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Baba's Murlis - February, 2020
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22-02-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम्हें भगवान पढ़ाते हैं,

तुम्हारे पास हैं ज्ञान रत्न,

इन्हीं रत्नों का धंधा तुम्हें करना है,

तुम यहाँ ज्ञान सीखते हो, भक्ति नही''

प्रश्नः-

मनुष्य ड्रामा की किस वन्डरफुल नूँध को भगवान की लीला समझ उसकी बड़ाई करते हैं?

उत्तर:-

जो जिसमें भावना रखते, उन्हें उसका साक्षात्कार हो जाता है तो समझते हैं यह भगवान ने साक्षात्कार कराया लेकिन होता तो सब ड्रामा अनुसार है।

एक ओर भगवान की बड़ाई करते, दूसरी ओर सर्वव्यापी कह ग्लानि कर देते हैं।

ओम् शान्ति।

भगवानुवाच - बच्चों को यह तो समझाया हुआ है कि मनुष्य को वा देवता को भगवान नहीं कहा जाता।

गाते भी हैं ब्रह्मा देवताए नम:, विष्णु देवताए नम:, शंकर देवताए नम: फिर कहा जाता है शिव परमात्माए नम:।

यह भी तुम जानते हो शिव को अपना शरीर नहीं है। मूलवतन में शिवबाबा और सालिग्राम रहते हैं।

बच्चे जानते हैं कि अभी हम आत्माओं को बाप पढ़ा रहे हैं और जो भी सतसंग हैं वास्तव में वह कोई सत का संग है नहीं।

बाप कहते हैं वह तो माया का संग है।

वहाँ ऐसे कोई नहीं समझेंगे कि हमको भगवान पढ़ाते हैं।

गीता भी सुनेंगे तो कृष्ण भगवानुवाच समझेंगे।

दिन-प्रतिदिन गीता का अभ्यास कम होता जाता है क्योंकि अपने धर्म को ही नहीं जानते।

कृष्ण के साथ तो सभी का प्यार है, कृष्ण को ही झुलाते हैं।

अब तुम समझते हो हम झुलायें किसको?

बच्चे को झुलाया जाता है, बाप को तो झुला न सकें।

तुम शिवबाबा को झुलायेंगे? वह बालक तो बनते नहीं, पुनर्जन्म में आते नहीं।

वह तो बिन्दु है, उनको क्या झुलायेंगे।

कृष्ण का बहुतों को साक्षात्कार होता है।

कृष्ण के मुख में तो सारी विश्व है क्योंकि विश्व का मालिक बनते हैं।

तो विश्व रूपी माखन है।

वो जो आपस में लड़ते हैं वह भी सृष्टि रूपी माखन के लिए लड़ते हैं।

समझते हैं हम जीत पा लें।

कृष्ण के मुख में माखन का गोला दिखाते हैं, यह भी अनेक प्रकार के साक्षात्कार होते हैं।

परन्तु अर्थ कुछ भी नहीं समझते हैं। यहाँ तुमको साक्षात्कार का अर्थ समझाया जाता है।

मनुष्य समझते हैं हमको भगवान साक्षात्कार कराते हैं। यह भी बाप समझाते हैं-जिसको याद करते हैं, समझो कोई कृष्ण की नौधा भक्ति करते हैं तो अल्पकाल के लिए उनकी मनोकामना पूरी होती है।

यह भी ड्रामा में नूँध है।

ऐसे नहीं कहेंगे कि भगवान ने साक्षात्कार कराया।

जो जिस भावना से जिसकी पूजा करते हैं उनको वह साक्षात्कार होता है।

यह ड्रामा में नूँध है।

यह तो भगवान की बड़ाई की है कि वह साक्षात्कार कराते हैं।

एक तरफ इतनी बड़ाई भी करते, दूसरी तरफ फिर कह देते पत्थर ठिक्कर में भगवान है।

कितनी अन्धश्रद्धा की भक्ति करते हैं।

समझते हैं-बस कृष्ण का साक्षात्कार हुआ, कृष्णपुरी में हम जरूर जायेंगे।

परन्तु कृष्णपुरी आये कहाँ से?

