रूहानी बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं, उनका नाम क्या है? शिव।
यहाँ जो बैठे हैं तो बच्चों को अच्छी रीति याद रहना चाहिए।
इस ड्रामा में जो सबका पार्ट है, वह अब पूरा होता है।
नाटक जब पूरा होने पर होता है तो सभी एक्टर्स समझते हैं कि हमारा पार्ट अब पूरा होता है।
अब जाना है घर।
तुम बच्चों को भी बाप ने अभी समझ दी है, यह समझ और कोई में नहीं है।
अभी तुम्हें बाप ने समझदार बनाया है।
बच्चे, अब नाटक पूरा होता है, अब फिर नयेसिर चक्र शुरू होना है।
नई दुनिया में सतयुग था।
अभी पुरानी दुनिया में यह कलियुग का अन्त है।
यह बातें तुम ही जानते हो, जिनको बाप मिला है।
नये जो आते हैं तो उनको भी यह समझाना है - अब नाटक पूरा होता है, कलियुग अन्त के बाद फिर सतयुग रिपीट होना है।
इतने सब जो हैं उनको वापिस जाना है अपने घर।
अब नाटक पूरा होता है, इससे मनुष्य समझ लेते हैं कि प्रलय होती है।
अभी तुम जानते हो पुरानी दुनिया का विनाश कैसे होता है।
भारत तो अविनाशी खण्ड है, बाप भी यहाँ ही आते हैं।
बाकी और सब खण्ड खलास हो जायेंगे।
यह ख्यालात और कोई की बुद्धि में आ नहीं सकते।
बाप तुम बच्चों को समझाते हैं, अब नाटक पूरा होता है फिर रिपीट करना है।
आगे नाटक का नाम भी तुम्हारी बुद्धि में नहीं था।
कहने मात्र कहते थे, यह सृष्टि नाटक है, जिसमें हम एक्टर्स हैं।
आगे जब हम कहते थे तो शरीर को समझते थे।
अब बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो।
अब हमको वापिस घर जाना है, वह है स्वीट होम।
उस निराकारी दुनिया में हम आत्मायें रहती हैं।
यह ज्ञान कोई भी मनुष्य मात्र में नहीं है।
अभी तुम संगम पर हो।
जानते हो अभी हमको वापिस जाना है।
पुरानी दुनिया खत्म हो तो भक्ति भी खत्म हो।
पहले-पहले कौन आते हैं, कैसे यह धर्म नम्बरवार आते हैं, यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं।
यह बाप नई बातें समझाते हैं।
यह और कोई समझा न सके।
बाप भी एक ही बार आकर समझाते हैं।
ज्ञान सागर बाप आते ही एक बार हैं जबकि नई दुनिया की स्थापना, पुरानी दुनिया का विनाश करना है।
बाप की याद के साथ यह चक्र भी बुद्धि में रहना चाहिए।
अब नाटक पूरा होता है, हम जाते हैं घर।
पार्ट बजाते-बजाते हम थक गये हैं।
पैसा भी खर्च किया, भक्ति करते-करते हम सतोप्रधान से तमोप्रधान बन गये हैं।
दुनिया ही पुरानी हो गई है।
नाटक पुराना कहेंगे? नहीं।
नाटक तो कभी पुराना होता नहीं।
नाटक तो नित्य नया है।
यह चलता ही रहता है।
बाकी दुनिया पुरानी होती है, हम एक्टर्स तमोप्रधान दु:खी हो जाते हैं, थक जाते हैं।
सतयुग में थोड़ेही थकेंगे।
कोई बात में थकने वा तंग होने की बात नहीं।
यहाँ तो अनेक प्रकार की तंगी देखनी पड़ती है।
तुम जानते हो यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है।
सम्बन्धी आदि कुछ भी याद नहीं आना चाहिए।
एक बाप को ही याद करना चाहिए, जिससे विकर्म विनाश होते हैं, विकर्म विनाश होने का और कोई उपाय नहीं है।
