गीत:- ले लो दुआयें माँ-बाप की...
हर एक घर में मां-बाप और 2-4 बच्चे होते हैं फिर आशीर्वाद आदि मांगते हैं।
वह तो हद की बात है।
यह हद के लिए गाया हुआ है।
बेहद का किसको भी पता नहीं है।
अभी तुम बच्चे जानते हो हम बेहद के बाप के बच्चे और बच्चियां हैं।
वह मात-पिता होते हैं हद के, ले लो दुआयें हद के मात-पिता की।
यह है बेहद का माँ बाप।
वह हद के माँ बाप भी बच्चों को सम्भालते हैं, फिर टीचर पढ़ाते हैं।
अब तुम बच्चे जानते हो-यह है बेहद के माँ-बाप, बेहद का टीचर, बेहद का सतगुरू, सुप्रीम फादर, टीचर, सुप्रीम गुरू।
सत बोलने वाला, सत सिखलाने वाला है।
बच्चों में नम्बरवार तो होते हैं ना।
लौकिक घर में 2-4 बच्चे होते हैं तो उन्हों की कितनी सम्भाल करनी पड़ती है।
यहाँ कितने ढेर बच्चे हैं, कितने सेन्टर्स से बच्चों के समाचार आते हैं-यह बच्चा ऐसा है, यह शैतानी करता है, यह तंग करता है, विघ्न डालता है।
फुरना तो इस बाप को रहेगा ना।
प्रजापिता तो यह है ना।
कितने ढेर बच्चों का ख्याल रहता है, तब बाबा कहते हैं तुम बच्चे अच्छी रीति बाप की याद में रह सकते हो। इनको तो हज़ारों फुरने हैं।
एक फुरना तो है ही। हज़ारों फुरने (ख्यालात) दूसरे रहते हैं।
कितने ढेर बच्चों को सम्भालना पड़ता है।
माया भी बड़ी दुश्मन है ना।
अच्छी रीति कोई-कोई की खाल उतार देती है।
कोई को नाक से, कोई को चोटी से पकड़ लेती है।
इतने सबका विचार तो करना पड़ता है।
फिर भी बेहद बाप की याद में रहना पड़े।
तुम हो बेहद के बाप के बच्चे।
जानते हो हम बाप की श्रीमत पर चल क्यों न बाप से पूरा वर्सा ले लेवें।
सब तो एकरस चल न सकें क्योंकि यह राजाई स्थापन हो रही है, और कोई की बुद्धि में आ न सके।
यह है बहुत ऊंच पढ़ाई।
बादशाही मिल गई फिर पता नहीं पड़ता है कि यह राजाई कैसे स्थापन हुई।
यह राजाई का स्थापन होना बड़ा वन्डरफुल है।
अभी तुम अनुभवी हो।
पहले इनको भी पता थोड़ेही था कि हम क्या थे, फिर कैसे 84 जन्म लिए हैं।
अभी समझ में आया है, तुम भी कहते हो-बाबा आप वही हो, यह बड़ी समझने की बात है।
इस समय ही बाप आकर सब बातें समझाते हैं।
इस समय भल कोई कितना भी लखपति, करोड़पति हो, बाप कहते हैं यह पैसे आदि सब मिट्टी में मिल जाने हैं।
बाकी टाइम ही कितना है।
दुनिया के समाचार तुम रेडियो में अथवा अखबारों में सुनते हो - क्या-क्या हो रहा है।
दिन-प्रतिदिन बहुत झगड़ा बढ़ता जा रहा है।
सूत मूँझता ही रहता है। सब आपस में लड़ते-झगड़ते, मरते हैं।
तैयारियाँ ऐसी हो रही हैं, जिससे समझ में आता है लड़ाई शुरू हुई कि हुई।
दुनिया नहीं जानती कि यह क्या हो रहा है, क्या होने का है!
