बापदादा सभी निश्चयबुद्धि बच्चों के निश्चय का प्रत्यक्ष जीवन का स्वरूप देख रहे हैं।
निश्चयबुद्धि की विशेषतायें सभी ने सुनी।
ऐसा विशेषताओं सम्पन्न निश्चयबुद्धि विजयी रत्न इस ब्राह्मण जीवन वा पुरूषोत्तम संगमयुगी जीवन में सदा निश्चय का प्रमाण, वह नशे में होगा।
रूहानी नशा निश्चय का दर्पण स्वरूप है।
निश्चय सिर्फ बुद्धि में स्मृति तक नहीं लेकिन हर कदम में रूहानी नशे के रूप में, कर्म द्वारा प्रत्यक्ष स्वरूप में स्वयं को भी अनुभव होता औरों को भी अनुभव होता क्योंकि यह ज्ञानी और योगी जीवन है।
सिर्फ सुनने सुनाने तक नहीं है, जीवन बनाने का है।
जीवन में स्मृति अर्थात् संकल्प, बोल, कर्म, सम्बन्ध सब आ जाता है।
निश्चयबुद्धि अर्थात् नशे का जीवन।
ऐसे रूहानी नशे वाली आत्मा का हर संकल्प सदा नशे से सम्पन्न होगा।
संकल्प, बोल, कर्म तीनों से निश्चय का नशा अनुभव होगा।
जैसा नशा वैसे खुशी की झलक चेहरे से चलन से प्रत्यक्ष होगी।
निश्चय का प्रमाण नशा और नशे का प्रमाण है खुशी।
नशे कितने प्रकार के हैं, इसका विस्तार बहुत बड़ा है।
लेकिन सार रूप में एक नशा है अशरीरी आत्मिक स्वरूप का।
इसका विस्तार जानते हो?
आत्मा तो सभी हैं लेकिन रूहानी नशा तब अनुभव होता जब यह स्मृति में रखते कि मैं कौन-सी आत्मा हूँ?
इसका और विस्तार आपस में निकालना वा स्वयं मनन करना।
दूसरा नशे का विशेष रूप संगमयुग का अलौकिक जीवन है। इस जीवन में भी कौन-सी जीवन है इसका भी विस्तार सोचो।
तो एक है आत्मिक स्वरूप का नशा।
दूसरा है अलौकिक जीवन का नशा।
तीसरा है फरिश्तेपन का नशा। फरिश्ता किसको कहा जाता है, इसका भी विस्तार करो।
चौथा है भविष्य का नशा।
इन चार ही प्रकार के अलौकिक नशे में से कोई भी नशा जीवन में होगा तो स्वत: ही खुशी में नाचते रहेंगे।
निश्चय भी है लेकिन खुशी नहीं है इसका कारण?
