14-04-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन
ओम् शान्ति किसने कहा और किसने सुना?
और सतसंगों में तो जिज्ञासु सुनते हैं।
महात्मा वा गुरू आदि ने सुनाया, ऐसे कहेंगे।
यहाँ परमात्मा ने सुनाया और आत्मा ने सुना।
नई बात है ना।
देही-अभिमानी होना पड़े।
कई यहाँ भी देह-अभिमानी हो बैठते हैं।
तुम बच्चों को देही-अभिमानी हो बैठना चाहिए।
मैं आत्मा इस शरीर में विराजमान हूँ।
शिवबाबा हमको समझाते हैं, यह बुद्धि में अच्छी तरह याद रहना चाहिए।
मुझ आत्मा का कनेक्शन है परमात्मा के साथ।
परमात्मा आकर इस शरीर द्वारा सुनाते हैं, यह दलाल हो गया।
तुमको समझाने वाला वह है। इनको भी वर्सा वह देते हैं।
तो बुद्धि उस तरफ जानी चाहिए।
समझो बाप के 5-7 बच्चे हैं, उन्हों का बुद्धियोग बाप तरफ रहेगा ना क्योंकि बाप से वर्सा मिलना है।
भाई से वर्सा नहीं मिलता।
वर्सा हमेशा बाप से मिलता है।
आत्मा को आत्मा से वर्सा नहीं मिलता।
तुम जानते हो आत्मा के रूप में हम सब भाई-भाई हैं।
हम सब आत्माओं का कनेक्शन एक परमपिता परमात्मा के साथ है।
वह कहते हैं मामेकम् याद करो। मुझ एक के साथ ही प्रीत रखो।
रचना के साथ मत रखो।
देही-अभिमानी बनो।
मेरे सिवाए और कोई देहधारी को याद करते हो, तो इसको कहा जाता है देह-अभिमान।
भल यह देहधारी तुम्हारे सामने है परन्तु तुम इनको नहीं देखो।
बुद्धि में याद उनकी रहनी चाहिए।
वह तो सिर्फ कहने मात्र भाई-भाई कह देते हैं, अभी तुम जानते हो हम आत्मा हैं परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं।
वर्सा परमात्मा बाप से मिलता है।
वह बाप कहते हैं तुम्हारा लव मुझ एक के साथ होना चाहिए।
मैं ही खुद आकर तुम आत्माओं की अपने साथ सगाई कराता हूँ।
देहधारी से सगाई नहीं है।
और जो भी सम्बन्ध हैं वह देह के, यहाँ के सम्बन्ध हैं।
इस समय तुमको देही-अभिमानी बनना है।
हम आत्मा बाप से सुनते हैं, बुद्धि बाप तरफ जानी चाहिए।
बाप इनके बाजू में बैठ हमको नॉलेज देते हैं।
उसने शरीर का लोन लिया हुआ है।
आत्मा इस शरीर रूपी घर में आकर पार्ट बजाती है।
जैसेकि वह अपने को अन्डर-हाउस अरेस्ट कर देती है - पार्ट बजाने के लिए।
है तो फ्री।
परन्तु इसमें प्रवेश कर अपने को इस घर में बन्द कर पार्ट बजाती है।
आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है, पार्ट बजाती है।
इस समय जो जितना देही-अभिमानी रहेंगे वह ऊंच पद पायेंगे।
बाबा के शरीर में भी तुम्हारा प्यार नहीं होना चाहिए, रिंचक मात्र भी नहीं।
यह शरीर तो कोई काम का नहीं है।
मैं इस शरीर में प्रवेश करता हूँ, सिर्फ तुमको समझाने के लिए।
यह है रावण का राज्य, पराया देश।
रावण को जलाते हैं परन्तु समझते नहीं हैं।
चित्र आदि जो भी बनाते हैं, उनको जानते नहीं हैं।
बिल्कुल ही मूढ़मती हैं।
रावण राज्य में सब मूढ़मती हो जाते हैं।
देह-अभिमान है ना। तुच्छ बुद्धि बन गये हैं।
बाप कहते हैं मूढ़मती जो होंगे वह देह को याद करते रहेंगे, देह से प्यार रखेंगे।
