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Baba's Murlis - April, 2020
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आज की मुरली से याद के बिन्दु

17-04-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“ मीठे बच्चे - बाप नॉलेजफुल है , उन्हें जानी जाननहार कहना , यह उल्टी महिमा है ,

बाप आते ही हैं तुम्हें पतित से पावन बनाने ''

प्रश्नः-

बाप के साथ-साथ सबसे अधिक महिमा और किसकी है और कैसे?

उत्तर:-

1. बाप के साथ भारत की महिमा भी बहुत है।

भारत ही अविनाशी खण्ड है।

भारत ही स्वर्ग बनता है।

बाप ने भारतवासियों को ही धनवान, सुखी और पवित्र बनाया है।

2. गीता की भी अपरमअपार महिमा है, सर्वशास्त्रमई शिरोमणी गीता है।

3. तुम चैतन्य ज्ञान गंगाओं की भी बहुत महिमा है।

तुम डायरेक्ट ज्ञान सागर से निकली हो।

ओम् शान्ति।

ओम् शान्ति का अर्थ तो नये वा पुराने बच्चों ने समझा है।

तुम बच्चे जान गये हो - हम सब आत्मायें परमात्मा की सन्तान हैं।

परमात्मा ऊंच ते ऊंच और बहुत प्यारे ते प्यारा सभी का माशूक है।

बच्चों को ज्ञान और भक्ति का राज़ तो समझाया है, ज्ञान माना दिन - सतयुग-त्रेता, भक्ति माना रात - द्वापर-कलियुग।

भारत की ही बात है।

पहले-पहले तुम भारतवासी आते हो।

84 का चक्र भी तुम भारतवासियों के लिए है।

भारत ही अविनाशी खण्ड है।

भारत खण्ड ही स्वर्ग बनता है, और कोई खण्ड स्वर्ग नहीं बनता।

बच्चों को समझाया गया है - नई दुनिया सतयुग में भारत ही होता है।

भारत ही स्वर्ग कहलाता है।

भारतवासी ही फिर 84 जन्म लेते हैं, नर्कवासी बनते हैं।

वही फिर स्वर्गवासी बनेंगे।

इस समय सभी नर्कवासी हैं फिर भी और सभी खण्ड विनाश हो बाकी भारत रहेगा। भारत खण्ड की महिमा अपरमअपार है।

भारत में ही बाप आकर तुमको राजयोग सिखलाते हैं।

यह गीता का पुरुषोत्तम संगमयुग है।

भारत ही फिर पुरुषोत्तम बनने का है।

अभी वह आदि सनातन देवी-देवता धर्म भी नहीं है, राज्य भी नहीं है तो वह युग भी नहीं है।

तुम बच्चे जानते हो वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी एक भगवान को ही कहा जाता है।

भारतवासी यह बहुत भूल करते हैं जो कहते हैं वह अन्तर्यामी है।

सभी के अन्दर को वह जानते हैं।

बाप कहते हैं मैं कोई के भी अन्दर को नहीं जानता हूँ।

मेरा तो काम ही है पतितों को पावन बनाना।

बहुत कहते हैं शिवबाबा आप तो अन्तर्यामी हो।

बाबा कहते हैं मैं हूँ नहीं, मैं किसके भी दिल को नहीं जानता हूँ।

मैं तो सिर्फ आकर पतितों को पावन बनाता हूँ।

मुझे बुलाते ही पतित दुनिया में हैं।

और मैं एक ही बार आता हूँ जबकि पुरानी दुनिया को नया बनाना है।

मनुष्य को यह पता नहीं है कि यह जो दुनिया है वह नई से पुरानी, पुरानी से नई कब होती है?

हर चीज़ नई से पुरानी सतो, रजो, तमो में जरूर आती है।

मनुष्य भी ऐसे होते हैं।

बालक सतोप्रधान है फिर युवा होते हैं फिर वृद्ध होते हैं अर्थात् रजो, तमो में आते हैं।

बुढ़ा शरीर होता है तो वह छोड़कर फिर बच्चा बनेंगे।

बच्चे जानते हैं नई दुनिया में भारत कितना ऊंच था।

भारत की महिमा अपरमअपार है।

इतना सुखी, धनवान, पवित्र और कोई खण्ड है नहीं।

फिर सतोप्रधान बनाने बाप आये हैं।

सतोप्रधान दुनिया की स्थापना हो रही है।

त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को क्रियेट किसने किया?