तुम्हारे में भी बहुत थोड़े हैं जो पूरी रीति समझते हैं और खुशी में रहते हैं।
इस दुनिया में हम बाकी थोड़े रोज़ हैं।
अभी हमको कर्मातीत अवस्था में जाना है।
हर एक को अपने लिए पुरूषार्थ करना है।
तुम तो पुरूषार्थ करते हो अपने लिए।
जितना जो करेंगे उतना फल पायेंगे।
अपना पुरूषार्थ करना है और दूसरों को पुरूषार्थ कराना है।
रास्ता बताना है।
यह पुरानी दुनिया खलास होनी है।
अब बाबा आया हुआ है नई दुनिया स्थापन करने, तो इस विनाश के पहले तुम नई दुनिया के लिए पढ़ाई पढ़ लो।
भगवानुवाच मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ।
लाडले बच्चे तुमने भक्ति बहुत की है।
आधाकल्प तुम रावण राज्य में थे ना।
यह भी किसी को पता नहीं कि राम किसको कहा जाता है?
रामराज्य की कैसे स्थापना हुई?
यह सब तुम ब्राह्मण ही जानते हो।
तुम्हारे में भी कोई तो ऐसे हैं जो कुछ भी नहीं जानते हैं।
बाप के पास सपूत बच्चे वह हैं जो सबका बुद्धियोग एक बाप के साथ जुड़ाते हैं।
जो सर्विसएबुल हैं, जो अच्छी रीति पढ़ते हैं वो बाप की दिल पर चढ़े हुए हैं।
कोई तो फिर न लायक भी होते हैं, सर्विस के बदले डिससर्विस करते जो बाप से उनका बुद्धियोग तुड़ा देते हैं।
यह भी ड्रामा में नूँध है।
ड्रामा अनुसार यह होने का ही है।
जो पूरा पढ़ते नहीं हैं वह क्या करेंगे?
औरों को भी खराब कर देंगे इसलिए बच्चों को समझाया जाता है, बाप को फालो करो और जो भी सर्विसएबुल बच्चे हैं, बाबा की दिल पर चढ़े हुए हैं उनका संग करो।
पूछ सकते हो किसका संग करें?
बाबा झट बता देंगे, इनका संग बड़ा अच्छा है।
बहुत हैं जो संग ही ऐसा करते हैं, जिनका रंग भी उल्टा चढ़ जाता है।
गाया भी जाता है संग तारे कुसंग बोरे।
कुसंग लगा तो एकदम खत्म कर देंगे।
घर में भी दास-दासियां चाहिए।
प्रजा के भी नौकर चाकर सब चाहिए ना।
यह सारी राजधानी स्थापन हो रही है, इसमें बड़ी विशालबुद्धि चाहिए इसलिए बेहद का बाप मिला है तो श्रीमत ले उस पर चलो।
नहीं तो मुफ्त पद भ्रष्ट हो जायेंगे।
यह पढ़ाई है। इसमें अभी फेल हुए तो जन्म-जन्मान्तर, कल्प-कल्पान्तर फेल होते रहेंगे।
अच्छी रीति पढ़ेंगे तो कल्प-कल्पान्तर अच्छी रीति पढ़ते रहेंगे।
समझा जाता है यह पूरा पढ़ते नहीं हैं, तो क्या पद मिलेगा?
