ओम् शान्ति का अर्थ तो नये वा पुराने बच्चों ने समझा है।
तुम बच्चे जान गये हो - हम सब आत्मायें परमात्मा की सन्तान हैं।
परमात्मा ऊंच ते ऊंच और बहुत प्यारे ते प्यारा सभी का माशूक है।
बच्चों को ज्ञान और भक्ति का राज़ तो समझाया है, ज्ञान माना दिन - सतयुग-त्रेता, भक्ति माना रात - द्वापर-कलियुग।
भारत की ही बात है।
पहले-पहले तुम भारतवासी आते हो।
84 का चक्र भी तुम भारतवासियों के लिए है।
भारत ही अविनाशी खण्ड है।
भारत खण्ड ही स्वर्ग बनता है, और कोई खण्ड स्वर्ग नहीं बनता।
बच्चों को समझाया गया है - नई दुनिया सतयुग में भारत ही होता है।
भारत ही स्वर्ग कहलाता है।
भारतवासी ही फिर 84 जन्म लेते हैं, नर्कवासी बनते हैं।
वही फिर स्वर्गवासी बनेंगे।
इस समय सभी नर्कवासी हैं फिर भी और सभी खण्ड विनाश हो बाकी भारत रहेगा। भारत खण्ड की महिमा अपरमअपार है।
भारत में ही बाप आकर तुमको राजयोग सिखलाते हैं।
यह गीता का पुरुषोत्तम संगमयुग है।
भारत ही फिर पुरुषोत्तम बनने का है।
अभी वह आदि सनातन देवी-देवता धर्म भी नहीं है, राज्य भी नहीं है तो वह युग भी नहीं है।
तुम बच्चे जानते हो वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी एक भगवान को ही कहा जाता है।
भारतवासी यह बहुत भूल करते हैं जो कहते हैं वह अन्तर्यामी है।
सभी के अन्दर को वह जानते हैं।
बाप कहते हैं मैं कोई के भी अन्दर को नहीं जानता हूँ।
मेरा तो काम ही है पतितों को पावन बनाना।
बहुत कहते हैं शिवबाबा आप तो अन्तर्यामी हो।
बाबा कहते हैं मैं हूँ नहीं, मैं किसके भी दिल को नहीं जानता हूँ।
मैं तो सिर्फ आकर पतितों को पावन बनाता हूँ।
मुझे बुलाते ही पतित दुनिया में हैं।
और मैं एक ही बार आता हूँ जबकि पुरानी दुनिया को नया बनाना है।
मनुष्य को यह पता नहीं है कि यह जो दुनिया है वह नई से पुरानी, पुरानी से नई कब होती है?
हर चीज़ नई से पुरानी सतो, रजो, तमो में जरूर आती है।
मनुष्य भी ऐसे होते हैं।
बालक सतोप्रधान है फिर युवा होते हैं फिर वृद्ध होते हैं अर्थात् रजो, तमो में आते हैं।
बुढ़ा शरीर होता है तो वह छोड़कर फिर बच्चा बनेंगे।
बच्चे जानते हैं नई दुनिया में भारत कितना ऊंच था।
भारत की महिमा अपरमअपार है।
इतना सुखी, धनवान, पवित्र और कोई खण्ड है नहीं।
फिर सतोप्रधान बनाने बाप आये हैं।
सतोप्रधान दुनिया की स्थापना हो रही है।
त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को क्रियेट किसने किया?
ऊंच ते ऊंच तो शिव है।
कहते हैं त्रिमूर्ति ब्रह्मा, अर्थ तो समझते नहीं।
वास्तव में कहना चाहिए त्रिमूर्ति शिव, न कि ब्रह्मा।
अब गाते हैं देव-देव महादेव।
शंकर को ऊंच रखते हैं तो त्रिमूर्ति शंकर कहें ना।
फिर त्रिमूर्ति ब्रह्मा क्यों कहते?
शिव है रचयिता। गाते भी हैं परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते हैं ब्राह्मणों की।
भक्ति मार्ग में नॉलेजफुल बाप को जानी-जाननहार कह देते हैं, अब वह महिमा अर्थ सहित नहीं है।
तुम बच्चे जानते हो बाप द्वारा हमें वर्सा मिलता है, वह खुद हम ब्राह्मणों को पढ़ाते हैं क्योंकि वह बाप भी है, सुप्रीम टीचर भी है, वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे चक्र लगाती है, वह भी समझाते हैं, वही नॉलेजफुल है।
बाकी ऐसे नहीं कि वह जानी-जाननहार है।
यह भूल है।
मैं तो सिर्फ आकर पतितों को पावन बनाता हूँ, 21 जन्म के लिए राज्य-भाग्य देता हूँ।
भक्ति मार्ग में है अल्पकाल का सुख, जिसको संन्यासी, हठयोगी जानते ही नहीं।
ब्रह्म को याद करते हैं।
अब ब्रह्म तो भगवान नहीं।
भगवान तो एक निराकार शिव है, जो सर्व आत्माओं का बाप है।
हम आत्माओं के रहने का स्थान ब्रह्माण्ड स्वीट होम है।
वहाँ से हम आत्मायें यहाँ पार्ट बजाने आती हैं।
आत्मा कहती है हम एक शरीर छोड़ दूसरा-तीसरा लेती हूँ।
84 जन्म भी भारतवासियों के ही हैं, जिन्होंने बहुत भक्ति की है वही फिर ज्ञान भी जास्ती उठायेंगे।
बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में भल रहो परन्तु श्रीमत पर चलो।
तुम सभी आत्मायें आशिक हो एक परमात्मा माशुक की।
भक्तिमार्ग से लेकर तुम याद करते आये हो।
आत्मा बाप को याद करती है।
यह है ही दु:खधाम।
हम आत्मायें असुल शान्तिधाम की निवासी हैं।