गीता में भी मनमनाभव अक्षर है।
परन्तु अर्थ कोई समझ न सके।
बाप कहते हैं - मुझे याद करो और वर्से को याद करो।
तुम विश्व के वारिस अर्थात् मालिक थे।
अभी तुम विश्व के वारिस बन रहे हो।
तो कितनी खुशी होनी चाहिए।
अभी तुम कौड़ी से हीरे मिसल बन रहे हो।
यहाँ तुम आये ही हो बाप से वर्सा लेने।
तुम जानते हो जब कलायें कम होती हैं तब फूलों का बगीचा मुरझा जाता है।
अभी तुम बनते हो गार्डन ऑफ फ्लावर।
सतयुग गार्डन है तो कैसा सुन्दर है फिर धीरे-धीरे कला कम होती जाती है।
दो कला कम हुई, गार्डन मुरझा गया।
अभी तो कांटों का जंगल हो गया है।
अभी तुम जानते हो दुनिया को कुछ भी पता नहीं है।
यह नॉलेज तुमको मिल रही है।
यह है नई दुनिया के लिए नई नॉलेज।
नई दुनिया स्थापन होती है।
करने वाला है बाप।
सृष्टि का रचयिता बाप है।
याद भी बाप को ही करते हैं कि आकर हेविन रचो।
सुखधाम रचो तो जरूर दु:खधाम का विनाश होगा ना।
बाबा रोज़-रोज़ समझाते रहते हैं, उसको धारण कर फिर समझाना है।
पहले-पहले तो मुख्य बात समझानी है - हमारा बाप कौन है, जिससे वर्सा पाना है।
भक्ति मार्ग में भी गॉड फादर को याद करते हैं कि हमारे दु:ख हरो सुख दो।
तो तुम बच्चों की बुद्धि में भी स्मृति रहनी चाहिए।
स्कूल में स्टूडेन्ट्स की बुद्धि में नॉलेज रहती है, न कि घर बार।
स्टूडेन्ट लाइफ में धंधे-धोरी की बात रहती नहीं।
स्टडी ही याद रहती है।
यहाँ तो फिर कर्म करते, गृहस्थ व्यवहार में रहते, बाप कहते हैं यह स्टडी करो।
ऐसे नहीं कहते कि सन्यासियों के मुआफिक घरबार छोड़ो।
यह है ही राजयोग।
यह प्रवृत्ति मार्ग है। सन्यासियों को भी तुम कह सकते हो कि तुम्हारा है हठयोग।
तुम घरबार छोड़ते हो, यहाँ वह बात नहीं है।
यह दुनिया ही कैसी गंदी है। क्या लगा पड़ा है!
गरीब आदि कैसे रहे पड़े हैं। देखने से ही ऩफरत आती है।
बाहर से जो विजीटर आदि आते हैं उन्हों को तो अच्छे-अच्छे स्थान दिखाते हैं, गरीब आदि कैसे गंद में रहे पड़े हैं, वह थोड़ेही दिखाते हैं।
यह तो है ही नर्क परन्तु उनमें भी फ़र्क तो बहुत है ना।
साहूकार लोग कहाँ रहते हैं, गरीब कहाँ रहते हैं, कर्मों का हिसाब है ना।
सतयुग में ऐसी गन्दगी हो नहीं सकती।
वहाँ भी फर्क तो रहता है ना।
कोई सोने के महल बनायेंगे, कोई चांदी के, कोई ईटों के।
यहाँ तो कितने खण्ड हैं।
एक यूरोप खण्ड ही कितना बड़ा है।
वहाँ तो सिर्फ हम ही होंगे।
यह भी बुद्धि में रहे तो हर्षितमुख अवस्था हो।
स्टूडेन्ट की बुद्धि में स्टडी ही याद रहती है - बाप और वर्सा।
यह तो समझाया है बाकी थोड़ा समय है।
वह तो कह देते लाखों-हज़ारों वर्ष।
यहाँ तो बात ही 5 हज़ार वर्ष की है।
तुम बच्चे समझ सकते हो अभी हमारे राजधानी की स्थापना हो रही है।
बाकी सारी दुनिया खत्म होनी है।
यह पढ़ाई है ना।
बुद्धि में यह याद रहे हम स्टूडेन्ट हैं, हमको भगवान पढ़ाते हैं।
तो भी कितनी खुशी रहे। यह क्यों भूल जाता है!
