गीत:- इस पाप की दुनिया से ...
ओम् शान्ति।
यह है पाप आत्माओं की पुकार।
तुमको तो पुकारना नहीं है क्योंकि तुम पावन बन रहे हो।
यह धारण करने की बात है।
बड़ा भारी यह खजाना है।
जैसे स्कूल की पढ़ाई भी खजाना है ना।
पढ़ाई से शरीर निर्वाह चलता है।
बच्चे जानते हैं भगवान पढ़ाते हैं।
यह बड़ी ऊंच कमाई है क्योंकि एम ऑब्जेक्ट सामने खड़ी है।
सच्चा-सच्चा सतसंग यह एक ही है।
बाकी सब हैं झूठ संग।
तुम जानते हो सतसंग एक ही बार होता है सारे कल्प में।
जबकि पुकारते हैं पतित-पावन आओ।
अब वह पुकारते रहते हैं, यहाँ तुम्हारे सामने बैठे हैं।
तुम बच्चे जानते हो हम पुरूषार्थ कर रहे हैं नई दुनिया के लिए, जहाँ दु:ख का नाम-निशान नहीं होगा।
तुमको चैन मिलता है स्वर्ग में।
नर्क में थोड़ेही चैन है। यह तो विषय सागर है, कलियुग है ना।
सब दु:खी ही दु:खी हैं।
भ्रष्टाचार से पैदा होने वाले हैं इसलिए आत्मा पुकारती है-बाबा हम पतित बन गये हैं।
पावन होने के लिए गंगा में स्नान करने जाते हैं।
अच्छा, स्नान किया तो पावन हो जाना चाहिए ना। फिर घड़ी-घड़ी धक्के क्यों खाते हैं?
धक्के खाते सीढ़ी नीचे उतरते-उतरते पाप आत्मा बन जाते हैं।
84 का राज़ तुम बच्चों को बाप ही बैठ समझाते हैं और धर्म वाले तो 84 जन्म लेते नहीं।
तुम्हारे पास यह 84 जन्मों का चित्र (सीढ़ी) बड़ा अच्छा बना हुआ है।
कल्प वृक्ष का भी चित्र है गीता में।
परन्तु भगवान ने गीता कब सुनाई, क्या आकर किया, यह कुछ नहीं जानते।
और धर्म वाले अपने-अपने शास्त्र को जानते हैं, भारतवासी बिल्कुल नहीं जानते।
बाप कहते हैं मैं संगमयुग पर ही स्वर्ग की स्थापना करने आता हूँ।
ड्रामा में चेन्ज हो नहीं सकती।
जो कुछ ड्रामा में नूँध हैं, वह हूबहू होना ही है।
ऐसे नहीं, होकर फिर बदल जाना है।
तुम बच्चों की बुद्धि में ड्रामा का चक्र पूरा बैठा हुआ है।
इस 84 के चक्र से तुम कभी छूट नहीं सकते हो अर्थात् यह दुनिया कभी खत्म नहीं हो सक
ती।
वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती ही रहती है। यह 84 का चक्र (सीढ़ी) बहुत जरूरी है।
त्रिमूर्ति और गोला तो मुख्य चित्र हैं।
गोले में क्लीयर दिखाया हुआ है-हर एक युग 1250 वर्ष का है।
यह है जैसे अन्धों के आगे आइना।
84 जन्म-पत्री का आइना।
बाप तुम बच्चों की दशा वर्णन करते हैं।
बाप तुम्हें बेहद की दशा बतलाते हैं।
अभी तुम बच्चों पर बृहस्पति की अविनाशी दशा बैठी है।
फिर है पढ़ाई पर मदार।
कोई पर बृहस्पति की, कोई पर चक्र की, कोई पर राहू की दशा बैठी है।
नापास हुआ तो राहू की दशा कहेंगे।
यहाँ भी ऐसे हैं।
श्रीमत पर नहीं चलते हैं तो राहू की अविनाशी दशा बैठ जाती है।
वह बृहस्पति की अविनाशी दशा, यह फिर राहू की दशा हो जाती।
बच्चों को पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना चाहिए, इसमें बहाना नहीं देना चाहिए।
सेन्टर दूर है, यह है...... पैदल करने में 6 घण्टा भी लगे तो भी पहुँचना चाहिए।
मनुष्य यात्राओं पर जाते हैं, कितना धक्के खाते हैं।
आगे बहुत पैदल जाते थे, बैलगाड़ी में भी जाते थे।
यह तो एक शहर की बात है।
यह बाप की कितनी बड़ी युनिवर्सिटी है, जिससे तुम यह लक्ष्मी-नारायण बनते हो।
ऐसी ऊंच पढ़ाई के लिए कोई कहे दूर पड़ता है या फुर्सत नहीं!
