गीत:- मुखड़ा देख ले ...
यह किसने कहा?
बेहद के बाप ने कहा हे आत्मायें।
प्राणी माना आत्मा।
कहते हैं ना - आत्मा निकल गई यानी प्राण निकल गये।
अब बाप सम्मुख बैठ समझाते हैं हे आत्मायें याद करो, सिर्फ इस जन्म को नहीं देखना है परन्तु जबसे तुम तमोप्रधान बने हो, तो सीढ़ी नीचे उतरते पतित बने हो।
तो जरूर पाप किये होंगे।
अब समझ की बात है।
कितना जन्म-जन्मान्तर का पाप सिर पर रहा हुआ है, यह कैसे पता पड़े।
अपने को देखना है हमारा योग कितना लगता है!
बाप के साथ जितना योग अच्छा लगेगा उतना विकर्म विनाश होंगे।
बाबा ने कहा है मेरे को याद करो तो गैरन्टी है तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे।
अपनी दिल अन्दर हर एक देखे हमारा बाप के साथ कितना योग रहता है?
जितना हम योग लगायेंगे, पवित्र बनेंगे, पाप कटते जायेंगे, योग बढ़ता जायेगा।
पवित्र नहीं बनेंगे तो योग भी लगेगा नहीं।
ऐसे भी कई हैं जो सारे दिन में 15 मिनट भी याद में नहीं रहते हैं।
अपने से पूछना चाहिए - मेरी दिल शिवबाबा से है या देहधारी से?
कर्म सम्बन्धियों आदि से है?
माया तूफान में तो बच्चों को ही लायेगी ना!
खुद भी समझ सकते हैं मेरी अवस्था कैसी है?
शिवबाबा से दिल लगती है या कोई देहधारी से है?
कर्म सम्बन्धियों आदि से है तो समझना चाहिए हमारे विकर्म बहुत हैं, जो माया खड्डे में डाल देती है।
स्टूडेन्ट अन्दर में समझ सकते हैं, हम पास होंगे या नहीं?
अच्छी रीति पढ़ते हैं या नहीं?
नम्बरवार तो होते हैं ना।
आत्मा को अपना कल्याण करना है।
बाप डायरेक्शन देते हैं, अगर तुम पुण्य आत्मा बन ऊंच पद पाना चाहते हो तो उसमें पवित्रता है फर्स्ट।
आये भी पवित्र फिर जाना भी पवित्र बनकर है, पतित कभी ऊंच पद पा न सकें।
सदैव अपनी दिल से पूछना चाहिए - हम कितना बाप को याद करते हैं, हम क्या करते हैं?
यह तो जरूर है पिछाड़ी में बैठे हुए स्टूडेन्ट की दिल खाती है।
पुरुषार्थ करते हैं ऊंच पद पाने के लिये। परन्तु चलन भी चाहिए ना।
बाप को याद कर अपने सिर से पापों का बोझा उतारना है।
पापों का बोझा सिवाए याद के हम उतार ही नहीं सकते।
तो कितना बाप के साथ योग होना चाहिए।
ऊंच ते ऊंच बाप आकर कहते हैं मुझ बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे।
टाइम नजदीक आता जाता है।
शरीर पर भरोसा नहीं है।
अचानक ही कैसे-कैसे एक्सीडेंट हो जाते हैं।
अकाले मृत्यु की तो फुल सीजन है।
तो हर एक को अपनी जांच कर अपना कल्याण करना है।
सारे दिन का पोतामेल देखना चाहिए - योग और चलन का।
हमने सारे दिन में कितने पाप किये?
मन्सा, वाचा में पहले आते हैं फिर कर्मणा में आते हैं।
अब बच्चों को राइटियस बुद्धि मिली है कि हमको अच्छे काम करने हैं।
किसको धोखा तो नहीं दिया?
फालतू झूठ तो नहीं बोला?
डिस सर्विस तो नहीं की?
कोई किसी के नाम-रूप में फँसते हैं तो यज्ञ पिता की निंदा कराते हैं।
बाप कहते हैं किसको भी दु:ख न दो।
एक बाप की याद में रहो।
यह बहुत जबरदस्त फिकरात मिली हुई है।
अगर हम याद में नहीं रह सकते हैं तो क्या गति होगी!