यह सब राज़ बाप तुम बच्चों को अब समझाते हैं।

कृष्णपुरी की स्थापना हो रही है। यह है कंसपुरी।

कंस, अकासुर, बकासुर, कुम्भकरण, रावण यह सब असुरों के नाम हैं।

शास्त्रों में क्या-क्या बैठ लिखा है।

यह भी समझाना है कि गुरू दो प्रकार के हैं।

एक हैं भक्ति मार्ग के गुरू, वह भक्ति ही सिखलाते हैं।

यह बाप तो है ज्ञान का सागर, इनको सतगुरू कहा जाता है।

यह कभी भक्ति नहीं सिखलाते, ज्ञान ही सिखलाते हैं।

मनुष्य तो भक्ति में कितना खुश होते हैं, झांझ बजाते हैं, बनारस में तुम देखेंगे सब देवताओं के मन्दिर बना दिये हैं।

यह सब है भक्ति मार्ग की दुकानदारी, भक्ति का धंधा।

तुम बच्चों का धंधा है ज्ञान रत्नों का, इनको भी व्यापार कहा जाता है।

बाप भी रत्नों का व्यापारी है।

तुम समझते हो यह रत्न कौन से हैं!

इन बातों को समझेंगे वही जिन्होंने कल्प पहले समझा है, दूसरे समझेंगे ही नहीं।

जो भी बड़े-बड़े हैं वह पिछाड़ी में आकर समझेंगे।

कनवर्ट भी हुए हैं ना। एक राजा जनक की कथा सुनाते हैं।

जनक फिर अनुजनक बना।

जैसे कोई का नाम कृष्ण है तो कहेंगे तुम अनु दैवी कृष्ण बनेंगे।

कहाँ वह सर्वगुण सम्पन्न कृष्ण, कहाँ यह!

कोई का लक्ष्मी नाम है और इन लक्ष्मी-नारायण के आगे जाकर महिमा गाती है।

यह थोड़ेही समझती कि इनमें और हमारे में फर्क क्यों हुआ है?

अभी तुम बच्चों को नॉलेज मिली है, यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है?

तुम ही 84 जन्म लेंगे।

यह चक्र अनेक बार फिरता आया है।

कभी बंद नहीं हो सकता।

तुम इस नाटक के अन्दर एक्टर्स हो।

मनुष्य इतना जरूर समझते हैं कि हम इस नाटक में पार्ट बजाने आये हैं।

बाकी ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते।

तुम बच्चे जानते हो हम आत्माओं के रहने का स्थान परे ते परे है।

वहाँ सूर्य-चांद की भी रोशनी नहीं है।

यह सब समझने वाले बच्चे भी अक्सर करके साधारण गरीब ही बनते हैं क्योंकि भारत ही सबसे साहूकार था, अब भारत ही सबसे गरीब बना है।

सारा खेल भारत पर है।

भारत जैसा पावन खण्ड और कोई होता नहीं।

पावन दुनिया में पावन खण्ड होता है, और कोई खण्ड वहाँ होता ही नहीं।

बाबा ने समझाया है यह सारी दुनिया एक बेहद का आयलैण्ड है।

जैसे लंका टापू है। दिखाते हैं रावण लंका में रहता थ

। अभी तुम समझते हो रावण का राज्य तो सारी बेहद की लंका पर है।

यह सारी सृष्टि समुद्र पर खड़ी है। यह टापू है।

इस पर रावण का राज्य है।

यह सब सीतायें रावण की जेल में हैं।

उन्होंने तो हद की कथायें बना दी हैं।

है यह सारी बेहद की बात। बेहद का नाटक है, उसमें ही फिर छोटे-छोटे नाटक बैठ बनाये हैं।