स्वच्छ बुद्धि जो होंगे वह तो अपने को आत्मा समझ परमात्मा को याद कर परमात्मा से सुनते रहेंगे, इसमें ही मेहनत है।
यह तो बाप का रथ है।
बहुतों का इनसे प्यार हो जाता है।
जैसे हुसैन का घोड़ा, उनको कितना सजाते हैं।
अब महिमा तो हुसैन की है ना। घोड़े की तो नहीं।
जरूर मनुष्य के तन में हुसैन की आत्मा आई होगी ना।
वह इन बातों को नहीं समझते।
अभी इसको कहा जाता है राजस्व अश्वमेध अविनाशी रूद्र ज्ञान यज्ञ।
अश्व नाम सुनकर उन्होंने फिर घोड़ा समझ लिया है, उनको स्वाहा करते हैं।
यह सब कहानियाँ हैं भक्ति मार्ग की।
अभी तुमको हसीन बनाने वाला मुसाफिर तो यह है ना।
अभी तुम जानते हो हम पहले गोरे थे फिर सांवरे बने हैं।
जो भी आत्मायें पहले-पहले आती हैं तो पहले सतोप्रधान हैं फिर सतो, रजो, तमो में आती हैं।
बाप आकर सबको हसीन (सुन्दर) बना देते हैं।
जो भी धर्म स्थापन अर्थ आते हैं, वह सब हसीन आत्मायें होती हैं, बाद में काम चिता पर बैठ काली हो जाती हैं।
पहले सुन्दर फिर श्याम बनती हैं।
यह नम्बरवन में पहले-पहले आते हैं तो सबसे जास्ती सुन्दर बनते हैं।
इन (लक्ष्मी-नारायण) जैसा नैचुरल सुन्दर तो कोई हो न सके।
यह ज्ञान की बात है।
भल क्रिश्चियन लोग भारत-वासियों से सुन्दर (गोरे) हैं क्योंकि उस तरफ के रहने वाले हैं परन्तु सतयुग में तो नैचुरल ब्युटी है।
आत्मा और शरीर दोनों सुन्दर हैं।
इस समय सब पतित सांवरे हैं फिर बाप आकर सबको सुन्दर बनाते हैं।
पहले सतोप्रधान पवित्र होते हैं फिर उतरते-उतरते काम चिता पर बैठ काले हो जाते हैं।
अब बाप आया है सभी आत्माओं को पवित्र बनाने।
बाप को याद करने से ही तुम पावन बन जायेंगे।
तो याद करना है एक को।
देह-धारी से प्रीत नहीं रखनी है।
बुद्धि में यह रहे कि हम एक बाप के हैं, वही सब कुछ है।
इन आंखों से देखने वाले जो भी हैं, वह सब विनाश हो जायेंगे।
यह आंखे भी खत्म हो जायेंगी।
परमपिता परमात्मा को तो त्रिनेत्री कहा जाता है।
उनको ज्ञान का तीसरा नेत्र है।
त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी, त्रिलोकीनाथ यह टाइटिल उनको मिले हैं।
अभी तुमको तीनों लोकों का ज्ञान है फिर यह गुम हो जाता है, जिसमें ज्ञान है वही आकर देते हैं।
तुमको बाप 84 जन्मों का ज्ञान सुनाते हैं।
बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो।
मैं इस शरीर में प्रवेश कर आया हूँ तुमको पावन बनाने।
मुझे याद करने से ही पावन बनेंगे और कोई को याद किया तो सतोप्रधान बन नहीं सकेंगे।
पाप कटेंगे नहीं तो कहेंगे विनाश काले विपरीत बुद्धि विनशन्ती।
मनुष्य तो बहुत अन्धश्रद्धा में हैं।
देह-धारियों में ही मोह रखते हैं।
अब तुमको देही-अभिमानी बनना है।
एक में ही मोह रखना है।
दूसरे कोई में मोह है तो गोया बाप से विपरीत बुद्धि हैं।
बाप कितना समझाते हैं मुझ बाप को ही याद करो, इसमें ही मेहनत है।
तुम कहते भी हो हम पतितों को आकर पावन बनाओ।
बाप ही पावन बनाते हैं।
तुम बच्चों को 84 जन्मों की हिस्ट्री-जॉग्राफी बाप ही समझाते हैं।
वह तो सहज है ना।
बाकी याद की ही डिफीकल्ट ते डिफीकल्ट सब्जेक्ट है।
