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Baba's Murlis - April, 2020
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मुरली से याद के बिन्दु

20-04-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“ मीठे बच्चे - तुम्हारा यह नया झाड़ बहुत मीठा है ,

इस मीठे झाड़ को ही कीड़े लगते हैं ,

कीड़ों को समाप्त करने की दवाई है मनमनाभव ''

प्रश्नः-

पास विद् ऑनर होने वाले स्टूडेन्ट की निशानी क्या होगी?

उत्तर:-

वह सिर्फ एक सब्जेक्ट में नहीं लेकिन सभी सब्जेक्ट पर पूरा-पूरा ध्यान देंगे।

स्थूल सर्विस की भी सब्जेक्ट अच्छी है,

बहुतों को सुख मिलता है,

इससे भी मार्क्स जमा होती हैं लेकिन साथ-साथ ज्ञान भी चाहिए तो चलन भी चाहिए।

दैवीगुणों पर पूरा अटेन्शन हो।

ज्ञान योग पूरा हो तब पास विद् ऑनर हो सकेंगे।

गीत:- न वह हमसे जुदा होंगे...

ओम् शान्ति।

बच्चों ने क्या सुना?

बच्चों की किससे दिल लगी हुई है? गाइड से।

गाइड क्या-क्या दिखलाते हैं?

स्वर्ग में जाने का गेट दिखलाते हैं।

बच्चों को नाम भी दिया है गेट वे टू हेवन।

स्वर्ग का फाटक कब खुलता है?

अभी तो हेल है ना।

हेवन का फाटक कौन खोलते हैं और कब?

यह तुम बच्चे ही जानते हो। तुमको सदैव खुशी रहती है।

हेवन में जाने लिए रास्ता तुम जानते हो।

मेले प्रदर्शनी द्वारा तुम यह दिखलाते हो कि मनुष्य स्वर्ग के द्वार कैसे जा सकते हैं।

चित्र तो तुमने बहुत बनाये हैं।

बाबा पूछते हैं इन सब चित्रों में कौन-सा ऐसा चित्र है जिससे हम किसको भी समझा सकें कि यह है स्वर्ग में जाने का गेट?

गोले (सृष्टि का) के चित्र में स्वर्ग जाने का गेट सिद्ध होता है।

यही राइट है।

ऊपर में उस तरफ है नर्क का गेट, उस तरफ है स्वर्ग का गेट।

बिल्कुल क्लीयर है।

यहाँ से सब आत्मायें भागती हैं शान्तिधाम फिर आती हैं स्वर्ग में।

यह गेट है।

सारे चक्र को भी गेट नहीं कहेंगे।

ऊपर में जहाँ संगम दिखाया है वह है पूरा गेट।

जिससे आत्मायें निकल जाती हैं, फिर नई दुनिया में आती हैं।

बाकी सब शान्तिधाम में रहती हैं।

कांटा दिखाता है - यह नर्क है, वह स्वर्ग है।

सबसे अच्छा फर्स्टक्लास समझाने का यह चित्र है।

बिल्कुल क्लीयर है, गेट वे टू हेविन।

यह बुद्धि से समझने की बात है ना।

अनेक धर्मों का विनाश और एक धर्म की स्थापना हो रही है।

तुम जानते हो हम सुखधाम में जायेंगे, बाकी सब शान्तिधाम में चले जायेंगे।

गेट तो बड़ा क्लीयर है।

यह गोला ही मुख्य चित्र है।

इसमें नर्क का द्वार, स्वर्ग का द्वार बिल्कुल क्लीयर है।

स्वर्ग के द्वार में जो कल्प पहले गये थे वही जायेंगे, बाकी सब शान्ति द्वार चले जायेंगे।

नर्क का द्वार बन्द हो शान्ति और सुख का द्वार खुलता है।

सबसे फर्स्ट-क्लास चित्र यह है।

बाबा हमेशा कहते हैं त्रिमूर्ति, दो गोले और यह चक्र फर्स्टक्लास चित्र है।

जो भी कोई आये उनको पहले इस चित्र पर दिखाओ स्वर्ग में जाने का यह गेट है।

यह नर्क, यह स्वर्ग।

नर्क का अभी विनाश होता है।

मुक्ति का गेट खुलता है।

इस समय हम स्वर्ग में जायेंगे बाकी सब शान्तिधाम में जायेंगे।

कितना सहज है।

स्वर्ग द्वार सभी तो नहीं जायेंगे।

वहाँ तो इन देवी-देवताओं का ही राज्य था।

तुम्हारी बुद्धि में है स्वर्ग द्वार चलने के लिए अभी हम लायक बने हैं।

जितना लिखेंगे पढ़ेंगे होंगे नवाब, रुलेंगे पिलेंगे तो होंगे खराब।

सबसे अच्छा चित्र यह गोले का है, बुद्धि से समझ सकते हैं एक बार चित्र देखा फिर बुद्धि से काम लिया जाता है।