ऊंच ते ऊंच तो शिव है।

कहते हैं त्रिमूर्ति ब्रह्मा, अर्थ तो समझते नहीं।

वास्तव में कहना चाहिए त्रिमूर्ति शिव, न कि ब्रह्मा।

अब गाते हैं देव-देव महादेव।

शंकर को ऊंच रखते हैं तो त्रिमूर्ति शंकर कहें ना।

फिर त्रिमूर्ति ब्रह्मा क्यों कहते?

शिव है रचयिता। गाते भी हैं परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते हैं ब्राह्मणों की।

भक्ति मार्ग में नॉलेजफुल बाप को जानी-जाननहार कह देते हैं, अब वह महिमा अर्थ सहित नहीं है।

तुम बच्चे जानते हो बाप द्वारा हमें वर्सा मिलता है, वह खुद हम ब्राह्मणों को पढ़ाते हैं क्योंकि वह बाप भी है, सुप्रीम टीचर भी है, वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे चक्र लगाती है, वह भी समझाते हैं, वही नॉलेजफुल है।

बाकी ऐसे नहीं कि वह जानी-जाननहार है।

यह भूल है।

मैं तो सिर्फ आकर पतितों को पावन बनाता हूँ, 21 जन्म के लिए राज्य-भाग्य देता हूँ।

भक्ति मार्ग में है अल्पकाल का सुख, जिसको संन्यासी, हठयोगी जानते ही नहीं।

ब्रह्म को याद करते हैं।

अब ब्रह्म तो भगवान नहीं।

भगवान तो एक निराकार शिव है, जो सर्व आत्माओं का बाप है।

हम आत्माओं के रहने का स्थान ब्रह्माण्ड स्वीट होम है।

वहाँ से हम आत्मायें यहाँ पार्ट बजाने आती हैं।

आत्मा कहती है हम एक शरीर छोड़ दूसरा-तीसरा लेती हूँ।

84 जन्म भी भारतवासियों के ही हैं, जिन्होंने बहुत भक्ति की है वही फिर ज्ञान भी जास्ती उठायेंगे।

बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में भल रहो परन्तु श्रीमत पर चलो।

तुम सभी आत्मायें आशिक हो एक परमात्मा माशुक की।

भक्तिमार्ग से लेकर तुम याद करते आये हो।

आत्मा बाप को याद करती है।

यह है ही दु:खधाम।

हम आत्मायें असुल शान्तिधाम की निवासी हैं।

पीछे आये सुखधाम में फिर हमने 84 जन्म लिए।

‘हम सो, सो हम' का अर्थ भी समझाया है।

वह तो कह देते आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा।

अब बाप ने समझाया है - हम सो देवता, क्षत्रिय, वैश्य, सो शूद्र।

अभी हम सो ब्राह्मण बने हैं सो देवता बनने के लिए।

यह है यथार्थ अर्थ। वह है बिल्कुल रांग।

सतयुग में एक देवी-देवता धर्म, अद्वैत धर्म था।

पीछे और धर्म हुए हैं तो द्वैत हुआ है।

द्वापर से आसुरी रावण राज्य शुरू हो जाता है।

सतयुग में रावणराज्य ही नहीं तो 5 विकार भी नहीं हो सकते।

वह हैं ही सम्पूर्ण निर्विकारी। राम-सीता को भी 14 कला सम्पूर्ण कहा जाता है।

राम को बाण क्यों दिया है - यह भी कोई मनुष्य नहीं जानते।

हिंसा की तो बात नहीं है। तुम हो गॉडली स्टूडेन्ट।

तो यह फादर भी हुआ, स्टूडेन्ट हो तो टीचर भी हुआ।

फिर तुम बच्चों को सद्गति दे, स्वर्ग में ले जाते हैं तो बाप टीचर गुरू तीनों ही हो गया।

उनके तुम बच्चे बने हो तो तुमको कितनी खुशी होनी चाहिए।

मनुष्य तो कुछ भी नहीं जानते, रावण राज्य है ना।

हर वर्ष रावण को जलाते आते हैं परन्तु रावण है कौन, यह नहीं जानते।

तुम बच्चे जानते हो - यह रावण भारत का सबसे बड़ा दुश्मन है।

यह नॉलेज तुम बच्चों को ही नॉलेजफुल बाप से मिलती है।

वह बाप ही ज्ञान का सागर, आनन्द का सागर है।

ज्ञान सागर से तुम बादल भरकर फिर जाए वर्षा बरसाते हो।

ज्ञान गंगायें तुम हो, तुम्हारी ही महिमा है।

बाप कहते हैं मैं तुमको अभी पावन बनाने आया हूँ, यह एक जन्म पवित्र बनो, मुझे याद करो तो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे।