बाप क्या कहेंगे?
यह बच्चा तो लायक नहीं है।
बाप ऊंच उठाने आते, यह अपनी सत्यानाश कर देते।
श्रीमत कहती है-पवित्र बनो, दैवीगुण धारण करो।
इकट्ठे रहते भी विकार में नहीं जाना है।
बीच में ज्ञान-योग की तलवार है, हमको तो पवित्र दुनिया का मालिक बनना है।
अभी तो पतित दुनिया के मालिक हैं ना।
वह देवतायें थे डबल सिरताज फिर आधाकल्प बाद लाइट का ताज उड़ जाता है।
इस समय लाइट का ताज कोई पर भी नहीं है।
सिर्फ जो धर्म स्थापक हैं, उन पर हो सकता है क्योंकि वह पवित्र आत्मायें शरीर में आकर प्रवेश करती हैं।
यही भारत है, जिसमें डबल सिरताज भी थे, सिंगल ताज वाले भी थे।
अभी तक भी डबल सिरताज के आगे सिंगल ताज वाले माथा टेकते हैं क्योंकि वह हैं पवित्र महाराजा-महारानी।
महाराजायें राजाओं से बड़े होते हैं, उनके पास बड़ी-बड़ी जागीर होती है।
सभा में भी महाराजायें आगे और राजायें पीछे बैठते हैं नम्बरवार।
कायदेसिर उन्हों की दरबार लगती है।
यह भी ईश्वरीय दरबार है, इनको इन्द्र सभा भी गाया जाता है।
तुम ज्ञान से परियां बनते हो।
खूबसूरत को परी कहा जाता है ना।
राधे-कृष्ण की नैचुरल ब्युटी है ना, इसलिए सुन्दर कहा जाता है।
फिर जब काम चिता पर बैठते हैं तो वह भी भिन्न नाम-रूप में श्याम बनते हैं।
शास्त्रों में कोई यह बातें नहीं हैं।
ज्ञान, भक्ति और वैराग्य, तीन चीजें हैं।
ज्ञान ऊंच ते ऊंच है।
अभी तुम ज्ञान प्राप्त कर रहे हो।
तुमको वैराग्य है भक्ति से।
यह सारी तमोप्रधान दुनिया अब खत्म होने वाली है, उनसे वैराग्य है।
जब नया मकान बनाते हैं तो पुराने से वैराग्य हो जाता है ना।
वह है हद की बात, यह है बेहद की बात।
अब बुद्धि नई दुनिया तरफ है।
यह है पुरानी दुनिया नर्क, सतयुग-त्रेता को कहा जाता है शिवालय।
शिवबाबा की स्थापना की हुई है ना।
अभी इस वेश्यालय से तुमको ऩफरत आती है।
कइयों को ऩफरत नहीं आती है।
शादी बरबादी कर गटर में गिरना चाहते हैं।
मनुष्य तो सभी हैं विषय वैतरणी नदी में, गंद में पड़े हैं।
एक-दो को दु:ख देते हैं।
गाया भी जाता है अमृत छोड़ विष काहे को खाए।
जो कुछ कहते हैं उसका अर्थ नहीं समझते हैं।
तुम बच्चों में भी नम्बरवार हैं।
सेन्सीबुल टीचर देखते ही समझ लेगा कि इनकी बुद्धि कहाँ भटक रही है, क्लास के बीच कोई उबासी लेते या झुटका खाते हैं तो समझा जाता है इनकी बुद्धि कहाँ घरबार या धन्धे तरफ भटक रही है।
उबासी थकावट की भी निशानी हैं।