नशा नहीं है।
नशा सहज ही पुराना संसार और पुराना संस्कार भुला देता है।
इस पुरूषार्थी जीवन में विशेष विघ्न रूप यह दो बातें हैं।
चाहे पुराना संसार वा पुराना संस्कार।
संसार में देह के सम्बन्ध और देह के पदार्थ दोनों आ जाता है।
साथ-साथ संसार से भी पुराने संस्कार ज्यादा विघ्न रूप बनते हैं।
संसार भूल जाते हैं लेकिन संस्कार नहीं भूलते।
तो संस्कार परिवर्तन करने का साधन है इन चार ही नशे में से कोई भी नशा साकार स्वरूप में हो।
सिर्फ संकल्प स्वरूप में नहीं।
साकार स्वरूप में होने से कभी भी विघ्न रूप नहीं बनेंगे।
अभी तक संस्कार परिवर्तन न होने का कारण यह है।
इन नशों को संकल्प रूप में अर्थात् नॉलेज के रूप में बुद्धि तक धारण किया है इसलिए कभी भी किसी का पुराना संस्कार इमर्ज होता है तब यह भाषा बोलते हैं।
मैं सब समझती हूँ, बदलना है यह भी समझते हैं लेकिन समझ तक नहीं।
कर्म अर्थात् जीवन तक चाहिए।
जीवन द्वारा परिवर्तन अनुभव में आवे।
इसको कहा जाता है साकार स्वरूप में आना।
अभी बुद्धि तक प्वाइंट्स के रूप में सोचने और वर्णन करने तक है।
लेकिन हर कर्म में, सम्पर्क में परिवर्तन दिखाई दे इसको कहा जाता है साकार रूप में अलौकिक नशा।
अभी हर एक नशे को जीवन में लाओ।
कोई भी आपके मस्तक तरफ देखे तो मस्तक द्वारा रूहानी नशे की वृत्ति अनुभव हो।
चाहे कोई वर्णन करे न करे लेकिन वृत्ति, वायुमण्डल और वायब्रेशन फैलाती है।
आपकी वृत्ति दूसरे को भी खुशी के वायुमण्डल में खुशी के वायब्रेशन अनुभव करावे, इसको कहा जाता है नशे में स्थित होना।
ऐसे ही दृष्टि से, मुख की मुस्कान से, मुख के बोल से, रूहानी नशे का साकार रूप अनुभव हो।
तब कहेंगे नशे में रहने वाले निश्चयबुद्धि विजयी रत्न।
इसमें गुप्त नहीं रहना है। कई ऐसी भी चतुराई करते हैं कि हम गुप्त हैं।
जैसे कहावत है सूर्य को कभी कोई छिपा नहीं सकता।
कितने भी गहरे बादल हों फिर भी सूर्य अपना प्रकाश छोड़ नहीं सकता।
सूर्य हटता है वा बादल हटते हैं?
बादल आते भी हैं और हट भी जाते हैं लेकिन सूर्य अपने प्रकाश स्वरूप में स्थित रहता है।
तो रूहानी नशे वाला भी रूहानी झलक से छिप नहीं सकता।
उसके रूहानी नशे की झलक प्रत्यक्ष रूप में अनुभव अवश्य होती है।
उनके वायब्रेशन स्वत: ही औरों को आकर्षित करते हैं।
रूहानी नशे में रहने वाले के वायब्रेशन स्वयं के प्रति वा औरों के प्रति छत्रछाया का कार्य करते हैं।
तो अभी क्या करना है?
साकार में आओ।
नॉलेज के हिसाब से नॉलेजफुल हो गये हो।
लेकिन नॉलेज को साकार जीवन में लाने से नॉलेजफुल के साथ-साथ सक्सेसफुल, ब्लिसफुल अनुभव करेंगे।
अच्छा फिर सुनायेंगे सक्सेसफुल और ब्लिसफुल का स्वरूप क्या होता है?
