अगर देह-अभिमान है तो बाप की याद के बजाए देहधारी की याद आयेगी, कुदृष्टि जाती रहेगी, खराब ख्यालात आयेंगे।
यह बहुत बड़ा पाप है।
समझना चाहिए, माया वार कर रही है।
फौरन सावधान हो जाना चाहिए।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझा रहे हैं।
रूहानी बाप आये कहाँ से हैं?
रूहानी दुनिया से।
जिसको निर्वाणधाम अथवा शान्तिधाम भी कहते हैं।
यह तो है गीता की बात।
तुमसे पूछते हैं-यह ज्ञान कहाँ से आया?
बोलो, यह तो वही गीता का ज्ञान है।
गीता का पार्ट चल रहा है और बाप पढ़ाते हैं।
भगवानुवाच है ना और भगवान तो एक ही है।
वह है शान्ति का सागर।
रहते भी हैं शान्तिधाम में, जहाँ हम भी रहते हैं।
बाप समझाते हैं कि यह है पतित दुनिया, पाप आत्माओं की तमोप्रधान दुनिया।
तुम भी जानते हो बरोबर हम आत्मायें इस समय तमोप्रधान हैं।
84 का चक्र खाकर सतोप्रधान से अब तमोप्रधान में आये हैं।
यह पुरानी अथवा कलियुगी दुनिया है ना।
यह नाम सभी इस समय के हैं।
पुरानी दुनिया के बाद फिर नई दुनिया होती है।
भारतवासी यह भी जानते हैं कि महाभारत लड़ाई भी तब लगी थी जबकि दुनिया बदलनी थी, तब ही बाप ने आकर राजयोग सिखलाया था।
सिर्फ भूल क्या हुई है?
एक तो कल्प की आयु भूल गये हैं और गीता के भगवान को भी भूले हैं।
कृष्ण को तो गॉड फादर कह नहीं सकते।
आत्मा कहती है गॉड फादर, तो वह निराकार हो गया।
निराकार बाप आत्माओं को कहते हैं कि मुझे याद करो।
मैं ही पतित-पावन हूँ, मुझे बुलाते भी हैं-हे पतित-पावन।
कृष्ण तो देहधारी है ना। मुझे तो कोई शरीर है नहीं।
मैं निराकार हूँ, मनुष्यों का बाप नहीं, आत्माओं का बाप हूँ।
यह तो पक्का कर लेना चाहिए।
घड़ी-घड़ी हम आत्मायें इस बाप से वर्सा लेती हैं। अभी 84 जन्म पूरे हुए हैं, बाप आया है।
बाबा-बाबा ही करते रहना है। बाबा को बहुत याद करना है।
सारा कल्प जिस्मानी बाप को याद किया।
अभी बाप आये हैं और मनुष्य सृष्टि से सब आत्माओं को वापिस ले जाते हैं क्योंकि रावण राज्य में मनुष्यों की दुर्गति हो गई है इसलिए अब बाप को याद करना है।
यह भी मनुष्य कोई समझते नहीं कि अभी रावण राज्य है।
रावण का अर्थ ही नहीं समझते।
बस एक रस्म हो गई है दशहरा मनाने की।
तुम कोई अर्थ थोड़ेही समझते थे।
अभी समझ मिली है औरों को समझ देने के लिए।
अगर औरों को नहीं समझा सकते हो तो गोया खुद नहीं समझे हो।
बाप में सृष्टि चक्र का ज्ञान है।
हम उनके बच्चे हैं तो बच्चों में भी यह नॉलेज रहनी चाहिए।
तुम्हारी यह है गीता पाठशाला।
उद्देश्य क्या है? यह लक्ष्मी-नारायण बनना।
यह राजयोग है ना।
नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनने की यह नॉलेज है।
वो लोग कथायें बैठ सुनाते हैं।
यहाँ तो हम पढ़ते हैं, हमको बाप राजयोग सिखाते हैं।
यह सिखाते ही हैं कल्प के संगमयुग पर।
बाप कहते हैं मैं पुरानी दुनिया को बदल नई दुनिया बनाने आया हूँ।
नई दुनिया में इन्हों का राज्य था, पुरानी में नहीं है, फिर जरूर होना चाहिए।
चक्र तो जान लिया है।
मुख्य धर्म हैं चार।
अभी डिटीज्म है नहीं।
दैवी धर्म भ्रष्ट और दैवी कर्म भ्रष्ट बन पड़े हैं।
अभी फिर तुमको दैवी धर्म श्रेष्ठ और कर्म श्रेष्ठ सिखला रहे हैं।
तो अपने पर ध्यान रखना है, हमसे कोई आसुरी कर्म तो नहीं होते हैं?
