो।
भारतवासियों को यह पता ही नहीं है कि हमारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म कब रचा गया? फिर कहाँ गया?
अभी तो सिर्फ चित्र हैं।
और सभी धर्म हैं सिर्फ आदि सनातन देवी-देवता धर्म है नहीं।
भारत में ही चित्र हैं।
ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते हैं।
तो तुम सबको यह खुशखबरी सुनाओ तो तुमको भी अन्दर में खुशी रहेगी।
प्रदर्शनी में तुम यह खुशखबरी सुनाते हो ना।
बेहद के बाप से आकर स्वर्ग का वर्सा लो।
यह लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक हैं ना।
फिर वह कहाँ गये?
यह कोई भी समझते नहीं इसलिए कहा जाता है-सूरत मनुष्य की, सीरत बन्दर मिसल है।
अभी तुम्हारी शक्ल मनुष्य की है, सीरत देवताओं जैसी बन रही है।
तुम जानते हो हम फिर से सर्वगुण सम्पन्न बनते हैं।
फिर औरों को भी यह पुरूषार्थ कराना है।
प्रदर्शनी की सर्विस तो बहुत अच्छी है।
जिनको गृहस्थ व्यवहार का बन्धन नहीं, वानप्रस्थी हैं अथवा विधवायें हैं, कुमारियाँ हैं उनको तो सर्विस का बहुत चांस है।
सर्विस में लग जाना चाहिए।
इस समय शादी करना बरबादी करना है, शादी न करना आबादी है।
बाप कहते हैं यह मृत्युलोक पतित दुनिया विनाश हो रही है।
तुमको पावन दुनिया में चलना है तो इस सर्विस में लग जाना चाहिए।
प्रदर्शनी पिछाड़ी प्रदर्शनी करनी चाहिए।
सर्विसएबुल बच्चे जो हैं, उन्हें सर्विस का शौक अच्छा है।
बाबा से कोई-कोई पूछते हैं हम सर्विस छोड़ें?
बाबा देखते हैं-लायक हैं तो छुट्टी देते हैं, भल सर्विस करो।
ऐसी खुशखबरी सबको सुनानी है।
बाप कहते हैं अपना राज्य-भाग्य आकर लो।
तुमने 5 हज़ार वर्ष पहले राज्य-भाग्य लिया था, अब फिर से लो।
सिर्फ मेरी मत पर चलो।
देखना चाहिए-हमारे में कौन-से अवगुण हैं?
तुम इन बैजेस पर तो बहुत सर्विस कर सकते हो, यह फर्स्ट-क्लास चीज़ है।
भल पाई-पैसे की चीज़ है परन्तु इनसे कितना ऊंच पद पा सकते हैं।
मनुष्य पढ़ने लिए किताबों आदि पर कितना खर्चा करते हैं।
यहाँ किताब आदि की तो बात नहीं।
सिर्फ सबके कानों में सन्देश देना है, यह है बाप का सच्चा मंत्र।
बाकी तो सब झूठे मंत्र देते रहते हैं।
झूठी चीज़ की वैल्यु थोड़ेही होती है।
वैल्यु हीरों की होती है, न कि पत्थरों की।
यह जो गायन है एक-एक वरशन्स लाखों की मिलकियत है, वह इस ज्ञान के लिए कहा जाता है।
बाप कहते हैं शास्त्र तो ढेर के ढेर हैं।
तुम आधाकल्प पढ़ते आये हो, उससे तो कुछ मिला नहीं।
अभी तुमको ज्ञान रत्न देते हैं।
वह हैं शास्त्रों की अथॉरिटी।
बाप तो ज्ञान का सागर है।
इनका एक-एक वरशन्स लाखों-करोड़ों रूपयों का है।
तुम विश्व के मालिक बनते हो।
पद्मपति जाकर बनते हो।
इस ज्ञान की ही महिमा है।
वह शास्त्र आदि पढ़ते तो कंगाल बन पड़े हो।
तो अब इन ज्ञान रत्नों का दान भी करना है।
बाप बहुत सहज युक्तियाँ समझाते हैं।
बोलो, अपने धर्म को भूल तुम बाहर भटकते रहते हो।
तुम भारतवासियों का आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, वह धर्म कहाँ गया?