तुम बच्चों को सारा दिन यह ख्यालात चलने चाहिए कि कौन-सा चित्र मुख्य हो, जिस पर हम अच्छी रीति समझा सकते हैं।

गेट वे टू हेवन - यह अंग्रेजी अक्षर बहुत अच्छा है।

अभी तो अनेक भाषायें हो गई हैं।

हिन्दी अक्षर हिन्दुस्तान से निकला है।

हिन्दुस्तान अक्षर कोई राइट नहीं है, इसका असुल नाम तो भारत ही है।

भारतखण्ड कहते हैं।

यह तो गलियों आदि के नाम बदले जाते हैं।

खण्ड का नाम थोड़ेही बदला जाता है।

महाभारत अक्षर है ना।

सबमें भारत ही याद आता है।

गाते भी हैं भारत हमारा देश है।

हिन्दू धर्म कहने से भाषा भी हिन्दी कर दी है।

यह है अनराइटियस।

सतयुग में था सच ही सच - सच पहनना, सच खाना, सच बोलना।

यहाँ सब झूठ हो गया है।

तो यह गेट वे टू हेविन अक्षर बहुत अच्छा है।

चलो हम आपको स्वर्ग जाने का गेट बतायें।

कितनी भाषायें हो गई हैं।

बाप तुम बच्चों को सद्गति की श्रेष्ठ मत देते हैं।

बाप की मत के लिए गायन है उनकी गत मत न्यारी।

तुम बच्चों को कितनी सहज मत देते हैं।

भगवान की श्रीमत पर ही तुमको चलना है।

डॉक्टर की मत पर डॉक्टर बनेंगे।

भगवान की मत पर भगवान भगवती बनना होता है।

है भी भगवानुवाच इसलिए बाबा ने कहा था पहले तो यह सिद्ध करो भगवान किसको कहा जाता है।

स्वर्ग के मालिक जरूर भगवान भगवती ही ठहरे।

ब्रह्म में तो कुछ है नहीं।

स्वर्ग भी यहाँ, नर्क भी यहाँ होता है।

स्वर्ग-नर्क दोनों बिल्कुल न्यारे हैं।

मनुष्यों की बुद्धि बिल्कुल तमोप्रधान हो गई है, कुछ भी समझते नहीं हैं।

सतयुग को लाखों वर्ष दे दिया है।

कलियुग के लिए कहते हैं 40 हज़ार वर्ष पड़े हैं।

बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में हैं।

अभी तुम बच्चे जानते हो बाप हमको हेवन ले जाने के लिए ऐसा गुणवान बनाते हैं।

मुख्य फुरना ही यह रखना है कि हम सतोप्रधान कैसे बनें?

बाप ने बताया है मामेकम् याद करो।

चलते फिरते काम करते बुद्धि में यह याद रहे।

आशिक-माशुक भी कर्म तो करते हैं ना।

भक्ति में भी कर्म तो करते हैं ना।

बुद्धि में उनकी याद रहती है।

याद करने के लिए माला फेरते हैं।

बाप भी घड़ी-घड़ी कहते हैं मुझ बाप को याद करो।

सर्वव्यापी कह देते तो फिर याद किसको करेंगे?

बाप समझाते हैं तुम कितने नास्तिक बन गये हो।

बाप को ही नहीं जानते हो।

कहते भी हो ओ गॉड फादर।

परन्तु वह है कौन, यह ज़रा भी पता नहीं है।

आत्मा कहती है ओ गॉड फादर।

परन्तु आत्मा क्या है, आत्मा अलग है, उनको कहते हैं परम आत्मा अर्थात् सुप्रीम, ऊंच ते ऊंच सुप्रीम सोल परम आत्मा।

एक भी मनुष्य नहीं जिसको अपनी आत्मा का ज्ञान हो।

मैं आत्मा हूँ, यह शरीर है।

दो चीज़ तो हैं ना।

यह शरीर 5 तत्वों का बना हुआ है।

आत्मा तो अविनाशी एक बिन्दी है।

वह क्या चीज़ से बनेंगी।

इतनी छोटी बिन्दी है, साधू-सन्त आदि कोई को पता नहीं।

इसने तो बहुत गुरू किये परन्तु कोई ने यह नहीं सुनाया कि आत्मा क्या है?

परमपिता परमात्मा क्या है?

ऐसे नहीं सिर्फ परमात्मा को नहीं जानते।

आत्मा को भी नहीं जानते।

आत्मा को जान जाएं तो परमात्मा को फट से जान जायें।

बच्चा अपने को जाने और बाप को न जाने तो चल कैसे सकते?

तुम तो अभी जानते हो आत्मा क्या है, कहाँ रहती है?