मैं ही पतित-पावन हूँ, जितना हो सके याद को बढ़ाओ।

मुख से शिवबाबा कहना भी नहीं है।

जैसे आशिक माशुक को याद करते हैं, एक बार देखा, बस फिर बुद्धि में उनकी ही याद रहेगी।

भक्ति मार्ग में जो जिस देवता को याद करते, पूजा करते, उसका साक्षात्कार हो जाता है।

वह है अल्पकाल के लिए।

भक्ति करते नीचे उतरते आये हैं।

अब तो मौत सामने खड़ा है।

हाय-हाय के बाद फिर जय-जयकार होनी है।

भारत में ही रक्त की नदी बहनी है।

सिविलवार के आसार भी दिखाई दे रहे हैं।

तमोप्रधान बन गये हैं।

अब तुम सतोप्रधान बन रहे हो।

जो कल्प पहले देवता बने हैं, वही आकर बाप से वर्सा लेंगे।

कम भक्ति की होगी तो ज्ञान थोड़ा उठायेंगे।

फिर प्रजा में भी नम्बरवार पद पायेंगे।

अच्छे पुरुषार्थी श्रीमत पर चल अच्छा पद पायेंगे।

मैनर्स भी अच्छे चाहिए।

दैवीगुण भी धारण करने हैं वह फिर 21 जन्म चलेंगे।

अभी हैं सबके आसुरी गुण।

आसुरी दुनिया, पतित दुनिया है ना।

तुम बच्चों को वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी भी समझाई गई है।

इस समय बाप कहते हैं याद करने की मेहनत करो तो तुम सच्चा सोना बन जायेंगे।

सतयुग है गोल्डन एज, सच्चा सोना फिर त्रेता में चांदी की अलाए पड़ती है।

कला कम होती जाती है।

अभी तो कोई कला नहीं है, जब ऐसी हालत हो जाती है तब बाप आते हैं, यह भी ड्रामा में नूँध है।

इस रावण राज्य में सभी बेसमझ बन गये हैं, जो बेहद ड्रामा के पार्टधारी होकर भी ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते हैं।

तुम एक्टर्स हो ना।

तुम जानते हो हम यहाँ पार्ट बजाने आये हैं।

परन्तु पार्टधारी होकर जानते नहीं।

तो बेहद का बाप कहेंगे ना कि तुम कितने बेसमझ बन गये हो।

अब मैं तुम्हें समझदार हीरे जैसा बनाता हूँ।

फिर रावण कौड़ी जैसा बना देता है।

मैं ही आकर सबको साथ ले जाता हूँ फिर यह पतित दुनिया भी विनाश होती है।

मच्छरों सदृश्य सबको ले जाता हूँ।

तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट सामने खड़ी है।

ऐसा तुमको बनना है तब तो तुम स्वर्गवासी बनेंगे।

तुम ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ यह पुरुषार्थ कर रहे हो।

मनुष्यों की बुद्धि तमोप्रधान है तो समझते नहीं।

इतने बी.के. हैं तो जरूर प्रजापिता ब्रह्मा भी होगा।

ब्राह्मण हैं चोटी, ब्राह्मण फिर देवता..... चित्रों में ब्राह्मणों को और शिव को गुम कर दिया है।

तुम ब्राह्मण अभी भारत को स्वर्ग बना रहे हो।

अच्छा। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) ऊंच पद के लिए श्रीमत पर चल अच्छे मैनर्स धारण करने हैं।

2) सच्चा आशिक बन एक माशूक को ही याद करना है।

जितना हो सके याद का अभ्यास बढ़ाते जाना है।

वरदान:-

स्थूल देश और शरीर

की स्मृति से परे

सूक्ष्म देश के वेशधारी भव

जैसे आजकल की दुनिया में जैसा कर्तव्य वैसा वेश धारण कर लेते हैं, ऐसे आप भी जिस समय जैसा कर्म करना चाहते हो वैसा वेश धारण कर लो।

अभी-अभी साकारी और अभी-अभी आकारी।

ऐसे बहुरूपी बन जाओ तो सर्व स्वरूपों के सुखों का अनुभव कर सकेंगे।

यह अपना ही स्वरूप है। दूसरे के वस्त्र फिट हो या न हों लेकिन अपने वस्त्र सहज ही धारण कर सकते हो इसलिए इस वरदान को प्रैक्टिकल अभ्यास में लाओ तो अव्यक्त मिलन के विचित्र अनुभव कर सकेंगे।

स्लोगन:-

सबका आदर करने वाले ही आदर्श बन सकते हैं। सम्मान दो तब सम्मान मिलेगा।

मातेश्वरी जी के महावाक्य

1)