84 लाख योनियाँ कहने से कुछ भी बात बुद्धि में बैठती नहीं।
अभी बाप समझाते हैं तुम आदि सनातन देवी-देवता धर्म के थे फिर 84 जन्म लिए हैं।
यह लक्ष्मी-नारायण आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले हैं ना।
अभी धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बन गये हैं।
और सब धर्म हैं, यह आदि सनातन धर्म है नहीं।
जब यह धर्म था तो और धर्म नहीं थे।
कितना सहज है।
यह बाप, यह दादा।
प्रजापिता ब्रह्मा है तो जरूर बी.के. ढेर के ढेर होंगे ना।
बाप आकर रावण की जेल से, शोक वाटिका से छुड़ाते हैं।
शोक वाटिका का अर्थ भी कोई समझते नहीं हैं।
बाप कहते हैं यह शोक की, दु:ख की दुनिया है।
वह है सुख की दुनिया।
तुम अपनी शान्ति की दुनिया और सुख की दुनिया को याद करते रहो।
इनकारपोरियल वर्ल्ड कहते हैं ना।
अंग्रेजी अक्षर बहुत अच्छे हैं।
अंग्रेजी तो चलती ही आती है।
अभी तो अनेक भाषायें हो गई हैं।
मनुष्य कुछ भी समझते नहीं-अब कहते हैं निर्गुण बाल संस्था....... निर्गुण अर्थात् कोई गुण नहीं।
ऐसे ही संस्था बना दी है।
निर्गुण का भी अर्थ नहीं समझते।
बिगर अर्थ नाम रख देते हैं।
अथाह संस्थायें हैं।
भारत में एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म की संस्था थी, और कोई धर्म नहीं था।
परन्तु मनुष्यों ने 5000 वर्ष के बदले कल्प की आयु लाखों वर्ष लिख दी है।
तो तुम्हें सबको इस अज्ञान अंधकार से निकालना है।
सर्विस करनी है।
भल यह ड्रामा तो बना-बनाया है परन्तु शिवबाबा के यज्ञ से खायेंगे, पियेंगे और सर्विस कुछ भी नहीं करेंगे तो धर्मराज जो राईट हैण्ड है, वह जरूर सज़ा देंगे इसलिए सावधानी दी जाती है।
सर्विस करना तो बहुत सहज है।
प्रेम से कोई को भी समझाते रहो।
बाप के पास कोई-कोई का समाचार आता है कि हम मन्दिर में गये, गंगा घाट पर गये।
सवेरे उठकर मन्दिर में जाते हैं, रिलीजस माइन्डेड को समझाना सहज होगा।
सबसे अच्छा है लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में सर्विस करना।
अच्छा, फिर उन्हों को ऐसा बनाने वाला शिवबाबा है, वहाँ जाकर समझाओ।
जंगल को आग लग जायेगी, यह सब खत्म हो जायेंगे फिर तुम्हारा भी पार्ट पूरा होता है।
तुम जाकर राजाई कुल में जन्म लेते हो।
राजाई कैसे मिलनी है, सो आगे चल पता पड़ेगा।
ड्रामा में पहले से थोड़ेही सुना देंगे।
तुम जान लेंगे हम क्या पद पायेंगे।
जास्ती दान-पुण्य करने वाले राजाई में आते हैं ना।
राजाओं के पास धन बहुत रहता है।
अब तुम अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करते हो।
भारतवासियों के लिए ही यह ज्ञान है।
बोलो, आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है, पतित से पावन बनाने वाला बाप आया है।
बाप कहते हैं मुझे याद करो, कितना सहज है।
परन्तु इतनी तमोप्रधान बुद्धि हैं जो कुछ भी धारणा होती नहीं।
विकारों की प्रवेशता है।
जानवर भी किस्म-किस्म के होते हैं, कोई में क्रोध बहुत होता है, हर एक जानवर का स्वभाव अलग होता है।