इस समय ग़फलत में रहेंगे तो पिछाड़ी को बहुत पछताना पड़ेगा।
यह भी समझते हैं जो हल्का पद पाने वाले हैं, वह हल्का पद ही पायेंगे।
बुद्धि से समझ सकते हैं हमको क्या करना है।
सबको यही मंत्र देना है कि बाप को याद करो।
लक्ष्य तो बच्चों को मिला है।
इन बातों को दुनिया वाले समझ नहीं सकते।
पहली-पहली मुख्य बात है ही बाप को याद करने की।
रचयिता और रचना की नॉलेज तो मिल गई।
रोज़-रोज़ कोई न कोई नई-नई प्वाइंट्स भी समझाने के लिए दी जाती हैं।
जैसे विराट रूप का चित्र है, इस पर भी तुम समझा सकते हो।
कैसे वर्णों में आते हैं - यह भी सीढ़ी के बाजू में रखने का चित्र है।
सारा दिन बुद्धि में यही चिन्तन रहे कि कैसे किसको समझाऊं?
सर्विस करने से भी बाप की याद रहेगी।
बाप की याद से ही विकर्म विनाश होंगे।
अपना भी कल्याण करना है।
बाप ने समझाया है तुम्हारे पर 63 जन्मों के पाप हैं।
पाप करते-करते सतोप्रधान से तमोप्रधान बन पड़े हो।
अब मेरा बनकर फिर कोई पाप कर्म नहीं करो।
झूठ, शैतानी, घर फिटाना, सुनी सुनाई बातों पर विश्वास करना - यह धूतीपना बड़ा नुकसानकारक है।
बाप से योग ही तुड़ा देता है, तो कितना पाप हो गया।
गवर्मेन्ट के भी धूते होते हैं, गवर्मेन्ट की बात किसी दुश्मन को सुनाए बड़ा नुकसान करते हैं।
तो फिर उन्हों को बड़ी कड़ी सजा मिलती है।
तो बच्चों के मुख से सदैव ज्ञान रत्न निकलने चाहिए।
उल्टा सुल्टा समाचार भी एक-दो से पूछना नहीं चाहिए।
ज्ञान की बातें ही करनी चाहिए।
तुम कैसे बाप से योग लगाते हो?
कैसे किसको समझाते हो?
सारा दिन यही ख्याल रहे। चित्रों के आगे जाकर बैठ जाना चाहिए।
तुम्हारी बुद्धि में तो नॉलेज है ना।
भक्ति मार्ग में तो अनेक प्रकार के चित्रों को पूजते रहते हैं।
जानते कुछ भी नहीं।
ब्लाइन्ड फेथ, आइडल वर्शिप (मूर्ति पूजा) इन बातों में भारत मशहूर है।
अभी तुम यह बातें समझाने में कितनी मेहनत करते हो।
प्रदर्शनी में कितने मनुष्य आते हैं।
भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं, कोई तो समझते हैं, यह देखने समझने योग्य है।
देख लेंगे, फिर सेन्टर पर कभी नहीं जाते।
दिन-प्रतिदिन दुनिया की हालत भी खराब होती जाती है।
झगड़े बहुत हैं, विलायत में क्या-क्या हो रहा है - बात मत पूछो।
कितने मनुष्य मरते हैं। तमोप्रधान दुनिया है ना।
भल कहते हैं बॉम्ब्स नहीं बनाने चाहिए।
परन्तु वह कहते तुम्हारे पास ढेर रखे हैं तो फिर हम क्यों न बनायें।
नहीं तो गुलाम होकर रहना पड़े।
जो कुछ मत निकलती है विनाश के लिए।
विनाश तो होना ही है।
कहते हैं शंकर प्रेरक है परन्तु इसमें प्रेरणा आदि की तो बात नहीं।
हम तो ड्रामा पर खड़े हैं।
माया बड़ी तेज है।
हमारे बच्चों को भी विकारों में गिरा देती है।
कितना समझाया जाता है कि देह के साथ प्रीत मत रखो, नाम-रूप में मत फँसो।
परन्तु माया भी तमोप्रधान ऐसी है, देह में फँसा देती है।
एकदम नाक से पकड़ लेती है।
पता नहीं पड़ता है।
बाप कितना समझाते हैं - श्रीमत पर चलो, परन्तु चलते नहीं।
रावण की मत झट बुद्धि में आ जाती है।
रावण जेल से छोड़ता नहीं।
बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो।
बस अब तो हम गये।
आधाकल्प के रोग से हम छूटते हैं।
वहाँ तो है ही निरोगी काया।
यहाँ तो कितने रोगी हैं।
यह रौरव नर्क है ना।
भल वो लोग गरुड़ पुराण पढ़ते हैं परन्तु पढ़ने अथवा सुनने वालों को समझ कुछ भी नहीं है।
बाबा खुद कहते हैं आगे भक्ति का कितना नशा था।
भक्ति से भगवान मिलेगा, यह सुनकर खुश हो भक्ति करते रहते थे।
पतित बनते हैं तब तो पुकारते हैं - हे पतित-पावन आओ।
भक्ति करते हो यह तो अच्छा है फिर भगवान को याद क्यों करते!