यह बाइसकोप आदि भी अभी बने हैं, तो बाप को भी समझाने में सहज होता है।

बेहद का सारा ड्रामा तुम बच्चों की बुद्धि में है।

मूलवतन, सूक्ष्मवतन और किसकी बुद्धि में हो न सके।

तुम जानते हो हम आत्मायें मूलवतन की रहवासी हैं।

देवतायें हैं सूक्ष्मवतन वासी, उनको फरिश्ता भी कहते हैं।

वहाँ हड्डी मांस का पिंजड़ा होता नहीं।

यह सूक्ष्मवतन का पार्ट भी थोड़े समय के लिए है।

अभी तुम आते-जाते हो फिर कभी नहीं जायेंगे।

तुम आत्मायें जब मूलवतन से आती हो तो वाया सूक्ष्मवतन नहीं आती हो, सीधी आती हो।

अभी वाया सूक्ष्मवतन जाती हो।

अभी सूक्ष्मवतन का पार्ट है।

यह सब राज़ बच्चों को समझाते हैं।

बाप जानते हैं कि हम आत्माओं को समझा रहे हैं।

साधू-सन्त आदि कोई भी इन बातों को नहीं जानते हैं।

वह कभी ऐसी बातें कर न सकें।

बाप ही बच्चों से बात करते हैं।

आरगन्स बिगर तो बात कर न सकें।

कहते हैं मैं इस शरीर का आधार ले तुम बच्चों को पढ़ाता हूँ।

तुम आत्माओं की दृष्टि भी बाप तरफ चली जाती है।

यह हैं सब नई बातें।

निराकार बाप, उनका नाम है शिवबाबा। तुम आत्माओं का नाम तो आत्मा ही है।

तुम्हारे शरीर के नाम बदलते हैं।

मनुष्य कहते हैं परमात्मा नाम-रूप से न्यारा है, परन्तु नाम तो शिव कहते हैं ना।

शिव की पूजा भी करते हैं।

समझते एक हैं, करते दूसरा हैं।

अभी तुम बाप के नाम रूप देश काल को भी समझ गये हो। तुम जानते हो कोई भी चीज़ नाम-रूप के बिगर नहीं हो सकती है। यह भी बड़ी सूक्ष्म समझने की बात है।

बाप समझाते हैं-गायन भी है सेकण्ड में जीवनमुक्ति अर्थात् मनुष्य नर से नारायण बन सकते हैं।

जबकि बाप हेविनली गॉड फादर है, हम उनके बच्चे बने हैं तो भी स्वर्ग के मालिक ठहरे। परन्तु यह भी समझते नहीं हैं।

बाप कहते हैं-बच्चे, तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही यह है, नर से नारायण बनना।

राजयोग है ना।

बहुतों को चतुर्भुज का साक्षात्कार होता है, इससे सिद्ध है विष्णुपुरी के हम मालिक बनने वाले हैं।

तुमको मालूम है-स्वर्ग में भी लक्ष्मी-नारायण के तख्त के पिछाड़ी विष्णु का चित्र रखते हैं अर्थात् विष्णुपुरी में इन्हों का राज्य

है। यह लक्ष्मी-नारायण विष्णुपुरी के मालिक हैं।

वह है कृष्णपुरी, यह है कंसपुरी।

ड्रामानुसार यह भी नाम रखे हुए हैं।

बाप समझाते हैं मेरा रूप बहुत सूक्ष्म है।

कोई भी जान नहीं सकते।

कहते हैं कि आत्मा एक स्टॉर है परन्तु फिर लिंग बना देते।

नहीं तो पूजा कैसे हो।

रूद्र यज्ञ रचते हैं तो अंगूठे मिसल सालिग्राम बनाते हैं।

दूसरी तरफ उनको अज़ब सितारा कहते हैं।

आत्मा को देखने की बहुत कोशिश करते हैं परन्तु कोई भी देख नहीं सकते।

रामकृष्ण, विवेकानंद का भी दिखाते हैं ना, उसने देखा आत्मा उनसे निकल मेरे में समा गई। अब उनको किसका साक्षात्कार हुआ होगा?

आत्मा और परमात्मा का रूप तो एक ही है। बिन्दी देखा, समझते कुछ नहीं। आत्मा का साक्षात्कार तो कोई चाहते नहीं।

चाहना रखते हैं कि परमात्मा का साक्षात्कार करें।

वह बैठा था कि गुरू से परमात्मा का साक्षात्कार करें।

बस, कह दिया ज्योति थी वह मेरे में समा गई।

इसमें ही वह बहुत खुश हो गया।

समझा यही परमात्मा का रूप है।

गुरू में भावना रहती है, भगवान के साक्षात्कार की।

समझते कुछ नहीं।

भला भक्ति मार्ग में समझाये कौन?

अब बाप बैठ समझाते हैं-जिस-जिस रूप में जैसी भावना रखते हैं, जो शक्ल देखते हैं, वह साक्षात्कार हो जाता है।

जैसे गणेश की बहुत पूजा करते हैं तो उनका चैतन्य रूप में साक्षात्कार हो जाता है।

नहीं तो उनको निश्चय कैसे हो? तेजोमय रूप देख समझते हैं कि हमने भगवान का साक्षात्कार किया।

उसमें ही खुश हो जाते हैं। यह सब है भक्ति मार्ग, उतरती कला।

पहला जन्म अच्छा होता है फिर कमती होते-होते अन्त आ जाता है।

बच्चे ही इन बातों को समझते हैं, जिनको कल्प पहले ज्ञान समझाया है उनको ही अब समझा रहे हैं।

कल्प पहले वाले ही आयेंगे, बाकी औरों का तो धर्म ही अलग है।

बाप समझाते हैं एक-एक चित्र में भगवानुवाच लिख दो।

बड़ा युक्ति से समझाना होता है।

भगवानुवाच है ना-यादव, कौरव और पाण्डव क्या करत भये, उसका यह चित्र है।

पूछो-तुम बताओ अपने बाप को जानते हो?

