गीत:- तुम्हीं हो माता, तुम्हीं पिता हो...
यह बच्चों को अपनी पहचान मिलती है।
बाप भी ऐसे कहते हैं, हम सभी आत्मायें हैं, सब मनुष्य ही हैं।
बड़ा हो या छोटा हो, प्रेजीडेन्ट, राजा रानी सब मनुष्य हैं।
अब बाप कहते हैं सभी आत्मायें हैं, मैं फिर सभी आत्माओं का पिता हूँ इसलिए मुझे कहते हैं परमपिता परम आत्मा यानी सुप्रीम।
बच्चे जानते हैं हम आत्माओं का वह बाप है, हम सब ब्रदर्स हैं।
फिर ब्रह्मा द्वारा भाई बहनों का ऊंच नीच कुल होता है।
आत्मायें तो सभी आत्मा हैं।
यह भी तुम समझते हो।
मनुष्य तो कुछ नहीं समझते।
तुमको बाप बैठ समझाते हैं - बाप को तो कोई जानते नहीं।
मनुष्य गाते हैं - हे भगवान, हे मात-पिता क्योंकि ऊंच ते ऊंच तो एक होना चाहिए ना।
वह है सबका बाप, सबको सुख देने वाला।
सुख और दु:ख के खेल को भी तुम जानते हो।
मनुष्य तो समझते हैं, अभी-अभी सुख है, अभी-अभी दु:ख है।
यह नहीं समझते आधाकल्प सुख, आधाकल्प दु:ख है।
सतोप्रधान सतो रजो तमो है ना।
शान्तिधाम में हम आत्मायें हैं, तो वहाँ सब सच्चा सोना है।
अलाए उसमें हो न सके।
भल अपना-अपना पार्ट भरा हुआ है परन्तु आत्मायें सब पवित्र रहती हैं।
अपवित्र आत्मा रह नहीं सकती।
इस समय फिर कोई भी पवित्र आत्मा यहाँ हो न सके।
तुम ब्राह्मण कुल भूषण भी पवित्र बन रहे हो।
तुम अभी अपने को देवता नहीं कह सकते हो। वे हैं सम्पूर्ण निर्विकारी।
तुमको थोड़ेही सम्पूर्ण निर्विकारी कहेंगे।
भल शंकराचार्य हो या कोई भी हो सिवाए देवताओं के और किसको कह नहीं सकते।
यह बातें भी तुम ही सुनते हो - ज्ञान सागर के मुख से।
यह भी जानते हो ज्ञान सागर एक ही बार आते हैं।
मनुष्य तो पुनर्जन्म ले फिर आते हैं।
कोई-कोई ज्ञान सुनकर गये हैं, संस्कार ले गये हैं तो फिर आते हैं, आकर सुनते हैं।
समझो 6-8 वर्ष वाला होगा तो कोई-कोई में अच्छी समझ भी आ जाती है।
आत्मा तो वही है ना।
सुनकर उनको अच्छा लगता है।
आत्मा समझती है हमको फिर से बाप का वही ज्ञान मिल रहा है।
अन्दर में खुशी रहती है, औरों को भी सिखलाने लग पड़ते हैं।
फुर्त हो जाते हैं।
जैसे लड़ाई वाले वह संस्कार ले जाते हैं तो छोटेपन में ही उसी काम में खुशी से लग जाते हैं।
अब तुमको तो पुरूषार्थ कर नई दुनिया का मालिक बनना है।
तुम सबको समझा सकते हो या तो नई दुनिया के मालिक बन सकते हो या तो शान्तिधाम के मालिक बन सकते हो।
शान्तिधाम तुम्हारा घर है - जहाँ से तुम यहाँ आये हो पार्ट बजाने।
यह भी कोई जानते नहीं क्योंकि आत्मा का ही पता नहीं है।
तुमको भी पहले यह थोड़ेही पता था कि हम निराकारी दुनिया से यहाँ आये हैं।
हम बिन्दी हैं।
संन्यासी लोग भल कहते हैं भ्रकुटी के बीच आत्मा स्टॉर रहती है फिर भी बुद्धि में बड़ा रूप आ जाता है।
सालिग्राम कहने से बड़ा रूप समझ लेते हैं।
आत्मा सालिग्राम है।
यज्ञ रचते हैं तो उसमें भी सालिग्राम बड़े-बड़े बनाते हैं।
पूजा के समय सालिग्राम बड़ा रूप ही बुद्धि में रहता है।
बाप कहते हैं यह सारा अज्ञान है।
ज्ञान तो मैं ही सुनाता हूँ और कोई दुनिया भर में सुना न सके।
यह कोई समझाते नहीं हैं कि आत्मा भी बिन्दी है, परमात्मा भी बिन्दी है।
वह तो अखण्ड ज्योति स्वरूप ब्रह्म कह देते हैं।
ब्रह्म को भगवान समझ लेते और फिर अपने को भगवान कह देते।
कहते हैं हम पार्ट बजाने के लिए छोटी आत्मा का रूप धरते हैं।
फिर बड़ी ज्योति में लीन हो जाते हैं।
लीन हो जाए फिर क्या!