“ मनुष्य आत्मा अपनी पूरी कमाई अनुसार भविष्य प्रालब्ध भोगता है '' देखो, बहुत मनुष्य ऐसे समझते हैं हमारे पूर्व जन्मों की अच्छी कमाई से अभी यह ज्ञान प्राप्त हुआ है परन्तु ऐसी बात है ही नहीं, पूर्व जन्म का अच्छा फल है यह तो हम जानते हैं।

कल्प का चक्र फिरता रहता है सतो, रजो, तमो बदली होता रहता है परन्तु ड्रामा अनुसार पुरुषार्थ से प्रालब्ध बनने की मार्जिन रखी है तब तो वहाँ सतयुग में कोई राजा-रानी, कोई दासी, कोई प्रजा पद पाते हैं।

तो यही पुरुषार्थ की सिद्धि है वहाँ द्वैष, ईर्ष्या होती नहीं, वहाँ प्रजा भी सुखी है।

राजा-रानी प्रजा की ऐसी संभाल करते हैं जैसे माँ बाप अपने बच्चों की सम्भाल करते हैं, वहाँ गरीब साहूकार सब सन्तुष्ट हैं।

इस एक जन्म के पुरुषार्थ से 21 पीढ़ी के लिए सुख भोगेंगे, यह है अविनाशी कमाई, जो इस अविनाशी कमाई में अविनाशी ज्ञान से अविनाशी पद मिलता है, अभी हम सतयुगी दुनिया में जा रहे हैं यह प्रैक्टिकल खेल चल रहा है, यहाँ कोई छू मंत्र की बात नहीं है।

2)

“ गुरु मत , शास्त्रों की मत कोई परमात्मा की मत नहीं है '' परमात्मा कहते हैं बच्चे, यह गुरु मत, शास्त्र मत कोई मेरी मत नहीं है, यह तो सिर्फ मेरे नाम की मत देते हैं परन्तु मेरी मत तो मैं जानता हूँ, मेरे मिलन का पता मैं आकर देता हूँ, उसके पहले मेरी एड्रेस कोई नहीं जानता।

गीता में भल भगवानुवाच है परन्तु गीता भी मनुष्यों ने बनाई है, भगवान तो स्वयं ज्ञान का सागर है, भगवान ने जो महावाक्य सुनाये हैं उनका यादगार फिर गीता बनी है।

यह विद्वान, पण्डित, आचार्य कहते हैं परमात्मा ने संस्कृत में महावाक्य उच्चारण किये, उसे सीखने बिगर परमात्मा मिल नहीं सकेगा।

यह तो और ही उल्टा कर्मकाण्ड में फंसाते हैं, वेद, शास्त्र पढ़ अगर सीढ़ी चढ़ जावे तो फिर उतना ही उतरना पड़े अर्थात् उनको भुलाए एक परमात्मा से बुद्धियोग जोड़ना पड़े क्योंकि परमात्मा साफ कहता है इन कर्मकाण्ड, वेद, शास्त्र पढ़ने से मेरी प्राप्ति नहीं होती है। देखो ध्रुव, प्रहलाद, मीरा ने क्या शास्त्र पढ़ा?

यहाँ तो पढ़ा हुआ भी सब भूलना पड़ता है। जैसे अर्जुन ने पढ़ा था तो उनको भी भूलना पड़ा।

भगवान के साफ महावाक्य हैं - श्वांसो-श्वांस मुझे याद करो इसमें कुछ भी करने की जरूरत नहीं है।

जब तक यह ज्ञान नहीं है तो भक्ति मार्ग चलता है परन्तु ज्ञान का दीपक जग जाता है तो कर्मकाण्ड छूट जाते हैं क्योंकि कर्मकाण्ड करते-करते अगर शरीर छूट जावे तो फायदा क्या मिला?

प्रालब्ध तो बनी नहीं, कर्मबन्धन के हिसाब-किताब से तो मुक्ति मिली नहीं। लोग तो समझते हैं झूठ न बोलना, चोरी न करना, किसी को दु:ख न देना... यह अच्छा कर्म है।

परन्तु यहाँ तो सदाकाल के लिये कर्मों की बंधायमानी से छूटना है और विकर्मों की जड़ को निकालना है।

हम तो अब चाहते हैं, ऐसा बीज डालें जिससे अच्छे कर्मों का झाड़ निकले, इसलिए मनुष्य जीवन के कार्य को जान श्रेष्ठ कर्म करना है।

अच्छा - ओम् शान्ति।