माया के कारण कोई खराब ख्यालात तो बुद्धि में नहीं आते हैं?
कुदृष्टि तो नहीं रहती है?
देखें, इनकी कुदृष्टि जाती है अथवा खराब ख्यालात आते हैं तो उनको झट सावधान करना चाहिए।
उनसे मिल नहीं जाना चाहिए।
उनको सावधान करना चाहिए-तुम्हारे में माया की प्रवेशता के कारण यह खराब ख्यालात आते हैं।
योग में बैठ बाप की याद के बदले कोई की देह तरफ ख्याल जाता है तो समझना चाहिए यह माया का वार हो रहा है, मैं पाप कर रहा हूँ।
इसमें तो बुद्धि बड़ी शुद्ध होनी चाहिए।
हँसी-मज़ाक से भी बहुत नुकसान होता है इसलिए तुम्हारे मुख से सदैव शुद्ध वचन निकलने चाहिए, कुवचन नहीं।
हँसी मजाक आदि भी नहीं।
ऐसे नहीं कि हमने तो हँसी की....... वह भी नुकसानकारक हो जाती है।
हंसी भी ऐसी नहीं करनी चाहिए जिसमें विकारों की वायु हो।
बहुत खबरदार रहना है।
तुमको मालूम है नांगे लोग हैं उनके ख्याल विकारों की तरफ नहीं जायेंगे। रहते भी अलग हैं।
परन्तु कर्मेन्द्रियों की चलायमानी सिवाए योग के कभी निकलती नहीं है।
काम शत्रु ऐसा है जो किसको भी देखेंगे, योग में पूरा नहीं होंगे तो चलायमानी जरूर होगी। अपनी परीक्षा लेनी होती है।
बाप की याद में ही रहो तो यह कोई भी प्रकार की बीमारी न रहे।
योग में रहने से यह नहीं होता है।
सतयुग में तो कोई भी प्रकार का गन्द नहीं होता है।
वहाँ रावण की चंचलता ही नहीं जो चलायमानी हो।
वहाँ तो योगी लाइफ रहती है।
यहाँ भी अवस्था बड़ी पक्की चाहिए।
योगबल से यह सब बीमारियाँ बन्द हो जाती हैं।
इसमें बड़ी मेहनत है।
राज्य लेना कोई मासी का घर नहीं।
पुरूषार्थ तो करना है ना।
ऐसे नहीं कि बस जो होगा भाग्य में सो मिलेगा।
धारणा ही नहीं करते गोया पाई-पैसे के पद पाने लायक हैं।
सब्जेक्ट्स तो बहुत होती हैं ना।
कोई ड्राइंग में, कोई खेल में मार्क्स ले लेते हैं।
वह है कॉमन सब्जेक्ट।
वैसे ही यहाँ भी सब्जेक्ट्स हैं।
कुछ न कुछ मिलेगा।
बाकी बादशाही नहीं मिल सकेगी।
वह तो सर्विस करेंगे तब बादशाही मिलेगी।
उसके लिए बहुत मेहनत चाहिए।
बहुतों की बुद्धि में बैठता ही नहीं है।
जैसेकि खाना हजम ही नहीं होता।
ऊंच पद पाने की हिम्मत नहीं, इसको भी बीमारी कहेंगे ना।
तुम कोई भी बात देखते न देखो।
रूहानी बाप की याद में रह औरों को रास्ता बताना है, अन्धों की लाठी बनना है।
तुम तो रास्ता जानते हो।