समझते हैं भगवान आकर भक्ति का फल देंगे।
क्या फल देंगे - वह किसको पता नहीं।
बाप कहते हैं गीता पढ़ने वालों को ही समझाना चाहिए, वही हमारे धर्म के हैं।
पहली मुख्य बात ही है गीता में भगवानुवाच।
अब गीता का भगवान कौन?
भगवान का तो परिचय चाहिए ना
। तुमको पता पड़ गया है - आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है?
मनुष्य ज्ञान की बातों से कितना डरते हैं।
भक्ति कितनी अच्छी लगती है।
ज्ञान से 3 कोस दूर भागते हैं।
अरे, पावन बनना तो अच्छा है, अब पावन दुनिया की स्थापना, पतित दुनिया का विनाश होना है।
परन्तु बिल्कुल सुनते नहीं।
बाप का डायरेक्शन है - हियर नो ईविल....... माया फिर कहती है हियर नो बाबा की बातें।
माया का डायरेक्शन है शिवबाबा का ज्ञान मत सुनो।
ऐसा जोर से माया चमाट मारती है जो बुद्धि में ठहरता नहीं।
बाप को याद कर ही नहीं सकते।
मित्र सम्बन्धी, देहधारी याद आ जाते हैं।
बाबा की आज्ञा नहीं मानते।
बाप कहते हैं मामेकम् याद करो और फिर नाफरमानबरदार बन कहते हैं हमको फलाने की याद आती है।
याद आयेगी तो गिर पड़ेंगे।
इन बातों से तो ऩफरत आनी चाहिए।
यह बिल्कुल ही छी-छी दुनिया है।
हमारे लिए तो नया स्वर्ग स्थापन हो रहा है।
तुम बच्चों को बाप का और सृष्टि चक्र का परिचय मिला है तो उस पढ़ाई में ही लग जाना चाहिए।
बाप कहते हैं अपने अन्दर को देखो।
नारद का भी मिसाल है ना।
तो बाप भी कहते हैं - अपने को देखो, हम बाप को याद करते हैं?
याद से ही पाप भस्म होंगे।
कोई भी हालत में याद शिवबाबा को करना है, और कोई से लव नहीं रखना है।
अन्त में शिवबाबा की याद हो तब प्राण तन से निकलें।
शिवबाबा की याद हो और स्वदर्शन चक्र का ज्ञान हो।
स्वदर्शन चक्रधारी कौन है, यह भी किसको पता थोड़ेही है।
ब्राह्मणों को भी यह नॉलेज किसने दी?
ब्राह्मणों को यह स्वदर्शन चक्रधारी कौन बनाते हैं?
परमपिता परमात्मा बिन्दी।
तो क्या वह भी स्वदर्शन चक्रधारी है?