धन्धे में मनुष्यों की कमाई होती रहती है तो रात को 1-2 बजे तक भी बैठे रहते हैं, कभी उबासी नहीं आती।
यह तो बाप कितना खजाना देते हैं।
उबासी देना घाटे की निशानी है।
देवाला मारने वाले घुटका खाते बहुत उबासी देते हैं।
तुमको तो खजाने के पिछाड़ी खजाना मिलता रहता है तो कितना अटेन्शन होना चाहिए।
पढ़ाई समय कोई उबासी दे तो सेन्सीबुल टीचर समझ जायेगा कि इनका बुद्धियोग और तरफ भटकता रहता है।
यहाँ बैठे घरबार याद आयेगा, बच्चे याद आयेंगे।
यहाँ तो तुमको भट्ठी में रहना होता है, और कोई की याद न आये।
समझो कोई 6 दिन भट्ठी में रहा, पिछाड़ी में किसकी याद आई, चिट्ठी लिखी तो फेल कहेंगे फिर 7 रोज़ शुरू करो।
7 रोज़ भट्ठी में डालते हैं कि सब बीमारी निकल जाए।
तुम आधाकल्प के महान् रोगी हो।
बैठे-बैठे अकाले मृत्यु हो जाती है।
सतयुग में ऐसे कभी होता नहीं है।
यहाँ तो कोई न कोई बीमारी जरूर होती है।
मरने के समय बीमारी में चिल्लाते रहते हैं।
स्वर्ग में ज़रा भी दु:ख नहीं होता।
वहाँ तो समय पर समझते हैं-अभी टाइम पूरा हुआ है, हम यह शरीर छोड़ बच्चे बनते हैं।
यहाँ भी तुमको साक्षात्कार होंगे कि यह बनते हैं।
ऐसे बहुतों को साक्षात्कार होते हैं।
ज्ञान से भी जानते हैं कि हम बेगर टू प्रिन्स बन रहे हैं।
हमारी एम ऑब्जेक्ट ही यह राधे-कृष्ण बनने की है।
लक्ष्मी-नारायण नहीं, राधे कृष्ण क्योंकि पूरे 5 हज़ार वर्ष तो इनके ही कहेंगे।
लक्ष्मी-नारायण के तो फिर भी 20-25 वर्ष कम हो जाते हैं इसलिए कृष्ण की महिमा जास्ती है।
यह भी किसको पता नहीं कि राधे-कृष्ण ही फिर सो लक्ष्मी-नारायण बनते हैं।
अभी तुम बच्चे समझते जाते हो, यह पढ़ाई है।
हर एक गांव-गांव में सेन्टर खुलते जाते हैं।
तुम्हारी यह है युनिवर्सिटी कम हॉस्पिटल।
इसमें सिर्फ 3 पैर पृथ्वी चाहिए।
वन्डर है ना।
जिनकी तकदीर में है तो वे अपने कमरे में भी सतसंग खोल देते हैं।
यहाँ जो बहुत पैसे वाले हैं, उन्हों के पैसे तो सब मिट्टी में मिल जाने हैं।
तुम बाप से वर्सा ले रहे हो भविष्य 21 जन्मों के लिए।
बाप खुद कहते हैं-इस पुरानी दुनिया को देखते हुए बुद्धि का योग वहाँ लगाओ, कर्म करते हुए यह प्रैक्टिस करो।
हर बात देखनी होती है ना।
तुम्हारी अब प्रैक्टिस हो रही है।
बाप समझाते हैं हमेशा शुद्ध कर्म करो, अशुद्ध कोई काम न करो।
कोई भी बीमारी है तो सर्जन बैठा है, उससे राय करो।
हर एक की बीमारी अपनी है, सर्जन से तो अच्छी राय मिलेगी।
पूछ सकते हो इस हालत में क्या करें?