रचयिता और रचना का ज्ञान मुक्ति और जीवनमुक्ति तुम्हारी बुद्धि में फिरते रहते हैं, जो-जो महारथी हैं।
बच्चों की अवस्था में भी रात-दिन का फ़र्क रहता है।
कहाँ बहुत धनवान बन जाते, कहाँ बिल्कुल गरीब।
राजाई पद में तो फ़र्क है ना।
बाकी हाँ, वहाँ रावण न होने कारण दु:ख नहीं होता है।
बाकी सम्पत्ति में तो फ़र्क है।
सम्पत्ति से सुख होता है।
जितना योग में रहेंगे उतनी हेल्थ बड़ी अच्छी होगी।
मेहनत करनी है। बहुतों की तो चलन ऐसी रहती है जैसे अज्ञानी मनुष्यों की होती है।
वह किसका कल्याण कर नहीं सकेंगे।
जब इम्तहान होता है तो मालूम पड़ जाता है कि कौन कितने मार्क्स से पास होंगे, फिर उस समय हाय-हाय करनी पड़ेगी।
बापदादा दोनों ही कितना समझाते रहते हैं।
बाप आये ही हैं कल्याण करने।
अपना भी कल्याण करना है तो दूसरों का भी करना है।
बाप को बुलाया भी है कि आकर हम पतितों को पावन होने का रास्ता बताओ।
तो बाप श्रीमत देते हैं-तुम अपने को आत्मा समझ देह-अभिमान छोड़ मुझे याद करो।
कितनी सहज दवाई है।
बोलो, हम सिर्फ एक भगवान बाप को मानते हैं।
वह कहते हैं मुझे बुलाते हो कि आकर पतितों को पावन बनाओ तो मुझे आना पड़ता है।
ब्रह्मा से तुमको कुछ भी मिलना नहीं है।
वह तो दादा है, बाबा भी नहीं।
बाबा से तो वर्सा मिलता है।
ब्रह्मा से थोड़ेही वर्सा मिलता है।
निराकार बाप इन द्वारा एडाप्ट कर हम आत्माओं को पढ़ाते हैं।
इनको भी पढ़ाते हैं।
ब्रह्मा से तो कुछ भी मिलने का नहीं है।
वर्सा बाप से ही मिलता है इन द्वारा।
देने वाला एक है।
उनकी ही महिमा है।
वही सर्व का सद्गति दाता है।
यह तो पूज्य से फिर पुजारी बनते हैं।
सतयुग में थे, फिर 84 जन्म भोग अब पतित बने हैं फिर पूज्य पावन बन रहे हैं।
हम बाप द्वारा सुनते हैं।
कोई मनुष्य से नहीं सुनते।
मनुष्यों का है ही भक्ति मार्ग।
यह है रूहानी ज्ञान मार्ग।
ज्ञान सिर्फ एक ज्ञान सागर के पास ही है।
बाकी यह शास्त्र आदि सब भक्ति के हैं।
शास्त्र आदि पढ़ना - यह सब है भक्ति मार्ग।
ज्ञान सागर तो एक ही बाप है, हम ज्ञान नदियां ज्ञान सागर से निकली हैं।
बाकी वह है पानी का सागर और नदियाँ।
बच्चों को यह सब बातें ध्यान में रहनी चाहिए।
अन्तर्मुख हो बुद्धि चलानी चाहिए।
अपने आपको सुधारने के लिए अन्तर्मुख हो अपनी जांच करो।
अगर मुख से कोई कुवचन निकले या कुदृष्टि जाए तो अपने को फटकारना चाहिए-हमारे मुख से कुवचन क्यों निकले, हमारी कुदृष्टि क्यों गई?