डॉक्टर लोग भी इतना समझते हैं - वह सूक्ष्म है, इन आंखों से देखी नहीं जाती फिर शीशे में भी बन्द करने से देख कैसे सकेंगे?

दुनिया में तुम्हारे जैसी नॉलेज कोई को नहीं है। तुम जानते हो आत्मा बिन्दी है, परमात्मा भी बिन्दी है।

बाकी हम आत्मायें पतित से पावन, पावन से पतित बनती है।

वहाँ तो पतित आत्मा नहीं रहती है।

वहाँ से सब पावन आते हैं फिर पतित बनते हैं।

फिर बाप आकर पावन बनाते हैं, यह बहुत ही सहज ते सहज बात है।

तुम जानते हो हमारी आत्मा 84 का चक्र लगाए अब तमोप्रधान बन गई है।

हम ही 84 जन्म लेते हैं।

एक की बात नहीं है।

बाप कहते हैं मैं समझाता इनको हूँ, सुनते तुम हो।

मैंने इनमें प्रवेश किया है, इनको सुनाता हूँ।

तुम सुन लेते हो।

यह है रथ।

तो बाबा ने समझाया है - नाम रखना चाहिए गेट वे टू हेविन।

परन्तु इसमें भी समझाना पड़े कि सतयुग में जो देवी-देवता धर्म था वह अब प्राय: लोप है।

कोई को पता नहीं है।

क्रिश्चियन भी पहले सतोप्रधान थे फिर पुनर्जन्म लेते-लेते तमोप्रधान बनते हैं।

झाड़ भी पुराना जरूर होता है।

यह वैराइटी धर्मों का झाड़ है।

झाड़ के हिसाब से और सब धर्म वाले आते ही पीछे हैं।

यह ड्रामा बना-बनाया है।

ऐसे थोड़ेही कोई को टर्न मिल जायेगा सतयुग में आने का।

नहीं।

यह तो अनादि खेल बना हुआ है।

सतयुग में एक ही आदि सनातन प्राचीन देवी-देवता धर्म था।

अब तुम बच्चों की बुद्धि में है कि हम स्वर्ग में जा रहे हैं।

आत्मा कहती है हम तमोप्रधान हैं तो घर कैसे जायेंगे, स्वर्ग में कैसे जायेंगे?

उसके लिए सतोप्रधान बनने की युक्ति भी बाप ने बतलाई है।

बाप कहते हैं मुझे ही पतित-पावन कहते हैं।

अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो।

भगवानुवाच लिखा हुआ है।

यह भी सब कहते रहते हैं - क्राइस्ट से इतने वर्ष पहले भारत हेवन था।

परन्तु कैसे बना फिर कहाँ गया, यह कोई नहीं जानते।

तुम तो अच्छी रीति जानते हो।

आगे यह सब बातें थोड़ेही जानते थे।

दुनिया में यह भी किसको पता नहीं कि आत्मा ही अच्छी वा बुरी बनती है।

सभी आत्मायें बच्चे हैं।

बाप को याद करते हैं।

बाप सभी का माशूक है, सभी आशिक हैं।

अभी तुम बच्चे जानते हो वह माशुक आया हुआ है।

बहुत मीठा माशुक है।

नहीं तो सभी उनको याद क्यों करते?

कोई भी ऐसा मनुष्य नहीं होगा जिसके मुख से परमात्मा का नाम नहीं निकले।

सिर्फ जानते नहीं हैं।

तुम जानते हो आत्मा अशरीरी है।

आत्माओं की भी पूजा होती है ना।

हम जो पूज्य थे वह फिर अपनी ही आत्मा को पूजने लगे।

हो सकता है आगे जन्म में ब्राह्मण कुल में जन्म लिया हो।

श्रीनाथ को भोग लगता है, खाते तो पुजारी लोग हैं।

यह सब है भक्ति मार्ग।

तुम बच्चों को समझाना है - स्वर्ग का फाटक खोलने वाला बाप है।

परन्तु खोले कैसे, समझावे कैसे?

भगवानुवाच है तो जरूर शरीर द्वारा वाच होगी ना।

आत्मा ही शरीर द्वारा बोलती है, सुनती है।

यह बाबा रेज़गारी बताते हैं।

बीज और झाड़ है।

तुम बच्चे जानते हो यह नया झाड़ है।

आहिस्ते-आहिस्ते फिर वृद्धि को पाते हैं।

तुम्हारे इस नये झाड़ को कीड़े भी बहुत लगते हैं क्योंकि यह नया झाड़ बहुत मीठा है।

मीठे झाड़ को ही कीड़े आदि कुछ न कुछ लगते हैं फिर दवाई दे देते हैं।

बाप ने भी मनमनाभव की दवाई बहुत अच्छी दी है।

मनमनाभव न होने से कीड़े खा जाते हैं।

कीड़े वाली चीज़ क्या काम आयेगी।

वह तो फेंकी जाती है।

कहाँ ऊंच पद, कहाँ नींच पद।

फर्क तो है ना।

मीठे बच्चों को समझाते रहते हैं बहुत मीठे-मीठे बनो।

कोई से भी लून-पानी न बनो, क्षीरखण्ड बनो।

वहाँ शेर-बकरी भी क्षीरखण्ड रहते हैं।

तो बच्चों को भी क्षीरखण्ड बनना चाहिए।

परन्तु कोई की तकदीर में ही नहीं है तो तदबीर भी क्या करें!