बाप के साथ योग रखने में कोई भी होशियार नहीं हैं।
जो बच्चे याद में होशियार नहीं वह जैसे पण्डित हैं।
ज्ञान में भल कितने भी होशियार हों, याद में नहीं रहते तो वह पण्डित हैं।
बाबा पण्डित की एक कहानी सुनाते हैं ना।
जिसको सुनाया वह तो परमात्मा को याद कर पार हो गया।
पण्डित का दृष्टान्त भी तुम्हारे लिए है।
बाप को तुम याद करो तो पार हो जायेंगे।
सिर्फ मुरली में तीखे होंगे तो पार जा नहीं सकेंगे।
याद के सिवाए विकर्म विनाश नहीं होंगे।
यह सब दृष्टान्त बनाये हैं।
बाप बैठ यथार्थ रीति समझाते हैं।
उनको निश्चय बैठ गया।
एक ही बात पकड़ ली कि परमात्मा को याद करने से पार हो जायेंगे।
सिर्फ ज्ञान होगा, योग नहीं तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे।
ऐसे बहुत हैं, याद में नहीं रहते, मूल बात है ही याद की।
बहुत अच्छी-अच्छी सर्विस करने वाले हैं, परन्तु बुद्धियोग ठीक नहीं होगा तो फँस पड़ेंगे।
योग वाला कभी देह-अभिमान में नहीं फँसेगा, अशुद्ध संकल्प नहीं आयेंगे।
याद में कच्चा होगा तो तूफान आयेंगे।
योग से कर्मेन्द्रियाँ एकदम वश हो जाती हैं।
बाप राइट और रांग को समझने की बुद्धि भी देते हैं।
औरों की देह तरफ बुद्धि जाने से विपरीत बुद्धि विनशन्ती हो जायेंगे।
ज्ञान अलग है, योग अलग है।
योग से हेल्थ, ज्ञान से वेल्थ मिलती है।
योग से शरीर की आयु बढ़ती है, आत्मा तो बड़ी-छोटी होती नहीं।
आत्मा कहेगी मेरे शरीर की आयु बड़ी होती है।
अभी आयु छोटी है फिर आधाकल्प के लिए शरीर की आयु बड़ी हो जायेगी।
हम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे।
आत्मा पवित्र बनती है, सारा मदार आत्मा को पवित्र बनाने पर है।
पवित्र नहीं बनेंगे तो पद भी नहीं पायेंगे।
माया चार्ट रखने में बच्चों को सुस्त बना देती है।
बच्चों को याद की यात्रा का चार्ट बहुत शौक से रखना चाहिए।
देखना चाहिए कि हम बाप को याद करते हैं या और कोई मित्र-सम्बन्धी आदि तरफ बुद्धि जाती है।
सारे दिन में याद किसकी रही अथवा प्रीत किसके साथ रही, कितना टाइम वेस्ट किया?
अपना चार्ट रखना चाहिए।
परन्तु कोई में ताकत नहीं है जो चार्ट रेग्युलर रख सके।
कोई विरला रख सकते हैं।
माया पूरा चार्ट रखने नहीं देती है।
एकदम सुस्त बना देती है।
चुस्ती निकल जाती है।
बाप कहते हैं मामेकम् याद करो।
मैं तो सभी आशिकों का माशूक हूँ।
तो माशूक को याद करना चाहिए ना।
माशूक बाप कहते हैं तुमने आधाकल्प याद किया है, अब मैं कहता हूँ मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हो जाएं।
ऐसा बाप जो सुख देने वाला है, कितना याद करना चाहिए।
और तो सब दु:ख देने वाले हैं।
वह कोई काम आने वाले नहीं हैं।
अन्त समय एक परमात्मा बाप ही काम आता है।
अन्त का समय एक हद का होता है, एक बेहद का होता है।
बाप समझाते हैं अच्छी रीति याद करते रहेंगे तो अकाले मृत्यु नहीं होगी।
तुमको अमर बना देते हैं।
पहले तो बाप के साथ प्रीत बुद्धि चाहिए।
कोई के भी शरीर के साथ प्रीत होगी तो गिर पड़ेंगे।
फेल हो जायेंगे। चन्द्रवंशी में चले जायेंगे।