पीछे आये सुखधाम में फिर हमने 84 जन्म लिए।
‘हम सो, सो हम' का अर्थ भी समझाया है।
वह तो कह देते आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा।
अब बाप ने समझाया है - हम सो देवता, क्षत्रिय, वैश्य, सो शूद्र।
अभी हम सो ब्राह्मण बने हैं सो देवता बनने के लिए।
यह है यथार्थ अर्थ। वह है बिल्कुल रांग।
सतयुग में एक देवी-देवता धर्म, अद्वैत धर्म था।
पीछे और धर्म हुए हैं तो द्वैत हुआ है।
द्वापर से आसुरी रावण राज्य शुरू हो जाता है।
सतयुग में रावणराज्य ही नहीं तो 5 विकार भी नहीं हो सकते।
वह हैं ही सम्पूर्ण निर्विकारी। राम-सीता को भी 14 कला सम्पूर्ण कहा जाता है।
राम को बाण क्यों दिया है - यह भी कोई मनुष्य नहीं जानते।
हिंसा की तो बात नहीं है। तुम हो गॉडली स्टूडेन्ट।
तो यह फादर भी हुआ, स्टूडेन्ट हो तो टीचर भी हुआ।
फिर तुम बच्चों को सद्गति दे, स्वर्ग में ले जाते हैं तो बाप टीचर गुरू तीनों ही हो गया।
उनके तुम बच्चे बने हो तो तुमको कितनी खुशी होनी चाहिए।
मनुष्य तो कुछ भी नहीं जानते, रावण राज्य है ना।
हर वर्ष रावण को जलाते आते हैं परन्तु रावण है कौन, यह नहीं जानते।
तुम बच्चे जानते हो - यह रावण भारत का सबसे बड़ा दुश्मन है।
यह नॉलेज तुम बच्चों को ही नॉलेजफुल बाप से मिलती है।
वह बाप ही ज्ञान का सागर, आनन्द का सागर है।
ज्ञान सागर से तुम बादल भरकर फिर जाए वर्षा बरसाते हो।
ज्ञान गंगायें तुम हो, तुम्हारी ही महिमा है।
बाप कहते हैं मैं तुमको अभी पावन बनाने आया हूँ, यह एक जन्म पवित्र बनो, मुझे याद करो तो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे।
मैं ही पतित-पावन हूँ, जितना हो सके याद को बढ़ाओ।
मुख से शिवबाबा कहना भी नहीं है।
जैसे आशिक माशुक को याद करते हैं, एक बार देखा, बस फिर बुद्धि में उनकी ही याद रहेगी।
भक्ति मार्ग में जो जिस देवता को याद करते, पूजा करते, उसका साक्षात्कार हो जाता है।
वह है अल्पकाल के लिए।
भक्ति करते नीचे उतरते आये हैं।
अब तो मौत सामने खड़ा है।
हाय-हाय के बाद फिर जय-जयकार होनी है।
भारत में ही रक्त की नदी बहनी है।
सिविलवार के आसार भी दिखाई दे रहे हैं।
तमोप्रधान बन गये हैं।
अब तुम सतोप्रधान बन रहे हो।
जो कल्प पहले देवता बने हैं, वही आकर बाप से वर्सा लेंगे।
कम भक्ति की होगी तो ज्ञान थोड़ा उठायेंगे।
फिर प्रजा में भी नम्बरवार पद पायेंगे।
अच्छे पुरुषार्थी श्रीमत पर चल अच्छा पद पायेंगे।
मैनर्स भी अच्छे चाहिए।
दैवीगुण भी धारण करने हैं वह फिर 21 जन्म चलेंगे।
अभी हैं सबके आसुरी गुण।
आसुरी दुनिया, पतित दुनिया है ना।
तुम बच्चों को वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी भी समझाई गई है।
इस समय बाप कहते हैं याद करने की मेहनत करो तो तुम सच्चा सोना बन जायेंगे।
सतयुग है गोल्डन एज, सच्चा सोना फिर त्रेता में चांदी की अलाए पड़ती है।
कला कम होती जाती है।
अभी तो कोई कला नहीं है, जब ऐसी हालत हो जाती है तब बाप आते हैं, यह भी ड्रामा में नूँध है।
इस रावण राज्य में सभी बेसमझ बन गये हैं, जो बेहद ड्रामा के पार्टधारी होकर भी ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते हैं।
तुम एक्टर्स हो ना।
तुम जानते हो हम यहाँ पार्ट बजाने आये हैं।
परन्तु पार्टधारी होकर जानते नहीं।
तो बेहद का बाप कहेंगे ना कि तुम कितने बेसमझ बन गये हो।
अब मैं तुम्हें समझदार हीरे जैसा बनाता हूँ।
फिर रावण कौड़ी जैसा बना देता है।
मैं ही आकर सबको साथ ले जाता हूँ फिर यह पतित दुनिया भी विनाश होती है।
मच्छरों सदृश्य सबको ले जाता हूँ।
तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट सामने खड़ी है।
ऐसा तुमको बनना है तब तो तुम स्वर्गवासी बनेंगे।
तुम ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ यह पुरुषार्थ कर रहे हो।
मनुष्यों की बुद्धि तमोप्रधान है तो समझते नहीं।
इतने बी.के. हैं तो जरूर प्रजापिता ब्रह्मा भी होगा।
ब्राह्मण हैं चोटी, ब्राह्मण फिर देवता..... चित्रों में ब्राह्मणों को और शिव को गुम कर दिया है।
तुम ब्राह्मण अभी भारत को स्वर्ग बना रहे हो।
अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
मातेश्वरी जी के महावाक्य