नापास हो जाते हैं।

टीचर तो पढ़ाते हैं तकदीर ऊंच बनाने।

टीचर पढ़ाते तो सबको हैं।

फर्क भी तुम देखते हो।

स्टूडेन्ट क्लास में जान सकते हैं, कौन किस सब्जेक्ट में होशियार हैं।

यहाँ भी ऐसे हैं।

स्थूल सर्विस की भी सब्जेक्ट तो हैं ना।

जैसे भण्डारी है, बहुतों को सुख मिलता है, कितना सब याद करते हैं।

यह तो ठीक है, इस सब्जेक्ट से भी मार्क्स मिलती हैं।

लेकिन पास विद् ऑनर होने के लिए सिर्फ एक सब्जेक्ट में नहीं, सब सब्जेक्ट में पूरा ध्यान देना है।

ज्ञान भी चाहिए, चलन भी ऐसी चाहिए, दैवीगुण भी चाहिए।

अटेन्शन रखना अच्छा है।

भण्डारी के पास भी कोई आये तो कहे मनमनाभव।

शिवबाबा को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और तुम स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे।

बाप को याद करते औरों को भी परिचय देते रहें।

ज्ञान और योग चाहिए।

बहुत इज़ी है।

मुख्य बात है ही यह।

अन्धों की लाठी बनना है।

प्रदर्शनी में भी किसको ले जाओ, चलो हम आपको स्वर्ग का गेट दिखायें।

यह नर्क है, वह स्वर्ग है।

बाप कहते हैं मुझे याद करो, पवित्र बनो तो तुम पवित्र दुनिया के मालिक बन जायेंगे। मनमनाभव।

हूबहू तुमको गीता सुनाते हैं इसलिए बाबा ने चित्र बनाया है - गीता का भगवान कौन?

स्वर्ग का गेट कौन खोलते हैं?

खोलता है शिवबाबा।

कृष्ण उससे पार करता है और फिर नाम रख दिया है कृष्ण का।

मुख्य चित्र है ही दो।

बाकी तो रेज़गारी है।

बच्चों को बहुत मीठा बनना है।

प्यार से बात करनी है।

मन्सा, वाचा, कर्मणा सबको सुख देना है।

देखो भण्डारी सबको खुश करती है तो उनके लिए सौगात भी ले आते हैं।

यह भी सब्जेक्ट है ना।

सौगात आकर देते हैं, वह कहती है हम तुमसे क्यों लूँ, फिर तुम्हारी याद रहेगी।

शिवबाबा के भण्डारे से मिलेगा तो हमको शिवबाबा की याद रहेगी।

अच्छा। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) अपनी ऊंच तकदीर बनाने के लिए आपस में बहुत-बहुत क्षीरखण्ड,

मीठा होकर रहना है, कभी लून-पानी नहीं होना है।

सभी सब्जेक्ट पर पूरा अटेन्शन देना है।

2) सद्गति के लिए बाप की जो श्रेष्ठ मत मिली है,

उस पर चलना है और सबको श्रेष्ठ मत ही सुनानी है।

स्वर्ग में जाने का रास्ता दिखाना है।

वरदान:-

शुद्ध संकल्पों की शक्ति के स्टॉक द्वारा

मन्सा सेवा के सहज अनुभवी भव

अन्तर्मुखी बन शुद्ध संकल्पों की शक्ति का स्टॉक जमा करो।

यह शुद्ध संकल्प की शक्ति सहज ही अपने व्यर्थ संकल्पों को समाप्त कर देगी और दूसरों को भी शुभ भावना, शुभ कामना के स्वरूप से परिवर्तन कर सकेंगे।

शुद्ध संकल्पों का स्टॉक जमा करने के लिए मुरली की हर पाइंट को सुनने के साथ-साथ शक्ति के रूप में हर समय कार्य में लगाओ।

जितना शुद्ध संकल्पों की शक्ति का स्टॉक जमा होगा उतना मन्सा सेवा के सहज अनुभवी बनते जायेंगे।

स्लोगन:-

मन से सदा के लिए ईष्या-द्वेष को विदाई दो तब विजय होगी।