पार्ट भी लीन हो जाए।
कितना रांग हो जाता है।
अभी बाप आकर सेकेण्ड में जीवनमुक्ति देते हैं फिर आधाकल्प बाद सीढ़ी उतरते जीवन-बंध में आते हैं।
फिर बाप आकर जीवनमुक्त बनाते हैं, इसलिए उनको सर्व का सद्गति दाता कहा जाता है।
तो जो पतित-पावन बाप है उनको ही याद करना है, उनकी याद से ही तुम पावन बनेंगे।
नहीं तो बन नहीं सकते।
ऊंच ते ऊंच एक ही बाप है। कई बच्चे समझते हैं हम सम्पूर्ण बन गये। हम कम्पलीट तैयार हो गये।
ऐसे समझ अपनी दिल को खुश कर लेते हैं।
यह भी मिया मिट्ठू बनना है।
बाबा कहते मीठे बच्चे, अभी बहुत पुरूषार्थ करना है।
पावन बन जायेंगे तो फिर दुनिया भी पावन चाहिए।
एक तो जा न सके।
कोई कितनी भी कोशिश करे कि हम जल्दी कर्मातीत बन जायें - परन्तु होगा नहीं।
राजधानी स्थापन होनी है।
भल कोई स्टूडेन्ट पढ़ाई में बहुत होशियार हो जाता है परन्तु इम्तहान तो टाइम पर होगा ना।
इम्तहान तो जल्दी हो न सके।
यह भी ऐसे है।
जब समय होगा तब तुम्हारे पढ़ाई की रिजल्ट निकलेगी। कितना भी अच्छा पुरूषार्थ हो, ऐसे कह न सके - हम कम्पलीट तैयार हैं। नहीं, 16 कला सम्पूर्ण कोई आत्मा अभी बन नहीं सकती।
बहुत पुरूषार्थ करना है।
अपने दिल को सिर्फ खुश नहीं करना है कि हम सम्पूर्ण बन गये।
नहीं, सम्पूर्ण बनना ही है अन्त में।
मिया मिट्ठू नहीं बनना है।
यह तो सारी राजधानी स्थापन होनी है।
हाँ इतना समझते हैं बाकी थोड़ा टाइम है।
मूसल भी निकल गये हैं।
इन्हें बनाने में भी पहले टाइम लगता है फिर प्रैक्टिस हो जाती है तो फिर झट बना लेते हैं।
यह भी सब ड्रामा में नूँध है।
विनाश के लिए बाम्बस बनाते रहते हैं।
गीता में भी मूसल अक्षर है।
शास्त्रों में फिर लिख दिया है पेट से लोहा निकला, फिर यह हुआ। यह सब झूठी बातें हैं ना।
बाप आकर समझाते हैं - उनको ही मिसाइल्स कहा जाता है।
अब इस विनाश के पहले हमको तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है।
बच्चे जानते हैं हम आदि सनातन देवी देवता धर्म के थे।
सच्चा सोना थे।
भारत को सच खण्ड कहते हैं।
अब झूठ खण्ड बन गया है।
सोना भी सच्चा और झूठा होता है ना।
अभी तुम बच्चे जान गये हो - बाप की महिमा क्या है!