हाँ, पहले तो वह हैं।
नहीं तो हम ब्राह्मणों को कौन बनाये।
सारी रचना के आदि, मध्य, अन्त का नॉलेज उसमें है।
तुम्हारी आत्मा भी बनती है, वह भी आत्मा है।
भक्ति मार्ग में विष्णु को चक्रधारी बना दिया है।
हम कहते हैं परमात्मा त्रिकालदर्शी, त्रिमूर्ति, त्रिनेत्री है।
वह हमको स्वदर्शन चक्रधारी बनाते हैं।
वह भी जरूर मनुष्य तन में आकर सुनायेंगे।
रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान जरूर रचता ही सुनायेंगे ना।
रचता का ही किसको पता नहीं है तो रचना का ज्ञान कहाँ से मिले।
अभी तुम समझते हो शिवबाबा ही स्वदर्शन चक्रधारी है, ज्ञान का सागर है।
वह जानते हैं हम कैसे इस 84 के चक्र में आते हैं।
खुद तो पुनर्जन्म लेते नहीं।
उनको नॉलेज है, जो हमको सुनाते हैं।
तो पहले-पहले तो शिवबाबा स्वदर्शन चक्रधारी ठहरा।
शिवबाबा ही हमको स्वदर्शन चक्रधारी बनाते हैं।
पावन बनाते हैं क्योंकि पतित-पावन वह है।
रचता भी वह है।
बाप बच्चे के जीवन को जानते हैं ना।
शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा स्थापना कराते हैं।
करनकरावनहार है ना। तुम भी सीखो, सिखलाओ।
बाप पढ़ाते हैं फिर कहते हैं औरों को भी पढ़ाओ।
तो शिवबाबा ही तुमको स्वदर्शन चक्रधारी बनाते हैं।
कहते हैं मुझे सृष्टि चक्र का नॉलेज है तब तो सुनाता हूँ।
तो 84 जन्म कैसे लेते हो - यह 84 जन्मों की कहानी बुद्धि में रहनी चाहिए।
यह बुद्धि में रहे तो भी चक्रवर्ती राजा बन सकते हैं।
यह है ज्ञान। बाकी योग से ही पाप कटते हैं।
सारे दिन का पोतामेल निकालो।
याद ही नहीं करेंगे तो पोतामेल भी क्या निकालेंगे!
सारे दिन में क्या-क्या किया - यह तो याद रहता है ना।
ऐसे भी मनुष्य हैं, अपना पोतामेल निकालते हैं - कितने शास्त्र पढ़े, कितना पुण्य किया?
तुम तो कहेंगे - कितना समय याद किया?
कितना खुशी में आकर बाप का परिचय दिया?
बाप द्वारा जो प्वाइंट्स मिली हैं, उनका घड़ी-घड़ी मंथन करो।
जो ज्ञान मिला है उसे बुद्धि में याद रखो, रोज़ मुरली पढ़ो।
वह भी बहुत अच्छा है।
मुरली में जो प्वाइंट्स हैं उनको घड़ी-घड़ी मंथन करना चाहिए।
यहाँ रहने वालों से भी बाहर विलायत में रहने वाले जास्ती याद में रहते हैं।
कितनी बांधेलियाँ हैं, बाबा को कभी देखा भी नहीं है, याद कितना करती हैं, नशा चढ़ा रहता है।
घर बैठे साक्षात्कार होता है या अनायास सुनते-सुनते निश्चय हो जाता है।
तो बाप कहते हैं अन्दर में अपनी जांच करते रहो कि हम कितना ऊंच पद पायेंगे?
हमारी चलन कैसी है?
कोई खान-पान की लालच तो नहीं है?
कोई आदत नहीं रहनी चाहिए।
मूल बात है अव्यभिचारी याद में रहना।
दिल से पूछो - हम किसको याद करता हूँ?
कितना समय दूसरों को याद करता हूँ?
नॉलेज भी धारण करनी है, पाप भी काटने हैं।
कोई-कोई ने ऐसे पाप किये हैं जो बात मत पूछो।
भगवान कहते हैं यह करो परन्तु कह देते हैं परवश हैं अर्थात् माया के वश हैं।
अच्छा, माया के वश ही रहो।
तुम्हें या तो श्रीमत पर चलना है या तो अपनी मत पर।
देखना है इस हालत में हम कहाँ तक पास होंगे?
क्या पद पायेंगे?
21 जन्म का घाटा पड़ जाता है।
जब कर्मातीत अवस्था हो जायेगी तो फिर देह-अभिमान का नाम नहीं रहेगा इसलिए कहा जाता है देही-अभिमानी बनो।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।