किस्म-किस्म के स्वभाव होते हैं दु:ख देने के।
सबसे पहले दु:ख देने का विकार है काम कटारी चलाना।
रावण राज्य में है ही इन विकारों का राज्य।
बाप तो रोज़ समझाते रहते हैं, कितनी अच्छी-अच्छी बच्चियाँ हैं, बिचारी कैद में हैं, जिनको बांधेली कहते हैं।
वास्तव में उनमें अगर ज्ञान की पराकाष्ठा हो जाए तो फिर कोई भी उनको पकड़ न सके।
परन्तु मोह की रग बहुत है।
सन्यासियों को भी घरबार याद पड़ता है, बड़ा मुश्किल से वह रग टूटती है।
अभी तुमको तो मित्र-सम्बन्धियों आदि सबको भूलना ही है क्योंकि यह पुरानी दुनिया ही खत्म होने वाली है।
इस शरीर को भी भूल जाना है।
अपने को आत्मा समझ बाबा को याद करना है।
पवित्र बनना है।
84 जन्मों का पार्ट तो बजाना ही है।
बीच में तो कोई वापस जा न सके।
अभी नाटक पूरा होता है।
तुम बच्चों को खुशी बहुत होनी चाहिए।
अभी हमको जाना है अपने घर।
पार्ट पूरा हुआ, उत्कण्ठा होनी चाहिए-बाबा को बहुत याद करें।
याद से विकर्म विनाश होंगे।
घर जाए फिर सुखधाम में आयेंगे।
कई समझते हैं जल्दी इस दुनिया से छूटें।
परन्तु जायेंगे कहाँ?
पहले तो ऊंच पद पाने लिए मेहनत करनी चाहिए ना।
पहले अपनी नब्ज देखनी है-हम कहाँ तक लायक बने हैं?
स्वर्ग में जाए क्या करेंगे?
पहले तो लायक बनना पड़े ना।
बाप के सपूत बच्चे बनना पड़े।
यह लक्ष्मी-नारायण सपूत लायक हैं ना।
बच्चों को देखकर भगवान भी कहते हैं यह बड़े अच्छे हैं, लायक हैं सर्विस करने के।
कोई के लिए तो कहेंगे यह लायक नहीं है।
मुफ्त अपना पद ही भ्रष्ट कर लेते हैं।
बाप तो सच कहते हैं ना।
पुकारते भी हैं पतित-पावन आओ, आकर सुखधाम का मालिक बनाओ।
सुख घनेरे मांगते हैं ना।
तो बाप कहते हैं कुछ तो सर्विस करने लायक बनो।
जो मेरे भक्त हैं, उनको यह खुशखबरी सुनाओ कि अभी शिवबाबा वर्सा दे रहे हैं।
वह कहते हैं मुझे याद करो और पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बन जायेंगे।
इस पुरानी दुनिया को आग लग रही है।
सामने एम ऑब्जेक्ट देखने से बड़ी खुशी रहती है-हमको यह बनना है।
सारा दिन बुद्धि में यही याद रहे तो कभी भी कोई शैतानी काम न हो।
हम यह बन रहे हैं फिर ऐसा उल्टा काम कैसे कर सकते हैं?
परन्तु किसकी तकदीर में नहीं है तो ऐसी-ऐसी युक्तियाँ भी रचते नहीं, अपनी कमाई नहीं करते।
कमाई कितनी अच्छी है।
घर बैठे सभी को अपनी कमाई करनी है और फिर औरों को करानी है।
घर बैठे यह स्वदर्शन चक्र फिराओ, औरों को भी स्वदर्शन चक्रधारी बनाना है।
जितना बहुतों को बनायेंगे उतना तुम्हारा मर्तबा ऊंचा होगा।
इन लक्ष्मी-नारायण जैसे बन सकते, एम ऑबजेक्ट ही यह है।
हाथ भी सब सूर्यवंशी बनने में ही उठाते हैं।
यह चित्र भी प्रदर्शनी में बहुत काम आ सकते हैं।
इन पर समझाना है।
हमको ऊंच ते ऊंच बाप जो सुनाते हैं, वही हम सुनते हैं।
भक्ति मार्ग की बातें सुनना हम पसन्द नहीं करते।
यह चित्र तो बहुत अच्छी चीज़ है।
इन पर तुम सर्विस बहुत कर सकते हो।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।