वह मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है, सत है, चैतन्य है।
आगे तो सिर्फ गायन करते थे।
अभी तुम समझते हो कि बाप सारे गुण हमारे में भर रहे हैं।
बाप कहते हैं कि पहले-पहले याद की यात्रा करो, मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जाएं।
मेरा नाम ही है पतित-पावन।
गाते भी हैं हे पतित-पावन आओ परन्तु वह क्या आकर करेंगे, यह नहीं जानते हैं।
एक सीता तो नहीं होगी।
तुम सभी सीतायें हो।
बाप तुम बच्चों को बेहद में ले जाने के लिए बेहद की बातें सुनाते हैं।
तुम बेहद की बुद्धि से जानते हो कि मेल और फीमेल सब सीतायें हैं।
सब रावण की कैद में हैं।
बाप (राम) आकर सबको रावण की कैद से निकालते हैं। रावण कोई मनुष्य नहीं है।
यह समझाया जाता है - हर एक में 5 विकार हैं, इसलिए रावण राज्य कहा जाता है।
नाम ही है विशश वर्ल्ड, वह है वाइसलेस वर्ल्ड, दोनों अलग-अलग नाम हैं।
यह वेश्यालय और वह है शिवालय।
निर्विकारी दुनिया के यह लक्ष्मी नारायण मालिक थे।
इन्हों के आगे विकारी मनुष्य जाकर माथा टेकते हैं।
विकारी राजायें उन निर्विकारी राजाओं के आगे माथा टेकते हैं।
यह भी तुम जानते हो।
मनुष्यों को कल्प की आयु का ही पता नहीं तो समझ कैसे सकें कि रावण राज्य कब शुरू होता है।
आधा-आधा होना चाहिए न।
रामराज्य, रावणराज्य कब से शुरू करें, मुँझारा कर दिया है।
अब बाप समझाते हैं यह 5 हजार वर्ष का चक्र फिरता रहता है।
अभी तुमको पता पड़ा है कि हम 84 का पार्ट बजाते हैं।
फिर हम जाते हैं घर।
सतयुग त्रेता में भी पुनर्जन्म लेते हैं।
वह है रामराज्य फिर रावणराज्य में आना है।
हार-जीत का खेल है।
तुम जीत पाते हो तो स्वर्ग के मालिक बनते हो।
हार खाते हो तो नर्क के मालिक बनते हो।
स्वर्ग अलग है, कोई मरते हैं तो कहते हैं स्वर्ग पधारा।
अभी तुम थोड़ेही कहेंगे क्योंकि तुम जानते हो स्वर्ग कब होगा।
वह तो कह देते ज्योति ज्योत समाया वा निर्वाण गया।
तुम कहेंगे ज्योति ज्योत तो कोई समा नहीं सकते।
सर्व का सद्गति दाता एक ही गाया जाता है।
स्वर्ग सतयुग को कहा जाता है।
अभी है नर्क। भारत की ही बात है।
बाकी ऊपर में कुछ नहीं है।
देलवाड़ा मन्दिर में ऊपर में स्वर्ग दिखाया है तो मनुष्य समझते हैं बरोबर ऊपर ही स्वर्ग है।
अरे ऊपर छत में मनुष्य कैसे होंगे, बुद्धू ठहरे ना।
अभी तुम क्लीयर कर समझाते हो।
तुम जानते हो यहाँ ही स्वर्गवासी थे, यहाँ ही फिर नर्कवासी बनते हैं।
अब फिर स्वर्गवासी बनना है।
यह नॉलेज है ही नर से नारायण बनने की।
कथा भी सत्य नारायण बनने की ही सुनाते हैं।
राम सीता की कथा नहीं कहते, यह है नर से नारायण बनने की कथा।
ऊंच ते ऊंच पद लक्ष्मी-नारायण का है।
वह फिर भी दो कला कम हो जाती हैं।
पुरूषार्थ ऊंच पद पाने का किया जाता है फिर अगर नहीं करते हैं तो जाकर चन्द्रवंशी बनते हैं।
भारतवासी पतित बनते हैं तो अपने धर्म को भूल जाते हैं।
क्रिश्चियन भल सतो से तमोप्रधान बने हैं फिर भी क्रिश्चियन सम्प्रदाय के तो हैं ना।
आदि सनातन देवी देवता सम्प्रदाय वाले तो अपने को हिन्दू कह देते हैं।
यह भी नहीं समझते कि हम असुल देवी देवता धर्म के हैं।
वण्डर है ना।
तुम पूछते हो हिन्दू धर्म किसने स्थापन किया?