आज तो रूहानी नशे की बात सुना रहे हैं।
सभी को नशा अनुभव हो।
इन चार ही नशों में से एक नशे को भिन्न-भिन्न रूप से यूज़ करो।
जितना इस नशे को जीवन में अनुभव करेंगे तो सदा सभी फिकर से फारिग बेफिकर बादशाह बन जायेंगे।
सभी आपको बेफिकर बादशाह के रूप में देखेंगे।
तो अब विस्तार निकालना वा प्रैक्टिस में लाना।
जहाँ खुशी है वहाँ माया की कोई भी चाल चल नहीं सकती।
बेफिकर बादशाह की बादशाही के अन्दर माया आ नहीं सकती।
आती है और भगाते हो, फिर आती है फिर भगाते हो।
कभी देह के रूप में आती, कभी देह के सम्बन्ध के रूप में आती है।
इसी को ही कहते हैं कभी माया हाथी बनके आती, कभी बिल्ली बनके आती, कभी चूहा बनकर आती।
कभी चूहे को निकालते, कभी बिल्ली को निकालते।
इसी भगाने के कार्य में समय निकल जाता है इसलिए सदा रूहानी नशे में रहो।
पहले स्वयं को प्रत्यक्ष करो तब बाप की प्रत्यक्षता करेंगे क्योंकि आप द्वारा बाप प्रत्यक्ष होना है।
अच्छा-
सदा स्वयं द्वारा सर्व शक्तिवान को प्रत्यक्ष करने वाले, सदा अपने साकार जीवन के दर्पण से रूहानी नशे की विशेषता प्रत्यक्ष करने वाले, सदा बेफिकर बादशाह बन माया को विदाई देने वाले, सदा नॉलेज को स्वरूप में लाने वाले, ऐसे निश्चय बुद्धि नशे में रहने वाले, सदा खुशी में झूलने वाले, ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को, विशेष आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
सेवाधारी (टीचर्स) बहिनों से:-
सेवाधारी अर्थात् अपनी शक्तियों द्वारा औरों को भी शक्तिशाली बनाने वाले।
सेवाधारी की वास्तविक विशेषता यही है।
निर्बल में बल भरने के निमित्त बनना, यही सच्ची सेवा है।
ऐसी सेवा का पार्ट मिलना भी हीरो पार्ट है।
तो हीरो पार्टधारी कितने नशे में रहती हो?
सेवा के पार्ट से जितना अपने को नम्बर आगे बढ़ाने चाहो बढ़ा सकती हो क्योंकि सेवा आगे बढ़ने का साधन है।
सेवा में बिजी रहने से स्वत: ही सब बातों से किनारा हो जाता है।
हर एक सेवास्थान स्टेज है, जिस स्टेज पर हर आत्मा अपना पार्ट बजा रही है।
साधन तो बहुत हैं लेकिन सदा साधनों में शक्ति होनी चाहिए।
अगर बिना शक्ति के साधन यूज़ करते हैं तो जो सेवा की रिजल्ट निकलनी चाहिए वह नहीं निकलती है।
पुराने समय में जो वीर लोग होते थे वह सदैव अपने शस्त्रों को देवताओं के आगे अर्पण कर उसमें शक्ति भरकर फिर यूज़ करते थे।
तो आप सभी भी कोई भी साधन जब यूज़ करते हो तो उसे यूज़ करने के पहले उसी विधिपूर्वक कार्य में लगाते हो?
अभी जो भी साधन कार्य में लगाते हो उससे थोड़े समय के लिए लोग आकर्षित होते हैं।
सदाकाल के लिए प्रभावित नहीं होते क्योंकि इतनी शक्तिशाली आत्मायें जो शक्ति द्वारा परिवर्तन कर दिखायें, वह नम्बरवार हैं।
सेवा तो सभी करते हो, सभी का नाम है टीचर्स।
सेवाधारी हो या टीचर हो लेकिन सेवा में अन्तर क्या है?
प्रोग्राम भी एक ही बनाते हो, प्लैन भी एक जैसा करते हो।
रीति रसम भी एक जैसी बनती है फिर भी सफलता में अन्तर पड़ जाता है, उसका कारण क्या?
शक्ति की कमी। तो साधन में शक्ति भरो। जैसे तलवार में अगर जौहर नहीं हो तो तलवार, तलवार का काम नहीं देती।
ऐसे साधन हैं तलवार लेकिन उसमें शक्ति का जौहर चाहिए।
वह जितना अपने में भरते जायेंगे उतना सेवा में स्वत: ही सफलता मिलेगी।
तो शक्तिशाली सेवाधारी बनो।
सदा विधि द्वारा वृद्धि को प्राप्त होना, यह भी कोई बड़ी बात नहीं है।
लेकिन शक्तिशाली आत्मायें वृद्धि को प्राप्त हों - इसका विशेष अटेन्शन।
क्वालिटी निकालो।
क्वान्टिटी तो और भी ज्यादा आयेगी।
क्वालिटी के ऊपर अटेन्शन। नम्बर क्वालिटी पर मिलेगा, क्वान्टिटी पर नहीं।
एक क्वालिटी वाला 100 क्वान्टिटी के बराबर है।
कुमारों से:-
कुमार क्या कमाल करते हो?