अटेन्शन रखना है कि कोई विकर्म न हो जाए।
यह भी गायन है जैसा अन्न वैसा मन।
मांस खरीद करने वाले पर, बेचने वाले पर, खिलाने वाले पर भी पाप लगता है।
पतित-पावन बाप से कोई बात छिपानी नहीं चाहिए।
सर्जन से छिपाया तो बीमारी छूटेगी नहीं।
यह है बेहद का अविनाशी सर्जन।
इन बातों को दुनिया तो नहीं जानती है।
तुमको भी अभी नॉलेज मिल रही है फिर भी योग में बहुत कमी है।
याद बिल्कुल करते नहीं हैं।
यह तो बाबा जानते हैं फट से कोई याद ठहर नहीं जायेगी।
नम्बरवार तो हैं ना।
जब याद की यात्रा पूरी होगी तब कहेंगे कर्मातीत अवस्था पूरी हुई, फिर लड़ाई भी पूरी लगेगी, तब तक कुछ न कुछ होता फिर बन्द होता रहेगा।
लड़ाई तो कभी भी छिड़ सकती है।
परन्तु विवेक कहता है जब तक राजाई स्थापन नहीं हुई है तब तक बड़ी लड़ाई नहीं लगेगी।
थोड़ी-थोड़ी लगकर बन्द हो जायेगी।
यह तो कोई नहीं जानते कि राजाई स्थापन हो रही है।
सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो बुद्धि तो है ना।
तुम्हारे में भी सतोप्रधान बुद्धि वाले अच्छी रीति याद करते रहेंगे।
ब्राह्मण तो अभी लाखों की अन्दाज़ में होंगे परन्तु उसमें भी सगे और लगे तो हैं ना।
सगे अच्छी सर्विस करेंगे, माँ-बाप की मत पर चलेंगे।
लगे रावण की मत पर चलेंगे।
कुछ रावण की मत पर, कुछ राम की मत पर लंगड़ाते चलेंगे।
बच्चों ने गीत सुना। कहते हैं-बाबा, ऐसी जगह ले चलो जहाँ चैन हो।
स्वर्ग में चैन ही चैन है, दु:ख का नाम नहीं।
स्वर्ग कहा ही जाता है सतयुग को।
अभी तो है कलियुग।
यहाँ फिर स्वर्ग कहाँ से आया।
तुम्हारी बुद्धि अब स्वच्छ बनती जाती है।
स्वच्छ बुद्धि वालों को मलेच्छ बुद्धि नमन करते हैं।
पवित्र रहने वालों का मान है।
सन्यासी पवित्र हैं तो गृहस्थी उन्हों को माथा टेकते हैं।
सन्यासी तो विकार से जन्म ले फिर सन्यासी बनते हैं।
देवताओं को तो कहा ही जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी।
सन्यासियों को कभी सम्पूर्ण निर्विकारी नहीं कहेंगे।
तो तुम बच्चों को अन्दर बहुत खुशी का पारा चढ़ना चाहिए इसलिए कहा जाता है अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो गोप-गोपियों से पूछो, जो बाप से वर्सा ले रहे हैं, पढ़ रहे हैं।
यहाँ सम्मुख सुनने से नशा चढ़ता है फिर कोई का कायम रहता है, कोई का तो झट उड़ जाता है।
संगदोष के कारण नशा स्थाई नहीं रहता।
तुम्हारे सेन्टर्स पर ऐसे बहुत आते हैं।
थोड़ा नशा चढ़ा फिर पार्टी आदि में कहाँ गये, शराब, बीड़ी आदि पिया, खलास।
संगदोष बहुत खराब है।
हंस और बगुले इकट्ठे रह न सकें।
पति हंस बनता तो पत्नी बगुला बन जाती।
कहाँ फिर स्त्री हंसणी बन जाती, पति बगुला हो पड़ता।
कहे पवित्र बनो तो मार खाये।
कोई-कोई घर में सब हंस होते हैं फिर चलते-चलते हंस से बदल बगुला बन पड़ते हैं।
बाप तो कहते अपने को सब सुखदाई बनाओ।
बच्चों को भी सुखदाई बनाओ।
यह तो दु:खधाम है ना।
अभी तो बहुत आ़फतें आनी हैं फिर देखना कैसे त्राहि-त्राहि करते हैं।
अरे, बाप आया, हमने बाप से वर्सा नहीं पाया फिर तो टू लेट हो जायेगी।
बाप स्वर्ग की बादशाही देने आते हैं, वह गँवा बैठते इसलिए बाबा समझाते हैं कि बाबा के पास हमेशा मजबूत को ले आओ।
जो खुद समझकर दूसरों को भी समझा सके।
बाकी बाबा कोई सिर्फ देखने की चीज़ तो है नहीं।
शिवबाबा कहाँ दिखाई पड़ता है।
अपनी आत्मा को देखा है क्या?
सिर्फ जानते हो।
वैसे परमात्मा को भी जानना है।
दिव्य दृष्टि बिगर उनको कोई देखा नहीं जा सकता।
दिव्य दृष्टि में अब तुम सतयुग देखते हो फिर वहाँ प्रैक्टिकल में चलना है।
कलियुग विनाश तब होगा जब आप बच्चे कर्मातीत अवस्था को पहुँचेंगे।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।