माया बड़ी प्रबल है, वह भुला देती है।
स्कूल में सब स्टूडेन्ट्स पढ़ रहे हैं।
सभी जानते हैं कि हमको भगवान पढ़ाते हैं, वहाँ तो अनेक प्रकार की विद्या पढ़ाई जाती है।
अनेक टीचर्स होते हैं।
यहाँ तो एक ही टीचर है, एक ही स्टडी है।
बाकी नायब टीचर्स तो जरूर चाहिए।
स्कूल है एक, बाकी सब ब्रान्चेज हैं, पढ़ाने वाला एक बाप है।
बाप आकर सभी को सुख देते हैं।
तुम जानते हो - आधाकल्प हम सुखी रहेंगे।
तो यह भी खुशी रहनी चाहिए, शिवबाबा हमको पढ़ाते हैं।
शिवबाबा रचना रचते ही हैं स्वर्ग की।
हम स्वर्ग का मालिक बनने लिए पढ़ते हैं।
कितनी खुशी अन्दर में रहनी चाहिए।
वह स्टूडेन्ट भी खाते पीते सब कुछ घर का काम आदि करते हैं।
हाँ, कोई हॉस्टल में रहते हैं कि जास्ती पढ़ाई में ध्यान रहेगा।
सर्विस करने के लिए बच्चियां बाहर में रहती हैं।
कैसे-कैसे मनुष्य आते हैं।
यहाँ तो तुम कितने सेफ बैठे हो।
कोई अन्दर घुस न सके।
यहाँ कोई का संग नहीं।
पतित से बात करने की दरकार नहीं।
तुमको कोई का मुँह देखने की भी दरकार नहीं है।
फिर भी बाहर रहने वाले तीखे चले जाते हैं।
कैसा वन्डर है, बाहर रहने वाले कितनों को पढ़ाकर, आप समान बनाकर और ले आते हैं।
बाबा समाचार पूछते हैं - कैसे पेशेन्ट को ले आये हो, कोई बहुत खराब पेशेन्ट है तो उनको 7 रोज़ भट्ठी में रखा जाता है।
यहाँ कोई भी शूद्र को नहीं ले आना है।
यह मधुबन है जैसे कि तुम ब्राह्मणों का एक गाँव।
यहाँ बाप तुम बच्चों को बैठ समझाते हैं, विश्व का मालिक बनाते हैं।
कोई शूद्र को ले आयेंगे तो वह वायब्रेशन खराब करेगा।
तुम बच्चों की चलन भी बहुत रॉयल चाहिए।
आगे चल तुमको बहुत साक्षात्कार होते रहेंगे - वहाँ क्या-क्या होगा।
जानवर भी कैसे अच्छे-अच्छे होंगे।
सब अच्छी चीजें होंगी।
सतयुग की कोई चीज़ यहाँ हो न सके।
वहाँ फिर यहाँ की चीज़ हो न सके।
तुम्हारी बुद्धि में है हम स्वर्ग के लिए इम्तहान पास कर रहे हैं।
जितना पढ़ेंगे और फिर पढ़ायेंगे।
टीचर बन औरों को रास्ता बताते हैं।
सब टीचर्स हैं।
सबको टीच करना है।
पहले-पहले तो बाप की पहचान दे बतलाना है कि बाप से यह वर्सा मिलता है।
गीता बाप ने सुनाई है।
कृष्ण ने बाप से सुनकर यह पद पाया है।
प्रजापिता ब्रह्मा है तो ब्राह्मण भी यहाँ चाहिए।
ब्रह्मा भी शिवबाबा से पढ़ते रहते हैं।
तुम अभी पढ़ते हो विष्णुपुरी में जाने के लिए।
यह है तुम्हारा अलौकिक घर।
लौकिक, पारलौकिक और फिर अलौकिक। नई बात है ना।
भक्ति मार्ग में कभी ब्रह्मा को याद नहीं करते।
ब्रह्मा बाबा किसको कहने आता नहीं।
शिवबाबा को याद करते हैं कि दु:ख से छुड़ाओ।
वह है पारलौकिक बाप, यह फिर है अलौकिक।
इनको तुम सूक्ष्मवतन में भी देखते हो।
फिर यहाँ भी देखते हो।
लौकिक बाप तो यहाँ देखने में आता है, पारलौकिक बाप तो परलोक में ही देख सकते।
यह फिर है अलौकिक वण्डरफुल बाप।
इस अलौकिक बाप को समझने में ही मूँझते हैं।