धमाल करने वाले तो नहीं हो ना!
कमाल करने के लिए शक्तिशाली बनो और बनाओ।
शक्तिशाली बनने के लिए सदा अपना मास्टर सर्व शक्तिवान का टाइटिल स्मृति में रखो। जहाँ शक्ति होगी वहाँ माया से मुक्ति होगी।
जितना स्व के ऊपर अटेन्शन होगा उतना ही सेवा में भी अटेन्शन जायेगा।
अगर स्व के प्रति अटेन्शन नहीं तो सेवा में शक्ति नहीं भरती इसलिए सदा अपने को सफलता स्वरूप बनाने के लिए शक्तिशाली अभ्यास के साधन बनाने चाहिए।
कोई ऐसे विशेष प्रोग्राम बनाओ, जिससे सदा प्रोग्रेस होती रहे।
पहले स्व उन्नति के प्रोग्राम तब सेवा सहज और सफल होगी।
कुमार जीवन भाग्यवान जीवन है क्योंकि कई बन्धनों से बच गये।
नहीं तो गृहस्थी जीवन में कितने बन्धन हैं।
तो ऐसे भाग्यवान बनने वाली आत्मायें कभी अपने भाग्य को भूल तो नहीं जातीं।
सदा अपने को श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा समझ औरों के भी भाग्य की रेखा खींचने वाले हो।
जो निर्बन्धन होते हैं वह स्वत: ही उड़ती कला द्वारा आगे बढ़ते जाते इसलिए कुमार और कुमारी जीवन बापदादा को सदा प्यारी लगती है।
गृहस्थी जीवन है बन्धन वाली और कुमारी जीवन है बन्धन मुक्त।
तो निर्बन्धन आत्मा बन औरों को भी निर्बन्धन बनाओ।
कुमार अर्थात् सदा सेवा और याद का बैलेन्स रखने वाले।
बैलेन्स है तो सदा उड़ती कला है।
जो बैलेन्स रखना जानते हैं वह कभी भी किसी परिस्थिति में नीचे-ऊपर नहीं हो सकते।
अधर कुमारों से:-
सभी अपने जीवन के प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा सेवा करने वाले हो ना!
सबसे बड़े ते बड़ा प्रत्यक्ष प्रमाण है - आप सबकी जीवन का परिवर्तन।
सुनने वाले सुनाने वाले तो बहुत देखे।
अभी सब देखने चाहते हैं, सुनने नहीं चाहते।
तो सदा जब भी कोई कर्म करते हो तो यह लक्ष्य रखो कि जो कर्म हम कर रहे हैं उसमें ऐसा परिवर्तन हो जो दूसरे देख करके परिवर्तित हो जाएं।
इससे स्वयं भी सन्तुष्ट और खुश रहेंगे और दूसरों का भी कल्याण करेंगे।
तो हर कर्म सेवार्थ करो।
अगर यह स्मृति रहेगी कि मेरा हर कर्म सेवा अर्थ है तो स्वत: ही श्रेष्ठ कर्म करेंगे।
याद रखो - स्व परिवर्तन से औरों का परिवर्तन करना है।
यह सेवा सहज भी है और श्रेष्ठ भी है।
मुख का भी भाषण और जीवन का भी भाषण, इसको कहते हैं सेवाधारी।
सदा अपनी दृष्टि द्वारा औरों की दृष्टि बदलने के सेवाधारी।
जितनी दृष्टि शक्तिशाली होगी उतना अनेकों का परिवर्तन कर सकेंगे।
सदा दृष्टि और श्रेष्ठ कर्म द्वारा औरों की सेवा करने के निमित्त बनो।
2.
क्या थे और क्या बन गये! यह सदा स्मृति में रखते हो!