तो मूँझ जाते हैं।
देवताओं की पूजा करते हैं तो देवता धर्म के ठहरे ना।
परन्तु समझते नहीं।
यह भी ड्रामा में नूँध है।
तुम्हारी बुद्धि में सारी नॉलेज है।
तुम जानते हो हम पहले सूर्यवंशी थे फिर और धर्म आते हैं।
हम पुनर्जन्म लेते आते हैं।
तुम्हारे में भी कोई यथार्थ रीति जानते हैं।
स्कूल में भी कोई स्टूडेन्ट की बुद्धि में अच्छी रीति बैठता है, कोई की बुद्धि में कम बैठता है।
यहाँ भी जो नापास होते हैं उनको क्षत्रिय कहा जाता है।
चन्द्रवंशी में चले जाते हैं।
दो कला कम हो गई ना।
सम्पूर्ण बन न सके। तुम्हारी बुद्धि में अभी बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी है।
वह स्कूल में तो हद की हिस्ट्री-जॉग्राफी पढ़ते हैं।
वह कोई मूलवतन, सूक्ष्मवतन को थोड़ेही जानते हैं।
साधू सन्त आदि किसकी भी बुद्धि में नहीं है।
तुम्हारी बुद्धि में है - मूलवतन में आत्मायें रहती हैं।
यह है स्थूल वतन।
तुम्हारी बुद्धि में सारी नॉलेज है।
यह स्वदर्शन चक्रधारी सेना बैठी है।
यह सेना बाप को और चक्र को याद करती है। तुम्हारी बुद्धि में ज्ञान है।
बाकी कोई हथियार आदि नहीं हैं।
ज्ञान से स्व का दर्शन हुआ है।
बाप, रचयिता का और रचना के आदि मध्य अन्त का ज्ञान देते हैं।
अब बाप का फरमान है कि रचयिता को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे।
जितना जो स्वदर्शन चक्रधारी बनते हैं, औरों को बनाते हैं, जो जास्ती सर्विस करते हैं उनको जास्ती पद मिलेगा।
यह तो कॉमन बात है।
बाप को भूले ही हैं गीता में कृष्ण का नाम डालने से।
कृष्ण को भगवान कह नहीं सकते। उनको बाप नहीं कहेंगे।
वर्सा बाप से मिलता है।
पतित-पावन बाप को कहा जाता, वह जब आये तब हम वापिस शान्ति-धाम में जायें।
मनुष्य मुक्ति के लिए कितना माथा मारते हैं।
तुम कितना सहज समझाते हो।
बोलो - पतित-पावन तो परमात्मा है फिर गंगा में स्नान करने क्यों जाते हो!
गंगा के कण्ठे पर जाकर बैठते हैं कि वहाँ ही हम मरें।
पहले बंगाल में जब कोई मरने पर होते थे तो गंगा में जाकर हरीबोल करते थे।
समझते थे यह मुक्त हो गया।
अब आत्मा तो निकल गई।
वह तो पवित्र बनी नहीं।
आत्मा को पवित्र बनाने वाला बाप ही है, उनको ही पुकारते हैं।
अब बाप कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे।
बाप आकर पुरानी दुनिया को नया बनाते हैं।
बाकी नई रचते नहीं हैं।
अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।