स्वर्ग सतयुगी सूर्यवंशी राजाई को ही कहा जाता है।
त्रेता को भी स्वर्ग नहीं कहेंगे।
जैसे द्वापर और कलियुग है तो कलियुग को रौरव नर्क, तमोप्रधान कहा जाता है।
द्वापर को इतना नहीं कहेंगे फिर तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने के लिए याद चाहिए।
खुद भी समझते हैं हमारी फलाने से बहुत प्रीत है, उसके आधार बिगर हमारा कल्याण नहीं होगा।
अब ऐसी हालत में अगर मर जाएं तो क्या होगा।
विनाश काले विपरीत बुद्धि विनशन्ती।
धूलछांई पद पा लेंगे।
आजकल दुनिया में फैशन की भी बहुत बड़ी मुसीबत है।
अपने पर आशिक करने के लिए शरीर को कितना टिपटॉप करते हैं।
अब बाप कहते हैं बच्चे किसके भी नाम-रूप में मत फँसो।
लक्ष्मी-नारायण की ड्रेस देखो कैसी रॉयल है।
वह है ही शिवालय, इसको कहा जाता है वेश्यालय।
इन देवताओं के आगे जाकर कहते हैं हम वेश्यालय के रहने वाले हैं।
आजकल तो फैशन की ऐसी मुसीबत है, सबकी नज़र चली जाती है, फिर पकड़कर भगा ले जाते हैं।
सतयुग में तो कायदेसिर चलन होती है। वहाँ तो नैचुरल ब्युटी है ना।
अन्धश्रद्धा की बात नहीं।
यहाँ तो देखने से दिल लग जाती तो फिर और धर्म वालों से भी शादी कर लेते हैं।
अभी तुम्हारी है ईश्वरीय बुद्धि, पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बाप के सिवाए कोई बना न सके।
वह है ही रावण सम्प्रदाय।
तुम अभी राम सम्प्रदाय बने हो।
पाण्डव और कौरव एक ही सम्प्रदाय के थे, बाकी यादव हैं यूरोपवासी।
गीता से कोई भी नहीं समझते कि यादव यूरोपवासी हैं।
वह तो यादव सम्प्रदाय भी यहाँ कह देते हैं।
बाप बैठ समझाते हैं यादव हैं यूरोपवासी, जिन्होंने अपने विनाश के लिए यह मूसल आदि बनाये हैं।
पाण्डवों की विजय होती है, वह जाकर स्वर्ग के मालिक बनेंगे।
परमात्मा ही आकर स्वर्ग की स्थापना करते हैं।
शास्त्रों में तो दिखाया है पाण्डव गल मरे फिर क्या हुआ?
कुछ भी समझ नहीं।
पत्थरबुद्धि हैं ना। ड्रामा के राज़ को ज़रा भी कोई जानते ही नहीं।
बाबा के पास बच्चे आते हैं, कहता हूँ भल जेवर आदि पहनो।
कहते हैं बाबा यहाँ जेवर शोभते कहाँ हैं!
पतित आत्मा, पतित शरीर को जेवर क्या शोभेंगे!
वहाँ तो हम इन जेवरों आदि से सजे रहेंगे।
अथाह धन होता है।
सब सुखी ही सुखी रहते हैं।
भल वहाँ फील होता है यह राजा है, हम प्रजा हैं।
परन्तु दु:ख की बात नहीं।
यहाँ अनाज आदि नहीं मिलता है, तो मनुष्य दु:खी होते हैं।
वहाँ तो सब कुछ मिलता है।
दु:ख अक्षर मुख से निकलेगा नहीं।
नाम ही है स्वर्ग।
यूरोपियन लोग उनको पैराडाइज कहते हैं।
समझते हैं वहाँ गॉड-गॉडेज रहते थे इसलिए उन्हों के चित्र भी बहुत खरीद करते हैं।
परन्तु वह स्वर्ग फिर कहाँ गया - यह किसको पता नहीं है।
तुम अभी जानते हो यह चक्र कैसे फिरता है।
नई सो पुरानी, पुरानी सो फिर नई दुनिया बनती है।
देही-अभिमानी बनने में बड़ी मेहनत है।
तुम देही-अभिमानी बनने से इन अनेक बीमारियों आदि से छूट सकेंगे।
बाप को याद करने से ऊंच पद पा लेंगे।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।