इस स्मृति में रहने से कभी भी पुराने संस्कार इमर्ज नहीं हो सकते।
साथ-साथ भविष्य में भी क्या बनने वाले हैं, यह भी याद रखो तो वर्तमान और भविष्य श्रेष्ठ होने के कारण खुशी रहेगी और खुशी में रहने से सदा आगे बढ़ते रहेंगे।
वर्तमान और भविष्य की दुनिया श्रेष्ठ है तो श्रेष्ठ के आगे जो दुखदाई दुनिया है वह याद नहीं आयेगी।
सदा अपने इस बेहद के परिवार को देख खुश होते रहो।
कभी स्वप्न में भी सोचा होगा कि ऐसा भाग्यवान परिवार मिलेगा।
लेकिन अभी साकार में देख रहे हो, अनुभव कर रहे हो।
ऐसा परिवार जो एकमत परिवार हो, इतना बड़ा परिवार हो यह सारे कल्प में अभी ही है।
सतयुग में भी छोटा परिवार होगा।
तो बापदादा और परिवार को देख खुशी होती है ना।
यह परिवार प्यारा लगता है?
क्योंकि यहाँ स्वार्थ भाव नहीं है।
जो ऐसे परिवार के बनते हैं वह भविष्य में भी एक दो के समीप आते हैं।
सदा इस ईश्वरीय परिवार की विशेषताओं को देखते हुए आगे बढ़ते चलो।
कुमारियों से:-
सभी कुमारियाँ अपने को विश्व कल्याणकारी समझ आगे बढ़ती रहती हो?
यह स्मृति सदा समर्थ बनाती है।
कुमारी जीवन समर्थ जीवन है।
कुमारियाँ स्वयं समर्थ बन औरों को समर्थ बनाने वाली हैं।
व्यर्थ को सदा के लिए विदाई देने वाली।
कुमारी जीवन के भाग्य को स्मृति में रख आगे बढ़ते चलो।
यह भी संगम में बड़ा भाग्य है, जो कुमारी बनी, कुमारी अपने जीवन द्वारा औरों की जीवन बनाने वाली, बाप के साथ रहने वाली।
सदा स्वयं को शक्तिशाली अनुभव कर औरों को भी शक्तिशाली बनाने वाली।
सदा श्रेष्ठ एक बाप दूसरा न कोई।
ऐसे नशे में हर कदम आगे बढ़ाने वाली!
तो ऐसी कुमारियाँ हो ना!
प्रश्न:-
किस विशेषता व गुण से सर्वप्रिय बन सकते हो?
उत्तर:-
न्यारे और प्यारे रहने का गुण व नि:संकल्प रहने की जो विशेषता है - इसी विशेषता से सर्व के प्रिय बन सकते, प्यारे-पन से सबके दिल का प्यार स्वत: ही प्राप्त हो जाता है।
इसी विशेषता से सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
वरदान:-
सर्व समस्याओं की
विदाई का समारोह मनाने वाले
समाधान स्वरूप भव
समाधान स्वरूप आत्माओं की माला तब तैयार होगी जब आप अपनी सम्पूर्ण स्थिति में स्थित होंगे।
सम्पूर्ण स्थिति में समस्यायें बचपन का खेल अनुभव होती हैं अर्थात् समाप्त हो जाती हैं।
जैसे ब्रह्मा बाप के सामने यदि कोई बच्चा समस्या लेकर आता था तो समस्या की बातें बोलने की हिम्मत भी नहीं होती थी, वह बातें ही भूल जाती थी।
ऐसे आप बच्चे भी समाधान स्वरूप बनो तो आधाकल्प के लिए समस्याओं का विदाई समारोह हो जाए।
विश्व की समस्याओं का समाधान ही परिवर्तन है।
स्लोगन:-
जो सदा ज्ञान का सिमरण करते हैं वे माया की आकर्षण से बच जाते हैं।