नहीं जानते हो तो गोया बाप से प्रीत नहीं है ना, तो विप्रीत बुद्धि ठहरे।

बाप से प्रीत नहीं तो विनाश हो जायेंगे।

प्रीत बुद्धि विजयन्ती, सत्यमेव जयते-इनका अर्थ भी ठीक है।

बाप की याद ही नहीं तो विजय पा नहीं सकते।

अभी तुम सिद्ध कर बतलाते हो - गीता शिव भगवान ने सुनाई है।

उसने ही राजयोग सिखाया, ब्रह्मा द्वारा।

यह तो कृष्ण भगवान की गीता समझकर कसम उठाते हैं।

उनसे पूछना चाहिए-कृष्ण को हाजिर-नाज़िर जानना चाहिए वा भगवान को?

कहते हैं ईश्वर को हाजिर-नाज़िर जान सच बोलो।

रोला हो गया ना।

तो कसम भी झूठा हो जाता।

सर्विस करने वाले बच्चों को गुप्त नशा रहना चाहिए।

नशे से समझायेंगे तो सफलता होगी।

तुम्हारी यह पढ़ाई भी गुप्त है, पढ़ाने वाला भी गुप्त है।

तुम जानते हो हम नई दुनिया में जाकर यह बनेंगे।

नई दुनिया स्थापन होती है महाभारत लड़ाई के बाद।

बच्चों को अब नॉलेज मिली है।

वह भी नम्बरवार धारण करते हैं।

योग में भी नम्बरवार रहते हैं।

यह भी जांच रखनी चाहिए-हम कितना याद में रहते हैं?

बाप कहते हैं यह अभी तुम्हारा पुरूषार्थ भविष्य 21 जन्मों के लिए हो जायेगा।

अभी फेल हुए तो कल्प-कल्पान्तर फेल होते रहेंगे, ऊंच पद नहीं पा सकेंगे।

पुरूषार्थ करना चाहिए ऊंच पद पाने का।

ऐसे भी कई सेन्टर्स पर आते हैं जो विकार में जाते रहते हैं और फिर सेन्टर्स पर आते रहते हैं।

समझते हैं ईश्वर तो सब देखता है, जानता है।

अब बाप को क्या पड़ी है जो यह बैठ देखेगा।

तुम झूठ बोलेंगे, विकर्म करेंगे तो अपना ही नुकसान करेंगे।

यह तो तुम भी समझते हो, काला मुँह करता हूँ तो ऊंच पद पा नहीं सकूँगा।

सो बाप ने जाना तो भी बात तो एक ही हुई।

उनको क्या दरकार पड़ी है।

अपनी दिल खानी चाहिए-मैं ऐसा कर्म करने से दुर्गति को पाऊंगा।

बाबा क्यों बतावे?

हाँ, ड्रामा में है तो बतलाते भी हैं।

बाबा से छिपाना गोया अपनी सत्यानाश करना है।

पावन बनने के लिए बाप को याद करना है, तुमको यही फुरना रहना चाहिए कि हम अच्छी रीति पढ़कर ऊंच पद पावें।

कोई मरा वा जिया, उनका फुरना नहीं।

फुरना (फा) रखना है कि बाप से वर्सा कैसे लेवें?

तो किसको भी थोड़े में समझाना है।

अच्छा। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. गुप्त नशे में रहकर सर्विस करनी है।

ऐसा कोई कर्म नहीं करना है जो दिल खाती रहे।

अपनी जांच करनी है कि हम कितना याद में रहते हैं?

2. सदा यही फा रहे कि हम अच्छी रीति पढ़कर ऊंच पद पायें।

कोई भी विकर्म करके, झूठ बोलकर अपना नुकसान नहीं करना है।

वरदान:-

विशेषताओं के दान द्वारा

महान बनने वाले

महादानी भव

ज्ञान दान तो सब करते हैं लेकिन आप विशेष आत्माओं को अपनी विशेषताओं का दान करना है।

जो भी आपके सामने आये उसे आप से बाप के स्नेह का अनुभव हो, आपके चेहरे से बाप का चित्र और चलन से बाप के चरित्र दिखाई दें।

आपकी विशेषतायें देखकर वह विशेष आत्मा बनने की प्रेरणा प्राप्त करे, ऐसे महादानी बनो तो आदि से अन्त तक, पूज्य पन में भी और पुजारी पन में भी महान रहेंगे।

स्लोगन:-

सदा आत्म अभिमानी रहने वाला ही सबसे बड़ा ज्ञानी है।