अपने को चमाट भी मारनी चाहिए, घड़ी-घड़ी सावधान करना चाहिए तब ही ऊंच पद पा सकेंगे।
मुख से कटुवचन न निकलें।
बाप को तो सब प्रकार की शिक्षायें देनी होती हैं।
किसको पागल कहना यह भी कुवचन है।
मनुष्य तो जिसके लिए भी जो आता है वह कहते रहते हैं।
जानते कुछ भी नहीं कि हम किसकी महिमा गाते हैं।
महिमा तो करनी चाहिए एक ही पतित-पावन बाप की।
और तो कोई है नहीं।
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी पतित-पावन नहीं कहा जाता है।
यह तो किसको पावन नहीं बनाते हैं।
पतित से पावन बनाने वाला एक ही बाप है।
पावन सृष्टि है ही नई दुनिया।
वो तो अभी है नहीं।
प्योरिटी है ही स्वर्ग में। पवित्रता का सागर भी है।
यह तो है ही रावण राज्य।
बच्चों को अभी आत्म-अभिमानी बनने की बहुत मेहनत करनी चाहिए।
मुख से कोई भी पत्थर वा कुवचन नहीं निकलना चाहिए।
बहुत प्यार से चलना है।
कुदृष्टि भी बड़ा नुकसान कर देती है।
बड़ी मेहनत चाहिए।
आत्म-अभिमान है अविनाशी अभिमान।
देह तो विनाशी है।
आत्मा को कोई भी नहीं जानते हैं।
आत्मा का भी बाप तो जरूर कोई होगा ना।
कहते भी हैं सब भाई-भाई हैं।
फिर सबमें परमात्मा बाप विराजमान कैसे हो सकता है?
सभी बाप कैसे हो सकते हैं?
इतना भी अक्ल नहीं है!
सबका बाप तो एक ही है, उनसे ही वर्सा मिलता है।
उसका नाम है शिव।
शिवरात्रि भी मनाते हैं।
रूद्र रात्रि वा कृष्ण रात्रि नहीं कहते।
मनुष्य तो कुछ भी नहीं समझते हैं, कहेंगे यह सब उनके रूप हैं, उनकी ही लीला है।
तुम अभी समझते हो बेहद के बाप से तो बेहद का वर्सा मिलता है तो उस बाप की श्रीमत पर चलना है।
बाप कहते हैं मुझे याद करो।
लेबर्स को भी शिक्षा देनी चाहिए तो उन्हों का भी कुछ कल्याण हो जाए।
परन्तु खुद ही याद नहीं कर सकते तो औरों को क्या याद दिलायेंगे।
रावण एकदम पतित बना देते हैं फिर बाप आकर परिस्तानी बनाते हैं।
वन्डर है ना। कोई की भी बुद्धि में यह बातें नहीं हैं।
यह लक्ष्मी-नारायण कितना ऊंच परिस्तानी से फिर कितना पतित बन जाते हैं इसलिए ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात गाई हुई है।
शिव के मन्दिर में तुम बहुत सर्विस कर सकते हो।
बाप कहते हैं तुम मुझे याद करो।
दर-दर भटकना छोड़ दो।
यह ज्ञान है ही शान्ति का।
बाप को याद करने से तुम सतोप्रधान बन जायेंगे।
बस यही मंत्र देते रहो। कोई से भी पैसा नहीं लेना चाहिए, जब तक पक्का न हो जाए।
बोलो प्रतिज्ञा करो कि हम पवित्र रहेंगे, तब हम तुम्हारे हाथ का खा सकते हैं, कुछ भी ले सकते हैं।
भारत में मन्दिर तो बहुत ढेर हैं।
फॉरेनर्स आदि जो भी आयें उनको यह सन्देश तुम दे सकते हो कि बाप को याद करो।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।