शिवबाबा के लिए तो कहेंगे निराकार है।
तुम कहेंगे वह बिन्दी है।
वह करके अखण्ड ज्योति वा ब्रह्म कह देते हैं।
अनेक मत हैं।
तुम्हारी तो एक ही मत है।
एक द्वारा बाप ने मत देना शुरू की फिर वृद्धि कितनी होती है।
तो तुम बच्चों की बुद्धि में यह रहना चाहिए - हमको शिवबाबा पढ़ा रहे हैं।
पतित से पावन बना रहे हैं।
रावण राज्य में जरूर पतित तमोप्रधान बनना ही है।
नाम ही है पतित दुनिया।
सब दु:खी भी हैं तब तो बाप को याद करते हैं कि बाबा हमारे दु:ख दूर कर हमको सुख दो।
सब बच्चों का बाप एक ही है।
वह तो सबको सुख देंगे ना।
नई दुनिया में तो सुख ही सुख है।
बाकी सब शान्तिधाम में रहते हैं।
यह बुद्धि में रहना चाहिए - अभी हम जायेंगे शान्तिधाम।
जितना नजदीक आते जायेंगे तो आज की दुनिया क्या है, कल की दुनिया क्या होगी, सब देखते रहेंगे।
स्वर्ग की बादशाही नजदीक देखते रहेंगे।
तो बच्चों को मुख्य बात समझाते हैं - बुद्धि में यह याद रहे कि हम स्कूल में बैठे हैं।
शिवबाबा इस रथ पर सवार हो आये हैं हमको पढ़ाने।
यह भागीरथ है।
बाप आयेंगे भी जरूर एक बार।
भागीरथ का नाम क्या है, यह भी किसको पता नहीं है।
यहाँ तुम बच्चे जब बाप के सम्मुख बैठते हो तो बुद्धि में याद रहे कि बाबा आया हुआ है - हमको सृष्टि चक्र का राज़ बता रहे हैं।
अभी नाटक पूरा होता है, अब हमको जाना है।
यह बुद्धि में रखना कितना सहज है परन्तु यह भी याद कर नहीं सकते।
अभी चक्र पूरा होता है, अब हमको जाना है फिर नई दुनिया में आकर पार्ट बजाना है, फिर हमारे बाद फलाने-फलाने आयेंगे।
तुम जानते हो यह चक्र सारा कैसे फिरता है।
दुनिया वृद्धि को कैसे पाती है।
नई से पुरानी फिर पुरानी से नई होती है।
विनाश के लिए तैयारियां भी देख रहे हो।
नैचुरल कैलेमिटीज भी होनी है।
इतने बॉम्ब्स बनाकर रखे हैं तो काम में तो आने हैं ना।
बॉम्ब्स से ही इतना काम होगा जो फिर मनुष्यों के लड़ाई की दरकार नहीं रहेगी।
लश्कर को फिर छोड़ते जायेंगे।
बॉम्ब्स फेंकते जायेंगे।
फिर इतने सब मनुष्य नौकरी से छूट जायेंगे तो भूख मरेंगे ना।
यह सब होने का है।
फिर सिपाही आदि क्या करेंगे।
अर्थक्वेक होती रहेगी, बॉम्बस गिरते रहेंगे।
एक-दो को मारते रहेंगे।
खूने-नाहेक खेल तो होना है ना।
तो यहाँ जब आकर बैठते हो तो इन बातों में रमण करना चाहिए।
शान्तिधाम, सुखधाम को याद करते रहो।
दिल से पूछो हमको क्या याद पड़ता है।
अगर बाप की याद नहीं है तो जरूर बुद्धि कहाँ भटकती है।
विकर्म भी विनाश नहीं होंगे, पद भी कम हो जायेगा।
अच्छा, बाप की याद नहीं ठहरती तो चक्र का सिमरण करो तो भी खुशी चढ़े।
परन्तु श्रीमत पर नहीं चलते, सर्विस नहीं करते तो बापदादा की दिल पर भी नहीं चढ़ सकते।
सर्विस नहीं करते तो बहुतों को तंग करते रहते हैं।
कोई तो बहुतों को आपसमान बनाए और बाप के पास ले आते हैं।
तो बाबा देखकर खुश होते हैं।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।