खुद भी समझते हैं, हम सर्विस तो कुछ करते नहीं हैं।
हमसे तो होशियार बहुत हैं, होशियार को ही भाषण के लिए बुलाते हैं।
तो जरूर जो होशियार हैं, ऊंच पद भी वह पायेंगे।
हम इतनी सर्विस नहीं करते हैं तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे।
टीचर तो स्टूडेन्ट को भी समझ सकते हैं ना।
रोज़ पढ़ाते हैं, रजिस्टर उनके पास रहता है।
पढ़ाई का और चलन का भी रजिस्टर रहता है।
यहाँ भी ऐसे हैं, इसमें फिर मुख्य है योग की बात।
योग अच्छा है तो चलन भी अच्छी रहेगी।
पढ़ाई में फिर कहाँ अहंकार आ जाता है।
इसमें सारी गुप्त मेहनत करनी है याद की इसलिए ही बहुतों की रिपोर्ट आती है कि बाबा हम योग में नहीं रह सकते।
बाबा ने समझाया है योग अक्षर निकाल दो।
बाप जिससे वर्सा मिलता है, उनको तुम याद नहीं कर सकते हो! वन्डर है।
बाप कहते हैं-हे आत्मायें, तुम मुझ बाप को याद नहीं करते हो, मैं तुमको रास्ता बताने आया हूँ, तुम मुझे याद करो तो इस योग अग्नि से पाप दग्ध हो जायेंगे।
भक्ति मार्ग में मनुष्य कितना धक्का खाने जाते हैं।
कुम्भ के मेले में कितना ठण्डे पानी में जाकर स्नान करते हैं।
कितनी तकलीफ सहन करते हैं।
यहाँ तो कोई तकलीफ नहीं।
जो फर्स्ट-क्लास बच्चे हैं वह एक माशूक के सच्चे-सच्चे आशिक बन याद करते रहेंगे।
घूमने फिरने जाते हैं तो एकान्त में बगीचे में बैठकर याद करेंगे।
झरमुई झगमुई आदि वार्तालाप में रहने से वायुमण्डल खराब होता है इसलिए जितना टाइम मिले बाप को याद करने की प्रैक्टिस करो।
फर्स्टक्लास सच्चे माशूक के आशिक बनो।
बाप कहते हैं देहधारी का फोटो नहीं रखो।
सिर्फ एक शिवबाबा का फोटो रखो, जिसको याद करना है।
अगर समझो सृष्टि चक्र को भी याद करते रहें तो त्रिमूर्ति और गोले का चित्र फर्स्टक्लास है, इसमें सारा ज्ञान है।
स्वदर्शन चक्रधारी, तुम्हारा नाम अर्थ सहित है।
नया कोई भी नाम सुने तो समझ न सके, यह तुम बच्चे ही समझते हो।
तुम्हारे में भी कोई अच्छी रीति याद करते हैं।
बहुत हैं जो याद करते ही नहीं।
अपना खाना ही खराब कर देते हैं।
पढ़ाई तो बड़ी सहज है।
बाप कहते हैं साइलेन्स से तुमको साइंस पर विजय पानी है।
साइलेन्स और साइंस राशि एक ही है।
मिलेट्री में भी 3 मिनट साइलेन्स कराते हैं।
मनुष्य भी चाहते हैं हमको शान्ति मिले।
अभी तुम जानते हो शान्ति का स्थान तो है ही ब्रह्माण्ड।
जिस ब्रह्म महतत्व में हम आत्मा इतनी छोटी बिन्दी रहती हैं।
वह सब आत्माओं का झाड़ तो वन्डरफुल होगा ना।
मनुष्य कहते भी हैं भृकुटी के बीच चमकता है अजब सितारा।
बहुत छोटा सोने का तिलक बनाए यहाँ लगाते हैं।
आत्मा भी बिन्दी है, बाप भी उनके बाजू में आकर बैठता है।
साधू-सन्त आदि कोई भी अपनी आत्मा को जानते नहीं।
जबकि आत्मा को ही नहीं जानते तो परमात्मा को कैसे जान सकते?
सिर्फ तुम ब्राह्मण ही आत्मा और परमात्मा को जानते हो।
कोई भी धर्म वाला जान नहीं सकता।
अभी तुम ही जानते हो, कैसे इतनी छोटी सी आत्मा सारा पार्ट बजाती है।
सतसंग तो बहुत करते हैं।
समझते कुछ भी नहीं।
इसने भी बहुत गुरू किये।
अब बाप कहते हैं यह सब हैं भक्ति मार्ग के गुरू।
ज्ञान मार्ग का गुरू है ही एक।
डबल सिरताज राजाओं के आगे सिंगल ताज वाले राजायें माथा झुकाते हैं, नमन करते हैं क्योंकि वह पवित्र हैं।
उन पवित्र राजाओं के ही मन्दिर बने हुए हैं।
पतित जाकर उन्हों के आगे माथा टेकते हैं परन्तु उनको कोई यह पता थोड़ेही है कि यह कौन हैं, हम माथा क्यों टेकते हैं?
सोमनाथ का मन्दिर बनाया, अब पूजा तो करते हैं परन्तु बिन्दी की पूजा कैसे करें?
बिन्दी का मन्दिर कैसे बनेगा?
यह है बड़ी गुह्य बातें।
गीता आदि में थोड़ेही यह बातें हैं।
जो खुद मालिक है, वही समझाते हैं।
तुम अभी जानते हो कैसे इतनी छोटी आत्मा में पार्ट नूँधा हुआ है।
आत्मा भी अविनाशी है, पार्ट भी अविनाशी है।
वन्डर है ना।
यह सारा बना बनाया खेल है।
कहते भी हैं बनी बनाई बन रही ... ड्रामा में जो नूँध है, वह तो जरूर होगा।
चिंता की बात नहीं।
तुम बच्चों को अब अपने आपसे प्रतिज्ञा करनी है कि कुछ भी हो जाए-ऑसू नहीं बहायेंगे।
फलाना मर गया, आत्मा ने जाकर दूसरा शरीर लिया, फिर रोने की क्या दरकार?
वापिस तो आ नहीं सकते।
आंसू आया-नापास हुए इसलिए बाबा कहते हैं प्रतिज्ञा करो कि हम कभी रोयेंगे नहीं।
परवाह थी पार ब्रह्म में रहने वाले बाप की, वह मिल गया तो बाकी क्या चाहिए।
बाप कहते हैं तुम मुझ बाप को याद करो।
मैं एक ही बार आता हूँ - यह राजधानी स्थापन करने लिए।
इसमें लड़ाई आदि की कोई बात नहीं।
गीता में दिखाया है लड़ाई लगी, सिर्फ पाण्डव बचे।
वह कुत्ता साथ में ले पहाड़ों पर गल गये। जीत पहनी और मर गये।
बात ही नहीं ठहरती।
यह सब हैं दन्त कथायें।
इसको कहा जाता है भक्ति मार्ग।
बाप कहते हैं तुम बच्चों को इससे वैराग्य होना चाहिए।
पुरानी चीज़ से ऩफरत होती है ना।
ऩफरत कड़ा अक्षर है।
वैराग्य अक्षर मीठा है।
जब ज्ञान मिलता है तो फिर भक्ति का वैराग्य हो जाता है।
सतयुग त्रेता में तो फिर ज्ञान की प्रालब्ध 21 जन्म के लिए मिल जाती है।
वहाँ ज्ञान की दरकार नहीं रहती।
फिर जब तुम वाम मार्ग में जाते हो तो सीढ़ी उतरते हो।
अभी है अन्त। बाप कहते हैं अब इस पुरानी दुनिया से तुम बच्चों को वैराग्य आना है।
तुम अभी शूद्र से ब्राह्मण बने हो फिर सो देवता बनेंगे।
और मनुष्य इन बातों से क्या जानें।
भल विराट रूप का चित्र बनाते हैं परन्तु उसमें न चोटी है, न शिव है।
कह देते हैं देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
बस शूद्र से देवता कैसे कौन बनाते हैं, यह कुछ नहीं जानते।
बाप कहते हैं तुम देवी-देवता कितने साहूकार थे फिर वह सब पैसे कहाँ गये!
माथा टेकते-टेकते टिप्पड़ घिसाते पैसा गँवाया।
कल की बात है ना।
तुमको यह बनाकर गये फिर तुम क्या बन गये हो!
अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।